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The Soft Corner
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Ebook340 pages3 hours

The Soft Corner

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About this ebook

यह प्रेम कहानी सत्य घटना से प्रेरित है। इस प्रेम कहानी की शुरुआत सन् 2008 में हुई थी। इसमे दर्शाया गया है कि अपने प्यार को पाने के लिए कितना इंतजार करना पड़ता है, कितनी मशक्कत करनी पड़ती है, और मिल जाने के बाद ज़िंदगी कितनी हसीन लगने लगती है। साथ ही, इसमे यह भी दर्शाया गया है कि अपने प्यार को पाने के लिए आपके मित्रों का सहयोग बेहद जरूरी है। लेकिन जरूरी नहीं है कि जैसा आप चाहो किस्मत को भी वैसा ही मंजूर हो, कुदरत के भी कुछ अपने ही खेल होते हैं, जिसे आपको हर हाल में सिर झुकाकर स्वीकार करना पड़ता है।

Languageहिन्दी
Release dateMar 20, 2024
ISBN9788119368334
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    The Soft Corner - Ishu Raizada

    द सॉफ्ट कॉर्नर

    ईशू रायज़ादा

    प्रस्तावना

    कहते हैं कि जो विचार आप दुनिया के साथ साझा करना चाहते हैं, उन्हे पन्नों पर उतार दो, वो अमर हो जाएंगे। यह किताब एक प्रेम कथा को दर्शाती है। इसका मकसद समाज को अवगत कराना है कि प्यार को हासिल करना कितना मुश्किल कार्य है, अपना सुख-चैन, नींद, दिन-रात सब एक शख्स के लिए कुर्बान करना पड़ता है और बदले में उम्मीद भी नहीं रख सकते कि जैसा आप उसके लिए महसूस करते हैं, वो भी आपके लिए वैसा ही महसूस करे।

    ये इश्क, प्यार, मोहब्बत की राह में आपको अकेले ही निकलना पड़ता है, आगे कब और कहाँ हमसफ़र की तलाश खत्म हो पता नहीं, और हो भी गई तो वो आपके इस सफर में कितना साथ देगा, ये तो किस्मत ओर कायनात ही तय करेगी। कहा गया है कि प्यार और पैसे को एक तराजू में तोल कर देखो तो हमेशा जीत पैसे की होगी, परंतु हर बार यह कथन सत्य हो ऐसा ज़रूरी नहीं, आपका स्वभाव, आपका चरित्र पैसे से बहुत ऊपर है। ऐसा ही कुछ इस किताब में दिखाया गया है कि पैसा ही सब कुछ नहीं होता।

    ये पुस्तक यह भी बताती है कि आपके जीवन मैं एक अच्छे दोस्त का होना बेहद ज़रूरी है। एक मित्र ही है जिसके सहयोग से आप अपनी प्यार की मंजिल को हासिल कर सकते हैं। सारे सुख-दुख आप उससे बाँट सकते हैं। एक मित्र ही है जो आपकी सारी परेशानियों को दूर कर आपके जीवन में खुशियां भर सकता है।

    आभार

    यूं तो कहा गया है कि लेखक ही लेखन क्रिया में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है,परंतु उसको प्रेरणा देने वाले, उसका सहयोग करने वाले की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। ऐसा ही एक शख्स है जिसके सहयोग से आज यह किताब अपने मुकाम तक पहुंची है। मैं दिल से धन्यवाद करता हूँ अपने परममित्र वैभव ठाकुर का, जिनके प्रोत्साहन से आज मैंने ये उपलब्धि हासिल की है।

    साथ ही धन्यवाद करता हूँ उन सभी लोगों का जिन्होंने कण-भर का भी योगदान दिया है इस पुस्तक को पूरा करने में। मात्राओं की देख-रेख, शब्दों का चयन जैसी अनगिनत चीजों में सहयोग करने वाले दिल के करीब सभी लोगों का दिल से शुक्रियादा करता हूँ। मेरे सभी सहयोगी मेरे लिए समय निकालने और अपने सुझाव, टिप्पणी देने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे।

