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Sapne Jo Sone Na Den (सपने जो सोने न दें)
Sapne Jo Sone Na Den (सपने जो सोने न दें)
Sapne Jo Sone Na Den (सपने जो सोने न दें)
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Sapne Jo Sone Na Den (सपने जो सोने न दें)

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About this ebook

Everyone wishes to have their dreams get cherished, but one has to endure many sleepless nights to fulfill them, and must have passion to achieve them.
It's a bitter truth that everyone has to face problems, hurdles, and adversities in their life. Many people are worried even to walk on the tailor-made and an easy going path of life, whereas, few are very brave and confident who make their own way and walk on for a successful life.
To accomplish any task in a different way and having great strength fighting any difficulty proves one's own determination towards success. One who has learned to fight against all the adversities, hurdles and difficulties in life gets all doors open for his success. Anyhow, one should possess a strong will power and determination.
Dr. Kalam's journey from a simple lad, born in a poor family, to being the President of India, gained him huge popularity. It all happened due to his strategic planning, unique working style, and life management skills.
Dr. Ramesh Pokhriyal 'Nishank' was highly influenced with the 'life management skills' of Dr. Kalam, which motivated him to pen down a book on Dr. Kalam's life experiences and his life management skills. This book is going to inspire our younger generation and others too who are facing lot many troubles and hurdles to fulfill their dreams.
This book also belongs to the same genre and you all are going to be enriched with high energy and enthusiasm. A must read book for everyone who wish to fulfill his dreams.
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateApr 15, 2021
ISBN9788128816727
Sapne Jo Sone Na Den (सपने जो सोने न दें)

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    Sapne Jo Sone Na Den (सपने जो सोने न दें) - Dr. Ramesh Pokhriyal 'Nishank'

    सपने जो सोने न दें

    (डॉ. अब्दुल कलाम के जीवन प्रबंधन पर आधारित)

    eISBN: 978-81-2881-672-7

    © लेखकाधीन

    प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.

    X-30, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II

    नई दिल्ली-110020

    फोनः 011-41611861

    फैक्सः 011-41611866

    ई-मेलः: ebooks@dpb.in

    वेबसाइटः: www.diamondbook.in

    संस्करणः : 2016

    Sapne Jo Sone Na Den

    By - Dr. Ramesh Pokhriyal 'Nishank'

    सपने जो सोने न दें

    (डॉ. अब्दुल कलाम के जीवन प्रबंधन पर आधारित)

    अपने हर सपने को हकीकत बनाएं

    ‘सबसे उत्तम कार्य क्या होता है? किसी इंसान के दिल को खुश करना, किसी भूखे को खाना देना, जरूरतमंद की मदद करना, किसी दुःखियारे का दुःख हल्का करना और किसी घायल की सेवा करना।’

    – डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

    कलाम साहब के साथ कुछ यादगार क्षण

    देशभक्ति का महासागर थे कलाम

    अपने जीवन के तमाम उतार चढ़ावों के बीच फुटपाथ पर अखबार बेचने से लेकर रक्षा वैज्ञानिक और फिर भारत के प्रथम नागरिक के पायदान पर पहुँचने वाले डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक चमत्कारिक व्यक्तित्व के स्वामी थे। अपनी मेहनत और परिश्रम के बल पर वे न केवल भारत के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति बने अपितु जन-जन के प्रेरणास्रोत बन गए। वे एक चिन्तक, भविष्यद्रष्टा, सफल वैज्ञानिक, आदर्श शिक्षक और युवाओं के पथप्रदर्शक के साथ-साथ एक सफल राजनीतिज्ञ के रूप में अपना नाम सदा-सदा के लिये इतिहास में अमर कर गए।

    राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम डॉ. निशंक की कृति

    ‘ए वतन तेरे लिए’ का राष्ट्रपति भवन में लोकार्पण करते हुए।

    अत्यन्त साधारण पृष्ठभूमि में पले-बढ़े डॉ. कलाम ने अपने आदर्शों और कर्मों से सिद्ध कर दिया कि दुनिया में कुछ भी हासिल करना कठिन नहीं है। पहले रक्षा वैज्ञानिक के तौर पर ‘मिसाइल मैन’ के रूप में उन्होंने राष्ट्र की अमूल्य सेवा की। फिर राष्ट्रपति के रूप में समस्त राष्ट्रवासियों के लिये हर क्षेत्र में प्रेरणास्रोत बनकर एक मिसाल कायम की। देश के शीर्ष पद पर बैठा व्यक्ति जितना सरल और सहज हो सकता है, वह उतना ही प्रखर भी हो सकता है, यह तो दुर्लभ ही है और वाकई प्रेरणास्पद भी। उनके साधारण व्यक्तित्व में असाधारण प्रतिभा थी। सही अर्थों में वे एक ऐसे युगपुरुष थे जो जाति, धर्म और सम्प्रदाय से ऊपर देश के सच्चे सपूत और मानवता के प्रतीक थे। वे सच्चे अर्थों में आदर्श और कर्मठता के पर्याय बन गए। भारतीयता और भारतीय मूल्यों में रचे-बसे वे एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने देश की राजनीति की दिशा बदलने और राष्ट्र को महाशक्ति के रूप में स्थापित करने का मूलमंत्र भी दिया।

    मेरी उनसे पहली मुलाकात 2007 जून माह में तब हुई, जब मैं उन्हें अपनी देशभक्ति के गीतों की पुस्तक ‘ए वतन तेरे लिये’ के विमोचन करने का आग्रह लेकर उनसे मिला था। पहली ही मुलाकात में उनके चमत्कारिक व्यक्तित्व ने मुझे प्रभावित किया, उनकी स्नेहपूर्ण और अपनत्वभरी मुलाकात से मुझे बिल्कुल भी यह अहसास नहीं हुआ कि मैं देश के सर्वोच्च नागरिक से मिल रहा हूँ। सच कहूँ तो मुझे ऐसा लगा ही नहीं कि मैं उनसे पहली बार मिल रहा हूँ, वह भी एक शीर्ष पुरुष से। ऐसी आत्मीय मुलाकात से मैं अभिभूत हो गया था। मेरे साहित्य सृजन पर बहुत प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने सहजता और स्नेहपूर्वक ‘ए वतन तेरे लिए’, पुस्तक का विमोचन करने का मेरा आग्रह स्वीकार करके मुझे अपना कायल बना लिया।

    उनसे दूसरी मुलाकात पुस्तक विमोचन के मौके पर राष्ट्रपति भवन में 24 अगस्त, 2007 को हुई। इस मुलाकात में मुझे उनके हिन्दी प्रेम और राष्ट्रभक्त हृदय के साथ-साथ उनके विराट व्यक्तित्व के भी दर्शन हुए। विमोचन के पश्चात उन्होंने मेरी पुस्तक को उलटते हुए एक मुड़ा हुआ पृष्ठ खोला और अत्यन्त नजदीक से मुझे मेरी एक कविता की अंतिम दो लाइनें अपनी टूटी-फूटी हिन्दी में गुनगुनाई।

    ‘अभी भी है जंग जारी वेदना सोई नहीं है,

    मनुजता होगी धरा पर संवेदना खोई नहीं है।

    किया है बलिदान जीवन निर्बलता ढोई नहीं है,

    कह रहा हूँ ऐ वतन तुझसे बड़ा कोई नहीं है।’

    कविता की अन्तिम दो लाइनें-

    ‘कह रहा हूँ ए वतन/ तुझसे बड़ा कोई नहीं है’ को जब वे गुनगुना रहे थे तो मैंने महसूस किया कि वे अत्यन्त भावुक हो उठे थे। तब मुझे पहली बार उनके हृदय में देशभक्ति का महासागर हिलोरे लेता हुआ प्रतीत हुआ।

