फिर वही रात
By प्रकाश भारती
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स्ट्रेचर पर पड़ी लाश के चेहरे के नाम पर जो कुछ बचा था उसकी सिर्फ एक झलक ही दिखाई दे सकी... फिर उस पर चादर डाल दी गई।
मृतक की उम्र कोई पच्चीसेक साल थी। नदी के पानी से भीगा और कीचड़ से सना उसका लिबास कीमती लगा। इससे ज्यादा कुछ और प्रशांत नोट नहीं कर सका।
उस वक्त रात का एक बजा था। तेज हवा और बूंदाबांदी के कारण सर्दी बहुत ज्यादा थी। इसके बावजूद खासी भीड़ जमा हो गई थी... पुलिसमैन लोगों को पीछे हटा रहे थे। जो पुलिस आफिसर अलग खड़े बातें कर रहे थे।
दो पुलिसमैन स्ट्रेचर उठाकर एंबुलेंस में रखने लगे।
भीड़ छंटनी शुरू हो गई।
तब प्रशांत का ध्यान पहली दफा उस लड़की की ओर गया। वह यूं खड़ी थी जैसे वही रुकी रहने का इरादा था। उसके हाथ बरसाती की जेबों में ठुंसे थे लेकिन बरसाती के पूरे बटन खुले थे और इस तरफ उसका कोई ध्यान नहीं था... अचानक वह सर से पांव तक काफी... सर पीछे की ओर झटका और गहरी गहरी सांसें लेने लगी...।
प्रशांत की निगाहें उसी पर जमीं थी। उसे अपनी ओर देखता पाकर वह पलटकर तेजी से चल दी...।
प्रशांत भी उसके पीछे चल दिया। उसकी कार उधर ही पाक्ड पार्क्ड थी।
लड़की सड़क पर पहुंचकर रुक गई। दोनों तरफ निगाहें दौड़ाईं।
अचानक धुंध और अंधेरे को चीरकर एक कार की हैडलाइट्स की रोशनी चमकी लड़की का जिस्म तन गया था। दोनों हाथों से चेहरा ढंके वह आगे बढ़ रही थी।
उसका भयानक इरादा भाप गया प्रशांत तेजी से झपटा... लगभग कार के पास जा पहुंची लड़की की पीठ में बांह डालकर फुर्ती से उसे पीछे खींच लिया। इस प्रयास में बुरी तरह लड़खड़ाया, संभल न पाने के कारण दोनों नीचे गिरे और लुढ़ककर सड़क के सिरे पर जा पहुंचे...।
इससे पहले कि प्रशांत उसकी इस हरकत की वजह पता लगा पाता लड़की उसे जूल देकर गायब हो गई...।
अगले रोज। प्रशांत ने तमाम अखबार छान मारे... नदी से बरामद लाश का कहीं कोई जिक्र नहीं मिला... पुलिस स्टेशन तक में साफ इंकार कर दिया गया कि नदी से कोई लाश बरामद हुई थी।
क्यों?
आखिर इतनी बड़ी घटना को छिपाने की कोशिश क्यों की जा रही थी???
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फिर वही रात - प्रकाश भारती
फिर वही रात
प्रकाश भारती
Aslan-Reads.pngअसलान रीड्स
के द्वारा प्रकाशन
असलान बिजनेस सॉल्यूशंस की एक इकाई
बोरिवली, मुंबई, महाराष्ट्र, इंडिया
ईमैल: hello@aslanbiz.com; वेबसाइट: www.aslanreads.com
कॉपीराइट © 1988 प्रकाश भारती द्वारा
ISBN 978-93-85898-88-4
इस पुस्तक की कहानियाँ काल्पनिक है। इनका किसी के जीवन या किसी पात्र से कोई
संबंध नहीं है। यह केवल मनोरंजन मात्र के लिए लिखी गई है।
अत: लेखक एवं प्रकाशक इनके लिए जिम्मेदार नहीं है।
यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि प्रकाशक की
लिखित पूर्वानुमती के बिना इसे या इसके किसी भी हिस्से को न तो पुन: प्रकाशित
किया जा सकता है और न ही किसी भी अन्य तरीके से, किसी भी रूप में
इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
अंतर्वस्तु
प्रकाश भारती - फिर वही रात
फिर वही रात
* * * * * *
प्रकाश भारती - फिर वही रात
अगर तुम्हारे विचार से पवन का हत्यारा मैं हूं तो तुम क्या करना चाहोगे ?
