चला चल जीवन
By अनिल सिंह
()
About this ebook
जीवन अपनी उज्ज्वल मुस्कान के साथ खुशी का एक कैनवास है और दुख के क्षणों में आंसुओं की एक नदी है। माँ की गोद में, वह प्यार का पालना बन जाता है; विश्वासघात के जंगल में, यह एक घातक साँप में बदल जाता है। कौन जाने इसके आगोश में क्या छिपा है! "चला चल जीवन" जीवन को वैसा ही चित्रित करता है जैसा वह है! जीवन जन्म से शुरू होता है लेकिन मृत्यु के साथ समाप्त नहीं होता; यह परे की यात्रा करता है—शून्य से अनंत तक की यात्रा! मन को प्रशिक्षित किया जा सकता है, प्रतिक्रिया को नियंत्रित किया जा सकता है, व्यक्ति को ढाला जा सकता है, लेकिन भावना हार्दिक होती है। इसकी धड़कन सहज है और धड़कन में अनुभूति भरी है। जीवन अपने विचारों में सौन्दर्य की तूलिका से मानवता को छूता है। पुस्तक की कविताएँ लेखक की कल्पना के असीम आकाश के पंख हैं। वह अपनी भावनाओं को अपनी कलम के भटकते बादलों पर तैरने देता है।
Related to चला चल जीवन
Related ebooks
स्वस्तिक Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsभावों का कारवाँ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअनुभूति के पल Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsइंद्रधनुष: चोका संग्रह Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsहौसलों के पंख Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsनीला अम्बर नील सरोवर Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsआरजू Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमौन मुकुल Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsराही- सफ़र जिंदगी और मौत के बीच का Rating: 0 out of 5 stars0 ratings'Khwab, Khwahishein aur Yaadein' Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsजीवन के रंग व्यंग्य Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsएक एहसास Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसत्यार्थ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकोरे अक्षर Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDiwaswapna Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsजीवन धारा Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsवह झील जहां सपनों की छाया होती थी Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsParindon Sa Mann Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमन Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsचयनिका Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsLafz Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकुछ एहसास कविताओं की कलम से Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकाव्य-सुधा: कविता संग्रह Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDadinkowa Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDishayein Gaa Uthi Hein Rating: 0 out of 5 stars0 ratings30 दिन 30 रातें 30 कविताएँ उफ़नते अनगिनत जज्बात Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsरिश्ते - कुछ सच्चे, कुछ झूठे (काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMan Lauta Hai Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसोलह शृंगार Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsस्वर सलिला Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related categories
Reviews for चला चल जीवन
0 ratings0 reviews
Book preview
चला चल जीवन - अनिल सिंह
1.
हे पिता
अंबर की असीमितता छूने
बलिष्ठ बाहुओं का आरोहण
तेरे पर्वत से कंधे पर
मेरे नन्हे पांव!
नभ में अनाथ भ्रमण पर बादल
आंख मिचौली सूरज से
मैं खेला उनसे पकड़ा-पकड़ी
तेरे पितृत्व की छांव!
आत्मनिर्भरता का श्री गणेश
तेरे पग और मेरे डग
आधुनिक यह कर्म-सिंधु
गंगोत्री तेरे गांव!
तेरी दृष्टि से प्रदीप्त दिवस मेरा
तुझसे मेरे रात्रि-प्रहर का सुकून
हे नर श्रेष्ठ, हे पिता परम
तुम प्रलय में मत्स्य-नाव!
2.
गृहस्थी
हमारे संबंधों की संरचना
सरल रूप से जटिल है!
मुंह फुला-फुला कर उसके गाल फुल गए हैं
और खा-खा कर मेरी तोंद
यही डार्विनवाद का अंत होता है!
बच्चों के लक्षण
मेंडल के नियमों पर खरे हैं
कितनी पीढ़ियां पीछे से आकर
किसके लक्षण उनमें प्रभावी हैं
जान ही न सके
पूरे पीढ़ी श्रृंखला का अध्ययन
भला किसके बस की बात!
पास-पड़ोस, मित्र, रिश्तेदार
उन्हें बंदर कहते हैं
कुछ बंदर की औलाद भी कहते हैं
बुरा मानने की कोई बात नहीं रह जाती
संतति में जनक के गुण होना
अपेक्षित है!
