तीन खून
By प्रकाश भारती
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कमलकांत की ज़िंदगी बड़े ही खौफनाक दौर से गुजरी... उसके हाथों हत्या हो गई थी- सुदेश नारंग की। जो उसका अफसर ही नहीं दोस्त और आदर्श भी था। उसी के पदचिन्हों पर चलकर वह खुद भी ईमानदार और फर्ज का पाबंद पुलिस अफसर बना...। लेकिन जल्दी ही सुदेश की असलियत सामने आ गई- वह बेईमान और रिश्वतखोर निकला।
कमलकांत आपा खो बैठा.... बात बढ़ी और वो सब हो गया।
केस चला।
अदालत ने कमलकांत को बाइज्जत बरी कर दिया। लेकिन उसका मोहभंग हो चुका था। पुलिस की नौकरी छोडने के साथ-साथ मुम्बई को भी अलविदा कर दिया...।
वह गोआ जा बसा। पढ़ाई के साथ-साथ शौकिया तौर पर सीखा कार रिपेयरिंग का हुनर रोजी-रोटी का जरिया बना। मोटर वर्कशाप खोल ली...। गुजरे दिनों को भुलाकर दिनरात कड़ी मेहनत करके तरक्की करता चला गया... बेफिक्री और मस्ती भरी ज़िंदगी चैन से गुजरने लगी...।
अचानक नलिनी पिंटो भयानक तूफान की तरह उसकी ज़िंदगी में आई और एक बार फिर उसका सब कुछ बिखरने लगा...।
एक के बाद एक तीन खून और तीनों का इल्जाम कमलकांत पर।
आर्गेनाइज्ड क्राइम के पुराने दादा और भ्रष्ट पुलिस इन्सपैक्टर सब उसकी जान के दुश्मन बन गए...।
इतना ही नहीं इंटेलीजैन्स ब्यूरो का एक अफसर भी हाथ धोकर पीछे पड़ गया।
उसकी वर्कशाप जला दी गई।
प्यार का फरेब देने वाली नलिनी बाजारू औरत निकली और बड़ी बेशर्मी से उसे मौत के मुँह में धकेल दिया...।
तिनका-तिनका बिखर गई ज़िंदगी एक बार फिर मुकम्मल तबाही के कगार पर जा पहुंची।
तो क्या कमलकांत ने हार मान ली???
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तीन खून - प्रकाश भारती
तीन खून
प्रकाश भारती
Aslan-Reads.pngअसलान रीड्स
के द्वारा प्रकाशन
असलान बिजनेस सॉल्यूशंस की एक इकाई
बोरिवली, मुंबई, महाराष्ट्र, इंडिया
ईमैल: hello@aslanbiz.com; वेबसाइट: www.aslanreads.com
कॉपीराइट © 1994 प्रकाश भारती द्वारा
ISBN
इस पुस्तक की कहानियाँ काल्पनिक है। इनका किसी के जीवन या किसी पात्र से कोई
संबंध नहीं है। यह केवल मनोरंजन मात्र के लिए लिखी गई है।
अत: लेखक एवं प्रकाशक इनके लिए जिम्मेदार नहीं है।
यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि प्रकाशक की
लिखित पूर्वानुमती के बिना इसे या इसके किसी भी हिस्से को न तो पुन: प्रकाशित
किया जा सकता है और न ही किसी भी अन्य तरीके से, किसी भी रूप में
इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
अंतर्वस्तु
तीन खून
* * * * * *
तीन खून
कमलकांत उस वक्त डांगरी पहने एक कार के नीचे लेटा हुआ था जब पणजी से कोलवाल जाने वाले आखिरी बस मुश्किल से एक मिनट उसकी वर्कशाप के सामने रुकने के बाद आगे बढ़ गई थी ।
बस से उतरने वाली इकलौती सवारी एक लड़की थी, बस गुजर जाने के बाद भी वह अनिश्चित–सी खड़ी थी । उसके दांयें बांये दो बड़े–बड़े सूटकेस रखे थे और जिस ढंग से वह रह रह कर एक पैर से दूसरे पर पहलू बदल रही थी उससे उसकी बेचैनी साफ जाहिर थी ।
कार के नीचे लेटे कमलकांत को अपनी उस स्थिति में लड़की के गोरे पैरों के इर्द गिर्द कसे ऊंची एड़ी के सफेद सैंडिल और घुटनों से तनिक ऊपर तक डेनिम की नीली जीन्स ही दिखाई दे रहे थे । लेकिन वह विश्वासपूर्वक कह सकता था उन पैरों, सैंडिलों और जीन्स की स्वामिनी उसके लिए पूर्णतया अपरिचित थी ।
