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अनकही बातें: Fiction, #1
अनकही बातें: Fiction, #1
अनकही बातें: Fiction, #1
Ebook176 pages1 hour

अनकही बातें: Fiction, #1

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About this ebook

किताब के बारे में

आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में, रिश्तों का वजूद खोता जा रहा है, कई ऐसी "अनकहीं बातें" है, जो हमारे मन में ही रह जाती हैं और हम अपनी भावनाएं अपने प्रियजनों को नहीं बता पातें हैं, ये "अनकहीं बातें", किस तरह रिश्तों  को प्रभावित करती हैं, इस कहानी में यही दर्शाया गया है। साथ ही, ये एक औरत, जिसे हम बिना सोचे अबला का नाम दे देते हैं, कैसे मुश्किल समय में भी,  हार नहीं मानती हैं, इसका साक्षात दर्शन इस कहानी में देखने को मिलता है।

 

लेखिका के बारे में

नेहा सिंह राजपूत ने मनोविज्ञान में स्नातक (बीए) और मनोविज्ञान में ही स्नातकोत्तर (एम.ए) की डिग्री प्राप्त की है, ये महिलाओं की सोच और समाज में बदलाव लाने का ज़ज़्बा रखती हैं, जो इनकी लेखनी में स्पष्ट देखने को मिलता है, ये इस बात को प्रमाणित करती हैं कि, जैसे एक गृहिणी अपने घर को और घर के सदस्यों की देखभाल और संरक्षण करती  है, वही गृहिणी यदि  कलम उठाती है, तो इस समाज में भी नये  विचारों  के द्वारा बदलाव लाने का ज़ज्बा रखतीं हैं, उसकी कलम से निकले जो शब्द होतें  हैं, वो जीवन के साक्षात्कार की डिग्री से प्राप्त  अनुभवों  के रूप में निकले, शब्द होते हैं, जो समाज में ताकत और स्फूर्ति का संचार करते है।
 

Languageहिन्दी
PublisherNeha Rajput
Release dateAug 15, 2022
ISBN9789394807051
अनकही बातें: Fiction, #1

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    अनकही बातें - Author Tree Publishing

    अनकही बातें

    लेखक:  नेहा राजपूत

    प्रकाशक:  Authors Tree Publishing

    Authors Tree Publishing House

    W/13, Near Housing Board Colony

    Bilaspur, Chhattisgarh 495001

    First Published By Authors Tree Publishing 2022

    Copyright © Neha Rajput 2022

    All Rights Reserved.

    ISBN: 978-93-94807-05-1

    प्रथम संस्करण: 2022

    भाषा: हिंदी

    सर्वाधिकार: नेहा राजपूत

    मूल्य:₹ 199/-

    यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि लेखक या प्रकाशक की लिखित पूर्वानुमति के बिना इसका व्यावसायिक अथवा अन्य किसी भी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। इसे पुनःप्रकाशित कर बेचा या किराए पर नहीं दिया जा सकता तथा जिल्द बंद या खुले किसी भी अन्य रूप में पाठकों के मध्य इसका परिचालन नहीं किया जा सकता। ये सभी शर्तें पुस्तक के खरीदार पर भी लागू होंगी। इस संदर्भ में सभी प्रकाशनाधिकार सुरक्षित हैं।

    इस पुस्तक का आंशिक रूप में पुनः प्रकाशन या पुनःप्रकाशनार्थ अपने रिकॉर्ड में सुरक्षित रखने, इसे पुनः प्रस्तुत करने की पद्धति अपनाने, इसका अनूदित रूप तैयार करने अथवा इलैक्ट्रॉनिक, मैकेनिकल, फोटो कॉपी और रिकॉर्डिंग आदि किसी भी पद्धति से इसका उपयोग करने हेतु समस्त प्रकाशनाधिकार रखने वाले अधिकारी तथा पुस्तक के लेखक या प्रकाशक की पूर्वानुमति लेना अनिवार्य है।

    .