    अंत में, इस बेहद खुशी-भरे पल को सभी के साथ साझा करते हुए धन्यवाद देता हूँ जिनकी वजह से यह पुस्तक कार्य संभव हो पाया है।

    अनुक्रमणिका

    अध्याय - 1: पहली मुलाकात   1-8

    अध्याय - 2: शुरू से शुरू करते हैं   9-24

    अध्याय - 3: फेस्बुक और सैमसंग   25-32

    अध्याय - 4: इज़हार-ए-इश्क़   33-71

    अध्याय - 5: रास्ता-ए-मोहब्बत   72-111

    अध्याय - 6: मैं ज़िंदगी और.......वो   112-144

    अध्याय - 7: द सॉफ्ट कॉर्नर   145-181

    अध्याय - 1

    पहली मुलाकात

    बादलों में बिजली की तेज गड़गड़ाहट थी, हवायें अपना रूख मोड़ ही रही थी, धरती अपनी प्यास बुझा ही रही थी कि तभी शायद आसमान से उतर कर चाँद धरती पर आ पहुँचा।

    ————×—————×—————×—————

    सन् 2013, 11 अगस्त के सुबह-दोपहर के बीच का समय था, जब घड़ी की बड़ी सुई 10 पर थी और छोटी 11 पर, सैकेंड अपनी गति से आगे बड़ रहे थे। बारिश के मौसम से दिन सुहावना हो गया था। गर्मी का एहसास भी कुछ कम सा हो रहा था। बारिश की हल्की-हल्की बूँदे धरती की प्यास बुझा रही थीं। उस सुबह 3 दोस्त एक चाय की टपरी पर चाय की चुस्की भरते हुए गपशप कर रहे थे।

    जब सब लड़के दोस्त मिलते हैं, तो क्या ही बातें करते होंगे, यही न कि और भाई, भाभी कैसी हैं, उधर देख... उधर देख...तेरी भाभी जा रही है। दोस्तों में एक बात तो बहुत अच्छी होती थी कि गर्लफ्रैंड किसी एक-दो की होती थी, लेकिन भाभियाँ सबकी होती थीं।

    और अंकित, भाभी कैसी है हमारी?

    "कहाँ जग्गू भाई, भाभी...हमारी ऐसी किस्मत कहाँ...हा... हा... हा...’’

    हमारी छोड़ो, वैभव तू बता तेरा तो काफी समय से कुछ पता ही नहीं चला...

    "बढ़िया भाई, सब मस्त चल रहा है....आज वो आने वाली है .....’’ आवाज में थोड़ा कंपन्न था, दिल की धड़कन थोडी तेज हो गई थी, वो आज उस लड़की से काफी समय के बाद मिलने वाला था।

    शायद आपने सही पहचाना वो तीन दोस्त - वैभव ठाकुर, जाग्रत ज्ञानी और अंकित रायजादा थे। जाग्रत को प्यार से ‘‘जग्गू‘‘ बुलाते थे, अंकित को ‘‘रायजादा‘‘ और वैभव को ‘‘ठाकुर साहब। ’’