कमलकांत को अब जिंदगी में दो ही चीजों से खास लगाव रह गया था, अपनी मोटर वर्कशाप और औरतें । और इन दोनों ही चीजों के मामले में उसे बराबर भरपूर कामयाबी हासिल हुई थी । ढाई साल के अर्से में गोवा के शिवोली नामक उस शहर की जितनी कारें उसकी वर्कशाप में ठीक होने आयी थी लगभग उतनी ही लड़कियाँ भी इस वक्फे में उसके सम्पर्क में आ चुकी थी । लेकिन जिस तरह अपनी वर्कशाप में आई हर एक कार की उसने कम्पलीट ओवर हालिंग नहीं की थी ठीक उसी तरह अपने सम्पर्क में आयी हर लड़की के साथ उसने वह रिश्ता भी कायम नहीं किया था जिसके लिए श्लीलता के दायरे में सबसे पहली और जरूरी शर्त होती है–पूर्णतया एकांत ।
कमलकांत कारों और लड़कियों के मामले में समान रूप से अनुभवी था । वह कार का नुक्स ढूँढ़कर उसे ठीक करने जितना माहिर था उतनी महारत उसे लड़कियों का मिज़ाज भांपकर उसी के मुताबिक उनके साथ व्यवहार करने में भी हासिल थी । यही वजह थी कि न तो कभी किसी कार के मालिक को उससे शिकायत करने का मौका मिला था और न ही कभी ऐसी नौबत आई थी कि कोई लड़की उसका गला पकड़ती ।
उसके तमाम परिचित उसे एक मेहनती, होशियार और खुशमिजाज युवक समझते थे । जबकि लड़कियों की नजरों में वह एक ऐसा प्ले ब्वॉय था जिसने तमाम स्थानीय प्ले ब्वॉयज की छुट्टी कर दी थी ।
कमलकांत कार के नीचे से निकला और तारीफी निगाहों से लड़की की ओर देखा ।
लड़की खूबसूरत थी–इंतिहाई खूबसूरत ।
अपने हाथों में लगी कालिख पौंछकर वह नि:संकोच लड़की के पास पहुंचा ।
'आप किसी का इंतजार कर रही हैं ?' उसने शिष्ट स्वर में पूछा ।
लड़की ने सहमतिसूचक सर हिलाया ।
'हां ।' वह भावहीन स्वर में बोली ।
कमलकांत मुस्कराया ।
'एतराज न हो तो जान सकता हूं किसका ?'
'टैक्सी का ।'
कमलकांत अब तक लड़की का सर से पांव तक बारीकी से मुआयना कर चुका था । उसके चेहरे की खूबसूरती और अंगों की सुडौलता और उभारों में कहीं कोई कमी उसे नजर नहीं आई थी । वह मन ही मन उसे सौंदर्य और आकर्षण का अद्भुत सम्मिश्रण की संज्ञा दे चुका था । लड़की का चेहरा हालांकि पूरी तरह भावहीन था । लेकिन जिस ढंग से वह तनकर खड़ी हुई थी और बार–बार अपने कंधे पर झूलते चमड़े के हैंडबैग की तनी पर उंगलियां फिराने लगती थी उससे लगता था वह व्याकुलतापूर्ण संकोच में घिरी हुई थी । कमलकांत उसे और ज्यादा गौर से देखने पर विवश हो गया, और जो बात उसे पहले नजर नहीं आई थी वो अब नजर आ गई–लड़की की बड़ी–बड़ी काली चमकीली आंखों में कुछ ऐसे भाव विद्यमान थे मानो उसे दुनियादारी के बेहद तल्ख़ तजुर्बों के लम्बे दौर से गुजरना पड़ा था,
'आमतौर से टैक्सियां इस तरफ नहीं आती, उसके लिए आपको फोन करना होगा ।' वह बोला–फिर तनिक रुकने के बाद कहा–मैं फोन किए देता हूँ, बास्को को आने में करीब दस मिनट लग जाएंगे तब तक आप…।'
'बास्को अभी जिंदा है ? मैंने तो सोचा था अब तक किसी ने उसे शूट कर दिया होगा ।'
लड़की का स्वर और चेहरा पूर्ववत भावहीन थे इसलिए कमलकांत समझ नहीं सका कि यह बात उसने मज़ाक में कही थी या संजीदगी से, अलबत्ता उसकी इस बात से जाहिर था वह इस शहर से खासी परिचित थी ।
'अगर आपको उसकी टैक्सी में जाने से एतराज हो तो मैं लिफ्ट दे दूँगा, मैं सात बजे वर्कशाप बन्द करता हूँ, अभी आधा घण्टा रहता है ।'
लड़की के चेहरे पर पहली बार संक्षिप्त–सी मुस्कराहट प्रगट हुई ।
'आप यहां नए आए हैं ?'
'इतना ज्यादा नया नहीं हूं, ढाई साल हो गए ।'
लड़की ने कमलकांत पर उचटती–सी निगाह डाली, डांगरी पहनी होने के बावजूद उसके ऊँचे कद, पुष्ट शरीर और मर्दाना खूबसूरती वाले व्यक्तित्व का अपना अलग आकर्षण था ।
'ढाई साल का अर्सा ज्यादा नहीं होता । वह बोली, फिर वर्कशाप की ओर देखने लगी– 'बढ़िया जगह है ।'
कमलकांत को खाड़ी के सिरे पर स्थित अपनी वर्कशाप पर गर्व था, दिन रात की कड़ी मेहनत के बाद ही वह उसे मौजूदा हालत में ला सका था, ढाई साल पहले जब आया था उस वक्त यह वर्कशाप एक छोटे और ख़स्ता हालत शेड तक ही सीमित थी, काम में आने वाले पूरे औजार भी यहां नहीं थे, लेकिन अब उसकी काया पलट चुकी थी, नया और अपेक्षाकृत बड़ा शेड आधुनिक औजारों से लैस था, बराबर में एक स्टोर कम आफिसनुमा कमरा बना दिया गया था जिसमें स्पेयर पार्ट्स का खासा स्टाक रहता था, टेलीफोन की सुविधा मौजूद थी और पिछली साइड, को छोड़कर बाकी तीन तरफ से छोटी–छोटी चारदीवारी करा दी गई थी, आस–पास कोई पैट्रोल पम्प नहीं था, अपनी सूझ–बूझ, भागदौड़ और प्रयासों से वह करीब छह महीने पहले खुदरा पेट्रोल, डीजल वगैरा बेचने का परमिट भी प्राप्त कर चुका था, वर्कशाप के पिछवाड़े खाड़ी की तरफ उसने एक ऐसा घांट–सा बनवा दिया था जहां आकर मछुआरे अपनी फिशिंग बोट्स में डीजल भरवा सकते थे, काम में अपनी मदद के लिए उसने तीन लड़के भी रखे हुए थे जिन्हें वह कुशल मैकेनिक बना चुका था और जो सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक काम में उसका हाथ बंटाया करते थे, सवारी के लिए एक पुरानी जीप भी उसके पास थी ।
'धन्यवाद, यह अच्छी लोकेशन है, मेनरोड पर है और शहर भी यहां से ज्यादा दूर नहीं है ।' वह बोला –'आप मेरे ऑफिस में आराम से बैठिए, मैं अपना हुलिया सही करके वर्कशाप बन्द किए देता हूं, फिर आपको अपनी जीप से पहुंचा दूँगा ।'
'नहीं, बेहतर होगा बास्को को फोन कर दो ।'
कमलकांत अपने ऑफिस की ओर बढ़ गया ।
जब वह फोन करने के बाद बाहर निकला, लड़की वर्कशाप के शेड के पास अपने एक सूटकेस पर बैठी दिखाई दी, अब उसका चेहरा अपेक्षाकृत साफ और ताजा नजर आ रहा था, उसके भरे–भरे होंठ भी ज्यादा सुर्ख लग रहे थे, कमलकांत को आरम्भ में यूं लगा मानो इस बीच वह अपने चेहरे पर मेकअप की हल्की–सी परत चढ़ा चुकी थी, लेकिन नज़दीक पहुंचने पर उसे ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया, लड़की के चेहरे की वह ताज़गी और होंठों की सुर्खी कुदरती थी, उसकी गैर मौजूदगी में लड़की ने सम्भवतः अपने चेहरे को रूमाल रगड़कर पोंछा था और इस तरह चेहरे पर जमी सफर की धूल के निशान साफ हो गए थे ।
लड़की ने उसके कदमों की आहट सुनकर भी गर्दन नहीं घुमाई, वह सूनी आंखों से, कोई डेढ़ मील दूर शहर की ओर जाने वाली सड़क को ताक रही थी ।
कमलकांत ठीक उसके पास पहुंचकर रुका । चन्द क्षण इंतजार करने के बाद भी लड़की ने जब उसकी तरफ नहीं देखा तो वह बोला–'आप यहीं की रहने वाली हैं ?'
