Shatakveer Sachin
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About this ebook
The most celebrated Indian cricketer of all time, he received the Bharat Ratna Award—India's highest civilian honor—on the day of his retirement. Now Sachin Tendulkar tells his own remarkable story, from his first Test cap at the age of 16 to his 100th international century and the emotional final farewell that brought his country to a standstill.
When a boisterous Mumbai youngster's excess energies were channeled into cricket, what resulted were record-breaking schoolboy batting exploits that launched the career of a cricketing phenomenon.
Before long Sachin Tendulkar was the cornerstone of India's batting lineup, his every move watched by a cricket-mad nation's devoted followers. Never has a cricketer been burdened with so many expectations; never has a cricketer performed at such a high level for so long and with such style—scoring more runs and making more centuries than any other player, in both Tests and one-day games.
And perhaps only one cricketer could have brought together a shocked nation by defiantly scoring a Test century shortly after terrorist attacks rocked Mumbai. His many achievements with India include winning the World Cup and topping the world Test rankings. Yet he has also known his fair share of frustration and failure, from injuries and early World Cup exits to stinging criticism from the press, especially during his unhappy tenure as captain.
Despite his celebrity status, Sachin Tendulkar has always remained a very private man, devoted to his family and his country. Now, for the first time, he provides a fascinating insight into his personal life and gives a frank, revealing account of a sporting life like no other.
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Shatakveer Sachin - Rajshekhar Mishra
रिकॉर्डस
बन गए वर्ल्ड चैंपियन
2 अप्रैल 2011-दिन शनिवार । मुंबई में उस दिन वर्ल्ड कप का फाइनल मैच खेला गया और हम विश्व कप जीतने में सफल हो गये यानी हम फिर से बन गये वर्ल्ड चैंपियन । 28 सालों बाद हमने यह खिताब जीता । वैसे तो यह एक किसी परीकथा जैसी ही घटना दिखती है । हम सब इस ऐतिहासिक क्षणों के चश्मदीद गवाह भी हैं । हमने देखा है भारत को विश्व विजेता बनते हुए । जी हाँ, हमने देखा है । आपने देखा है! उन्होंने देखा है! वर्मा जी ने देखा है! शर्मा जी ने देखा है! लियाकत भाई दे देखा है, तो सरदार इंदर सिंह ने देखा है! चेन्नई वाले रामचंद्रन अम्पर ने देखा है, तो कोलकाता के भेलू सरकार ने भी देखा है । सीधे शब्दों में कहें तो यह है कि हम सबने देखा इंडिया को वर्ल्ड चैंपियन बनते हुए । पूरी इंडियन टीम और सभी देशवासियों को बधाइयाँ ढेरों-ढेर हार्दिक शुभकामनाएं ।
