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कहानी नए भारत की: Politics, #1
कहानी नए भारत की: Politics, #1
कहानी नए भारत की: Politics, #1
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कहानी नए भारत की: Politics, #1

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लोकतंत्र, संविधान, एकता में अनेकता को फ़लते फूलते देख़ने की चाह रख़ने वालों को समर्पित दीपक राजसुमन की यह किताब "कहानी नए भारत की" मौजूदा दौर में लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र का सत्ता के द्वारा दुरुपयोग। गोदी मीडिया के जरिए दर्शकों को भीड़ में तब्दील करना। किताब-कलम और रोजगार की जगह जाति, धर्म, मंदिर, मस्जिद के नाम पर देश के युवाओं को मोब लिंचिंग के लिए उकसाना। लोक-लुभावन वादों के जरिए नए भारत को उलझाना। इसी की पड़ताल करती ये किताब वर्तमान समय की एक लिखित दस्तावेज है। जो लोकतान्त्रिक राष्ट्र में हर एक नागरिक को बोलने, लिखने और सवाल करने के लिए मजबूर करती है।

Languageहिन्दी
Release dateFeb 17, 2022
ISBN9789391078843
कहानी नए भारत की: Politics, #1

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    कहानी नए भारत की - Deepak Rajsuman

    कहानी नए भारत की

    लेखक:  दीपक राजसुमन

    प्रकाशक: Authors Tree Publishing

    Authors Tree Publishing House

    W/13, Near Housing Board Colony

    Bilaspur, Chhattisgarh 495001

    Published By Authors Tree Publishing 2022

    Copyright © Deepak Rajsuman 2022

    All Rights Reserved.

    ISBN: 978-93-91078-84-3

    प्रथम संस्करण: 2022

    भाषा: हिंदी

    सर्वाधिकार: दीपक राजसुमन

    मूल्य:₹ 225/-

    यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि लेखक या प्रकाशक की लिखित पूर्वानुमति के बिना इसका व्यावसायिक अथवा अन्य किसी भी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। इसे पुनःप्रकाशित कर बेचा या किराए पर नहीं दिया जा सकता तथा जिल्द बंद या खुले किसी भी अन्य रूप में पाठकों के मध्य इसका परिचालन नहीं किया जा सकता। ये सभी शर्तें पुस्तक के खरीदार पर भी लागू होंगी। इस संदर्भ में सभी प्रकाशनाधिकार सुरक्षित हैं।

    इस पुस्तक का आंशिक रूप में पुनः प्रकाशन या पुनःप्रकाशनार्थ अपने रिकॉर्ड में सुरक्षित रखने, इसे पुनः प्रस्तुत करने की पद्धति अपनाने, इसका अनूदित रूप तैयार करने अथवा इलैक्ट्रॉनिक, मैकेनिकल, फोटो कॉपी और रिकॉर्डिंग आदि किसी भी पद्धति से इसका उपयोग करने हेतु समस्त प्रकाशनाधिकार रखने वाले अधिकारी तथा पुस्तक के लेखक या प्रकाशक की पूर्वानुमति लेना अनिवार्य है।

    कहानी

    नए भारत

    की

    दीपक राजसुमन

    लोकतंत्र, संविधान, एकता में अनेकता को फ़लते फूलते देख़ने की चाह रख़ने वालों को सहृदय समर्पित

    " मैं इसलिए लिखता हूँ ताकि 50-60 साल बाद कोई मुझसे ये पूछे कि जब देश के यूवाओं को नफरत की आग में झोंका जा रहा था तब आप कहाँ थे उस वक्त मैं गर्व से कह सकता हूँ कि मैं उस भीड़ में शामिल नहीं था जो जाति, धर्म के नाम लोगों को मार रहे थे, नफरत को बढ़ावा दे रहे थे, मैं उस वक्त भी उस सांप्रदायिक सोच के खिलाफ लिख रहा था। साक्ष्य के रूप में लिखित दस्तावेज मेरी नई किताब ‘कहानी नए भारत की’ है। जो सौ साल बाद भी पढ़कर लोग मेरे बारे में जान सकेंगे। "

