Naye Ishq Ka Mohabbatanama
By Sarul Bagla
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सारूल की कविताओं में दैनिक जीवन की बुदबुदाहटें हैं, जिसे कोई सुन ले तो अच्छा और न सुने तो और अच्छा। इन नज़्मों में उर्दू कविता की वह ताक़त तवाफ़ करती है जो मनुष्य की भीतरी दुनिया का रेशा-रेशा उधेड़कर रख देती है। भीतरी दुनिया को इस तरह उधेड़ना दरअसल दुनिया को नये सिरे से बुनने की बेचैनी से संभव होता है। इन नज़्मों के दुःख, संत्रास, बेचैनी और पीड़ाएँ इतनी विनम्र हैं कि वे अपने होने से नापता रहने में कोई नुक़सान नहीं समझती हैं। सारूल की कविताओं में उतरने के लिए कोई बहुत कौशल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। लेकिन पाठक अपने आत्म को दैनिक चर्चा की सामूहिक गतियों का हिस्सा नहीं समझता तो इन कविताओं में उतरना संभव नहीं है। इन नज़्मों की आसनियाँ बहुत दुरूह हैं। - विहाग वैभव, हिन्दी कवि
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सारुल बागला -
08 जुलाई 1995, महोली, सीतापुर, उत्तर प्रदेश में जन्म हुआ। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय(BHU) से भौतिकी में स्नातक, आईआईटी(आईएसएम) IIT (ISM) धनबाद से भू-भौतिकी में परास्नातक, वर्तमान में ओ.एन.जी.सी., (ONGC) अंकलेश्वर में कार्यरत। हिन्दी और उर्दू साहित्य में विशेष रुचि। सदानीरा, वागर्थ, कथाक्रम, अनहद और हिन्दी की अन्य प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित होती रही हैं। विश्व कविता के कुछ अनुवाद प्रकाशित।
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Naye Ishq Ka Mohabbatanama - Sarul Bagla
नये इश्क़ का मोहब्बतनामा
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सारुल
D:\R PUblishers\R PUB\B-W-Logo.pngराजमंगल प्रकाशन
An Imprint of Rajmangal Publishers
ISBN: 978-8119251940
Published by:
Rajmangal Publishers
Rajmangal Prakashan Building,
1st Street, Ozone, Quarsi, Ramghat Road
Aligarh-202001, (UP) INDIA
Cont. No. +91- 7017993445
www.rajmangalpublishers.com
rajmangalpublishers@gmail.com
sampadak@rajmangalpublishers.in
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प्रथम संस्करण: नवंबर 2023 – पेपरबैक
प्रकाशक: राजमंगल प्रकाशन
राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,
ओजोन, क्वार्सी, रामघाट रोड,
अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत
फ़ोन : +91 - 7017993445
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First Published: Nov. 2023 - Paperback
eBook by: Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)
Copyright © सारुल बागला
यह एक काल्पनिक कृति है। नाम, पात्र, व्यवसाय, स्थान और घटनाएँ या तो लेखक की कल्पना के उत्पाद हैं या काल्पनिक तरीके से उपयोग किए जाते हैं। वास्तविक व्यक्तियों, जीवित या मृत, या वास्तविक घटनाओं से कोई भी समानता विशुद्ध रूप से संयोग है। यह पुस्तक इस शर्त के अधीन बेची जाती है कि इसे प्रकाशक की पूर्व अनुमति के बिना किसी भी रूप में मुद्रित, प्रसारित-प्रचारित या बिक्रय नहीं किया जा सकेगा। किसी भी परिस्थिति में इस पुस्तक के किसी भी भाग को पुनर्विक्रय के लिए फोटोकॉपी नहीं किया जा सकता है। इस पुस्तक में लेखक द्वारा व्यक्त किए गए विचार के लिए इस पुस्तक के मुद्रक/प्रकाशक/वितरक किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं। सभी विवाद मध्यस्थता के अधीन हैं, किसी भी तरह के कानूनी वाद-विवाद की स्थिति में न्यायालय क्षेत्र अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत ही होगा।
समर्पण
चच्चा (रामलखन) और बुआ शांति देवी (दादी) को
जिन दो लोगों ने मोहब्बत के बदले
कुछ भी न चाहना सिखाया
भूमिका
नमस्कार,
अपनी इन नज़्मों के लिए कुछ भी कह पाना मेरे लिए शायद मुश्क़िल काम है। जीवन के समानांतर थोड़ा बहुत कुछ लिख लेना हमेशा एक सुकून देता रहा। हमेशा की तरह एक बेचैनी ही थी जिसने नज़्में लिखवायीं और जब इन्हें लिखे एक अरसा हो गया है और एक कॉलेज स्टूडेंट की ज़िंदगी से इतर मैं भी अब दिन रात के चक्कर में फँसा हुआ पाता हूँ तो लगा कि अगर इन्हें प्रिंट में देखूँगा तो कुछ सुकून मिलेगा। खाने की मेज़ से लेकर, मेरी छुट्टियों और कोर्स की कॉपी किताबों के पीछे लिखी गई ये नज़्में मेरे दिल के बेहद क़रीब हैं और मेरे कुछ क़रीब लोगों के दिल के क़रीब भी।
ये ठीक नहीं कि मैं ज़िक्र करने बैठ जाऊँ कि मेरा लिखना पढ़ना क्या हुआ कैसे हुआ, मेरी रुचियाँ क्या रहीं। फ़ैज़ की नज़्मों की आवाज़ कई-कई दिनों तक कानों में गूंजती रही और उस नशे में कितने दिन कितने साल बीते। फिर धीरे-धीरे पढ़ना लिखना कम हुआ और मेरे दिल की ख़ाली जगह में कुछ उतरा। ईमानदारी से कहूँ तो मुझे इन नज़्मों का कोई गुमान नहीं, एक ईमानदारी भर का एहसास है और सो है अच्छे से है। दुनिया में जो एक चीज सबसे ज़्यादा सहारा देती है वो यह कि हम सबके दुख दर्द साझा है। अपनी ख़ुशियों में हम कितने भी अलग हो लेकिन मुझे अहसास होता है कि हम अपनी तनहाइयों में बहुत कुछ एक जैसे है। तन्हाई का, उदासी का रंग हर जगह थोड़ा थोड़ा सा मिलता जुलता लगता है। मेरे लिए तो इन नज़्मों में तमाम रंग है और मेरी एक उम्र में फैली हुई ये नज़्में मुझे हमेशा अजीज़ रहेंगी। आप सभी से भी मेरा कुछ न कुछ साझा एहसास ज़रूर होगा। सो वो बात आप तक पहुँच जाए तो बहुत अच्छी बात। सभी पढ़ने वालों को और इस सफ़र में मिलने वाले लोगो का तहे-दिल से शुक्रिया। इसमें कोई दो राय नहीं कि मैं अपनी ख़ामियों के साथ इन पन्नों में हाज़िर हूँ।
23, अगस्त 2023 सारुल
अंकलेश्वर, गुजरात
अनुक्रमणिका
शाम
जज़ा
या बस यूं ही
याद
किसी के प्यार की हद