ये वो क्षण थे जब हम सब भावुक भी हुए और रोए भी । सुजान सिंह भी रोए थे । हरभजन सिंह भी रोए थे ।.. .. और रोये थे मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर भी । वे क्षण ही ऐसे थे । वर्ल्ड कप की जब से शुरुआत हुई थी, तभी से टीम के ज्यादातर खिलाड़ियों ने यह कर दिया था कि वो सब के सब सचिन तेंदुलकर के लिए ही वर्ल्ड कप जीतना चाहते थे और जीते भी । जैसे ही भारत ने वर्ल्ड कप जीता और टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने छक्का मार कर मैच जीता तभी से सचिन तेंदुलकर रुआंसे से हो गये थे । उसके बाद जब टीम के खिलाड़ियों सुरेश रैना, विराट कोहली और यूसुफ पठान ने उन्हें कंधे पर उठा कर मैदान में घुमाया वे दृश्य देख कर हम सब रोने लगे और सचिन की भी आँखें भर आई । ये उनका सपना ही था कि भारत फिर से वर्ल्ड कप जीते । ऐसा भी नहीं है कि वर्ल्ड कप की इस खिताबी जीत में उनका कोई रोल नहीं है । उनका भी रोल महत्त्वपूर्ण है । उन्होंने 482 रनों का योगदान दिया है इस महा अभियान में दो शतकों की सहायता से ।
जीत के बाद सचिन तेंदुलकर ने यह कहा भी कि यह मेरा सपना पूरा होने जैसी ही बात है । सत्य तो यह है कि इससे बड़ी उपलब्धि मेरे कैरियर में कभी मिली ही नहीं । सबसे बड़ी उपलब्धि वर्ल्ड कप जीतना ही होता है । जो मुझे मिल गयी है । विश्व कप जीतने के बाद सचिन ने टीम के साथी खिलाड़ियों के साथ-साथ टीम के सपोर्ट स्टाफ की भी तारीफ की । बधाइयां भी दीं । उन्होंने गैरी मैडी की भी तारीफ की, तो माइक हार्वे की भी प्रशंसा की इस बात के लिए कि उनके साथ में जुड़ने के साथ ही भारतीय टीम का मानसिक स्तर काफी मजबूत हुआ और ऐसा होने से टीम को बहुत फायदा हुआ ।
लंबे समय बाद वर्ल्ड कप जीते जाने पर सचिन तेंदुलकर का कहना था कि ये ऐसा मौका होता है जो हम सब अपने करियर में जीना चाहते हैं । हमने जिया । क्या आप रोए थे? यह पूछे जाने पर मुंबई का यह उस्ताद बल्लेबाज बोला, जी हां, हमारी आँखों से आँसू तो निकले थे, पर वो सब खुशी के आँसू थे । इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता, ये मेरी जिंदगी के सबसे गौरवशाली क्षण हैं सर जी ।
वैसे भी हर क्रिकेटर का सपना होता है वर्ल्ड कप जीतना । चैंपियन बनना । हर किसी का सपना पूरा हो जाए, यह भी जरूरी नहीं होता, लेकिन जब यह सपना खुद क्रिकेट के भगवान ने देखा हो, तो उसे पूरा होने से भला कौन रोक सकता है? क्रिकेट के इस मसीहा ने भी सपना देखा और उसका सपना पूरा भी हो गया । संयोग यह रहा कि अपनी ही मिट्टी में उन्होंने क्रिकेट का एबीसीडी सीखा और उसी मिट्टी पर खेल कर वह वर्ल्ड चैंपियन भी बन गये ।
मायानगरी मुंबई सचिन की गौरवगाथा से अटी पड़ी है । इसमें सिर्फ एक कमी बाकी थी । वह भी पूरी हो गयी । हां, अगर इस महाअभियान के फाइनल में वह महाशतक (शतकों का शतक) जमाने में सफल हो जाते, तो सोने पे सुहागा होता । भारत के 121 करोड़ लोगों के दिल से यही दुआ निकल रही थी कि भारत के वर्ल्ड चैंपियन बनने के साथ-साथ इस बादशाह का भी एक और बड़ा महारिकॉर्ड बन जाए पर वो हो नहीं सका ।
