खून की कसम
By प्रकाश भारती
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जोसेफ की बार में...।
बारटेंडर के अलावा कस्टमर के नाम पर सिर्फ एक युवती मौजूद थी।
वह उसी के पास जा बैठा... जल्दी पता चल गया खबर गर्म थी और तेजी से फैल रही थी...।
खासी पिए नजर आती युवती ने सूट में कसे उसके लंबे-चौड़े मजबूत जिस्म को गौर से देखा फिर अपने सामने रखें पूरे भरे गिलास पर नज़रे जमा दीं।
-"रनधीर मर गया।" वह गिलास से सिप लेकर बोली- "उसकी हुकूमत पर कब्जा करने के लिए जंग छिड़ चुकी होती अगर अलीस का खौफ नहीं होता... वह दूर कहीं बहुत बड़ी चीज है - रनधीर से भी बड़ी चीज। दोनों दो जिस्म मगर एक जान हुआ करते थे- जलीस ज्यादा खतरनाक था... सिर्फ चौदह साल की उम्र में असली विलायती गन रखने लगा था... तेज दिमाग था... पढ़ाई में भी फर्स्ट आता था...।" तगड़ा घूंट लेकर बोली- "अलग-अलग मजहब का होने के बावजूद दोनों खुद को ब्लड ब्रदर्स कहते थे... पेशेवर बदमाश थे टीनएज में ही। हर चीज में बराबर की हिस्सेदारी होती थी... उन्हीं दिनों दोनों ने खून की कसम खाई थी- अगर किसी एक को कुछ हो जाए तो दूसरा उसका बदला जरूर लेगा। जबरदस्त रुतबा था उनका... पूरे इलाके के बदमाशों को आर्गेनाइज कर लिया था... जब जलीस यहां से गया उन्नीस साल का था- सत्रह साल हो गए... अब जरूर वापस आएगा अपना वादा पूरा करने... रनधीर के हत्यारों को छोड़ेगा नहीं...।" चटकारा सा लेकर कहा- "लेकिन मुझे कोई परवाह नहीं है... शहर के सारे बदमाश आपस में लड़ मरे तो मुझे खुशी होगी उस कमीने जलीस खान की लाश को भी जब सड़क पर पड़ी देखूंगी तो उस पर भी थूकूंगी उसी तरह जैसे रनधीर की लाश पर थूका था...।"
-"बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर रही हो, बेबी।" वह पहली बार बोला।
युवती ने कड़ी निगाहों से उसे घूरा।
-"बेबी... मुझे बेबी कहने वाले तुम होते कौन हो?"
-"जलीस खान।" वह खड़ा होकर बोला और कोर्ट के बटन खोल दिए।
उसकी बैल्ट में अड़तीस कैलिबर की रिवाल्वर लगी थी।
युवती की आंखें दहशत से फैल गईं।
सर से पांव तक कांपता बारटेंडर अजूबे की तरह देखता रह गया।
(रहस्य एवं रोमांच से भरपूर कथानक... बेहद चौंका देने वाला क्लाइमैक्स)
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खून की कसम - प्रकाश भारती
खून की कसम
प्रकाश भारती
Aslan-Reads.pngअसलान रीड्स
के द्वारा प्रकाशन
असलान बिजनेस सॉल्यूशंस की एक इकाई
बोरिवली, मुंबई, महाराष्ट्र, इंडिया
ईमैल: hello@aslanbiz.com; वेबसाइट: www.aslanreads.com
कॉपीराइट © 1994 प्रकाश भारती द्वारा
ISBN
इस पुस्तक की कहानियाँ काल्पनिक है। इनका किसी के जीवन या किसी पात्र से कोई
संबंध नहीं है। यह केवल मनोरंजन मात्र के लिए लिखी गई है।
अत: लेखक एवं प्रकाशक इनके लिए जिम्मेदार नहीं है।
यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि प्रकाशक की
लिखित पूर्वानुमती के बिना इसे या इसके किसी भी हिस्से को न तो पुन: प्रकाशित
किया जा सकता है और न ही किसी भी अन्य तरीके से, किसी भी रूप में
इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
अंतर्वस्तु
खून की कसम
* * * * * *
खून की कसम
सही ठिकाने पर पहुंचने से पहले ही उसे पता चल गया कि खबर गर्म थी और इतने सही ढंग से फैलाई गई थी कि शाम का वक्त और बारिश के बावजूद शहर के हर एक कोने तक जा पहुँची थी ।
सबसे पहले गोविंदपुरी के इलाके में ही जोसफ की बार में खासी पिए हुए चालू किस्म की नजर आती एक युवती के मुंह से उसने खबर सुनी ।
उसे बार में दाखिल होता देखकर युवती अर्थपूर्ण ढंग से मुस्करायी–फिर उसके गीले रेन कोट पर निगाह डाली और फिर बाहर हो रही बारिश को देखने का प्रयास करने लगी ।
उसने रेनकोट उतारा तो युवती ने सूट में कसे उसके लंबे–चौड़े मजबूत जिस्म को गौर से देखा और गिलास में बची शराब कंठ में उंडेलकर गिलास अपने बगल वाले खाली पड़े स्टूल पर रख दिया ।
वह युवती का आशय समझ गया । बार में अन्य कोई कस्टमर नहीं था और इत्तफाकिया पार्टनर के तौर पर गोरे रंग और औसत कद वाली युवती बुरी नहीं थी । सुरुर के कारण उसके चेहरे पर तनाव था और आँखें बोझिल सी थीं ।
युवती ने पुनः मुस्कराकर अपने खाली गिलास की ओर इशारा किया ।
बार टेंडर को दो ड्रिंक्स का आर्डर देकर वह युवती की बगल में बैठ गया ।
बार टेंडर ने ड्रिंक्स सर्व कर दिए ।
थैंक्स, बिगमैन ।
युवती ने गिलास उठाकर कहा और तगड़ा घूँट लेकर पूछा–बातें करना चाहते हो ?
उसने सर हिलाकर इंकार कर दिया ।
लगता है, तुम भी उस कमीने रनधीर की मौत का मातम मना रहे हो ।
युवती ने कहा ।
बार टेंडर ने उसकी पीठ थपथपाई ।
इस किस्से से दूर ही रहो, माला ।
क्यों ? उस कमीने की कोई परवाह मैंने कभी नहीं की । वह पैदाइशी बदमाश था । स्कूल के दिनों में छोटे–मोटे जुर्म करता रहा फिर बहुत बड़ा पेशेवर मुज़रिम बन गया । मुझे भी उस हरामजादे ने सताया था । हालांकि उसके अंतिम संस्कार पर कई लाख रुपए खर्च किए गए थे लेकिन वह था कमीना ही ।
माला, बको मत...।
तुम पागल हो, जनार्दन । उसकी मौत का अफसोस किसी को नहीं है । सब खुश हैं कि वह मारा गया । ज्यादातर लोग तो इसलिए खुश है क्योंकि उन्हें उसने सताया था और बाकी इसलिए खुश है । क्योंकि अब कुछ देर के लिए उसके धंधों को संभालने का मौका उन्हें मिल सकता है ।
मैंने तुमसे कहा था...।
ठीक है, जर्नादन ठीक है । तुम कोई फिक्र मत करो । यहाँ कोई नहीं सुन रहा । सिर्फ यही एक आदमी हैं ।
वह हंसी और पुनः गिलास से घूँट लिया–बड़ा बदमाश तो मर गया और छोटे बदमाश हाय–तौबा मचा रहे है । कितनी मजेदार बात है । फिर उसकी ओर देखा–
जानते हो दोस्त, वे क्यों हाय–तौबा मचा रहे है ?"
