Discover millions of ebooks, audiobooks, and so much more with a free trial

Only $11.99/month after trial. Cancel anytime.

Safalta Ke Sutra (सफलता के सूत्र)
Safalta Ke Sutra (सफलता के सूत्र)
Safalta Ke Sutra (सफलता के सूत्र)
Ebook506 pages3 hours

Safalta Ke Sutra (सफलता के सूत्र)

Rating: 0 out of 5 stars

()

Read preview

About this ebook

यह पुस्तक जीवन को निखारने के लिए हर दृष्टि से संग्रहणीय है तथा प्रत्येक व्यक्ति विशेषकर युवाओं को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने, सफलता प्राप्त करने एवं आत्मविश्वास जाग्रत करने में मील का पत्थर साबित होगी। आशा और पूर्ण विश्वास है कि 'सफलता के सूत्र' पुस्तक आपके जीवन में परिवर्तन लाकर कदम-कदम पर मार्गदर्शन करती हुई आपका जीवन सफलता की ओर अग्रसर कर बदल सकती है तथा जीवन में चेतना जाग्रत करेगी तथा आपको नया जोश, एक नई दिशा और एक नया मार्ग मिलेगा, जिससे आप सब जीवन पथ पर सच्चे सुख और शान्ति से सफलता की सीढ़िया चढ़ते चले जायेंगे।.
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateApr 15, 2021
ISBN9789390504794
Safalta Ke Sutra (सफलता के सूत्र)

Related to Safalta Ke Sutra (सफलता के सूत्र)

Related ebooks

Reviews for Safalta Ke Sutra (सफलता के सूत्र)

Rating: 0 out of 5 stars
0 ratings

0 ratings0 reviews

What did you think?

Tap to rate

Review must be at least 10 words

    Book preview

    Safalta Ke Sutra (सफलता के सूत्र) - Surendra Singh Sarohas

    है।

    1. लक्ष्य का निर्धारण

    सुखी एवं सफल जीवन के लिए प्रत्येक मनुष्य को सर्वप्रथम लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। लक्ष्य के बिना उसका जीवन व्यर्थ होता है। लक्ष्यविहीन व्यक्ति दिशाहीन होता है और दिशाहीन व्यक्ति संकटग्रस्त होता है और वह हमेशा असफल ही रहता है। बिना किसी उद्देश्य के मेहनत और साहस भी व्यर्थ हो जाता है। लक्ष्यहीन जीवन स्वच्छन्द रूप से सागर में छोड़ी हुई नाव के समान होता है। ऐसी नाव या तो भंवर में डूब जाती है या चट्टान से टकराकर चूर-चूर हो जाती है।

    एक राहगीर ने एक सन्त से पूछा कि महाराज यह रास्ता कहाँ जाता हैं? सन्त ने जवाब दिया कि ये रास्ता कहीं नहीं जाता है। आप बताइए कि आपको कहाँ जाना है? व्यक्ति ने कहा कि महाराज मुझे मालूम ही नहीं है कि जाना कहाँ है। संत ने कहा जब कोई लक्ष्य ही नहीं है तो फिर रास्ता कोई भी हो उससे क्या फर्क पड़ता है, आप भटकते रहिए। जिस व्यक्ति के जीवन में कोई लक्ष्य नहीं होता वह अपनी जिन्दगी तो जीता है, लेकिन वह इसी राहगीर की तरह यहाँ-वहाँ भटकता रहता है। दूसरी ओर जीवन में लक्ष्य होने से मनुष्य को मालूम होता है कि उसे किस दिशा की ओर जाना है।

    सफलता के लिए पहले छोटे-छोटे लक्ष्यों को निर्धारित करके प्रयास करना लाभदायक होता है। छोटे लक्ष्यों की सफलता के बाद ही बड़े लक्ष्यों का निर्धारण करना अच्छा साबित होता है। जितना बड़ा लक्ष्य होता है उसी के अनुसार उसे प्रयास करने होते हैं।

    वास्तव में लक्ष्य निर्धारित करने में किसी भी व्यक्ति को अपनी प्रतिभा, शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक क्षमताओं तथा अपनी कमजोरियों के बारे में सजग होकर सोचना चाहिए। लक्ष्य निर्धारण के साथ ही लक्ष्य तक पहुँचने के सर्वोत्तम सहज मार्ग की परिकल्पना भी तैयार हो जाती है। अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए जो भी मार्ग अपनाया जाये, उसे समयानुकूल विवेकानुसार परिवर्तित करते रहना चाहिए।

