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पिताजी की साईकिल
पिताजी की साईकिल
पिताजी की साईकिल
Ebook184 pages1 hour

पिताजी की साईकिल

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About this ebook

पूर्व की बातों को सहेज कर वर्तमान को महसूसती और भविष्य के प्रति जिजीविषा जगा कर कई विषयों की सूक्ष्मता से पड़ताल करती कविताओं का संग्रह है "पिताजी की साईकिल"। पारिवारिक मूल्यों के अवमूल्यन से रिश्तों में आई दरार का चुभन तथा संवेदना शून्यता के विरुद्ध छोटी छोटी बातों में भी खुशियों की तलाश का भगीरथ प्रयास। पागलपन की हद तक प्रेम की पराकाष्ठा और बचपन की स्मृति के बहाने संतोष और सुकून। बेजान पत्थरों का छलकता दर्द तो कहीं कबाड़ में भी अपनों के होने का अहसास मात्र से देह में सिहरन। गंभीर और हास्य विषयों की कविता का संतुलन। साथ ही और भी बहुत कुछ है मन को उद्वेलित कर उर्जा का संचार करने के लिए एवं मन को गुदगुदा कर आनन्द की अनुभूति के लिए।

Languageहिन्दी
Release dateJun 30, 2023
ISBN9789389100846
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    पिताजी की साईकिल - Paras Nath Jha

    समर्पण

    अपनी प्यारी भतीजी डोली (मोना मोनिका) को समर्पित जिनका असामयिक निधन दिनांक 19.03.2023 को प्रसव के दौरान पटना के एक अस्पताल में हो गया। डोली का स्नेह एवं अनुशासित व्यवहार भूलना मेरे लिए असंभव है और उसकी मीठी आवाज अभी भी मेरे कानों में गूंजती रहती है, जिससे मुझे आभास होता है कि वह अभी भी मेरे आस पास ही कहीं तो नहीं है।

    - पारस नाथ झा

    मन की बात

    अकथ से आगे काव्य संग्रह के बाद 'पिताजी की साईकिल' मेरा दूसरा काव्य संग्रह है। काव्य संग्रह को अस्तित्व में लाने के बहाने मैं हिंदी साहित्य के अथाह समुन्दर में डुबकी लगाने का प्रयास कर रहा हूँ पर आवश्यक नहीं है कि मोती ही मिले। इसमें मैंने कुछ वैसी कविताओं को भी सम्मिलित किया है जिसे मैंने हिंदी साहित्य से अत्यधिक प्रेम के कारण अपने कॉलेज वाले दिनों में लिखने का प्रयास करता रहा था और खासकर उस समय ऐसी मानसिकता घर कर गई थी कि नारी सौन्दर्य को ही करीब से महसूसने के बाद मन कवितामयी हो सकता है और सौंदर्य बोध से तत्काल उपजे शब्द ही कविता के लिए एक-एक शब्द बन कर मस्तिष्क को झंकृत करने में सक्षम होता है और तत्पश्चात सृजन के लिए प्रेम रस से भरी कविता मन में हिलोर मारने लगती है। अब उम्र के इस पड़ाव पर पुरानी सोच हास्यास्पद और काल्पनिक लगने लगी है, इसलिए बदली हुई मानसिकता के संग विभिन्न विषयों को आधार बनाकर कविता लिखने का प्रयास किया है। कविता लेखन में मैंने किसी विशेष प्रकार के रसों का रसास्वादन करने से सतत् परहेज करते हुए समानता के साथ संतुलन स्थापित किया है। पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और वर्तमान समय की व्यवस्था से उपजे हुए विषयों के इर्द-गिर्द ही अधिकांश कविताओं का सृजन हुआ है। मैंने उन विषयों को प्राथमिकता देने का प्रयास किया है, जिसे मैंने करीब से देखा है, महसूसा है और शायद झेला भी है। सुनी सुनाई बातों पर शब्दों का ताना-बाना बुनने का मेरा प्रयास कभी नहीं रहा है। इस संग्रह में मैंने सामान्य, गंभीर और आंशिक रुप से हास्य विषयों की कविताओं को सम्मिलित किया है। इसके साथ ही कोरोना काल में तत्कालीन परिस्थिति को देखते हुए उस समय रची गई कुछ कविताओं को भी सम्मिलित किया गया है। अनजाने में अगर हो गया हो तो कोई बात नहीं पर कविता लेखन में कोरी कल्पनाशीलता की लक्ष्मण रेखा को पार करने का मेरा कभी भी मन नहीं रहा है और साथ-साथ कठिन शब्दों के प्रयोग से भी मैंने एक निश्चित दूरी बनाकर रखी है। परिणामत: प्रिय पाठकों को कविता बिना कृत्रिमता के चादर ओढ़े आडम्बरहीन अपने मौलिक रुप में बिल्कुल सहजता और सरलता का अहसास कराते हुए आगे बढ़ती प्रतीत होगी। कोई भी कविता व्यक्ति विशेष या समूह पर टिप्पणी नहीं है, अगर कहीं ऐसा अनुभव हो तो यह मात्र एक संयोग हो सकता है और इसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।

