गुदगुदाते पल (कहानी संग्रह)
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About this ebook
छोटी-छोटी बातें कहने का शौक है मुझे। ‘समिश्रा’ के नाम से गद्य-पद्य, दोनों विधा में लिखती हूँ।
आत्म मुग्धता? नहीं
आत्म प्रवंचना? नहीं
फिर क्या बात है मुझमें
बस एक प्यारा सा दिल मेरा
और हंसी की सौगात है मुझमें
दुनिया में होंगे सुखनवर
बहुत अच्छे से भी अच्छे,
पर बात जो मेरी
वह किसी में भी नहीं
छोटी-छोटी बातें कहने का शौक है मुझे। ‘समिश्रा’ के नाम से गद्य-पद्य, दोनों विधा में लिखती हूँ।
आत्म मुग्धता? नहीं
आत्म प्रवंचना? नहीं
फिर क्या बात है मुझमें
बस एक प्यारा सा दिल मेरा
और हंसी की सौगात है मुझमें
दुनिया में होंगे सुखनवर
बहुत अच्छे से भी अच्छे,
पर बात जो मेरी
वह किसी में भी नहीं
छोटी-छोटी बातें कहने का शौक है मुझे। ‘समिश्रा’ के नाम से गद्य-पद्य, दोनों विधा में लिखती हूँ।
आत्म मुग्धता? नहीं
आत्म प्रवंचना? नहीं
फिर क्या बात है मुझमें
बस एक प्यारा सा दिल मेरा
और हंसी की सौगात है मुझमें
दुनिया में होंगे सुखनवर
बहुत अच्छे से भी अच्छे,
पर बात जो मेरी
वह किसी में भी नहीं
वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
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Book preview
गुदगुदाते पल (कहानी संग्रह) - वर्जिन साहित्यपीठ
प्रकाशक
वर्जिन साहित्यपीठ
78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,
नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण - अप्रैल 2018
ISBN
कॉपीराइट © 2018
वर्जिन साहित्यपीठ
कॉपीराइट
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गुदगुदाते पल
(कहानी संग्रह)
लेखिका
साधना मिश्रा
साधना मिश्रा
साहित्यिक उपनाम: समिश्रा
anshaddu251@gmail.com
छोटी-छोटी बातें कहने का शौक है मुझे। ‘समिश्रा’ के नाम से गद्य-पद्य, दोनों विधा में लिखती हूँ।
आत्म मुग्धता? नहीं
आत्म प्रवंचना? नहीं
फिर क्या बात है मुझमें
बस एक प्यारा सा दिल मेरा
और हंसी की सौगात है मुझमें
दुनिया में होंगे सुखनवर
बहुत अच्छे से भी अच्छे,
पर बात जो मेरी
वह किसी में भी नहीं
साक्षात्कार
ईश्वर के अस्तित्व पर हमेशा से सवाल उठते रहे है, जितने संख्या में लोग हैं उतने ही सवाल हैं? बहुत से लोग कहते हैं, हमनें तो ईश्वर को देखा नहीं है तो क्यों विश्वास करूँ?
सही बात है, आखिर बिना आंखों से देखे कैसे यकीन हो?
अब ईश्वर को ढूंढने जाओगे तो इस जन्म में दिखने से रहे?
पर मेरी मान्यता है कि कुछ बातों को मानों, आज ईश्वर के अस्तित्व के बारे में जो कहा जाता है, वह लाखों सालों के ईश्वर की खोज का निचोड़ है, जो हमारे धर्म ग्रंथों में, लिखा है, सब सत्य है, इन पर गहरा विश्वास ही ईश्वर से
हमारा साक्षात्कार करवाता है।
मैं हिंदू धर्म में, ब्राह्मण कुल मे जन्मी, ईश्वर पर बेहद विश्वास करने वाली महिला हूं, आज ईश्वर को साक्षी रखकर अपने एक अनुभव को आपसे साझा कर रही हूं,
उसपर आप विश्वास करें या ना करें, आपके विवेक पर छोड़ती हूं, बात अक्षरशः सत्य है।
सन् दो हजार सोलह के अगहन महीने में भागवत कथा का आयोजन किया, मै और मेरे पति कथा सुनने वाले मुख्य थे, सो बड़े धूमधाम से कथा का आयोजन किया, सारे नियम का पालन करते हुए स्वजनों के साथ कथा सुना, सात दिनों के आयोजन में बड़े धूमधाम से कथा संपूर्ण हुआ। बड़े ही आनंद के दिन थे, हर ओर गोविंदा छाये हुए थे, घर का हर कोना नाच रहा था, कब, कहाँ, कैसे सारा आयोजन निर्विध्न संपन्न हुआ, कुछ खबर नहीं?
भगवान ने सारा भार स्वयं उठाया हुआ था, कहीं कोई कमी