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Mahila Sashaktikaran Aur Bharat - (महिला सशक्तीकरण और भारत)
Mahila Sashaktikaran Aur Bharat - (महिला सशक्तीकरण और भारत)
Mahila Sashaktikaran Aur Bharat - (महिला सशक्तीकरण और भारत)
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Mahila Sashaktikaran Aur Bharat - (महिला सशक्तीकरण और भारत)

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चार दर्जन पुस्तकों के लेखक डॉ. राकेश कुमार आर्य का जन्म 17 जुलाई, 1967 को ग्राम महावड़ जनपद गौतमबुद्ध नगर उत्तर प्रदेश में एक आर्य समाजी परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम महाशय राजेंद्र सिंह आर्य और माता का नाम श्रीमती सत्यवती आर्या है। विधि व्यवसायी होने के साथ-साथ श्री आर्य एक प्रखर वक्ता भी हैं।
श्री आर्य को उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह द्वारा विशेष रूप से 22 जुलाई, 2015 को राजभवन राजस्थान में सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से 12 मार्च, 2019 को केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा उनकी शोध कृति “भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास” को वर्ष 2017 के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
इतिहास संबंधी शोधपूर्ण कार्य पर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय आर्य विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर श्यामसिंह शशि और संस्कृत में प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रोफेसर डॉक्टर सत्यव्रत शास्त्री विद्वानों के द्वारा डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि विगत 17 जुलाई, 2019 को उनके 53वें जन्म दिवस के अवसर पर दिल्ली में होटल अमलतास इंटरनेशनल में प्रदान की गई।
श्री आर्य को उनके उत्कृष्ट लेखन कार्य के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों व सामाजिक संस्थाओं से भी सम्मानित किया गया है। मेरठ के चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालयों में उनके लेक्चर विजिटर प्रोफेसर के रूप में आयोजित किए गए हैं।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateSep 1, 2020
ISBN9789390088188
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    Mahila Sashaktikaran Aur Bharat - (महिला सशक्तीकरण और भारत) - Dr. Rakesh Kumar Arya

    अधिकार

    अध्याय 1

    वेदों में नारी का स्थान

    मां ममता से सराबोर होती है और यदि ममता जैसे महान गुण को मां से निकाल दिया जाए तो संसार की गति ही शांत हो जाएगी।

    वेद सृष्टि का आदि संविधान है। स्पष्ट है कि इस आदि संविधान में ईश्वरीय व्यवस्था के अंतर्गत नारी को बराबरी का सम्मान दिया जाना अपेक्षित था। क्योंकि ईश्वर की व्यवस्था को चलाए रखने के लिए नारी की उतनी ही आवश्यकता है जितनी पुरुष की है। अतः परमपिता परमेश्वर दिए द्वारा दिए गए वैदिक ज्ञान के द्वारा जो व्यवस्था आदि काल में लागू की गई, उसमें नारी का महत्त्वपूर्ण और सम्मानजनक स्थान था। यही कारण है कि संसार में नारी के प्रति जितना अधिक सम्मान भाव वेद ने दिखाया है, उतना संसार के किसी अन्य मत, पंथ या संप्रदाय की धार्मिक पुस्तक ने नहीं दिखाया।

    वेद ने नारी को इतनी सुंदर-सुंदर उपमाओं से अलंकृत किया है कि उन्हें देख व समझकर नारी के प्रति आज के समाज को भी अपना कर्तव्य ज्ञात हो सकता है। यहां पर हम कुछ ऐसे ही उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनसे हमारे इस मत की पुष्टि होती हैः-

    उषा के समान प्रकाशवती- (ऋग्वेद 4/14/3)

    ऋग्वेद के इस मंत्र में नारी को उषा के समान प्रकाशवती बताते हुए उसके गुणों की प्रशंसा की गई है। वेद का ऋषि कहता है किः- हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् की अरुण कान्तियों को छिटकाती हुई आओ, अपने विस्मयकारी सद्गुणगणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो। जन-जन को सुख देने के लिए अपने जगमग करते हुए रथ पर बैठ कर आओ।

    वीरांगना (यजुर्वेद 5/10)

    नारी राष्ट्र की निर्माता होती है। नारी के जैसे भाव होते हैं, वैसे ही वीर सपूत पैदा कर वह राष्ट्र की रक्षा कराने में सहायिका होती है। यही कारण है कि वेद ने नारी को वीरांगना कहकर संबोधित किया है। यजुर्वेद में कहा गया है किः- हे नारी! तू स्वयं को पहचान। तू शेरनी हैं, तू शत्रु रूप मृगों का मर्दन करने वाली है, देवजनों के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर। हे नारी! तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने वाली हैं, तू दिव्य गुणों के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर। हे नारी! तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विध्वंस करने वाली है, धार्मिक जनों के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणों से अलंकृत कर।