हकीकत तो यह है कि इस वर्ल्ड कप से पहले उन्होंने पांच वर्ल्ड कप खेले परन्तु वर्ल्ड कप को अपने हाथ से उठाने और उसके चूकने का मौका उन्हें कभी नहीं मिला । हां, सचिन ने इस तरह के सपने का इजहार पहले कभी नहीं किया था । पर इस बार वह खुद चाहते थे कि भारत वर्ल्ड कप जीते और मेरा भी सपना सच हो जाए । वैसे भी उनका यह वर्ल्ड कप, आखिरी वर्ल्ड कप रहा है ।
अपना सपना पूरा करने में सचिन की अपनी मेहनत भी तो कम नहीं है । बेशक फाइनल मैच में वो बड़ी पारी नहीं खेल सके, लेकिन पूरी प्रतियोगिता के दौरान उन्होंने कुल 482 रन बनाये । जिसमें दो शतक भी थे । इस महाअभियान में श्रीलंका के तिलकरत्ने दिलशान ही उनसे ज्यादा रन बना पाये हैं । बस 2003 के वर्ल्ड कप में भारत का विजय अभियान अंतिम पड़ाव पर आकर ठिठक गया था । तब सचिन ने 11 मैचों में 673 रन बनाये थे । 1996 में तो सिर्फ सात मैचों में नाटे उस्ताद ने 523 रन ठोके थे । तब भारत को सेमीफाइनल में श्रीलंका के हाथों शिकस्त खानी पड़ी थी ।
शतकों का शतक पूरा करने के लिए तो उनके पास पर्याप्त समय है । आगे किसी भी सीरिज में वह यह शतक बना लेंगे । लेकिन अगले वर्ल्ड कप में तो वह खेल नहीं पाएंगे, लिहाजा इस वर्ल्ड कप को जीतना बहुत जरूरी था और अवश्यभावी भी । जीत लिया । जग जीत लिया हमारे सचिन ने ।
आइए हम उस फाइनल मैच को फिर से याद करें, जिसे जीत कर हम विश्व विजेता बने । वर्ल्ड चैंपियन बने.... कूल कप्तान की उतनी ही कूल बैटिंग और गौतम गंभीर की बड़ी यादगार पारी की बदौलत ही तो हमने 28 सालों बाद वर्ल्ड कप जीता है । इस जीत के साथ ही हमने कोलकाता में खेले गये 1996 में सेमीफाइनल में मिली शर्मनाक हार का भी तो बदला ले लिया है । इस तरह भारत दो बार वर्ल्ड कप जीतने और एक बार और पहला टी-20 वर्ल्ड कप जीतने वाला पहला देश बन गया है ।
सत्य तो यह है कि फाइनल मैच में श्रीसंत के रूप में धोनी का दांव नहीं चल पाया, पर गंभीर की सधी हुई गेंदों ने मामले को साध लिया था । उन्होंने पहले पांच ओवरों में तीन मेडेन डालकर सिर्फ तीन रन दिये थे ।
इसके अलावा भारत ने यह वर्ल्ड कप जीत कर एक बड़ा रिकॉर्ड और बनाया । अब तक कोई भी मेजबान देश वर्ल्ड कप नहीं जीत पाया था, पर भारत ने यह कारनाम भी कर डाला ।
हालांकि श्रीसंत की खराब गेंदबाजी के चलते भारतीय टीम के खिलाड़ियों के चेहरे थोड़े लटके थे, परन्तु धोनी ने संभाल लिया । लेकिन महेला जयवर्धने ने के शानदार शतक ने श्रीलंकाई खेमे में थोड़ी हलचल तो पैदा कर ही दी थी और टीम का स्कोर भी सम्मानजनक स्तर तक तो पहुंचा ही दिया था ।
