Cricket : Sabse Bada Fraud Aur Moorkh Bante Log
By Atul Kumar
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Cricket - Atul Kumar
क्रिकेट फिक्सिंग के संबंध में
आमतौर पर पूछे जाने वाले सवाल
भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट है। यह खेल पिछले कुछ समय से सट्टेबाजी और फिक्सिंग के गिरफ्त में है। इसको लेकर आम खेल प्रेमियों में कई तरह की गलत धारणाएं बन गयी हैं। इस संबंध में आमतौर पर पूछे जाने वाले अनेक सवाल हैं जिनमें से अधिकांश का समाधान मैंने अपनी पूर्व लिखित पुस्तकों में करने की कोशिश की है और उसे समझाने का प्रयास किया है। यहां पर उन्हें फिर संक्षेप में ले रहा हूं।
धारणा- फिक्सिंग केवल कुछ ही मैचों में होती है। यह सटोरियों के प्रलोभन में आने वाले कुछ खिलाड़ियों द्वारा की जाती है।
वास्तविकता- मैच फिक्सिंग को आधार बनाकर कई लेखकों ने पुस्तक और लेख लिखे हैं। हाल में प्रकाशित पुस्तकें भी इस धारणा को बनाए रखने में सहायक रही हैं। सच तो यह है कि फिक्सिंग मैच-दर-मैच लगातार हो रही है और अधिकांश खिलाड़ी इसमें शामिल हैं। इन खिलाड़ियों को बुकीज़ द्वारा प्रलोभन नहीं मिल रहा, वरन् वे अपने कप्तान, कोच या टीम प्रबंधकों के निर्देशों पर ऐसा कर रहे हैं। वे नियमित मैचों में ऐसा कर रहे हैं। यदि ऐसा न होता, तो खिलाड़ी मैच-दर-मैच स्पष्टतः निराशापूर्ण और घटिया क्रिकेट खेलने के बाद, अगले मैचों के लिए अपनी टीम में बने नहीं रह सकते। वे हर मैच या पारी में अपने लिए पूर्व निर्धारित भूमिका के अनुसार ही खेलते हैं।
धारणा- सीमित ओवरों वाले मैचों में और इससे भी अधिक, केवल टी-20 क्रिकेट में ही छिटपुट फिक्सिंग होती है।
वास्तविकता- ऐसा नहीं है। फिक्सिंग क्रिकेट के सभी स्वरूपों में पूरी तरह और लगातार हो रही है और यह संस्थागत हो चुकी है।
धारणा- केवल वे मैच ही फिक्स होते हैं, जिनमें जीत की ओर बढ़ रही टीमें अचानक (लगभग सुनिश्चित जीत) हार जाती हैं।
वास्तविकता- क्रिकेट और इस पर लगने वाला सट्टा जिस हाल में हैं, उससे यह आवश्यक हो जाता है कि मैचों की पटकथाएं आपस में जुड़ी हों और निरंतर लगाया जाने वाला सेशन पर सट्टा यह सुनिश्चित कर देता है कि ज़ाहिर तौर पर सामान्य दिखने वाले मैच भी पूर्व-निर्धारित होते हैं।
धारणा- मैदान में पिच की दशा की मैच के परिणाम में मुख्य भूमिका होती है।
वास्तविकता- स्टार खिलाड़ियों से सुसज्जित अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों का फैसला स्क्रिप्ट (पटकथा) लेखक और केवल पटकथा लेखक ही करते हैं। हां, पटकथा तैयार करने में पिचों का भी ध्यान रखा जा सकता है।
धारणा- एक मैच में किसी खिलाड़ी का प्रदर्शन उसके फॉर्म पर निर्भर करता है।