उसने पूछा ।
प्रशांत ने जेब से 'विल्स नेवी कट' का पैकेट निकालकर इत्मीनान से एक सिगरेट सुलगाया ।
क्योंकि तुम्हारे खिलाफ ऐसे सबूत नहीं हैं, जिसमें कानून तुम्हें हत्यारा साबित कर सके ।
वह बोला–इसलिए मैं खुद तुम्हारी जान लूँगा ।
उसने हाथ में थमी पिस्तौल प्रशांत के पैरों में फेंक दी ।
अगर तुम अभी भी समझते हो, पवन की हत्या मैंने की थी तो उठाओ पिस्तौल और मुझे शूट कर दो । अपनी बेगुनाही का इससे बड़ा कोई और सबूत मैं पेश नहीं कर सकता ।
प्रशांत धीरे–धीरे नीचे झुका और पिस्तौल उठा ली ।
* * * * * *
प्रकाश भारती का एक रोचक एवं तेज रफ्तार थ्रिलर उपन्यास !
* * * * * *
फिर वही रात
स्ट्रेचर पर पड़ी लाश के चेहरे के नाम पर जो कुछ बचा था, उसकी सिर्फ एक ही झलक प्रशांत देख पाया । फिर उस पर चादर डाल दी गई ।
मृतक की उम्र कोई पच्चीसेक साल थी । नदी के पानी से भीगा और कीचड़ से सना होने के बावजूद उसका लिबास कीमती था । बस, इससे ज्यादा कुछ और प्रशांत नोट नहीं कर सका ।
पुलिसमैन, वहां मौजूद भीड़ को बार–बार पीछे हटा रहे थे लेकिन लोगों की उत्सुकता इतनी ज्यादा थी कि वे पुनः आगे आ जाते थे ।
दो पुलिसमैन स्ट्रेचर उठाए एम्बुलेंस की ओर बढ़ गए ।
वे दोनों ही मरने वाले समेत अपनी नौकरी को कोस रहे थे । इसकी बड़ी वजह थी–उस वक्त रात का एक बजा था और लगातार हो रही बूंदा–बांदी और तेज हवा के कारण, नवम्बर का महीना होते हुए भी, मौसम में बहुत ज्यादा ठंडक हो गई थी ।
हरिपुर पहुंचने के बाद से ही प्रशांत को भी मौसम की इस ख़राबी का सामना करना पड़ा था ।
दो वर्दीधारी पुलिस ऑफ़िसर, जिनमें एक इंस्पेक्टर था और दूसरा एस० आई०, पुलिस जीप की ओर जाते हुए प्रशांत की बगल से गुज़रे ।
सुसाइड का केस है, सर ?" एस० आई० ने पूछा ।
इंस्पेक्टर ने सिर हिलाकर इन्कार कर दिया ।
नहीं । ब्रिज से नीचे आने से पहले ही वह मर चुका था...।
वे दोनों आगे बढ़ गए ।
भीड़ छंटनी शुरू हो गई थी ।
तब प्रशांत का ध्यान पहली दफा उस लड़की की ओर गया । बाकी लोगों के चले जाने के बाद भी वह वहीं रुकी रही थी । उसने अपने हाथ बरसाती की जेबों में ठूंस रखे थे । जिसके तमाम बटन खुले हुए थे और जिनकी ओर संभवतया उसका ध्यान ही नहीं था ।
अचानक उसका समस्त शरीर एक दफा कांपा और उसने अपने सिर को पीछे यूं झटक दिया मानो उसे सास लेने में कठिनाई हो रही थी और इस तरह वह ज्यादा–से ज्यादा ताज़ा हवा अपने फेफड़ों में पहुंचाना चाहती थी ।
प्रशांत की निगाहें बराबर उस पर जमी थीं ।