    उन दिनों अपनी खुद की दुपहिया गाड़ी किसी के पास नहीं हुआ करती थी, न ही उतने पैसे होते थे कि रोज़ रोज़ कहीं जा सकें, लेकिन दिल में जगह और घड़ी में समय तीनो के पास होता था। सभी ने हाल ही में अपनी स्कूली शिक्षा खत्म कर कॉलेज में प्रवेश किया था। वैभव ही एक ऐसा लड़का था, जो हर बार गाड़ी का इंतजाम करता था। दरअसल गाड़ी उसके चाचा की थी लेकिन जब बात दोस्तों के साथ घूमने की हो तो फिर झूठ बोलना तो बनता था यार। उसके चाचा के पास Eterno नाम की दुपहिया गाड़ी थी। काले रंग की लेकिन थोड़ी पुरानी। क्या फर्क पड़ता है, यादे बनाने के लिए वो काफी थी। वैसे तो कहते हैं कि ‘‘तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा", लेकिन तीन दोस्तो की दोस्ती की मिसाल तो हमेशा से दी जाती है। खैर गाडी का इंतजाम तो कैसे-न-कैसे हो जाता था, लेकिन पैट्रोल के पैसे तो मतलब, बाप-रे-बाप....(लड़कों की दोस्ती में कभी पैसे को लेकर चर्चा नहीं होती, जिस पर जितना होता है, वो उतना करता है।)

    भाई, तेरे पास कितने है...?

    भाई 10 रू०..

    भाई, तेरे पास....?

    भाई, 20 रू०..

    20 रू० मेरे पास है....

    10 तेरे पास, 20 तेरे पास, 20 मेरे पास, चल 50 रू0 हो गए, आज का काम तो हो गया। पैसों के मामले में तीनों का हाथ हमेशा से तंग रहा था।

    इस अवसर का वो बेसबरी से इंतजार कर रहा था, मानो एक-एक दिन काटना उसको भारी पड़ रहा था। जब वो सुबह उठा तो उसकी आँखे लाल पड़ी हुई थी जैसे नींद को दो पल भी महसूस न किया हो उसने। उस दिन उसकी खुशी मानो सातवें आसमान पर थी। आँखे बता रही थीं कि कितना बेकरार था वो उससे मिलने के लिए। जल्दी- जल्दी नहाना, तैयार होना और उत्साह में नाश्ता भी न करना, ये सब इशारा कर रहे थे कि वो कितना उत्साहित था। काली शर्ट, ग्रे पैंट, फॉर्मल जूते पहनकर तैयार अपनी माँ से पूछता है कि,

    माँ मैं कैसा लग रहा हूँ.....

    बहुत सुन्दर लग रहा है, कहीं नज़र न लग जाए। लेकिन तू जा कहाँ रहा है..?

    कहीं नहीं माँ, बस दोस्तों के साथ घूमने जा रहा हूँ...

    लेकिन माँ ने उसकी आँखें पढ ली थीं, उसका फूलों की तरह महकता बदन, चंदन सा चमकता चेहरा, उसकी धीमी सी मुस्कान बता रही थी कि भँवरा फूल की ओर आकर्षित हो रहा था। वो किसी लड़की से मिलने जा रहा है, ये बात उसके दोस्तों के अलावा किसी को भी नहीं पता थी।

    वो सारे दोस्त चाय के साथ बारिश का मजा ले रहे थे। हवाएँ धीरे-धीरे और तेज हो रही थी जैसे वो कुछ कहना चाह रही थी कि आज का दिन शायद और दिनों से कुछ अलग है। मिट्टी की खुशबू कुछ अलग ही एहसास दिला रही थी, जैसे शरीर में अचानक एक अलग सी ऊर्जा का उत्पादन हो गया हो, कि एक-एक अंग उसे उसके यहाँ होने का एहसास दिला रहा हो, कि तभी..... मैंने बताया था ना कि शायद चाँद धरती पर आ गया था।

    कि तभी....... सफेद कुर्ता, सफेद पजामी, माथे पर छोटी काली बिंदी, कानों में सिलवर झुमके, होठों पर लाल लाली, एक-एक कंगन उसके दोनों हाथों में थे, पैरों में पतली-पतली सिलवर पायल। एक दुपट्टा काला था, जो गले में उसने डाला था, कि जैसे वो चाँद के श्रृंगार को ढक रहा था, कि जैसे कह रहा था कि तुम्हें किसी की नजर नहीं लगने दूँगा।

    उस दिन वो अपनी इंटर की मार्कशीट लेने स्कूल आयी थी। अरे.... मैंने आपको बताया नहीं कि ये कहानी चल किसकी रही है....? ओ गॉड........

