Benjamin Franklin Ki Aatmkatha
By Renu Saran
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Benjamin Franklin Ki Aatmkatha - Renu Saran
बेंजामिन फ्रैंकलिन
की आत्मकथा
IconeISBN: 978-81-2881-906-3
© प्रकाशकाधीन
डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली-110020
फोन: 011-40712100, 41611861
फैक्स: 011-41611866
ई-मेल: ebooks@dpb.in
वेबसाइट: www.diamondbook.in
संस्करण: 2016
Benjamin Franklin Ki Aatmkatha
Translated & Edited by :Renu Saran
एक परिचय
बेंजामिन फ्रैंकलिन का जन्म 6 जनवरी, 1706 को मिल्क स्ट्रीट, बोस्टन में हुआ था। उनके पिता जोशिया फ्रैंकलिन पशुओं की चर्बी से मोमबत्ती बनाते थे, जिन्होंने दो विवाह किए थे और उनके 17 बच्चों में बेंजामिन सबसे छोटे थे। बेंजामिन ने 10 वर्ष की अल्पायु में ही पढ़ाई छोड़ दी और 12 वर्ष की आयु में अपने भाई जेम्स के पास काम सीखने लगे, जो छापाखाना चलाता था और उसने ‘न्यू इंग्लैंड कुरेण्ट’ प्रकाशित की थी। इस जर्नल(पत्रिका) से जुड़कर बेंजामिन भी छापेखाने में प्रशिक्षु के रूप में योगदान देने लगे और बाद में कुछ समय के लिए थोड़ा-बहुत संपादन भी करने लगे। किंतु दोनों भाइयों में झगड़ा हो गया और बेंजामिन वहां से भागकर न्यूयॉर्क पहुंचे और उसके पश्चात् अक्तूबर 1723 में फिलाडेल्फिया चले गए। उन्हें छापेखाने का अनुभव तो था ही, इसलिए उन्हें बहुत जल्द ही छापेखाने में काम मिल गया। कुछ ही महीनों बाद उन्हें लंदन से गवर्नर कीथ ने अपने यहां काम दिलवाने का प्रलोभन दिया, किंतु लंदन पहुंचकर कीथ का वादा खोखला साबित हुआ। अतः बेंजामिन दोबारा कम्पोजिटर का काम करने लगे और तब तक करते रहे, जब तक डेनमैन नामक एक व्यापारी ने उन्हें वापिस फिलाडेल्फिया अपने व्यवसाय में बड़ा पद नहीं सौंपा। डेनमैन की मृत्योपरांत वह अपना पुराना कारोबार करने लगे और बहुत जल्द ही अपना खुद का छापाखाना लगा लिया। इसी छापेखाने से उन्होंने ‘द पेंसिलवेनिया गैजेट’ प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने कई निबंध लिखे थे और उन्होंने इसे कई स्थानीय सुधारों के आंदोलन का माध्यम बनाया। 1732 में उन्होंने अपना सुप्रसिद्ध ‘पुअर रिचर्ड्स एल्मनाक’ (दीनबन्धु का पंचांग) निकालना आरंभ किया, जिसे समृद्ध बनाने के लिए उन्होंने उसमें दुनिया की छोटी-छोटी बोधजनक कहावतों और अभिव्यक्तियों को स्थान दिया, जो उनकी लोकप्रिय ख्याति का एक बड़ा आधार बना। 1758 में, जब उन्होंने इस पंचांग के लिए लिखना बंद किया, उसी वर्ष उन्होंने इसे ‘फादर अब्राहम्स सरमन’ में छापा, जिसे अब औपनिवेशिक अमेरिका में प्रकाशित सुविख्यात साहित्य माना जाता है।