तुम बताओ ।
वह पहली बार बोला ।
माला ने गिलास खाली किया ।
पहले मुझे एक ड्रिंक और पिलाओ ।
नहीं ।
बार टेंडर जनार्दन ने प्रतिवाद किया–यह पहले ही काफी पी चुकी है ।
एक ड्रिंक और दे दो ।
वह बोला ।
जनार्दन ने मुँह बनाते हुए माला को ड्रिंक दे दिया ।
माला ने मुस्कराते हुए आँख मारी और एक ही बार में गिलास आधा खाली कर दिया ।
अब बताओ ।
वह बोला ।
जरूर बताऊंगी, शहर के सभी छोटे–बड़े बदमाश इसलिए हाय–तौबा मचा रहे हैं क्योंकि वे रनधीर की हुक़ूमत को हासिल करना चाहते है । हर एक गिरोह उस पर कब्ज़ा करने के लिए तैयार है । वे सब हथियारों से लैस है । गोलियाँ चलेंगी और बेगुनाह भी मारे जाएंगे ।
उनकी हाय–तौबा की वजह यह नहीं है ।
माला ने अपने गिलास से घूँट लिया ।
उनके हाय–तौबा मचाने की असली वजह है–जलीस । जलीस खान का ख़ौफ़ उन सबको बुरी तरह सता रहा है ।
तुम जानती हो, जलीस कौन है ?
माला !
जनार्दन ने पुनः टोका ।
बोर मत करो, जनार्दन ।
माला ने कहा, फिर अपनी बात को आगे बढ़ाती हुई बोली–दूर कहीं किसी दूसरे शहर में जलीस बहुत बड़ी चीज है । मिस्टर रनधीर से भी बड़ी चीज है वह । रनधीर और जलीस दो जिस्म मगर एक जान हुआ करते थे ।
उसने अपने दाएं हाथ की पहली अगुंली पर दूसरी चढ़ाकर उसके सामने कर दीं–ठीक इस तरह ।
टॉप पर कौन था ?
जलीस । मैंने सुना है, जलीस रनधीर के मुकाबले में कई गुना ज्यादा खतरनाक और बेहद कमीना था । सिर्फ चौदह साल की उम्र में ही उसने रिवॉल्वर रखनी शुरु कर दी थी । इतनी कम उम्र में असली और विलायती रिवॉल्वर रखने वाला वह इकलौता छोकरा था ।
माला तनिक हंसी–और अब वह वापस आ रहा है ।
अच्छा ।
अलग–अलग मज़हब होने के बावजूद दोनों खुद को ब्लड ब्रदर्स कहा करते थे । दोनों पेशेवर मुज़रिम थे–किशोर उम्र में भी । हर एक चीज में दोनों का हिस्सा बराबर हुआ करता था । उन्हीं दिनों उन दोनों ने 'खून की कसम' खाई थी कि अगर उनमें से किसी एक को कुछ हो जाता है तो दूसरा उसका बदला जरुर लेगा । उस उम्र में भी उनका बड़ा जबर्दस्त रुतबा था, मिस्टर । अपने पूरे इलाके के बदमाशों को उन्होंने आर्गेनाइज कर लिया था । उन दिनों इस शहर में करीम भाई दारुवाला की हुक़ूमत चलती थी लेकिन वह भी उन लड़कों से बनाकर रखता था, क्योंकि वे लड़के पूरे शैतान थे ।
तुम उन लड़कों की फैन रही लगती हो ।
माला का चेहरा कठोर हो गया ।
नहीं, मैं उनसे नफरत करती थी ।
वह हिकारत भरे लहजे में बोली–कमीने रनधीर ने मेरी बड़ी बहन को हेरोइन एडिक्ट बना दिया था । नतीजा, हुआ कि उस बेचारी को सिर्फ बीस साल की उम्र में ही ख़ुदकुशी कर लेनी पड़ी । उस वक्त मैं दस साल की थी मगर वो दर्दनाक हादसा मुझे अच्छी तरह याद है । मैं उसे कभी नहीं भूल सकती ।
तनिक रुककर बोली–और जलीस के बारे में कहा जाता है कि वह और भी बुरा आदमी था । बरसों पहले यहाँ के सभी धंधे रनधीर को सौपकर वह शहर से चला गया । उसका कहना था कि वह कहीं दूर जाकर नए सिरे से अपने लिए शुरुआत करेगा ।
अच्छा ।
इस वक्त वह कहीं बहुत बड़ी तोप चीज बन चुका है और अब वह यहाँ वापस आएगा ।
माला के स्वर में कड़वाहट थी–वैसे, एक मायने में यह अच्छा भी है ।
क्यों ?