    डॉ. कलाम से मेरी तीसरी मुलाकात कुमाऊँ विश्वविद्यालय के 11वें दीक्षान्त समारोह में 10 अगस्त, 2011 को हुई। दीक्षान्त समारोह में आमंत्रण हेतु जब मैंने उनसे टेलीफोन पर आग्रह किया तो उन्होंने नैनीताल आने हेतु हामी भर दी। उन्होंने कहा कि हालांकि कार्यक्रम अत्यन्त व्यस्त है, किन्तु छात्रों के बीच आना और उनसे मुलाकात करना मेरी पहली प्राथमिकता है।

    नैनीताल में दीक्षान्त समारोह के दौरान दिये गये उनके सम्बोधन से न केवल छात्र-छात्राएं अपितु समस्त शिक्षक वर्ग भी अत्यन्त प्रेरित हुआ, जीवन का ऐसा दर्शन शायद किसी बिरले व्यक्ति के पास होगा। अहिन्दीभाषी होते हुए भी वे बीच-बीच में हिन्दी में बात करने की कोशिश करते।

    आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके विचार, उनका दर्शन और उनकी जीवन शैली सदा ही हमारे लिये प्रेरणास्रोत बनकर रहेगी और हमें प्रेरित करती रहेगी। उनके व्यक्तित्व और आदर्शों से प्रेरित होकर मैंने उनके आदर्शों को आमजन और नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिये इस पुस्तक को लिखने का मन बनाया। उनके विराट व्यक्तित्व को इस छोटी सी पुस्तक में समाहित करने का मेरा यह छोटा सा प्रयास पाठकों को कुछ भी लाभान्वित कर पायेगा तो मैं इस प्रयास को सार्थक समझूंगा।

    अपने जीवन में कठिनाइयों और बाधाओं के बावजूद भी जमीन पर संघर्ष करके जिन लोगों ने शिखर को चूमा है, उनकी कहानियां भी इस पुस्तक में समाहित की गयी हैं। इनको पढ़कर पाठकों को निश्चित रूप से अपने सपने साकार करने के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा मिलेंगी।

    रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

    nishankdd@gmail.com

    प्रकाशकीय

    सपनों का सामर्थ्य

    एक प्रकाशक के रूप में मुझे बहुत से लेखकों की रचनात्मक अभिव्यक्तियों को प्रकाशित करने का सौभाग्य मिलता रहा है, उस आधार पर मैं कह सकता हूं कि सच्चे अंतःकरण से की गयीं आत्म-अपेक्षाओं और संजोई गयी महत्त्वाकांक्षाओं के प्रकाश स्तम्भ हैं स्वप्न। सपने ही हमारे व्यक्तिगत, सामाजिक एवं आध्यात्मिक मार्ग दर्शक हैं। स्वप्न-शास्त्री चाहे कुछ भी कहें मगर मुझे सपनों के बारे में मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड का यह कथन ठीक लगता है कि सपने हमारी उन इच्छाओं और आकांक्षाओं का आइना हैं जिनको हम पाना चाहते हैं। ये बात अलग है कि ज्योतिष और फलित शास्त्री अपने हिसाब से किसी के सपनों का जो भाव बताते हैं वह भी बहुत से लोगों ने असत्य नहीं पाया। विभाजन के बाद शरणार्थी के रूप में पूरी तरह से उजड़ कर भारत आये मेरे स्वर्गीय पिता गोविन्द राम जी कहा करते थे ‘सपने देखें और उन्हें साकार करने में जुट जाएं’ वह कहा करते थे कि ‘सपने देखने की क्षमता भगवान ने सिर्फ इंसानों को दी है’। मेरे कक्ष में आज भी उनके वह वाक्य लगे हैं जो मुझे हमेशा प्ररेणा देते हैं।

    सपनों का संसार अद्भुत होता है। कल्पना जगत में ये जितना हमें आश्चर्यचकित करता है उससे अधिक वास्तविकता या जागृति के समय अपने पाश में बांधे रखता है। हर आयु और हर परिस्थिति में सपने हमारी महत्त्वाकांक्षाओं को मार्ग दिखाने का ही कार्य करते हैं। सपने कैसे भी हों और उनसे कोई प्रेरणा ले या ना ले परन्तु यह तय है कि यदि प्रयास किए जाएं तो सपने हमारे जीवन को निश्चित रूप से एक सार्थक दिशा दे सकते हैं।

