Democracy Dehshat Mein?
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वर्तमान भारतीय राजनीति सम्पूर्ण विश्व में चर्चा का विषय है। भारतीय जनता का कुछ अंश वर्तमान स्थिति का समर्थक है तो कुछ लोकतंत्र के खतरे में होने का दावा कर रहा है। यह पुस्तक अनेक लेखकों द्वारा वर्तमान भारतीय राजनीति को दृष्टि में रखते हुए लोकतंत्र पर उठे सवाल का अंश मात्र है।यह पुस्तक दोनों परिदृश्यों के माध्यम से अनेकों तथ्यों पर लोकतांत्रिक टिप्पणी है।
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Book preview
Democracy Dehshat Mein? - Shraddha Singh Sikha
Maninanest publication
©Copyright,2020
All rights reserved, no part of this book maybe reproduced means, electronic, mechanical, magnetic, optical, chemical, manual, photocopying, recording or otherwise, without the prior written consent of its writer
डेमोक्रेसी! दहशत में?
Written By: SHRADDHA SINGH
ISBN- 978-93-5452-005-1
Cover Design: Arpit Singh
Formatting- SIMRANDEEP SINGH
Price- Rs 179/-
Printed By: booksclub.in
पुस्तक के बारे में
वर्तमान भारतीय राजनीति सम्पूर्ण विश्व में चर्चा का विषय है। भारतीय जनता का कुछ अंश वर्तमान स्थिति का समर्थक है तो कुछ लोकतंत्र के खतरे में होने का दावा कर रहा है।
यह पुस्तक अनेक लेखकों द्वारा वर्तमान भारतीय राजनीति को दृष्टि में रखते हुए लोकतंत्र पर उठे सवाल का अंश मात्र है।
यह पुस्तक दोनों परिदृश्यों के माध्यम से अनेकों तथ्यों पर लोकतांत्रिक टिप्पणी है!
आभार
समय अनेकों समस्याओं के साथ जीवन की नौका को आगे बढ़ाता है और यह किताब अनेकों समस्याओं का जीवांत उदाहरण है। सर्वप्रथम इस किताब से जुड़े सभी सह लेखकों का हृदय से आभार । आप सभी का मुझ पर विश्वास एवं सहनशीलता सराहनीय है। १ साल के अथक प्रयासों से यह किताब सफल रूप ले पाई है और वक्त वक्त पर हृदय टूटने लगता तब माता पिता का भरोसा ऊर्जा स्रोत का कार्य करता है । आप सभी का सादर आभार।
श्रद्धा सिंह शिखा
C O M P I L E R
प्रतिपल राष्ट्र के लिए समर्पित एक कण हूं।
सत्यमेव जयते
स्वजनो,
भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व का समाज कुछ शाश्वत मूल्यो की आधारशिला पर खड़ा है !
इन्ही शाश्वत मूल्यों की अधारशिला पर किसी समाज ने अपनी परंपराओं ,प्रथाओं ,संस्कारों क निर्माण किया है !
इन्ही शाश्वत मूल्यों पर भारतीय समाज रचना भी खड़ी है l भारतीय समाज रचना में सत्य एक शाश्वत मूल्य है llसत्य की आधारशिला पर समाज का विस्तार हुआ , सत्य की आधारशिला पर राजतन्त्रो क विस्तार हुआ , सत्य की आधारशिला पर सम्बन्धो का विस्तार हुआ और सत्य की आधारशिला पर ही शिक्षा का विस्तार हुआ !
संपूर्ण विश्व में सत्य की भाषा अलग हो सकती है , सत्य का भाव अलग हो सकता है पर मूल एक ही है 'सत्यमेव जयते'll
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सोचना होगा।
किसी भी राष्ट्र का निर्माण लोगों से होता है , वहाँ की जनता की वास्तविक स्थिति ही राष्ट्र की नींव का मूल्यांकन करती है । उनकी संभ्रान्तता ही सम्पूर्ण वसुधा को राष्ट्र के मोहपाश में जकड़ लेती है पर अगर यही वसुधा इस अथाह जल को बेकार बहता हुआ देखेगी तो इसकी वाहवाही करे , यह बात तो गले से नीचे नहीं उतरती ।।
बाहरी समस्याएं बड़ी है पर उससे चिंताजनक वह जड़ता है जिसने राष्ट्रीय मानस को जकड़ा हुआ है ।। कि बार सुरक्षा के नाम पर यही जड़ता हमे डरपोक बनाती है।। अलबत्ता -मुद्दा आज भी बड़ा ज्वलंतशील है की क्या एक ऐसा समाज जो अपने स्वयं के लक्ष्य का निर्धारण करने में असमर्थ है , वह राष्ट्र के लिए संकल्प करेगा ?? अध्यापक जो बच्चों के सीखने और ज्ञान की दुनिया का झरोखा होता है , उनमे रचनात्मकता के साथ-साथ राष्ट्रभक्ति का जुनून भरने में कारगर होता है ! लेकिन अफसोस कि इस विकासशील राष्ट्र की जनसंख्या का एक बड़ा प्रतिशत अध्यापक की छत्रछाया से वंचित है !!!
भोजन ,छत, वस्त्र ! इन सब से मरहूम ।।
शायद अब तक तो आप समझ ही गए होंगे