जब तक यह पता न लग जाए कि जलीस असल में कितनी बड़ी चीज है यहाँ के गिरोहबंद बदमाश रनधीर की हुक़ूमत के लिए आपस में मारामारी नहीं करेंगे ।
इससे क्या फर्क पड़ेगा ?
तुम बेवकूफ़ हो । सीधी सी बात है, अगर वह वाकई बड़ी चीज है तो वे लोग पहले उसे ठिकाने लगाएंगे फिर आपस में निपटेंगे । वर्ना पहले वे आपस में निपटेंगे और जब जलीस आएगा तो उसे बीच में घेरकर मार डालेंगे ।
अगर ऐसी बात है तो उसका इंतजार क्यों कर रहे है ?
क्योंकि कोई नहीं जानता, वास्तव में जलीस कितनी बड़ी चीज है । अगर वह हथियारों से लैस गिरोह साथ लेकर आ जाए तो क्या होगा ?
असली वजह यह नहीं है ।
माला तनिक मुस्कराई ।
तुम होशियार आदमी हो । असली बात है, जब वह शहर से गया था तो उसकी उम्र उन्नीसेक साल थी और अब सत्रह साल बाद कोई नहीं जानता कि वह देखने में कैसा लगता है क्योंकि इस अर्से में किसी ने भी उसे नहीं देखा । हो सकता है, मुंह से कुछ कहने की बजाय वह सीधा गोली की भाषा ही बोलता हो । उस हालत में वह यहाँ आकर अपने मरहूम दोस्त से किए गए वादे को पूरा करेगा और हर एक उस शख्स को मार डालेगा जिसने भी उसके दोस्त रनधीर को हाथ लगाया होगा । समझ गए !
।
मोटे तौर पर समझ गया ।
अचानक माला ने दूर काउंटर के सिरे पर बैठे बार टेंडर जनार्दन की ओर देखा और खिलखिलाकर हँस दी ।
उसे देखो, अखबार में मुँह छिपाए बैठा हैं । वह इस बारे में सुनना तक नहीं चाहता । अगर उन लोगों को पता चल गया कि इसकी बार में मैं एक अजनबी के सामने बकवास करती रही हूँ तो इस बेचारे की शामत आ जाएगी । क्यों ? यही बात है न, जनार्दन ?
जनार्दन ने अखबार में उसी तरह चेहरा छिपाए रखा ।
लेकिन मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है ।
माला ने कहना जारी रखा–मैं चाहती हूँ शहर के तमाम बदमाश आपस में लड़ें, और एक–दूसरे को मार डालें । मुझे बेहद खुशी है कि रनधीर मारा गया । इसी तरह बाकी लोगों के मरने की भी खुशी होगी । इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि पहले कौन मरता है । लेकिन जब मैं उस कमीने जलीस खान की लाश को सड़क पर पड़ी देखूँगी, तो जी भर के कहकहे लगाऊंगी और उस पर उसी तरह थूकूँगी जैसे रनधीर पर मैंने थूका था ।
बहुत बड़ी–बड़ी बातें कर रही हो, बेबी ।
वह बोला ।
मुझे बेबी कहकर मत पुकारो । रनधीर भी मुझे यही कहता था लेकिन मुझे इस तरह पुकारे जाने से चिढ़ है ।
मैं तुम्हें बेबी ही कहूँगा ।
तुम अपने आपको समझते क्या हो ? मुझे दो ड्रिंक पिलाकर...।
जलीस ।
वह बोला–मेरा नाम जलीस खान है ।
जनार्दन की निगाहें अभी भी अखबार पर गड़ी थीं लेकिन अब उसे वह पढ़ नहीं रहा था । उसका सफेद पड़ गया चेहरा तनावपूर्ण था । वह अपने खुश्क हो गए होंठों पर जुबान फिरा रहा था ।
जलीस ने अपना ड्रिंक खत्म करके माला की ओर देखा । माला का नशा काफूर हो गया था और आँखें भय से फैल गई थीं ।
तुम्हारा पूरा नाम क्या है–माला ?