    अपने अनुभव से मैंने जीवन भर यही सीखा कि सपने देखना भी उतना ही जरूरी है जितना कर्म करना। सपने कर्म करते रहने और आगे बढ़ने की जो प्रेरणा देते हैं उसमें भावात्मक ऊर्जा होती है। सपने ना हों, सोच ना हो, कल्पना ना हो तो कई बार हम विचार शून्यता के मरुस्थल में यूं ही भटकते रह जाएंगे।

    जब प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि और उत्तराखंड हिमालय से सांसद रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ से मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि वह भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के विचारों पर आधारित एक ऐसी पुस्तक लिखना चाहते हैं जो विशेषकर युवा पीढ़ी को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे तो मैंने उनके आग्रह को तुरन्त स्वीकार कर लिया।

    मुझे भी याद है कि डॉ. कलाम सदा यह कहा करते थे कि यदि भारत के सभी नागरिक मिल कर प्रयास करें और अपने अपने क्षेत्र में श्रेष्ठ काम करें तो वर्ष 2020 तक निश्चित रूप से भारत एक विकसित राष्ट्र बन ही जाएगा।

    इस पुस्तक का शीर्षक ‘सपने जो सोने न दें’ रखने का सुझाव देने के लिए मैं अपने मित्र और प्रसिद्ध लेखक डॉ. अशोक कुमार शर्मा का अत्यंत आभारी हूं। पाठकों से अनुरोध है कि इस पुस्तक को पढ़ने के बाद अपने सुझाव मुझे भेजने का कष्ट करें। आपकी प्रतिक्रिया से हमें भविष्य में भी उपयोगी पुस्तकें प्रकाशित करने की प्रेरणा मिलेगी।

