भीम-गाथा (महाकाव्य)
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भारत रत्न बाबासाहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के जीवन और दर्शन पर आधारित यह महाकाव्य 'भीम-गाथा' महाकवि श्री नंदलाल सिंह 'कांतिपति' के साहसिक लेखन की उद्घोषणा है, जिसमें अतीत की गलतियों और वर्तमान की चुनौतियों के साथ-साथ ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं को बहुत ही सादगी और स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया गया है।
राष्ट्रवाद एवं मानवतावाद के पोषक हर व्यक्ति को इस पुस्तक का अध्ययन करना चाहिए।
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भीम-गाथा (महाकाव्य) - Nandlal Singh ‘Kantipati’
भीम-गाथा
(महाकाव्य)
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
Shape Description automatically generated with low confidencePublished by:p
Sahityapedia Publishing
Noida, India – 201301
www.sahityapedia.com
Contact - +91-9618066119, publish@sahityapedia.com
Copyright © 2023 Nandlal Singh ‘Kantipati’
All Rights Reserved
First Edition - 2023
ISBN – 978-93-89100-88-4
No part of this book may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or transmitted, in any form, or by any means (electrical, mechanical, photocopying, recording or otherwise) without the prior written permission of the author & the publisher.
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समर्पित
समाज के उस वर्ग को
जो सदियों तक कुछ
तथाकथित प्रबुद्ध एवं
विशेष अधिकार प्राप्त
लोगों द्वारा प्रताड़ित
होता रहा।
भूमिका
भारत की धरा को महापुरुषों और देवी-देवताओं की भूमि कहा गया है। ऐसा मानना है कि दुनिया में जब पापाचार बढ़ जाता है और जनता त्राहिमाम करने लगती है तो पापियों के नाश और धर्म की रक्षा के लिए धरती पर ईश्वर को अवतार लेना पड़ता है। ईश्वर अथवा देवी-देवता, यानी वह व्यक्ति जो स्वार्थ से ऊपर उठकर मानवता की रक्षा के लिए अतीत से सीख लेकर, भविष्य की चिंता किए बगैर अपने वर्तमान की उपलब्धियों एवं सुख-सुविधाओं को तिलांजलि दे अपना जीवन भी दाव पर लगा देता है। आने वाली पीढ़ियों के लिए वही व्यक्ति भगवान हो जाता है। भारत देश की पवित्र भूमि पर जन्म लेने वाले ऐसे ही महापुरुषों में एक नाम है― बाबासाहब भीमराव अंबेडकर। जी हाँ...भारतरत्न बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर... जिसने अपने ज्ञान के प्रकाश-पुंज से पूरे देश को आलोकित किया। फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाला यह ध्रुवतारा अपने अस्तित्व को समय की भट्ठी में तपाकर कुंदन बनाया। जिसने पापियों का नाश नहीं किया बल्कि उनका हृदय परिवर्तित किया। उसकी शक्ति भुजाओं में नहीं... उसकी लेखनी में थी। जिसने हेड, हैंड एंड हार्ट को हमेशा एक्टिव रखा और ऐसा ही करने के लिए सबको ही प्रेरित भी किया। जिसने इस्लामिक कट्टरपंथियों से देश को आगाह किया। हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों, रूढ़ियों एवं परंपराओं के विरुद्ध विद्रोह किया किंतु कभी भी हिंदुओं से द्वेष नहीं किया। जिसने खुद अपार पीड़ा झेली, दुःख भोगा, अपमान सहा पर कभी भी भारतीय संस्कृति एवं भारतीय राष्ट्र की अस्मिता को धूमिल नहीं किया।