वास्तविकता- अब कम-से-कम पुरुषों के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में यह बात लागू नहीं होती। खिलाड़ी की फॉर्म केवल एक मिथक है, क्योंकि किसी मैच में किसी खिलाड़ी का प्रदर्शन इस पर निर्भर करता है कि उसको उस मैच में क्या भूमिका दी गई है (अभिनय करने के लिए)। किसी भी खेल की तरह क्रिकेट भी एक कौशल का खेल है। क्या किसी व्यक्ति का कौशल रातों-रात एकदम से बदल सकता है? कभी-कभार भले ही ऐसा हो सकता हो, पर क्या ऐसा बारंबार अधिकांश खिलाड़ियों के साथ हो सकता है? टी-20 लीग मैचों व अन्य अंतर्राष्ट्रीय मैचों के इतने बहुतायत में होने से उनके पटकथा लेखन के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि खिलाड़ी एक दिन हीरो की तरह खेले और अगले ही दिन जीरो हो जाए। जैसा कि हम देखते आए हैं और आगे भी देखेंगे, ऐसा बार-बार बहुत खिलाड़ियों के साथ होता है। जब मैचों के पटकथा लेखन के लिए यह आवश्यक था कि आईपीएल-7 में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरू (RCB) की टीम व तत्पश्चात् इंग्लैंड में टेस्ट मैचों में भारतीय टीम बुरी तरह से विफल रहें, तब अचानक विराट कोहली की फॉर्म गायब हो गई और इस बात का काफी प्रचार किया गया। कई मैचों के पश्चात् विराट कोहली ने किसी पत्रकार से कहा कि एक अच्छी पारी खेलूंगा और मेरी फॅार्म वापस आ जाएगी। अगले ही मैच में (11 अक्तूबर, 2014 को वेस्टइंडीज के विरुद्ध) उन्होंने 62 रन बनाए और उससे अगले मैच में शतक ठोंक दिया।
धारणा- क्रिकेट में खेल की निहित अनिश्चितताओं के कारण, कोई मैच लगातार और पूरी तरह अभिनीत नहीं हो सकता।
वास्तविकता- यह सच है कि क्रिकेट मैदान में हमेशा ही कुछ अनिश्चितता रहेगी। एक शानदार (सरल) कैच, जिसे लेना पूर्व निर्धारित किया है गिर सकता है या एक अंदरूनी किनारा लेकर बाउंड्री तक जाने के लिए निर्धारित गेंद, स्टंप्स पर ही लग सकती है या इसके ठीक विपरीत। एक स्क्रिप्टेड डायरेक्ट हिट, जो खिलाड़ी को रन आउट कर देती, स्टम्प से न लगे।
दो बातें हैं। एक, खिलाड़ी पारी में जो करने जा रहे हैं, उसे पहले ही अभ्यास द्वारा इतना परफैक्ट बना लें कि खेल का इच्छित दिशा से भटक जाना विरल ही हो। दूसरे, जब कभी ऐसा होता भी है, तो स्क्रिप्टेड परिणाम इसके तुरंत बाद खेले जाने वाले खेल में प्राप्त कर लिया जाए। चीजों की कुल मिली-जुली वृहद योजना में, यहां-वहां छोटी-मोटी क्षणिक चूक का कोई खास महत्व नहीं होता।
ये बातें भली-भांति रिकार्ड की गई है कि जब बल्लेबाज की निक (कैच) उनके दस्तानों तक पहुंच गई है, तब विकेट कीपर जान-बूझकर गेंद को गिर जाने देते हैं, साफ निक होने पर भी या तो वे अपील नहीं करते या अनमने ढंग से अपील करते हैं। ऐसे ही गेंदबाज स्पष्ट एलबीडब्ल्यू पर भी या तो अपील नहीं करते या अनमने ढंग से करते हैं। साफ निक होने या स्पष्ट एलबीडब्ल्यू होने पर भी या अंपायरों का अपनी उंगली नहीं उठाना, तो आम बात है ही। प्रतिस्पर्धात्मक क्रिकेट में ऐसा क्योंकर होगा, इसका एक ही स्पष्टीकरण हो सकता है। स्क्रिप्ट के अनुसार बल्लेबाज को उस समय आउट नहीं होना था।