    अनकही बातें

    नेहा राजपूत

    समर्पण 

    यह कहानी समर्पित है, हमारी माता जी स्वर्गीय श्रीमती उषा देवी जी को। वह बहुत ही शांत एवं सहनशील स्वभाव की महिला थीं। उनकी मृत्यु केवल पैंतीस वर्ष की आयु में हो गयी थी । अपने छोटे से जीवन में जब तक वह रही, उन्होंने अपने गृहस्थ जीवन में सहनशीलता एवं दृढ़ता का परिचय दिया।

    लेखिका की कलम से

    प्रिय पाठको! मैं नेहा सिंह राजपूत आपके बीच एक रोमांस एवं भावनाओं से भरी कहानी लेकर आयी हूँ, यह कहानी आपको बेहद पसंद आएगी, क्योंकि इसमें दर्शायी गयी प्रमुख बातें कहीं ना कहीं हम सब के जीवन से ही प्रेरित है, साथ ही यह एक औरत की प्रबलता एवं साहस का भी  परिचय है। यह कहानी हमारे समाज एवं परिवार के बीच के संबंधों को भी दर्शा रही है, इस कहानी की प्रेरणा मुझे अपने पतिदेव संजय सिंह राजपूत जी से मिली, जिनके नवीन विचारों एवं बातों ने मेरे अंदर की लेखिका को निखारा एवं मैं इन पात्रों का चयन कर पायी।

    मुझे आशा है कि आपको यह कहानी अवश्य पसंद आएगी एवं आनंदित करेगी। अगर आपको मेरी लेखनी में कोई त्रुटि लगे या आप कुछ सुझाव देना चाहे तो अवश्य बताएं।

    धन्यवाद!!

    अनुक्रमणिका

    1. प्यासी नजर   1

    2. समय की प्रबलता  9

    3. रमा का बचपन  33

    4. सुखों के पल  54

    5. रमा का संघर्ष  70

    6. माँ के आँचल का कोना  98

    7. काश! मैं वहाँ होती  103

    1

    प्यासी नजर

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    पा

    नी.....पानी! ऐसी कराहती हुई आवाज के साथ रमा देवी जी के हाथों से पानी भरा गिलास, उठाने का असफल प्रयास करते हुए जमीन पर गिलास गिर पड़ता है और एक तेज आवाज होती है, जिसे सुनकर घर के सारे लोग उस ओर दौड़ते हैं, अर्थात उनके बेटे-बहु, पोते- पोती, नातिन इत्यादि।

    इसके तुरंत बाद रमा देवी जी बेहोश हो जाती हैं। ग्लास उठाते हुए उनकी मंझली बहू बुदबुदाती हुई कहती है- अब मर क्यों नहीं जाती, इनकी सेवा करते-करते थक चुके हैं सभी, पर यह हैं कि पता नहीं किस कारण इस स्थिति में भी टिकी हुई हैं। कल मैंने दूध पिलाने की कोशिश की तो गले के नीचे जाने से पहले, इन्होंने मेरे ऊपर ही उल्टी कर दी, खाना पीना सब छोड़ दिया है इन्होंने, लगता है जैसे ये ठीक होना ही नहीं चाहती हैं।

    इतने में छोटी बहू जो ठीक उसके पीछे खड़ी सब सुन रही थी, वह कहती है- ठीक ही कहती हो दीदी! मैं भी अपने बुटीक का काम छोड़ कर आयी हूँ, पाँच दिन गुजर गए, पर अभी तक स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है, ना उठ कर बैठ पाती है, ना भगवान इन्हें मुक्ति प्रदान कर रहे हैं।

    इसके तुरंत बाद रमा देवी जी की आँखें सहसा ही खुल जाती हैं, मानों वह सब कुछ सुन रही है, पर कुछ भी कर पाने में शारीरिक रूप से असमर्थ हैं। आँखें खुलते ही, टकटकी बाँधे, वो फिर से कमरे की दरवाजे की ओर देखती हैं, और आँसुओं की धारा आँखों से ऐसे बह रही है, जैसे दुखों का ज्वालामुखी, उनकी मन को भेदता हुआ आँखों से बाहर आ रहा है । घरवाले हैरान थे कि, आखिर रमा देवी जी किसकी राह देख रही है, मानों कोई बात अधूरी रह गयी है, जिसे वो पूरा करना चाह तो रही है, पर अस्वस्थ शरीर उनका साथ छोड़ता जा रहा है।

    इतने में उनका छोटा बेटा कमरे में प्रवेश करता है और उनके सिरहाने आकर बैठ जाता है, उनके माथे को सहलाते हुए कहता है- माँ तुझे क्या परेशानी है तू बताती क्यों नहीं? कम से कम एक इशारा तो कर देती। तेरे लिए ही तो मैं छुट्टी की अर्जी देकर आनन–फानन में फ्लाइट की टिकट लेकर आया हूँ, वरना तो मेरा बॉस मुझे नौकरी से निकाल देने की धमकी तक दे रहा था, क्योंकि मैंने ऑफिस में सबसे ज्यादा छुट्टियां ली है, इस एक वर्ष के दौरान। पिछले महीने भी, तुम्हारी अस्वस्थता के कारण, मैंने शुरुआत में ही दस दिनों की छुट्टी ली थी।