    नरेन्द्र कुमार वर्मा

    nk@dpb.in

    अनुक्रमणिका

    भाग-1

    डॉ. कलाम : जीवनी और जीवन प्रबन्धन

    1. प्रारंभिक जीवन

    2. बचपन के दिन

    3. वैज्ञानिक जीवन

    4. विज्ञान से राजनीति तक का सफर

    5. मुगल गार्डन और डॉ. कलाम

    6. राष्ट्रपति दायित्व से मुक्ति के बाद

    7. विजन 2020

    8. डॉ. कलाम का व्यक्तित्व

    9. कलाम की पुस्तकें और उनका हिंदी प्रेम

    10. अलविदा कलाम

    11. अन्तिम विदाई

    12. पुरस्कार/सम्मान

    13. उपलब्धियां

    भाग-2

    सपने जो सोने न दें

    14. डॉ. कलाम के प्रेरणा शब्द

    15. सपने जो सोने न दें

    16. कोशिश करना मत छोड़ो

    17. कठिनाइयां हमारी मदद करती हैं

    18. लक्ष्य के प्रति निष्ठावान रहें

    19. समस्याओं से लड़ना और उनसे जीतना आना चाहिए

    20. जीवन में उजाला

    21. परिश्रम सफलता का एकमात्र रास्ता

    22. आपका नज़रिया सबसे अलग होना चाहिए

    23. आने वाली पीढ़ी का भविष्य उज्ज्वल हो

    24. ज़िंदगी और समय, सबसे बड़े अध्यापक

    25. ईमानदार, मेहनती पाता है ईश्वर से विशेष सम्मान

    26. विज्ञान के मूल काम होंगे हमारी भाषा में

    27. सफल होने के लिए असफलता की कहानियां पढ़ें

    28. ब्लैक बोर्ड बनाए उजली जिंदगी

    29. मदद की जरूरत सबको है

    30. ताकत ही ताकत का सम्मान करती है

    31. उच्चतम एवं श्रेष्ठ लक्ष्य प्राप्त करो

    32. देश के विकास के लिए स्वयं सशक्त बनें

    33. आत्मसम्मान आत्मनिर्भरता के साथ आता है

    34. युवा पीढ़ी को एक समृद्ध और सुरक्षित भारत दें

    35. दो गरीब बच्चों को सहारा दें

    36. बैक बेंचर में भी प्रतिभा होती है

    37. सफलता की निशानी आपका ऑटोग्राफ

    38. आंतरिक शक्ति को याद रखें

    39. स्वदेशी अपनाएं

    40. जीवन जन्मसिद्ध अधिकार है

    41. प्रकृति ही सब कुछ है

    42. महान सपने हमेशा पूरे होते हैं

    भाग - 1

    डॉ. कलाम : जीवनी

    और जीवन प्रबंधन

    प्रारंभिक जीवन

    देखा जाये तो एक साधारण बच्चे से लेकर कलाम बनने का सफर आसान नहीं था, लेकिन भारत के 11वें राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जिनका पूरा नाम डॉक्टर अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम है, उनकी जिंदगी का तो फलसफा ही था कि ‘कभी छोटे सपने मत देखो। जो भी जिम्मेदारी लो, उसे नई परिभाषा दे दो।’ उन्होंने ऐसा ही किया, इसलिए वह आम लोगों के राष्ट्रपति होकर भी सबके लिए हमेशा खास रहेंगे।

    वह पहले ऐसे गैर-राजनीतिज्ञ राष्ट्रपति रहे, जिनका राजनीति में आगमन विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में दिए गए उत्कृष्ट योगदान के कारण हुआ। डॉ. कलाम बच्चों तथा युवाओं में बहुत लोकप्रिय हुए। भारतवासी आदरवश उन्हें ‘मिसाइल मैन’ कह कर बुलाते हैं। अपने सहयोगियों के प्रति घनिष्ठता एवं प्रेमभाव के लिए कुछ लोग उन्हें ‘वेल्डर ऑफ पीपुल’ भी कहते हैं। परिवारजन तथा बचपन के मित्रगण ‘आजाद’ कह कर पुकारते थे।

    15 अक्टूबर, 1931 को धनुषकोडी गांव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ। इनके पिता जैनुलाब्दीन न ज्यादा पढ़े-लिखे थे, घर की आर्थिक स्थित अच्छी नहीं थी। इनके पिता मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे। अब्दुल कलाम संयुक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह स्वयं पांच भाई एवं पांच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे। अब्दुल कलाम के जीवन में इनके पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए।

    वह अपने पुश्तैनी मकान में रहते थे, जो कभी 19वीं सदी में बना था। रामेश्वरम का मशहूर शिव मंदिर उनके घर से सिर्फ 10 मिनट की दूरी पर था। इलाके में ज्यादा आबादी मुसलमानों की थी। वे हर शाम नमाज पढ़ने मस्जिद में जाया करते, तो रामेश्वरम मंदिर में जाकर मत्था टेकना भी नहीं भूलते थे। मंदिर के पुजारी लक्ष्मण शास्त्री उनके अब्बा के अच्छे मित्रों में एक थे। जब वह 6 साल के थे तो अब्बाजान के साथ मिलकर लकड़ी की एक कश्ती बनाई, जो लोगों को रामेश्वरम से धनुषकोडी का नदी का रास्ता पार कराती थी। हर सुबह रामेश्वरम रेलवे स्टेशन से धनुषकोडी के बीच अखबार बेचने का भी काम किया, जो उनकी आमदनी का जरिया बना।

    5 वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के पंचायत प्राथमिक विद्यालय में उनका दीक्षा-संस्कार हुआ था। उनके शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उनसे कहा था- ‘जीवन में सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन तीन शक्तियों को भलीभांति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए।’ उनकी उस सीख को नन्हें कलाम ने मन-ही-मन याद कर लिया।

    अब्दुल कलाम एक तपस्वी होने के साथ-साथ एक कर्मयोगी भी थे। अपनी लगन, मेहनत और कार्यप्रणाली के बल पर असफलताओं को झेलते हुए आगे बढ़ते गये। अपनी उपलब्धियों के दम पर आज उनका नाम अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों में लिया जाता है।

