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मंसा: एक मन की: झिलमिलाती गलियाँ, #6
मंसा: एक मन की: झिलमिलाती गलियाँ, #6
मंसा: एक मन की: झिलमिलाती गलियाँ, #6
Ebook73 pages36 minutes

मंसा: एक मन की: झिलमिलाती गलियाँ, #6

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About this ebook

"काल की घोरी आँखों ने, जब काल की माया को देखा था,
पाप की तब एक बूँद के ख़ातिर, उनका तन मन बहका था।।"

जब ख़ुशियों की परियों की नज़र किसी पर पड़ती है तो वह इंसान प्रेम और सद्भावना का प्रतीक बनकर इस संसार के सामने उभरता है। जीवन में इंसान नफ़रत तो किसी का बुरा करके भी कमा लेता है लेकिन जब बात आती है किसी के दिल में जगह बनाने की तो वह सदियों मारा-मारा फिरता है, लेकिन उसे प्रेम की एक बूँद तक नसीब नहीं होती।

Languageहिन्दी
Release dateDec 13, 2020
ISBN9781393987116
मंसा: एक मन की: झिलमिलाती गलियाँ, #6
Author

S. H. Wkrishind

एस एच व्कृषिंद ने दिल्ली विश्वविद्यालय से गणित विषय में बीएससी पूरा किया। तीन चीजें उन्हें सबसे ज्यादा पसंद हैं - पहली लेखन, दूसरी प्रकृति और तीसरी संगीत। स्नातक होने के साथ ही लेखक बनने के अपने सपने को साकार करने के लिए साहित्य की दुनिया में उनका पहला कदम एक काल्पनिक साहित्यिक रचना के माध्यम से रहा।

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    मंसा - S. H. Wkrishind

    झिलमिलाती गलियाँ

    एस. एच. व्कृषिंद

    Picture 38

    मंसा

    © एस. एच. व्कृषिंद

    Self-Published

    Print Book ISBN: 978-93-5593-855-8

    All rights reserved

    इस पुस्तक का कोई भी भाग किसी भी रूप में या किसी भी तरह से, इलेक्ट्रॉनिक या मैकेनिकल, फ़ोटोकॉपी, रिकॉर्डिंग या किसी भी जानकारी भंडारण पुनर्प्राप्ति प्रणाली द्वारा लिखित रूप से उपयोग या उपयोग नहीं किया जा सकता है, बिना लेखक से अग्रिम में लिखित अनुमति के।

    एस. एच. व्कृषिंद

    कोराँव, प्रयागराज

    Publisher's Website: https://linktr.ee/wkrishind

    Author's Website: https://linktr.ee/s.h.wkrishind

    पहले संस्करण के लिए

    Picture 51

    इस किताब में चित्रित सभी घटनाएँ पहले प्रकाशित हुई सभी संस्करणों का शुद्ध रूप हैं। पहले प्रकाशित सभी संस्करण, जो अलग-अलग शीर्षकों से और लेखक के मूल नाम से प्रकाशित हुई थीं, इस संस्करण के प्रारूप थे। पहले प्रकाशित हुई किसी भी संस्करण या इस संस्करण का लेखक के या फिर किसी अन्य के व्यक्तिगत जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं हैं। और अगर किसी के व्यक्तिगत जीवन की कहानी इस रचना में चित्रित किसी भी घटना से मिलती-जुलती है तो वह सिर्फ़ एक संयोग है।

    पिछले सभी प्रारूपों में कुछ ऐसी घटनाएँ भी थीं जो लेखक ने किसी और के सुझाव से लिखा था, जो पढ़ने पर पाठक के मन में कुछ अलग ही असर डालती थीं। पिछले सभी प्रारूप सिर्फ़ परीक्षण के उद्देश्य से प्रकाशित किए गए थे।

    - एस. एच. व्कृषिंद

    क्या लिखूँ?

    Picture 51

    स्कूल के समय में कुछ कहानियाँ पढ़ते समय मेरे भी दिमाग में ये बात आई कि मैं भी एक लेखक बनूँ। लेकिन अब समस्या थी तो ये की आखिरकार लिखूँ क्या? सबसे बड़ी बात, अपनी पढ़ाई के प्रति जुड़ाव ने मुझे कभी ऐसा करने नहीं दिया और दूसरी तरफ, मैं आलसी तो था ही, तभी तो मन  में प्रबल इच्छा होते हुए भी मैं अपने लेखक बनने के सपने को आरम्भ ना कर सका। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि मेरे दिमाग में कुछ बातें आई लेकिन जब मैंने उन्हें अपनी डायरी में लिखने की कोशिश की तो वहाँ पर मुझे कोई सफलता नहीं मिल पाई और जब कभी हिम्मत करके कुछ लाइनें लिखा भी तो बाद में उन्हें फाड़ कर फेंक भी दिया। क्योंकि, पहली बार तो मैंने अपने दिमाग में सूझी बात को अपनी डायरी में उतार दिया, लेकिन फिर जब बाद में दोबारा मैंने अपनी उस लिखावट को पढ़ा तो मन में सवाल उठा - ये मैंने क्या लिखा है? कुल मिलाकर मेरे कहने का मतलब है, मुझे खुद पर उस समय भरोसा नहीं था। मुझे लगता था कि यार, वो इतने बड़े लेखक हैं और मैं एक छोटे से कस्बे में रहने वाला एक छोटा सा इंसान हूँ और तो और उन सब ने अपनी बात को अपनी डायरी में तो उतार दिया लेकिन वो खुद उसका आनंद नहीं ले पाए। मुझे लगा, कहीं मेरा हाल भी ऐसा ही न हो। इसलिए, ऐसी ही ढेर सारी फालतू के नकारात्मक सोच की वजह से मैंने अपने अन्दर की कला को छिपाए रखा और इसमें कुछ मेरे अन्दर छिपे हुए डर का भी हाथ था। मुझे लगता था कि अगर मैं ये सब करने लगूंगा तो मेरा दिमाग पढ़ाई में नहीं लगेगा और उसकी वजह से मेरे मम्मी-पापा बहुत परेशान हो जाएँगे। मैं

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