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Jis Raah Jana Zaruri Hai...
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Ebook160 pages1 hour

Jis Raah Jana Zaruri Hai...

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कविताएँ मूलतः भाव-प्रधान होती हैं। जब कवि कोई कविता रच रहा होता है तो उसका मन किसी विशेष मनोवेग, भाव अथवा रस से भरा होता है। अतः कविताएँ प्रायः मनोरंजक भी होती हैं। परंतु, मनोविनोद के साथ-साथ एक कल्याणकारी उद्देश्य भी इनके अंदर समाहित होता है। ये कुछ ऐसा है जैसे एक सुंदर, वास्तुकला से अलंकृत, भव्य मंदिर हर आने-जाने वालों को मनोरम एवं आकर्षक प्रतीत होता है। यदि पथिक मनोरंजन के उद्देश्य से भी मंदिर में प्रवेश करते हैं तो भी गर्भ में भगवान को ही पाते हैं।

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युवा लेखक सुकांत रंजन मूलतः रामनगर, पश्चिम चंपारण, बिहार से ताल्लुक रखते हैं। लगभग 10 सालों से केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय के अंतर्गत जीएसटी एवं कस्टम विभाग में निरीक्षक के पद पर कार्यरत हैं। साथ ही साथ पिछले 12 सालों से अपने मूलस्थान रामनगर में एक पुस्तकालय और सरकारी नौकरी के लिए स्थानीय युवाओं के सहायतार्थ एक अध्ययन केंद्र के निर्देशन का भी सौभाग्य इन्हें प्राप्त है। वैसे तो सुकांत जी अर्थशास्त्र में स्नातक हैं लेकिन इनकी रुचि का विषय विचार, दर्शन, अध्यात्म तथा विज्ञान रहा है और ये साहित्य में भी इन्हें ही ढूँढ़ते हैं, इन्हें ही लिखते हैं। इनकी कविताएँ मूलतः इनके अनुभव हैं। लेकिन, ये विचारों तथा दर्शनशास्त्र से गहन रूप से प्रभावित हैं। हालाँकि, इन कविताओं के माध्यम से आत्म- मंथन तथा जागरण के संदेशों की जो अभिव्यक्ति हुई है, वही इनका हृदय है। इन्हें आशा ही नहीं विश्वास है कि हृदय से निकले इन भाव- कविताओं को कोई भी सहृदय पाठक पढ़ने के बाद इसे अपने हृदय में स्थान दिए बिना रह नहीं पाएगा।

Languageहिन्दी
Release dateAug 15, 2023
ISBN9798201550707
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    Jis Raah Jana Zaruri Hai... - Sukant Ranjan

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