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Oh! Priya Maheshwari
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Oh! Priya Maheshwari

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About this ebook

'ओह! प्रिय महेश्वरी' हास्य विनोद की भीनी बूँदों से भीगी एक परिवार की तीन पीढ़ियों की प्रेम कहानी है। जो प्रेम संग समाज में शिक्षा और नारी शक्ति का महत्व बताते हुए, समाज में मौजूद जातिवाद और कुरीतियों को भी दर्शाती है। साथ ही कहानी में मुख्य किरदार रोहिणी का अपने पिता और दादा के साथ अनूठा रिश्ता दिखाया गया है। जहाँ तीनों एक-दूसरे के साथ स्वतंत्र रूप से अपने भाव व्यक्त करते हैं साथ ही एक- दूसरे के सलाहकार भी बनते हैं। चाहे वाद शिक्षा से जुड़ा हो या विवाद प्रेम से। कहानी का मूल रूप काल्पनिक है जो बिहार की पृष्ठभूमि से भोजपुरी भाषा का कुछ रंग, कई रंगीन किरदारों और अंतरंगी घटनाओं को लिए काव्य रस की हल्की सी खुशबु के साथ प्रस्तुत है।

Languageहिन्दी
Release dateOct 2, 2023
ISBN9798215498286
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    Oh! Priya Maheshwari - Rajni Prasad

    रजनी प्रसाद

    D:\R PUblishers\R PUB\B-W-Logo.png

    राजमंगल प्रकाशन

    An Imprint of Rajmangal Publishers

    ISBN: 978-8195978793

    Published by:

    Rajmangal Publishers

    Rajmangal Prakashan Building,

    1st Street, Ozone, Quarsi, Ramghat Road

    Aligarh-202001, (UP) INDIA

    Cont. No. +91- 7017993445

    www.rajmangalpublishers.com

    rajmangalpublishers@gmail.com

    sampadak@rajmangalpublishers.in

    ——————————————————————-

    प्रथम संस्करण: सितम्बर 2023 – पेपरबैक

    प्रकाशक: राजमंगल प्रकाशन

    राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,

    ओजोन, क्वार्सी, रामघाट रोड,

    अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत

    फ़ोन : +91 - 7017993445

    ——————————————————————-

    First Published: Sept. 2023 - Paperback

    eBook by: Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)

    Copyright © रजनी प्रसाद

    यह एक काल्पनिक कृति है। नाम, पात्र, व्यवसाय, स्थान और घटनाएँ या तो लेखक की कल्पना के उत्पाद हैं या काल्पनिक तरीके से उपयोग किए जाते हैं। वास्तविक व्यक्तियों, जीवित या मृत, या वास्तविक घटनाओं से कोई भी समानता विशुद्ध रूप से संयोग है। यह पुस्तक इस शर्त के अधीन बेची जाती है कि इसे प्रकाशक की पूर्व अनुमति के बिना किसी भी रूप में मुद्रित, प्रसारित-प्रचारित या बिक्रय नहीं किया जा सकेगा। किसी भी परिस्थिति में इस पुस्तक के किसी भी भाग को पुनर्विक्रय के लिए फोटोकॉपी नहीं किया जा सकता है। इस पुस्तक में लेखक द्वारा व्यक्त किए गए विचार के लिए इस पुस्तक के मुद्रक/प्रकाशक/वितरक किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं। सभी विवाद मध्यस्थता के अधीन हैं, किसी भी तरह के कानूनी वाद-विवाद की स्थिति में न्यायालय क्षेत्र अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत ही होगा।

    सारांश

    ओह! प्रिय महेश्वरी हास्य विनोद की भीनी बूँदों से भीगी एक परिवार की तीन पीढ़ियों की प्रेम कहानी है। जो प्रेम संग समाज में शिक्षा और नारी शक्ति का महत्व बताते हुए, समाज में मौजूद जातिवाद और कुरीतियों को भी दर्शाती है।

    साथ ही कहानी में मुख्य किरदार रोहिणी का अपने पिता और दादा के साथ अनूठा रिश्ता दिखाया गया है। जहाँ  तीनों  एक-दूसरे के साथ स्वतंत्र रूप से अपने भाव व्यक्त करते हैं साथ ही एक- दूसरे के सलाहकार भी बनते हैं। चाहे वाद शिक्षा से जुड़ा हो या विवाद प्रेम से।

    कहानी का मूल रूप काल्पनिक है जो बिहार की पृष्ठभूमि से भोजपुरी भाषा का कुछ रंग, कई रंगीन किरदारों और अंतरंगी घटनाओं को लिए काव्य रस की हल्की सी खुशबु के साथ प्रस्तुत है......

