एक खून और
By प्रकाश भारती
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महीने भर से लापता जवान और तलाकशुदा विजया ठाकुर की तलाश में निकले प्राइवेट डिटेक्टिव प्रशांत गौतम को पता चला...जिन तीन आदमियों ने विजया और उसके साथी राजीव मोहन की मोटल में पिटाई की थी उनमें एक पेशेवर बदमाश कनकटा था...और विजया हेरोइन एडिक्ट थी...डिटेल्स चैक करने पर राजीव मोहन फर्जी निकला...कनकटा इन दिनों अंडरवर्ल्ड के बिग बॉस रामाराव के लिए काम कर रहा था...।
प्रशांत ने यॉट क्लब जाकर विजया की माँ दौलतमंद और घमंडी कविता ठाकुर को रिपोर्ट दे दी...।
करोड़पति विधवा लोलिता राय ने जानकारी दी–नशे में धुत्त विजया को एक घटिया बार से एक दफा पुलिस पकड़कर ले गई थी...प्रशांत उस बार में पहुंचा तो विजया के दोस्त सुदेश वर्मा का पता चला–वह ड्रग एडिक्ट होने के साथ साथ पेशेवर चोर और जुआरी भी था...।
उसी रात अपने ही फ्लैट में प्रशांत की मुठभेड़ कनकटा हुयी...दोनों एक दुसरे की गोली से जख्मी हो गये...कनकटा भागने में कामयाब हो गया...।
अगले रोज प्रशांत रामाराव से मिलने पहुंचा तो पता चला कनकटा की हत्या कर दी गई थी–उसी के घर में...। उसी रोज प्रशांत को गुमनाम फोन के जरिये फंसाने की कोशिश की गई...लेकिन कोशिश करने वाला मारा गया...वह रामाराव का प्यादा रहमत बेग निकला...। प्रशांत ने बिल्ला नामक उस पुशर का पता लगाया जो विजया और सुदेश की ड्रग सप्लाई करता था...।
उसी रात यॉट क्लब में प्रशांत विजया की छोटी बहन सुरेखा से मिला...माँ की तरह घमंडी सुरेखा का चेहरा, सुदेश की फोटो देखते ही, सफ़ेद पड़ गया...लेकिन उसे पहचानती होने से साफ़ इंकार कर दिया और प्रशांत पर भड़क गई...। वही प्रशांत ने विजया के भूतपूर्व पति वीरेंद्र सोनी को, जिसके बारे में लोलिता राय ने बताया कि वह पुरुष वेश्या है, देखा तो पहली नजर में वह सुदेश वर्मा का जुड़वाँ भाई सा लगा... तभी सुरेखा की शिकायत पर कविता ठाकुर ने फोन पर प्रशांत को तगड़ी फटकार लगाते हुये क्लब से चला जाने तक को कह दिया... प्रशांत ने भी केस छोड़ने की धमकी दे दी तो ढ़ीली पड़ गई और ताजा रिपोर्ट मांगी...प्रशांत ने बता दिया बिल्ला से मिलने जाएगा उसे विजया के बारे में पता हो सकता है...प्रशांत बिल्ला से मिला...उसे डरा धमकाकर जानने में सफल हो गया विजया और सुदेश एयरपोर्ट के पास रॉक्सी मोटल में ठहरे है...।कविता ठाकुर के अहंकारी व्यवहार से कुपित प्रशांत ने जानबूझकर रात में बेवक़्त ढ़ाई बजे उसे डिस्टर्ब करने के इरादे से बता दिया–उसकी बेटी रॉक्सी मोटल में मिल सकती है...।
रॉक्सी मोटल में विजया तो प्रशांत को नहीं मिली...लेकिन सुदेश वर्मा अपनी कार में पड़ा मिला–खून से लथपथ...भेजा बाहर बिखरा था...गला एक कान से दूसरे तक चीरा हुआ...।
उसी सुबह...अपने दोस्त इंस्पैक्टर रनबीर सिंह के बुलाने पर प्रशांत रामाराव के ऑफिस वाली इमारत के सम्मुख पहुंचा...रामाराव का सिपहसालार पीटर वर्गीस मरा पड़ा था–उसका गला भी एक कान से दुसरे तक चीरा हुआ था...।
प्रशांत समझ गया हत्यारा कौन था...और क्यों एक खून और करने की कोशिश करेगा ???
