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आम बात
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Ebook91 pages48 minutes

आम बात

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ज़िन्दगी के न बनो, ज़िन्दगी को ही अपना बना लो इस कदर, कि जब मौत आए तो ज़िंदगी खुद जाने से मना कर दे........!!!


प्यार को इस कद्र बसा लो रगो में अपनी की जब नफरत भी दर खटखटाए तो मोहब्बत सीख जाए.......!!!


धर्मों में नहीं, धर्मत्माओं में नहीं, कुलो में नहीं, सभ्यताओं में नहीं, ढूंढ़ना ही है मुझे तो बस कुछ इंसानों में ढूंढ लेना....!!!

Languageहिन्दी
PublisherPencil
Release dateApr 6, 2021
ISBN9789354386299
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    आम बात - मानसी जैन (मानचित्र)

    आम बात

    BY

    मानसी जैन (मानचित्र)


    pencil-logo

    ISBN 9789354386299

    © मानसी जैन (मानचित्र) 2020

    Published in India 2020 by Pencil

    A brand of

    One Point Six Technologies Pvt. Ltd.

    123, Building J2, Shram Seva Premises,

    Wadala Truck Terminal, Wadala (E)

    Mumbai 400037, Maharashtra, INDIA

    E connect@thepencilapp.com

    W www.thepencilapp.com

    All rights reserved worldwide

    No part of this publication may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or transmitted, in any form, or by any means (electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise), without the prior written permission of the Publisher. Any person who commits an unauthorized act in relation to this publication can be liable to criminal prosecution and civil claims for damages.

    DISCLAIMER: The opinions expressed in this book are those of the authors and do not purport to reflect the views of the Publisher.

    Author biography

    जयपुर में पली बड़ी मानसी जैन को   अपने इर्द -गिर्द चल रहे सामाजिक मुद्दों ने आकर्षित किया और छोटी उम्र   में ही लिखना शुरू कर दिया।    समाज में जो चीजें विचलित करती हैं - आकर्षित करती हैं उन्हें देखते ही एक नई कविता तुरंत एक नए पैन पर जन्म लेती है।

    मेरे

    बारे में कुछ मेरे ही लफ़्ज़ों में -

    धर्मों में नहीं , धर्मात्माओं में नहीं ,

    मुझमे नहीं- तुझमें नहीं ,

    कुलों में नहीं , सभ्यताओं में नहीं ,

    ढूंढना है मुझे , तो कुछ इंसानों में ढूँढ लेना बस

    अपनी सिर्फ यही पहचान दे सकती हूँ और यही पहचान सदा बनी रहे ये ही कामना और प्रार्थना भी करती हूँ क्यूंकि आज के दौर में इंसान बनना और बने रहना ही मुझे लगता है बड़ी पहचान है।   मेरा काम चुनने के लिए आपका धन्यवाद।   आपको मेरा काम कैसा लगा - बताइयेगा जरूर।

    Contents

    एक सच - एक सीख

    आखिर क्यों

    उलझन

    दोस्त

    ज़िन्दगी

    आज - कल

    आज बाजार बिल्कुल सूना है

    हिंदी

    एक राजा

    क्यूंकि माँ से किसी की बात नहीं हो पाती है

    फुर्सत

    कश्मकश

    एक अस्त्र

    प्रशंसा

    अंत

    Epigraph

    ज़िन्दगी के न बनो ,

    ज़िन्दगी को ही अपना बना लो इस कदर ,

    कि जब मौत आए तो ज़िंदगी खुद जाने से मना कर दे........!!!

    प्यार को इस कद्र बसा लो रगो में अपनी

    की जब नफरत भी दर खटखटाए तो मोहब्बत सीख जाए.......!!!

    एक सच - एक सीख

    आज दुनिया में कितना कुछ चल रहा है |  हम हमारे आस पास देखते हैं तो बहुत कुछ गलत होता दिखता है | हम सोचते हैं बोले क्यों - हमारे बोलने से क्या कुछ बदल जायेगा - हमारे कहने भर से क्या वो संविधान का अमिट कानून बन जायेगा या फिर हमें   सरकार बनानी है |  मुझे लगता है ये सोचना सही भी है - आखिर एक आम आदमी भला कोई झंझट चाहता ही कहाँ   हैँ | हमें तो हमारे सादा व्यवहार और उच्च विचार की सोच के हिसाब से रहना आता है | न किसी से लड़ाई झगड़ा करना आता है , न ही किसी को परेशान करना - पर फिर भी   हमें ही क्यों ये लगता है की हम ही हैं जो बदलाव ला सकते हैं  - ये दुनिया भर की लड़ाइयों को खत्म करके एक नया जहां बसा सकते हैं - जहाँ सिर्फ अमन , शान्ति और चैन हो |

    ऐसा इसीलिए है क्यूंकि हम कही न कही जानते हैं की है ये हम ही हैं जो कर सकते हैं - हम ही वो हैं जो ये करते आये हैं और हम ही वो हैं जो ये करते रहेंगे |  इसीलिए जब अपने बच्चों की परवरिश की बात आती है तो हम उन्हें सिर्फ अच्छाई     और सच्चाई   ही सिखाते हैं | हम जानते हैं अपने इतिहास को और हर रोज सीखते हैं उससे और हर रोज़ कुछ नया करना भी चाहते हैं |

    एक साधारण व्यक्ति होने के नाते एक ऐसे असाधारण व्यक्तित्व से शुरुआत कर रही हूँ , जो साधारण दिखते थे पर उनके हर काम समाज को , राष्ट्र को और यहाँ तक ही नहीं - पूरी दुनिया को एक

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