फलक तलक: दि गॉड इज़ डेड
By Afzal Razvi
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About this ebook
क्या हो जब कोई सात साल का बच्चा एक पुलिस वाले की गन उसी पुलिस वाले पर तान कर कहे ," कपड़ा क्यो खोल रहा था ...माधर....." ,
क्या हो जब एक फिल्मी लेखक दस मिनट मे किसी सिरियल के छतीस सीन लिख दे , और बॉलीवूड के दिग्गज लोग उसके तेज़ रायटर होने पर गर्व न करें , बल्कि उसके खिलाफ एक खूनी साजिश करने लगे ।
क्या हो जब कोई घर लौटना चाहे और घर लौट ना पाये ।
क्या हो जब कोई कहानी , हर पन्ने पर एक नया रहस्य छोड़ जाये और जब तक वो रहस्य आप समझो एक और नया रहस्य आपके सामने आ जाये ।
रहस्य , रोमांच , रोमांस , एक्शन और जज़बातो से भरे हुये पन्नो की किताब , जिन पन्नो पर शब्दो मे कहीं आँसू , कहीं मुस्कान , कहीं प्यार तो कहीं नफरत , और कहीं खून के छींटे नज़र आएंगे । आप पढ़ोगे पन्ने , और पन्नो पर दिखाई देंगी कहानी फ़लक तलक की । आप पढ़ोगे तो देखोगे । किरदार दिखाई देंगे । उनका गुस्सा , उनका प्यार , आपको दिखाई देगा ।
अफजल रज़वी की पहली नावेल , जिसे पढ़कर दिल कभी मुस्कुरा दे तो आंखे कभी नम हो जाएँ और दिमाग ....बस घूम जाये ।
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फलक तलक - Afzal Razvi
फ़लक
तलक
अफ़ज़ल रज़वी
Copyright © 2020 Afzal razvi
All rights reserved.
ISBN:
DEDICATION
ये किताब मै अपने पिता मरहूम खुर्शीद अनवर शेख को डेडिकेट करता हुँ।
जैसे सब अपनी माँ को चाहते हैं , वैसे ही मैं भी अपनी माँ
शेख फातिमा से बहोत प्यार करता हु ।
मेरी ज़िंदगी का एक स्पेशल हिस्सा मेरी पत्नी यासमीन है ।
स्टोरीबाज़ चाहे जितना दूर हो , कहानिया आस पास होती हैं ।
परिचय
ये हेडलाइन सबसे मुश्किल चैप्टर होता है। खासकर उनके लिए जो फ्रेशर होते हैँ। जिनका परिचय कुछ होता ही नहीं, वो अपने बारे मे क्या लिखेंगे, क्योंकि यदि मेरी कोई पहचान होती तो मै भी कह सकता था, मेरा नाम अफ़ज़ल रज़वी है... नाम तो सुना होगा... सॉरी नाम तो पढ़ा होगा। खैर, मेरा परिचय ये है कि किताबों की दुनिया मे एक दम नया हुँ, और विश्वास कीजिये नया हुँ, इसलिए कुछ नया लेके आया हुँ । राइटिंग मे नया नहीं हुँ, कुछ डेली सोप सीरियल्स, क्राइम शोज और वेबसिरीज़ भी बॉलीवुड के लिए लिखे । किताबें भी लिखता था, बस उन्हें पूरा नहीं कर पाता था। अब, जब थोड़ा खुद को लेकर सीरियस हुआ हुँ , तो आपके सामने हाजिर हुआ हुँ।