माला सक्सेना ।
वह फुसफुसाती हुई बोली ।
रहती कहाँ हो ?
चर्च रोड पर...भोला राम मार्केट के ऊपर...सुनो, मैंने जो...कहा था...।
दैट्स ओ.के. माला ।
माला का निचला जबड़ा काँप रहा था ।
म...मैं नशे की झोंक में कभी–कभी बकवास कर बैठती हूँ ।
ऐसा हो ही जाता है ।
सुनो, म...मैंने जो कहा था...।
वह कठिन स्वर में बोली फिर होंठ काटकर चुप हो गई ।
कि जलीस ज्यादा कमीना है और उसका भी मर जाना ही बेहतर है । ये सब नशे की बातें थी । यही कहना चाहती हो ?
अचानक माला का भय गायब हो गया और आँखों में चुनौतीपूर्ण कठोरता झाँकने लगी ।
नहीं, यह नशे की बातें नहीं थी । असलियत थी ।
बार काउंटर के सिरे पर बैठा जनार्दन चौंककर उधर ही देखने लगा ।
जलीस खान मुस्कराया ।
तुम्हारी साफ बात मुझे भी पसंद आयी ।
माला ने कई पल गौर से उसे देखा । फिर अपना गिलास उठाकर पैदे में बची शराब हलक में उड़ेल दी और फिर गिलास वापस रखकर सर्द निगाहों से जलीस को घूरा ।
तुम जलीस खान नहीं हो ।
वह भारी स्वर में बोली–जलीस तुम्हारी तरह शांत और नर्म स्वभाव वाला नहीं हो सकता । उसने अब तक मार–मारकर मेरा हुलिया बिगाड़ देना था । जलीस को गालियाँ सुनना कतई पसंद नहीं था और मेरी तरह ज्यादा बोलने वाली औरतों से भी उसे नफरत थी ।
उसने गहरी साँस ली–इस तरह बकवास करने की कीमत मैं चुका सकती हूँ, दोस्त । मैं सबको बता दूँगी कि एक आदमी खुद को जलीस खान बताकर मुसीबत को न्यौता दे रहा है ।
तुम ऐसा ही करो । इस तरह यह बात वाकई बड़ी दिलचस्प बन जाएगी ।
मुझे भी ऐसा करके खुशी होगी, बिगमैन ।
माला कटुतापर्वक मुस्कुरायी–अगर तुम वाकई जलीस होते तो तुम्हारे पास गन होती और देखने वालों को नजर आता कि तुम किसी भी पल गोलियाँ बरसा सकते हो । जलीस को पुराने वक़्तों में 'चलता–फिरता तोपखाना कहा जाता था वह अपनी गन को छिपाने की कोई कोशिश नहीं करता था । इस तरह गन लिए फिरता था कि वो हर एक को साफ़ दिखाई दे सके ।
उसने सर से पाँव तक उपहासपूर्वक जलीस को देखा–तुम जलीस खान हो ? हुँह...पागल ।
जलीस खड़ा हो गया । कोट के बटन खोलकर जेब से एक सौ रुपए का नोट निकालकर काउंटर पर डाल दिया ।
माला की नजर बैल्ट में लगे अड़तीस कैलीबर के रिवॉल्वर पर पड़ी तो उसकी आँखें दहशत से फैल गईं ।
उन लोगों को बताना मत भूलना माला,
जलीस ने कहा–कोट के बटन बंद किए और रेनकोट उठाकर पहनता हुआ बाहर निकल गया ।
* * * * * *
विनोद महाजन का ऑफिस पुराने ग्रीन होटल को गिराकर बनायी गई नई शानदार इमारत में था । सिर्फ दूसरी मंज़िल पर कई खिड़कियों में रोशनी नजर आ रही थी ।
जलीस खान इमारत में दाखिल हुआ ।
लिफ्ट की बगल में दीवार पर लगे बोर्ड पर लिखा था–विनोद महाजन, अटार्नी । सैकेंड फ्लोर ।
जलीस खान पढ़कर मुस्कराया और लिफ्ट की बजाय सीढ़ियों द्वारा दूसरे खंड पर पहुंचा ।
रिसेप्शन रुम में खड़ी दो लड़कियाँ अपने रेनकोट पहन रही थी ।
ऑफिस बंद होने वाला है ।
उनमें से एक बोली ।
अच्छा ?