श्रीलंका वाले रन ज्यादा इसलिए भी नहीं बना सके, क्योंकि इंडियंस ने चुस्ती भरी फील्डिंग की थी । सुरेश रैना और युवराज सिंह दोनों ओर डाइव मारकर बॉल रोक रहे थे । खुद सचिन ने कई बार बेहतरीन फील्डिंग का नमूना पेश किया । लेकिन श्रीलंका की आधी पारी के बाद जब जयवर्धने ने हाथ दिखाने शुरू किए तो जैसे इंडियन खिलाड़ी यह भूलते गए कि वे कितना अहम मैच खेल रहे हैं । मिसफील्ड के अलावा उन्होंने कई बार ओवर थ्रो के भी रन दे डाले । इंडियंस की इस सुस्ती का फायदा उठाते हुए श्रीलंकाई बैट्समैनों ने अंतिम दस ओवरों में 90 से ज्यादा रन ठोक दिए ।
इंडिया ने खराब शुरुआत की इस वर्ल्ड कप में अपनी विस्फोटक बैटिंग का जलवा दिखा चुके वीरेंद्र सहवाग लसिंग मलिंगा की साइड आर्म बॉलिंग के झांसे में आकर दूसरी ही बॉल पर एलबीडब्ल्यू आउट हो गए । मलिंगा की वह लगभग सीधी बॉल थी, जिसे सहवाग ने ऑनसाइड में फ्लिक करने की कोशिश की थी । इतनी जल्दी आउट दे दिए गए सहवाग अपनी सकपकाहट में रिव्यू भी ले बैठे । मगर नतीजा वही रहा । सचिन ने अपना ट्रेडमार्क शॉट-स्ट्रेट ड्राइव लगाकर अपना बेहतरीन फॉर्म दिखाया । उन्होंने उसी ओवर में कट मारकर एक और चौका जड़ा मगर वह भी 18 के निजी स्कोर पर मलिंगा की बॉल पर कीपर द्वारा लपक लिए गए । उनके आउट होते ही स्टेडियम में लोगों के मुंह से गहरी आह सुनी जा सकती थी जिसमें एक और वर्ल्ड कप के फाइनल में हार की आशंका का दर्द छिपा था ।
सचिन के आउट होने के बाद एकाएक इंडिया की पारी लड़खड़ाती नजर आ रही थी । मगर दिल्ली के रणबांकुरे गंभीर और विराट 83 रनों की पार्टनरशिप कर इंडिया को वापस जीत की राह पर ले आए । दोनों की खासियत यह रही कि उन्होंने रनों की गति को कम नहीं पड़ने दिया और 5.35 के औसत से रन बनाए । खासकर गंभीर अपने रंग में दिखे । उन्होंने एक ओर मुरलीधरन को ध्यान से खेला और दूसरे छोर के बॉलर पर हमला जारी रखा । विराट कोहली ने हालांकि निराश किया । अच्छे स्टार्ट के बाद वह एक बार फिर बड़ा स्कोर बनाने में नाकमयाब रहे । उन्हें दिलशान ने 35 के निजी स्कोर पर अपनी ही बॉल पर शानदार डाइव मार कर लपका ।
आखिर धोनी ने खेली कप्तानी पारी । विराट कोहली के आउट होने के बाद एक बार फिर शंकाएं उठने लगी थी कि कहीं फिर इंडिया की पारी लड़खड़ा न जाए । मगर धोनी ने सूझबूझ के साथ खेलना शुरू किया । जैसे-जैसे उन्होंने क्रीज पर समय बिताया वैसे-वैसे उनकी नजर भी तेज होती गई । उन्होंने स्पिनरों पर जमकर अपने ताकतवर ड्राइव लगाए और रनों की गति को बनाए रखा । अब गौतम गंभीर ने एक छोर संभालने की जिम्मेदारी ली । धोनी ने महज 52 बॉल खेलकर अपनी हाफ सेंचुरी पूरी की । लेकिन उनके साथ शानदार 109 रनों की साझेदारी करने वाले गंभीर साहसी शॉट मारने के फेर में सेंचुरी पूरी किए बिना ही 97 के निजी स्कोर पर आउट हो गए । जानदार टीम का शानदार फिनिश लगता यही है कि कोच गैरी कर्स्टन ने इंडियन टीम की बहुत अच्छी कंडीशनिंग की है । टीम ने विकेट खोते रहने के बावजूद भी मैच पर अपनी पकड़ ढील नहीं पड़ने दी । दबाव में आए बगैर धोनी और युवराज बड़े शॉट लगाकर प्रतिद्वंद्वी पर हावी रहे । धोनी ने बरवें ओवर में मलिंगा की दो बॉल पर लगातार दो चौके लगा दबाव कम किया और अगले ही ओवर में ड्रेसिंग रूम की ओर छक्का लगाकर कप को अपनी झोली में कर लिया । धोनी अपनी शानदार कप्तानी और शानदार बैटिंग के लिए मैन ऑफ द मैच रहे । युवराज अपनी जबर्दस्त बैटिंग और बॉलिंग के बदौलत प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट रहे ।