    नारी के ऐसे दिव्य और भव्य स्वरूप से ही राष्ट्र की सन्तति वीर बनकर राष्ट्र, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए उद्यत होती है। जिससे समाज में आतंकवादी या समाज विरोधी लोगों का विनाश करने में सहायता मिलती है और राष्ट्र समृद्धि और उन्नति को प्राप्त होता है।

    वीर प्रसवा (ऋग्वेद 10/47/4)

    राष्ट्र को नारी कैसी संतान दे

    राष्ट्र की रक्षा शस्त्र से होती है और शस्त्र सदैव वीर लोग ही चला पाने में सक्षम हो पाते हैं। यही कारण है कि वेद एक ऐसी नारी का आवाहन करता है जो वीर संतति को उत्पन्न करने वाली हो। वेद कहता है कि हमारे राष्ट्र को ऐसी अद्भुत एवं वर्षक संतान प्राप्त हो, जो उत्कृष्ट कोटि के हथियारों को चलाने में कुशल हो, उत्तम प्रकार से अपनी तथा दूसरों की रक्षा करने में प्रवीण हो, सम्यक नेतृत्व करने वाली हो, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप चार पुरुषार्थ- समुद्रों का अवगाहन करने वाली हो, विविध संपदाओं की धारक हो, अतिशय क्रियाशील हो, प्रशंसनीय हो, बहुतों से वरणीय हो, आपदाओं की निवारक हो। स्पष्ट है कि वीर प्रस्विनी माता ही इस प्रकार देश, धर्म व संस्कृति की रक्षा कराने में सहायता प्रदान कर सकती है।

    विद्या अलंकृता (यजुर्वेद 20/84)

    वेद ने कहीं पर भी नारी के लिए विद्या अध्ययन पर प्रतिबंध नहीं लगाया। इसके विपरीत वेद ने नारी की महत्ता को स्वीकार करते हुए उसे विद्यावती होने के लिए पग-पग पर प्रेरित किया है। क्योंकि विद्यावती नारी ही देश, समाज व राष्ट्र को सही दिशा दे सकती है। वेद का कहना है कि विदुषी नारी अपने विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे। वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे। अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम-यज्ञ एवं ज्ञान-यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे।

    स्नेहमयी माँ (अथर्वेद 7/68/3)

    मां ममता से सराबोर होती है और यदि ममता जैसे महान गुण को मां से निकाल दिया जाए तो संसार की गति ही शांत हो जाएगी। इसलिए मां के भीतर ममता का होना विधाता ने स्वाभाविक रूप से उत्पन्न किया है। वेद ने माता के महत्त्वपूर्ण स्वरूप को समझकर उसे स्नेहमयी माँ बनने के लिए भी प्रेरित किया है। वेद का कहना है कि हे प्रेम रसमयी माँ! तुम हमारे लिए मंगलकारिणी बनो, तुम हमारे लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने वाली बनो। हम तुम्हारी कृपा-दृष्टि से कभी वंचित न हों।

    अन्नपूर्णा (अथर्ववेद 3/24/4)

    मां को अन्नपूर्णा कहकर भी सम्मानित करने वाला वेद ही है। वास्तव में हमारी माताएं प्राचीन काल से ही रस और रसायन की इतनी विशेषज्ञ हुआ करती थीं कि उनकी रसोई में रस और रसायन के सिवाय अन्य कुछ नहीं मिलता था। रस और रसायन होने से ही रसोई शब्द बना है। मां एक कुशल वैद्य का काम करती थी और सारे परिवार को स्वस्थ बनाए रखने के लिए इन रस और रसायनों का समय-समय पर उचित उपयोग करती रहती थी। इसीलिए वेद ने व्यवस्था की है किः- इस गृह आश्रम में पुष्टि प्राप्त हो, इस गृह आश्रम में रस प्राप्त हो। इस ग्रहस्थाश्रम में हे देवी! तू दूध-घी आदि सहस्त्रों पोषक पदार्थों का दान कर। हे यम-नियमों का पालन करने वाली गृहिणी! जिन गाय आदि पशु से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं उनका तू पोषण कर।

    यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः

    यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः

    जिस कुल में नारियों की पूजा, अर्थात सत्कार होता है, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं।

    वेदों में पुत्रियों की कामना की गई है

    वेदों में नारी के महत्त्व और महिमा को समझते हुए अनेकों स्थानों पर पुत्री की कामना की है। वेदों में ऐसे मंत्रों के होने से पता चलता है कि हमारे देश में कन्या भ्रूण हत्या या कन्याओं के जन्म लेने के पश्चात उनको मार देने की पाशविक प्रवृत्ति वेदों की देन न होकर कालांतर में उस समय विकसित हुई एक विकृति थी जिस समय वेद विरुद्ध आचरण करते करते भारत पतित हो चुका था।

