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कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 31)
कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 31)
कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 31)
Ebook109 pages59 minutes

कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 31)

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About this ebook

विश्व के प्रत्येक समाज में एक पीढ़ी द्वारा नयी पीढ़ी को कथाएं कहानियां सुनाने की प्रथा कई युगों से चलती चली आ रही है. प्रारंभिक कथाएं बोलकर ही सुनायी जाती थी क्योंकि उस समय लिखाई छपाई का विकास नहीं हुआ था. जैसे जैसे समय बीतता गया और किताबें छपने लगी, बहुत सी पुरानी कथाओं ने नया जीवन प्राप्त किया.

इस पुस्तक में हम आपके लिए 25 प्रेरणा कथाएं लेकर आये हैं. यह इस श्रंखला की इकत्तीसवीं पुस्तक है. हर कथा में एक ना एक सन्देश है और इन कथाओं में युवा पाठकों, विशेषकर बच्चों, के दिमाग में सुन्दर विचार स्थापित करने की क्षमता है. ये पुस्तक आपको निराश नहीं करेगी क्योंकि ये कहानियां दुनिया के विभिन्न देशों और समाजों से ली गयी हैं.

कहानियां बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी हैं. आप अपने बच्चों को ऐसी कहानियां पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके उनपर बहुत उपकार करेंगे. आइये मिलकर कथाओं की इस परम्परा को आगे बढ़ाएं.

बहुत धन्यवाद

राजा शर्मा

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateJul 6, 2018
ISBN9780463442395
कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 31)
Author

Raja Sharma

Raja Sharma is a retired college lecturer.He has taught English Literature to University students for more than two decades.His students are scattered all over the world, and it is noticeable that he is in contact with more than ninety thousand of his students.

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    कथा सागर - Raja Sharma

    www.smashwords.com

    Copyright

    कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 31)

    राजा शर्मा

    Copyright@2018 राजा शर्मा Raja Sharma

    Smashwords Edition

    All rights reserved

    कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 31)

    Copyright

    दो शब्द

    संस्कृतियों का मिलन Sanskritiyon Ka Milan

    थोड़ा मुझे पढ़के सुनादो Thoda Mujhe Padhke Sunado

    सफ़ेद बगुले Safed Bagule

    विद्वता की पहचान Vidwata Ki Pehchaan

    अमृत की खेती Amrit Ki Kheti

    अक्लमंद व्यक्ति कौन है? Akalmand Vyakti Kaun Hai?

    बुद्धि रक्षा करती है Buddhi Raksha Karti Hai

    राजा भोज और लकड़हारा Raja Bhoj Aur Lakadhara

    बाली में लगा मोती Bali Mein Laga Moti

    टूटे हुए लोग Tootey Huey Log

    बेटा बड़ा हो गया Beta Bada Ho Gaya

    छोटी सी सीख Choti Si Seekh

    ये फसल काट लो Ye Fasal Kaat Lo

    अधिक प्रशंसा हानिकारक Adhik Prashansa Hanikaarak

    मानवता का क़र्ज़ Manavta Ka Karz

    गुलाम Gulaam

    फकीरी का नूर Fakiri Ka Noor

    मेरी निजी संपत्ति Meri Niji Sampatti

    बच्चे का Bachhe Ka Uphaar उपहार

    अबू हफस और दासी Abu Hafas Aur Dasi

    वो भी मेरे पुत्र हैं Wo Bhi Mere Putra Hain

    सीखते रहो Seekhtey Raho

    सिकंदर और राजा फिलिप Sikandar Aur Raja Philip

    डॉ. जाकिर हुसैन की दोस्ती Dr. Zakir Hussain Ki Dosti

    किसी की परवाह नहीं Kisi Ki Parvaah Nahi

    दो शब्द

    विश्व के प्रत्येक समाज में एक पीढ़ी द्वारा नयी पीढ़ी को कथाएं कहानियां सुनाने की प्रथा कई युगों से चलती चली आ रही है. प्रारंभिक कथाएं बोलकर ही सुनायी जाती थी क्योंकि उस समय लिखाई छपाई का विकास नहीं हुआ था. जैसे जैसे समय बीतता गया और किताबें छपने लगी, बहुत सी पुरानी कथाओं ने नया जीवन प्राप्त किया.

