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कैसे लिखूं मैं अपनी प्रेम कहानी ?: Fiction, #1
कैसे लिखूं मैं अपनी प्रेम कहानी ?: Fiction, #1
कैसे लिखूं मैं अपनी प्रेम कहानी ?: Fiction, #1
Ebook329 pages3 hours

कैसे लिखूं मैं अपनी प्रेम कहानी ?: Fiction, #1

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"कैसे लिखूं मैं अपनी प्रेम कहानी?" एक रोमांटिक उपन्यास है। पूरी कहानी शौर्य, निहारिका और अनंत के इर्द -गिर्द घूमती है। ये एक दिलचस्प, खूबसूरत, त्रिकोण प्रेम कहानी है।

Languageहिन्दी
Release dateJan 19, 2022
ISBN9789391078881
कैसे लिखूं मैं अपनी प्रेम कहानी ?: Fiction, #1
Author

Shital Srivastava

"This is Shital Srivastava.She belongs to Bihar. She has done her graduation in Microbiology Hons. Recently she wrote a motivational book named ""Chunotiya Jeevan Ka Dusra Naam"". She has experience working as a co-author for some anthologies. She loves writing, podcasting, learning, reading, and shopping.Her instagram id is masoom- lekhika. ""Kaise likhun main apni prem kahani"" is my first romantic novel. This novel is based upon a triangle love story."

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    कैसे लिखूं मैं अपनी प्रेम कहानी ? - Shital Srivastava

    Authors Tree Publishing

    W/13, Yadav Gali, Near Housing Board Colony

    Bilaspur, Chhattisgarh 495001

    First Published By Authors Tree Publishing 2022

    Copyright © Shital Srivastava, 2022

    All Rights Reserved.

    ISBN: 978-93-91078-88-1

    MRP: Rs. 225/-

    This book has been published with all reasonable efforts taken to make the material error-free after the consent of theAuthor. No part of this book shall be used, reproduced inAny manner whatsoever without written permission from theAuthor, except in the case of brief quotations embodied in critical Articles and reviews. The Author of this book is solely responsible and liable for its content including but not limited to the views, representations, descriptions, state-ments, information, opinions and references [content]. The content of this book shall not constitute or be construed or deemed to reflect the opinion or expression of the publisher or editor. Neither the publisher nor editor endorse or approve the content of this book or guarantee the reliability, Accuracy or completeness of the content published hereinAnd do not makeAny representations or warranties ofAny kind, express or implied, including but not limited to the implied warranties of merchantability, fitness forA particular purpose. the publisher And editor shall not be liable whatsoever for Any errors, omissions, whether such errors or omissions result from negligence, Accident, orAny other cause or claims for loss or damagesa ofAny kind, including without limitation, indirect or consequential loss or damage Arising out of use, inability to use, or About the reliability, Accuracy or sufficiency of the information contained in this book.

    कैसे लिखूं मैं

    अपनी

    प्रेम कहानी?

    शीतल श्रीवास्तव

    भाग - 1

    ब परीक्षा ख़त्म होती तो कितना अच्छा लगता ना! मुझे भी अच्छा लग रहा था जब मेरे ग्रेजुएशन 3र्ड ईयर की परीक्षा ख़त्म हुई। मुझे शुरू से बॉटनी से बड़ा लगाव था शायद यही वजह रही की मैंने मेरे ग्रेजुएशन की पढ़ाई बॉटनी से की। मेरे पापा को भी साइंस से बड़ा लगाव था इसलिए वो इंजीनियर बने जबकि मम्मी स्कूल में हिस्ट्री टीचर है। जब तक पापा थे। मुझे बड़ा अच्छा लगता था क्यूँकि एक वही थे जो मेरे पसंद को अच्छे से समझते थे।  मेरे पापा ने मुझे पूरी आजादी दी थी कि मैं मेरे पसंद की सब्जेक्ट ही पढ़ूँ। मैं  गणित में ज्यादा अच्छी नहीं थी पर बॉटनी में बहुत अच्छी थी। मेरे पापा मेरा हमेशा साथ देते थे।

