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Everest In Mind (HINDI)
Everest In Mind (HINDI)
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Ebook285 pages2 hours

Everest In Mind (HINDI)

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यदि हमारे लक्ष्य सबके लिए प्रेरणादयक होंगे तो वे हम सब के जीवन के पथ का निर्देश करते हैं। जीवन में साहस करने की सामर्थ्य, उसके साथ धैर्य और सही दिशा में शिक्षण और अपने आप पर विश्वास, फिर इसके साथ दृढ़ संकल्प हो तो हम उच्च शिखरों तक पहुँच सकते हैं । 'पाकाला तंडा' में जन्म लेने वाली 'मालावत पूर्णा' ऐसे उच्च शिखरों तक पहुँच गई है। उसने यह बताया है

Languageहिन्दी
Release dateNov 13, 2022
ISBN9788195677399
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    Everest In Mind (HINDI) - Sudheer Reddy Pamireddy

    दो शब्द

    स्वयं अपनी पहचान बनाते हुए इतिहास का निर्माण करने के लिए इस दुनिया में कई लोगों ने साहसिक कार्य किए थे। लेकिन क्या यह पहचान दूसरों के लिए प्रेरणादायक होगी? क्या दूसरे लोग इसके बल पर अपने जीवन के लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं? क्या इस के बल पर लोग अपने विकास के पथ की ओर अग्रसर हो पाएंगे? किसी भी लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हम में उस लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रबलइच्छा होनी चाहिए। यह विश्वास भी होना चाहिए कि हम उस लक्ष्य तक पहुँच जाएंगे । इसके साथ साहसिक कार्य करने की प्रवृत्ति भी होनी चाहिए । ये ही चीज़ें हमारी जीत की कहानी दूसरों को बताने के लिए विवश करती है ।

    यदि हमारे लक्ष्य सबके लिए प्रेरणादयक होंगे तो वे हम सब के जीवन के पथ का निर्देश करते हैं। जीवन में साहस करने की सामर्थ्य, उसके साथ धैर्य और सही दिशा में शिक्षण और अपने आप पर विश्वास, फिर इसके साथ दृढ़ संकल्प हो तो हम उच्च शिखरों तक पहुँच सकते हैं । ‘पाकाला तंडा’ में जन्म लेने वाली ‘मालावत पूर्णा’ ऐसे उच्च शिखरों तक पहुँच गई है। उसने यह बताया है कि अंधकार से प्रकाश प्राप्त करने की दिशा में यात्रा करने के लिए क्या-क्या करना चाहिए। हमें उसने एवरेस्ट पर्वत के शिखर पर पहुँचते हुए यह बताया है कि हमें किस तरह की शक्ति को प्राप्त करने की आवश्यकता है। उसने यह भी बताया है कि हम अपने प्रवृत्तियों को सकारात्मक बनाले तो हम किस तरह से जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं । पूर्णा ने यह भी निरूपित किया कि इस तरह करने के लिए हमने समाज की ओर से जिन जातिपरक असमानताओं का विकास किया था वे कोई बाधक तत्त्व नहीं बनेंगे। हम सब में उसने आत्मविश्वास भर दिया था । पूर्णता के लक्ष्य को उसने साकार किया।

    ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णाप्तूर्णमुदच्यते ।

    पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवाव शिष्यते ।।

    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

    ईसावास्योपनिषद् के शांतिमंत्र के सार को उसने साकार किया ।

    ‘पूर्णा’ में असीम शक्ति है । उससे असीम प्रेरणा सब को मिलती है । असीम शक्तिमति के रूप में केवल वही इसतरह की प्रेरणा हमें दे सकती है । उसका शुभ हो।

    आचार्य रायवरपु श्री सर्राजु

    सम-कुलपति,

    हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद

    एक पर्वतारोही के विचार

    ऊँचे पहाड़ और घाटी दोनों ही प्रकृति के अंग हैं। जीवन में ज्ञान और मानव-कौशल दोनों आवश्यक हैं। पर्वतारोहण में ज्ञान और मानव-कौशल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मलेशिया के एक लेखक सुधीर रेड्डी पामिरेड्डी ने अचानक मुझे फोन किया और मुझे उनके द्वारा लिखित ‘एवरेस्ट इन माइंड’ का अंग्रेजी संस्करण पढ़ने और उस पर अपनी राय देने का आग्रह किया। पुस्तक पढ़ते हुए एक पर्वतारोही के रूप में मुझे बहुत ही प्रसन्नता का अनुभव हुआ। यह एक बहुत बढ़िया अनुभूति है।

