Sooraj ka sakshatkar
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यह काव्य संग्रह ष्सूरज का साक्षात्कारष् कवि द्वारा साहित्य रूपी आदित्य का साक्षात्कार करने का द्योतक है। इस संग्रह की अधिकांश रचनाएँ समसामयिक घटनाओं के सूक्ष्मावलोकन से उपजी हैं तो अनेक कविताएँ मानव के सामाजिक राजनैतिक जीवन की परिघटनाओं पर आधारित हैं। रचनाकार ने पूरा प्रयास किया है कि इस संग्रह में हर पाठक वर्ग के लिए कुछ न कुछ रहेय बच्चों के लिएए किशोरों के लिएए युवा हृदयों के लिएए अनुभवी मस्तिष्क के लिए। इस संग्रह में नीति हैए नैतिकता हैए समाज हैए देशभक्ति हैए मतदाता हैए मजदूर है। एक कविता में दाना माँझी है तो एक अन्य कविता में उम्मीदों के दीप भी हैं।
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Book preview
Sooraj ka sakshatkar - Vikas Kumar Pandey
श्रद्धेय माँ श्रीमती उर्मिला पाण्डेय जी के चरणों में शत-शत नमन जिन्होंने पिताजी, स्वर्गीय
सुरेश पाण्डेय जी के असामयिक
कालकवलित होने के
पश्चात् मुझे शिशु
से शिक्षक
बनाया।
***
आमुख
विचारों का सतत प्रवाह हमारे चेतन-अचेतन मन में होता रहता है। एक अल्पज्ञ मनुष्य से लेकर धीर गम्भीर ज्ञानी व्यक्ति तक में चिंतनशीलता अलग-अलग स्तरों- पर भिन्न स्वरूपों में पाई जाती है। यही चिंतनशीलता, रचनात्मकता को जन्म देती है। परन्तु विचारों को शब्दों में ढालना और उन्हें सार्थक साहित्य का स्वरूप देना अत्यंत कठिन है। मैंने यह दुस्साहस किया है और अपना प्रथम काव्य संग्रह लेकर आपके समक्ष उपस्थित हूँ।
बालक्रीड़ा के अंतर्गत सपाट, धूसर धरती पर आड़ी-तिरछी रेखाएँ खींचते समय ही संभवतः, मेरे अंतस् में पहली बार कविता के अंकुरण का आरम्भ हुआ होगा। आज अपनी कविताओं को पुस्तक का रूप देते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मेरी रचनाओं में भारत-नेपाल सीमा के निकट स्थित मेरे गाँव कठिया मठिया की पगडंडियों से काशी की पावन धरती तक की यात्रा में घटी घटनाओं की पुनरावृत्ति है।
पिछले कुछ वर्षों में मुझे वाराणसी के सुप्रसिद्ध साहित्यकारों का सानिध्य प्राप्त हुआ है। वरिष्ठ गीतकार श्री रामप्रवेश तिवारी ‘रागेश’, ‘कविताम्बरा’ के संपादक श्री हीरालाल मिश्र ‘मधुकर’, श्री सीताराम ‘अनजान’, श्री महेंद्र तिवारी ‘अलंकार’, श्री वेद प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर के सुप्रसिद्ध कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जैसे अनेक अग्रजों ने मुझे समय-समय पर प्रेरणा दी है। मेरे अग्रज श्री रातनेश कुमार पाण्डेय जी के सम्बल तथा मेरी रचनाशीलता को प्रथमतः पहचानने वाले बालसखा और मामा श्री संतोष कुमार पाठक जी की प्रेरणा का मेरी जीवन-यात्रा में अकथ योगदान है। मेरे सहकर्मी, वाणिज्य प्रवक्ता श्री धर्मवीर सिंह एक समीक्षक-आलोचक की भूमिका में सदा मेरे साथ रह कर अग्रज होने दायित्व निभाते रहे हैं। आप सभी का, जिन्होनें किसी भी प्रकार से मेरी मदद की है, मैं सदैव आभारी रहूँगा।
यह काव्य संग्रह ‘सूरज का साक्षात्कार’ मेरी अल्प ऊर्जा से साहित्य रूपी आदित्य का साक्षात्कार करने का द्योतक है। इस संग्रह की अधिकांश रचनाएँ समसामयिक घटनाओं के सूक्ष्मावलोकन से उपजी हैं तो अनेक कविताएँ मानव के सामाजिक-राजनैतिक जीवन की परिघटनाओं पर आधारित हैं। मैंने पूरा प्रयास किया है कि इस संग्रह में हर वर्ग के पाठकों लिए कुछ न कुछ रहे। जीवन के विभिन्न आयामों को संतुलित करने का प्रयास भी इसमें किया गया है। एक कविता में अभिशप्त दाना माँझी है तो एक अन्य में उम्मीदों के दीप भी हैं। यह देशभक्ति और सियासत, प्रेम और संवेदना, अभिशाप और शौर्य, श्रम और जिजीविषा को संग्रहित करने का प्रयास है। धैर्य और आशा को बल प्रदान करती कुछ पंक्तियाँ निवेदित हैं-
आज नहीं तो कल निकलेगा,
यत्न करो तो हल निकलेगा।
रात्रि अमावस की बीतेगी,
शुभ्र चंद्र शीतल निकलेगा।
साहित्य साधना के प्रयास में मैं कितना सफल रहा हूँ इसका निर्धारण करने का अधिकार आप सभी को देता हूँ। इस समर्पण में संकोच है, बालहठ है, परन्तु पूर्व प्रकाशित रचनाओं पर आपसे प्राप्त प्रतिक्रियाओं से उपजा आत्मविश्वास भी है। मैं आपसे एक अल्पज्ञ बालक की तरह निवेदन करना चाहता हूँ कि इन कविताओं को खुले हृदय