    विशेष आभार

    हमेशा कुछ लिख़ते रहने की। पठन पाठन की जो भी सामग्री मिले उसे पढ़ते रहने की। समाज में घट रही घटनाओं को लेकर बेबाक बोलने की प्रेरणा मेरे गुरु मेरे मार्गदर्शक और मुझे पत्रकारिता की ए, बी, सी, डी सिख़ाने वाले पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ अमित कुमार मिश्रा जी से मिली।  ‘कहानी नए भारत की’  को लिख़ने की प्रेरणा, जोश और जुनून वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार जी की किताब  ‘बोलना ही है’ से मिली। मैं सोच भी नहीं सकता था कि मौजूदा दौर में लिख़ सकता हूँ लेकिन उसको पढने के बाद लिख़ने की हिम्मत मिली। जोश और जुनून जगाने के लिए रविश कुमार और उनकी किताब का शुक्रिया।

    वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश जी,  पुण्य प्रसून बाजपेई जी,  अजीत अंजुम जी, शीतल प्रसाद सिंह जी, अभिसार शर्मा जी, साक्षी जोशी जी, हिमांशु कुमार जी, आवेश तिवारी जी, कृष्णकान्त जी,  गिरीश मालवीय जी,  नवनीत चतुर्वेदी जी,  हफीज किदवई जी, श्याम मीरा सिंह जी, सौमित्र रॉय जी, मनीष सिंह जी, लक्ष्मी प्रताप सिंह जी और आर्टिकल 19 इंडिया के संस्थापक नवीन कुमार जी का आभार। जिनके लेख़, फेसबुक पोस्ट, ट्वीट और वीडियो को देख़कर और पढ़कर मुझे हर रोज हौसला मिलता है; नए भारत में बोलने की, लिख़ने की और कुछ नया करने की।

    इस पुस्तक में सन्दर्भ के रूप में जोड़े गए सभी वेबसाइट, फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब हैंडल के संचालकों का भी शुक्रिया, जिनकी ख़बरों और डाटा के बदौलत इस पुस्तक को पूरा कर पाया हूँ। मेरे मित्र प्रेरणा सुमन का भी शुक्रिया जो इस किताब को पूरा करने में मेरा हौसला बढाया। उन सभी साथियों, शुभचिंतकों का भी शुक्रिया जिन्होंने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस पुस्तक को लिख़ने में मेरा सहयोग किया। 

    अपनी बात

    कोई कितना भी मंदिर बनाएँ, मस्जिद बनाएँ, अपने धर्म को बचाएँ, अपने धर्म के झंडे को बुलन्द करने के लिए समाज में हिन्दू मुस्लिम का जहर घोले, वो किसी पार्टी का भक्त बनें लेकिन उसे इतना याद रख़ना होगा भूख़ उसे भी लगती है। अच्छी शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ, अच्छी नौकरी और पैसों की जरूरत उसे भी पड़ती है। आप किसी भी पार्टी की भक्ति में डूबे रहिए लेकिन एक दिन सरकार की नाकामियों का शिकार आपको ही होना पड़ेगा। नौकरी की जरूरत आपको ही महसूस होगी। जब देश के बैंक दिवालियापन घोषित होंगे तो इसका शिकार आपको ही होना पडेगा, आपके ही पैसे डूबेंगे। आपके बच्चों के ही भविष्य दांव पर लगेगें। सरकारें आती जाती रहेगी। आपको अपने लिए रोटी, रोजगार, सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए लड़ना होगा। 

    आप इन मुद्दों से, इन समस्याओं से भाग नहीं सकते। मंदिर, मस्जिद, धर्म जैसे मुद्दें आपको रोटी, कपडा और मकान नहीं दिलवा सकती। अच्छी शिक्षा नहीं दे सकती। आपको अपने अधिकारों की माँग खुद करनी होगी। कब तक आप इन समस्याओं से भागेंगे? हमारे देश को आजाद हुए कई दशक हो गए लेकिन आजतक हम अपने अधिकारों को, अपनी समस्याओं को सही तरीके से समझ नहीं पाए। कोई अपने पड़ोस के मुस्लिमों से लड़ रहा है, कोई दलितों से तो कोई सवर्णों से। चुनाव के समय आज भी पाँच-पाँच सौ रुपए में अपराध में लिप्त नेताओं को वोट देते हमारे देश के लाखों करोड़ों लोग नजर आते हैं।

    ऐसा इसलिए है क्योंकि वे जिस विचारधारा को मानते हैं उसका आईटी सेल सुबह शाम सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी’ के जरिए इन लोगों के ख़िलाफ़ उनके दिमाग में जहर डालते हैं। यकीन मानिए जिस दिन आप समस्याओं में रहेंगे। बीमार होंगे उस दिन आपके घर ये राजनीतिक पार्टियाँ मदद करने नहीं आएगी। उस समय आपके पड़ोसी ही मदद करने के लिए आगे आएँगे ।