    आज जब कन्या भ्रूण हत्या और नारी शिक्षा के प्रति समाज में बहुत अधिक जागृति आ चुकी है, तब भी नारी के प्रति सभ्य समाज का आचरण वैसा नहीं है जैसा वेद ने एक सभ्य समाज से अपेक्षित किया है। समाज में आज कन्या भ्रूण हत्या का महापाप प्रचलित हो गया है, जिसका मुख्य कारण नारी जाति का समाज में उचित सम्मान न होना, दहेज जैसी कुरीतियों का होना, समाज में बलात्कार जैसी घटनाओं का बढ़ना, चरित्र दोष आदि जिससे नारी जाति की रक्षा कर पाना कठिन होते जाना आदि मुख्य कारण हैं। कुछ स्वार्थी मक्कार लोगों ने वेदों की ऐसी व्याख्या की है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि वेद ने नारी के प्रति हेय दृष्टिकोण अपनाया है, और नारी को पैरों की जूती या कुछ ऐसी ही स्थिति तक लाकर मनुष्य के उपभोग की वस्तु बनाकर रख दिया। जबकि वेद में कहीं पर भी ऐसा कोई संकेत मात्र भी नहीं है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि नारी मनुष्य की भोग्या है और उसको पैरों की जूती समझ लेना मनुष्य के लिए उचित है। वेद ने अनेकों स्थानों पर पुत्री की कामना करते हुए यह स्पष्ट किया है कि उसकी दृष्टि में नारी जाति का कितना अधिक सम्मान है? वेदों के प्रमाण जिनमें नारी की यश गाथा का वर्णन है।

    ऋग्वेद 10/19/3 - मेरे पुत्र शत्रु हन्ता हों और पुत्री भी तेजस्विनी हो।

    ऋग्वेद 8/31/8 - में कहा गया है कि यज्ञ करने वाले पति-पत्नी और कुमारियों वाले होते हैं।

    ऋग्वेद 9/67/10 - यहां पर व्यवस्था दी गई है कि प्रति प्रहर हमारी रक्षा करने वाला पूषा परमेश्वर हमें कन्याओं का भागी बनायें अर्थात कन्या प्रदान करे।

    यजुर्वेद 22/22 - हमारे राष्ट्र में विजयशील सभ्य वीर युवक पैदा हों, वहां साथ ही बुद्धिमती नारियों के उत्पन्न होने की भी प्रार्थना है। अपनी वैदिक राष्ट्रीय प्रार्थना में प्रत्येक आर्य परिवार में इस प्रकार की कामना नित्य प्रति यज्ञ के पवित्र अवसर पर की जाती है।

    अथर्ववेद 10/3/20 - इस स्थान पर कहा गया है कि जैसा यश कन्या में होता है, वैसा यश मुझे प्राप्त हो।

    वेदों में दहेज शब्द का सही अर्थ है पिता ज्ञान, विद्या, उत्तम संस्कार आदि गुणों के साथ वधु को, वर को भेंट करें। इसका अभिप्राय है कि आज के समाज ने दहेज शब्द का वास्तविक अर्थ नहीं समझा है। उसने रूढ़िगत अर्थ में दहेज का अर्थ लिया है। जिससे सद्गुणी कन्या को न लेकर समाज भूखे भेड़िए की तरह धन आदि को दहेज समझ बैठा है। वह तभी एक विवाह को पूर्ण समझता है जब वधु पक्ष धन आदि से उसकी पूर्ण तृप्ति कर देता है। यदि किसी कारणवश धन आदि से वर पक्ष की तृप्ति ना हो पाती है तो ऐसी परिस्थिति में अक्सर यह देखा जाता है कि वर पक्ष कन्या को या तो जीवित मार देता है या फिर आग लगा देता है या फिर किसी अन्य घृणित ढंग से उसकी हत्या कर देता है या फिर वर पक्ष उसे किसी न किसी प्रकार से उत्पीड़ित करता रहता है।

    यदि आज का समाज नारी को वेदों के दृष्टिकोण से देखना आरंभ कर दे तो समाज में जिस प्रकार कलह कटुता का वातावरण बना हुआ है वह सब समाप्त हो जाएगा और प्रत्येक घर में शांति, सुख और समृद्धि का वास हो जाएगा।

    नारी जाति को यज्ञ का अधिकार

    कुछ लोगों ने निहित स्वार्थ में नारी को यज्ञ करने के अधिकार से भी वंचित किया। जिससे नारी का पतन हुआ और प्राचीन काल में वह जिस प्रकार समाज को गति देने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देती थी, उसकी वह महत्त्वपूर्ण स्थिति भी प्रभावित हुई।

    स्वार्थी और मक्कार लोगों ने मनुस्मृति और अन्य आर्ष ग्रंथों में ऐसी-ऐसी व्यवस्थाएं स्थापित कर दीं जिससे नारी का स्थान पतित हुआ। लोगों ने मनुस्मृति के माध्यम से यह भी व्यवस्था करा दी कि वेद पढ़ने का नारी को कोई अधिकार नहीं है। इसलिए वह यज्ञ में भी भाग नहीं ले सकती।

    जबकि वेद नारी जाति को यज्ञ में भाग लेने का पूर्ण अधिकार देते

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