    ठाकुर साहब....हाँ....

    "जिसके लिए इसका दिल बेकरार था,

    ये उसका यार वो इसका प्यार था.."

    मैंने बताया था न कि हाल ही में स्कूली शिक्षा खत्म की थी, इंटर की परीक्षा के परिणाम के बाद स्कूल से अपनी मार्कशीट लेने वो वहाँ आयी थी। वैभव और वो लड़की स्कूल में एक ही साथ पढते थे। वैभव को पता था कि वो आज अपनी मार्कशीट लेने स्कूल आ रही है, तभी वो अपने दोनों दोस्तो के साथ स्कूल के सामने वाली चाय की टपरी पर उसका इंतजार कर रहा था। इंतजार थोड़ा लंबा होता जा रहा था, उस लड़की ने आने में थोडा विलंब कर दिया था। उसे एक एक पल पहाड़ जैसा लग रहा था, उस समय उसका सहारा सिर्फ चाय थी और वो इंतजार के लम्हों में चाय-पे-चाय पिये जा रहा था।

    कि अब इंतजार खत्म हो चुका था, वक्त थम सा गया था क्योंकि चाँद-ए-दीदार जो हो गया था। दोनों की नजरें एक-दूसरे से जा मिली, एक हल्की धीमी मुस्कान के साथ लडकी इशारों मे.....

    हाय....

    हाय....

    मैं बस दो मिनट में आई, इंतजार करना, आज वैभव और उस लड़की की स्कूल के बाद ये पहली मुलाकात होने वाली थी। वो स्कूल से मार्कशीट लेकर जल्द ही बाहर आ गई। लड़की स्कूल के पास रोड के उस पार खडी थी और लड़का टपरी पर रोड के इस पार खड़ा था।

    एक लड़की थी उस पार,

    एक लड़का खड़ा था इस पार,

    नजरें टकराई दोनों की,

    मौसम बारिश का था इस बार।

    एक आह लड़की ने भरी थी,

    चुस्की चाय की लड़के ने ली थी,

    दिलों में एक हलचल सी हुई थी,

    शुरुआत कौन करे, ये कशमकश भी रही थी।

    लड़का पहुँचा उस पार,

    सुंदर लग रही हो तुम, कह दिया इस बार,

    मुस्कुरा गई और बोली वो,

    सुनो, अंदर चलें या खड़े रहोगे बाहर।

    पूछा, चाय या कॉफी, लड़की ने इस बार,

    जो तुम्हारा मन हो, लेलो यार,

    कुछ तुम कहो, कुछ मैं कहूँ,

    इस आस में शाम निकल गई मेरे यार।

    फिर वो जानने लगे थे,

    शायद एक दूसरे को पहचानने लगे थे,

    धीरे-धीरे करके सारी बात हो गई,

    वो मेरी पहली मुलाकात की आखिरी रात हो गई।

    स्कूल के पास एक कैफे था, जहाँ स्कूल के कुछ लड़के मिलकर किसी का जन्मदिन मना रहे थे। वहीं कुछ लव-बर्डस् आपस में प्यार भारी बातें कर रहे थे। क्योंकि सभी लोग बहुत दिनों बाद मिल रहे थे तो कैफे लगभग पूरा भरा हुआ था। मिल तो ये दोनों भी बहुत दिनों बाद रहे थे तो किस्मत भी तो जोर लगाएगी। वहीं पूरे कैक मे सिर्फ दो कुर्सी और एक मेज खाली थी। धीरे-धीरे कैफे खाली होता चला गया और वातावरण शोर गुल से हटकर एक शांत जगह में तबदील हो गया। मेज पर एक वास रखा हुआ था, वास में गुलाब के नकली फूल रखे थे जिसमें से बेहद ही अच्छी सुगंध आ रही थी। मेज भी एक सफेद कपड़े से ढकी हुई थी कि मानो वो लड़की से कह रही थी कि मेरा ख्याल भी अपनी तरह रखना, बस इस चाँद पर कोई दाग न लगने देना। मेज पर पानी की बोतल भी रखी थी। वैभव ने बोतल खोली और पानी को दोनों गिलास में कर दिया। दोनों धीरे-धीरे पानी पी रहे थे कोई कुछ भी नहीं बोल पा रहा था। शायद उनकी बातों को कैफे में लगे दिल को छु जाने वाले संगीत ने जकड़ रखा था।