    मुझे आज भी याद है जब मैं ग्रेजुएशन की 2न्ड ईयर में थी तो कॉलेज के सर हम सब को शहर से दूर एक जंगल में ले गए थे ढ़ेर सारे जंगली और दुर्लभ फूलों के पौधों को इकट्ठा करने के लिए। उन दुर्लभ पौधों का इस्तेमाल  हम सब  को हरबेरियम ( सूखी वनस्पतियों का संग्रह )  बनाने के लिए करना था। मैंने जब घर पे बताया की मुझे अपने बाकी दोस्तों और सर के साथ जंगल जाना है मेरे प्रोजेक्ट के लिए , मेरी मम्मी ने तो साफ मना कर दिया। फिर मैंने पापा से जिद्द की और पापा मान गए।

    जब मैं मेरे दोस्तों और सर के साथ जंगल गई तो वहाँ का नजारा देखने लायक था। इतने सुन्दर सुन्दर पेड़, इतनी हरियाली, सुहावना मौसम इन सब के मजे ले रहा था मेरा नटखट मन। मैं गई तो थी उस जंगल में पौधों को इकट्ठा करने पर मेरा ध्यान बार बार भटक रहा था कभी उन सुन्दर तितलियों को देखने में कभी पक्षियों की मीठी आवाज़ सुनने में। मेरे सारे दोस्त पौधे इकट्ठा करने में व्यस्त थे और मैं इस प्रकृति की खूबसूरती में खोयी थी और कुछ कवितायें बोल रही थी इस सुन्दर प्रकृति के लिए। चन्दन सर मेरे पीछे ही खड़े थे। ये मैं देख ही नहीं पायी। अचानक चन्दन सर ने मुझसे कहा निहारिका हम इस जंगल में क्यूँ  आए हैं? मैंने  गलती से कह दिया सर कवितायें कहने। मेरे सर ने गुस्से में कहा निहारिका कहाँ है तुम्हारा ध्यान? सारे बच्चे पौधे इकट्ठा कर रहे और तुम इन फूलों के सामने खड़ी होकर कवितायें बोल रही हो। हम सब यहाँ काम करने आए हैं पिकनिक मनाने नहीं। तो कृपा करके निहारिका आप कविताओं की दुनिया से बाहर निकलिए और अपने दोस्तों के साथ पौधे इकट्ठा कीजिये वरना प्रैक्टिकल में कम नम्बर मिलेंगे आपको। मैंने सर से माफ़ी मांगी और जल्दी से अपने दोस्तों के पास गई और पौधे इकट्ठा करने लगी।

    पौधे इकट्ठा करने के बाद सर ने हम सब को खाना खाने को दिया। फिर हम सब दोस्त खाना खाये और एक दूसरे की तस्वीर खींची उस जंगल में। अब हमारे घर जाने का वक़्त हो गया था इसलिए हम सब बस पर बैठे और रात तक अपने घर पहुँच गए। सर हम सब को घर तक पहुँचाये। फिर घर आकर मैं सीधा अपने कमरे में गई और सो गई अपने दिनभर की थकान मिटाने के लिए।

    सुबह पापा ने मुझसे पूछा कैसा रहा जंगल जाने का अनुभव? मैंने पापा से कहा बहुत मजा आया। और फिर मैंने पापा को सारे पौधे और फूल दिखाए जो मैंने जंगल से इकट्ठा करके लाये थे। पापा बहुत खुश हुए इन नये- नये पौधों को देख कर। मैंने सारे पौधों का वैज्ञानिक नाम भी पापा को बताया और सर वाली बात भी बताई की कैसे मैं अपना काम छोड़ के प्रकृति की सुंदरता में खो गई थी। पापा हँस रहे थे मेरी बातों को सुनकर।

