Ye Galiyare
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Grocho Marx, who was an American comedian writer and singer, has once said that learn from the mistakes of others. You will never live long enough to make all the mistakes yourself. This book These corridors penned down by Author Sudha Sikrawar is about the expe
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Book preview
Ye Galiyare - Sudha Sikrawar
पहला पत्र
(उम्र तो एकअंक है)
ऐज इस ए नोम्बोर (AGE IS A NOMBORE ( Number)
मेरे प्रिय पापा
नमस्ते
कैसे हैं आप ? आज मुझे आपकी बहुत ही याद आयी | और आपसे ज्यादा आपके द्वारा लिखे गए उन पत्रों की | जब मैं घर से बहुत दूर छात्रावास में थी, हर हफ्ते आपके पत्र आते थे| दरअसल वह केवल पत्र मात्र नहीं थे| बल्कि छोटी छोटी बातों और घटनाओं से भरे जिंदगी का पाठ थे| मुझसे ज्यादा मेरी सहेलियों को आपके पत्रों का इंतज़ार रहता था | मेरे पढ़ने से पहले मेरी सहेलियाँ आपके पत्र पढ़ लेती थीं | दरअसल वो पत्र नहीं समाचार पत्र होते थे | साप्तहिक समाचार पत्र | घर की बातों से लेकर समाज की सभी बाते, चौराहे पर पान की दुकान पर आपके मित्र मण्डली की चर्चा,हमारे खेतों में शेरों का आ जाना आदि आदि ऐसी बहुत सारी बातें | आज शेर किस के घर में आ गया| उसने गाय को खा लिया, उसने आज एक आदमी को खा लिया है,अब वह जानवरों की बजाय इंसानों को खाने लगा है, वह अब एक आदमखोर शेर हो गया है| लेकिन खेतों में काम करने वाली एक मजदूरन के बच्चे को जब शेर ने मुँह में रखा, तब उस मजदूर महिला ने गड़ासे से शेर को मार दिया | जिस शेर को बडे से बडा शिकारी नहीं मार सका उसको एक साधारण सी मजदूर महिला ने मार दिया, ये थी एक माँ की ममता की ताकत | इन्ही तरह की बातों से आपका पत्र भरा रहता था, अगर वह एक अन्तर्देशीय पत्र होता तो बाहर तक लिखा होता और अगर एक लिफाफा होता तो कम से कम दस पेज का होता | और मैं इतना लम्बा पत्र पढ़कर बहुत झुंझलाती थी कि क्या जरुरत थी ये सब लिखने की, बस घर का हाल चाल लिखते |
आपसे बहुत नाराज भी होती मैं, क्योँकि मेरी सभी दोस्त बहुत ही मजाक बनातीं और कहतीं कि आ गया वेदिका के पापा का समाचार पत्र | परन्तु साथ ही वह यह भी कहतीं कि कुछ भी हो अंकल के पत्र पढ़कर सामान्य ज्ञान तो बढ़ता है, फिर भी मैं आपसे बहुत नाराज होती और आपको जवाब में केवल दो लाइन का पत्र लिखती कि मैं यहाँ पर ठीक से हूँ आशा करती हूँ कि आप भी सपरिवार कुशल से होंगे|
बाकी सब ठीक है, शेष अगले पत्र में|
आपकी बेटी वेदिका
आज भी मैं आपके उन पत्रों को याद करती हूँ | वो मेरी स्मृतियों में ऐसे बसे हुए हैं जैसे कल की ही बात हो | आज सोचती हूँ आपके वह पत्र मेरे लिए मात्र लाइन नहीं थीं, बल्कि सामजिक शिक्षा का पाठ ही थीं | जीवन का पाठ थीं, एक सन्देश था उन पत्रों में | आप मुझे बड़े ही प्यार से समझाया करते थे कि समाज में और तुम्हारे इर्द गिर्द क्या घटित हो रहा है, तुम्हे पता होना चाहिए | हमारे देश के नेता क्या कर रहे हैं, हमारे पडोसी देश हमारे देश के प्रति कैसी सोच रखते हैं, ये सब ऐसी बातें थीं जो आपके विचार से प्रत्येक नागरिक को जानना जरुरी है | जीवन में किसी भी घटना का सामना करने के लिए कई बार बहुत सी घटनाओं का जानना बहुत जरुरी है, ये आप मुझे हमेशा समझाया करते थे अपने उन्ही बड़े लम्बे चौड़े पत्रों के माध्यम से |
आपको हमेशा मुझसे ये शिकायत रहती थी कि मैं आपको बहुत ही संक्षिप्त जवाब देती हूँ| लेकिन आज आप मेरे पत्रों को पढ़ते पढ़ते थक जाएँगे फिर भी शायद मैं आपको पूरी गाथा नहीं लिख पाऊँगी क्योंकि ये अंतहीन है| आज इंस्टाग्राम, फेसबुक, ईमेल और व्हाट्सप्प का जमाना है, ये ऐसे प्लेटफार्म हैं जहाँ पर हर आदमी अपनी अपनी ढोलक बजा रहा है | कोई नाच रहा है तो कोई गा रहा है तो कोई अपने ही कपडे उतार रहा है | सुबह होते ही भगवान के नहीं पहले हम सभी लोग मोबाइल के दर्शन करते हैं | हर एक सर्विकल की समस्या से जूझ रहा है | अब बी पी और शुगर जैसी बीमारियां जो कि आपके समय में बहुत बड़ी बीमारी थी, सामान्य बीमारियों में शामिल हो गयी हैं| अब या तो सीधे सीधे किसी को दिल का दौरा पड़ता है या उसको लकवा मार जाता है |