यह विडंबना ही है कि अपने समय का सबसे ज्यादा और बड़ी डिग्रियों के स्वामी को, घटिया सोच रखने वाले रूढ़िवादियों द्वारा, सबसे बड़ा विवादित व्यक्ति बना दिया गया जिससे मानवता के इस पुजारी को जीवनपर्यंत कदम-कदम पर तिरस्कार ही झेलना पड़ा। युग-प्रवर्तक ऐसे मनीषी के कर्मशील व्यक्तित्व एवं कृतित्व को शब्दों में पिरोना, मुझ जैसे साधारण व्यक्ति के लिए, सूरज को दीपक दिखलाने जैसा है, फिर भी मैं इस कठिन कार्य को करने का मोह नहीं छोड़ पाया और 'भीम-गाथा' के रूप में परिणाम आपके सामने है।
इस ग्रंथ की रचना का उद्देश्य किसी को प्रसन्न करना या दुःखी करना नहीं है अपितु एक मनीषी की जीवन-गाथा और उसके अंतर्मन में विद्यमान राष्ट्रहित के कोलाहल को यथावत समाज के समक्ष प्रस्तुत करना मात्र ही है। मैं जानता हूँ कि पूर्वाग्रह, दबाव, चाटुकारिता अथवा किसी खास उद्देश्य के जरिए लिखी हुई रचना को कुछ विशेष प्रकार के लोगों, वर्ग या राजनीतिक दलों द्वारा असाधारण मानकर प्रचारित भले ही कर दिया जाए पर उसका स्थायी भाव अंततः गौण ही रहता है।
कविता की समझ सामान्य व्यक्तियों में कुछ कम ही होने की वजह से शातिर लोग अर्थ का अनर्थ कर इसे कभी-कभी विवाद का कारण भी बना दिया करते हैं। यह भी सत्य है कि सामान्य आलोचक या जन समुदाय विरले ही समकालीन कविता का प्रशंसक बन पाता है, और किसी पेशेवर समीक्षक से इसके सही मूल्यांकन की अपेक्षा स्वयं में विवेकशून्यता है।
एक कहानी है― अंधों के गांव में एक हाथी आया। हाथी क्या होता है यह जानने के लिए सभी अंधे उस हाथी के अंगों को पकड़ कर अपना-अपना अनुभव व्यक्त करने लगे। किसी के लिए हाथी सूप के समान लगा तो किसी के लिए रस्सी के समान। किसी के लिए खंभे के समान लगा तो किसी के लिए दीवार के समान। हाथी एक, किंतु उसके संबंध में सबकी धारणा अलग-अलग। ऐसा इसलिए क्योंकि वे उस हाथी को अपनी आँखों से नहीं बल्कि हाथों से देख रहे थे। हाथी का जो हिस्सा जिसके हाथ लगा, हाथी के संबंध में उसकी वैसी ही धारणा बन गई। अपनी-अपनी जगह सब सही थे फिर भी हाथी के संबंध में उनका दृष्टिकोण उनके आपसी टकराव का कारण बन गया।
कल्पनाओं में गोते लगाना शायद कठिन न हो, पर इतिहास को तारतम्यता देते हुए छंदबद्ध करना निःसंदेह एक दुरूह कार्य है। उसपर यदि घटना में धार्मिक और राजनैतिक गतिविधियाँ भी हों तो पूछिए मत... परिस्थिति और भी भयावह हो जाती है। कब कौन सी बात विस्फोटक रूप ले ले, इसका खतरा हमेशा बना रहता है। पर खतरों से डर कर इतिहास पर पर्दा डालना निरा नासमझी ही कही जाएगी क्योंकि मानव जाति के सुरक्षित भविष्य के लिए अतीत की गलतियों और वर्तमान की चुनौतियों का विश्लेषण एक आवश्यक शर्त है। भारतरत्न बाबासाहब भीमराव अंबेडकर के जीवन पर आधारित इस ग्रंथ में हमने उनके वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक आदि सभी पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए ऐतिहासिकता को जिवंत रखने का भरसक प्रयत्न किया है। अब यह पाठकों पर निर्भर करता है कि वे अपनी खुली आँखों से पूरे हाथी को देखते हैं या फिर स्वार्थपरायणता में इसके किसी अंग विशेष को पकड़े समाज में विद्वेष का आधार तैयार करते हैं। सबकी अपनी सीमा है। मैं भी अपवाद नहीं हूँ। इसमें रह गई त्रुटियाँ हमारे सीमा की परिचायिका हैं। सुधी समीक्षकों से संकेत पाकर सँवरने में मुझे प्रसन्नता होगी।