वह इंतिहाई खूबसूरत थी । उसके स्याह बालों को कुछ लटें भीग कर माथे पर चिपक गई थीं । बूंदों का सामना न कर पाने की वजह से उसने अपनी आँखें बन्द कर लीं । फिर जब दोबारा आँखें खोली और प्रशांत को अपनी ओर देखते पाया तो फौरन पलटकर तेजी से चल दी ।
प्रशांत की किराए की कार भी, जो उसने हरिपुर पहुंचते ही हासिल कर ली थी, उसी दिशा में पार्क्ड थी । कुछेक फुट के फासले पर रहकर वह भी लड़की के पीछे चल दिया ।
सड़क पर पहुंचकर लड़की रुक गई और दोनों ओर निगाहें दौड़ाईं मानो किसी के आने का इन्तजार था ।
अचानक, धुन्ध और अंधेरे को चीरकर एक कार की हेडलाइट्स की रोशनी चमकी । तभी लड़की की हरकत से प्रशांत भांप गया कि लड़की को इससे कतई कोई मतलब नहीं था कि कार कौन ड्राइव कर रहा था । उसका इकलौता मकसद हर कीमत पर लिफ्ट पाना था ।
लड़की का जिस्म तन गया था और वह लगभग कार के सामने जा पहुंची । उसने अपना चेहरा दोनों हाथों से ढंक लिया था । मानो, वह जानती थी कि दुर्घटना तो होगी ही, लेकिन इस तरह शायद ज्यादा पीड़ा उसे नहीं पहुँचेगी ।
प्रत्यक्षतः, कार चालक को इतना मौका नहीं मिलना था कि वह कार रोक पाता या लड़की को बचाकर कार आगे गुजारता ।
लेकिन प्रशांत ऐन वक्त पर आगे झपटा और लड़की की पीठ में हाथ डालकर उसे पीछे खींच लिया । इस प्रयास में वह स्वयं बुरी तरह लड़खड़ाया, संभल न पाने के कारण दोनों ही नीचे गिरे और लुढककर सड़क के सिरे पर जा पहुंचे ।
कार लहराती हुई–सी उस स्थान से गुज़री । विपरीत दिशा में खड़े दरख्त से टकराने से बाल–बाल बची । ब्रेकों और टायरों की मिली–जुली चीख उभरी । फिर कार रुकी और उसका दरवाज़ा खुला ।
इस बीच प्रशांत और लड़की उठकर खड़े हो चुके थे ।
लड़की की बड़ी–बड़ी आंखों में आँसू थे और वह याचनापूर्वक प्रशांत को देख रही थी ।
प्रशांत ने उसकी बाँह थामी और अपनी कार की ओर बढ़ गया ।
वह लड़की सहित कार में सवार हो गया ।
तभी दूसरी कार से उतरा एक आदमी उनकी ओर आता हुआ चिल्लाया–पागल शराबी...अंधे...!
लेकिन उसकी ओर ध्यान देने की बजाय प्रशांत इंजन स्टार्ट करके कार आगे बढ़ा चुका था ।
लड़की दोनों हाथों में अपना सिर थामे बैठी थी । उसका शरीर कांप रहा था । वह अपने अन्दर उभरती रुलाई पर काबू पाने की कोशिश कर रही प्रतीत होती थी ।
चंद सेकेंड उसी तरह बैठी रहने के बाद उसने सिर ऊपर उठाया । उसके सफेद पड़े चेहरे पर गहन विषादपूर्ण भाव थे । अनुमानतः मृतक, जिसकी नदी से निकाली गई लाश को पुलिस ले जा चुकी थी, उसके लिए बहुत ही ज्यादा अहमियत रखता था ।
आपके पास सिगरेट है ?