    "प्रेम का त्याग प्रसंग समझाये महेश्वरी

    विरह में समर्पण का रंग दिखाये सिद्धेश्वरी

    और जलेबी का स्वाद लिए बवाल मचाये रोहिणी"

    अनुक्रमणिका

    1. छोटी हेडमास्टर 6

    2. नाना का ना ना

    3. सिद्धेश्वरी देवी

    4. सांवली रोहिणी

    5. दशहरा

    6. हमारे फेवरेट

    7. इतिहास

    8. टॉपर बाबू

    9. वैशाली की रामलीला

    10. परिश्रम का फल

    11. एंग्री आदित्य

    12. ऊपर वाली सीट

    13. वचन हनन

    14. महेश्वरी

    जब से छिड़ी है जलेबी और ट्रीग्नोमेट्री में जंग....

    तब से रोहिणी बाबू की साँसें हुई है तंग,

    अब टॉपर बाबू की लगेगी साढ़े साती......

    क्योंकि आर डी शर्मा की प्रोबॅबिलिटी है बहुत भारी।

    1. छोटी हेडमास्टर

    जागो - जागो हमारी अम्मा, ना तो हमारा सपूत हम दोनों को घर में मुर्गा बना देगा। जागो!

    हमें नहीं जाना स्कूल। पापा जी को बोलो हमें घर में पढ़ाए।

    अरे स्कूल नहीं जाओगी तो तुम्हारे पापा जी हम दोनों को पाठ पढ़ायेंगे और हमें अपने बेटे से कोई भाषण नहीं सुनना।

    रोहिणी!!! रोहिणी!!!.....इस आवाज से हमें उठना ही पड़ा।

    दादा - लो सिद्धेश्वरी भी आ गई मंदिर से। अब तैयार हो जल्दी।

    इच्छा ना होते हुए भी हम स्कूल जाने को तैयार हो गए। सिद्धेश्वरी देवी ने बैग, पानी का बोतल सब पहले से ही तैयार रखा था। सिर्फ एक टिफिन नहीं था। क्योंकि वो तो एक दम ताजा गरमा - गर्म हमारे दादा लंच टाइम पर ले आते हैं। हम झट से तैयार हुए और अपने दादा की साइकिल पर बैठ चल पड़े स्कूल की ओर। हमारा सोनी मॉडर्न इंग्लिश स्कूल काफी दूर है तो जब तक हम स्कूल नहीं पहुँचते... तब तक आपको अपने परिवार से मिला देते है। वो कहते है ना कि भूमिका बाँधना भी जरूरी है।

    तो पहले जानो हमारे दादा के बारे में क्योंकि दादी को तो हम कभी देखे ही नहीं। सुना है, हमारे पापा जी के शादी के पहले ही ऊपर चली गई थी। लेकिन कोई बात नहीं दादा तो है ना। हमारे दादा ओमकार प्रसाद, पांचवी तक पढ़े हैं। अब आप बोलो पांचवी बस .... तो सन् 1965 में हमारे गाँव दिघवारा में बड़ा स्कूल नहीं था। लेकिन अब कुछ सुधार हुआ है। अब स्कूल भी है, अस्पताल भी और बहुत बड़ा बाजार भी।

    हाँ तो 1965 में गाँव वालों का चिट्ठी- पत्री हमारे दादा ही पढ़ते - लिखते थे। सुना है एक दिन कलकत्ता स्टेशन पर एक किताब पढ़ लिए थे वो लेखक थे ना श्री रामधारी सिंह दिनकर। तब से उनके अंदर भी कवि जाग गया। बहुत कविता लिखे है हमारे दादा, लेकिन कभी नाम नहीं हुआ। हाँ लेकिन एक जगह बहुत नाम किए हैं - पहलवानी।

    बहुत माने हुए पहलवान हैं। अपने ज़माने में काफी पैसा और जमीन उससे ही जीते हैं। पटना में एक आदमी उनका पहलवानी से इतना खुश हुआ था कि आधा जायदाद ही उनको दे दिया। काहे कि उसके खानदानी दुश्मन को हरा दिए थे हमारे दादा। आज काफी जमीन और दुकानें हैं हमारी पटना में। हमसे प्यार भी बहुत करते हैं और थोड़ा बिगाड़े भी हैं।