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एक खून और - प्रकाश भारती
एक खून और
प्रकाश भारती
* * * * * *
Aslan-Reads.pngअसलान रीड्स
के द्वारा प्रकाशन
असलान बिजनेस सॉल्यूशंस की एक इकाई
बोरिवली, मुंबई, महाराष्ट्र, इंडिया
ईमैल: hello@aslanbiz.com; वेबसाइट: www.aslanreads.com
कॉपीराइट © 1988 प्रकाश भारती द्वारा
ISBN
इस पुस्तक की कहानियाँ काल्पनिक है। इनका किसी के जीवन या किसी पात्र से कोई
संबंध नहीं है। यह केवल मनोरंजन मात्र के लिए लिखी गई है।
अत: लेखक एवं प्रकाशक इनके लिए जिम्मेदार नहीं है।
यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि प्रकाशक की
लिखित पूर्वानुमती के बिना इसे या इसके किसी भी हिस्से को न तो पुन: प्रकाशित
किया जा सकता है और न ही किसी भी अन्य तरीके से, किसी भी रूप में
इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
* * * * * *
अंतर्वस्तु
प्रकाश भारती - एक खून और
एक खून और
* * * * * *
प्रकाश भारती - एक खून और
–'......रामाराव से कहो, मैं फौरन उससे मिलना चाहता हूं ।' प्रशांत ठोस स्वर में बोला–'तुम नहीं जानते पिछली रात मेरे फ्लैट में हुई शूटिंग के बाद पुलिस भी वहां आई थी और वे लोग तभी से यह जानने के लिए मरे जा रहे हैं कि मुझ पर गोलियां चलाने वाला कौन था । मैं अभी तक उन्हें यही बताता रहा हूं अन्धेरे में फायर करने वाले को मैं नहीं पहचान पाया । लेकिन तुमने अगर मुर्गे की डेढ़ टांग वाला अपना राग अलापना बन्द नहीं किया तो मैं उन्हें गब्बर सिंह के बारे में बता दूँगा । फिर और तो जो होगा वो होगा ही, मगर रामाराव तुम्हें नहीं बख्शेगा । वह समझने पर मजबूर हो जाएगा उसके सिपहसलाकार बने रहने की काबलियत तुममें नहीं है । तुम्हें तुम्हारी औकात बताने के लिए वह और क्या करेगा यह तो तुम्ही बेहतर जानते हो, मगर इतना तय है जिस कुर्सी पर तुम बैठे हो वो तुमसे जरूर छिन जाएगी...और बड़ी बात नहीं कि अगर तुम बाद में जिंदा रहे तो तुम्हारी बाकी ज़िंदगी किसी टुच्चे बदमाश की तरह गुजरेगी...और वो भी इस शहर में नहीं...।
(एक रोचक एवं तेज रफ्तार उपन्यास)
* * * * * *
एक खून और
'गौतम इनवेस्टिगेशन्स' के अपने आफिस में बैठा प्रशांत 'विल्सनेवी कट' के ताजा सुलगाए सिगरेट के हल्के–हल्के कश ले रहा था । उसके चेहरे पर बोरियत भरे भाव थे । इन दिनों उसके पास कोई केस नहीं था, लेकिन उसके धन्धे में यह तो चलता ही रहता था । अच्छे क्लायण्ट और दिलचस्प केस रोजरोज नहीं मिलते थे ।
बोरियत की असली वजह थी–अकेलापन । उसकी खूबसूरत और जवान सेक्रेटरी रीना पाल उसी रोज एक हफ्ते की छुट्टी लेकर अपने एक रिश्तेदार की शादी अटेण्ड करने बम्बई चली गई थी । उसकी मौजूदगी में न तो प्रशांत को हाथ में केस न होना अखरता और न ही कभी आफिस में अकेलेपन का एहसास सताता था ।
उसने अपनी रिस्टवाच पर दृष्टिपात किया ।
बारह बजने में तीन मिनट थे ।