लड़की ने फंसी–सी आवाज़ में पूछा ।
प्रशांत ने 'विल्स नेवी कट' का पैकेट और माचिस जेब से निकालकर उसे दे दी ।
लड़की ने कांपते हाथों से एक सिगरेट सुलगाकर गहरा कश लिया और धुएँ का गुब्बार छोड़ने के बाद बोली–आप किसी ऐसी जगह मुझे ड्रॉप कर सकते हैं जहां से टैक्सी मिल सके ?
इस बरसाती रात में टैक्सी आसानी से नहीं मिलेगी ।
प्रशांत बोला ।
बस टर्मिनल पर मिल सकती है ।
"मुझे नहीं मालूम वो कहां है । आपको रास्ता बताना पड़ेगा ।
लड़की ने सिर हिलाकर सहमति दे दी ।
वह खामोश बैठी सिगरेट फूंकती रही ।
प्रशांत उसके संकेतों के अनुसार औसत रफ्तार से कार ड्राइव करता रहा ।
चंदेक मिनटोपरान्त उसने देखा, लड़की पहली सिगरेट के अवशेष से दूसरा सिगरेट सुलगा रही थी । उसके हाथों में अभी तक कम्पन था ।
अपने बारे में कुछ बताइए ।
वह हिचकिचाती–सी बोली ।
क्या ?
प्रशांत ने पूछा ।
कुछ भी !
लड़की के कहने का ढंग ऐसा था मानो उस पर खामोशी बड़ी भारी गुज़र रही थी ।
ओ० के० !
प्रशांत बोला–शक्ल–सूरत और कद–बुत तो आपके सामने हैं ही । उम्र का अन्दाजा आप खुद लगा सकती हैं । जहां तक नाम का सवाल है, बन्दे को प्रशांत गौतम कहते हैं । अगर चाहें तो सबूत के तौर पर अपना ड्राइविंग लाइसेंस पेश कर सकता हूं ।
लड़की मुस्कराई ।
आप दिलचस्प आदमी हैं ।
वह गहरी सांस लेकर यूं बोली मानो बातचीत जारी रखने की जबरन कोशिश कर रही थी ।
शुक्रिया ।
आप यहीं रहते हैं ?
नहीं । मुश्किल से घण्टा भर पहले ही यहां पहुंचा हूं । 'न्यूज़ मिरर' नामक अखबार में रिपोर्टर की नौकरी मेरा इन्तजार कर रही है ।
आई सी ।
लड़की ने भावहीन स्वर में कहा और पुनः खामोश हो गई । फिर कुछ देर बाद बोली–वो सामने बस टर्मिनल है ।"
प्रशांत कुछ नहीं बोला ।
बरसाती रात होने के बावजूद ऐसा लगता था, मानो बस टर्मिनल के सामने किसी पब्लिक मीटिंग का आयोजन था । एक साउंड ट्रक ट्रेलर की साइड में बड़े–बड़े अक्षरों में पेंट किया हुआ था ।
अपने अधिकारों को पहचानिए
नागरिकों के लिए जीवन की ओर से
विशेष सुविधा–चौबीस घण्टे मुफ्त
कानूनी सलाह हासिल कीजिए ।
शुरू में प्रशांत को लगा किसी मसखरे ने मज़ाक किया था । उस वक्त रात के पौने दो बजने वाले थे और आसपास भीड़ के नाम पर जो चंद लोग मौजूद थे, वे कानूनी सलाह हासिल करने के तलबगार होने के मुकाबले में उत्सुक दर्शक कहीं ज्यादा नजर आते थे ।
ट्रक के पास खड़े गीली बरसातियां पहने, दो पढ़े–लिखे नजर आने वाले लड़के पेम्फलेट बांट रहे थे ।
तब प्रशांत की समझ में आ गया कि वो पब्लिसिटी स्टंट था । शायद पहले वहां खासी भीड़ भी जमा रही थी...फिर 'चौबीस घंटे' मुप्त कानूनी सलाह' का नाटक समझ में आते ही वे सब धीरे–धीरे खिसक गए थे ।
क्योंकि ट्रक में उन दोनों लड़कों के अलावा और कोई नहीं था । वे और चाहे जो भी हों, मगर मुफ्त कानूनी सलाह देने वाले कानूनी सलाहकार हरगिज नहीं हो सकते थे ।