दरवाजे के अंदर खड़ा जलीस बोला ।
आपको किससे मिलना है ?
जलीस अपनी रेनकैप सर से उतारकर उनके पास आ गया ।
बीनू से ।
किससे ?
बीनू से । तुम्हारे बॉस महाजन से ।
लड़की ने हैरानी से उसे देखा ।
इस वक्त नहीं मिल सकते ।
मुझे अभी मिलना है ।
सुनो...मिस्टर...?
मुझे अभी मिलना है ।
पीछे से धीमे लेकिन भारी पुरुष स्वर में पूछा गया ।
क्या बात है, किटी ?
यह जनाब मिस्टर महाजन से मिलना चाहते हैं ।
ओह, लेकिन इस वक्त...?
जलीस ने धीरे से पलटकर देखा और उसे पहचान गया । वह अमोलक राय था । सत्रह साल के लम्बे अर्से में भी कोई ज्यादा तब्दीली उसमें नहीं आई थी । अत्यंत सक्षम एवं कार्य–कुशल होने के कारण उसकी अपनी अहमियत थी और अपना एक अलग वजूद तो था । मगर टॉप पर पहुँचने लायक जीनियस वह नहीं था । उसकी एक बड़ी ख़ासियत थी कि वह हमेशा जीतने वाले के साथ रहता था । हालात को समझकर इस बात का सही फैसला भी वह कर सकता था कि जीत किसकी होगी ।
चालीस वर्षीय अमोलक यूं आँखें सिकोड़े उसे देख रहा था मानों उसका तेज दिमाग कुछ याद करने की कोशिश तो कर रहा था मगर याद कर नहीं पा रहा था ।
आप मिस्टर महाजन से मिलना चाहते हैं ?
अंत में उसने पूछा ।
जलीस ने सर हिलाया–
हाँ ।
दोनों लड़कियाँ हैरानी से देख रही थीं ।
आपका नाम ?
अमोलक ने पूछा ।
जलीस तनिक मुस्कुराया ।
भूल गए अमोलक ? जलीस खान ! बीनू से कहो–जलीस आया है ।
अचानक अमोलक की गरदन तन गई । उसे फौरन सब याद आ गया और उसका दिमाग 'अभी या बाद में' का नया ताना–बाना बुनने लगा । फिर वह अपने भारी कंधे उचकाकर मुस्कुराया ।
मुझे देखते ही समझ जाना चाहिए था ।
वह मुदित स्वर में बोला–लेकिन तुम बदल गए हो, जलीस ।
वक्त सबको बदल देता है ।
अमोलक ने उसे गौर से देखा ।
यू आर बिगर नाऊ ।
बिगर ।
जलीस बोला–यस, आई एम ।
आओ ।
जलीस उसके साथ चल दिया । जिस कमरे में उसने प्रवेश किया पूरा महोगनी का बना वो इतना शानदार ऑफिस था कि डेस्क के पीछे मौजूद भारी बदन और महँगे लिबास वाला आदमी गौण होकर रह गया था । पचास पार कर चुके उस आदमी का गुंबदनुमा सिर बीच में गंजा था । वह विनोद महाजन था ।
उसने गरदन उठाकर जलीस को देखा ।
हेलो, बीनू ।
जलीस बोला ।
महाजन ने ऐसा जाहिर किया जैसे उसकी आवाज़ पहचान गया था । 'जलीस ।' उसने खड़ा होकर हाथ आगे बढ़ाया–ग्लेड टू सी यू, माई ब्वॉय ।
जलीस मुस्कुराया लेकिन हाथ मिलाने का कोई उपक्रम नहीं किया । वह जानता था, व्यवसायिक ढंग से मुस्कराते हुए महाजन पर अंदर ही अंदर क्या गुजर रही थी ।
आयम श्योर यू आर ओवर ज्वॉयड, बीनू ।