    अब बारी आती है हमारी माँ श्रीमती सिद्धेश्वरी देवी कि ये कभी स्कूल नहीं गयी लेकिन हमें रोज ज़बरदस्ती स्कूल भेज देती हैं और अब लिख पढ़ भी लेती हैं। हमारे पापा जी जो सीखा दिए हैं इनको। पूरा दिन हमारे घर पर कोई ना कोई औरत या तो चिट्ठी लिखवाने - पढ़वाने या फिर रोने के लिए बैठी ही रहती है। किसी की सास ने पीटा, किसी के पति ने या किसी की काना - फुसी। लेकिन हमारी माँ में ये सब गुण नहीं है इसलिए सभी अपना दिल और दिमाग हल्का करने यहाँ आ जाते हैं।

    सुना है माँ शादी से पहले बहुत बदमाश आदमियों का हाथ - पैर तोड़ी थी और उनके इसी गुण से खुश हो दादा ने उनका शादी हमारे पापा जी से करवाया। जहाँ गाँव में सब उनको पहलवान की क्रांतिकारी बहू बोलते हैं, वही हमारे पापा जी माँ को हेमा मालिनी पुकारते हैं। माँ की गोल बड़ी आँखें  और घुटने तक लंबे काले बाल हैं। उनकी चोटी इतनी मोटी होती है कि किसी को सिर्फ चोटी से मार दे तो वो बेहोश ही हो जाये। हमारी माँ में दो गुण बहुत बढ़िया हैं एक नारी शक्ति दिखाना और दूसरा हमें आँख दिखाना।

    बाकी सिद्धेश्वरी देवी जी का मिजाज हमेशा ही गर्म रहता है, जिसके पीछे हमारा यानी रोहिणी प्रसाद का काफी योगदान रहता है।

    अब हमारे पापा जी आदेश प्रसाद .... हमारी माँ से बिल्कुल विपरीत हमारे पापा जी। शांत चित, ना हँसे ज्यादा, ना रोये और बोलते भी कम। फिर भी इनकी सब सुनते है। स्कूल में सिर्फ इनका ही सिक्का चलता है, क्योंकि ये हैं हेडमास्टर। हाँ लेकिन घर में थोड़ी कम चलती है क्योंकि यहाँ तो बहुत दावेदार हैं सत्ता ज़माने को ... जैसे कि हम, हमारी माँ और हमारे दादा। हमारे पापा जी ग्रेजुएट हैं पटना यूनिवर्सिटी से। पूरे गाँव में अभी इनसे ज्यादा पढ़ाई कोई नहीं किया और शिक्षा का महत्व समझते हुए हमारे पापा जी बच्चों को पढ़ाने के लिए गाँव वालों को समझाते और योगदान भी देते हैं। पापा जी हमेशा आधा घंटा जल्दी स्कूल जाते हैं और हम आधा घंटा लेट।

    स्कूल में- आ गई रोहिणी...आओ हम तो अभी पढ़ाई शुरू ही करवाये कि रोहिणी आएगी तो सब साथ में ही पढ़ाई करेंगे..... ये थी हमारी क्लास टीचर उषा किरन।

    हम - फिर शुरू करो। समय से पढ़ाई शुरू हो जाना चाहिए।  

    और हम अपनी जगह बैठ पढ़ाई शुरू कर दिए।

    शाम को पापा जी घर में कचहरी लगाए थे। काहे कि उनका हमेशा से सपना था काला कोट पहनने का। लेकिन सपने देखने से का होता है? उसको पूरा करने के लिये जो दो विशेष गुण चाहिए थे, वो तो पापा जी में कभी थे ही नहीं।

    पहला गुण दावा ठोक के झूठ बोलना और दूसरा बहस करना।

    पापा जी - आज स्कूल फिर देर से आई थी!

    हमारी मासूम आवाज - पूछ रहे हैं! कि बता रहे हैं!!

    दादा ये सुन हँस पड़े।

    माँ - थप्पड़ मारे अभी।

    पापा जी - रोहिणी स्कूल नहीं जाओगी तो पढ़ाई कैसे होगा??

