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Mahavidya Kavach महाविद्या कवच
FromRajat Jain ? #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers
Mahavidya Kavach महाविद्या कवच
FromRajat Jain ? #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers
ratings:
Length:
3 minutes
Released:
Nov 5, 2022
Format:
Podcast episode
Description
Mahavidya Kavach महाविद्या कवच • कवच (Mahavidya Kavach) पाठ के लिए स्नानदि से परिशुद्ध होकर पूजा स्थान में पीले आसन पर बैठें। सामने पूज्य गुरुदेव का आकर्षक चित्र होना चाहिए, पहले प्रार्थना करें पूज्य गुरुदेव से — हे प्रभु। आप की कृपा से सुरक्षा का उपाय सिद्ध हो।
सामने अगरबत्ती जला लें, दीपक हो सके तो घी या तेल किसी का भी जला सकते है। सम्बन्धित महाविद्या (Mahavidya Kavach) के पूजन चित्र होना चाहिए, पहले प्रार्थना करें पूज्य गुरुदेव से — हे प्रभु। आप कि कृपा से सुरक्षा का उपाय सिद्ध हो। • श्रृणु देवि। प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम्।
आद्दाया महाविद्या: सर्वाभीष्ट फलप्रदम् ।।1।।
कवचस्य ऋषिर्देवि। सदाशिव इतिरित:,
छन्दोंऽनुष्टुब् देवता च महाविद्या प्रकीर्तिता।
धर्मार्थ काममोक्षाणां विनियोगस्य साधने।।2।।
ऐंकार: पातु शीर्षे मां कामबीजं तथा हृदि।
रमा बीजं सदा पातु नाभौ गुह् च पादये:।।3।।
ललाटे सुन्दरी पातु उग्रा मां कण्ठ देशत:।
भगमाला सर्व्वगात्रे लिंगे चैतन्यरूपिणी।।4।।
पूर्वे मां पातु वाराही ब्रह्माणी दक्षिणे तथा।
उत्तरे वैष्णवी पातु चन्द्राणी पश्चिमेऽवतु।।5।।
महेश्वरी च आग्नेय्यां नैऋत्ये कमला तथा।
वायव्यां पातु कौमारी चामुण्डा ईशकेऽवतु।।6।।
इदं कवचमज्ञात्वा महाविद्याञ्च यो जपेत्।
न फलं जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि।।7।। • कवच का भावार्थ:
हे देवि। मैं महाविद्या कवच का व्याख्यान कर रहा हूं। जो सर्वसिद्धिदायक तथा सभी इच्छित फल को प्रदान करने वाला है। इस कवच का पाठ निश्चित सिद्धिदायक है, यह महाविद्या कवच अति उत्कृष्ट एवं प्रचण्ड शक्ति युक्त है।’’ ।।1।।
कवच पाठ से पूर्व दाहिने हाथ में जल लेकर कवच से सम्बन्धित ऋषि, देवता आदि का संकीर्तन आवश्यक होता है, यह प्रतिज्ञा वाक्य कहलाता है। इस महाविद्या कवच के सदाशिव ऋषि हैं, अनुष्टुप छन्द है, महाविद्या देवता है। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष प्राप्ति इस कवच पाठ से प्राप्तव्य विषय है।।2।।
‘ऐं’ बीज अर्थात् भगवती मातंगी मेरे सिर की, काम बीज ‘क्लीं, अर्थात्, भगवती काली हृदय की, तथा रमा बीज ‘श्रीं’ अर्थात् भगवती महालक्ष्मी मेरी नाभि, गुह्य प्रदेश और पैरों की रक्षा करें।।3।।
त्रिपुर सुन्दरी मेरी मस्तक की उग्रा छिन्नमस्ता मेरे कण्ठ की, भगवती काली समस्त शरीर की तथा त्रिपुर भैरवी गुह्य प्रदेश की रक्षा करें ।।4।।
पूर्व दिशा में वाराही, दक्षिण में ब्रह्माणी उत्तर में वैष्णवी पश्चिम दिशा में चन्द्राणी, पूर्व और दक्षिण का मध्य भाग अग्नि कोण होता है उसमें भगवती माहेश्वरी मेरी रक्षा करें।
