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Swachh Bharat Kranti ( स्वच्छ भारत क्रांति)
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Swachh Bharat Kranti ( स्वच्छ भारत क्रांति)

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15 अगस्त, 2014 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने पहले संबोधन में श्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय मंच से ‘खुले में शौच’की चुनौती को संबोधित करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। यह आदत भारतीय समाज में पीढ़ियों से प्रचलित थी और इस पर अंकुश लगाना तब तक असंभव माना जाता था। लेकिन प्रधानमन्त्री ने केवल 5 वर्षों में इसे मिटाने का संकल्प लेकर इतिहास रच दिया।
इस स्वप्न को साकार करने में आई अनेक चुनौतियों के बावजूद, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) भारत सरकार की प्रमुख सफलताओं में से एक साबित हुआ। पिछले 5 वर्षों में, स्वच्छ भारत अभियान के तहत लगभग 10 करोड़ शौचालय बनाए गए हैं और ग्रामीण स्वच्छता 2014 में 39% से बढ़कर जून, 2019 में 99% हो गई है। इस मिशन ने 60 करोड़ भारतवासियों की खुले में शौच करने की आदत को बदल दिया, जिसका मतलब है भारत की लगभग आधी आबादी ने अपना व्यवहार बदला है। भारत 2 अक्टूबर, 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर भारत को ‘खुले में शौच मुक्त’घोषित करने की तैयारी में है।
स्वच्छ भारत मिशन की इस सफलता में चार प्रमुख आयामों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण थीः राजनीतिक नेतृत्व, सार्वजनिक वित्तपोषण, साझेदारी और जन भागीदारी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्राक्कथन और परमेश्वरन अय्यर द्वारा संपादित इस पुस्तक में स्व- अरुण जेटली, हेनरिटा एच फोर, अमिताभ कांत, रतन टाटा, सद्गुरु, अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, तवलीन सिंह, अरविंद पाणिग्रह, बिबेक देबराय और कई अन्य के निबंधों को पेश किया गया है, जो इस कार्यक्रम को ध्यान में रखते हुए विस्तृत दृष्टिकोण प्रदान करता है।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateSep 1, 2020
ISBN9789390287611
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    Swachh Bharat Kranti ( स्वच्छ भारत क्रांति) - Parameswaran Iyer 

    है।

    राजनीतिक नेतृत्व

    (POLITICAL LEADERSHIP)

    15 अगस्त, 2014 को अपने पहले स्वतंत्रता दिवस भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता को राष्ट्रीय एजेन्डा में शामिल कर देश के सामने रखा। इससे आने वाले सालों में स्वच्छता और सफ़ाई देश में विकास की प्राथमिकता बन गए।

    स्वच्छता : राज्य का विषय

    रघुबर दास

    पूर्व मुख्यमंत्री, झारखण्ड राज्य

    वर्ष 2018 के जनवरी-फरवरी महीने में, झारखण्ड में 15 लाख से अधिक ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं ने एक महीने में मिलकर महिलाओं के ‘स्वच्छता संकल्प अभियान’ के दौरान क़रीब 3.5 लाख शौचालय बनाए। ऐसे ही, झारखण्ड में एक अभियान के तहत जिसे ‘स्वच्छता सहयोग अभियान’ कहा गया, जून 2018 में 1 लाख से अधिक ग्रामीण घरों में केवल 11 दिनों में शौचालय बनाए। उसी वर्ष बाद में नवंबर, 2018 में झारखण्ड को ‘खुले में शौच से मुक्त’ घोषित किया गया। इसका सार यह है कि 2014 में झारखण्ड में स्वच्छता का कवरेज 20% से कम था, अर्थात राज्य के पांच में से एक ग्रामीण परिवार की एक शौचालय तक पहुंच नहीं थी।

    यह कहानी है, झारखण्ड राज्य भारत के स्वच्छता अभियान का अग्रणी राज्य कैसे बना?