इस दौरान, फ्रैंकलिन सार्वजनिक विषयों में अधिक रुचि लेने लगे थे। उन्होंने एक एकेडमी की योजना सामने रखी, जिसे बाद में मूर्तरूप दिया और अंततः ‘पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय’ की स्थापना हुई। साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले विज्ञजनों की वैज्ञानिक खोजों को परस्पर एक-दूसरे तक पहुंचाने के उद्देश्य से उन्होंने ‘अमेरिकन फिलॉसाफिकल सोसायटी’ की स्थापना की। वह अन्य वैज्ञानिक जिज्ञासाओं सहित विद्युत संबंधी शोधों पर पहले ही काम शुरू कर चुके थे, जो पैसा कमाने और राजनीति के बीच से लेकर अपने जीवन के अंत समय तक करते रहे थे। अध्ययन हेतु समय निकालने के लिए उन्होंने 1748 में अपना व्यवसाय बेच दिया और इससे प्राप्त पैसों से कुछ ही वर्षों में उन्होंने वे खोजें कर डालीं, जिन्होंने उन्हें पूरे यूरोप के शिक्षित समाज में मान-सम्मान दिलाया। राजनीति के क्षेत्र में वह एक प्रखर प्रशासक और विवादी (न्यायिक) साबित हुए, किंतु अपने सगे-संबंधियों को पद सौंपने के कारण, एक कार्यचालक के रूप में, उनकी भूमिका दागदार रही। घरेलू राजनीति में उनकी सर्वाधिक उल्लेखनीय सेवा डाक व्यवस्था में किए गए सुधार थे। किंतु एक राजनेता के रूप में, पहले ग्रेट ब्रिटेन के उपनिवेशों और बाद में फ्रांस के संबंध में प्रदान की गई सेवाओं के बदले उन्हें मुख्य रूप से प्रसिद्धि मिली। 1757 में औपनिवेशिक बस्तियों की सरकार में पेन्स के प्रभाव के विरोधस्वरूप उन्हें इंग्लैंड भेजा गया और वह अगले पांच वर्षों तक वहीं रहे, जहां वह लोगों को ज्ञान देने और औपनिवेशिक स्थितियों में इंग्लैंड की ओर से संघर्ष करते रहे। अमेरिका लौटने पर उन्होंने पैक्सटन मामले में सम्माननीय भूमिका निभाई, जिससे उन्हें विधानसभा में अपनी सीट गंवानी पड़ी, किंतु फिर भी उन्हें बस्ती के एजेंट के तौर पर 1764 में दोबारा इंग्लैंड भेज दिया गया। इस बार उन्होंने सम्राट के, मालिक वर्ग के हाथों से सरकार को, अपने हाथों में लेने की याचिका दी। लंदन में उन्होंने सक्रिय रूप से स्टाम्प एक्ट का विरोध किया और सुधारात्मक सुझाव दिए, किंतु इसके लिए उन्हें कोई श्रेय नहीं मिला। अमेरिका में स्टाम्प एजेंट के कार्यालय में उनके स्टाम्प एक्ट को रोकने के लिए किए गए प्रभावी कार्यों को भी संदेह की दृष्टि से देखा गया, फिर भी उन्होंने बस्तियों के लिए अपना मत रखने के प्रयास जारी रखे, क्योंकि यह समस्या धीरे-धीरे क्रांति के संकट की ओर बढ़ती नज़र आ रही थी। 1767 में बेंजामिन फ्रांस चले गए, जहां उन्हें सम्मान सहित सत्कार दिया गया, किंतु 1775 में घर वापसी से पहले उन्हें अपना पोस्ट मास्टर का पद गंवाना पड़ा। हालांकि हचिंसन और ओलिवर के प्रसिद्ध पत्र से मैसाचुसेटस में उनके हिस्सा होने की बात सामने आ चुकी थी और यही उनके पद गंवाने का कारण भी बना। परंतु फिर भी फिलाडेल्फिया पहुंचने पर उन्हें कॉन्टिनेन्टल कांग्रेस का सदस्य चुना गया और 1777 में संयुक्त राज्य के आयुक्त के रूप में फ्रांस भेज दिया गया, जहां वह 1785 तक रहे। वह फ्रांसीसी लोगों में खासे लोकप्रिय थे और इसी सफलता के साथ उन्होंने देश के मामलों को संभाला। इसी कारण से, जब वह वापिस लौटे तो उन्हें ‘चैंपियन ऑफ अमेरिकन इंडिपेंडेंस’ के रूप में वाशिंगटन का दूसरे नंबर का सम्मान मिला। दुर्भाग्यवश 17 अप्रैल, 1790 को वह बहुविध संपन्न व्यक्तित्व संसार से विदा हो गया।