    आप इस देश के नागरिक हैं अपनी नागरिकता को समझिए। सवाल करिए, किसी पार्टी और नेता का भक्त मत बनिए। अपनी समस्याओं को उठाइये। देशभक्ति के सही मतलब को समझिए। आपकी ख़ामोशी आपके कई नस्लों को तबाह कर देगी। वक्त है कलम को उठाइए और दिख़ा दीजिए अपनी ताकत।

    आप लोकतांत्रिक राष्ट्र में रहते हैं आपकी कलम हमेशा बोलती रहनी चाहिए। आपकी जुबाँ बोलती रहनी चाहिए। जिस महीने देश में आंदोलन ना हो समझ लो लोकतंत्र ख़तरें में है। जो सत्ता के सिंहासन पर बैठकर अपने आप को ताकतवर समझते हैं, उनको हमेशा ये अहसास होनी चाहिए कि देश का असली मालिक सरकार नहीं जनता होती है। और आपको जनता के लिए काम करना ही होगा वरना जनता आपको सत्ता से उख़ाड़ फेकेंगी।

    अंग्रेजों की चंगुल से इस देश को छुड़ाने के लिए लाखों देशभक्तों ने अपनी क़ुर्बानियाँ दी हैं। उन लाखों देशभक्तों की कुर्बानियों को हम इस तरह मिटते हुए नहीं देख़ सकते। हमें अपने अधिकारों के लिए, अपनी आजादी के लिए, मजबूत लोकतंत्र के लिए आवाज उठानी ही होगी। कलम की धार को सत्ता की बंदूक से टकराना होगा। तभी हम आज़ादी की लड़ाई में अपनी जान देने वाले महानायकों को सच्ची श्रद्धांजलि दे पाएँगे ।

    हमें राजनीतिक दलों के समर्थक और भक्त बनकर नहीं इस देश का नागरिक बनकर सोचना होगा, लिख़ना होगा, सवाल करना होगा। आज आपके आवाज की जरूरत है। आपके सवाल की जरूरत है। हम नए भारत में हैं और नए भारत में आपको बोलना ही होगा, अपनी कलम की ताकत को मजबूत करना ही होगा, तभी नए भारत के सपने को साकार कर पाएँगे ।

    1947 में जब देश को आजादी मिली तो उस समय इस देश में क्या था क्या नहीं इस लड़ाई में हमें नहीं पड़ना; क्योंकि देश को आजाद हुए कई दशक हो गए और इतने दशकों में देश का विकास नहीं हुआ तो सवाल उन सरकारों से भी पूछा जाना चाहिए। उनकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए जो इतने वर्षों तक सत्ता में रहकर सेवा के नाम पर मलाई खाने का काम किया है।

    आज भी देश के कई गाँवों में बिजली नहीं है। अच्छी सड़कें नहीं है। अच्छे स्कूल नहीं है। अच्छे अस्पताल नहीं है। इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध नहीं है ये किसकी गलती है इसपर सवाल उठने चाहिए, व्यापक रूप से चर्चा की जानी चाहिए। भारत के लोगों को अंग्रेजों से आज़ादी मिले हुए कई दशक हो गए लेकिन आज भी वे अपने मौलिक अधिकारों से वंचित हैं। आख़िर किसकी वजह से इसपर सवाल किया जाना चाहिए तभी हम नए भारत के सपने को साकार कर पाएँगे । गाँधी, नेहरू, पटेल, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे लाखों महान देशभक्तों के सपने को साकार कर पाएँगे ।

    आज़ादी के बाद पहली बार कोरोना जैसी त्रासदी को भारत की जनता ने देख़ा। इस त्रासदी में सरकार की नाकमियों को लोगों ने करीब से देख़ा। उन सरकारों की नाकामियों को देख़ा जो हजारों करोड़ रूपए लगाकर मंदिर और मूर्ति बनवाती है। लोगों ने अपनी आँखों से उस भयानक मंजर को देख़ा जब उनके अपने लोग ऑक्सीजन की कमी से, बेड की कमी से, दवाई की कमी से सड़कों पर तड़प तड़प कर अपनी जान गँवाई। हजारों-लाखों लाशों को तो आग भी नसीब नहीं हुई उनके लाशों को जलाने के लिए श्मशान में जगह तक नहीं मिली, हजारों लाशों को गंगा नदी के किनारे गड़ दिया गया, कुछ लाशों को गंगा नदी में फेंक दिया गया जिसे पशु-पक्षियों ने नोच नोच कर ख़ाया तो सवाल पूछा ही जाना चाहिए। जिम्मेदारी तय होनी ही चाहिए। आख़िर ये किसकी गलती थी?