मुंबई मे पैदा हुआ, पला बढ़ा। ZIMA से स्क्रीन राइटिंग का कोर्स किया। मुंबई बोर्ड से सिर्फ हायर सेकेंडरी की पढ़ाई पूरी किया। बचपन से ही स्कूल वगैरह से चिढ थी, फिर भी पढ़ लिया और जो पढ़ा वही आज काम आ रहा है । नावेल लिखने का जूनून क्यों आया, इसका कारण मेरे पिताजी हैँ । जो अब दुनिया मे नहीं हैँ, वो कुछ लिखा करते थे, लेकिन कोई खास इनकम ना होने के कारण उनकी किताबें बक्से मे बंद रह गयी, और एक समय ऐसा आया कि बची खुची उनकी कहानीयाँ चूहें खा गए। कुछ पन्ने बचे थे , उसे 26 जुलाई ने निगल लिया।
खैर , मेरी इस पहली किताब को मै amazon के ज़रिये आप लोगो के सामने ebook और paperback फॉर्मेट मे ला रहा हूँ । मुझे भी फिलहाल ऐसी कोई बैकिंग नहीं है कि, मै किसी बड़े पब्लिकेशन से इस किताब को मार्किट मे उतार दूं और फिर आथर बाज़ी मे धुआँदार बैटिंग कर सकूँ। सिर्फ आपलोगो के भरोसे तीन महीने की मेहनत जो इस स्क्रिप्ट मे लगी है, उसे ले आया हूँ । इस बुक को कम्पलीट करने मे सिर्फ मेरी मेहनत नहीं, बल्कि कुछ और लोग भी हैँ, जिन्होने मुझे झेला और मेरा साथ दिया। मेरी माँ, जो सिर्फ दुआएं देती है । मेरी पत्नी यास्मीन जो अक्सर कहती है, किताब पूरी करो।
मेरे कुछ सीनियर, हीरदेश कांबले ( बॉलीवुड डायरेक्टर ), राज सहगल (बॉलीवुड डायरेक्टर ) दीप शर्मा (बॉलीवुड डायरेक्टर प्रोडूसर ) संतोष तामड़ा ( बॉलीवुड प्रोडूसर ) और समीर सलीम खान ( बॉलीवुड डायरेक्टर ) ये लोग मेरे लिए एक मोटिवेशन की बैटरी है, एक्चुअली ये लोग मेरी राइटिंग स्कील की तारीफ कर करके मुझे बिगाड़े हैँ। कितना बिगड़ा हुआ राइटर हुँ, ये आप बताएँगे। राइटर तो हुँ, मुझे आथर आप बनाएंगे। और हाँ, मेरे कुछ दोस्त जो मुझे हमेशा दिल से सपोर्ट करते हैँ.. रफ़ी खान ( बॉलीवुड एक्टर ) जो दोस्त भी हैँ और मुझे अपना भाई मानते है। ज़िन्दगी के उतार चढाव मे साथ देते हैँ, स्क्रिप्ट पर घंटो डिसकस करके अपना फीडबैक देते हैँ। और ये बार बार अहसास दिलाते हैँ कि, अफ़ज़ल कुछ ना कुछ कर लेगा भाई तू।
और भी बहोत से चाहने वाले हैँ अपने, जिनकी दुआओ ने यहाँ तक पहुंचाया हैँ । उन दोस्तों के नाम यहाँ इसलिए भी मेंशन कर रहा हुँ कि कम्बख्त बुरा ना मान जाएँ। जावेद, रोमान, इमरान, मुशाहिद, फ़िरोज़, असगर, शफीक, सलीम, तोसीफ। तोसीफ मेरे लिए आजकल काफी खास हो गया हैँ। इस किताब की छोटी मोटी प्रमोशन मे उसने मेरा साथ दिया हैँ..
मेरे भाई , अख़लाक़ , इक़बाल , अशफाक , और मेरी बाजी , शबाना शेख, इनकी दुआओ की वजह से आज ये किताब आपके हाथ है और मैं अपनी थ्रिल वाली स्कील आपको बताने वाला हूँ।
नावेल का फ्लो फ़ास्ट है। वैसे ही जैसे साउथ की फिल्मे होती हैँ। अगर आप स्लो फ्लो पसंद करते हैँ.. तो भी आपको पसंद आएगी। पहली बुक है, गलतियों के लिए शुरू मे ही सॉरी कह देता हूँ । मेरे इतिहास के सर कहते थे, माफ़ी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता...