    महात्मा गाँधी ने कहा था कि कुछ न करने से अच्छा है, कुछ करना। जो कुछ करता है, वही सफल, असफल होता है। हमारा लक्ष्य कुछ भी हो सकता है, क्योंकि हर इंसान अपनी क्षमताओं के अनुसार ही लक्ष्य तय करता है। विद्यार्थी के लिए परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना तथा नौकरी प्राप्त करना और नौकरी-पेशे वालों के लिए पदोन्नति पाना, जबकि किसी गृहिणी के लिए आत्मनिर्भर बनना उसका लक्ष्य हो सकता है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं कि जीवन में एक ही लक्ष्य बनाओ और दिन-रात उसी लक्ष्य के बारे में सोचो। स्वप्न में भी तुम्हें वहीं लक्ष्य दिखाई देना चाहिए। फिर जुट जाओ इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए धुन सवार हो जानी चाहिए आपको। सफलता अवश्य आपके कदम चूमेगी। हमें ध्यान रखना होगा कि लक्ष्य प्राप्ति तक हमें रुकना नहीं है इतना निश्चित है कि एक बार यदि आपने जीवन में निर्धारित लक्ष्य प्राप्त कर लिया तो फिर आप पीछे मुड़कर नहीं देखोगे। कठिन से कठिन लक्ष्य भी आपको आसान लगेगा।

    लक्ष्य प्राप्ति के लिए आत्मविश्वास भी उतना ही आवश्यक है जितना कि रुचि और शारीरिक क्षमता। लक्ष्य प्राप्ति के समय हमारी एकाग्रता सिर्फ लक्ष्य पर ही केन्द्रित होनी चाहिए। हमें लक्ष्य प्राप्त करने में आने वाली बाधाओं की तरफ कतई ध्यान नहीं देना है।

    यदि आप ख्याति प्राप्त खिलाड़ी बनना चाहते हैं और हमारी इच्छा संगीत के क्षेत्र में भी नाम कमाने की है साथ ही हम समाज सेवा करके लोकप्रिय भी बनना चाहते हैं तो हमें यह निर्णय करना होगा कि कौन सा लक्ष्य हमारे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है। इससे हमें दीर्घकालिक व अल्पकालिक लक्ष्यों को नियोजित करने का अवसर मिलेगा। जब हमारे अन्दर विश्वास ही नहीं होगा तो हम अपने लक्ष्य को कैसे हासिल कर पाएंगे। टूटे मनोबल से लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होना हमेशा घातक होता है। सफलता हेतु हमें निराशा व संशय का भी त्याग करना होगा। यदि हमें लक्ष्य को प्राप्त करने में जरा-सा भी संशय है तो हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में कदम नहीं बढ़ाना चाहिए। जब हमारे अन्दर विश्वास ही नहीं होगा तो हम अपने लक्ष्य को कैसे हासिल कर पाएंगे।

    एक मजदूर जो मिस्त्री को ईंटें तथा तसले आदि पकड़ाने में लगा रहता है तथा मिस्त्री के हरेक काम करने के ढंग को भी ध्यान से देखता रहता है क्योंकि उसमें आगे बढ़ने और मिस्त्री बनने की इच्छा है। वह मजदूर मिस्त्री के चिनाई आदि काम में भी सहयोग करता है तथा मौका मिलने पर मिस्त्री की खुशामद करके, मिस्त्रीपने का काम करने लगता और इस प्रकार कोशिश करते हुए वह मजदूर मिस्त्री बन जाता है अपनी मेहनत, व्यवहार कुशलता, लगन के कारण ठेकेदार बनने के लक्ष्य में भी कामयाब हो जाता है। जागरूक मृदुभाषी, लगन के पक्के मिस्त्री, बिल्डर तक बन गये हैं। बिल्डर बनना उनका लक्ष्य था इसलिए वे सफल हुए।