    ऐसी बहुत सी बातें बहुत से सवाल हैं इस नए भारत में जो आप इस पुस्तक में आगे पढ़ेंगे जो मैंने देख़ा, पढ़ा और उस दर्द को महसूस किया। उसको अपने टूटे फूटे शब्दों में लिख़ने की कोशिश की है। मुझे नहीं पता आप इस नए भारत को किस नजरिए से देख़ते हैं।  मुझे नहीं पता इस पुस्तक को प्रकाशित होने के बाद मैं सही सलामत रहूँगा या नहीं,  मुझे नहीं पता इतिहास आज के नए भारत को किस तरीके से आंकलन करेगा। लेकिन मैं भी इस नए भारत की राजनीतिक घटनाक्रम पर चुप रहूँ तो इतिहास मुझे माफ़ नहीं करेगा।  नए भारत में घट रही घटनाओं पर समय-समय पर मैं लिख़ता रहा हूँ, बोलता रहा हूँ, आगे भी लिखूँगा और बोलूँगा, लोगों को जितना हो सकता है जागरूक करूँगा; इसके लिए आप मेरी आलोचना कर सकते हैं।  लेकिन आप ग़लत को नजर अंदाज करें ये आपके लिए और इस देश के लिए हानिकारिक है।

    आज आपके हाथों में मेरे द्वारा लिखी गई तीसरी किताब है। इस पुस्तक से पहले दो और किताबें लिखी है (1) अधूरा इश्क अधूरी कहानी (2) अजनबी लड़की अजनबी शहर ये दोनों प्रेम कहानियों पर आधारित है। कई कहानियों का संग्रह है जो आज के लड़के-लड़कियों को सचेत करती है। ये दोनों ऑनलाइन अमेजन, फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।

    ये मेरी तीसरी किताब नए भारत की राजनीतिक घटनाक्रम पर आधारित है। आम लोगों की जिंदगियों से जुड़ी हुई है। नए भारत की दास्ताँ है कहानी नए भारत की। इस पुस्तक को लिख़ने के पीछे मेरा एक ही उद्देश्य है लोगों को नए भारत की सैर करवाई जाए। जहाँ लोगों के अधिकारों को कुचलने का प्रयास किया जा रहा है। बोलने की आजादी को छीनने का प्रयास किया जा रहा है। लिख़ने के ऊपर बंदिशे लगाई जा रही है। उनके खाने-पीने और कपड़ों के पहनावों पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया जा रहा है। उनको अपने इस किताब के माध्यम से बताने की छोटी सी कोशिश है चाहे कैसी भी परस्थिति रहे आपको बोलना ही होगा। लड़ना ही होगा। अपने लिए, अपने देश के लिए, अपने लोकतंत्र के लिए, अपने संविधान के लिए, अपने अधिकारों के लिए, अपने बच्चों के लिए ताकि चालीस पचास साल बाद अगर आपसे कोई पूछे कि जब देश बर्बाद हो रहा था, उस समय आप कहाँ थे? उस समय आपको शर्मिंदगी का सामना नहीं करना पड़े। आप सीना तानकर बता पायें कि आपने भी इस देश के लिए लड़ा है। जब देश में गोदी मीडिया धर्म के नाम पर नफ़रत फैला रहा था तो आपने लिख़ा और बोला। आप उनलोगों में शामिल नहीं थे जो धर्म के नाम पर लोगों को मार रहे थे, देश को आग में झोंक रहे थे।

    आज चारों तरफ़ डर का माहौल है और इस डर के दौर में कहानी नए भारत कीको लिख़ रहा हूँ तो देश की मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सरकार के पक्ष में है। सरकार के दिशा निर्देश पर काम करते नजर आती है। मीडिया की साख़ लगातार गिरते जा रही है। वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार इस मीडिया को गोदी मीडिया कहते हैं। गोदी का मतलब है सरकार की गोद में बैठ कर अपने आप को निष्पक्ष पत्रकार कहना और ख़बर के नाम पर सरकार के एजेंडे को पेश करना।

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