अलबत्ता यह साफ जाहिर था कि जीवन नामक जो भी व्यक्ति था, उसने सर्द बरसाती रात में लड़कों की सेवाएं प्राप्त करने के लिए तगड़ा मेहनताना उन्हें दिया होगा ।
प्रशांत ने ट्रक के सामने, थोड़े फासले पर कार रोककर लड़की की ओर देखा ।
लड़की का चेहरा कागज़ की भांति सफेद पड़ गया था और आंखों से भय साफ झलक रहा था ।
दोनों लड़कों में से एक, पेम्फलेट की गड्डी हाथ में थामे, कार की ओर बढ़ना शुरू हो चुका था । अपने थकान भरे चेहरे पर वह जबरन मुस्कराहट पैदा करने की कोशिश कर रहा था ।
लड़की ने बड़ी मज़बूती के साथ प्रशांत का हाथ थाम कर चेहरा ट्रक से विपरीत दिशा में घुमा लिया था । उसकी हालत ऐसी थी मानो वह सीट में ही समा जाना चाहती थी ।
चलो !
वह फुसफुसाती–सी बोली–भगवान के लिए, फौरन यहां से चल दो ।
प्रशांत एक संक्षिप्त पल के लिए हिचकिचाया । फिर उसने हाथ हिलाकर लड़के को वापस चले जाने का संकेत करते हुए कार आगे बढ़ा दी ।
प्रशांत की लड़की में दिलचस्पी बढ़ जाना स्वाभाविक ही था । वह लड़की के बारे में ज्यादा–से–ज्यादा मालूमात हासिल करना चाहता था । लेकिन उसकी हालत देखते हुए उसने जल्दबाजी करना मुनासिब नहीं समझा । पहले लड़की को, सामान्य होने देना जरूरी था और मौजूदा हालात में एक–दो ड्रिंक उसके लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकते थे ।
कार सड़क पर फिसलती रही ।
कई मिनट तक दोनों में से कोई नहीं बोला ।
अब कहां चलना है ?
अन्त में प्रशांत ने ही मौन भंग करते हुए पूछा–"लिफ्ट वाला मामला खत्म हो चुका है । अब टैक्सी के रेट के हिसाब से ही भाड़ा चुकाना होगा ।
लड़की हंसी, लेकिन इस ढंग से नहीं कि उसे प्रशांत की बात मजाकिया लगी थी, बल्कि कुछ इस तरह मानो स्वयं पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी ।
इसके बावजूद, उसने देर तक जवाब नहीं दिया । फिर अचानक बोली–कार रोक दो !
प्रशांत ने एक पेड़ के साए में कार रोक दी । उस शहर में पहले कभी वह नहीं आया था । इसलिए वहां के भूगोल से परिचित नहीं था । वह सिर्फ इतना देख पाया कि उस वक्त वे किसी मध्यमवर्गीय रिहायशी इलाके में थे ।
अब मुझे बाहों में ले लो ।
लड़की फुसफुसाई ।
प्रशांत ने उसे खींचकर अपनी बाहों में भर लिया ।
किस मी ।
लड़की ने दूसरी फरमाइश की ।
दोनों के होंठ एक–दूसरे के होंठों से चिपक गए ।
दीर्घ चुम्बन की उस मुद्रा में लड़की स्वेच्छा से भरपूर सहयोग दे रही थी । लेकिन प्रशांत को ऐसा महसूस हो रहा था कि लड़की जो कर रही थी उसके पीछे उसके मन में वे भावनाएं नहीं थीं जो कि वास्तव में उस वक्त होनी चाहिए थीं । उसे लगा कि लड़की उसे प्रशांत गौतम की बजाय वह आदमी समझ रही थी, जिसकी लाश नदी से निकाली गई थी ।
दीर्घ चुम्बन की उसी मुद्रा में, लड़की ने उसका एक हाथ अपनी पीठ से हटाकर बरसाती के अन्दर अपने एक वक्ष पर रखना चाहा ।
प्रशांत ने अपना हाथ पीछे खींचकर उसे धीरे से स्वयं से अलग कर दिया ।
इस तरह नहीं, हनी !