वह सोचने लगा । आफिस में बैठे रहकर बोर होने से तो बेहतर होगा कि किसी शानदार रेस्टोरेंट में लंच लेने के बाद घर जाकर आराम से लम्बी तानकर सोया जाए ।
जहां तक उसकी गैर–मौजूदगी में किसी क्लायण्ट के आने का सवाल था । अगर उसकी ही सेवाएं आने वाले को चाहिए होंगी तो वह दोबारा भी आएगा और फोन काल आने की सूरत में आफिस की इमारत में चौबीस घण्टे उपलब्ध 'टेलीफोन आनरिंग सर्विस' सुविधा का लाभ उठाया जा सकता था । उसके निर्देश पर, उसके टेलीफोन मैसेज उसके निवास स्थान पर फोन द्वारा पास कर दिए जाने थे ।
प्रशांत ने आखिरी कश लेकर सिगरेट ऐश–ट्रे में कुचल दी और उठकर खड़ा हो गया ।
तभी दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक की आवाज़ सुनाई दी ।
–'कम इन !' वह लापरवाही से बोला ।
जवाब में, ऊँचे कद और मांसल शरीर की जिस सुन्दर स्त्री ने अन्दर प्रवेश किया । वह प्रशांत के लिए सर्वथा अपरिचित थी । कोई पैंतालीसेक–वर्षीया नजर आने वाली उस स्त्री का लिबास कीमती था और व्यक्तित्व आकर्षक ! उसकी आंखों में कुछ ऐसे भाव थे मानो आसानी से किसी पर भरोसा कर लेना उसका स्वभाव नहीं था ।
उसने सरसरी तौर पर आफिस का निरीक्षण किया, फिर उसकी निगाहें प्रशांत पर टिक गई ।
–'यू आर मिस्टर प्रशांत गौतम ?'
प्रशांत के होठों पर व्यवसाय–सुलभ मुस्कराहट पुत गई ।
–'यस मैडम !' उसने कहा और विजीटर्स के लिए पड़ी चमड़ा मढ़ी आरामदेह चेयर्स की ओर संकेत कर दिया–'तशरीफ रखिए !'
आगन्तुका तनिक हिचकिचाई । मानो, उसे डर था उन कुर्सियां पर बैठने से उसका शानदार लिबास खराब हो जाएगा । फिर वह बेमन से कुर्सी पर बैठ गई और अपना मूल्यवान हैंड–बैग गोद में रख लिया ।
–'फरमाइए !' प्रशांत ने अपनी कुर्सी पर बैठते हुए पूछा–'मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ।'
–'मेरा नाम कविता ठाकुर है ।' आगन्तुका बोली–'मेरी बेटी विजया एक महीने से ज्यादा से लापता है । मैं चाहती हूं, तुम उसका पता लगाओ ।'
प्रशांत ने नोट किया, कविता ठाकुर का लहजा सर्द और अधिकारपूर्ण था । वह काफी सम्पन्न लगती थी और इसी बात ने उसे घमण्डी भी बना दिया था ।
–'आप इस बारे में पुलिस को ट्राई कर चुकी हैं ?'
कविता ठाकुर ने एक पल के लिए यूं उसकी ओर देखा मानो उसने कोई बड़ी ही बेवकूफाना बात कह दी थी । फिर वह तनिक मुस्कराई ।
–'अगर पुलिस को ही ट्राई करना होता तो मैंने यहां नहीं आना था ।'
–'आप ठीक कहती हैं ।' प्रशांत बोला–'मैं जान सकता हूं, आपको मेरा नाम किसने रिकमण्ड किया ?'
–'लोलिताराय ने ! वह तुम्हें इस शहर का सबसे काबिल प्राइवेट डिटेक्टिव समझती है ।' कविता ने इस ढंग से कहा–जैसे उसे लोलिताराय की इस बात से इत्तफाक नहीं था ।
प्रशांत ने एक राइटिंग पैड अपनी ओर खींचा और बालपैन उठाते हुए पूछा–'आप अपनी बेटी के बारे में बताने की तकलीफ़ करेंगी, मिसेज ठाकुर ? मसलन, उसकी बैकग्राउण्ड, लापता होने की वजह, उसकी फ्रेंड्स कौन हैं, वह कहां गई हो सकती है, वगैरा ?'