    मैडम ऑर्डर

    बोलो, चाय या कॉफी...?

    कुछ भी लेलो...

    ओके.... दो चाय प्लीज

    थैंक्यू....

    माहौल अब भी शांत चल रहा था, म्यूजिक दिल को सुकून दे रहा था और उसे एहसास दिला रहा था कि यही वो पल है जिसका तुझे इंतज़ार था, हाँ, वो लड़की आज तेरे सामने बैठी है।

    थोड़ी देर बाद........

    कैसी हो तुम.....?

    अभी तो पूछा था बाहर.....

    कोई बात नहीं, फिर से पूछ रहा हूँ....

    मैं अच्छी हूँ, तुम कैसे हो?

    जैसा हूँ, तुम्हारे सामने हूँ...

    धीरे-धीरे बातें आगे की ओर बढ़ रही थीं, बाहर बारिश भी तेज हो रही थी। बारिश की बौछार खिड़की पर पड़ रही थी, जैसे बारिश भी आज इन दोनों की मुलाकात को और हसीन बनाने में जुट गई थी।

    बारिश के साथ हवा भी अपना काम कर रही थी, पेड़ों पर बरस रहे पानी को अपने साथ उड़ा ले जा रही थी जैसे नहाने के बाद एक लड़की ने अपने बालों को हवा में लहराया हो और उसकी छीटे वैभव को उसके यहाँ होने का एहसास दिला रही हो।

    आपका ऑर्डर, मैम...

    थैंक्यू......

    एक ट्रे में दो चाय के कप, दोनों कप में आधी-आधी चाय भरी हुई थी, कप काँच के थे जिसका रंग भी सफेद था, याद है मेज़ भी सफेद कपड़े से ढकी हुई थी मानो ये सब लड़की से अपना हाल-ए-दिल बयां कर रहे हैं कि हम तुम्हारी तरह चाँद तो नहीं है पर आज की शाम हम सितारे बनकर तुम्हें सबसे अलग महसूस कराना चाहते हैं।

    धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे की कंपनी को पसंद करने लगे और बातें भी अब हँसी-मजाक का रूप लेने लगी थीं।

    तुम्हें याद है पाँच साल पहले जब तुम स्कूल में आई थी...

    हँसते हुए, हाँ, बस-बस, तब मैं बच्ची थी यार...

    कैसे तुम दो चोटी बनाकर आती थी, बिल्कुल झल्ली लगती थी, लेकिन अब एक बात बोलूँ.....?

    हाँ......बोलो

    में बार बार सोचता था कि तुमसे बात करूँ, तुम्हें बताऊँ, तुम कितनी अच्छी लगती हो।

    अच्छा! पर बात तो तुमसे की नहीं जाती थी।

    तब यार में भी तो बच्चा ही था न। तुम तब भी बेहद खूबसूरत लगती थीं और आज भी तुम बेहद खूबसूरत लगती हो....

    अच्छा जी, वैल थैंक्यू....

    वैसे कुछ भी कहो, कब ये पाँच साल निकल गए पता ही नहीं चला।

    हाँ वो तो है..

    अच्छा ये बताओ तुम्हें में कैसा लड़का लगता था?