    स्वतंत्रता के सात दशकों तक किसी भी राज्य या केंद्र सरकार के लिए स्वच्छता कभी भी प्राथमिकता का विषय नहीं रहा। यह सब उस दिन बदल गया जब प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से देशवासियों को संबोधित करते हुए स्वच्छ भारत अभियान को पांच वर्ष के अंतराल में पूरा करने का चुनौती पूर्ण कार्य रखा एवं ‘खुले में शौच युक्त’ भारत को ‘शौच-मुक्त’ भारत बनाने का, विश्व में अग्रणी बनाने का प्रण लिया।

    जब 2014 में मैंने झारखण्ड के मुख्यमंत्री की बागडोर संभाली तो राज्य की 80% जनता के पास सुरक्षित स्वच्छता तक पहुँच नहीं थी। मानव प्रगति और विकास पर पड़ने वाले खराब स्वच्छता के प्रभाव को देखते हुए भी, भारत के राजनीतिक हलकों में अभी तक किसी ने इसके बारे में चर्चा नहीं की थी, सिवाय नरेंद्र मोदी के। यह मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से चौंकाने वाला था। मैं अच्छी तरह समझता था कि भारत के बच्चों में खुले में शौच करने से किस प्रकार उनमें कुपोषण होता है और उनकी ‘वृद्धि’ नहीं होती और वह मर भी सकते हैं। हमारे ज़मीनी और सतही जल संसाधनों के भारी प्रदूषण से बार-बार होने वाली ऐसी बीमारियों ने हमारे कामकाजी लोगों की आर्थिक क्षमता में भारी गिरावट की थी, हालाँकि इन बीमारियों को होने से रोका जा सकता है। महिलाओं और बच्चों के लिए स्थिति बहुत खराब थी, क्योंकि उन्हें तो शारीरिक पीड़ा भोगनी पड़ती थी और उन्हें शौच करने के लिए रात का इंतजार करना पड़ता था। कई लड़कियां युवावस्था में आने पर स्कूल छोड़ने का फैसला ले लेती थीं क्योंकि स्कूलों में शौच की पर्याप्त सुविधाएँ नहीं होती थीं और इसका खामियाजा राज्य को भविष्य में महिला नेतृत्व की कमी को लेकर भुगतना पड़ता था।

    जब प्रधानमंत्री ने इस विषय पर अपनी निजी और राजनीतिक रुचि दिखाई तो मुझे भी शक्ति मिली कि मैं अपने राज्य के विकास के एजेंडे पर स्वच्छता को प्राथमिकता दूँ। मुझे यह स्पष्ट हो गया था कि झारखण्ड को स्वच्छता के मामले में चोटी पर ले जाने के लिए इस बारे में ‘पहल’ करनी होगी, जैसा राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री कर रहे थे। मुख्यमंत्री होने के नाते मैं प्रशासनिक प्रणाली को इसे मुद्दा बनाने के लिए प्रेरित कर सकता था और अपना काफ़ी समय इस प्रोग्राम में दे सकता था। इससे, सभी मातहत अफसरों को और विशेष रूप से ज़िला कलक्टरों को यह सन्देश मिला कि मेरी सरकार की प्राथमिकता स्वच्छता थी और हमें इसके लिए भरपूर कोशिश करनी है।

    हमें अभी बहुत दूरी तय करनी थी, न केवल सभी घरों में शौचालय बनाने की, बल्कि 2 करोड़ लोगों को यह यकीन भी दिलाना था कि वह अपनी पुरानी मान्यताएं छोड़ें और स्वच्छता की सुरक्षित सुविधाएँ अपनाएं। 24 ज़िलों और 30,000 गाँवों में लोगों की सोच बदलने के लिए एक अच्छी विचारणीय योजना की कुशल ज़रूरत थी। हमें अपनी महिलाओं को जागरूक करके उन्हीं से सहायता लेनी थी और उनके लिए, जिन्हें स्वच्छता की वर्तमान स्थिति से आपत्ति थी और जो मुश्किलें पैदा करती थीं।

    स्वच्छ भारत अभियान ने यह बात समझी कि घर में शौचालय का होना ज़रूरी है लेकिन लोगों की मानसिकता बदलने के लिए वह पर्याप्त नहीं है। अवसंरचना की बाधाओं के परे, बहुत सारी सांस्कृतिक, व्यावहारिक और अन्य बाधाएं हैं जिनसे निपटना पड़ेगा। इसलिए झारखण्ड सरकार ने माँग-आधारित और समुदाय-आधारित तरीका अपनाया, जिसका केंद्र था ‘पहुँच’ और ‘प्रयोग’ और जिसका ज़ोर जानकारी, शिक्षा और संचार पर था। प्रोग्राम को सरकार का समर्थन चाहिए था, लेकिन ऐसा प्रोग्राम जो जनता के नेतृत्व में था-जहाँ सभी इस बात के लिए उत्साहित थे कि उन्हें अपने-अपने गाँवों में स्वच्छता की स्थिति सुधारनी

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