    प्रारम्भिक जीवन में अभाव के बावजूद वे किस तरह राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे, यह बात हम सभी के लिए प्रेरणास्पद है। उनकी शालीनता, सादगी और सौम्यता किसी महापुरुष से कम नहीं है। उनके जीवन से हम भारतीय ही नहीं विदेशी भी बहुत प्रभावित हुए। अब्दुल कलाम, सादा जीवन, उच्च विचार तथा मेहनत के उद्देश्य को मानने वाले ऐसे महापुरुष हैं, जिन्होंने सभी उद्देश्यों को अपने जीवन में निरन्तर जिया भी है। इसलिए वे हर छोटे बड़े, अमीर-गरीब, हिन्दू-मुसलमान के आदर्श बने। उनके प्रेरणास्पद वाक्यों से लाखों युवाओं को प्रेरणा मिली।

    बचपन के दिन

    कलाम का बचपन बड़ा संघर्षपूर्ण रहा। वे प्रतिदिन सुबह 4:00 बजे उठ कर गणित का ट्यूशन पढ़ने जाया करते थे। वहां से 5:00 बजे लौटने के बाद वे अपने पिता के साथ नमाज पढ़ते, फिर घर से 3 किलोमीटर दूर स्थित धनुषकोडी रेलवे स्टेशन से अखबार लाते और पैदल घूम-घूम कर बेचते। 8:00 बजे तक वे अखबार बेच कर घर लौट आते। उसके बाद तैयार होकर स्कूल चले जाते। उनके बचपन को निखारने में उनकी माँ का विशेष योगदान रहा। कलाम की माता का नाम आशियम्मा था। वे एक धर्मपरायण और दयालु महिला थीं। 7 भाई-बहनों वाले परिवार में कलाम सबसे छोटे थे, इसलिए उन्हें अपने माता-पिता का विशेष दुलार मिला।

    डॉ. कलाम का पुस्तैनी घर

    5 वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के प्राथमिक स्कूल में कलाम की शिक्षा का प्रारम्भ हुआ। उनकी प्रतिभा को देखकर उनके शिक्षक बहुत प्रभावित हुए और उन पर विशेष स्नेह रखने लगे। एक बार बुखार आ जाने के कारण कलाम स्कूल नहीं जा सके। यह देखकर उनके शिक्षक मुत्थुश जी काफी चिंतित हो गये और स्कूल समाप्त होने के बाद वे उनके घर जा पहुंचे। उन्होंने कलाम के स्कूल न जाने का कारण पूछा और कहा कि यदि उन्हें किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो, तो वे निःसंकोच कह सकते हैं।

    नन्हें अब्दुल को उनकी माँ ने अच्छे-बुरे को समझने की शिक्षा दी। छात्र जीवन के दौरान जब अब्दुल घर-घर अखबार बांट कर वापस आते थे तो माँ के हाथ का नाश्ता तैयार मिलता। पढ़ाई के प्रति उनके रुझान को देखते हुए उनकी माँ ने उनके लिए छोटा सा लैम्प खरीदा था, जिससे वे रात को 11:00 बजे तक पढ़ सकते थे। एक जगह कलाम ने अपनी सफलता का श्रेय अपनी माँ को देते हुए कहा था कि- ‘माँ ने अगर साथ न दिया होता तो मैं यहां तक न पहुंचता।’