    मानों, वह अपनी माँ के हाल चाल पूछने की बजाए, उन्हें अपनी छुट्टियों का ब्यौरा देकर, उन पर कोई एहसान कर रहा हो, जबकि सच तो कुछ और ही था, पिछले महीने, उनका छोटा बेटा बंटवारे की बात करने के लिए एक वकील को साथ लेकर आया था, ताकि अपने हिस्से की जमीन लेकर यहाँ से निश्चिंत हो जाएं और अपने लिए एक अलग घर, जो परिवार से अलग हो, वह तैयार कर सके, पर रमा देवी जी ने इसके लिए साफ-साफ मना कर दिया था, यह कह कर कि अभी यह सब करने का समय नहीं आया है।

    छोटे बेटे की ये बातें सुनकर मानों, रमादेवी जी अच्छी तरह समझ रही थी कि,  यह सब बस दिखावा कर रहा है, असल में इसे मेरी कोई परवाह नहीं है। हालाँकि, यह रमा देवी जी का शुरू से सबसे प्रिय पुत्र रहा था, पर अब चीजें बदल चुकी थीं।

    इतने में डॉक्टर कमरे में प्रवेश करता है, जो नियमित समय पर दोपहर तीन बजे प्रतिदिन पिछले पाँच दिनों से रमा देवी जी के स्वास्थ्य का परीक्षण करने आ रहा था। उसने जाँच करके बताया कि, अब इनके पास बहुत कम समय शेष है, पर इनकी इच्छा शक्ति ने इनकी प्राणों की डोर को पकड़ रखा है, वरना ऐसी स्थिति में जब रोगी का शरीर बिल्कुल शिथिल पड़ चुका है, तब कुछ भी कहना मुश्किल हो जाता है। फिर, सारा परीक्षण करने के बाद, डॉक्टर ने उन्हें एक इंजेक्शन लगाया, जो उन्हें पिछले पाँच दिनों से प्रतिदिन लग रहा था, और दवाइयों की खुराक थोड़ी और बढ़ाई तथा छोटे बेटे को सारी जानकारी देकर चला गया।

    क्योंकि, रमा देवी जी का खाना–पीना सब छूट गया था, तो गले से एक खाने की नली, ऑपरेशन के द्वारा जोड़ी गयी थी तथा मूत्र विसर्जन की एक अलग नली लगी हुई थी एवं एक नर्स को रखा गया था, जो उनकी साफ-सफाई में सहायता करती थी।

    शाम का वक्त हो चला था, रोज की तरह नर्स ने रमा देवी को दवाइयाँ दी, और अपने पर्स से अपना मोबाइल निकाल कर देखने लगी। उसने देखा कि, उसके मोबाइल पर उसके पति ने तीन बार कॉल किया था, उसने जल्दबाजी में वापस से कॉल किया, तो उसके पति ने क्रोध में भरे शब्दों के साथ कहा कि –कहाँ है तू? अभी तक आई क्यों नहीं? घर की कुछ फिक्र भी है, तुझे या नहीं? बंटी को दस्त लग गए हैं और वह दर्द से कराह रहा था। मैंने उसे फिलहाल दवा दे दी है और वह सो गया है, इधर, सुनीता (नर्स) चुपचाप उसकी बातें सुन रही थी, बंटी उसका बेटा था, जिसकी एक दो बार उसने घर वालों के सामने चर्चा की थी। वह भी मजबूर थी। रमा देवी जी की ऐसी हालत थी कि, उन्हें छोड़ कर दो पल के लिए भी हटना, उसके लिए मुश्किल था, उसने जवाब में पति से कहा–बस निकल ही रही हूँ।"

    इतने में अचानक रमा देवी जी ने आँखें खोली और उनके मुख से एक शब्द निकला–गौरी! इसके साथ ही उनकी हरकतों में, बेचैनी सी दिखी, जैसे उनको साँस लेने में कठिनाई महसूस हो रही हो, यह देखकर नर्स ने घरवालों को सूचना दी और जैसे कि, डॉक्टर ने उसे (नर्स) निर्देश दिया था, तुरंत ऑक्सीजन की मशीन उसने लगायी और नब्ज़ वगैरह का परीक्षण किया। कुछ समय बाद ही, स्थिति नियंत्रण में आ गयी।

    घरवालों ने यह सब देखा तो, तपाक

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