उसने कहा और एक कुर्सी पर बैठकर अपनी रेनकैप नीचे डाल दी ।
अमोलक उसे उठाने के लिए बढ़ा तो जलीस बोला–यहीं पड़ी रहने दो ।
अमोलक ठिठका, महाजन पर निगाह डाली और पीछे हट गया ।
बूढ़ा बीनू ।
जलीस बोला–स्टेशन रोड का पुराना चोर...।
जलीस ।
बीच में मत बोलो बीनू, तुम फुटपाथ से उठकर यहाँ तक पहुँचे हो । बीनू चोर से विनोद महाजन बनने तक का लंबा सफर तय किया है तुमने । चोर से वकील बन बैठना बड़ी अच्छी बात है लेकिन तुम्हारी कामयाबी की इस कहानी में कोई नई बात नहीं है । तुम जैसे और भी कई कामयाब लोगों को मैं जानता हूँ ।
जलीस...।
जलीस मुस्कुराया ।
तुम चोर थे महाजन, तुम्हारी कामयाबी एक मक्कार वकील की कामयाबी है । एक जमाने में तुम चोरी के माल की खरीद–फरोख्त किया करते थे । खुद मैंने दर्जनों बार चोरी माल तुम्हें बेचा था । उन दिनों ड्रग्स का धंधा करने वालों को कानून की पकड़ से बचाने का धंधा भी तुम करते थे । कुछ पेशेवर बदमाशों और भ्रष्ट पुलिस वालों के बीच कांटेक्ट का काम भी तुम अच्छी तरह करते थे ।
मैंने तुम्हें भी कई बार बचाया था, जलीस ।
बिल्कुल बचाया था और उस बचाने की तगड़ी कीमत भी तुमने वसूल की थी ।
जलीस तनिक आगे झुक गया–उन दिनों मेरी उम्र बहुत कम थी ।
तुम एक बदमाश थे ।
लेकिन बढ़िया और सख्तजान था ।
जलीस कुर्सी से उठकर डेस्क के सिरे पर बैठ गया–करीम भाई दारुवाला की याद है ? एक रात वह अपनी फौज लेकर तुम्हें खत्म करने आया था क्योंकि तुमने उसके साथ दगाबाजी की थी । तब मैंने और रनधीर ने तुम्हें बचाकर तुम्हारे तमाम अहसानों की कीमत चुका दी थी । हम दोनों ने अपनी गनों से उन्हें इस ढंग से कवर किया था कि वापस लौटने के अलावा वे कुछ नहीं कर सके । अगली रात दारुवाला ने हम दोनों को खत्म करने के लिये आदमी भेजे लेकिन हमने उसके तीन बदमाशों को शूट करके वापस उसी के पास भेज दिया था । फिर मैने दारुवाला की दुम पर एक गोली मारी थी क्योंकि उसकी हरकत मुझे पसंद नहीं आयी थी । याद आया बीनू?
ठीक है, तुम ताक़तवर और हौसलामंद थे ।
नहीं दोस्त, तुम जानते हो असल में मैं क्या था ।
एक कमसिन पेशेवर बदमाश ।
बिल्कुल ठीक कहा, अब मैं सख्तजान हूँ ।
जलीस पुनः मुस्कुराया–जानते हो न ?
जानता हूँ ।
अमोलक अपनी पोजीशन बदल चुका था । अब वह जलीस के सामने खड़ा प्रशंसापूर्वक उसे देख रहा था ।
जलीस समझ गया, अमोलक को उसका पलड़ा भारी नजर आ रहा था ।
तुम्हारे पास रनधीर की वसीयत है, बीनू ?
जलीस ने पूछा ।
हाँ ।
वह हर लिहाज से सही है ?
हाँ, मैं ही उसका लीगल एडवाइजर था ।
वसीयत में क्या है ?