    कलाम की लगन और मेहनत के कारण उनकी माँ खाने-पीने के मामले में उनका विशेष ध्यान रखती थीं। दक्षिण में चावल की पैदावार अधिक होने के कारण वहां रोटियां कम खाई जाती हैं, लेकिन इसके बावजूद कलाम को रोटियों से विशेष लगाव था। इसलिए उनकी माँ उन्हें प्रतिदिन खाने में दो रोटियां अवश्य दिया करती थीं। एक बार उनके घर में खाने में गिनी-चुनी रोटियां ही थीं। यह देखकर माँ ने अपने हिस्से की रोटी कलाम को दे दी। उनके बड़े भाई ने कलाम को धीरे से यह बात बता दी। इससे कलाम अभिभूत हो उठे और दौड़ कर माँ से लिपट गये। उनके बाल हृदय में अपनी माँ के प्रति विशेष स्नेह जाग उठा। बाद में डॉ. कलाम ने जीवन भर शाकाहार अपना लिया था और वे नियमित खाने में अपने पारंपरिक दक्षिण भारतीय खाने को ही शामिल करते थे। उन्हें पारंपरिक आयंगर खाना ही पसंद था, जैसे- वैंधया कोजम्बू और पुलियोडरे। उन्होंने शाकाहार को कैसे अपनाया?,इसका राज उन्होंने एक साक्षात्कार के दौरान बताया था कि जब 1950 में उन्होंने सेंट जोसफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली में प्रवेश किया था, तब से ही वह शाकाहारी बन गए थे, क्योंकि उन्हें जो स्कॉलरशिप मिलती थी, उसमें मांसाहारी भोजन का खर्च जुटाना अपने आप में कठिन काम था। समय के अनुसार चलने के लिए उन्होंने मांसाहार को छोड़ने का निर्णय लिया, जो बाद में उनकी आदत में शामिल हो गया। उनकी इस आदत को याद करते हुए बैंगलूर, इसरो सेटेलाइट सेंटर के पूर्व निदेशक, आर. अरवामुदान ने बताया कि- ‘हम इंदिरा भवन लॉज, तिरुवनंतपुरम में रहते थे, तो लोग उन्हें कलाम अय्यर बुलाते थे, क्योंकि वह ब्राह्मणों के चारों ओर ही घूमते दिखाई देते थे और उनकी खाने की आदतें भी उन्हीं के जैसे हो गईं थी। सिर्फ एक ही नॉन वेजिटेरियन खाना वह कभी-कभी खाते थे और वह था केरल आलू के साथ अंडा मसाला।’

    कलाम से आर. अरवामुदान 1963 में नेशनल एरोनोटिक्स स्पेस एजेंसी में पहली बार मिले थे। यहां स्टेशन से जुड़ा एक होस्टल भी था, जहां सेल्फ सर्विस कॉफी हाउस था। आर. अरवामुदान ने उन दिनों की याद करते हुए भावुक होकर बताया- ‘हम अकसर मैश आलू, उबली हुई बीन्स और मटर, ब्रेड तथा बहुत सारा दूध पीते थे और हफ्ते का आखिरी दिन सुपर मार्किट शॉपिंग, सिनेमा देखने और भारतीय घरों में कभी-कभी डिनर करने के चक्कर में ही निकल जाता था।’

    भारत के पूर्व राष्ट्रपति के बारे में और जानने के लिए चेन्नई के अन्नालक्ष्मी रेस्तरां में जाया जा सकता है। जहां भारत का 11वां राष्ट्रपति बनने से पहले कलाम इस छोटी-सी जगह पर नियमित रूप से जाते थे। मैनेजमेंट के अनुसार, यहां उनका पसंदीदा भोजन था- वथा कोजम्बू और पापड़। डॉ. कलाम ने अपने जीवन के करीब तीन दशक केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में बिताए। यहां के एक स्थानीय रेस्तरां में डॉ. कलाम की फोटो हर जगह लगी हुई है, और वह यह दावा करते हैं कि रोज दिन के आखिर में कलाम वहां जरूर जाते थे।

    प्राइमरी स्कूल के बाद कलाम ने श्वार्ट्ज हाईस्कूल, रामनाथपुरम में प्रवेश लिया। बचपन में कलाम पढ़ाई में रुचि रखने वाले अंतर्मुखी किस्म के छात्र थे। उनको पढ़ाई की ओर मोड़ने में इनके जीजा जलालुद्दीन और चचेरे भाई शमसुद्दीन का बड़ा हाथ रहा। रुचि जगने के बाद कलाम का समय उनके पड़ोसी श्री माणिक्कम के पुस्तकालय में बीतता। बचपन में उन्हें लंबे पंखों वाली समुद्री चिड़िया की उड़ान बहुत आकर्षित करती थी। कलाम को प्रेरित करने वाले लोगों

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