मैंने अपनी पूर्व लिखित पुस्तकों में इन पर चर्चा की है और कुछ उदाहरण भी दिए हैं। वर्तमान पुस्तक में भी कुछ उदाहरण हैं।
यह बात लिखित रूप में उपलब्ध है कि स्टीव वॉ ने (अगस्त, 2013) स्वीकार किया है कि ओवरों के ब्रैकेट में रन बनाने में धांधली संभव है। उसने जो कहा, वह बेहद तर्कसंगत है। सच तो यह है कि वह मेरी बारंबार कही गई बातों का समर्थन करता है। मैंने अपनी पुस्तक ‘सटोरियों सावधान’ (क्रिकेट में मैंच फिक्सिंग का खुलासा) में स्टीव वॉ की बात यूं-की-यूं ही रख दी थी। यहां उसे दोहराना समीचीन होगा।
‘ऑस्ट्रेलिया के भूतपूर्व कप्तान का यह बयान उद्धृत किया गया, ‘क्रिकेट के लिए ताजा खतरा ब्रैकेट फिक्सिंग का है जो लगभग स्पॉट-फिक्सिंग जैसा ही है और इससे बुक-मेकर्स दुनिया-भर में पैसा बना रहे हैं।
ऑस्ट्रेलियन समाचार वेबसाइट News.com.au के साथ एक साक्षात्कार में वॉ ने कहा, ‘ब्रैकेट फिक्सिंग से 50 ओवर के खेल या 20-20 की स्पर्धा के एक भाग में धांधली होती है।’
वॉ के अनुसार, ‘उदाहरण के लिए, पांच ओवर में भ्रष्ट खिलाड़ी यह सुनिश्चित कर लेते हैं कि रनों का योग कितना होना चाहिए। यदि कप्तान भी इसमें शामिल है, तो सारी ही प्रक्रिया बड़े प्रभावी और गुपचुप ढंग से की जा सकती है। इस प्रकार की योजनाओं को क्रियान्वित करने के अवसर व्यापक हैं, खास तौर पर दूसरी श्रेणी की प्रतियोगिताओं में। उदाहरण के लिए घरेलू 20-20 की प्रतियोगिताओं में, जो मैचों के कठोर अनुशासित प्रबंधकों और वैश्विक मीडिया की पैनी नज़रों से दूर खेले जाते हैं।’ पूर्व खिलाड़ी ने कहा कि इन मुद्दों पर भ्रष्टाचार के बड़े क्षेत्रों के अलावा, 2010 में पर्थ में विचार किया गया था जब वह (वॉ) मेरिलबोन क्रिकेट क्लब की विश्व क्रिकेट समिति का सदस्य था।
स्टीव वॉ ने यह भी कहा कि इस सदी के शुरुआत में कई टेस्ट कप्तान समेत कुछ नामी खिलाड़ी भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए थे तो कुछ देशों के क्रिकेट बोर्डों ने सघन जांच नहीं होने दी। संबंधित देश के क्रिकेट बोर्डों ने उपलब्ध आरोपों को नज़रअंदाज कर दिया था। उन्हें इस बात का डर सता रहा था कि उनके कुछ नामचीन खिलाड़ी इसमें फंस सकते हैं। यह खतरा अब और भी मंडरा रहा है, क्योंकि दुनिया भर में अनेक 20-20 लीग बन गए हैं।
जो धांधली या धोखा, किसी एक क्रिकेट मैच में संभव है, वह अन्य क्रिकेट मैचों में भी संभव है। शायद वॉ इस बात से अनभिज्ञ थे या उन्होंने अनिभज्ञता दर्शायी कि धांधली केवल द्वितीय स्तर के मैचों में ही नहीं, अपितु सभी अंतर्राष्ट्रीय मैचों में हो रही थी और वही अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी दुनिया-भर की टी-20 लीग प्रतियोगताओं में भाग ले रहे थे? साथ ही कुछ भूतपूर्व महान खिलाड़ी इन प्रतियोगताओं में भाग ले रही टीमों के कोच या सलाहकार हैं।