हमारे प्यार का इतिहास
दो अध्यायों में लिखा है,
प्रथम अध्याय में
उनके ख्वाब, मेरे ख्वाब;
उनका मायका, मेरा घर;
उनका बाग की तितलियों सा जीवन
मेरा बादलों सा उन्मुक्त मन का प्रवास;
यौवन के दिल मिलाने और दिल तोड़ने के खेल
और अग्नि के फेरों की उम्र कैद;
मेरी मधुर सरहज-सालियों का प्यारा देश
और ननद-जेठानियों की भरी उनकी आफत भरी ससुराल!
दूसरा अध्याय
अपनी अपूर्णता में पूर्ण,
संतानों का पालन पोषण
जैसे समुद्र-मंथन,
विष और अमृत कुंड में
सृष्टि के प्राण,
शिव का नीलकंठ हो जाना
और विष्णु का मोहिनी,
गृहस्ती जैसे जीवन का
देवासुर संग्राम!
विश्वास की पीठ पर
सुख-दुख की मथनी
घूमती है
दिन-रात सुबह-शाम,
न कहने का अवसर है
न सुनने से विराम!
3.
बच्चों को पढ़ने की जिम्मेदारियां देखकर
बच्चों को पढ़ने की जिम्मेदारियां देखकर
खुद मैं उनके लिए लिखने लगा हूं,
कलम को शब्द की जिम्मेदारियां दी हैं
खुद मैं उधेड़बुन करने लगा हूं!
बच्चों की छलांगों में
झूल आता हूं पेड़ों की डालियां,
उनके खेलों में
मैं घूम आता हूं बचपन!
उनकी उमंग में कूदते मिलते हैं
कथा के तथाकथित पात्र
धारण किए नवयुग का आवरण
भोलेपन की जिद ओढ़े!
कलम चलती है
जीवन के कदमताल पर,
दे जाते हैं कहने को कुछ
बच्चे, दुनिया के हाल पर!
4.
जो उसकी चूड़ियां खनकी
जो उसकी चूड़ियां खनकी
सुबह हो गई
जाग उठा जिंदगी का प्रेम!
उसकी कठवत के लिए
आटे-दाल का प्रबंध
मेरी प्रेम के प्रस्तुतीकरण का
प्राथमिक माध्यम है!
जिस चिमटे-पक्कड़ से
वह रोटियां सेंकती है
उसका प्रयोग
वह अन्य तरीके से भी कर लेती है!
वह अन्नपूर्णा है,
तो दुर्गा भी!
यदि उसके केश खुले
तो रात्रि हो जाती है!
मेरे सम्मुख खुला हुआ है
दिन-रात का प्रेम ग्रंथ!!
5.
हर दिन इतवार हुआ
हर दिन इतवार हुआ,
हुआ दीर्घायु निठल्लापन!
सठियाने की शंका पर
लगी सेवानिवृत्ति की मुहर
थकी सी चलती हैं घड़ी की सुइयां!
दीवाल पर टंगा दर्पण
प्रस्थान के मिलन को
प्रतीक्षारत सुबह-सुबह उदास!
कोरोना से खाली कोना
रह गया अपना बनकर
जब सब अपना छुटा!
सुकून का पर्याय इतवार
अब साथ है
सठियाया सा!
6.
हे राम, मेरा क्या परिचय
किसी ने परिचय पूछा
किसी ने परिचय तक न पूछा,
हे राम, मेरा क्या परिचय?
आखिर क्या दूं परिचय?
सोने के महलों का रावण
कुटिया की बूढ़ी सबरी
सुर, मुनि, दानव, शिव या सृष्टि
तू ही राम सब का परिचय!
सिर भरत खड़ाऊं
सिंहासन की लघुता का परिचय!
सीता वनवास
धर्म की विवशताओं का परिचय!
चर-अचर, जड़-चेतन, मृत्यु-प्राण
सर्वस्व शेष, अशेष बस राम नाम
मर्यादा, न्याय, कर्म या फल
अवतार तेरा, नश्वरता का परिचय!
कोई कौन
विह्वल, विकल जग ने परिचय पूछा,
जब तुम ही सब में
रहा बताने को फिर कैसा परिचय !!!
7.
संजो लेता है सफर
संजो लेता है सफर, राहों में, पदचिन्हों के