    हम - आप घर में ही काहे नहीं पढ़ाते? स्कूल अच्छा नहीं लगता हमको।

    पापा जी - स्कूल में पढ़ने से परेशानी क्या है? और फिर बड़ी होगी तो दूर - दूर स्कूल - कॉलेज कैसे जाओगी??

    हम - इतना सबेरे क्यों उठे? नहीं उठना हमको। हम शाम को स्कूल - कॉलेज जायेंगे।

    माँ हमें आँखें दिखा बोली - हाँ अब स्कूल - कॉलेज तुम्हरी सुस्ती देख कर चलेंगे! अभी आठ साल की है तो इतना फर्माइश है। कॉलेज जाएगी तो पटना ही बदल देगी।

    पापा जी माँ से - शांत हो जाओ।

    पापा जी - इधर आओ।

    और हम जाके पापा जी के गोद में बैठ गए।

    पापा जी बहुत प्रेम से कहे - शाम का स्कूल - कॉलेज भी होता है। तुमको जाना है तो हम नाम लिखवा देंगे। लेकिन वो बहुत दूर है। शाम को खेलने को नहीं मिलेगा और दादा के साथ बाजार भी नहीं जा पाओगी और फिर शाम को अंधेरा भी तो हो जाता है।

    हम - तो सुबह ही जाना पड़ेगा!!

    पापा जी - हाँ, सुबह ही जाना पड़ेगा।

    हम माँ की तरफ इशारा करते हुए बोले - ठीक है। लेकिन ये हमको सुनाती बहुत है। उषा मैडम तो कभी कुछ नहीं बोलती।

    पापा जी और दादा हँस पड़े और हमारी माँ भी हँसते हुए बोली....काहे कि तुम्हारें पापा जी हेडमास्टर हैं। हर महीना पैसे देते है तुम्हारी उषा मैडम को और सब मास्टर को। इसलिए कोई कुछ नहीं सुनाता तुमको।

    हम भी एक साँस में बोल दिए - पापा जी तुमको भी तो पैसे देते है और साड़ी भी.. और अभी दो दिन पहले तो चूड़ी लाए थे, फिर तुम हमें क्यों सुनाती हो?

    यहाँ हमें गुस्सा आए और हमारी माँ हँसे जाये।

    पापा जी मुस्कराते हुए बोले - देखो, हमारी बेटी का सवाल तो एक दम सही है ..... ना डांटा करो हमारी बेटी को। नहीं तो तुम्हारा पैसा, साड़ी सब बंद कर देंगे।

    माँ - हम भी नहीं बोलेंगे तो और सर चढ़ जाएगी आपकी बेटी।

    पापा जी - तो एक ही औलाद है हमारी। अब ये भी नहीं चढ़ेगी तो और कौन चढ़ेगा?

    माँ - बस हो गया अदालत खत्म। गुस्सा सारा हवा में उड़ जाता है आपका अपनी बेटी की आवाज सुन के। दोनों बाप - दादा बिगाड़ रहे हो, फिर कोई शिकायत लेके आता है तो बात हमें सुननी पड़ती है।

    दादा - कोई शिकायत नहीं आता है। ऐसे मत बोला करो।

    तभी कोई बाहर से आँगन में आ खड़ा हुआ।

    पापा जी - आओ बैठो भौजी।

    हम बैठने नहीं आए हैं, तुम्हारी दुलारी का खबर लेने आए है.....कालू की माँ बोली।

    माँ - लो अब सुनो। पिता जी हमको बोल रहे थे कि कोई शिकायत नहीं आता।

    माँ दादा को ताना मार ही दी।

    दादा - अरे का हुआ?? कालू की माई तनी बैठ भी जाओ।

    कालू की माँ दांत पीसते हुए बोली - हम नहीं बैठेंगे। आज तो आपको अपनी पोती को ठीक करना ही होगा। नहीं तो!

    दादा - नहीं तो क्या? हमारी पोती का क्या कोई खराब स्कूटर- साइकिल है? कि ठीक करना पड़ेगा। आराम से बताओ बात क्या है?

    बोले क्या? खुद ही देख लो..... कालू की माँ ने एक किताब दिखाई, जो पूरी तरह कीचड़ से खराब हो गई थी।

    दादा - इसमें क्या देखे? ये पूरा ही खराब है। कोई पेन- पेंसिल चलाता है कि माटी पोत देता है !