    समय यूँ ही बीतने लगा। फिर बहुत  बुरा हुआ। जब मेरे 2nd ईयर की परीक्षा चल रही थी उसी वक़्त मेरे पापा को हार्ट अटैक हुआ और उनकी मृत्यु हो गई। ये मेरे लिए बहुत बड़ा आघात था। मैं इस दुख को सम्हाल नहीं पा रही थी। फिर चन्दन सर ने मुझसे कहा  निहारिका मुझे पता है बहुत बड़ा दुख है  पापा को खोना पर तुम्हें इस दुख में भी अपना कर्म करना है। अपनी परीक्षा देनी है। फिर मैंने सर से वादा किया की मैं अपनी परीक्षा जरूर दूँगी। और मैंने अपनी सारी परीक्षाएँ दी।

    पापा के जाने का गम तो था पर मेरे सर और मेरे दोस्तों ने मेरा बहुत साथ दिया। बस ऐसे ही मैं अपनी परीक्षाएं देती गई और फिर 3र्ड ईयर भी आया और मेरी सारी परीक्षाएं ख़त्म हुई।

    मैंने सोचा ग्रेजुएशन के बाद मैं बॉटनी से मास्टर्स कर लूँगी पर मम्मी की जिद्द ने मुझे मास्टर्स करने से रोक दिया और मुझे कानून की पढ़ाई पढ़ने को मजबूर कर दिया। मैं बॉटनी से मास्टर्स ही करना चाहती थी पर मेरी मम्मी ने कहा की तुम्हें कानून की पढ़ाई पढ़नी ही होगी। फिर मैंने अपना एडमिशन एक अच्छे लॉ कॉलेज में ले लिया। मेरे सारे दोस्त अब मुझसे दूर हो गए।

    मम्मी चाहती थी की मैं राँची से लॉ की पढ़ाई पूरी करुँ और एक अच्छी वकील बनूँ। बस इसलिए मैंने मम्मी की ख्वाहिश को अपने ज़िन्दगी का मक़सद बना लिया और राँची चली आयी।

    जब मैं और मम्मी राँची आए तब हमें स्टेशन पर  लेने मामा आए। मामा का घर स्टेशन से बिल्कुल नजदीक था इसलिए हम जल्दी मामा के घर पहुँच गए। फिर कुछ घंटे मामा के साथ बिताने के बाद मैं और मम्मी हॉस्टल ढूंढ़ने गए। मम्मी ने मेरे लिए एक गर्ल्स हॉस्टल ढूँढा जो मुझे  पसंद आया।  मुझे जो कमरा दिखाया गया उसमें तीन लड़कियाँ थी। वैसे तो मुझे अकेले रहना था पर कमरा खाली नहीं था इसलिए मुझे 3 लड़कियों के साथ रहने के लिए खुद को तैयार करना पड़ा। मम्मी ने कहा अभी कमरा मिल नहीं रहा इसलिए चुपचाप इसी कमरे में रह लो। बाद में कोई अच्छा फ्लैट मिले तो वहाँ एक लड़की को साथ लेके रह लेना। मैंने भी अपनी मम्मी की बात मान ली और अपना सामान हॉस्टल के कमरे में रखवा लिया। फिर मामा के घर रुक गए।

    ***

    अगले दिन,

    मैं और मम्मी लॉ कॉलेज गए। लॉ कॉलेज मेरे हॉस्टल से बिल्कुल नजदीक था इसलिए हम पैदल चल कर कॉलेज पहुँच गए। लॉ कॉलेज में मम्मी ने मेरा एडमिशन कराया। अब मैं लॉ फर्स्ट ईयर स्टूडेंट बन चुकी थी। फिर मम्मी और मैं हॉस्टल आए । मम्मी हॉस्टल की बाकी लड़कियों से भी बात की। उसके बाद मम्मी मुझे हॉस्टल में छोड़कर चली गई और कुछ देर बाद आसनसोल जाने के लिए ट्रैन पकड़ ली।

    मम्मी के जाने के बाद अच्छा नहीं लग रहा था। बड़ा मन उदास लग रहा था पर दोस्तों ने बहुत हँसाया।