    में सच बताऊँ, मैं तो डरी डरी रहती थी, तब एक दम नया माहौल था, लेकिन मैंने तुम्हें जब देखा था तुम किसी से भी बात नहीं करते थे, इन्फैक्ट, लड़कियों से तो बिल्कुल ही नहीं।

    हा.. हा.. हा

    समय अपने गति से आगे बढ़ रहा था, और बातें भी अब रफ्तार पकड़ चुकी थीं। फिर दोनों ने एक दूसरे को बताया कि वो अब अपनी जिंदगी में क्या कर रहे हैं। वैभव ने बताया कि स्कूल खत्म होने के बाद वो अब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अपनी आगे की पढ़ाई करेगा। लड़की ने बताया कि अब वो भी आगे किसी अच्छी यूनिवर्सिटी से बी०टेक० करेगी।

    वैभव बैठे-बैठे अपने अंदर एक चल रही जंग से गुजर रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो, 3 मैजिकल वर्डस् बोले या नहीं।

    दिमाग, तू क्या करने जा रहा है ?

    दिल, तू चुप बैठ, तुझे कुछ नहीं पता।

    दिमाग, आज की शाम को बेकार मतकर।

    दिल, इस शाम को और हसीन बनाने दे।

    दिमाग, नहीं तू ये नहीं करेगा। ....

    वैभव एक बहुत ही सोचवान लडका था, भले ही दिल और दिमाग दोनों में से कोई भी जीते, उसे करना वही होता था जो समयानुसार सही होता था। उसने लड़की को कुछ भी नहीं बोला, उसने सोचा क्यों ना एक सही वक्त का इंतजार किया जाए।

    अब वक्त जाने का हो चला था, वो अपनी ‘‘पहली मुलाकात’’ को एक हसीन मोड दे चुका था। वो दिन उसके लिए बेहद ही खूबसूरत और यादगार दिन बन चुका था। जाने से पहले बिलिंग काउन्टर पर लड़की पेमेंट कर रही थी, लेकिन आप जानते तो हो ही, लड़के तो लड़के होते हैं...... दोनों कैफे से बाहर आए, बारिश अब लगभग रुक चुकी थी, वैभव ने लड़की को ‘‘बाय’’ बोला और वो वहाँ से चली गई....। वैभव कुछ पल के लिए वहीं रुक गया या शायद कुछ पल वैभव के लिए रुक गए। एक लंबी गहरी सांस लेकर अब वो अपने दोस्तों की तरफ चल दिया।

    आपने ये नहीं सोचा कि उसके दोनों दोस्तों ने इतने समय तक क्या किया। मैं बताता हूँ जो सच्चे दोस्त होते हैं, वो चाहे खुशी के पल हो या दुख का पहाड़ हो, हर समय साथ खड़े रहते हैं। वो दोनों अब भी वहीं उसी कैफे के सामने वाली टपरी पर उसका इंतजार कर रहे थे। फिर तीनों ने गाड़ी उठाई और अपने घर की और निकल गए। वो वैभव की पहली मुलाकात की आखिरी रात होने वाली थी। जितने उत्साह के साथ वो घर से निकला था, उससे दोगुने उत्साह के साथ वो घर पहुँचा, उसके चेहरे पर तेज था, आँखे नशीली, होठों पर मुस्कान थी। उसको एक गाने की एक लाइन बहुत पसंद थी, उड़ता ही फिरूँ इन हवाओं में कहीं। और आज वो उसकी यादों की हवाओं में उड़ना चाह रहा था।

    वो इससे पहले कि बिस्तर पर जाता, नींद को अपनी बाहों मे लेता, और सपनों में खो जाता, उसने खुद को पाँच साल पीछे ढकेल लिया जब उसने उसे पहली बार देखा था।

    उसे सब पिछला याद आता गया, सूरज डूबता गया, रात रोशन होती गई। आसमान को चाँद सितारों ने अपनी

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