जीवन की बहुमुखी व्यापकता के कारण, अत्यल्प सामग्री की मदद से पिछले युग या समाज को चित्रित करना मुश्किल है। सामग्री जितनी ही अधिक होती जाती है उसी अनुपात से बीते युग तथा समाज की रूपरेखा प्रस्तुत करना सरल होता जाता है। इस ग्रंथ के प्रणयन में हमें जिन पुस्तकों से होकर गुजरना पड़ा है, वे हैं― डॉ. राजेंद्रमोहन भटनागर की 'डॉ. आंबेडकर', राधेश्याम की 'अद्भुत भीमराव अंबेडकर', राजू राज की 'बाबा साहब डा. भीमराव अंबेडकर', धनंजय कीर की 'डॉ. अंबेडकर : लाइफ एंड मिशन', और बाबासाहब की खुद की पुस्तकें 'मि. गांधी एंड द इमेंसीयेशन आफ द अनटचेबिल्स', 'द राइज एंड फाल ऑफ हिंदू वूमैन', एनिहिलेशन ऑफ कास्ट', 'थॉट्स ऑन पाक', 'रानाडे, गांधी एंड जिन्ना', आदि। इसके अतिरिक्त मुझे देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं समाचारपत्रों में प्रकाशित सामग्रियों एवं विभिन्न बोर्डों के पाठ्यक्रमों में समाहित सामग्रियों से भी भरपूर मदद मिली है। मैं इन सबका ही आभारी हूँ। आभारी हूँ मैं अपने साहित्यकार मित्रों सर्वश्री वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी', संतोष कुमार गुप्त 'संगम', अवधकिशोर यादव 'अवधू' एवं संतोष कुमार श्रीवास्तव 'तनहा' जी का जिन्होंने इस ग्रंथ की टंकित प्रतियों का सूक्ष्मता से अध्ययन कर अपने बहुमूल्य सुझावों द्वारा इसके त्रुटि-उन्मूलन में हमारा सहयोग किया है।
मानवतावादी महानायक का जीवन-चरित्र अपने आप में प्रेरणास्रोत है। मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि भारत ही नहीं अपितु विश्व का हर नागरिक इस ग्रंथ को पढ़े जिससे मानवता की मशाल से जगत का कोना-कोना जगमगा उठे और सारी दुनिया एक परिवार के रूप में अमन-चैन से रह सके।
सत्य सदैव ही अभिपोषणीय एवं कल्याणकारी होता है। हम सभी को उसका सम्मान करना चाहिए। एक कुंडलियाँ के साथ मैं अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा―
कड़ुआ बड़ी कुनैन है, करे रोग को दूर।
कोयल के मृदु बोल से, है जग चकनाचूर।
है जग चकनाचूर, और उसका गुण गाता।
कितनी है वह छली, किसे है कौन बताता।
करता नीचा कर्म, और मृदु बोले भड़ुआ।
कहति कांति— पति सुनो, सत्य हो जितना कड़ुआ।।
मंगल की शुभ अपेक्षाओं के साथ .......।
आपका: नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
चलभाष– 91- 9919730863
अनुक्रमणिका
खंड - 1 पृष्ठभूमि
खंड - 2 कुल और वंश
खंड - 3 जन्म
खंड - 4 अपमान की घुट्टियाँ
खंड - 5 शहर के प्रति आकर्षण
खंड - 6 उच्च शिक्षा एवं विवाह
खंड - 7 जीवन में बदलाव की घड़ियाँ
खंड - 8 स्वतंत्र वकालत
खंड - 9 अछूतों के लिए जल की व्यवस्था
खंड - 10 गोल मेज कान्फ्रेंस
खंड - 11 कम्युनल अवॉर्ड और पूना पैक्ट
खंड - 12 अछूतोद्धार
खंड - 13 पत्नी-वियोग
खंड - 14 चुनावी सफर
खंड - 15 गांधी एवं नेहरू के प्रति विचार
खंड - 16 पाकिस्तान के प्रति विचार
खंड - 17 डायरेक्ट एक्शन डे
खंड - 18 आजादी और देश विभाजन
खंड - 19 संविधान का प्रारूप
खंड - 20 दलितों की गुहार
खंड - 21 पुनर्विवाह और परिणाम
खंड - 22 हिंदू कोड बिल
खंड - 23 बौद्ध धर्म की