    भनभनाते हुए कालू की माँ बोली - तो ये अपना पोती को समझाओ तनी। उहें की है ये....हमारे कालू का किताब खराब कर दी इ पोती तुम्हारी।

    अब हमारा पूरा परिवार हमें अपनी लट्टू जैसी आँखों से देखे। पापा जी हमें गोद से उतार दिए और बोले - आपका सारा शरारत माफ़ कर सकते है लेकिन विद्या का अपमान नहीं। ये तो हम आपको बहुत बार बोले है कि नहीं !

    माँ - आप ये झाँसी की रानी को हमें दो... अभी दो थप्पड़ लगाएंगे। अपने आप दिमाग ठीक हो जाएगा।

    कालू की माँ - ठीक बोली सिद्धेश्वरी।

    दादा - अरे चुप भी हो जाओ सब। हमारी पोती विद्या का अपमान नहीं करती। हम जानते हैं उसको। गलती से कुछ हो गया होगा।

    पापा जी - बताओ भी का हुआ था? क्यों की ऐसे?

    हम धीरे से बोले - हम तो कालू को ही मार रहे थे किताब से... तो किताब खुद ही हाथ से छूट के कीचड़ में गिर गया।

    दादा - देखा.. हम तो बोले थे कि विद्या का अपमान नहीं करती हमारी पोती। वो गलती से हो गया।

    कालू की माँ फिर भनभनाई - गलती से हो गया? सुने नहीं का बोली!! मार रही थी कालू को!! आदेश भईया क्या हम अपना बेटा तुम्हारें स्कूल में मार खाने के लिए भेजते है?

    पापा जी हमसे पूछे - अब सच-सच बताना क्यों मार रही थी कालू को ??

    हम - हमें बहुत तंग करता है। रोज ई मोटकी (यानी कालू की माँ) की बिंदी लाकर हमें लगा देता है। कहता है ब्याह करेगा... हमसे!!! कितना मोट है वो .... नहाता भी सिर्फ इतवार है। हम क्या उस कालू काला से ब्याह करेंगे?

    पापा जी - ऐसे नहीं बोलते।

    दादा - तुम शिकायत काहे नहीं की? हमको भी नहीं बताई।

    हम - शिकायत लगाए थे उषा मैडम से लेकिन उ थोड़ा- सा डांटी फिर हँस के छोड़ दी। ऐसे थोड़ी होता है। सब हम ही को सुनाते है। तंग भी हम ही हो और सजा भी हमें मिले। उ परेशान करता है और उसकी माँ शिकायत लाती है और हमारी माँ हमें ही सुनाती है। हमसे तो कोई प्यार है ही नहीं हमारी माँ को।

    ये सब बोल हम रोने लगे।

    दादा - अब क्या बोलोगी कालू की माँ ?

    कालू की माँ - अरे उ बच्चा है। इस पर क्या बोलना!!

    अच्छा!! और हमारी रोहिणी बच्ची नहीं है क्या!!.... ये बोली हमारी माँ।

    सिद्धेश्वरी देवी चाहे हमें जितना मर्जी डांट -धमका ले, लेकिन बाहर का कोई और हमें दो बात भी बोलता है... तो माँ उसको पूरा भजन सुना देती है।

    कालू की माँ - अरे सुनो तो सिद्धेश्वरी...

    माँ - तुम सुनो भौजी। इस बार तो गलती तुम्हारे बेटा का है। हमारी रोहिणी की शिकायत फिर काहे लाई तुम? पहले अपना बेटा से पूछती। और रहा किताब का नुकसान तो कल नया किताब दे देंगे रोहिणी के पापा। लेकिन याद रहे भौजी ...अगर हमारी बेटी को कोई बिंदी लगा या उंगली भी लगा, तो तुम्हारे बेटा का पूरा सोलह सिंगार हम करेंगे।

    माँ ने हमारे आंसू पोंछे और हमें गोद में उठाकर कान में फुसफुसाई - बहुत बढ़िया की।

    माँ पापा जी से -और हमारी बेटी कल स्कूल भी नहीं जाएगी। कल हम इनको मेला ले जायेंगे।

    पापा जी - जैसा आप बोलो सरकार।

    ये सुनते ही हमारा गुस्सा - नाराजगी हवा हो गई।

    कालू की माँ ये देख - सुन बड़बड़ाने लगी।

    माँ ताना मार - अरे कुछ चाहिए का भौजी !!!