लड़की ने सिर हिलाकर हामी भर दी, लेकिन उसकी तरफ नहीं देखा ।
'शायद कुछ दिनों के लिए अपने परिवार से मिलने आई हैं ?' कमलकांत ने पूछा ।
लड़की ने धीरे–धीरे गर्दन घुमाकर उसकी ओर देखा और खड़ी हो गई ।
'मैं हमेशा के लिए अपने घर लौट आई हूं ।' वह बोली–'मेरा नाम नलिनी पिंटो है ।'
इस नाम का प्रत्यक्षतः कमलकांत के लिए कोई महत्व नहीं था, सिवाए इसके कि उसने सुना था मेजर पिंटो नामक एक अपाहिज आदमी शहर से दूर एक टापू पर विशाल इमारत में रहता था । लेकिन वह उस मेजर से कभी मिला नहीं था ।
'मेरा नाम कमलकांत है ।' वह बोला ।
'एतराज न हो तो बास्को को दोबारा फोन कर दो ।'
उसके स्वर का तीखापन कमलकांत को तनिक अजीब लगा ।
'देखिए, मिस पिंटो । वह बोला– 'अगर मेरी किसी बात से आप नाराज...।'
'और उससे कहो कि जल्दी आ जाए ।'
कमलकांत ने इतनी खूबसूरत लड़की यकीनन पहले कभी नहीं देखी थी और अब वह यह भी महसूस करने लगा था कि ऐसे मिज़ाज वाली लड़की से भी पहले कभी उसका साबिका नहीं पड़ा था ।
वह चुपचाप वापस घूमा और अपने ऑफिस में पहुंचा ।
टेलीफोन का रिसीवर उठाते वक्त उसकी निगाह खुली खिड़की पर पड़ गई और उसने रिसीवर वापस रख दिया ।
शहर की ओर से आती बास्को की प्राइवेट टैक्सी उसे दिखाई दे गई थी ।
वह बाहर निकलकर लड़की के पास पहुंचा ।
'बास्को आ रहा है ।' उसने कहा ।
लड़की कुछ नहीं बोली ।
कमलकांत जान–बूझकर गेट की और बढ़ा ।
तभी धूल से अटी एक पुरानी एम्बेसडर कार गेट से भीतर दाखिल हुई और उसकी बगल में आ रुकी ।
ड्राइवर यानी बास्को कार से उतरा ।
वह मैले लिबास वाला पतला–दुबला मरियल–सा आदमी था । उसकी उम्र करीब पैंतालीस साल थी और वह शक्ल–सूरत से ही बड़ा काईंया नजर आता था । उसने अपने पतले कूल्हों पर नीचे फिसलती पैंट ऊपर खिसकाई और गन्दे पीले दांत दिखाता हुआ मुस्कराया ।
'सवारी कौन है ?' उसने पूछा । शेड की आड़ में होने की वजह से उसकी निगाह लड़की पर नहीं पड़ सकी थी ।
कमलकांत ने शेड की ओर इशारा किया ।
'एक महिला है ।'
बास्को ने इंगित दिशा में देखा तो अपने दोनों सूटकेस उठाए आती नलिनी पिंटो उसे दिखाई दे गई । तत्क्षण उसकी आँखें चमक उठीं ।
'यह महिला है ?' वह व्यंग्यपूर्वक बोला । फिर ऊंची आवाज़ में नारा–सा लगाया–'वापस आ गई हो नलिनी ? क्या बम्बई की फिल्म इंडस्ट्री का दिवाला पिट गया है ?'