बड़ी बड़ी विदेशी कम्पनी आ गयी हैं जो अपना ब्रांड बेच रही हैं और हम मूर्खों की भांति उन्हें खरीदते हैं और बड़े ही खुश होते हैं कि हमने ब्रांडेड कपडे पहने हुए हैं | वो होली दीवाली ईद पर नए कपडे खरीदना और फिर दर्जियों से सिलवाना, उसके बाद उत्सुकता से उनका इंतज़ार करना और फिर पहन कर उनकी फिटिंग देखना और फिर बहुत खुश हो जाना, सब खो गया है इन ब्रांडेड कम्पनी के बाजार में | आज हम हर रोज कपडे खरीदते हैं, फिटिंग का कोई चक्कर नहीं रह गया है, आड़े- तिरछे टेढ़े- मेढ़े कन्धों से नीचे गिरते हुए सब फैशन बन गए हैं | अब हम घरों में कपडे के कूड़े का ढेर इकट्ठा कर रहे हैं | मैं भी शामिल हूँ इन सबमे |
पहले लोग अपने घरों में छोटा मोटा काम करके गुजारा कर लेते थे| और गुजारा बड़ी ही आसानी से हो भी जाता था क्योंकि जरूरतें बहुत कम थीं, ये फैशन का प्रचलन नहीं था | अब तो सभी लोग बाहर जा कर पैसा कमाते हैं, नगर से बाहर नहीं पापा देश से बाहर, कोई कनाडा तो कोई इंग्लैंड तो कोई अमेरिका जा रहा है | हमारे देश का उच्च अभिजात्य वर्ग भी दूसरे देश में नौकरी कर रहा है | क्योंकि विदेशों में पैसा बहुत ज्यादा है, लोग वहीँ जाकर बस गए हैं और यहाँ रह गए हैं बूढ़े माँ बाप जिनके लिए हमारे भारत जैसे देश में वृद्ध आश्रम खोले जा रहे हैं |
भारत के बड़े बड़े महनगरों में अकेले रहने वाले बुजर्गों का क़त्ल हो जाता है| या वो जब बीमारी से मरते हैं या एक उम्र पूरी करने के बाद जब वह इस दुनिया से जाते हैं तो उनको अंतिम विदा पडोसी देते हैं बेटा विदेश में बैठा वीडियो कॉल करके अंतिम विदा देता है, क्योंकि उनके पास समय नहीं है, टिकट भी महंगी है कौन पैसा खर्च करे फालतू में? मर तो गए ही हैं, हमारे आने से क्या वे वापस आ जाएंगे, ये विदेश में बसे बेटों की दलीलें होती हैं |
मौत का भी बटवारा होता है अब यहाँ पर पापा | एक बुजुर्ग महिला की मृत्यु हो गयी उनके दो बेटे थे, दोनों अमेरिका में रहते थे, छोटा बेटा अपनी माँ की मृत्यु पर पहुंच गया और उसने वीडियो कॉल करके बड़े बेटे को माँ के अंतिम दर्शन करवाए | बड़े बेटे ने वीडियो कॉल पर ही कहा तेरा बहुत खर्चा हो गया है, जब पापा मरेंगे तो मैं आ जाऊँगा, खर्चा बराबर हो जाएगा | उन्होंने यह नहीं सोचा कि वह अब अकेले इतने बड़े घर में कैसे रहेंगे? पिता ने यह बात सुन ली और अंदर गए खुद को गोली मार ली ताकि उनके बेटों का खर्चा बच जाए और उनका भी अंतिम संस्कार अपने इस बेटे के द्वारा ही हो जाए |
विदेशी, भारत के परिवारों से एक साथ रहने की कला को सीख रहे हैं, इस पर वे लोग शोध करने के लिए भारत आते हैं लेकिन हम क्या कर रहे हैं? हम लोग विदेशियों की नक़ल कर रहे हैं और विदेशी हमारी भारतीय सभ्यता पर रिसर्च कर रहे हैं | वो भारतीय सभ्यता जो कि लगभग हम खो चुके हैं |
आप भी सोच रहे होंगे कि मुख्य मुद्दे की बात मैं क्यों नहीं लिख रही हूँ? लेकिन ये भी मैंने आपसे ही सीखा है, आप ही तो कहा करते थे कि अगर मुख्य मुद्दा मैंने पहले सुना दिया या बता दिया तो तुम लोग मेरी छोटी छोटी बातों को बिलकुल भी नहीं सुनोगे | और यह छोटी छोटी बातें जिनको हम नज़रअंदाज़ कर देते हैं अहम् मुद्दे बन जाते हैं और जीवन में तूफ़ान भी ले आते हैं |
ऐसा ही एक तूफ़ान मेरे जीवन में भी आया जिसने सारी जगह खाली कर दी और भर दिया मेरे जीवन में एक सूनापन |
आपके समय में चिट्ठी, खत पत्र या टेलीग्राम होते थे| ये पत्र पोस्ट ऑफिस के जरिये एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचते थे | लेकिन उनको खोल कर कोई भी नहीं पढता था | केवल वही व्यक्ति पढ़ सकता था जिसका उस पर नाम लिखा होता था | लेकिन अब कोई भी पत्र नहीं लिखता, इ- मेल का जमाना आ गया है | इ-मेल मतलब इलेक्ट्रॉनिक मेल या खत और इन इ-मेल को कोई भी आसानी से चोरी करके पढ़ सकता है इसको अंग्रेजी में हैक करना कहते हैं | कुछ भी व्यक्तिगत नहीं रह गया है सब कुछ अब सार्वजानिक है