    कालू की माँ - नहीं। हम ही पगला गए थे कि ईहा आ गए।

    कालू की माँ अपने घर चली गई और दिनेश बहू आ गई। दिनेश बहु मतलब कि इनके पति का नाम दिनेश है तो हम इनको ऐसे ही जानते - पुकारते है। गाँव में औरतें या तो पति के नाम से पुकारी जाती है या बच्चे के नाम से जैसे गोपाल बहू या पिंकी की माई।

    दादा - चलो रोहिणी बाजार चलें।

    और हमारे दादा हमें बाजार ले गए क्योंकि अब हमारे घर में दिनेश बहू बैठ कर रोयेगी। उसका पति बहुत मारता है। सब लोग समझा लिए लेकिन कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।

    अगले दिन माँ हमें बढ़िया से तैयार कर मेला ले गई। हमने नया फ्रॉक, सैन्डल और खिलौना खरीदा। वहाँ माँ की सहेली पुष्पा देवी भी मिली।

    पुष्पा देवी - अरे! ये इतना बड़ी हो गई। 2 साल की थी तब देखे थे इसको।

    माँ - हाँ। तुम्हारा विक्रम भी तो बड़ा हो गया होगा?

    पुष्पा देवी - हाँ और लंबा भी। अभी पांचवीं क्लास में है। और बताओ बस ठीक है? स्कूल कैसा चल रहा है ? और चाचा कैसे है??

    माँ - सब बढ़िया है और वो देखो... वो रहे पिता जी ताश जमाये बैठे हैं।

    दादा दूर कुछ बूढ़ों के साथ ताश खेल रहे थे।

    पुष्पा देवी - अब पटना कब आओगी?

    माँ - हम कैसे आयेंगे? रोहिणी को छोड़ के। देखते हैं अगर हो पाया तो हम रोहिणी को लेके आयेंगे।

    उसके बाद पुष्पा देवी कुछ फुसफुसा के माँ को बताई और रोने लगी।

    माँ - अरे चुप हो जा। हम बोलेंगे पिता जी से वो बात करेंगे तुम्हारे ससुराल में।

    रात में

    हम - हमको सोना है।

    माँ- अरे तो सूतो ना ... हम तो मालिश भी कर दिए तुम्हारा।

    हम - कैसे सूते!!! इतना गर्मी लग रहा है। हमको नहीं रहना यहाँ। शीमेला चलो, उहा गर्मी नहीं होता। उषा मैडम बोली थी सब ठंडा होता है।

    पापा जी - वो शिमला है।

    गर्मी से परेशान हो पापा जी छत पर बिस्तर जमा दिए और हम भी बिस्तर पर जम गए।

    पापा जी - तो क्या - क्या लाई मेला से? हमें तो दिखाई ही नहीं हमारी बेटी। एक ही दिन में पापा से माँ की बेटी हो गई क्या !!

    हम - आप ही देर से आए थे, फिर अंधेरा हो गया तो माँ बोली कुछ नहीं निकालना अलमारी से। हम सबेरे दिखायेंगे आपको।

    पापा जी - ठीक है। लेकिन मजा तो कि ना? माँ तंग तो नहीं ना कि?

    हम - नहीं, आज तो सिद्धेश्वरी देवी बहुत प्यार की।

    ये बोल हम खूब हँसे और पापा जी भी हँस लिए।

    माँ - खूब खिंचाई करो बाप - बेटी हमारी।

    हम - आज उ मिली थी। जो रोती रहती है।

    पापा जी - दिनेश बहु !!

    हम - नहीं। वो जिसका पति नहीं मारता फिर भी रोती है।

    तुम्हारी माँ से जो औरत मिलती है उ सब हमेशा रोती रहती है......पापा जी बोले और मुस्का दिए।

    हाँ आप भी तो रोते ही हो हमारे साथ....माँ ताना मारी।

    पापा जी - अच्छा माफ़ करो हेमा मालिनी।

    माँ - पुष्पा मिली थी। वही जिसे पटना वाला दुकान दिया है किराया पर। बोल रही थी कि सब धोखा कर दिए उसके पति के साथ। उसके देवर ने सब जमीन - मकान के कागज पर अपना नाम चढ़ा दिया है और बोला कि हिस्सा के बात की तो गोली मार देगा।

    पापा जी - ये तो बहुत बुरा हुआ। कैसा - कैसा लालची भाई होता है!!!

