बड़ी उम्र की स्त्रियों का प्रेम
()
About this ebook
घरेलू स्त्रियाँ
होतीं है उनकी उपस्थिति,
अनिवार्य..........किन्तु,
होता है जैसे ज्योमेट्री बॉक्स
में उपस्थित सैट स्क्वायर।
होता है जैसे वर्णमाला,
में उपस्थित ङ, ञ।
होती है जैसे ट्रैफिक बत्ती के
खंभे में उपस्थित वो पीली बत्ती।
होती है जैसे मसालेदार सब्जी
में उपस्थिति तेजपत्ते की।
होता है जैसे पैतालीस बाद की
स्त्रियों के शरीर में गर्भाशय।
घरेलू स्त्रियाँ
होतीं है उनकी उपस्थिति,
अनिवार्य..........किन्तु,
होता है जैसे ज्योमेट्री बॉक्स
में उपस्थित सैट स्क्वायर।
होता है जैसे वर्णमाला,
में उपस्थित ङ, ञ।
होती है जैसे ट्रैफिक बत्ती के
खंभे में उपस्थित वो पीली बत्ती।
होती है जैसे मसालेदार सब्जी
में उपस्थिति तेजपत्ते की।
होता है जैसे पैतालीस बाद की
स्त्रियों के शरीर में गर्भाशय।
घरेलू स्त्रियाँ
होतीं है उनकी उपस्थिति,
अनिवार्य..........किन्तु,
होता है जैसे ज्योमेट्री बॉक्स
में उपस्थित सैट स्क्वायर।
होता है जैसे वर्णमाला,
में उपस्थित ङ, ञ।
होती है जैसे ट्रैफिक बत्ती के
खंभे में उपस्थित वो पीली बत्ती।
होती है जैसे मसालेदार सब्जी
में उपस्थिति तेजपत्ते की।
होता है जैसे पैतालीस बाद की
स्त्रियों के शरीर में गर्भाशय।
वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
Read more from वर्जिन साहित्यपीठ
प्रेमचंद की 6 कालजयी कहानियाँ (कहानी) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsप्रेम प्रसून (काव्य संग्रह) Rating: 5 out of 5 stars5/5श्रीरामचरितमानस: एक वृहद विश्लेषण Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsएक दिन सभी स्त्रियाँ नग्न हो जाएंगी Rating: 4 out of 5 stars4/5कड़वे सच Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsललका गुलाब Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबातें कुछ अनकही सी Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमानवीय संवेदना की धुरी पर एक खोया हुआ आदमी (लघुकथा संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsचिंगारियाँ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsयोग और योगा की शक्ति Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsविश्व के त्योहार Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsलघुकथा मंजूषा 3 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsगुलदस्ता Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअवधपति! आ जाओ इक बार (काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsलघुकथा मंजूषा 5 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमैं और मेरे एहसास (काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमेरियां इक्की गज़लां (गज़ल संग्रैह्) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsछेड़ दो तार (काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsएक थी माया Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकुछ एहसास लिखे हैं Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअलंकरण Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsYah Jo Kadi Hai Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsयहाँ अधिकारी शर्म से नहीं मरते! Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमुझे न्याय दो Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकाव्यादर्श (काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकाव्य मञ्जूषा 2 Rating: 3 out of 5 stars3/5सब तुम्हारा Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsप्यार के फूल Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसबरनाखा Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related to बड़ी उम्र की स्त्रियों का प्रेम
Related ebooks
Teri Meri Sex Story Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsहृदय की देह पर Rating: 5 out of 5 stars5/5Prasiddh Hastiyon or Buddhijiviyon Ki Nazar Main Osho - (प्रसिद्ध हस्तियों और बुद्धिजीवियों की नज़र में ओशो) Rating: 5 out of 5 stars5/5Suni Suni Aave Hansi Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsचिंगारियाँ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKahaniya Bolti Hai Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsBaraf Ke Angare Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMANORANJAK KAHANIYON SE BHARPOOR KAHAVATE Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsOh! Priya Maheshwari Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsNEW LADIES HEALTH GUIDE (Hindi) Rating: 5 out of 5 stars5/5Science Quiz Book (Hindi): Testing your knowledge while entertaining yourself, in Hindi Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPyar Ka Devta Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsजुलाई की वो रात: कहानी संग्रह Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsGoli (गोली): राजस्थान के राजा - महाराजाओं और उनकी दासियों के बीच के वासना-व्यापार पर ऐतिहासिक कथा Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsऔर गंगा बहती रही Aur Ganga Bahti Rahi Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsJeevan Me Safal Hone Ke Upaye: Short cuts to succeed in life Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसफलता चालीसा: Motivational, #1 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsपति-पत्नी का दिव्य व्यवहार (Abr.) (In Hindi) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsपुस्तकों और ई-पुस्तकों को स्वयं प्रकाशित करें Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsLife Trap (Hindi) Rating: 5 out of 5 stars5/5Aap aur Aapka Vyavhar : आप और आपका व्यवहार Rating: 5 out of 5 stars5/5कर्म का विज्ञान Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकैसे लिखूं मैं अपनी प्रेम कहानी ?: Fiction, #1 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPehle Lakchay Tay Karain Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKhushi Ke 7 Kadam: 7 points that ensure a life worth enjoying Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsAcharya Chatursen Ki 21 Shreshtha kahaniyan - (आचार्य चतुरसेन की 21 श्रेष्ठ कहानियाँ) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings1400 Se Adhik Lokoktiya (Eng-Hindi): Popular proverbs and sayings Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsBody language Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsLaal Lakeer Rating: 5 out of 5 stars5/5Sparsh Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related categories
Reviews for बड़ी उम्र की स्त्रियों का प्रेम
0 ratings0 reviews
Book preview
बड़ी उम्र की स्त्रियों का प्रेम - वर्जिन साहित्यपीठ
बड़ी उम्र की
स्त्रियों का प्रेम
ममता दीक्षित शुक्ला
वर्जिन साहित्यपीठ
प्रकाशक
वर्जिन साहित्यपीठ
78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,
नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043
9868429241 / sonylalit@gmail.com
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण - जून 2018
कॉपीराइट © 2018
वर्जिन साहित्यपीठ
कॉपीराइट
इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक वर्जिन साहित्यपीठ द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता। सामग्री के संदर्भ में किसी भी तरह के विवाद की स्थिति में जिम्मेदारी लेखक की रहेगी।
समर्पण
स्वर्गीय श्री सुरेंद्र नाथ दीक्षित
स्वर्गीय श्रीमती प्रभा दीक्षित
स्वर्गीय गुलाब देवी शुक्ला
पति श्री संजीव शुक्ला
रविशा शुक्ला
जय शुक्ला
आभार
ललित मिश्र,
जिन्होंने हमेशा सार्थक लेखन के लिये प्रेरित किया।
अनिता मिश्रा एवं सौरभ शर्मा
जिन्होंने हमेशा लेखन के लिये प्रोत्साहित किया।
घरेलू स्त्रियाँ
होतीं है उनकी उपस्थिति,
अनिवार्य..........किन्तु,
होता है जैसे ज्योमेट्री बॉक्स
में उपस्थित सैट स्क्वायर।
होता है जैसे वर्णमाला,
में उपस्थित ङ, ञ।
होती है जैसे ट्रैफिक बत्ती के
खंभे में उपस्थित वो पीली बत्ती।
होती है जैसे मसालेदार सब्जी
में उपस्थिति तेजपत्ते की।
होता है जैसे पैतालीस बाद की
स्त्रियों के शरीर में गर्भाशय।
झोंके रहती है स्वयं को
पकाने, बुहारने- झाड़ने,
समेटने-सहेजने सजाने,
धोने-तह करने में, कि,
दे पाए उन्हें जवाब
प्रत्यक्ष, परोक्ष जो पूछ बैठते है,
करती क्या हो पूरे दिन
?
तीर सा चुभता ये सवाल।
इसपर भी जो पूछ दे
कोई, परिचय तो,
खिसियानी सी हँसी, हँस
हाउस वाइफ, होम मेकर,
होंमइकनॉमिस्ट, होमइंजीनियर,
नित नए नामों के ओट में,
मिटाती हैं अपनी झेंप।
तलाशती हैं अपने ही घर में,
खुद का अपना एक कोना
क्योकि ये कहाँ कमाती हैं?
सुनो, तुम तो वर्किंग कहलाती हो,
अपने घर की नींव का एक स्तंभ।
तो, दे पाती हो न,
अपनी आय का,
कुछ हिस्सा अपने
वृद्ध माँ-पिता को ??
बड़ी उम्र की स्त्रियों का प्रेम
हाँ, बड़ी उम्र की स्त्रियों को,
भी हो जाता है अकसर प्रेम।
जो होता है एकदम परिपक्व।
जानते हुए कि छली,
जाएंगी, ठगी जाएंगी,
सहर्ष मोल लेती है।
सच तो ये है जीना चाहती है,
अपनी बिसराई, भूली जिंदगी,
जो दफना आई दायित्व की,
चट्टान के नीचे, गहरे कहीं।
सिर्फ देना ही नहीं वो,
पाना भी चाहती है वो स्नेह।
उनकी उम्र से बड़ी होती है,
उनकी परछाईं की उम्र,
जो मुड़ झिड़कती है,
"हद में रहो, हो जाएगा
चरित्र दागदार।"
नहीं व्यक्त करतीं है वो अपनें,
अंदर उमड़ती भावनाएं।
छेड़ना चाहती हैं,
चिढ़ाना चाहती हैं
खिलखिलाना और शरमाना
चाहती हैं खुल के।
नहीं लुभाता उन्हें,
दैहिक आकर्षण
नहीं बनना चाहती,
वो बिछौना किसी का।
होती है बस चाह, मन से
मन के मिल जाने की।
खोजती है वो ऐसा कोई,
जो दे तवज्जो उन्हें,
मुखर हो, बिखर जाए,
जिसके समक्ष बिना किसी,
लाज शर्म लिहाज पर्दे के।
बांटना चाहती हैं
बचपन, जवानी और
चल रही कहानी ।
रोक लेती है उन्हें,
रिश्तों की मर्यादा,
पकड़ हाथ खींच ले जातीं है
वापस, लक्ष्मण रेखा,
ओहदों की।
खींच लेतीं है खुद के इर्द गिर्द
लक्ष्मण रेखा खुद ही।
छुपा लेती है खुद को,
कहानी, किस्सों,
लेखों, संस्मरणों के
भीतर ही कहीं।
हाँ, बड़ी उम्र की स्त्रियों
को भी हो जाता है
अक्सर प्रेम।
सुख की परिभाषा
सुख क्या है?