कविता ठाकुर ने बताया । उसकी दो बेटियां हैं–विजया और सुरेखा ! विजया की उम्र चौबीस साल थी और सुरेखा की बाईस साल । विजया ने अट्ठारह साल की उम्र में अपनी मर्जी से शादी की थी फिर जल्दी ही अपने पति से तलाक ले लिया । वह बेहद जिद्दी किस्म की लड़की है । खूबसूरत और आकर्षक इतनी कि हजारों लड़कियों में उसे अलग छांटा जा सकता था और मर्दों के लिए इतना आकर्षण उसमें था कि अपने एक इशारे पर जिसे चाहे अपनी ओर आकर्षित कर सकती थी ।
ये तमाम बात उसने बड़े ही धैर्यपूर्वक यूं बताई थीं मानो क्लास टीचर अपने किसी कुन्दजेहन स्टूडेंट को मुश्किल सवाल समझा रहा था ।
प्रशांत नोट करता रहा ।
–'उसने जवान होते ही अपना पहला साथी चुनने में जो बेवकूफी दिखायी ।' अन्त में वह बोली–'उससे कितनी परेशानी और दुःख हमें हुआ । यह सिर्फ हम ही जानते हैं ।'
प्रशांत ने हमदर्दी जताने की कोशिश नहीं की । दौलतमन्द मां–बाप के विभिन्न कारणों से, जिनमें मुख्य कारण मां–बाप खुद होते हैं, बिगड़ी हुई औलाद आए दिन हरकतें करती ही रहती हैं । बहुत मुमकिन था कि विजया भी ऐसी ही रही हो ।
–'विजया ने जिससे शादी की थी । उसने पूछा–'वह कौन था ?'
कविता ठाकुर के चेहरे पर अरुचिपूर्ण भाव उत्पन्न हो गए ।
–'मैं नहीं समझती छः साल पुराने इस किस्से का अब...!'
–'मेरे लिए ज्यादा–से–ज्यादा जानना जरूरी है, मिसेज ठाकुर ।'
–'ऑल राइट !' वह गहरी सांस लेकर बोली–'उसका नाम वीरेन्द्र कुमार सोनी है । पढ़ा–लिखा है, हैंडसम है और औरतों को अपनी ओर आकर्षित करने की खास खूबी उसमें है । विजया से उसकी मुलाकात याट क्लब में हुई थी । वहाँ रागिनी विश्वास के गैस्ट की हैसियत से वह आया था ।' सहसा उसके स्वर में कड़वाहट का पुट आ गया–'विजया देखते ही उसे प्यार करने का पागलपन कर बैठी और इस तरह खुद को उसके जाल में फंसा दिया । उसके साथ भाग गई । दोनों ने कोर्ट मरीज़ कर ली । मगर तीन महीने बाद ही तलाक की नौबत आ गई ।'
–'क्यों ?'
–'इसलिए कि वीरेन्द्र बढ़िया खाने–पहनने, अपनी कार में घूमने और होटलों में ऐश करने के अलावा कुछ और न तो वह करता था और न ही करना चाहता था । वह विजया को छोड़कर वापस रागिनी के पास लौट गया ।'
–'फिर क्या हुआ ?'
