कुछ रंग, इज़हार..., इन्कार..., इन्तज़ार के...!
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Book preview
कुछ रंग, इज़हार..., इन्कार..., इन्तज़ार के...! - Surjeet Kumar
आभार
सर्वप्रथम, मैं परमपिता परमेश्वर का आभार प्रकट करता हूँ , जो मुझे सहजता और रचनात्मकता के साथ लिखने के लिए प्रेरित करते है। मैं इस पुस्तक के सम्पूर्ण होने की कल्पना माता-पिता के आशीर्वाद और अजीत के साथ के बिना नहीं कर सकता। मै अपने छात्र हर्ष कपूर का बहुत-बहुत आभारी हूँ, जिसने पुस्तक के कवर (Cover) को बनाने में बहुत साथ दिया। मैं अपने सभी शिक्षक गणों, मित्रों, शुभ चिंतको, आलोचको का आभार प्रकट करता हूँ जिनकी प्रतिक्रियाएं मुझे और अधिक लिखने के लिए विषय देती है। अपने पाठकों और छात्रों का आभार व्यक्त करना, मैं कैसे भूल सकता हूँ, जिनके सुझाव मेरे लेखन मे ईंधन के रूप में कार्य करते है।
01.
कमाल के शख़्स
हम कहे... मान जाओ,
वो माने नहीं...पर मना गये
हम कहे...संभल जाओ,
वो संभले नहीं... पर संभाल गये
हम कहे...आ जाओ,
वो आए नहीं... पर बुला गये
हम कहे...जीत जाओ,
वो जीते नहीं…पर जीता गये
हम कहे... छुप जाओ,
वो छुपे नहीं... पर कुछ छुपा गये
कमाल के शख़्स थे वो..:
जो हमारी हर बात काट कर भी...
इस दिल में.... जगह बना गये ।
02.
पता नही इश्क़ क्या है मगर
एक समुन्दर बसा है, उनकी आँखों मे,
हम गोता लगाना चाहते है,
डूब जाए या फिर पार लगे,
पानी मे उतरना चाहते है ।
पहेलियाँ उलझी है, उनकी बातों मे,
हम सब सुलझाना चाहते है,
अकेली-अकेली चलती है वो,
हम दो कदम साथ बढ़ाना चाहते है ।
दर्द छुपा है, उनकी ख़ामोशी मे,
हम चुप्पी मिटाना चाहते है,
दबी-दबी सी हॅंसी है