इनकी आत्मकथा के पहले पांच अध्याय 1771 में इंग्लैंड में कम्पोज हुए, 1784-85 में भी यह काम जारी रहा तथा दोबारा 1788 में इसने मूर्तरूप लिया, जिस तारीख को 1757 में उन्होंने यह लिखना आरंभ किया था। एक अति रोमांचकारी एवं अद्भुत सफर तय करके, बेंजामिन की आत्मकथा की पांडुलिपि को आखिरकार जॉन बिगेलोव महोदय ने छापा और उपनिवेश काल के सर्वाधिक महान् व्यक्तियों में स्थान देकर उनके कार्यों को पहचान दिलाई। उनकी आत्मकथा को विश्व की महान साहित्यिक कृतियों में अग्रणीय माना जाता है।
-चार्ल्स डब्ल्यू. इलियट
बेंजामिन फ्रैंकलिन की आत्मकथा
1706-1757
प्यारे बेटे,
मुझे हमेशा से ही अपने पूर्वजों के हर छोटे-से छोटे किस्से-कहानी को जानने में खुशी मिलती थी। तुम उस समय को याद कर सकते हो, जब तुम मेरे साथ इंग्लैंड में थे और मैंने अपने बिखरे संबंधों के बीच कुछ जानकारियां हासिल की थी। वास्तव में मैंने इसी उद्देश्य के लिए वह यात्रा भी की थी। उन सब को याद करके मेरी जीवन की परिस्थितियों के बारे में तुम भी उतने ही सहमत¹ होंगे, जिनमें से अधिकतर के बारे में तुम अभी तक जानते भी नहीं हो और फिलहाल, देशसेवा से मेरे अवकाश लेने पर पूरे सप्ताह भर मौज-मस्ती की सोच रहे होंगे। इन्हीं सब बातों का तुम्हें भी पता चले, इसलिए आज मैं उन्हें कागज पर उतारने बैठा हूं। हालांकि इसके पीछे मेरा कुछ अलग स्वार्थ भी है। उस गरीबी और अंधकार से निकलकर, जिसमें मैं पला-बढ़ा; विश्व में समृद्धि और कुछ हद तक मान-सम्मान तक पहुंच पाना तथा साथ ही बहुत ही उल्लास के साथ जीवन में इतने आगे तक जाना; उन प्रेरणादायी साधनों का जिनका मैंने उपयोग किया और जो ईश्वर की कृपा से अत्यंत सफल रहे, इन सबके बारे में मेरी संतान को भी जानना चाहिए। हो सकता है कि उनकी किन्हीं परिस्थितियों में ये उनके काम आएं और उन्हें इनका अनुकरण करना पड़े।
वह उल्लास, जब मैंने उसका चिंतन किया, तो उसने मुझे कभी-कभी यह कहने के लिए प्रेरित किया कि जो मुझे मिला वह मेरी पसंद के अनुकूल था; उसी जीवन को दोहराने पर मुझे कोई आपत्ति नहीं थी। केवल लेखकों को, दूसरे संस्करण में उन गलतियों को ठीक करने वाले मौकों के बारे में जानना था, जो उन्होंने पहले संस्करण में की होती है। जिससे कि गलतियों को ठीक करने के अलावा, मैं अन्य ज्यादा संतोषजनक स्थिति के लिए इसके अहितकारी दुर्घटनाओं एवं घटनाओं को बदल सकूं। हालांकि ऐसा नहीं हुआ, लेकिन मैं अब भी उस अवसर को स्वीकार करूंगा। चूंकि इस प्रकार के दोहराव की अपेक्षा नहीं होती है, इसलिए अगली बार किसी की दोबारा जीवन जीने की तरह ही, उस जीवन को क्षणों को समेटना और इस संग्रह को लेखबद्ध करके यथासंभव चिरस्थायी बनाना होता है।