महाजन ने तोलने वाली निगाहों से उसे घूरा, फिर बोला–कुछेक शर्तों के साथ तुम उसके वारिस हो ।
शर्तें क्या है ?
सबसे पहली है–उसकी मौत के बाद दो हफ्तों के अंदर तुम्हारा यहाँ पहुँचना ।
आज चौथा दिन है ।
हाँ, दूसरी शर्त है–हत्या किये जाने की सूरत में तुम उसके हत्यारे का पता लगाओगे, संतुष्टिपूर्ण ढंग से ।
यह शर्त अच्छी रखी थी उसने ।
उसे तुम पर बड़ा भारी भरोसा था, जलीस ।
हत्यारे का पता लगाने की बात कही गई है वसीयत में, या बदला लेने की ?"
पता लगाने की । हालांकि रनधीर बदला लेने वाली बात ही लिखना चाहता था लेकिन कानूनन वो ठीक नहीं था इसलिए इस ढंग से लिखा गया था ।
आई सी । एक सवाल और, बीनू । 'संतुष्टिपूर्ण ढंग से' का क्या मतलब है । हत्यारे का पता लगाकर, उससे किसे संतुष्ट करना होगा ?
तुम बारीकी से, और दूर तक सोचते हो, जलीस ।
महाजन ने डेस्क के एक ड्राअर से अखबार का एक पेज निकालकर उसके सामने रख दिया ।
दो कॉलम में 'नगर की बात' शीर्षक के अंतर्गत छपे एक समाचार के चारों ओर लाल पेंसिल से घेरा बनाया हुआ था । उसे लिखने वाला था–जयपाल यादव ।
जलीस ने उसे दोबारा नहीं पढ़ा । वो एक आदमी की नफरत का गुब्बार था जिसे लफ्जों की शक्ल देकर छाप दिया गया था । एक ऐसा आदमी जो जुबानी हाय–तौबा नहीं मचा सकता था क्योंकि दूसरे भी ऐसा ही कर रहे थे । उस आदमी को दुनिया में सिर्फ तीन लोगों से नफरत थी–जलीस से, रनधीर से और खुद अपने आप से ।
मुझे जयपाल के सामने साबित करना होगा ?
महाजन के होंठों पर हल्की सी मुस्कराहट उभरी ।
"जरुरी नहीं है, सिर्फ 'पता लगाना' है लेकिन वह काम आसान नहीं है ।
बिल्कुल नहीं है । वह आदमी मुझसे बेहद नफरत करता है ।
महाजन की मुस्कराहट गहरी हो गई ।
आसान न होने की वजह यह नहीं है ।
फिर ?
यादव समझता है, रनधीर की हत्या तुमने की थी जलीस ।
वह बेवकूफ़ है ।
लेकिन वह वजह भी बताता है ।
क्या ?
रनधीर की हुक़ूमत काफी बड़ी थी । हालांकि पिछले सत्रह साल से तुम्हारे बारे में किसी को कोई खबर नहीं थी । लेकिन किसी तरह तुम्हें रनधीर की हैसियत का पता चल गया था और तुमने उसकी हुक़ूमत पर कब्ज़ा करने का निश्चय कर लिया । तुम जानते थे, रनधीर उस पुराने करार पर पूरा अमल करेगा बरसों पहले तुम दोनों के बीच हुआ था कि दोनों में जो भी जिंदा रहेगा वही सारे माल, जायदाद वगैरह का वारिस होगा । इसलिए तुमने रनधीर को मार डाला...।
यह सब बकवास है, बीनू ।
यह सिर्फ तुम कह रहे हो । सवाल तो यह है कि इस हालत में तुम यादव को कैसे संतुष्ट करोगे ? उसे कैसे यकीन दिलाओगे कि रनधीर की हत्या किसी और ने की थी ?
अगर मैं साबित नहीं कर सका तो रनधीर का सारा माल किसे मिलेगा ?
महाजन के चेहरे पर एक कान से दूसरे कान तक मुस्कराहट फैल गई ।
मुझे ।
होशियार आदमी हो ।
वो तो मैं हूँ ही ।