भारत रत्न का मसला
मास्टर ब्लास्टर को भारत रत्न दिये जाने का मसला काफी दिनों से चल रहा है । बदस्तूर जारी भी है । पहले पूर्व कप्तान दिलीप वेंगसरकर समेत तमाम बड़ी हस्तियों ने इस मसले को उठाया था । उठा रहे भी थे । जब-जब वो शतक जमाते या फिर कोई बड़ा कीर्तिमान बनाते यह मामला फिर से उठ जाया करता था । इधर वर्ल्ड कप की विजय के बाद तो उन्हें भारत रत्न दिये जाने के मामले ने तूल ही पकड़ लिया है । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शंकर राय चव्हाण ने भी केंद्र सरकार से उन्हें भारत रत्न दिये जाने की बड़ी तगड़ी वकालत की है । लगातार कर भी रहे हैं । वही नहीं, मुंबई और अन्य बड़े शहरों की कई बड़ी स्वयं सेवी संस्थाओं ने भी सचिन को भारत रत्न दिये जाने की बात की है ।
इस असली सवाल का जवाब भी दिया जाने लगा है । इस जवाब में यह भी बताया जा रहा है कि सचिन को भारत रत्न क्यों नहीं दिया जा रहा है और उन्हें भारत रत्न क्यों नहीं मिल सकता है । यही नहीं, उस देश में कुछ सिरफिरे लोग ऐसे भी हैं ,जिन्होंने गाते-बजाते यह कह कर और लिख कर अपनी बातें कही हैं कि सचिन को भारत रत्न नहीं दिया जाना चाहिए । उन आलोचकों ने तो खुले शब्दों में यह भी कहा कि सचिन को भारत रत्न दिये जाने से सबसे बड़े राष्ट्रीय सम्मान का भी अपमान होगा । क्रिकेट विदेशी खेल है और इसे खेलने वाले को तो भारत रत्न बिल्कुल भी नहीं दिया जाना चाहिए ।
बहरहाल, सच तो यह है कि देश के तमाम खिलाड़ी, नेता और चाहने वाले भले ही उन्हें देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान दिये जाने की वकालत कर रहे हों, लेकिन संबंधित कानून बदले बिना उन्हें इस सम्मान से नहीं नवाजा जा सकता है ।
देश का यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान 1954 में शुरू किया गया था और अब तक 41 व्यक्तियों को यह सम्मान दिया जा चुका है । लेकिन इन सम्मानित व्यक्तियों में से कोई भी खिलाड़ी नहीं है । इस संदर्भ में संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है फिलहाल सचिन भारत रत्न पाने के लिए फिट नहीं हैं । जब तक नियमों में तब्दीली नहीं की जाती उन्हें यह सर्वोच्च सम्मान नहीं दिया जा सकता है ।
नियमों के मुताबिक भारत रत्न कला, साहित्य एवं विज्ञान के विकास में असाधारण सेवा के लिए तथा सर्वोच्च स्तर की जन सेवा की मान्यता स्वरूप यह सम्मान दिया जाता है । इसमें खेल का जिक्र तक नहीं है, जबकि पद्म पुरस्कारों के संबंधित नियमों के तहत यह पुरस्कार सभी प्रकार की गतिविधि यों में विशिष्ट उपलब्धियों के लिए प्रदान किया जाता है ।
उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अब यह मसला केंद्र सरकार को देखना है कि सचिन को भारत रत्न दिया जाये या नहीं । यदि खेल को नियमों में बदलाव करके डाला गया, तभी सचिन को यह सम्मान मिलेगा । वैसे भी पहल खेल मंत्रालय को करनी होगी । वह ऐसा प्रस्ताव कैबिनेट के समक्ष रखे । कैबिनेट उसे स्वीकृत करे । जब यह हो जाएगा तो गृह मंत्रालय की रिपोर्ट आएगी कि सचिन या किसी अन्य खिलाड़ी को यह सर्वोच्च सम्मान दिया जा सकता है या नहीं ।
इस मसले पर कहने को तो कोई कुछ भी कहे, पर हकीकत यह है कि सचिन को तो यह सम्मान मिलेगा ही मिलेगा । हम देख चुके हैं कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी क्रिकेट के कितने दीवाने हैं जब वो दीवाने हैं । सारा देश दीवाना है, तो फिर उन्हें भारत रत्न दिए जाने में दिक्कतें क्या हैं? यह तय है कि सचिन तेंदुलकर को तो भारत रत्न मिलेगा ही मिलेगा ।
महाशतक का खेल
यह हम सबका सपना था कि इस वर्ल्ड कप को तो हम जीतें ही साथ ही इस महा विजय के दौरान उनका महाशतक भी बन जाये यानी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में उनका सौवां शतक । पर यह सपना पूरा नहीं हो सका ।
यह वर्ल्ड कप जब शुरू हुआ था, तब उनके खाते में दर्ज थे 97 शतक । इन 97 शतकों में 51 शतक तो उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में बनाये थे और 47 शतक वन डे क्रिकेट में । उन्होंने शुरुआत भी धमाकेदार करी । इंग्लैंड के खिलाफ उनका शतक जमाकर उन्होंने इस जंग का ऐलान भी कर दिया था कि महाशतक भी इसी महाकुंभ में बनेगा पर ऐसा हो नहीं सका ।
27 फरवरी को चिन्नास्वामी स्टेडियम में खेले गए मैच में सचिन ने 115 गेदों में 120 रन बना कर यह संदेश सारी दुनिया को दे दिया था कि वे क्या कर गुजरने वाले हैं । उसके बाद 13 मार्च शनिवार वाले दिन सचिन ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ भी शतक उड़ेल दिया था । यह उनका 99 वां शतक था । तब भी हम सबको लगा था कि कारनामा इसी वर्ल्ड कप के दौरान ही होगा पर हो न सका । अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा ।
सचिन पिछले एक साल से बहुत ही बढ़िया खेल-खेल रहे हैं । टेस्ट क्रिकेट में तो उन्होंने मारकाट सी मचा रखी है । 2010 की शुरुआत ही उन्होंने शतक से ही की थी । चटगांव (बंग्लादेश) में 105 रनों वाला टेस्ट शतक जमाया था । फिर ढाका में 143 रनों वाला सैकड़ा । उसके बाद नागपुर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सैकड़ा । यानी तीन टेस्ट में लगातार तीन शतक । यही नहीं कोलकाता में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ फिर सैकड़ा । यहां टेस्ट में भी शतक । श्रीलंका के खिलाफ गाले में सचिन 12 रनों से शतक बनाने से चूक गये वरना.... । खैर कोलंबो में खेले गये अगले टेस्ट में दोहरा शतक ठोक कर उन्होंने यह भरपाई कर ली । यह साल का उनका पांचवा सौ था ।
अक्टूबर 2010 में ऑस्ट्रेलिया की टीम जब भारत दौरे पर आयी । तब भी वो ठीक-ठाक खेले । मोहाली में वो दो रनों से सैकड़ा बनाने से चूक गए । पर बंगलौर में उन्होंने फिर दोहरा शतक ठोक दिया । यानी 2010 का छठा टेस्ट शतक । न्यूजीलैंड के खिलाफ वो खास नहीं कर पाये । पर दक्षिण अफ्रीका के दौरे की शुरुआत सैकड़े से ही की । पहले टेस्ट की दूसरी पारी में 117 नॉट आउट । यह उस साल का सातवां सैकड़ा था । लक्की सेवेन ।