इसके द्वारा भी, मैं स्वाभाविक तौर पर वृद्धजनों की ओर अनुग्रह को देखूंगा, उनसे उनके और उनके अतीत के बारे में जानूंगा और मैं इस समस्त प्रक्रिया में उन दूसरे लोगों को बिना कष्ट दिए, जो बड़ी आयु का होने पर भी मेरी बात सुनने के लिए स्वयं को बाध्य करेंगे कि यह पढ़ी जाए अथवा न कि किसी को रिझाए। और अंत में, (मैं यह पूरी तरह स्वीकार कर सकता हूं कि मेरी इसके प्रति अस्वीकृति पर कोई विश्वास नहीं करेगा) संभवतः मेरा यह एक अच्छा प्रयास मेरे अभिमान को संतुष्टि देगा। निःसंदेह, मैं यह परिचायक शब्द सुनकर या देखकर हमेशा मुश्किल में पड़ जाता हूं, ‘मेरा मतलब बिना मिथ्याभिमान के और देखकर, किंतु इसके बाद कुछ निरर्थक बातें हुई। अधिकतर लोग दूसरे में गर्व को पसंद नहीं करते हैं, उनके पास जो होता है उसे अपने तक ही सीमित रखते हैं, किंतु मेरे पास वह होने पर मैं उसके बराबर भाग करता हूं, इस बात पर सहमत होकर कि यह प्रायः मालिकों के वस्तु की उत्पादकता है और दूसरों के लिए जो उसके कार्यक्षेत्र के भीतर है और इसलिए कई मामलों में, यदि कोई व्यक्ति जीवन की अन्य सुख-सुविधाओं के बीच अपने गर्व के लिए ईश्वर को धन्यवाद कहता होता तो यह पूर्णतः असंगत नहीं होगा।
मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूं और पूरी विनम्रता से यह मानता हूं कि मुझे अपने बीते जीवन में उल्लेखनीय खुशी उसकी दयादृष्टि से मिली है, जिसने मुझे उन साधनों के उपयोग हेतु प्रेरित किया और मुझे सफल बनाया। मेरी इस आस्था ने मुझमें उम्मीदों को जगाया, हालांकि मुझे स्वतः यह कल्पना नहीं कर लेनी चाहिए कि मुझ पर वही उदारता अब भी मेहरबान होगी, जो उस खुशी को बनाए रखने या मुझे भाग्य के विपरीत स्थिति को सहने की शक्ति देगी, जो मैं अन्य लोगों की तरह ही अनुभव कर सकता हूं; (मेरे एक अंकल को भी मेरी तरह ही परिवारजनों के किस्सों को इकट्ठा करने की जिज्ञासा थी) एक बार उन्होंने मुझे कुछ नोट्स दिए, जिनसे मुझे अपने पूर्वजों के बारे में कई जानकारियों का पता चला। इन नोट्स से मुझे पता चला कि हमारा परिवार, नार्थेम्पटन के उसी गांव एक्टोन में पिछले 300 वर्षों से रह रहा था और कब तक रहा यह नहीं जानता (शायद उस समय से, जब पूरे साम्राज्य में अन्य वर्ग समूह ने सरनेम धारण किया था, तब लोगों के एक वर्ग ने सरनेम के रूप में फ्रैंकलिन नाम अपनाया), वह 30 एकड़ की फ्री होल्ड भूमि पर, धातु का काम करके मदद करते थे। यही परिवार में उसके समय तक जारी रहा, जिसे हमेशा परिवार का सबसे बड़ा बेटा आगे बढ़ाता रहा था, इसी परंपरा को उसने और मेरे पिता ने उनके बड़े बेटे होने के नाते आगे बढ़ाया। जब मैंने एक्टन के रजिस्टर में खोजबीन की, तो केवल 1755 से उनके जन्म, विवाह और मृत्यु उपरांत उन्हें दफनाने का विवरण पाया, क्योंकि समय का हिसाब-किताब रखने के लिए उस गांव में कोई रजिस्टर नहीं रखा गया था। उस रजिस्टर से मैंने जाना कि मैं पिछली पांच पीढ़ियों में सबसे छोटे बेटे का छोटा बेटा था। मेरे दादा थॉमस का जन्म 1658 में हुआ था, जो व्यवसाय चलाने के लिए वृद्ध होने तक एक्टन में