–'विजया और वीरेन्द्र की शादीशुदा जिन्दगी वहीं खत्म हो गई । वीरेन्द्र बिल्कुल निकम्मा किस्म का आदमी है, जबकि विजया सुन्दर, शिक्षित और होशियार लड़की है । वीरेन्द्र के साथ उसकी शादी को बेवकूफी के साथ–साथ उसकी बदकिस्मती भी कहा जाएगा ।' कविता ठाकुर ने कहा–'फिर गहरी सांस लेकर बोली–'वीरेन्द्र के बारे में तुम्हें यह सब मैने सिर्फ इसलिए बताया है, क्योंकि मैंने सुना है, करीब साल भर पहले विजया और वह फिर से एक–दूसरे के बेहद करीब आ गए हैं । इस सिलसिले में एक और अजीब बात यह है तलाक लेने के बाद भी उन दोनों में दोस्ती रही है ।' अचानक उसके स्वर में कड़वाहट आ गई...मेरी बेटी विजया हाल ही में नेपाल की सैर करके लौटी है, लेकिन मुझसे आकर वह मिली तक नहीं । हां इतना जरूर किया किशनगंज के एक होटल से उसने चिट्ठी लिखकर मुझे इत्तिला दे दी कि उसकी सैर मजेदार रही थी । यह ठीक है वह शुरू से ही मनमौजी और आजाद ख्यालात वाली रही है । जिन्दगी को जीने का उसका अपना अलग ढंग रहा है । यही वजह है उसके साथ मेरे सम्बन्ध इतने अच्छे कभी नहीं रहे जितने अपनी दूसरी बेटी सुरेखा के साथ हैं, लेकिन, इन तमाम बातों के बावजूद वह भी है तो मेरी बेटी ! हम दोनों के बीच चाहे कितनी भी नाइत्तफाकियां रहीं, लेकिन वह हमेशा लौटकर मेरे पास घर आती रही । शायद मां होने के नाते अपनी गैर–जिम्मेदार बेटी के लिए यह मेरी फिक्रमन्दी ही थी कि नेपाल से लौटने के बाद जब वह मेरे पास नहीं आई तो मुझे लगा कोई गड़बड़ है । मैंने उस मोटल में फोन किया तो पता चला वह वहां नहीं थी । मेरा शक यकीन में बदलने लगा । इसलिए मैं वहाँ जा पहुंची । मोटल के मालिक ईश्वर सरन से बातें की । मेरे बताने से तो उसे विजया के बारे में याद नहीं आ सका, लेकिन जब मैंने विजया की फोटो दिखाई तो वह पहचान गया । उसने बताया विजया एक आदमी के साथ वहां रही थी । वे दोनों मिस्टर एण्ड मिसेज राजीव के नाम से ठहरे थे ।
–'इसका मतलब विजया ने फिर शादी कर ली है ?' प्रशांत ने पूछा ।
कविता ने गरदन झुका ली ।
–'मैं ऐसा नहीं समझती ।'
–'क्यों ? उसकी उम्र चौबीस साल है इस लिहाज से क़ानूनन वह अपनी मर्जी से शादी करने के लिए आजाद है । बकौल आपके भी, वह जिन्दगी को अपने ढंग से जीने में यकीन रखती है । इसलिए हो सकता है, उसने शादी कर ली हो और उसकी आपके पास न लौटने की वजह यही हो...।'
–'उसने शादी नहीं की है ।' कविता ठाकुर उसकी बात काटकर ठोस स्वर में बोली–
–'यह आप यकीनी तौर पर कैसे कह सकती हैं ?'
–'इसलिए कि वीरेन्द्र' के साथ उसकी कहानी खत्म हो जाने के बाद मैंने उससे साफ–साफ कह दिया था अगर उसने दोबारा कभी मेरी मर्जी के खिलाफ शादी का चक्कर चलाया तो 'ठाकुर एस्टेट' में उसके हिस्से से उसे पूरी तरह बेदखल कर दिया जाएगा । हिस्से के नाम पर फूटी कौड़ी भी उसे नहीं मिलेगी ।' कविता ठाकुर ने जवाब दिया । उसका लहजा प्रभावपूर्ण था–'शायद तुम समझ रहे हो मां होते हुए भी अपनी जवान बेटी के सामने इतनी कड़ी शर्त रखकर मैंने उसके साथ ज़्यादती की है, लेकिन इस असलियत को भी सिर्फ मैं ही जानती हूँ वीरेन्द्र के साथ शादी करके उसने अपनी जिन्दगी तबाह कर ली थी । वो एक खौफनाक जंजाल था जिसमें वह खुद को फंसा बैठी थी । उसका स्वर पीड़ित हो गया–'शादी के दो हफ्ते बाद वह मेरे पास आई तो उसने बताया कि वह दो महीने से प्रिगनेंट थी, लेकिन