धारणा- मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप के खिलाड़ी ही फिक्सिंग के प्रलोभन में फंसते हैं।
वास्तविकता- ऐसा कहना बहुत बड़ा झूठ है। क्रिकेट में व्यापक संस्थागत भ्रष्टाचार ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि ए. बी. डी. विलियर्स या माइकल क्लार्क्स या एलिस्टेयर कुक जैसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय नाम भी इसमें उतना ही शामिल हैं, जितना श्रीसंत और मुहम्मद अशरफुल जैसे भारतीय उपमहाद्वीप में पकड़े गए खिलाड़ी।
धारणा- कमेंटेर्ट्स का फिक्सिंग से कोई लेना-देना नहीं है।
वास्तविकता- इस सर्वव्यापी अंतर्राष्ट्रीय धोखाधड़ी में कमेंटेर्ट्स की भूमिका अत्यंत अहम है। कमेंटेर्ट्स के रूप में अपनी सूक्ष्म और भोली-भाली प्रतीत होने वाली अभिव्यक्तियों के द्वारा वे लगातार जनता को गुमराह करते रहते हैं। मैंने इस पुस्तक में तथा पूर्व लिखित पुस्तकों में इसके अनेक उदाहरण दिए हैं। ऐसी सैकड़ों मिसालें, पिछले ही कुछ महीनों में टेलीकास्ट किए गए मैचों की रिकार्डिंग्स में देखी जा सकती हैं।
मैं अभी हाल ही में देखने में आया एक उदाहरण रख रहा हूं। 7 अक्तूबर, 2014 को शारजाह में पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक दिवसीय मैच खेला गया। ऑस्ट्रेलिया द्वारा बनाए गए 255 रनों का पीछा करते हुए पाकिस्तान 12 वें ओवर में एक विकेट खोकर 55 रन बनाकर आरामदायक स्थिति में था। तब कमेंटेटर रमीज़ राजा ने टीवी पर कमेंट किया कि पाकिस्तान के लिए मैच जीतना मुश्किल नहीं होना चाहिए क्योंकि उसके हाथ में नौ विकेट हैं। उसे केवल पांच रन प्रति ओवर के आवश्यक रन रेट के साथ, एक मामूली स्कोर का पीछा करना है। (यह दूसरी बात है कि जब रमीज़ राजा पाकिस्तान के जीतने की प्रबल संभावना जगा रहा था, बुकीज़ के भाव तब भी ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में थे।) यह पूरी तरह न्यायसंगत कमेंट था, किंतु आगे क्या होता है? दो मिनट बाद ही अगले ही ओवर की पहली दो गेंदों पर पाकिस्तान के दो विकेट गिर गए। उनमें से एक तो कप्तान मिस्बाहुल-हक था, जिसने अपनी खेली गई पहली ही गेंद पर लेग-स्लिप पर खड़े खिलाड़ी को आसान-सा कैच दे दिया। एक ऐसा शॉट, जिसका एक ही स्पष्टीकरण हो सकता है कि यह मात्र आउट होने के लिए ही खेला गया। उसके बाद पाकिस्तान जल्दी-जल्दी विकेट खोता गया और टीम पूरे मैच के दौरान उबर नहीं पायी। नतीजतन ऑस्ट्रेलिया 93 रन के बड़े अंतर से जीत गया। कोई इसे संयोगवश हुई घटना मानकर एकतरफ रख सकता है, किंतु क्या 10 में से आठ या नौ बार ऐसा संयोग होता है?
इसी मैच की कहानी आगे देखें, जब उमर अकमल और अनवर अली के बीच अच्छी साझेदारी बनती नज़र आ रही थी तब दूसरे अंग्रेजी कमेंटेटर ने कहा कि कोई ऐसा कारण नहीं है कि अभी भी पाकिस्तान न जीत सके। उसकी इस टिप्पणी के थोड़ी देर बाद ही अनवर अली आउट हो गया।
प्रश्न- क्या सचिन तेंदुलकर भी फिक्सिंग में शामिल हैं?