ही रहे, फिर ऑक्सफोर्डशायर में रहने वाले अपने रंगरेज बेटे जॉन के पास रहने चले गए, जिसके पास मेरे पिता ने प्रशिक्षु के रूप में काम किया था। वहीं मेरे दादा की मृत्यु हुई और उन्हें वहीं दफनाया गया। हमने 1758 में उनकी समाधि के ऊपर लगा पत्थर देखा। उनका बड़ा बेटा थॉमस एक्टन के एक घर में रहता था और उसे अपनी एकमात्र संतान अपनी बेटी के लिए जमीन सहित छोड़ गया था, जिसने वेलिंगबोरो में रहने वाले अपने मछुआरे पति के साथ मिलकर उसे आइस्टेड महोदय को बेच दिया था, जो आज वहां मेनोर के लॉर्ड हैं। मेरे दादा के चार बेटे थे‒थॉमस, जॉन, बेंजामिन और जोशिया। मैं, इतनी दूर रहते हुए अपने कागजातों के जरिए तुम्हें बताऊंगा कि मेरे पास उनके बारे में क्या-क्या जानकारी है और यदि मेरी अनुपस्थिति में ये खो न गए तो तुम इनमें से काफी जानकारियां हासिल कर सकोगे।
थॉमस अपने पिता की देखरेख में एक धातुकर्मी के रूप में बड़ा हुआ, किंतु निपुण और गांव के मुख्य सज्जन पुरुष एस्कवायर पामर द्वारा पढ़ने को प्रेरित करने के कारण, उसने कानूनी दस्तावेज (मस्विदे का लेखक) लिखने में महारत हासिल की और देश का एक जाना-माना व्यक्ति बन गया। वह काउंटी या नार्थेम्पटन शहर और अपने खुद के गांव के लिए भी समस्त सार्वजनिक संपत्ति का संचालनकर्ता था, जिनकी कई घटनाओं का उससे संबंध था और सबसे ज्यादा प्रभावी होने के कारण ही वह तत्कालीन लॉर्ड हैलिफैक्स की नजरों में आया तथा उन्होंने उसे संरक्षण प्रदान किया। मेरे जन्म से ठीक चार साल पूरे होने से एक दिन पहले 6 जनवरी, 1702 को उसकी मृत्यु हुई थी। मुझे याद है कि एक्टन गांव के लोगों से, उसके जीवन और चरित्र के बारे में हमें जो जानकारियां मिली, वे निःसंदेह तुम्हें कुछ हटकर दिखाई देंगी, क्योंकि ये घटनाएं मेरे जीवन की घटनाओं से मिलती-जुलती हैं।
तुमने उत्सुकतावश कहा था, ‘क्या उसी दिन उनकी मृत्यु हुई थी? हो सकता है कि कोई इसे पुनर्जन्म मान लें।’
जॉन रंगरेज था, शायद ऊन रंगता था। बेंजामिन लंदन में प्रशिक्षु के रूप में रेशम की रंगाई करता था। वह बहुत निपुण था। मुझे उसके बारे में अच्छे से पता है, जब मैं चार वर्ष का था, तब वह बोस्टन में मेरे पिता के पास आया था और कुछ वर्षों तक हमारे ही घर में रहा। जाते समय वह अपने पीछे, अपनी कविताओं की दो पांडुलिपियां क्वार्टो (कागजों को चार तहकर लिखी गई) छोड़ गया था, जिनमें अपने दोस्तों एवं संबंधियों को विभिन्न अवसरों पर लिखी गई कविताएं थी, जिनमें से निम्न नमूना² मुझे प्रति के तौर पर भेजी गई है। उसने स्वयं की शॉर्ट-हैंड विकसित की, जो उन्होंने मुझे सिखाई, किंतु मैंने कभी उसका अभ्यास नहीं किया और अब तक भूल चुका हूं। मेरा नाम इसी अंकल (ताऊ) के नाम पर रखा गया, क्योंकि मेरे पिता और इनके बीच विशेष स्नेह रहा है। वह बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे और महान् उपदेशकों के प्रवचनों को सुनने जाया करते थे। इन्हीं सब को अपनी शॉर्ट-हैंड में लिखा