मेरी बकैती हो गयी, अब बारी है मेरे लिखाई पोताई की, तो चलिए पढ़ते हैँ.. फ़लक तलक।
चैप्टर 1
जंगल की वीरानी और सन्नाटा । समय दोपहर के 3 के आस पास । चारो तरफ घने पेड़ । और इन पेड़ों की भीड़ में दौड़ते हुए करीब 12 लोग । इनके दौड़ने से बस पत्तो की आवाज़ें जंगल मे हल्की शोर कर रही थी । बड़े अजीब तरह के लोग थे ये । शरीर से चिपका हुआ काला लिबास । जिससे शरीर का पूरा आकार झलक रहा था । ये बस लंबी लंबी सांसो से हांफते हुए जंगल मे एक ही दिशा की तरफ दौड़े जा रहे थे । चेहरे पर कोई भाव नही था । शून्य , और एक दम शून्य । भागते हुए अचानक ये सब रुके और अपनी दायीं तरफ देखने लगे थे । कुछ सोचने लगे और फिर दायीं तरफ दौड़ पड़े ये सब काले लिबास वाले । दौड़ते दौड़ते अचानक एक पेड़ के पास आकर ये फिर रुके ।
इन्होंने ज़मीन पर कुछ देखा था । प्लास्टिक की एक थैली थी ,और उस थैली से थोड़ा बाहर निकला हुआ था एक कटा हुआ हाँथ । इन बारह लोगो की टीम में जो सबसे आगे था, वो एक हट्टा कट्टा खूबसूरत नौजवान था । उसके शरीर पे चिपके काले लिबास की छाती पर सफेद रंग में लिखा था , आकाश । यानी कि ये आकाश था । आकाश ने उस थैली वाले हाँथ को उठाया और गौर से देखने लगा । कटे हाँथ का खून जम गया था । सब उस हाथ को देखकर अचानक रोने लगे थे । अजीब सा शोक अजीब सा मातम था इनका । आकाश की आंखों में आंसू थे । और फिर उस हाँथ को आकाश ने चूम लिया , माथे से लगाया और फिर उसे ज़मीन पर रख दिया ।
और फिर एक बार ये पूरा काले लिबास का दल एक दूसरी दिशा की तरफ दौड़ने लगा । इन सबने उसे देख लिया था, जो कुछ कटे अंगो को जंगल के अलग अलग जगहों पर फेंक रहा था । वो बाइक पर था । सर पर हेलमेट थी और बाइक के हैंडल पर एक बैग । इसी बैग में किसी के शरीर के कटे हुए अंग थे । बाइक वाला एक जगह फिर रुक गया । बाइक से उतरकर इसने इस बार एक कटा हुआपैर निकाला , अपना हेलमेट उतारकर उस पैर को देखकर मुस्कुराया था वो । 30 साल का गोरा और बाहुबली टाइप दिखने वाला ये शख्स काफी भद्दा भी दिख रहा था । ये कटे हुए पैर को गुस्से में देख रहा था और इसे घूरते हुए खड़े थे ठीक इसके पीछे इस से बीस कदम दूर वो बारह काले लिबास वाले । जो इसे एक टक देखे जा रहे थे । शरीर के टुकड़ों का ये आखरी अंग था शायद । फेकने वाले ने इस आखरी अंग को भी एक तरफ झाड़ियो में फेंक दिया और पलटकर अपनी बाइक की तरफ बढ़ने लगा । इस बाइक वाले को अब भी वो बारह ब्लैक लीबासी नज़र नही आ रहे थे जबकि वो इसे हैरानी और गुस्से से देख रहे थे । ऐसा क्यों , कि ये उन्हें देख नही पा रहा था । ये बाइक वाला शख्स अब इन बारह काले लिबास वालो के बिल्कुल सामने था, बड़े ही इत्मिनान से गुज़र रहा था अपनी बाइक की तरफ,यहां तक कि वो बाइक वाला शख्स आकाश को चीरते हुए पार हो गया । आकाश के पीछे खड़े बाकियो को भी वो आसानी से पार कर गया। अपनी बाइक पर बैठ कर उसने बाइक स्टार्ट की और उल्टी दिशा में वो जंगल के बाहर की ओर रवाना हो गया ।
