Aao shikhe yog
By Renu Saran
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Book preview
Aao shikhe yog - Renu Saran
आओ सीखें योग
IconeISBN: 978-93-5261-250-5
© लेखकाधीन
प्रकाशक: डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली-110020
फोन: 011-40712100, 41611861
फैक्स: 011-41611866
ई-मेल: ebooks@dpb.in
वेबसाइट: www.diamondbook.in
संस्करण: 2016
AAO SEEKHEN YOG
लेखक: RENU SARAN
भूमिका
भारतीय दर्शन में योग एक अति महत्त्वपूर्ण शब्द है। यह शब्द वेदों, उपनिषदों, गीता एवं पुराणों में आदि काल से ही व्यवहार में आ रहा है। आत्मदर्शन व समाधि से लेकर कर्मक्षेत्र तक में योग का व्यापक व्यवहार हमारे शास्त्रों में हुआ है। भारत के आधुनिक संतों ने तो गीता के योग का प्रचार सारी दुनिया में किया है। गीता में योगेश्वर श्री कृष्ण योग को विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त करते हैं- अनुकूलता-प्रतिकूलता, सफलता-विफलता और जय-पराजय... इन समस्त भावों में आत्मस्थ रहते हुए सम रहने को भी योग ही कहते हैं। महर्षि अरविंद का मानना है कि परमदेव के साथ एकत्व की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना तथा इसे प्राप्त करना ही सब योगों का स्वरूप है। पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप 21 जून, 2015 को सारी दुनिया ने एक साथ और समवेत स्वर में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया। 192 देशों के 251 शहरों में मनाए गए पहले योग दिवस और 2 अरब लोगों ने अपने-अपने तरीके से योगासन किये। खुद भारतीय प्रधानमंत्री ने राजधानी दिल्ली के राजपथ पर योगाभ्यास करके सबको चौंका दिया। उस दिन लगभग सारी दुनिया योगपथ पर चलती नजर आई। उन गौरवशाली क्षणों को देखकर हर भारतीय का सीना चौड़ा हो गया। कहते हैं कि सार्वभौमिक, वैज्ञानिक और परंपरागत ज्ञान का नाम धर्म है और इच्छाओं से मुक्त होना योग। किसी भी काम को एकाग्रता के साथ करना भी तो योग ही है। जिसके ज्ञान और आचरण में फर्क न हो, वही असली योगी है। असली सवाल यह है कि योग को सिर्फ 21 जून तक ही नहीं सिमटना चाहिए। इसे दैनिक जीवन और सिस्टम (स्कूल, कॉलेज, डिफेंस आदि) का भी हिस्सा बनना चाहिए और इसका मानवीकरण भी होना चाहिए।
वैसे भी भारत की पहल पर प्रथम योग दिवस को आने वाले दौर में योग की ग्लोबल लोकप्रियता की बानगी के तौर पर भी देखा जा सकता है, लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं कि यहां से आगे योग के प्रति भारत की जिम्मेदारियां भी काफी आगे बढ़ गई हैं। मन को स्थिर और चपल बनाने वाले इस विज्ञान को दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरह से आजमाया जाता रहा है। स्वयं भारत में ही विभिन्न संस्थान और आचार्य इसे अपने-अपने ढंग से प्रयोग में लाते हैं। मानकस्वरूप जैसी कोई चीज योग पर लागू नहीं होती, लेकिन बाहरी भिन्नताओं को यदि छोड़ दें, तो अपनी अंतर्वस्तु में योग जीवन पद्धति और एक दर्शन है। दुनिया को योग की इस मूल आत्मा से परिचित कराने का काम भारत का ही है।
योग के सरलीकरण की दिशा में अपने देश में इन दिनों बहुत काम हो रहे हैं।
प्रिय बच्चों! यह तथ्य तो हजारों वर्षों से प्रमाणित होता आ रहा है कि योग हमें स्वस्थ तन और सुंदर मन देता है। योगासन इसी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। आज तो सारा विश्व ही योगमय होता जा रहा है । योग हो या भोग-रोग दोनों में ही बाधक होता है।