और कई खंड बना डाले। वह एक प्रखर, बहुत निपुण राजनीतिज्ञ भी थे, विशेषकर अपने स्थान के। यह बात मुझे बहुत बाद में लंदन में पता चली, जब उनके द्वारा निर्मित सभी मुख्य पुस्तिकाओं का संग्रह मेरे हाथ लगा, जो 1641 से 1717 तक की लोक विषयों से संबंधित थी। इनके कई वाल्यूम्स (खंड) को क्रम संख्या देना बाकी है, किंतु अब भी फोलियो में 8 खंड हैं तो 24 क्वार्टों एवं ऑक्टेवो (कागज को आठ तह में मोड़कर बनाई पुस्तिका) रूप में। पुरानी किताबों के एक डीलर को वह संग्रह मिला, जिससे मैं अकसर किताबें खरीदता था, इसलिए वह मुझसे परिचित था, उन्हें मेरे लिए लेकर आया था। लगता है कि मेरे अंकल ने ही अब से 50 वर्ष पहले अमेरिका प्रवास करते समय उन्हें वहां छोड़ा था। इनके किनारे की ओर उनके लिखे कई नोट्स हैं।
हमारा यह अप्रसिद्ध और संदेहयुक्त परिवार धार्मिक विप्लव के आरम्भिक दौर से गुजर रहा था, जब वे पोप धर्म के विरुद्ध अपनी व्यग्रता व उत्साह के चलते कभी-कभी मुश्किलों और खतरों में भी पड़े, तो भी महारानी मेरी के शासनकाल में प्रोटेस्टेंट्स* का पालन करते रहे। उन्हें अंग्रेजी भाषा में बाइबिल की एक प्रति मिली और उसे छिपाने एवं सुरक्षित रखने के लिए तुरंत जुड़े हुए स्टूल के कवर के अंदर और नीचे टेप लगाकर छिपा दिया गया। जब मेरे पितामह (दादा के दादा) उसे परिवार को पढ़कर सुनाते तो स्टूल को उल्टा करके अपने घुटनों पर रख लेते थे और टेप के भीतर छिपाई गई बाइबिल के पन्नों को पलटकर सुनाते थे। इस दौरान घर का एक बच्चा यह देखने के लिए दरवाजे पर खड़ा रहता था कि यदि आध्यात्मिक कोर्ट (धर्म न्यायालय) का कोई अधिकारी (जिसे वे प्रेत या पिशाच कहते थे) आता दिखाई दे तो तुरंत सूचित कर दे। ऐसी स्थिति में स्टूल को तुरंत पलटकर, उस पर पैर रखकर बैठ जाते थे और स्टूल के नीचे बाइबिल पहले की तरह ही खुली रहती थी। यह किस्सा मैंने मेरे अंकल बेंजामिन से सुना था। पूरा परिवार चार्ल्स द्वितीय का शासन समाप्त होने तक इंग्लैंड के चर्च का पालन करता रहा, जब नार्थेम्पटन में कुछ अधिकारियों को प्रचलित राजधर्म के विरुद्ध गुप्त धार्मिक बैठक करने पर निष्कासित कर दिया गया। किंतु बेंजामिन व जोशिया तब भी उससे जुड़े रहे और इसलिए जीवित रहे, जबकि शेष परिवार बिशप तक से जुड़ा रहा।
मेरे पिता जोशिया का विवाह कम आयु में हो गया था और 1682 के लगभग वह अपनी पत्नी व तीन बच्चों के साथ न्यू इंग्लैंड में थे। गुप्त धार्मिक सभा करने वाले कनवेन्टिकल्स मतावलंबियों को कानून द्वारा निषेध कर दिया गया और उसके कुछ परिचित धर्माचार्यों व गणमान्य लोगों को उस देश से जाने के लिए लगातार बहलाया-फुसलाया और परेशान किया गया तथा उस पर भी उनके साथ वहां जाने का दबाव बनाया गया, जहां वे आजादी से अपने धर्म का पालन कर सकते थे। वहां उनके कुल 17 बच्चों में से उनकी उसी पत्नी ने 4 अन्य बच्चों को जन्म दिया था और दूसरी पत्नी (अबीया) से 10 अन्य बच्चों का जन्म हुआ था। मुझे याद है, सभी 13 बच्चे एक ही समय पर एक ही टेबल पर एक साथ बैठकर भोजन करते थे। वे सभी जवान हुए और उनका विवाह कर दिया गया। मैं सबसे छोटा बेटा था और दो अन्य छोटे बच्चों का जन्म भी न्यू इंग्लैंड के बोस्टन में हुआ। मेरी मां, मेरे पिता की दूसरी पत्नी अबीया फोल्जर, पीटर फोल्जर की बेटी थी, जो न्यू इंग्लैंड में सबसे पहले आकर बसने वालों में से एक था। यदि मैं सही शब्द भूला नहीं हूं तो काटर मैथर ने उस देश के अपने चर्च इतिहास ‘मैग्नेलिया क्रिस्टी अमेरिकाना’ में, उनके लिए ‘एक धर्मनिष्ठ, विद्वान अंग्रेज’ कहकर उनका सम्मानपूर्वक उल्लेख किया है। मैंने सुना है कि वे विभिन्न अवसरों पर कुछ-न-कुछ लिखते रहे, किंतु उनमें से केवल एक ही छप सका, जिसे कई वर्षों बाद मैंने अब देखा था। यह 1675 में उस समय के लोगों के लिए स्वदेशी अंदाज में लिखा गया पद्य था, जिसमें सरकार में शामिल लोगों को संबोधित किया गया था। यह अन्तःकरण की स्वतन्त्रता (लिबर्टी ऑफ कन्साइंस) का पक्षधर था और उन बैपटिस्ट्स, क्वेकर्स व अन्य सम्प्रदायों की ओर से था, जो दुःख से जूझ रहे थे, जिन पर इंडियन युद्ध और इन अन्य संकटों को लाने का आरोप था, जो देश पर आ पड़े थे। उसी दुःख से, ईश्वर द्वारा इस जघन्य अपराध की सजा के लिए कई निर्णय दिए और उन कठोर कानूनों को खंडन करने का आह्वान किया।
यह सब कुछ मेरे सामने बड़ी ही शालीनता भरी स्पष्टता एवं मानवीय आजादी के साथ सामने आया। हालांकि मुझे इसके पहले दो छंद याद नहीं, लेकिन अंतिम छह पंक्तियां आज भी नहीं भूली; किंतु उनका तात्पर्य था कि उनका दोषारोपण मंगलभाव से परिपूर्ण था और इसलिए वह एक लेखक रूप में जाने जाएंगे। (वह कहता है), ‘‘निंदक हूं एक इसलिए करता हूं हृदय से घृणा इससे; रहता हूं जहां, उस शेबर्न शहर से लिखता हूं नाम यहां मैं अपना; बिना क्षति पहुंचाए, तुम्हारे सच्चे मित्र का नाम है पीटर फोल्जियर।’’
मेरे सभी बड़े भाईयों को अलग-अलग धंधे सीखने में लगा दिया गया। मुझे 8 वर्ष की आयु में एक ग्रामर स्कूल में पढ़ने बैठा दिया गया। मेरे पिता का विचार मुझे पादरी बनाने और चर्च की सेवा में लगाने का था। लिखने-पढ़ने सीखने की मेरी तत्परता एवं ललक (जो बहुत ही अल्पायु में पैदा हो गई थी, क्योंकि मुझे याद नहीं कि मैं कब पढ़ना नहीं जानता था) और मेरे सभी मित्रों की मेरे बारे में राय कि मैं अवश्य ही एक महान विद्वान बनूंगा, इस राय ने उनके इस उद्देश्य के लिए उन्हें अत्यधिक प्रेरित किया। मेरे अंकल बेंजामिन भी इस बात पर सहमत थे और उन्होंने, उनके द्वारा शॉर्ट हैंड में संकलित धर्मोपदेशों के सभी खंड मुझे देने की बात कही, जिससे मैं उन्हें पढ़कर उनके बारे में जान सकूं। ग्रामर स्कूल में प्रवेश लिए अभी एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ था कि मैं अपनी कक्षा में सबसे अव्वल हो गया। मुझे पढ़ाई के सत्र के बीच ही कक्षा से निकालकर अगली कक्षा में बैठा दिया गया और कुछ समय बाद ही उससे अगली कक्षा में बैठा दिया