कमलकांत को बास्को का यह बेहूदा ढंग पसंद नहीं आया । लेकिन उस सड़ियल आदमी से किसी और ढंग की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती थी ।
'तुम बिलकुल भी नहीं बदले बास्को ।' सूटकेसों के बोझ से झुकी जा रही नलिनी बोली ।
कमलकांत उसकी ओर लपका–'लाइए, सूटकेस में पहुंचा देता हूं ।' वह बोला ।
'इन्हें यह ही यहां से ले गई थी । बास्को बोला–'इसलिए इसी को वापस लाने दो ।'
कमलकांत ने कड़ी निगाहों से बास्को को घूरा । फिर नलिनी से सूटकेस ले लिए । कार की डिक्की में सूटकेस रखकर उसने पिछली सीट का दरवाज़ा खोल दिया ।
'अरे, यह क्या करते हो ?' बास्को बोला–'यह मेरे साथ अगली सीट पर बैठेगी ।'
'नहीं । कमलकांत ने तीव्र स्वर में प्रतिवाद किया–'यह पीछे बैठेगी ।'
बास्को ने खीसें निपोरी ।
'यहां के लिए तुम अभी भी नए हो बच्चे ।' वह इस ढंग से बोला मानो सचमुच किसी बच्चे को पुचकारकर समझा रहा था–'तुम्हें बहुत कुछ सीखना पड़ेगा ।'
कमलकांत के जी में आया उसके मुंह पर जोरदार तमाचा जमा दे, लेकिन खुद को रोक गया ।
नलिनी पिंटो प्रत्यक्षतः पूर्णतया संयत नजर आ रही थी, लेकिन उसके चेहरे पर किसी आंतरिक पीड़ा को खामोशी के साथ पीने की कोशिश के भाव साफ पढ़े जा सकते थे ।
कमलकांत को उम्मीद थी, फटीचर बास्को की बेहूदगी के लिए वह उसे डांटेगी । लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ । वह चुपचाप पिछली सीट पर बैठ गई ।
कमलकांत को एकाएक उसकी विवशता से हमदर्दी हो आई ।
'अगर आपको किसी किस्म की मदद की जरूरत पड़े तो मुझे फोन कर देना ।' कार का दरवाज़ा बन्द करने के बाद वह गम्भीरतापूर्वक बोला–'मेरा टेलीफोन नम्बर...।'
'मेरी फिक्र मत करो ।' लड़की बात काटती हुई बोली–'चलो, बास्को ।'
'क्या समझे बच्चे ?' बास्को ने व्यंग्यपूर्वक कहा । अपनी नीचे खिसकती पैंट खींचकर ऊपर की और ड्राइविंग सीट पर बैठकर इंजन चालू कर दिया ।
कमलकांत ने बास्को की तरफ ध्यान नहीं दिया था । वह अपलक लड़की को देखे जा रहा था ।
'बास्को ने कार घुमाकर गेट से बाहर निकाली और शहर की ओर ले गया ।
कमलकांत वहीं खड़ा रहा । नलिनी पिंटो के व्यक्तित्व और व्यवहार के विचित्र विरोधाभास ने उसकी अपनी उन पुरानी यादों को ताजा कर दिया था जिन्हें वह भूल जाना चाहता था ।
* * * * * *
उस दिन सोमवार था । हफ्ते के बाकी दिनों में नलिनी पिंटो को अपने विचारों से दूर रखने की कोशिश में कमलकांत ने स्वयं को ज्यादा से ज्यादा काम में मसरूफ रखा था । लेकिन शनिवार की सुबह अचानक ही उसकी यह तमाम एहतियात बेकार साबित हो गई ।
एक नीली फिएट कार उसकी वर्कशॉप के सम्मुख आकर रुकी । कमलकांत उससे कोई चार–पांच गज के फासले पर ही खड़ा था । लेकिन कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे आदमी ने इतनी जोर से हॉर्न बजाया मानो कहीं दूर से किसी आदमी को बुलाना चाहता था ।
'इधर आओ ।' वह लगभग चिल्लाता हुआ–सा बोला ।
कमलकांत कार के पास पहुंचा ।
'फरमाइए ?' वह बोला ।
'मैं मेजर पिंटो के पास जाना चाहता हूं ।' कार में बैठा आदमी बोला–'बता सकते हो वह कहां रहता है ?'
कमलकांत उसे गौर से देखने पर विवश हो गया ।
उस आदमी की उम्र करीब पैतालीस वर्ष थी । औसत कद और स्वस्थ शरीर । लेकिन बहुत ज्यादा आत्मविश्वास से परिपूर्ण उसका व्यक्तित्व इतना ज्यादा आकर्षक था और वह इतना शानदार और कीमती लिबास पहने था कि कमलकांत मन ही मन उसके प्रति संदिग्ध हो गया । उसे लगा कि जैसे पहले भी कहीं उस आदमी को देखा था । लेकिन फिर उसने इसे अपना वहम समझकर दिमाग से निकाल दिया ।
'शहर से बाहर किसी टापू पर रहता है ।' उसने जवाब दिया ।
'कौन–से टापू पर ?'