यही नहीं 2011 की भी शुरुआत ठीक-ठाक रही है । दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेले गये अंतिम टेस्ट में भी उन्होंने सैकड़ा जड़ा । (146 रन ।) यह शतक 2011 के पहले हफ्ते में लगा । यह उनका 97 वां शतक था । 98 वां शतक उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ वर्ल्ड कप में ठोंका, तो 99 वां दक्षिण अफीका के खिलाफ । इतनी तूफानी शतकीय महायात्रा देख कर ही तो हम सपने देख रहे थे महाशतक के, लेकिन वो पूरा न हो सका । काश, वो सौवां शतक बन जाता इस वर्ल्डकप में मजा आ जाता । खैर, थोड़ी प्रतीक्षा करिए काम तो होगा ही होगा ।
न भूतो न भविष्यति
सचिन तेंदुलकर भारतीय क्रिकेट की धुरी है । हर किसी का वक्त आता है जब वह अपने खेल को अलविदा कहता है । सौभाग्य से सचिन में अभी पर्याप्त क्रिकेट और उसके प्रति उत्साह और ऊर्जा बाकी है । वे उपलब्ध हों तो कोई वजह नहीं कि टीम में जगह न पाएं, शायद बीसमबीस टीम में भी, जिसमें वे खुद स्वेच्छा से शामिल नहीं है । दसवें विश्व कप के शुरू होने के समय से ही क्रिकेट विशेषज्ञों और खेलप्रेमियों के मन में सवाल रह-रह कर उठता था कि क्या विश्व कप के बाद सचिन एक दिवसीय क्रिकेट से रिटायर होकर टेस्ट क्रिकेट में ही अपने को एकाग्र करेंगे । विश्व कप में उनकी महाशतक लगाने की कामना पूरी नहीं हो सकी है, हालांकि विश्वकप विजेता दल का सदस्य होने की उनकी उम्मीद पूरी हो गई ।
क्रिकेट और सचिन के जबर्दस्त फैन अजय जडेजा ने एक टीवी चैनल पर कहा कि वे तो चाहते हैं कि सचिन अब टेस्ट क्रिकेट ही खेले और वनडे को टा-टा कर दें । उनका तर्क था कि सचिन जन्मजात क्रिकेटर हैं तो जब तक उनमें खेल पाने की क्षमता है वे खेलेंगे ही, लेकिन अच्छा हो कि वे अपने बाकी क्रिकेटीय वर्ष टेस्ट को समर्पित रखें । वैसे भी भारतीय जनमानस में उनकी जो जगह है, उसमें अगर कभी भी एक साथ ही सभी तरह की क्रिकेट से संन्यास ले तो लोगों को यह हजम भी नहीं होगा । जडेजा का तर्क यह भी है कि वैसे भी सचिन के लिए वनडे में अब कुछ नया हासिल करने को रह नहीं गया है । वे दोहरा शतक भी जमा चुके हैं । सबसे ज्यादा रन और शतक बना चुके हैं और शायद अब तक सबसे ज्यादा वनडे खेल भी चुके हैं । वे कहते हैं कि अंततः स्मृतियां ही सब कुछ होती हैं और एक दिवसीय क्रिकेट से जुड़ी सचिन की स्मृतियां इतनी सुखद और रोमांचकारी हैं कि अब उन्हें जनता के मन में सहेज कर इस विधा से हट जाना चाहिए ।
जडेजा के तर्क मजबूत हैं लेकिन ऐसे फैसले बेहद निजी होते हैं, तब और जब आप में ओर ऊंचाई चढ़ने का हौसला भरपूर हो, साथ ही न आप पर टीम के साथी, न सिलेक्टर, न प्रबंधन और न ही आपके बेशुमार प्रेमियों का ऐसा कोई दबाव हो, बल्कि सब चाहते हों कि आप अभी खेलते रहें । दिल्ली, मुंबई और कोलकात्ता के कई खेल पत्रकारों ने भी लगभग यही बात कही ।