ये बारह के बारह उसे बस जाता देखते रह गए । कौन थे ये बारह काले लीबासी? कोई आत्मा, या कोई अवतार या कोई भूत? सबके अलग अलग नाम थे शरीर पर । कोई आकाश तो कोई समाज । एक 30 साल का दिख रहा था , चेहरे पर अजीब तरह के काले पिले निशान थे । छाती पर लिखा था,समाज । इस दल में कुछ महिलाएं और दो बच्चे भी थे । एक बुढ़िया भी थी ,जिसके पेट पर बुढ़िया ही लिखा था । एक कमसिन बच्चा था जिसकी छाती पर लिखा था,साबुन । और एक खूबसूरत लड़की थी , बहोत खूबसूरत। जिसे कोई देख ले तो बस देखता रह जाये । जिसे कोई मरने वाला देख ले तो उसके जीने की ख़्वाहिश और बढ़ जाये । कहते हैं दुनिया मे कोई पर्फेक्ट नहीं होता , ना सूरत मे ना सीरत मे लेकिन , वो सूरत और सीरत दोनों मे पर्फेक्ट थी । हद से ज़्यादा खूबसूरत । शून्य मे थे उसके भाव और उसके सीने पे लिखा था , फ़लक ।
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फ्लैट खोलकर अंदर दाखिल हुआ वो शख्स । ये वही शख्स था, जो आज जंगल मे अपने कारनामे को अंजाम देकर आया था । जाने किसके अंगो को फेंककर आया था । फ्रीज खोलकर इसने पानी की एक बोतल निकाली और गटकने लगा । इसे बिल्कुल भी आभास और अहसास नही था, कि इसके इस फ्लैट में और भी कोई है । कौन ?
वही बारह लोग जो जंगल मे थे । हॉल में अलग अलग जगहों पर विराजमान ये बारह लोग, इस बाइक वाले को घूर रहे थे । फ्लैट के एक सोफे पर पर बैठे हुए वो गहरी सांस लेकर अचानक खुश हो गया , और जोर जोर से हँसने लगा । हँसते हुए ही उसने एक स्क्रिप्ट उठायी जिसके कवर पर लिखा था आकाश । और फिर उस शख्स ने कहा ,
स्टोरीबाज़ की स्टोरी यही खत्म होती है , तरुण ने खत्म कर दी
और फिर जोर से हँसने लगा । इसका नाम तरुण था , और इसे आकाश और उसके ग्यारह साथी घूरकर देख रहे थे । तभी स्लाइडर के पास रखे कुछ टाइप्ड पन्ने परिंदे के पर की तरह फड़फड़ाने लगे थे । तरुण का उन कागजो पर बिलकुल ध्यान नहीं था । तरुण ने अपने मोबाइल पर किसीका मैसेज देखा और फ्लैट से बाहर निकल गया । रह गए तो बस वो बारह लोग । तरुण के बाहर निकलते ही अकाश उन कागज़ों की तरफ बढ़ गया जो स्लाइडर के पास अब भी फड़फड़ा रहे थे ,वो भी बिना किसी हवा के । कागजो को उठाकर अपने सीने से लगा लिया उसने । बुढ़िया बोल पड़ी ,
अब हमें क्या करना चाहिए ?
आकाश ने सोफे पर बैठकर सोचते हुए जवाब दिया ,
हम लावारिस हैं बुढ़िया , इन्तिज़ार के सिवा कुछ नही कर सकते
।
अपनी माँ से भी बड़ी उम्र की बुज़ुर्ग औरत को वो बुढ़िया क्यो कह रहा था , आकाश भी अजीब था । इन बारह लोगो में जो सबसे खूबसूरत थी और जिसके पेट पर लिखा था फ़लक । फ़लक बुढ़िया के सामने आकर एक उदासी भरे अंदाज़ में कहने लगी ,
इन्तिज़ार के बाद क्या करेंगे ?
उसके इस प्रश्न का न तो आकाश के पास जवाब था और न तो बुढ़िया के पास । तभी समाज बीच मे कूद पड़ा , उसने कहा ,
क्या ज़िन्दगी है , न हम जी सकते हैं ना मर सकते हैं । अंधेरा ही अंधेरा है । रास्ते सारे बंद हैं
।
समाज की इस बात पर बुढ़िया अचानक बोल पड़ी , क्या कहा तूने ज़रा फिर से कहना समाज
।
समाज ने दुहराया , रास्ते बंद हैं
नही ... कुछ और कहा था
अंधेरा है क्या करे.
अरे नही कुछ दूसरा ही कहा था
कैसी ज़िन्दगी है ना जी सकते हैं ना मर सकते हैं
समाज वाली लाइन को आकाश ने रिपीट किया । बुढ़िया खुश हो गयी । बुढ़िया बोलने लगी,
हां , ये कहा था , लेकिन ये मरना क्या होता है
बुढ़िया की इस बात पर सब एक दूसरे का मुह ताकने लगे थे ।
-------
पुलिस स्टेशन में सब अपने अपने काम मे बिजी थे । ये लाल चौकी थाना था । और इस थाने का इंचार्ज इंस्पेक्टर पगारे काफी खड़ूस और अड़ियल किस्म का इंसान था । इंसान भी नही कह सकते क्योंकि उसका बर्ताव जानवरो जैसा था । इस जानवर का पाला आज मुम्बई के कुछ इंसानो से पड़ने वाला था ।
मैं यानि कि कुशल घर से लापता था । अपने बेटे यानि कि मैं कुशल के लापता होने की रिपोर्ट लिखाने के लिए मेरे पिता शर्मा जी मेरे भैया नकुल के साथ पुलिस स्टेशन में दाखिल हुए थे । एक किनारे एक बेंच पर बैठे सीनियर के आने का ही इन्तिज़ार कर रहे थे । पगारे आया , और आया भी तो नशे में ।
ड्यूटी पर कोई दारू पिता है ? लेकिन ये पगारे है , जब और जहां दिल करे पीता है । खैर, जब इसे मेरे पिता शर्मा जी ने अपने छोटे बेटे यानि मेरे गायब होने की शिकायत की ,तो पगारे हँसते हुए बोल पड़ा ।
आप करोड़पति हो ?
जी नही
यानी कि आपके बेटे की किडनेपिंग नही हुई , आपका बेटा किसी के चक्कर मे था ?
जी नही ... मेरा कुशल एक शरीफ लड़का है वो तम्बाखू तक नही खाता . लड़की से बात तक करने में झिझकता है । कोई चक्कर नही
तो भाग क्यो गया ?
गायब है वो साब । भाग नही गया ...
इस बार मेरे भैया नकुल बोल पड़े ।
ये कोन है ?
ये मेरा बड़ा बेटा है नकुल
आपलोग बोलते हो लापता है । उम्र उसकी 18 साल । 18 वर्ष का लड़का बच्चा नही होता । या तो अपनी मर्ज़ी से गया होएंगा या आपने निकाल दिया होगा घर से .... राइट ?
इस बार पिता जी खामोश । पुलिस वाला समझ गया । और फिर भड़कना उसका लाज़मी था ।
लड़का शरीफ था । तम्बाखू तक नही खाता था । लड़की से भी दूर रहता था । फिर इतने होनहार लड़के को कौन पिता साला घर से निकालता है , अभी मेको समझाओ शर्मा जी
पुलिस वाले की इस बात से पूरा पुलिस स्टेशन सकते में था । एक दम चुप्पी । पिता जी का तो सर ही झुक गया था । भैया से रहा नही गया । भैया ने जवाब देने के लिए अपना मुंह खोला ..
मेरा भाई कुशल एक स्टोरीबाज़ था
पुलिस वाला हैरान हो गया ये सुनकर । वो बस कुछ सोचता ही रह गया था । भैया ने जैसे ही कहा कि मेरा भाई स्टोरीबाज़ है तो पुलिस स्टेशन के बाकी पुलिस वाले और दूसरे लोग इसी तरफ देखने लगे । पगारे खुद हैरान था । नशे में वो था पर उसे होश रहता था कि वो क्या देख सुन रहा है। वो बोल पड़ा ,
स्टोरीबाज़ बोले तो ? वो झूठ बोलता था ... लोगो को गोली देता था झूट की ?
पिता जी ये सुनकर थोड़ा रूखे स्वर में बोल पड़े ,
मेरा कुशल झूठ नही बोलता , अच्छा लड़का है वो , समझदार है ..बहोत होशियार है वो ।
पगारे पिता जी की बात से फिर इरिटेट हुआ .
" शरीफ लड़का । झूठ नही बोलता , होशियार लड़का घर से निकाल दिया गया । तुम्हारा ये बड़ा बेटा बोलता है कि वो स्टोरीबाज़ था । अभी शर्मा जी तुमिच बोलो कि स्टोरीबाज़ बोले तो क्या ?
वो कहानिया लिखता था
पिता जी जी धीरे स्वर में बोले ।
क्या ? कहानी ....बोले तो स्टोरी ..ऐसा जैसा उपन्न्यास पिक्चर विक्चर टाइप कहानी
हां
। भैया ने उत्तर दिया ।
पगारे हड़बड़ा गया । वो अपनी कुर्सी से उठकर कुछ सोचते हुए कभी हंसता तो कभी सर खुजलाने लगता । फिर अचानक वो बोल पड़ा ।
अभी समझा , मैं स्टोरीबाज़ बोले तो क्या । लेकिन कहानी लिखने का टैलेंट सबको होता नही। और ऐसे टैलेंट वाले बेटे को कोई घर से बाहर निकालता है बोलो ?
साब , हमने उसे घर से निकाला , क्यो निकाला कब निकाला ये बाद में डिस्कस कर लो । अभी आप मेरे बेटे को ढूंढो । वो कहीं भी जाये । मैं कितना भी भगाऊँ , अपने बाबा से दूर नही रहता । आज तक तो वो आ जाता । पंद्रह दिन हो गया । मुझे कुछ ठीक नही लग रहा ।
पगारे को अब गुस्सा आ रहा था । और उसने गुस्से में ही बोला ।
बेटे को घर से खुद निकाल दिया और पुलिस को बोलते तुम लोग ढूंढने को । चलो निकलो इधर से । निकलो ।
पिता जी हड्बड़ा गए । कुछ समझ नहीं आ रहा था उन्हे कि वो पगारे को अब क्या जवाब दें ।
लेकिन
अरे क्या लेकिन वेकीन , काय काम नाही का आमच्या कड़े ..चला निघा शर्मा जी
गुस्से में उसने पिता जी और नकुल भैया को भगा दिया । पिता जी उदास कदमो से ही नकुल भैया के साथ बाहर की तरफ चल दिये । पगारे बुदबुदा रहा था , तिचा आईला ।
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मुंबई की एक सड़क पर बुढ़िया और आकाश के साथ फ़लक यहां वहां भटक रहे