'पता नहीं, शहर में पूछ लेना ।'
अजनबी मुस्कराया ।
'और शहर किधर है ?'
'थोड़ा आगे जाकर बाईं ओर जाने वाली सड़क मापूका जाती है और दाईं ओर वाली शिवोली । यहां से करीब डेढ़ मील दूर है ।'
'और टापू ?'
'शहर से गुजरकर पुल पार करने के बाद दूसरी तरफ छोटे–छोटे सात टापू हैं ।'
'तुम मेजर पिंटो को जानते हो ?'
'नहीं, मैंने सिर्फ इतना सुना है वह कोई अपाहिज आदमी है ।'
'नलिनी को तो जानते होगे ?'
अजनबी के पूछने का ढंग ऐसा था मानो उसके विचार से नलिनी को न जानना अपने आप में बड़ी भारी हिमाकत की बात थी ।
'नहीं ।' कमलकांत ने जवाब देकर पूछा–'वह कौन है ? मेजर की बीवी ?'
अजनबी ने जोरदार कहकहा लगाया ।
'नहीं, उसकी बीवी मर चुकी है ।'
'फिर वह किसकी बीवी है ?'
'मेरी ।'
अजनबी ने इंजन स्टार्ट किया और शहर की ओर चला गया ।
कमलकांत देर तक नलिनी के बारे में सोचता रहा, उसके पति से हुई मुलाकात ने उसे समझने पर मजबूर कर दिया था कि नलिनी की उस दिन की हालत की वजह काफी हद तक उसका भयभीत होना था ।
कोई दो घंटे बाद जब वही नीली फिएट वापस लौटकर सीधी पणजी की ओर जाती दिखाई दी । कमलकांत उस वक्त भी कुछ अनमना–सा था । एक बार फिर उसे ऐसा ही महसूस हुआ कि उस आदमी को पहले भी देखा था, लेकिन कहां, उसे याद नहीं आ सका ।
दोपहर बाद तक भी वह काम में मन नहीं लगा सका तो–उसने हाथ–मुँह धोकर कपड़े बदले और जॉन को बुलाया ।
'गर्मी बहुत ज्यादा है ।' वह बोला–'मैं घर जा रहा हूं । तुम वर्कशॉप बंद करके शाम को चाबियां साथ ही ले जाना ।'
करीब चौबीस वर्षीय जॉन हैड मैकेनिक था । उसने चिंतित आंखों से कमलकांत की ओर देखा ।
'लेकिन गर्मी से तो आप कभी नहीं घबराते बॉस ।' वह बोला–'बात क्या है ? आप कुछ परेशान नजर आ रहे हैं ।'
कमलकांत को यह सोचकर तनिक खीज–सी आ गई कि जॉन उसकी बेचैनी को भांप गया था ।
कोई परेशानी नहीं | क्या मुझे गर्मी में आराम करने का हक नहीं है ?'
'बिलकुल है बॉस । बराबर है ।'
कमलकांत ऑफिस से निकलकर अपनी जीप की ओर चल दिया ।
जॉन भी सकुचाता सा उसके साथ चल रहा था ।
'एतराज न हो तो एक बात बोलू बॉस ?' वह बोला ।
कमलकांत ठिठका ।
'बोलो ।'
शहर में एक अफवाह फैली हुई है ।'
कमलकांत ने उसे घूरा ।
'क्या ?'
'बास्को को तो आप जानते ही हैं कि कितना गलत आदमी है...।'
'अफवाह क्या है जॉन ?'
'बास्को का कहना है कि आपने नलिनी पिंटो को महिला कहा था ।"
कमलकांत ने असमंजसतापूर्वक उसकी ओर देखा ।
'तो क्या हुआ ?'
'दरअसल उसका मतलब था नलिनी पिंटो इस काबिल नहीं है कि उसे इस तरह सम्मानित ढंग से पुकारा जाए ।'
'ओह' कमलकांत ने कड़वाहट से कहा–'उस घिनौने आदमी को बकने दो । वह नहीं जानता सभ्यता और शिष्टाचार किसे कहते हैं ?'
'लेकिन उसने और भी बकवास की है ।'
'क्या ?'