प्रमुख मराठी दैनिक लोकसत्ता के खेल संपादक विनायक दलवी का कहना था कि सचिन भी चूके नहीं है । अच्छा क्रिकेट खेल रहे हैं । और ऐसा ही खेलते रहें तो रिटायरमेंट का सवाल नहीं उठता । क्रिकेट उनके खून में रचा-बसा है? कहीं दूसरी जगह उनका मन भी नहीं लगता । बढ़ती उम्र के साथ उनके खेल में बदलाव आया है । आक्रामकता की जगह संयम ने ली है । सचिन आज भी दुनिया के धाकड़ गेंदबाजों के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं । कब किस गेंद पर चौका लग जाए, किसी को पता नहीं होता । कैरियर के इस मुकाम पर कोई नहीं कह सकता कि कब तक खेलेंगे सचिन । यह निजी मामला है और इस बारे में फैसला सचिन को ही करना है । रही बात क्रिकेट चयन समिति की तो सचिन का कोई जवाब नहीं है । चयन समिति को रन बनाने वाले बल्लेबाज चाहिए, और सचिन रन मशीन बने हुए है ।
कोलकात्ता के द टेलीग्राफ अखबार के खेल संवाददाता चंद्रेयी चटर्जी के ख्याल से सचिन तेंदुलकर को इस बारे में खुद निर्णय लेने देना चाहिए । यह बेहतर होगा । सचिन सही मायने में अपने जीवनकाल ही में एक किंवंदती बन गए हैं और यह एक ऐसा समय है, जहां सब कुछ उन पर ही छोड़ देना ही बेहतर होगा । वह अपने बारे में खुद निर्णय करें । अगर हम क्रिकेट को एक समग्र रूप में देखें तो बात सिर्फ विश्व कप की नहीं है । विश्वकप पर आते ही इस खेल के आयाम खत्म नहीं हो जाते । क्यों न इसे समग्रता में देखा जाए? आजकल के खेल पत्रकार सुदीप्तो गुप्ता का कहना है विश्वकप समाप्त होने को है और यह उचित समय है, जब सचिन अपने लिए निर्णय ले सकते हैं । हम लंबे समय से उनके रिटायरमेंट की चर्चाएं सुन रहे हैं । वह अगर अपने आलोचकों की सुनते तो उन्हें बहुत पहले ही रिटायर हो जाना चाहिए था, लेकिन वह अब तक खेल रहे हैं । संभवतः उनमें इतनी ऊर्जा बची है कि वे आगे भी खेलते रहें । लेकिन उन्हें अगली पीढ़ी को तराशने का काम करना चाहिए जिसके कि वे प्रेरणास्त्रोत हैं ।
हिंदू के वरिष्ठ खेल संपादक लोकपल्ली के अनुसार यह सचिन का निजी फैसला होगा । खेलना चाहते हैं तो आगे भी खेलें और संन्यास लेना चाहते हैं तो और बात है । हम बाहर बैठकर इस बारे में कोई फैसला नहीं कर सकते । बरिल पत्रकार राजशेखर राव ने कहा कि अगर भारत विश्व विजेता बन जाता है तो सचिन संन्यास ले सकते हैं, क्योंकि पिछले एक साल से वे गिने-चुने मैच ही खेल रहे हैं । एक दिवसीय क्रिकेट में 200 रन पूरा होने के बाद उन्होंने स्वयं को सीमित कर लिया था । वे खुद को विश्व कप के लिए तैयार कर रहे थे । इंडियन एक्सेस से जुड़े रहे खेल संवाददाता संथानम ने कहा मैं नहीं समझता कि विश्वकप के साथ सचिन में एक दिवसीय क्रिकेट खत्म हो जाएगी । चाहे वह फाइनल में शतकों का महाशतक लगाएं या शून्य पर आउट हो जाएं, तब भी वह खेलते रहेंगे । संन्यास लेने के बारे में अभी नहीं सोचेंगे । वरिष्ठ पत्रकार राजारमन के अनुसार संन्यास के बारे में खिलाड़ी खुद तय करेगा क्योंकि उसका शरीर और मन ही बता सकता है कि खेलने के लिए वह कितना फिट है । पत्रकार, कमेंटेटर या आम आदमी यह तय नहीं