उस बच्चे को जन्म वह नहीं दे सकी । उसका गर्भपात हो गया था । उसने यूं सिर हिलाया मानो वो तमाम वाक़या इतना नफरतअंगेज था कि उसे याद करते ही उसके जिस्म से तेज सर्द लहर गुजर गई थी । फिर उसने शीघ्र ही स्वयं को पुनः संयत कर लिया–'जब मैं ईश्वर सरन से मिली, उसने बताया एक रात तीन आदमी कार में आए और राजीव मोहन की बड़ी बेरहमी के साथ पिटाई कर डाली । विजया ने बचाने की कोशिश की तो उसे भी कई हाथ जमा दिए गए । जिसकी वजह से उसकी एक आँख सूज गई थी । इस सारे हंगामे के कारण पुलिस बुलाई गई । लेकिन राजीव मोहन और विजया ने साफ इन्कार कर दिया उनके केबिन में जो तीन आदमी जबरन घुस आए थे न तो वे उन्हें जानते थे और न ही इसकी कोई वजह उन्हें मालूम थी कि उन आदमियों ने उनके साथ मार–पिटाई क्यों की । यह जानने के बाद मैं बेहद परेशान हो गई । इसका मेरे विचार से, सिर्फ एक ही मतलब है–'विजया ने खुद को किसी मुसीबत में फँसा लिया है ।'
प्रशांत के चेहरे पर विचारपूर्ण भाव थे ।
–'मिसेज ठाकुर !' वह बोला–'मैं आपकी बेटी को ढूंढने की कोशिश करुंगा, लेकिन अगर वह मिल जाती है तो भी, आपने उसके बारे में जो बताया है, उसके आधार पर ऐसी गारंटी नहीं की जा सकती कि वह आपके पास लौट ही आएगी ।'
कविता ठाकुर ने भौंहें चढ़ाकर उसे घूरा ।
–'मैं तुम्हारे पास कोई गारंटी लेने नहीं आई हूँ ।'
–'आप साफ–साफ बताइए !' प्रशांत ने धैर्यपूर्वक पूछा–'मुझसे क्या करवाना चाहती हैं ?'
–'तुम सिर्फ विजया का पता लगाओ । बाकी जो करना है मैं खुद ही कर लूंगी ।'
–'आप क्या करेंगी ?'
–'मैं उस बेवकूफ़ और जिद्दी लड़की को एक बार फिर समझाने की कोशिश करूंगी ।' कविता ठाकुर ने जवाब दिया, फिर तनिक रुककर पूछा–'ठाकुर करन सिंह का नाम सुना है तुमने ?'
प्रशांत को यह नाम अपरिचित लगा । उसने इन्कार कर दिया ।
–'नहीं ।'
प्रशांत की इस अज्ञानता पर वह खीज गई सी नजर आने लगी ।
–'वह भूतपूर्व जागीरदार और खानदानी रईस थे ।' वह बोली–'चार साल पहले कार एक्सीडेंट में उनका देहांत हो चुका हैं ।'
प्रशांत को फौरन याद आ गया । जागीरदार ठाकुर करन सिंह का नाम अपने समय की शहर की मशहूर हस्तियों में शुमार होता था और इसकी वजह उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि अथवा दौलतमन्द होना न होकर उनका रंगीन मिज़ाज और एय्याश तबीयत होना थी ।
–'अच्छा, आप जागीरदार साहब की पत्नी हैं ?' वह बोला–
कविता ठाकुर के चेहरे पर खीज भरे भाव गहरे हो गए । वजह साफ थी–प्रशांत के स्वर से प्रशंसा करने या प्रभावित होने का जरा भी आभास उसे नहीं मिला था और ऐसा व्यवहार किए जाने की अभ्यस्त वह नहीं थी । उसके सर्कल में सम्भवतया सभी उसे झुक–झुककर सलाम किया करते थे । शायद इसीलिए वह खुद पसन्द और दौलतमन्द औरत प्रत्येक व्यक्ति से वैसे ही व्यवहार की अपेक्षा करती थी ।
–'मेरे पति कई करोड़ की चल–अचल सम्पत्ति छोड़ गए थे ।' वह शुष्क स्वर में बोली–'इस वक्त उसकी मालिक मैं हूँ और मेरे बाद मेरी दोनों बेटियां वारिस होंगी और जब दौलत के साथ–साथ मामला जवान और ख़ूबसूरत लड़कियों का होता है तो बहुत–से लालची, ख़ुदग़र्ज़, ठग, ब्लैकमेलर वगैरा गलत किस्म के लोग ऐसे मामले में दिलचस्पी लेने लगते हैं और कई बार अंजाम बड़ा ही खतरनाक होता है । वह पूर्णतया गम्भीर थी–'यही वजह है मैं विजया के लिए बेहद फिक्रमन्द हूं और मैं चाहती हूं