'वह कहता है आपका नलिनी से तगड़ा इश्क चल रहा है । मैं जानता हूं, यह सब झूठ है, लेकिन...।'
कमलकांत अपनी जीप की ड्राइविंग सीट पर बैठ चुका था ।
'हां, यह सब झूठ है जॉन ।' वह बोला–'लेकिन अगर यह सच होता तब भी क्या फर्क पड़ना था ?'
'बड़ा भारी फर्क पड़ेगा बॉस ।' जॉन गम्भीरतापूर्वक बोला–आप यहां के लोगों को अच्छी तरह नहीं जानते । आप यहां नए आए हैं और अपने धंधे को पूरी तरह कामयाब बनाना चाहते हैं । आपकी अब तक की कामयाबी को देखते हुए आपके लिए ऐसा करना ज्यादा मुश्किल नहीं है । क्योंकि यहां के लोग आपको पसंद करते हैं इसलिए आप से सहयोग करते हैं । लेकिन अगर इन्हीं लोगों ने आपको नलिनी पिंटो के साथ घूमते–फिरते देख लिया तो ये सब आपका बायकाट कर देंगे । आपका स्थानीय धन्धा चौपट हो जाएगा । आपको मिलने वाला बैंक लोन, क्रेडिट पर माल मिलने वग़ैरा की तमाम सहूलियतें खत्म हो जाएंगी ।'
अनायास ही कमलकांत की मुट्ठियां भिंच गई । ढाई साल पहले भी कई बार लोगों ने इसी तरह उस पर दबाव डालकर उसे समझाने की कोशिश की थी उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए । लेकिन ऐसे किसी भी दबाव के सामने वह कभी नहीं झुका । उसने हमेशा वही किया था जो उसकी अपनी निगाहों में उचित था ।
'मैं कोई बच्चा नहीं हूं जॉन ।' वह दृढ़तापूर्वक बोला– 'मेरी उम्र तीस साल है और अपना अच्छा–बुरा समझने की पूरी तमीज मुझमें है । इसलिए मैं वही करूँगा जो मुझे अच्छा लगेगा ।' फिर तनिक रुककर मुस्कराया, 'सलाह के लिए धन्यवाद ।' तुम्हारी जानकारी के लिए बताता हूं, सुनो, मैं किसी के दबाव या धमकी में आकर झुक जाने वाला आदमी नहीं…हूं । 'खैर छोड़ो, यह बताओ उस लड़की में ऐसी क्या खराबी है जो यहां के लोग उससे इस कदर नफरत करते हैं ।'
'उसमें तमाम खराबियां हैं बॉस । करीब छह साल पहले उसकी मां का देहांत हो गया था । फिर दो साल बाद यानी अब ने चार साल पहले वह अपने अपाहिज बाप को छोड़कर यहां से भाग गई । क्योंकि मेजर की पेंशन की रकम में वह वो ऐश नहीं कर सकती थी जो करना चाहती थी ।'
'सिर्फ यही बात है ।'
'और भी दर्जनों बातें हैं बॉस ।'
"अगर हजारों बातें हों तब भी किसी खूबसूरत जवान लड़की को मैं सिर्फ इसलिए गलत करार नहीं दे सकता जॉन, क्योंकि उसने अपने अपाहिज बाप के साथ जिंदगी भर बंधे रहने के खिलाफ बगावत कर दी थी । अगर उसके बाप को सहूलियतें चाहिएं तो उस लड़की को भी अपने ढंग से एंज्वाय करने का हक है । बल्कि दूसरों के मुकाबले उसे ज्यादा हक है । क्योंकि उस जैसी लड़कियाँ पिंजरे में बन्द करके रखने के लिए नहीं होतीं ।'
जॉन कुछ नहीं बोला । बस पलकें झपकाकर रह गया ।
कमलकांत ने जीप स्टार्ट की और गेट से बाहर आकर शहर की ओर ड्राइव करने लगा ।
मरगांव की खाड़ी के किनारे पर स्थित शिवोली, मछली व्यवसाय के प्रमुख केंद्रों में से एक था । दो तरफ दलदल से घिरा होने की वजह से वहां सैलानी ज्यादा नहीं पहुंच पाते थे । दलदल इतनी खतरनाक थी कि मछुआरों के अलावा अन्य कोई वहां से गुजरने का साहस नहीं कर सकता ।
एक ही मेन रोड के दोनों ओर