    मेरे कमरे में 3 लड़कियाँ थी पर सबके विषय अलग थे। प्रिया गणित से मास्टर्स कर रही थी और रूपा इंग्लिश से ग्रेजुएशन कर रही थी। जबकि पूजा दीदी जॉब करती थी। मैं अकेली लॉ स्टूडेंट थी उस हॉस्टल में।

    कुछ ही दिनों में प्रिया मेरी सबसे अच्छी दोस्त बन गई। प्रिया दूसरे कॉलेज में पढ़ती थी। सुबह हम सब नास्ता करके कॉलेज निकलते। फिर दिनभर क्लास ख़त्म करके हॉस्टल आते शाम 4 बजे तक। दोपहर के लिए टिफ़िन में रोटी सब्जी कॉलेज जाने वाली लड़कियों को मिल जाती थी।

    पर कहते हैं ना हॉस्टल का खाना उन्हें बिल्कुल नहीं भाता जिन्हें अपनी माँ के हाथ के बने खाने की आदत लगी हो। मेरा भी यही हाल था। मैं परेशान हो गई थी हर दिन पत्तागोभी और बीन्स की सब्जी खा खा कर। अरे बाजार में कितने तरह की सब्जियाँ मिलती थी पर मेरे हॉस्टल वाले को तो बस पत्तागोभी और बीन्स की सब्जी ही बनानी आती थी। मेरी तबियत भी ख़राब होने लगी थी ऐसा बेस्वाद खाना खाते खाते।

    मैंने मम्मी को अपनी समस्या बताई। फिर मम्मी ने मुझसे कहा की  तुम एक फ्लैट ले लो एक कमरे वाला। उस फ्लैट में अगर तुम्हारी दोस्त तुम्हारे साथ रहना चाहे तो उसके साथ रह सकती हो। फिर दोनों मिलकर खाना बनाना। ऐसे घर का खाना भी मिल जाएगा और पढ़ाई भी हो जाएगी। मुझे मम्मी का सुझाव सही लगा इसलिए मैंने प्रिया से बात की इस बारे में और प्रिया मान गई।

    ***

    अगले महीने,

    मैंने और प्रिया ने एक फ्लैट खोजा। मकान मालिक बहुत अच्छे थे और उन्हें हमें कमरा देने में भी कोई दिक्कत नहीं थी। फ्लैट का आधा किराया प्रिया देती और आधा किराया मेरी मम्मी मकानमालिक के बैंक अकाउंट में भेज देती थी हर महीने। इस तरह मैं और प्रिया उस फ्लैट में रहने लगे। अब खाने की समस्या ख़त्म हो गई।

    मेरी मम्मी भी महीने में एक बार मुझसे मिलने आ जाती थी और फ्लैट में 2 से 3 दिन रह के जाती थी। सब सही चल रहा था। कॉलेज में भी अच्छे दोस्त बन गए थे मेरे। मेरे क्लास में राहुल पढ़ता था वो मेरा अच्छा दोस्त था।

    राहुल के अलावा भी बहुत से दोस्त थे मेरे पर राहुल ज्यादा अच्छा दोस्त था। मैं और राहुल साथ में पढ़ाई करते थे और एक दूसरे को बहुत परेशान भी करते थे। राहुल से फेसबुक पे भी चैट करती थी मैं। वैसे राहुल बहुत मजाकिया लड़का था। हमेशा मुझे हँसाता रहता था पर हम दोनों पढ़ते भी थे सिर्फ बैठ के हँसते ही नहीं रहते थे। मुझे मेरे दोस्तों का साथ अच्छा लग रहा था। सब कुछ नया और अलग था।

    पर कहते हैं ना वक़्त की आदत होती है सबकुछ बदलने की। वक़्त सबकुछ एक जैसा रहने नहीं देता। मेरी ज़िन्दगी में भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक दिन मैं अपने कॉलेज की लाइब्रेरी में मेरे एक सीनियर से मिली। मैंने उन्हें भैया कहा तो वो नाराज हो गए और कहने लगे मुझे सिर्फ शौर्य कहोगी भैया नहीं तभी मैं बात करूँगा तुमसे। फिर मैंने उन्हें सॉरी कहा और वहाँ से चली गई।