कब मिलती है खुशी तुम्हें,
जानना चाहती हूं तुमसे,
हाँ, होती है परिभाषा,
अलग अलग सुख, और खुशी की।
कुछ विचित्र और विक्षिप्त
आदतें है सुख पाने की।
बचपन मे अक्सर गिरने से,
चोट लग जाया करती थी,
हमेशा से घुटने चोटिल घायल
ही रहते है, उनसे रिसता लहू
उठता दर्द, बड़ा आनंद देता था।
जब कभी वो घाव सूख जाता और
काली खोपट जम जाती,
तो दर्द बंद हो जाता, बस यही
तो पसंद नही था वो
टीस जो नही उठती थी,
नाखून से कुरेद कुरेद फिर,
हरा कर देती उस घाव को,
रिसने लगता फिर से खून,
दर्द तब जा के चैन आता।
बत्ती चली जाती जो कभी तो
खुश हो जाती, झट मोमबत्ती ले
आती, उजाले के लिये नही,
पिघल गिरती मोम की बूंदें
अपनी हथेली के पीछेे
टपकाने के लिये,
वो जलन बड़ा सुकून जो देती थी।
मोती सी चमकती बूंदों से अलग अलग,
आकृति बनाने में बड़ा मजा आता था।
आज भी कहाँ बदला है कुछ,
बस तरीके और ढंग बदला है।
ढूंढ ही लाती हूँ कही न कही से,
किसी का चीखता कराहता घाव,
चुभाती हूँ खुद को विषबुझे कांटे,
चढ़ने लगता है जब पूरे शरीर में
नीली पड़ने लगती हूं जब,
डूब जाती हूँ गले तक, और फिर
खीच उसे बाहर निकाल
लाती हूँ अपने साथ।
ऐब और लत साथ साथ ही चलती
है तमाम उम्र, मशान तक।
ऐसा नही कि कोशिश नही की,
बाँधी थी मेड़ ऊँची ऊँची अपने
आस पास कि रोक लूँ
बहने से खुद को,
कँटीली झाड़ियां भी तो लगाई थी
उस मेड़ के चारों ओर।
और बाँध लिया था मोटी मोटी
सांकरो से खुद को कस के।
जरा सा मिट्टी का ढेला जो ढहा,
तो बिछा दिया था खुद के स्वाभिमान,
आत्मसम्मान, आत्मा को सैलाब के विरुद्ध,
जैसे अवंति
गुरु आज्ञापालन के लिए
बिछा रहा था स्वयं
बांध बन उस बाढ़ में।
भीतर स्थित बुद्धि रूपी
गुरु की आज्ञा मानी तो थी,
कहाँ बस में, कर पाया है
कोई आग को, कौन बांध पाया है,
वायु के वेग प्रचंड को।
हाँ, फिर लाँघ, बन्धन सीमाएं,
तथाकथित समाज की,
खुद को खरोचते, चीरते फाड़ते
उलझते लिपट गई उसी दर्द, टीस से
आदतन खुश हूं फफोले देख ।
दहकता और दमकता है चेहरा।
अपने इस कराह और
रिसते लहू से।
यही सुख है मेरा और तुम्हारा?
अब सौ बटा सौ
अब और नही आधा पौना
तीन चौथियाई, या दो तिहाई।
अब तो बस सौ बटा सौ।
जीती हूँ एकदम पूरा।
हँसती हूँ, जोर जोर से,
ठहाके लगा लगा के,
नही छुपाती अब आँसू,
आ जाते है जोआँखों मे
पढ़ते या देखते फ़िल्म, सीरियल
छोड़ दिया, तकना चोरी से,
कि ये
या वो
क्या सोचेगा?
रो लेती हूँ अब खूब खुल के।
नही करती अब मलाल
अपने मोटापे और चौड़ी कमर का
कभी शोर्ट्स, स्कर्ट, वनपीस
तो कभी पहन साड़ी
खूब इठलाती, इतराती हूं।
न झेंपती हूँ अब,
गिरने से दुपट्टा,
या सरकने से पल्ला,
नही परवाह है अब
किसी