गया और इसी क्रम में उस वर्ष के अंत में मैं तीसरी में पहुंच गया। इस बीच मेरे पिता ने कॉलेज शिक्षा खर्च का अनुमान लगाया, जिसे बड़े परिवार के खर्च के कारण वहन करना कठिन था। उन्हें इस पढ़ाई से कोई विशेष प्रयोजन नहीं दिख रहा था, इसलिए उन्होंने अपनी पहली पसंद को बदला और व्यवहार उपयोगी शिक्षा को लाभकारी जाना। उन्होंने मुझे उस ग्रामर स्कूल से निकाला और जार्ज ब्राउनेल नामक एक सुविख्यात गुरु की पाठशाला में लिखना और अंकगणित (हिसाब-किताब) सीखने के लिए बैठा दिया। वह इस कला में अत्यंत निपुण थे। उनके नेतृत्व में मैंने बहुत जल्द ही सुंदर-साफ लिखना सीख लिया, किंतु उनके पास 1 वर्ष तक रहकर भी मुझे गणित नहीं आया। यह देख मेरे पिता ने 10 वर्ष की आयु में मुझे वहां से भी निकाल लिया और अपने घरेलू काम-धंधे में लगा लिया। आरंभ में मुझे मोमबत्ती व साबुन बनाने, फार्म बनाने, दुकान पर बैठने और फिर घूम-घूमकर माल बेचने का काम सौंपा। हालांकि वह इसे सीखकर नहीं आए थे, बल्कि न्यू इंग्लैंड आने पर ही उन्होंने यह काम सीखा था, क्योंकि अपने घटते व्यापार से वह परिवार का भरण-पोषण नहीं कर सकते थे।
मुझे यह काम पसंद नहीं था, इस कारण मैं इन कामों में ध्यान नहीं देता था, बल्कि मुझे समुद्र के प्रति गहरा झुकाव था, परंतु मेरे पिता इसके विरुद्ध थे। फिर भी पानी के पास रहने के कारण मैं काफी कुछ जानता था। तैरने की कला मैं बचपन से ही बहुत अच्छी तरह सीख गया था और नाव भी बखूबी चलाना जानता था। जब मैं दूसरे लड़कों के साथ नाव या कैनाई में होता तो सामान्यतः मुझे ही नेतृत्व करने का मौका मिलता, खासतौर पर कोई समस्या होने पर और अन्य अवसरों पर अन्य लड़कों में मैं ही प्रायः नेतृत्व करता, उन्हें निखारता। मैं ऐसी ही एक घटना का जिक्र करूंगा, जिससे हालांकि न्यायपूर्ण आचरण नहीं दिखता, किंतु यह शुरुआती जनभावना को दर्शाती है।
बोस्टन शहर के पास दलदली भूमि से घिरा एक तालाब था। जिसके किनारे खड़े होकर हम मिनो मछली पकड़ा करते थे। बहुत चलने के बाद भी हम केवल दलदली उथली जमीन तक ही पहुंच पाते थे, पानी कम रह जाने के कारण किनारों पर दलदल और कीचड़ हो गया था। मैंने उन्हें वहां एक घाट बनाने का सुझाव दिया, जिसके ऊपर हम आसानी से खड़े हो सकें। वहां पास ही एक मकान बन रहा था। मकान बनाने के लिए बहुत से पत्थर पड़े थे। मैंने अपने कामरेड्स यानी साथियों को पत्थरों का वह ढेर दिखाया। वह हमारे मकसद के लिए पूरी तरह सही था। शाम को काम बंद हो जाने के बाद कारीगर चले गए। अपने मकसद के मुताबिक, मैं अपनी मित्र मंडली को लेकर वहां गया और बड़ी मेहनत से धीरे-धीरे सब पत्थर उठाकर तालाब पर बिछा दिए। कभी-कभी तो एक पत्थर के ऊपर दो तीन पत्थर भी उठाकर ले आए। अगली सुबह कारीगर वहां आने पर पत्थरों को ना पाकर बड़े हैरान हुए। लेकिन उन्होंने पत्थरों को घाट पर ढूंढ निकाला। पत्थरों को उठाने वालों की तलाश हुई, हम पकड़े गए और हमारी शिकायत की गई, हममें से कइयों को अपने