    ***

    कुछ दिनों बाद,

    शौर्य से मेरी फिर से मुलाक़ात लाइब्रेरी में हुई। इस बार मैंने सोचा कुछ बात करुँ पर मेरी हिम्मत ही नहीं हुई उनसे बात करने की। मुझे बहुत डर लग रहा था शौर्य से दरअसल  उन्होंने मुझे डॉटा था ना पहले इसलिए । फिर मैं बस बैठ कर अपनी किताब पढ़ रही थी की अचानक शौर्य मेरे बगल में आकर बैठ गए। मुझे और  ज्यादा डर लगने लगा। फिर उन्होंने पूछा तुमसे मैं पहले भी मिल चुका हूँ ना। बस तुम्हारा नाम नहीं जानता और तुम फर्स्ट ईयर स्टूडेंट हो ना। मैंने शौर्य से कहा मेरा नाम निहारिका है। हाँ ! मैं फर्स्ट ईयर स्टूडेंट हूँ पर आपको कैसे पता? फिर शौर्य ने कहा  निहारिका नाम तो बहुत प्यारा है तुम्हारा। वैसे निहारिका एक बात बताओ तुम लाइब्रेरी में बैठ कर फर्स्ट ईयर की किताबें पढ़ रही हो तो मैं क्या समझूं तुम्हें, फर्स्ट ईयर स्टूडेंट ही समझूंगा ना। फिर हम दोनों हँसने  लगे। शौर्य ने मुझे बताया की वो 3र्ड ईयर में पढ़ते हैं। फिर उन्होंने मुझे अपना मोबाइल नंबर दिया और कहा की जब भी जरुरत पड़े मुझे कॉल कर लेना। मैंने नंबर ले लिया।

    धीरे -धीरे हम मिलने लगे । हर दिन शौर्य मेरा लाइब्रेरी में इंतज़ार करते फिर मैं उनसे लाइब्रेरी में मिलती। मुझे कुछ भी जो ठीक से समझ में नहीं आता वो मैं लाइब्रेरी में शौर्य से पूछ लिया करती थी।

    जल्द ही शौर्य मेरे अच्छे दोस्त बन गए। मैं अब शौर्य के साथ ज्यादा समय बिताने लगी। शायद यही वजह थी की मैं राहुल से दूर होती जा रही थी। अब मेरी राहुल से ज्यादा बात नहीं होती थी। फिर राहुल ने एक दिन मुझे शौर्य के साथ कॉलेज के बाहर बात करते देख लिया। फिर वो हमारे सामने आया और मुझे कहने लगा निहारिका तुम आजकल मुझसे ज्यादा बात नहीं करती। तुम्हें अब नया दोस्त मिल गया है ना! मैंने कहा राहुल से अरे! ऐसी बात नहीं है। मुझे समय नहीं मिलता इसलिए बात नहीं कर पाते। लेकिन राहुल बिना कुछ बोले वहाँ से चला गया।

    फिर शाम को राहुल ने मुझे फ़ोन किया और हमने कुछ देर बात की। राहुल ने मुझसे कहा निहारिका तुम जिससे बात कर रही थी ना वो सही नहीं है तुम्हारे लिए। मैंने पूछा तुम्हें कैसे पता राहुल? कौन मेरे लिए सही है या नहीं। राहुल ने कहा मुझे सब पता है। मैं तुम्हें उस गलत इंसान से बात करने नहीं दूँगा। तुम्हारा दोस्त हूँ, तुम्हें सही रास्ता दिखाना मेरा फर्ज़ है।  मैंने राहुल से कहा दोस्त हो ना तो दोस्त की तरह ही पेश आओ। मेरी ज़िन्दगी में दखल देना बंद करो। मैं वही करुँगी जो मुझे अच्छा लगेगा। फिर राहुल ने कहा निहारिका दिल से नहीं दिमाग से सोचो। वो लड़का सही नहीं है तुम्हारे लिए। मेरी बात मानो और उस लड़के से बात करना बंद कर दो। मैंने कहा राहुल  तुम्हारे कहने से मैं किसी से बात करना बंद कर दूँ ऐसा कभी नहीं होगा, मैं शौर्य से बात करुँगी वो मेरे दोस्त हैं। फिर राहुल ने कहा ठीक है निहारिका। वो शौर्य तुम्हारा दोस्त है ना तो बस उसी से दोस्ती निभाओ। मैं अब तुम्हारा दोस्त नहीं। अगर तुम्हें मुझ से ज्यादा उस शौर्य पे भरोसा है तो मुझे तुमसे दोस्ती नहीं रखनी। फिर मुझे भी गुस्सा आ गया और मैंने भी कह दिया हाँ ! ठीक है। नहीं हैं हम दोस्त अब से। तुमसे अब मैं कोई बात नहीं करना चाहती । बेकार की जिद्द के लिए दोस्ती तोड़ रहे हो तो ठीक है तोड़ दो दोस्ती। फिर मैंने फ़ोन काट दिया।