वह बोला–इस मामले में मेरे अपने भी कुछ उसूल हैं ।
यह मैं पहली बार सुन रही हूं । वरना मेरी जानकारी के मुताबिक, इस मामले में मर्दों को तो कब क्यों और कहाँ की कोई परवाह नहीं होती...।
आमतौर पर ज्यादा परवाह तो मैं भी नहीं करता । लेकिन तुम्हारा मामला अजीब और बिल्कुल अलग तरह का है । यह बताओ, तुमसे दोबारा मुलाकात हो सकती है ?
उसने सिर हिलाकर इन्कार कर दिया ।
नहीं ।
क्यों ?
उसके होंठ कांपने लगे ।
काश ! मुलाकात हो सकती होती...।
उसने कहा, फिर वह रो पड़ी–इस सब के लिए मैंने अपनी आत्मा तक को बेच डाला था । लेकिन...लेकिन अब मैं इस सबसे दूर चली जाना चाहती हूं और इसके लिए एक बार फिर खुद को बेच सकती हूं मगर अब यह मुमकिन नहीं है, या है ।
पता नहीं । मुझे तो यह भी नहीं पता कि तुम कहना क्या चाहती हो ?
उसने आँसू पोंछकर अपनी आँखें बन्द की और सीट की पुश्त से पीठ सटा ली ।
आयम सॉरी...!
प्रशांत ने इन्तजार किया । लेकिन देर तक भी उसे बोलती न पाकर उसने पुन: कार आगे बढ़ा दी ।
ड्रिंक लोगी ?
नहीं, कॉफी ।
ओ० के० ।
करीब बीस मिनट बाद, जिस सारी रात खुले रहने वाले कैफे के सम्मुख वे पहुंचे उस पर बोर्ड लगा था–अजन्ता कैफे । प्रशांत को याद आया, वो बोर्ड उसने नदी तट के पास पुलिस जीप, एम्बुलेंस और भीड़ दिखाई देने से पहले भी देखा था । फिर वह उत्सुकतावश और इस उम्मीद में वहां जा पहुंचा था कि अपने दोस्त पवन कुमार से मिलते ही उसे किसी धांसू कहानी का मसाला दे सकेगा । लेकिन किसी भी पुलिसमैन ने उसे कुछ भी जानकारी देने से इन्कार कर दिया था । इसकी वजह शायद उसके पास प्रेस कार्ड न होना थी । जो कि उसे अगली सुबह पवन कुमार से मिलने के बाद ही मिलना था ।
प्रशांत प्राइवेट डिटेक्टिव था । पत्रकारिता का न तो उसे अनुभव था और न ही शौक । अलबत्ता, विशालगढ़ के अलावा अन्य शहरों में भी उसके कई अच्छे दोस्त ज़रूर थे, जो इस क्षेत्र में कामयाबी के झंडे गाड़ चुके थे । उन्हीं में से एक पवन कुमार था । वह 'न्यूज़ मिरर' का मालिक था । उसी के बुलावे पर प्रशांत हरिपुर आया था । प्रशांत का इरादा महज कुछ दिन छुट्टियाँ गुज़ारने का था । लेकिन पवन कुमार ने फोन पर ही साफ कह दिया था कि वह उसकी जासूसी की खूबियों को इनवेस्टीगेटिव जर्नलिस्ट के तौर पर इस्तेमाल करना चाहता था । इतना ही नहीं, बाक़ायदा अप्वाइंटमेंट लैटर भी उसने भिजवा दिया था । इसकी कोई वजह पवन कुमार ने उसे नहीं बताई थी और प्रशांत पूछने की जिद करने की बजाय दोस्ती के नाते विशालगढ़ से आ पहुंचा था । मौसम की ख़राबी की वजह से प्लेन पहुंचने में देर हो गई थी और प्रशांत ने अपने आगमन की सूचना देकर पवन कुमार, उसकी पत्नी और बेटे को बेवक्त तकलीफ़ देना ठीक नहीं समझा । उसने किराए की कार हासिल करके अपने ढंग से, शहर में घूमकर, वहां का भूगोल समझ लेने के बाद अगले रोज पवन कुमार से मिलना ज्यादा मुनासिब समझा ।
इसी चक्कर में वह अजनबी लड़की उसे टकरा गई थी । जो अब उसकी बगल में बैठी थी और इस सबकी शायद सबसे बड़ी वजह थी–नवम्बर की अनपेक्षित बारिश !