उत्तर- यह लोगों का पहला सवाल होता है, जब उन्हें समझ आने लगता है कि फिक्सिंग कितनी व्यापक और गहरी है। यह वह सवाल है, जो कुछ पत्रकारों ने भी प्रेसवार्ताओं के दौरान मुझसे पूछा। यहां पर मैं केवल तेंदुलकर, द्रविड या धोनी का नाम लेना न्यायसंगत नहीं मानता।
हां! निःसंदेह, एक नहीं वरन सभी प्रसिद्ध वर्तमान क्रिकेटर और गत महान क्रिकेटर, जो अब टीमों के कोच या सलाहकार हैं, वे सभी संस्थागत फिक्सिंग का हिस्सा हैं। ऐसा होना आवश्यक है क्योंकि उनकी जानकारी और उनके शामिल हुए बिना लगातार फिक्स्ड क्रिकेट नहीं खेली जा सकती। दूसरे शब्दों में, यदि वह शामिल नहीं हैं, तो उनकी टीमों के मैच फिक्स्ड नहीं हो सकते। मेरी पुस्तक ‘बेटर्स बिवेयर’ में आईपीएल-6 के उन मैचों और अंतर्राष्ट्रीय मैचों में फिक्सिंग को दिखाया गया है, जिनमें अनेक प्रसिद्ध खिलाड़ी और टीमें शामिल थे।
प्रश्न- तेंदुलकर और धोनी के जैसे योग्य और उनकी श्रेणी के खिलाड़ी मैच फिक्सिंग में क्यों शामिल होंगे? उनके पास तो इतना पैसा है, फिर वे फिक्सिंग में पड़कर स्वयं को बदनाम क्यों करेंगे?
उत्तर- बुकीज़ के प्रलोभन पर यदि फिक्सिंग यदा-कदा होती और यदि उनके सामने विकल्प (चाहें तो इसमें शामिल हों, अन्यथा नहीं) होता तो शायद वे इसमें शामिल न होते। एडवर्ड हॉकिन्स अपनी पुस्तक, ‘बुकीज़ गैम्बलर फिक्सर स्पाई’ में एक शब्द 'Powerless player' (असहाय खिलाड़ी) प्रयोग करते हैं। चूंकि फिक्सिंग संस्थागत हो गई है, इसलिए खेल में खिलाड़ी, प्रशिक्षक, सलाहकार या कमेंटेर्ट्स के रूप में शामिल होने पर उनके पास कोई अन्य विकल्प बचता ही नहीं है। यही चीज वर्तमान या भूतपूर्व में सभी नामचीन खिलाड़ियों पर लागू होती है। आज वे जो भी हैं, इसी संस्था की उपज हैं।
प्रश्न- आप कैसे कह सकते हैं कि फिक्सिंग संस्थागत हो गई है? शीर्षस्थ क्रिकेटरों पर उंगली उठाने का अधिकार आपको कैसे प्राप्त हुआ?
उत्तर- जो मैं कहता हूं, वह मैंने तार्किक और आंकड़ों के आधार पर, मीडिया के लोगों से परस्पर विचार-विमर्श सहित अपनी पुस्तकों में प्रमाणित किया है। संक्षेप में, स्कोरिंग पैटर्न और वैध एवं अवैध सट्टा बाजार में होने वाले सेशंस सट्टा, यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त हैं कि फिक्सिंग छिटपुट नहीं है, यह लगातार और संस्थागत रूप से चल रही है। ऐसा नहीं होने की कोई संभावना नहीं है।
एक सामान्य व्यक्ति होने के नाते मुझे उन लोगों से, जो मुझे धोखा दे रहे हैं, प्रश्न पूछने के सारे अधिकार हैं। मेरे सच को जानने की जिज्ञासा और मेरी पुस्तकों की विषय-सामग्री, मुझे यह अधिकार प्रदान करती है। पिछले दो वर्षों में, मैंने अपने दावों को बार-बार सार्वजनिक रूप से दुहराया है, किंतु अभी तक उन पर कोई एक प्रश्न खड़ा नहीं कर पाया है। मैंने आईसीसी तथा दूसरे क्रिकेट बोर्डों के सामने अपनी बातों को प्रमाणित करने का प्रस्ताव रखा है, पर इसके विपरीत वे चुप बैठे हैं। वे चाहते तो मेरी बात को गलत साबित करते।
किसी भी समयावधि में कुछ लगातार मैचों की रिकार्डिंग और स्कोर बुक्स के माध्यम से यह आसानी से दर्शाया जा सकता है कि फिक्सिंग निरन्तर चल रही है और यह संस्थागत है। मेरी पिछली पुस्तकों और इस पुस्तक में यही सब है। यहां तक कि मैंने आवश्यक दस्तावेजों के साथ माननीय सर्वोच्च न्यायालय से स्वयं प्रस्तुत होकर इस सत्य को और आगे रखने की पेशकश की है, किंतु उन्होंने भी इसकी अनदेखी की है। सत्य का त्याग करने या उसकी अनदेखी करने से सत्य नहीं बदलता।
प्रश्न- किंतु आपके सनसनीखेज़ दोषारोपण का आपके पास प्रमाण क्या है?