    हमारी कंपनी 'ट्रांसेंड एडवेंचर्स' के माध्यम से मैं वर्ष 2013 से ही रॉक क्लाइम्बिंग और पर्वतारोहण क्षेत्रों में एक प्रशिक्षक के रूप में कार्य कर रहा हूँ। मेरा मन हमेशा पर्वतारोहण के विचार भरा रहता था। जो सोचा था, वही हुआ, हमारी संस्था की ओर से वर्ष 2014 में पूर्णा और आनंद के साहसिक यात्रा में संचालन प्रमुख के रूप में, मैं इस अभियान का हिस्सा बना। उनके प्रशिक्षण के पहले दिन से लेकर हैदराबाद हवाई अड्डे पर उनकी सुरक्षित वापसी तक मैंने मुख्य प्रशिक्षक के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। यात्रा की घटनाओं और अनुभवों से जुड़ी मीठी यादें अभी भी मेरे जेहन में सुरक्षित हैं। कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं, जो कुछ लोगों के जीवन को पूरी तरह से बदल देती हैं, उन्हें आसानी से भुलाया नहीं जा सकता है।

    मैंने बच्चों के कोच की भूमिका में, आठ महीनों तक उन्हें कोचिंग दी। इस दौरान ट्रांसेंड एडवेंचर्स ने कई नए विचारों को अमल किया। हम सबसे कठिन प्रशिक्षण का हिस्सा बन गए। आनंद और पूर्णा ने कम समय में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई कर एक विश्व रिकॉर्ड बनाते हुए सभी को आश्चर्यचकित कर दिया।

    पूर्णा और आनंद की यात्रा अभी भी मेरी यादों में ताज़ा है। केवल माउंट एवरेस्ट नहीं, उन्होंने इस धरती पर अन्य महाद्वीपों में विद्यमान सबसे ऊँची पर्वत चोटियों को भी चूमा है। उस समय मुझे इस बात का एहसास नहीं था कि मैं तीर के समान तीक्ष्ण बच्चों को ट्रेनिंग दे रहा हूँ। आज मुझे लगता है कि वे पूरी दुनिया में दुर्लभ विचारोंवाले लोगों के रूप में पहचान बना चुके हैं। इस अकल्पनीय कार्य को बहुत ही आसानी के साथ पूरा करके उन्होंने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। अत्यंत पिछड़े वर्गों की कठिनाइयों के झेलते हुए भी उन्होंने अपने मन में ज्ञान के दीपक जलाए। उन्होंने कई जिंदगियों को बिजली की गति से गतिमान किया। उन्होंने यह सिद्ध करके दिखा दिया है कि यदि वंचित बच्चों को समुचित अवसर मिले तो वे अपने मन को लक्ष्य की ओर केंद्रित कर, समर्पणभाव के साथ शत-प्रतिशत प्रयास करते हैं। मैं अभी भी इसे ‘सच हुए एक सपने’ की तरह ही महसूस कर रहा हूँ।

    लेखक श्री सुधीर रेड्डी पामिरेड्डी ने ‘एवरेस्ट इन माइंड’ पुस्तक लिखने की महान दीक्षा लेते हुए असीम श्रद्धा-भाव प्रदर्शित किया है। उन्होंने चीज़ों व अनुभवों को आत्मसात करने के लिए पूरे मन से कार्य किया है। उनके लेखन को देख कर ऐसे लगता है जैसे कि वे व्यक्तिगत रूप से यात्रा के पहले दिन से लेकर उसके पूरा होने तक हमारे साथ ही रहे हो। उनके शब्दों ने इस पुस्तक को दृश्य-काव्य में बदल दिया गया है। साहसिक-पर्वतारोहण की अवधि के दौरान हर पल का विवरण भी अद्भुत लग रहा था। प्रशिक्षण का चयन, माता-पिता का प्यार एवं भावनाएँ, हर इंसान को होने वाले पहले कदम का डर, पराजय आदि का उन्होंने बहुत ही प्रभावी ढंग से वर्णन किया है। हिमालय में मौसम की स्थिति, पहाड़ों में खतरे, हिमालय की वनस्पतियाँ, आकर्षक प्रकृति, पर्वतारोहियों के जीवन में शेरपाओं की भूमिका, शिखर सम्मेलन का अनुभव को बहुत ही व्यापक और प्रभावशाली तरीके से पाठकों के सामने प्रस्तुत करने में वे सफल रहे हैं।

    सुधीर रेड्डी पामिरेड्डी एक कुशल शोधकर्ता-लेखक हैं, जिन्होंने इस कार्य को अनोखे तरीके से अंजाम दिया है। ‘अस्मिता-खोज की इस यात्रा’ की शुरुआत लेखक गंभीरता से करते हैं और इसका समापन भी विशद वास्तविकताओं के साथ करते हैं। लेखक ने इस पुस्तक में प्रत्येक पात्र को मानवता से ओतप्रोत किया है। बंजारा इतिहास के विषय में लिखने का उनका तरीका भी अनोखा है। डॉ. अम्बेडकर का सपना, एस.आर. शंकरन् की पहल और डॉ. आर.एस. प्रवीण कुमार के कार्यों को इस पुस्तक में बहुत ही अच्छी तरह से समझाया गया है। समाज कल्याण संगठनों के बदलते स्वरूप और उनके कार्य करने के तरीकों का हू-ब-हू चित्रिण किया गया है।

    पूर्णा और आनंद के प्रशिक्षक शेखर बाबू जी, विंग कमांडर श्रीधरन जी, योग प्रशिक्षक ए.आर.जे. वेणुगोपालाचार्युलु जी, पूर्णा मात्र तेरह वर्ष की नाबालिग होने के कारण उसके साथ आए एस्कॉर्ट बानावत सुरेखा टीचर, और राल्लबंडी श्रीलता टीचर, एच.एम.आई. डार्जलिंग के कोर्स डायरेक्टर रोशन गहट्राज (ज्योति सर) आदि की कड़ी मेहनत को पहचान देते हुए उनके छायाचित्रों को इस पुस्तक में रखना, यह उनकी उदारता का परिचायक है।

    एक जंगल की बच्ची के रूप में पूर्णा के बचपन की यादों को कहानी के रूप में जिस तरह प्रस्तुत किया गया है, वह बहुत अच्छा एहसास देता है। ‘न भुतो नभविश्यति!’ भारत के ऐतिहासिक पहलू, बंजारा जाति के इतिहास को, यह पुस्तक जिस तरह कहानी की तरह बताती है, उसे देख कर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इस पुस्तक के लिए लेखक ने इतिहास के अनछुए पहलुओं के विषय में कितनी खोज की है, कितना अध्ययन किया है और किस तरह अपने शोध के परिणामों को प्रस्तुत किया है।

    मैंने हज़ारों छात्रों को प्रशिक्षित किया है। उनमें से कई ने एवरेस्ट और दुनिया भर के अन्य पहाड़ों पर चढ़ाई की है। यहाँ एक कोच के रूप में मेरी भूमिका को दिलचस्प ढंग से लिखने से ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक में एक महान कोच छुपा हुआ है। आश्चर्य की बात यह है कि लेखक सभी पात्रों में परकाय प्रवेश कर लिखने में सक्षम रहे हैं।

    सुधीर रेड्डी पामिरेड्डी मुझसे कभी नहीं मिले। हमने फोन पर भी बात नहीं की। लेकिन प्रशिक्षण के दौरान बच्चों को प्रेरित और उत्साहित करने लिए मैंने जो शब्द कहे, उनमें से लगभग नब्बे प्रतिशत इस पुस्तक में दिखाई दे रहे हैं। ये विचार पाठकों को भी ज़रूर उत्साहित करेंगे। मेरा विश्वास है जो कोई इस पुस्तक को पढ़ेगा उसकी जिज्ञासा, आत्मविश्वास, समर्पण और मानसिक क्षमता में अवश्य ही वृद्धि होगी। लेखक की प्रतिबद्धता और

    समर्पणभाव की सराहना करने के लिए मेरे पास शब्द पर्याप्त नहीं हैं।

    इस पुस्तक के लेखक ने अपनी परिपक्व और सुंदर लेखन-शैली के माध्यम से मेरे संस्मरण को रचनात्मकता प्रदान की है।

    मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक असंभव को भी संभव करने के लिए आत्मविश्वास प्रदान करेगी। 'एवरेस्ट इन माइंड' पढ़ने के बाद मुझे लगता है कि हर पाठक को विद्यार्थी बनना चाहिए और जीवन में नए लक्ष्य हासिल करना चाहिए। लेखक को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