    माँ - आप या पिता जी बात करेंगे उसका देवर से? विनती कर रही थी।

    पापा जी - बात तो कर लेंगे लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ेगा। फिर भी जब जायेंगे पटना तो कोशिश करके देख लेंगे।

    हम - अच्छा हुआ, हमारा कोई भाई नहीं है। अब तो सब हमारा ही होगा ना पापा जी ?

    पापा जी हँसते हुए बोले...... हाँ, रोहिणी जी सब आपका है मालिक और आपका ही रहेगा।

    माँ - लेकिन ये तो पराई हो जाएगी? हम तो अकेले हो जायेंगे। चली जाएगी शादी करके।

    माँ हमारा हाथ चूमने लगी।

    हम - हम शादी ही नहीं करेंगे।

    पापा जी - वो तो सबको करना पड़ता है। लेकिन उसका भी उपाय है हमारे पास। शादी के बाद रोहिणी नहीं जायेगी कहीं, हम लड़के को ही घर ले आयेंगे।

    माँ हँसने लगी और बोली ....हाँ घर ज़माई ढूँढ़ियेगा बुढ़ापा में।

    पापा जी - तुमको मज़ाक लग रहा है क्या!! हम तो सोच लिए है ... घर जमाई लाएंगे।

    हाँ, तुम बोलो बहु तो कल सबेरे से ढूँढना शुरू कर दे। काहे की रोहिणी तो हमारे पास ही रहेगी..... दादा आँगन से लेटे हुए बोले।

    माँ - ये देखो... पिता जी भी नहीं सोये।

    पापा जी - और इनका दूसरों की बात सुनने का आदत भी नहीं सोता।

    इधर हम थोड़ा सोचे फिर बोले - फिर तो बहुत अच्छा होगा। जब हम यहाँ रहेंगे तो कोई हमें मारेगा भी नहीं, जैसे दिनेश बहु को मारते हैं।

    ये सुन हमारी माँ हमसे कही - तुम्हें कोई ऊँगली भी लगाएगा, तो हम उसका हाथ तोड़ देंगे।

    ये बात सुन तो हमें आज और भी ज्यादा प्यार आ गया अपनी माँ पर।

    अगले दिन हम बिना कोई नाटक किए समय पर स्कूल चले गए। पापा जी हमें प्रार्थना में देख बहुत खुश हुए। हमने आज बहुत ही बढ़िया तोता का ड्रॉइंग किया था। मैडम हमें पूरा 5 में से 5 दी। नंबर मिलते ही हम सीधा पापा जी के कमरे में भाग लिए। हमारा जब मन करता, हम तब उनके पास चल देते। अब चाहे वो काम कर रहे हों या पढ़ा रहे हों। हेडमास्टर का बेटी होने का हम बहुत फायदा उठाते थे।

    हम - ये देखो.. हम बनाए हैं।

    पापा जी बोले - ये बहुत सुन्दर है तुम्हारी तरह। अब जाओ क्लास, हमें काम करना है।

    हम - नहीं अभी नहीं जाना हमको। अभी तो बाकी बच्चा अपना तोता बना ही रहा है। लेकिन हम पहले ही बना लिए।

    पापा जी - ऐसे बार - बार क्लास से भाग आना अच्छा बात थोड़ी होता है।

    हम - तो फिर घर में पढ़ाओ।

    पापा जी - रोहिणी!!

    हम - हमेशा आपका ही चलेगा तो कैसे होगा!! भाग के आपके पास ही आते हैं ना। कहीं बैठ के कंचा थोड़ी खेलते हैं दूसरा बच्चा की तरह।

    ये सुन के कमरें में खड़े रामचंद्र मास्टर हँस पड़े।

    पापा जी रामचंद्र मास्टर से - अब आपको भी अपना क्लास में नहीं जाना??

    रामचंद्र मास्टर - हम तो ये फाइल देने आए थे।

    फिर रामचंद्र मास्टर टेबल पर फाइल रख दिए और हमारे गाल छूते हुए बोले - कैसे हो आप रिंकी बाबू??

    हम - हमें ये नाम नहीं पसंद। रोहिणी ही बोला करो।

    रामचंद्र मास्टर – अच्छा माफ कर दो हमको।

    हम रामचंद्र मास्टर को देखे और बोले - आप वो पीला फूल क्यों दिए उषा मैडम को? उनको सफेद फूल अच्छा लगता है।

    रामचंद्र जी हमारी बात से घबरा गए और तेजी से बाहर भाग गए।

    पापा जी - यही सब देखती हो !!