    इस संग्रह की कुछ कविताएं पूर्व में विभिन्न साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित भी है और सोशल मीडिया साइट पर भी प्रसारित है। उम्मीद करता हूँ कि इस काव्य संग्रह की अधिकांश कविताएं आपको अच्छी लगेगी और कविता अपनी क्षमता भर आपके मन को उद्वेलित कर गुदगुदाने का प्रयास करेगी, जिससे काव्य लेखन के अपने इस प्रयास को मैं सार्थक समझूंगा।

    आपके स्नेह और आशीर्वाद का आकांक्षी।

    - पारस नाथ झा

    अक्षय तृतीया 2023

    नागफनी

    एक समय की बड़ी हवेली

    अब कबूतर खाना बन कर रह गया है

    छोटे छोटे खोपनुमा कमरों में

    ज़िन्दगी का निपटारा हो रहा है

    कौन कब निकलता है और

    कब लौट कर वापस आता है

    कानों कान किसी को खबर भी नहीं

    कहते हैं कि इन लोगों में

    कभी खून का रिश्ता था

    पर परिवार में सदस्यों के बढ़ने पर

    बॅंटवारा की बात पर ऐसा ताण्डव हुआ

    सम्पत्ति लेने की होड़ में

    नंगे हो चुके सारे रिश्ते एक एक करके

    लालच के पराकाष्ठा की बलि चढ़ गई

    ढ़के कपड़ों में छुपा सच

    उगल कर बाहर आ गया

    रिश्तों को पैरों तले इस तरह कुचला गया

    कि आने वाले दिनों में साँस लेने के लिए

    हवा भी अब कहाँ बची है

    जहाँ से कभी शुरुआत की जा सके

    कभी एक दूसरे पर

    जान छिड़कने वालों के मन में

    जहर ही जहर फैल गया

    अब कबूतर खाना बन चुका ये हवेली

    नागफनी के पौधा सदृश दिखने लगा है

    जहाँ फण फैलाये लोग

    हर क्षण एक दूसरे को

    डॅंसने के लिए तैयार बैठे हैं

    * * *

    अन्त से आगे

    उम्र के इस पड़ाव पर

    शरीर का साथ नहीं

    सच कहता हूँ अब

    पहले वाली बात नहीं

    याद करता हूँ शादी के लिये

    तुम्हारे घर से आई

    ब्लेक एण्ड व्हाईट तस्वीर

    टॉर्च की रोशनी में

    रजाई के अंदर छुपकर रात भर

    अनवरत निहारते रहना

    शादी के बाद भी तुमसे

    मिलने की खुशी में

    पुरानी बाईक को तेज

    गति से भगाना और

    सड़क पर गिर जाना

    रात-रात भर तुम्हारे साथ

    खिड़की के पास बैठकर

    फूलों की महक वाली

    अंधेरी काली रातों में

    मेघ गर्जन की रोशनी में

    बारिश की बूँदों को

    एकटक निहारते रहना

    कभी अंधेरे घर में भी

    तुम्हारे पायल की आवाज

    या पद् चाप से तुम्हारे पास

    होने का अहसास होना

    अब यह सोचता हूँ तो

    एक सपना सा लगता है

    बच्चे बड़े हो गये

    बहुत बड़े हो गये

    वृद्धाश्रम के कमरे की उमस

    अब एक टीस सी देती है

    आँख और कान में अब

    पहले वाली बात नहीं

    टूटी खिड़की से हवा के

    संग आई बारिश की बूँदें

    और भींगे हुए कपड़ों से

    सहज बारिश होने का

    अनुमान लगाता हूँ

    कड़क बिजली की तेज

    रोशनी में तुम्हारे होने के

    अहसास मात्र से सीलन

    पड़ी दीवारों को

    टटोलता फिरता हूँ मैं

    पता नहीं कभी किसी

    बात पर खिलखिला कर

    हँसता रहता हूँ मैं

    यहाँ के लोग कहते हैं

    मेरा दिमाग अब सच में

    काम नहीं करता है

    इसलिये बच्चों जैसी

    हरकत करता हूँ मैं

    प्रकाशित - साहित्यनामा जून 2021

    * * *

    एक कौआ की अचानक मौत

    बिजली के तार में फंस कर अचानक

    एक कौआ ने गंवाई आज अपनी जान

    पलक झपकते ही मौत की ये सूचना

    पहुँची आस पास के कौओं के कान

    फिर कौऔं की भीड़ ने उस जगह

    मचाया आतंक का ऐसा नंगा नाच

    लगने लगा कि इस अकाल मौत के

    कारणों का शुरू हो अविलम्ब जाँच

    कौऔं की असामान्य भीड़

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