    राहुल से दोस्ती टूटने के बाद मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था इसलिए मैंने शौर्य को फ़ोन करके सारी बात बताई। शौर्य ने मुझसे कहा तुमने बहुत अच्छा किया दोस्ती तोड़ के। फिर शौर्य ने मुझे बहुत समझाया और मेरा मन ठीक हुआ।

    कॉलेज में जब भी कोई मुझसे पूछता राहुल से झगड़ा हुआ है क्या? मैं सबको बस एक ही जबाब देती मुझे राहुल के बारे में कोई बात नहीं करनी। फिर मुझसे कोई कुछ नहीं पूछता। राहुल से बात किए कई महीने बीत गए पर शौर्य से बात होती थी। शौर्य मुझे हमेशा कहते थे की निहारिका तुम्हें जब भी मेरी जरुरत हो। तुम मुझे बस एक बार बोलना। मैं तुम्हारी मदद जरूर करूँगा। मैंने सोचा अच्छा हुआ जो मैंने राहुल के कहने पर शौर्य से बात करना नहीं बंद किया वरना मुझे ज़िन्दगीभर अफसोस रहता की मैंने एक अच्छे दोस्त को खो दिया।

    शौर्य पढ़ने में बहुत अच्छे थे। उनका सपना हमेशा से बहुत पैसा कमाना था। शौर्य के लिए ज़िन्दगी में सबसे जरुरी पहले ऑक्सीजन और दूसरी सबसे जरुरी चीज पैसा थी। वो मुझसे अक्सर कहा करते थे की मैं एक दिन बहुत बड़ा वकील बनूँगा और बहुत पैसे कमाऊंगा। मेरे विचार इस मामले में शौर्य से थोड़े अलग थे। मैं पहचान और सम्मान को ज्यादा अहमियत देती थी। मेरे लिए पैसे सिर्फ एक जरुरत बस थी। मेरे और शौर्य के बीच कई बार कुछ मुद्दों पे बहस होती थी पर उस बहस में कोई हारता ही नहीं था। वो कहते हैं ना बहस में हारने से ज्यादा शर्मनाक एक वकील के लिए कुछ हो ही नहीं सकता। शायद यही वजह रही होगी कि जब भी हम  किसी मुद्दे पे बहस करते थे तो हमारे अंदर का वकील हमारी दोस्ती पे हावी हो जाता था। फिर हम ये भूल जाते थे की हम दोस्त हैं।

    वैसे शौर्य शहर के सबसे बड़े वकील नीरज कुमार से इंटर्नशिप ले रहे थे। नीरज सर के घर शौर्य हफ्ते में 2 से 3 दिन चले जाते थे, क्यूँकि कॉलेज कि क्लासेज भी करनी होती थी इसलिए 2 से 3 दिन मुश्किल से शौर्य नीरज सर के पास जा पाते थे काम सीखने। सुना था नीरज सर को जो भी केस मिलते थे, वो उसे जीत जाते थे। बहुत कम ही केस होंगे जहाँ वो हारे हो।

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