    हम - अब हम आँख भी बंद करके चलेंगे ?

    तभी दादा टिफिन लेके आ गए।

    दादा - और का बात चल रहा है ??

    हम - हमको आँख बंद रखने को बोल रहे हैं हेडमास्टर जी।

    पापा जी - अरे हम ऐसा कब बोले? हमारा मतलब था कि ज्यादा इधर - उधर मत देखा करो।

    हम - अब इधर - उधर भी नहीं देखे.... सिर्फ सीधा देखे .... और कोई बगल से मार के चला जाएगा, तो फिर आप हमें ही बोलेंगे कि आसपास देख के काहे नहीं चलती।

    पापा जी - हे प्रभु!! कैसे समझाये तुमको??

    दादा - अरे तुम क्या समझाओगे? रोहिणी खुद ही समझदार है। तुम हाथ - मुँह धो आओ और खाना खाओ।

    पापा जी - ठीक बोल रहे हैं। अब आप भी आ जाओ महाराज आपका भी हाथ धुला दें।

    पापा जी हमें गोद में उठा लिए।

    हम - अब आप ऐसे बोलेंगे तो हम कल से स्कूल देरी से आयेंगे, फिर बाद में माँ से शिकायत नहीं करना।

    पापा जी - हमें माफ़ कर दो। हमें तो लगता है कि सारा वकालत तुम्ही पढ़ के पैदा हुई हो। अच्छा हुआ वक़ील नहीं बने। नहीं तो अपना बेटी से ही रोज अदालत में हारते।

    उसी शाम

    ऐ रिंकी तुम्हरी माँ कहाँ है??

    पहले सब प्यार से हमें रिंकी बुलाते थे। कालू की बहन जिसका नाक बहता रहता था, उसने हमें सताने के लिए अपनी गंदी एक आँख वाली गुड़िया का नाम रिंकी रख दिया। बस उसी दिन हमने अपना नाम बदलने का ठान लिया और फिर हमारे दादा ने हमारा नाम रोहिणी रख दिया। रोहिणी नाम हमें बहुत पसंद आया क्योंकि पूरे गाँव में किसी लड़की का नाम रोहिणी नहीं था।

    भोला की माँ - बोलो रिंकी तुम्हरी माँ कहाँ है??

    हम - हमारा नाम रोहिणी है।

    भोला की माँ - अरे रिंकी भी तो इतना प्यारा नाम है। पहले तो सब यही बोलते थे ना।

    हम - उ पुराना बात है। पहले तुमको भी तो उमेश बहू बोलते थे सब। अब भोला की माई बोलते हैं.... तो परिवर्तन तो होता रहता है। दादा समझाये हैं हमको। अब हमें रोहिणी बोलो, नहीं तो घर में नहीं आना।

    भोला की माँ - तुम्हरे दादा कुछ ज्यादा ही सीखा दिए हैं तुमको रोहिणी बबूनी। अब तो बता दो माई कहाँ है तुम्हरी?

    हम - माँ गई है दिनेशवा के घर। आज उसका ठीक से खबर लेके आएगी।

    भोला की माँ - दिनेशवा !! शर्म नहीं आता!! चाचा - काका नहीं बोलना सिखाये दादा तुम्हरें??

    हम - उसको शर्म नहीं आता! दारु पी के बीवी को मारता है। जो आदमी औरत को मारता है वो राछत्त होता है। कोई चाचा – काका नहीं। पापा जी बताये हैं हमको।

    हैरान हो भोला की माई हमें देखे जाए। फिर वो हम पर उंगली तान बोली... दादा समझाये हैं, पापा बताये हैं!! कुछ माई भी बोली हैं तुम्हरी??

    हम - हाँ, सिद्धेश्वरी देवी बोली हैं कि कोई हमें उँगली भी लगाएगा तो तोड़ देगी।

    भोला की माँ झट अपनी उंगली नीचे कर - उंगली तोड़ेगी !!

    हम - नहीं हाथ। हाथ बोली है माँ।

    भोला की माँ - हे भगवान!! कुछ सीधा बात नहीं समझाये तुम्हरे परिवार वाले?

    भोला की माँ सिर पकड़ वही आँगन में बैठ गई। और हम अपनी चित्रकला में लग गए।

    कुछ देर बाद....

    का बना रही हो??

    ये हमारे

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