दक्षिण और पश्चिम का मध्य नैऋत्य है, उसमें देवी कमला, पश्चिम और उत्तर का मध्य भाग वायव्य होता है उसमें कुमारी, उत्तर और पूर्व का मध्य ईशान दिशा है, उसमें महाशक्ति चामुण्डा मेरी रक्षा करें। इस कवच को बिना जाने जो मनुष्य महाविद्या मंत्र जपता है, उसे सहस्त्रों वर्षों में भी फल प्राप्त नहीं होता।।5,6,7।। •
सामने अगरबत्ती जला लें, दीपक हो सके तो घी या तेल किसी का भी जला सकते है। सम्बन्धित महाविद्या (Mahavidya Kavach) के पूजन चित्र होना चाहिए, पहले प्रार्थना करें पूज्य गुरुदेव से — हे प्रभु। आप कि कृपा से सुरक्षा का उपाय सिद्ध हो। • श्रृणु देवि। प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम्।
आद्दाया महाविद्या: सर्वाभीष्ट फलप्रदम् ।।1।।
कवचस्य ऋषिर्देवि। सदाशिव इतिरित:,
छन्दोंऽनुष्टुब् देवता च महाविद्या प्रकीर्तिता।
धर्मार्थ काममोक्षाणां विनियोगस्य साधने।।2।।
ऐंकार: पातु शीर्षे मां कामबीजं तथा हृदि।
रमा बीजं सदा पातु नाभौ गुह् च पादये:।।3।।
ललाटे सुन्दरी पातु उग्रा मां कण्ठ देशत:।
भगमाला सर्व्वगात्रे लिंगे चैतन्यरूपिणी।।4।।
पूर्वे मां पातु वाराही ब्रह्माणी दक्षिणे तथा।
उत्तरे वैष्णवी पातु चन्द्राणी पश्चिमेऽवतु।।5।।
महेश्वरी च आग्नेय्यां नैऋत्ये कमला तथा।
वायव्यां पातु कौमारी चामुण्डा ईशकेऽवतु।।6।।
इदं कवचमज्ञात्वा महाविद्याञ्च यो जपेत्।
न फलं जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि।।7।। • कवच का भावार्थ:
हे देवि। मैं महाविद्या कवच का व्याख्यान कर रहा हूं। जो सर्वसिद्धिदायक तथा सभी इच्छित फल को प्रदान करने वाला है। इस कवच का पाठ निश्चित सिद्धिदायक है, यह महाविद्या कवच अति उत्कृष्ट एवं प्रचण्ड शक्ति युक्त है।’’ ।।1।।
कवच पाठ से पूर्व दाहिने हाथ में जल लेकर कवच से सम्बन्धित ऋषि, देवता आदि का संकीर्तन आवश्यक होता है, यह प्रतिज्ञा वाक्य कहलाता है। इस महाविद्या कवच के सदाशिव ऋषि हैं, अनुष्टुप छन्द है, महाविद्या देवता है। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष प्राप्ति इस कवच पाठ से प्राप्तव्य विषय है।।2।।
‘ऐं’ बीज अर्थात् भगवती मातंगी मेरे सिर की, काम बीज ‘क्लीं, अर्थात्, भगवती काली हृदय की, तथा रमा बीज ‘श्रीं’ अर्थात् भगवती महालक्ष्मी मेरी नाभि, गुह्य प्रदेश और पैरों की रक्षा करें।।3।।
त्रिपुर सुन्दरी मेरी मस्तक की उग्रा छिन्नमस्ता मेरे कण्ठ की, भगवती काली समस्त शरीर की तथा त्रिपुर भैरवी गुह्य प्रदेश की रक्षा करें ।।4।।
पूर्व दिशा में वाराही, दक्षिण में ब्रह्माणी उत्तर में वैष्णवी पश्चिम दिशा में चन्द्राणी, पूर्व और दक्षिण का मध्य भाग अग्नि कोण होता है उसमें भगवती माहेश्वरी मेरी रक्षा करें।
दक्षिण और पश्चिम का मध्य नैऋत्य है, उसमें देवी कमला, पश्चिम और उत्तर का मध्य भाग वायव्य होता है उसमें कुमारी, उत्तर और पूर्व का मध्य ईशान दिशा है, उसमें महाशक्ति चामुण्डा मेरी रक्षा करें। इस कवच को बिना जाने जो मनुष्य महाविद्या मंत्र जपता है, उसे सहस्त्रों वर्षों में भी फल प्राप्त नहीं होता।।5,6,7।। •
Released:
Nov 5, 2022
Format:
Podcast episode
Titles in the series (100)
Jhulelal Chalisa झूलेलाल चालीसा by Rajat Jain ? #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers