Srijan Fir Se
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About this ebook
बेटी ही है जो माता-पिता के दु:ख को समझती है। एक तरफ तो हम नौ दिन तक कन्याओं की बड़े भक्ति भाव से पूजा करते हैं और दूसरी तरफ उसी कन्या की भ्रूण हत्या! मतलब बेटी को पेट में मार दो और प्रायश्चित के लिए कन्या पूजन कर लो? यह हमारा कैसा सुशिक्षित समाज है जहाँ पर एक तरफ तो नारी समाज की पूजा की जाती है और दूसरी तरफ उसी नारी जाति की गर्भ हत्या? यौन शोषण, रेप, बलात्कार, कन्या भ्रूण हत्या एवं तलाक जैसे अपराध सामाजिक अपराध हैं। हमें इन सब का हल भी समाज में रहकर ही निकालना है। अगर हमें बेटियों को बचाना है तो बेटों को भी समझाना होगा कि किसी भी बेटी के साथ वह व्यवहार न करें जो खुद की बहन के प्रति अच्छा न लगे।
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उत्तर प्रदेश के जनपद मैनपुरी के गाँव महोली शमशेरगंज, किशनी के मूल निवासी, युवा हिन्दी लेखक प्रशांत कुमार मिश्रा ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा श्री नारायण विद्या आश्रम, किशनी से प्राप्त की है। हाईस्कूल और इंटरमीडिएट तक माँ सरस्वती ज्ञान मंदिर इंटर कॉलेज, कुसमरा से एवं महाबोधि महाविद्यालय, कुसमरा से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। प्रशांत कुमार मिश्रा ने श्री गोवर्धन महाविद्यालय, किशनी से डीएलएड (DLED) 2017 बैच में प्रशिक्षण प्राप्त किया है। प्रस्तुत पुस्तक में युवा हिन्दी लेखक प्रशांत कुमार मिश्रा ने समाज में महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण रवैये और निरन्तर हो रहे अपराध को प्रमुखता से चित्रित किया है। साथ ही अन्य कई सामाजिक मुद्दों को इस पुस्तक में उपयुक्त स्थान दिया है।
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Book preview
Srijan Fir Se - Prashant Kumar Mishra
ISBN : 978-9390216000
Published by :
Rajmangal Publishers
Rajmangal Prakashan Building,
1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road
Aligarh-202001, (UP) INDIA
Cont. No. +91- 7017993445
www.rajmangalpublishers.com
rajmangalpublishers@gmail.com
sampadak@rajmangalpublishers.in
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प्रथम संस्करण : जून 2020
प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन
राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,
सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड,
अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत
फ़ोन : +91 - 7017993445
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First Published : June 2020
eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)
Cover Design : Rajmangal Arts
Copyright © प्रशान्त कुमार मिश्रा
This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India.
समर्पण
यह पुस्तक आदरणीय मामा जी स्वर्गीय श्री संजीव कुमार मिश्रा निवासी राजपुर (मैनपुरी) की स्मृति में उन्हें समर्पित।
जाने को तो हर कोई जाता है, कोई निरंतर यहाँ रह नहीं पाता है। लेकिन जैसे आप हम सब को छोड़ गए क्या ऐसे कोई छोड़कर जाता है? कौन कहता है कि हमें आपकी याद नहीं आती होगी?
अरे हमसे पूछो कि ऐसा कौन सा दिन है जिस दिन आपके लिए यह आँखें आँसू ना लाईं होगीं? हाँ यह भी सच है कि अब भी ज़िन्दगी चल रही है लेकिन यह भी झूठ नहीं है कि हमें आपकी कमी हर समय खल रही है।
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अनुक्रमणिका
शीर्षक
समर्पण
वो जो इस सफ़र में ज़रूरी रहे
कन्यापूजन...पूजन है या पाखंड?
बेटियों को समर्थ और बेटों को जिम्मेदार बनाएँ
हमारे सपने हमारी प्रेरणा का कारण हो कुंठा का नहीं
माँ को क्या मिला...?
क्या तुम्हें किसी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी??
देख लो... हमारी महानता के कार्य
उसको दूसरे के अपराध की सजा क्यों?
कहने से क्या होता है?
उस राखी का क्या हुआ......?
जहाँ सारे मुखौटे उतर जाते हैं
युवा शक्ति राष्ट्र शक्ति
उसकी क्या गलती थी?
एक ख़ुशनुमा आवाज़ की दस्तक
इतनी देर क्यों?
इनसे कैसी उम्मीद?
16 भाई का अभिमान
आखिर कब तक?
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वो जो इस सफ़र में ज़रूरी रहे
यह काग़ज़ के ऊपर ऊकेरे हुए शब्द केवल शब्द नहीं मेरा सपना है। इस पुस्तक के माध्यम से सामाजिक समस्याओं को एकत्रित करके विभिन्न सामाजिक उदाहरणों और अनेक विचारकों के विचारों द्वारा आप सबके समक्ष प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक को हम केवल अपनी पुस्तक बोलें तो शायद गलत होगा यह हम सब की पुस्तक है। इस सफ़र में जो हमारे सहयोगी रहे हम उन सब के आभारी हैं। सबसे पहले हम अपनी नानी माँ श्रीमती ओमदेवी मिश्रा को नमन करते हैं उन्होंने हमारा पालन-पोषण किया. हमें अपने स्नेह से सींचकर अच्छे संस्कार दिए नानी माँ आप तो मेरी दुनिया हो. मैं अपने आप को बहुत ख़ुशक़िस्मत समझता हूँ क्योंकि लोगों के पास तो केवल माँ होती है और मेरे साथ तो माँ के अलावा माँ की भी माँ है। अपनी दादी श्रीमती रामबेटी मिश्रा को मेरा प्रणाम और उनसे आशीर्वाद की आकांक्षा। अपनी माँ श्रीमती रेखा मिश्रा और पिता श्री अरविंद कुमार मिश्रा को प्रणाम करते हैं, उन्होंने हमें इस तरह के संस्कार दिए। चाचा जी अरुण कुमार मिश्रा ने भी पुस्तक के लिए हमें काफी उत्साहित किया. अपने भाई देवांश, शिवा, सौर्य और अर्जुन को ढेर सारा प्यार और बहन नेहा, श्रद्धा से अपने लिए स्नेह की उम्मीद.यश और श्रेया इन्हें तो हमसे भी जल्दी है पुस्तक की.इनकी नोकझोंक और इनका हमारे लिए प्यार हम हमेशा याद रखेंगे।
सबसे पहले हमारे हर क़दम पर हमारा उत्साहवर्धन करने वाले अपने भाई आकाश द्विवेदी (कानपुर नगर) के हम हार्दिक आभारी हैं. उन्होंने शुरुआत से लेकर वर्तमान तक हर क़दम पर हमारा मार्गदर्शन करके हमारा हौंसला बढ़ाया और साथ ही साथ डीएलएड परिवार में हमें एक नई पहचान दी। अपनी अध्यापिका शिखा दीदी और कल्पना दीदी को मेरा नमस्कार क्योंकि गुरु तो गुरु होता है उसका योगदान शायद ही कोई भी शिष्य भूल पाए। हमारे डीएलएड के सफ़र में सदैव हमारे साथ रहने वाले मित्र सुरजीत, अर्पित, अंकित वर्मा, शाहिद, कलित, जयप्रकाश, अंकित श्रीवास्तव, मधुसूदन, अनुभव मिश्रा, शिवम मिश्रा, अभ्युदय शुक्ला, अमित ठाकुर(रामपुर), अवकेस कुमार, सुधांशु पांडेय (देवरिया) अमित कुमार (कानपुर देहात), दीपक मिश्रा (जौनपुर), आरती सिंह ( इलाहाबाद), दीक्षा राजा (उरई) और अन्य सभी भाई-बहनों का का दिल से शुक्रिया. आप सबका साथ हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा। अपने मित्र गौरव सेंगर के प्यार और शरारत को हम कभी नहीं भूल सकेंगे। हमारे डीएलएड ग्रुप के सम्मानीय अखिलेश और निर्मल भैया से हम को अपार स्नेह प्राप्त हुआ और उन्होंने हर समस्या में हमारा साथ दिया। इसी सफ़र की साथी अनामिका और शिवानी को बहुत-बहुत धन्यवाद, जो वह हर समय हमारे लिए मदद के लिए तत्पर रहती थीं। प्ले ग्रुप से लेकर डीएलएड के सफ़र तक साथ रहीं प्रिया और रिया का 'अक्ल नहीं है' बाला डायलॉग हम को बेअक्ल होने से बचाता रहा। आरती ने पुस्तक का बहुत ही बेसब्री से इंतज़ार किया। सिस्टर कोमल जागृति पांडेय (लखनऊ) और वर्षिता गंगवार (बरेली) हमेशा अपने शब्दों के द्वारा हमें प्रेरित करतीं रहीं और जिससे हमारे शब्दों में एक नई ऊर्जा का संचार हो सका. आप दोनों के इस उपकार को हम कभी नहीं भूलेंगे। भाई देवेंद्र सिंह (सिधौली), अमित कुमार (नैनी, इलाहाबाद) हमें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहे। लवकुश (अलीगढ़) और हिमांशु (गोलू शुक्ला) (सुल्तानपुर) यह दो ऐसे नाम हैं जो दूर होने पर भी हमें हमारे पास होने का एहसास कराते रहे और हमारे इस सफर को आसान बनाया। अपने मित्र विमल का तो तहे दिल से शुक्रिया! इनकी बात की शुरुआत ही पुस्तक के नाम से होती थी। शायद इन नामों की सूची बनाना शुरु कर दें तो पूरी एक पुस्तक और लिख जाएगी इसलिए सभी मित्रों को हार्दिक धन्यवाद। डीएलएड परिवार के सभी सदस्यों को नमस्कार। सभी पाठकों को हृदय से नमन। आप सभी से उम्मीद है कि हम सब मिलकर करेंगे सृजन फिर से।
सृजन फिर से पुस्तक में आधुनिक युग में नारी के साथ हो रहे दुर्व्यवहार और व्यवहार की परछाईं के रूप में सत्यता देखने को मिलती है।
- आकाश द्विवेदी
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कन्यापूजन...पूजन है या पाखंड?
बेटी ही है जो माता-पिता के दुख को समझती है और उनके नाम को अपने नाम के साथ रोशन करती बेटी माँ-बाप का ज़िन्दगी के सफ़र में बहुत दूर तक निभाती है। जो सफलता का ताज एक बेटी के सिर पर पहनाया जाता है वही सफलता का ताज माता-पिता को अपने सिर पर ताज के रूप में महसूस होता है। यदि बेटी कोई भी उपलब्धि प्राप्त करती है तो वह उपलब्धि माता पिता की आँखों में ख़ुशी के आँसू ला कर उनकी आँखों को नम कर देती है। एक दौर था जब हमारा समाज बेटियों को तिरस्कार और उपेक्षा की नज़र से देखा करता था लेकिन कल तक उपेक्षा की नज़र से देखने वाली इसी समाज में आज बेटियों ने अपना और अपने माता-पिता का ही नहीं बल्कि अपने पूरे देश का नाम रोशन किया है। हमारी बेटियों ने अपनी मेहनत और लगन के बलबूते यह साबित कर दिया है कि यदि कोई बेटी इस संसार में जन्म लेती है तो वह अफसोस की बात नहीं बल्कि संसार के लिए गौरव का प्रतीक है।
जिस समाज ने आज तक बेटियों के साथ भेदभाव किया वही समाज आज बेटियों के गुणगान का बखान करते हुए नहीं थक रहा है परंतु यह सोच किसी फरिश्ते के द्वारा नहीं बदली है बल्कि यह हमारी बेटियों के अथक परिश्रम और संघर्ष का परिणाम है। बेटियों को तिरस्कार की नज़र से देखने वाला वही समाज आज कहता है कि हमें अपनी बेटियों पर गर्व करना चाहिए क्योंकि बेटे जो नहीं कर सके हमारी बेटियाँ वह भी करके दिखा रहीं हैं हमारी एक बेटी अनेक बेटों के बराबर है। बेटी हमारे जीवन में प्रत्येक तरह की भूमिका निभाती है लेकिन बेटा नहीं निभा सकता बेटियों को हम अक्सर बेटा कह कर बुलाते हैं लेकिन क्या हमने कभी भी बेटों को बेटी कहकर बुलाया है? हमारी बेटियों ने न ही तलवार उठाकर नारे लगाए और न ही आंदोलन किया उन्होंने तो केवल प्रेम और सौम्यता से घर और बाहर दोनों की दुनिया ही जीत ली है। बेटियाँ घर की आधारशिला हैं फिर चाहे बेटी के रूप में हों या बहू के रूप में। घर भर की सारी हलचलें उन्हीं से तो होतीं हैं। उनके हाथ में सुहाग की मेहंदी लगने के बाद भी उनकी कामयाबियों का सफ़र अब रुकता नहीं है बल्कि वह अपने जीवनसाथी के साथ सपने बुनतीं हैं। सबसे ख़ास बात तो यह है कि उनके हाथ में अपने परिवार का भविष्य तय करने की कमान है। आज हम देखते हैं कि विश्वविद्यालय में सुहाग चूड़ा पहन कर बहू दाखिला ले रही है या कहीं पर माताएँ भी अपने बच्चों के साथ पढ रहीं हैं।
आज सासू माँ अपनी बहू के लिए टिफिन पैक करती है और उसका प्रोजेक्ट पूरा कराने में उसकी पूरी मदद करती है। इस दुनिया कि केंद्र में बेटियों की शक्ति है जब भी विवाहित बेटियों को पढ़ाई और परिवार दोनों में सामंजस्य बिठाए देखते हैं तो ऐसा लगता है कि मानो यह पीढ़ी सबसे अधिक ख़ुशनसीब है। दुनिया बहुत ही अच्छी भले ना हुई हो लेकिन बहुत कुछ है जो बदल गया है परंतु स्थिति सिर्फ संतोषजनक है. अभी हम इस पर गर्व नहीं कर सकते हैं गर्व करने वाली बात तो तब होगी जब बेटियों को वह करने की अनुमति मांगनी न पड़े ख़ुद ही दे दी जाए जो वह वास्तव में करना चाहतीं हैं। अभी इतना जो कुछ सहयोग किया जा रहा है उसकी दौड़ तो केवल एक नौकरी तक ही सीमित है लेकिन शायद कुछ ही दिनों में उन्हें अपने संघर्ष और मेहनत से वह सब मिल जाए जिसकी वे वास्तव में हक़दार हैं। भारतीय बेटियाँ दिन-प्रतिदिन नई-नई बुलंदियों को छू कर कीर्तिमान स्थापित कर रहीं हैं। एक तरफ वह आसमान को भेद रहीं है तो दूसरी तरफ सौंदर्य और अन्य क्षेत्रों में भी विश्व में अपना परचम लहरा रहीं हैं। उन्होंने अब यह साबित कर दिया है कि अब उनके क़दम रुकने वाले नहीं हैं सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन के दिन होते हैं। भारत में लोग इन दिनों में शक्तिस्वरूपा माँ जगजननी के रूप में उनकी पूजा करते हैं, उनके पाँव पखारते हैं। वास्तव वे शक्तिस्वरूपा ही हैं हमारे समाज की बेटियों ने यह साबित कर दिया है। हर वर्ष नवरात्र आते हैं हमारे घरों में कन्याओं को कन्याभोज करा कर उन कन्याओं की पूजा की जाती है। लोग उन्हीं कन्याओं के चरण छूकर उनसे आशीर्वाद भी लेते हैं लेकिन वर्ष के बाक़ी दिनों में...?
अरे साहब बाक़ी दिनों में तो कहना ही क्या है...? उन दिनों तो हम उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वह इस संसार से न होकर किसी और गृह से आकर यहाँ पर बस गयीं हों। शायद हम कहेंगे कि अरे नहीं ऐसा नहीं है अब बेटियाँ भी बेटों के साथ उनकी बराबरी पर कंधे से कंधा मिलाकर चल रहीं हैं। लेकिन क्या वास्तव में यह सच है?
नहीं साहब! यह तो केवल कहने और सुनने की बात