उत्तर- यदि कोई लगातार मैचों को देखता रहा है और फिर भी वह यह प्रश्न करता है, तो ऐसा करना X द्वारा Y की हत्या को देखने के बाद भी यह पूछना है कि क्या X ने ही Y की हत्या की है? कभी-कभी खेले गये शॉट्स और फेंकी गई गेंदों में फिक्सिंग स्पष्ट नज़र आती है। शर्त यही है कि आप कमेंटेर्ट्स द्वारा की गई टिप्पणियों पर ध्यान न दें (वह न माने, जो मानने के लिए वे कह रहे हैं) और उनकी बातों से अपने निर्णय को प्रभावित न होने दें। पूरी तरह यह सिद्ध करने के लिए कि फिक्सिंग लगातार और पूरी तरह से हो रही है, मेरे पास तार्किक और गणितीय प्रमाण हैं। खासकर उन लोगों के लिए, जिन्हें अपने सामने हो रही चीज नज़र नहीं आती। यदि इसे कानूनी दृष्टि से देखें तो यह शायद परिस्थितिजन्य प्रमाण की श्रेणी में आएगा, जैसे नोएडा में घटे आरुषी हत्याकांड मामले में अपराध सिद्धि परिस्थितिजन्य प्रमाणों के आधार पर ही हुई है। कहने का अर्थ यह कि खेली जा रही क्रिकेट लगातार फिक्स्ड क्रिकेट ही है, इसके अतिरिक्त और कोई संभावना हो ही नहीं सकती। समय-समय पर मीडिया की रिपोर्ट्स भी इस तथ्य को उजागर करती हैं। आईसीसी की एसीएसयू (खोज इकाई) ने तो विश्वकप मैचों में भी फिक्सिंग होने की पुष्टि की है किंतु अगले ही मैच की प्रतिस्पर्धात्मक मैच के रूप में रिपोर्टिंग करते समय मीडिया स्वयं यह सब भूल जाता है, जबकि उस मैच में पहले खेले गए फिक्स्ड मैचों के खिलाड़ी शामिल होते है। सैशन सट्टे का अस्तित्व लगातार फिक्स्ड क्रिकेट के अस्तित्व को प्रमाणित करता है। इसमें खिलाड़ी शामिल होते हैं।
प्रश्न- सेशन बेटिंग (सेशन सट्टा) क्या है?
उत्तर-जैसे-जैसे मैच आगे बढ़ता जाता है, चाहे वह टी-20, ओडीआई या टेस्ट मैच हो, सट्टा बराबर लगता चलता है। सट्टा ओवरों के एक ब्रैकेट (हर पांच या दस या 10 ओवर या पॉवरप्ले ओवर) में या एक पारी में स्कोर किए जाने वाले रनों पर लगातार लगाया जाता है। फिक्सर और बुकीज़ के फायदे के हिसाब से स्कोरिंग में धांधली करते हुए फिक्सिंग चलती रहती है। इसे मैंने अपनी पूर्वलिखित पुस्तकों में विस्तारपूर्वक और इस पुस्तक में आंशिक रूप से betfair.com पर ब्रैकेट्स के संदर्भ में) स्पष्ट किया है।
प्रश्न- दोनों टीमों के खिलाड़ी यह कैसे याद रख पाते हैं कि हर गेंद का क्या परिणाम होना है और स्क्रिप्ट के अनुरूप उन्हें हर गेंद पर क्या भूमिका निभानी है?