    इस पुस्तक में हम आपके लिए 25 प्रेरणा कथाएं लेकर आये हैं. यह इस श्रंखला की इकत्तीसवीं पुस्तक है. हर कथा में एक ना एक सन्देश है और इन कथाओं में युवा पाठकों, विशेषकर बच्चों, के दिमाग में सुन्दर विचार स्थापित करने की क्षमता है. ये पुस्तक आपको निराश नहीं करेगी क्योंकि ये कहानियां दुनिया के विभिन्न देशों और समाजों से ली गयी हैं.

    कहानियां बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी हैं. आप अपने बच्चों को ऐसी कहानियां पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके उनपर बहुत उपकार करेंगे. आइये मिलकर कथाओं की इस परम्परा को आगे बढ़ाएं.

    बहुत धन्यवाद

    राजा शर्मा

    संस्कृतियों का मिलन Sanskritiyon Ka Milan

    राहुल सांकृत्यायन को भारतीय यात्रा साहित्य के पितामह के रूप में याद किया जाता है. उनके बचपन का नाम केदारनाथ पण्डे था. उनका जन्म ९ अप्रैल, १८९४, के दिन आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश, के पंदहा गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था.

    तीस भाषाओँ के ज्ञाता राहुल, बातें प्रेम की भाषा में किया करते थे.

    उनकी इसी प्रेम की भाषा ने उनको पूरी दुनिया में लोकप्रिय बना दिया.

    रूसी क्रांति के बाद राहुल सांकृत्यायन ने तय किया कि रूस तो एक बार जाना ही है. तो 1937 में वह पहले सिंगापुर पहुंचे, फिर वहां से जापान, कोरिया, मंचूरिया, मंगोलिया, मध्य एशिया होते हुए रूस गए.

    रूस में राहुल को अपनी ही तरह के एक भाषाविद मिले जो उस वक्त रूसी और संस्कृत के शब्दों के आपसी रिश्तों पर काम कर रहे थे.

    वहां राहुल सांकृत्यायन ने पालि और संस्कृत भाषा पर कई व्याख्यान दिए, जिसने रातों-रात उन्हें रूस में हीरो बना दिया. इसी बीच उनकी मुलाकात वहीं की एक लाइब्रेरी में काम करने वाली लोला येलेना से हुई और दोनों ने शादी कर ली.

    भारत लौटने पर उन भाषाविद से उनकी चिट्ठी-पत्री जारी रही। उन्हीं चिट्ठियों में एक दिन राहुल को पता चला कि रूस में उनका एक पुत्र भी है.

    यह जानते ही वह फिर रूस जाने को बेचैन हो उठे, लेकिन इस बीच दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था.

    पिता अगर पुत्र के पास होता तो प्रेम के अलावा किसी भाषा की जरूरत न होती, मगर यहां तो बीच में दुनिया के सबसे भीषण युद्ध की दीवार खड़ी थी। पुत्र से करने वाली बातें वह कागजों से करने लगे।

    युद्ध के बाद राहुल जब रूस पहुंचे तो देखा कि पुत्र कागज के उन बंडलों से कहीं ज्यादा बड़ा हो चुका है, जिनमें पिता-पुत्र की बातें भरी हैं। और शक्ल भी बिलकुल राहुल जैसी.

    अपने अंश को गले लगाकर वह कई दिनों तक रोते रहे। पितापुत्र का यह मिलन देख वहां मौजूद सभी रूसियों की आंखें भर आईं.

    जिस वक्त पूरी दुनिया एक-दूसरे को खत्म करने में लगी थी, यह राहुल सांकृत्यायन ही थे जिन्होंने संस्कृतियों का ऐसा प्रेमिल मिलन कराया था.

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