    परमेश कुमार सिंह

    रॉक क्लाइंबिंग और पर्वतारोहण प्रशिक्षक

    हैदराबाद, तेलंगाना, भारत

    उसका ऑटोग्राफ

    एक परि‘पूर्ण’ जीत का संकेत

    "लाखों लोगों में इस अवसर ने हमारा दरवाजा खटकटाया है

    मुझे समानता प्रदर्शित करने का मौका मिला है

    आप मुझे पूरे मन से आशीर्वाद देकर विदा कीजिए

    आपके आशीर्वाद से मैं सुरक्षित वापस लौटूंगी

    कृपा करके मुझे भेजिए, मैं जाऊंगी" -- ये शब्द किसी और के नहीं

    13 वर्षीय मालावत पूर्णा द्वारा बोले गए हैं।

    उसे जाना है.., कहीं पाठशाला या

    विदेश में सैर करने नहीं;

    एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखने के लिए!

    सदियों से उसकी जाति ने कुछ भी हासिल नहीं किया है

    कहने वालों को

    वह स्वयं हासिल करके दिखाने के लिए!

    सफलता हासिल करने के लिए

    दृढ़ता और धैर्य की ही ज़रूरत होती है,

    ना कि जाति, धर्म, वर्ग, लिंग भेद की!

    यह साबित करने के लिए

    इतने बड़े साहसिक कार्य को सिद्ध करने के लिए

    अपनी जान को जोखिम में डालने के लिए तैयार

    अत्यंत गरीबी में जीवन बिताने वाली

    युवा आदिवासी लड़की की जीत की कहानी है

    सुधीर रेड्डी पामिरेड्डी द्वारा लिखित ‘एवरेस्ट इन माइंड’

    ‘एवरेस्ट इन माइंड’ – इस नाम में ही एक अनोखा आकर्षण है, इस पुस्तक के लेखक सुधीर रेड्डी पामिरेड्डी जी, जहाँ तक मेरी जानकारी है, वे तेलुगु, अंग्रेजी साहित्य और अन्य शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता हैं। इनके साथ-साथ उन्होंने इतिहास का भी अलग से अध्ययन किया है। हम जो पढ़ते हैं उसे आत्मसात कर, किस तरह अभिव्यक्त करना चाहिए, इस हुनर को वे अच्छी तरह जानते हैं। वे भौतिक रूप से भारत से बहुत दूर ज़रूर रहते हैं। लेकिन, एक भारतीय के रूप में, एक तेलुगु पाठक के रूप में, एक दर्शक के रूप में, एक वक्ता के रूप में, तेलुगु पाठकों के साथ हम से भी बहुत अधिक निकट रहते हुए, एक घनिष्ठ बंधन में बंध कर साहित्य-सेवा कर रहे हैं। उनकी बातें, उनकी प्रतिक्रिया, उनकी वाणी सुनने वालों में, मैं भी एक हूँ इसलिए यकीन से यह बात कह रहा हूँ। जिन सामाजिक वर्गों के बीच हरी घास भी धू-धूकर जलने लगती है, उन्हीं सामाजिक वर्गों के बीच की आग बुझाने के लिए अपने सिर पर गंगा को धारण कर, यथाशक्ति योगदान देने वाले बड़े सामाजिक समन्वयकर्ता हैं वे।

    वे वर्तमान भारत में, विशेषकर दोनों तेलुगु राज्यों में, अत्यंत प्रभावशाली सामाजिक वर्ग से जुड़े हैं। इन समूहों के लिए यह एक ऐसा अनुकूल समय है, जिसमें अगर केवल पैसा कमाना चाहते हैं, या सत्ता हथियाना चाहते हैं, या वे जो भी चाहे, सभी राहें, इन समूहों के लिए खुले हैं। ऐसी परिस्थितियों में, लेखक समाज के उत्पीड़ितों की आवाज़ बन लेखनी चला रहा है। मैं उन्हें डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की आकांक्षाओं के प्रचार-प्रसार में भूमिका निभाते हुए देख रहा हूँ। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने इस पुस्तक की रचना की है, ऐसा मेरा विश्वास है।

    इस किताब को पढ़कर मैं बहुत भावुक हो गया हूँ। कई संदर्भों में मेरी साँसें फूल गई। पूर्णा तांडा में रहने वाली एक युवा आदिवासी लड़की है। यह लड़की कैसे ‘सप्त शिखरों’ पर चढ़ गई, पता नहीं, पर इस पुस्तक को पढ़ते हुए मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं स्वयं एवरेस्ट पर्वत चोटी चढ़ रहा हूँ। मुझे ऐसा लगा, जैसे उस लड़की ने मुझे दुनिया के सबसे

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