उत्तर- जब हम एक बार निश्चित रूप से यह जान जान चुके हैं कि स्कोरिंग में लगातार धांधली की जा रही है, तो फिर खिलाड़ियों के लिए कोई-न-कोई तरीका तो होना ही चाहिए कि वे हर गेंद के खेले जाने से पहले, उसमें अपनी भूमिका जान लें। खिलाड़ियों या इसमें शामिल लोगों से उचित छानबीन और प्रश्न करके यह जाना जा सकता है कि यह कैसे किया जाता है। साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए क्या सुरक्षा-व्यवस्था है, जिससे खिलाड़ी या टीम के प्रबंधन में लगे लोग इस ज्ञान का प्रयोग, सट्टे द्वारा पैसा बनाने में न कर पाएं। मुझे इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि यह काम चिह्न या इशारे की भाषा द्वारा किया जाता होगा। बाउंड्री लाइन के उस पार से खिलाड़ियों को किसी चिह्न भाषा द्वारा एक गेंद या ओवर का परिणाम, उसके खेले जाने से तुरंत पहले बताया जा सकता है। इस तरह से करने पर यह सुनिश्चित हो जाता है कि खिलाड़ी इसका दुरुपयोग न कर सके। दूसरी संभावना यह है कि मैदान में कुछ खास खिलाड़ी या कप्तान, इसे एक गेंद या ओवर खेले जाने से पहले दूसरों को बता दें।
ओवरों के बीच के अंतराल या किसी अन्य ढंग से पैदा हुए अंतराल जैसे नए बल्लेबाज के क्रीज़ पर आने से, को भी आगे की स्क्रिप्ट को दूसरों को खंडों में बताने के साधन या अवसर के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। समय-समय पर मीडिया में छपी रिपोर्टाें से साफ ज़ाहिर है कि कभी-कभी मैचों का परिणाम पहले ही पता चल गया है। इस बारे में लोगों के निजी अनुभव भी लिपिबद्ध हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि कुल मिलाकर स्क्रिप्टिंग का काम बहुत पहले ही कर लिया जाता है और कभी-कभी लीक होकर कुछ खिलाड़ियों अथवा टीम-कार्यकर्ताओं को मालूम हो जाता है। फिर भी एक गेंद से दूसरी गेंद की स्क्रिप्ट, जैसे-जैसे मैच आगे बढ़ता है, खिलाड़ियों को बताई जाती रहनी जरूरी है। ऐसा इसलिए कि पूरे खेल की सारी गेंदों की स्क्रिप्ट एक साथ कोई याद नहीं रख सकता और यह भी हो सकता है कि फिक्सर्स की सट्टों के हिसाब-किताब की ज़रूरत के मुताबिक, मैच के आगे बढ़ने के साथ ही ऐन मौके पर स्क्रिप्ट में फेरबदल करने की जरूरत आ पड़े। मैंने अपनी पुस्तक प्देपकम जीम ठवनदकंतल सपदम (हिन्दी में- साख पर बट्टा) में यह सब कुछ विस्तार से स्पष्ट किया है। आईपीएल-6 के दौरान श्रीसंत और दूसरे लोग जो कृत्य करते हुए पकड़े गये थे, वह संस्था को धोखा देने का ही तो काम था। वे चिन्ह-भाषा द्वारा अपने बुकी मित्रों को सूचना दे रहे थे। इसी कारण वे गिरफ्त में आ गये।
प्रश्न- आईसीसी और दूसरे क्रिकेट बोर्ड फिक्सिंग को संस्थागत क्यों बनाएंगे?
उत्तर- इसका उत्तर तो वे ही बेहतर दे सकते हैं, किंतु जिस प्रकार लगातार फिक्सिंग स्थापित की जा चुकी है, वह