    आप कोई व्यापार करना चाहते हैं तो विचार करें कि किस चीज का व्यापार करना चाहते हैं। मान लें आप लोहे अथवा सीमेन्ट की दुकान करना चाहते हैं। दूसरों के कहने में आकर आपने मेडिकल स्टोर कर लिया तो आपके सफल होने की उम्मीद बहुत कम रहेगी। परोपर विश्लेषण करके ही लक्ष्य बनायें दूसरों के कहने में आकर बिना सोचे-विचारे जल्दबाजी में लक्ष्य न बनाये।

    लक्ष्य प्राप्त करने के मार्ग में कठिनाइयों एवं बाधाओं का भी सामना करना पड़ सकता है। जैसे आपके साथ कोई दुर्घटना हो जाए, आपकी नौकरी छूट जाए अथवा आपके परिवार में कोई बीमार या मृत्यु हो जाए तो कोई वैकल्पिक रास्ता तैयार करें। कठिनाइयों से घबराकर अपना लक्ष्य नहीं छोड़ना चाहिए तथा दूसरा लक्ष्य भी नहीं बनाना चाहिए। क्या गारण्टी है कि दूसरा लक्ष्य जो बनाया है उसमें बाधाएँ नहीं आएँगी, कार्य करने पर कठिनाइयाँ तो आ जाती हैं। बार-बार लक्ष्य बदलने से सफलता नहीं मिलती।

    कोई भी कार्य सफल तब माना जाता है जब उसके वांछित परिणाम प्राप्त हो जाएं। कार्य करते हुए मनुष्य की दृष्टि सदैव लक्ष्य पर टिकी रहती है। इंसान ने जितनी भी तरक्की की है, लक्ष्य बनाकर की है। जिस तरह जीवन के लिए वायु आवश्यक है उसी प्रकार सफलता के लिए लक्ष्य आवश्यक है। जब आप इच्छानुसार लक्ष्य बनाकर दृढ़ निश्चय करके अपने उद्देश्य की तरफ बढ़ते हैं तो आपकी ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है। संत तिरूवल्लुवर ने कहा है- ‘‘यदि परिस्थितियाँ अनुकूल हैं तो सीधे लक्ष्य की ओर चला, लेकिन यदि परिस्थितियाँ अनुकूल न हों तो उस मार्ग का अनुसरणमत करो।’’ जो व्यक्ति काम में अरुचि रखे, पूरे दिल से कार्य न करें, जिनके पास उद्देश्य न हों और जिनका मन चंचल रहता है, वे कभी भी उद्देश्य पूर्ति में नहीं लग सकते।

    स्वेट मार्डेन ने लक्ष्य के बारे में कहा है- ‘‘लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करें तो कोई वजह नहीं कि निर्धारित समय में अपने लक्ष्य की प्राप्ति न हो। मनुष्य में केवल शक्तिशाली आकांक्षा और कार्य के प्रति समर्पण होना चाहिए।’’ कुरान में कहा गया है कि- ‘‘मुसीबतें टूट पड़ें’, हाल-बेहाल हो जाए, तब भी जो लोग निश्चय से डिगते नहीं और धीरज रखकर चलते हैं, वे अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।

    एक व्यक्ति का कुत्ता सड़क किनारे आने जाने वाली गाड़ियों के पीछे भौंकता हुआ दौड़ता। उनके पड़ोसी ने एक दिन उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘तुम्हारा कुत्ता कभी किसी गाड़ी को पकड़ पाएगा, उस व्यक्ति ने कहा- मुख्य बात यह है कि अगर कुत्ता गाड़ी को पकड़ भी लेगा तो क्या करेगा?

    इसी प्रकार से बहुत से व्यक्ति, दृढ़ निश्चय का अभाव, आत्म विश्वास की कमी, धैर्यहीन कुत्ते की तरह व्यर्थ लक्ष्यों के पीछे भागते रहते हैं। बिना किसी उद्देश्य के मेहनत और साहस भी बेकार होते हैं।

    कई कारणों की वजह से व्यक्ति लक्ष्य तय नहीं कर पाते हैं जैसे कि- (1) कुछ व्यक्ति असफलता के डर के कारण अपने लक्ष्य नहीं बनाते हैं। (2) कुछ लोग डरते रहते हैं कि यदि अपने लक्ष्य में सफल नहीं हुए तो लोग मजाक करेंगे और लोग क्या-क्या कहेंगे? (3) कुछ लोग लक्ष्य बनाने से पहले ही बाधाओं, रुकावटों से डरने लगते हैं। (4) कुछ लोग गाँव, शहर से दूर कोई कारोबार, उद्योग आदि स्थापित करने से, आतंक, चोरी आदि की वजह से अपना बना बनाया लक्ष्य छोड़ देते हैं। (5) कुछ लोग लक्ष्य के महत्त्व को समझते ही नहीं हैं। (6) बहुत से मनुष्यों को लक्ष्य तय करने के तरीकों की जानकारी नहीं है। कभी-कभी मनुष्य यह सोचकर रह जाता है कि लक्ष्य कल तय करूँगा, उस दिन तय करूँगा, करता हुआ समय व्यतीत हो जाता है कई बार मनुष्य अपनी आन्तरिक प्रेरणा द्वारा काम नहीं कर पाता, दूसरों के ऊपर निर्भर रहकर उसका लक्ष्य अधूरा रह जाता है।

    लक्ष्यों को पूर्ण करने हेतु एक साल, तीन साल, पाँच साल तथा पाँच साल से अधिक भी समय सीमा हो सकती है। लक्ष्यों को छोटे-छोटे भागों में बांटकर भी पूर्ण किया जा सकता है। इमर्सन ने कहा है ‘‘जो व्यक्ति आमने-सामने ऊँचा उद्देश्य रखता है, वह अवश्य ही एक दिन उसे पूर्ण करने में सफल होता है, लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि वह अपने लक्ष्य पर तीव्र गति से निरंतर बढ़ता जाए। इसके विपरीत, जो व्यक्ति अपने सामने कोई लक्ष्य नहीं रखता, वह जीवन भर केंचुए के समान ही रेंगता रह जाता है।’’

    सर्वोत्तम लक्ष्य तो जीवन की सुनिश्चित राह है। ज्ञान आपको आपकी सुनिश्चित राह तक पहुँचाने में मदद करता है। क्षेत्र व्यवसाय का हो या साधन का हो, शिक्षा का हो, विकास का हो, संस्कार का हो या विज्ञान का हो, दृष्टि लक्ष्य पर हो तो जीवन में सफलता का सूर्योदय अवश्य होगा। लक्ष्य के बिना तो जीवन में रौनक का अभाव ही होगा। लक्ष्य को लिखकर रखे, लक्ष्य पर कायम रहें। लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता बनाए रखें, निरन्तर प्रयास करें। एकाग्रता रखें, मनन करते रहें, धैर्य रखें, प्रतिदिन मालूम होना चाहिए कि कितने प्रयास और करने हैं।

    सुनहरे भविष्य का रास्ता खोलने के लिए ऊँचा लेकिन प्राप्त कर सकने योग्य लक्ष्य बनाएं। लक्ष्य निर्धारित कर सही रास्ते पर लगातार लगे रहने की, कोशिश करते रहने की जरूरत है क्योंकि कोशिश करने वाला ही जीतता है। जंग हो या मुकाबला, जिन्दगी कभी हार नहीं मानती। कभी मशाल बनकर कभी मिसाल बनकर, आँधी और तूफानों के बावजूद, हिम्मत का हथियार बनकर हौंसले का चिराग जलाकर, उम्मीद की उँगली पकड़कर कारवाँ विश्वास के रास्ते आगे बढ़ता है। अन्दर के ईमान और ऊपर के भगवान को लेकर जीवन-पथ के साहसी राही बनो।

    इमर्सन ने लक्ष्य के बारे में कहा है- ‘‘जो व्यक्ति अपने सामने ऊँचा उद्देश्य रखता है, वह अवश्य ही एक दिन उसे पूर्ण करने में सफल होता है, लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि वह अपने लक्ष्य पर तीव्र गति से निरन्तर बढ़ता जाए। इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने सामने कोई लक्ष्य नहीं रखता, वह जीवन भर केंचुए के समान ही रेंगता रह जाता है।’’

    कोई भी कार्य सफल तब माना जाता है जब उसके वांछित परिणाम प्राप्त हो जाएं। कार्य करते हुए मनुष्य की दृष्टि सदैव लक्ष्य पर टिकी रही है। इंसान ने जितनी भी तरक्की की है, लक्ष्य बनाकर की है। जिस तरह जीवन के लिए वायु आवश्यक है उसी प्रकार सफलता के लिए भी लक्ष्य आवश्यक है। जब आप इच्छानुसार लक्ष्य बनाकर दृढ़ निश्चय करके अपने उद्देश्य की तरफ बढ़ते हैं तो आपकी ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है।