खामोश बैठी लड़की का चेहरा एक बार फिर सफेद पड़ गया था ।
प्रशांत जानबूझकर इसे नजरअन्दाज करता हुआ कार से उतरा ।
अन्दर चलोगी या कॉफी यहीं ले आऊं ?
उसने पूछा ।
यहीं ले आना ।
"ठीक है ।
सिगरेट भी चाहिए ?"
ऐं...हां...वो भी ले आना, प्लीज ।
कौन–सा ?
इंडिया किंग ।
प्रशांत ने कार का दरवाज़ा बन्द किया और बारिश से बचने की कोशिश में दौड़ता हुआ–सा कैफे में दाखिल हुआ ।
वह काउंटर के सामने पड़े स्टूलों में से एक पर बैठ गया । वहां कई और भी ग्राहक मौजूद थे ।
प्रशांत ने दो कॉफी का ऑर्डर दिया । फिर उठकर काउंटर के आखिरी सिरे पर जा पहुंचा । जहां सिगरेट, पान वगैरा मिलते थे । लेकिन लड़की द्वारा बताया गया ब्रांड इंडिया किंग वहां नहीं था ।
प्रशांत ने ज्यादा चक्कर में पड़ने की बजाय अपने ब्रांड 'विल्स नेवी कट' का ही एक पैकेट ख़रीद लिया ।
चेंज वापस लेने के इन्तजार में, उसकी निगाहें इधर-उधर घूमने लगीं । पास ही एक ओपन केबिन में एक मुश्किल से अट्ठारह साल की लड़की करीब बाइस वर्षीय छोटे–छोटे बालों वाले नवयुवक के साथ मौजूद थी ।
अगर लड़की की उम्र इतनी कम नहीं होती और रात के लगभग ढाई बजे का वक्त नहीं रहा होता तो प्रशांत ने दोबारा उनकी ओर देखना तक नहीं था । उसके विचारानसार उस कमसिन लड़की को उस वक्त अपने घर में होना चाहिए था । उसकी बेवक्त वहां मौजूदगी से उत्पन्न दिलचस्पी ने, प्रगट में लापरवाही से खड़े सिगरेट सुलगाते, प्रशांत को उसकी ओर ध्यान देने पर मजबूर कर दिया ।
लड़की के बाल भीगे हुए थे और चेहरे पर चिंता की गहरी छाप थी ।
वह मर गया !
वह धीमे स्वर में ज़ोरदार ढंग से कह रही थी–पुलिस ने नदी से उसकी लाश निकाली है ।
तुम यकीनी तौर पर कह सकती हो, वह हरीश का ही भाई था ?
हां
लड़की ने ठोस स्वर में जवाब दिया–कामिनी का बाप भी वहीं था । पुलिस द्वारा लाश निकाली जाने के बाद जेब से निकले पर्स में मिले शिनाख्ती कागज़ात उसने भी देखे थे ।
प्रशांत पूर्ववत् खड़ा सिगरेट फूंकता रहा ।
चमड़े की गीली जैकेट पहने किशोर उम्र के दो लड़के और केबिन में आ पहुंचे