    कई बार ऐसा हो जाता है कि आपके साथ कोई घटना घट जाए जिससे आपके लक्ष्य के रास्ते में रुकावट पैदा हो जाती है जैसे आपके साथ कोई दुर्घटना हो जाए, आपकी नौकरी छूट जाए अथवा आपके परिवार में कोई अधिक बीमार अथवा मृत्यु हो जाए। तो हमें अपने दिमाग में कोई वैकल्पिक रास्ता तैयार करना चाहिए। यदि आप किसी सड़क पर जा रहे हो किसी कारणवश वह रास्ता बन्द दिखाई दे तो आप वहाँ डेरा जमाकर नहीं बैठोगे और न ही घर वापिस आओगे। आपको अपने लक्ष्य तक पहुँचने हेतु किसी दूसरे रास्ते से जाना पड़ेगा। ऐसे बहुत से लोग हैं, बाधाएँ आने पर उन्होंने वैकल्पिक रास्तों का प्रयोग करके सफलता प्राप्त की है और उस रास्ते पर चलकर उन्होंने अपना लक्ष्य नहीं बदला।

    एक व्यक्ति का कुत्ता सड़क किनारे आने जाने वाली गाड़ियों के पीछे भौंकता हुआ दौड़ता। उनके पड़ोसी ने एक दिन उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘तुम्हारा कुत्ता कभी किसी गाड़ी को पकड़ पाएगा उस व्यक्ति ने कहा- मुख्य बात यह है कि अगर कुत्ता गाड़ी को पकड़ भी लेगा तो क्या करेगा? इसी प्रकार से बहुत से व्यक्ति दृढ़ निश्चय का अभाव आत्मविश्वास की कमी, धैर्यहीन व्यर्थ कुत्ते की तरह व्यर्थ लक्ष्यों के पीछे भागते रहते हैं। बिना किसी उद्देश्य के मेहनत और साहस भी बेकार होते हैं।

    गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्यों को तीरदांजी की कला सिखा रहे थे। शिष्यों की परीक्षा लेने हेतु उन्होंने लक्ष्य के रूप में पेड़ की टहनी पर बैठी चिड़िया की आँख पर निशाना लगाने को कहा। उन्होंने पहले शिष्य से पूछा, ‘‘तुम्हें क्या दिख रहा है?’’ शिष्य ने कहा- ‘‘मैं टहनियाँ, पत्ते, पेड़, आकाश, चिड़िया और उसकी आँख देख रहा हूँ।’’ वह चिड़िया की आँख पर निशाना लगाने में असमर्थ रहा। इसी प्रकार कई शिष्य असमर्थ रहे। अन्त में गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन से सवाल किया तो उन्होंने जवाब दिया ‘‘मुझे सिर्फ चिड़ियाँ की आँख दिखाई दे रही है।’’ तब द्रोणाचार्य ने कहा, ‘‘बहुत अच्छा, अब तीर चलाओ।’’ तीर सीधा जाकर चिड़िया की आँख में लगा। अगर हम अपने मकसद पर ध्यान नहीं देंगे तो लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएँगे।

    आलोचक महत्त्वपूर्ण नहीं होता-श्रय उस आदमी को दिया जाना चाहिए जो दरअसल मैदान में संघर्ष करता है- जिसका चेहरा धूल, पसीने और खून से लथपथ होने के बावजूद वो बहादुरी से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है। प्रायः आम आदमी लक्ष्य विहीन होता है, इसलिए असफल होता है।

    2. दृढ़ निश्चय

    अथर्ववेद में कहा गया है- मनुष्य जितना ज्ञानवान और संकल्पवान बनेगा, उसकी इच्छाएँ भी इसी अनुपात में पूर्ण होगी।

    संसार के सभी भले कार्य संकल्प से होते हैं, जिसमें संकल्प की शक्ति नहीं, वह कोई सुकार्य नहीं कर सकता। संकल्प लेकर पुरुषार्थ करने वाले की जीत निश्चित होती है। कोई भी मनुष्य जब कोई संकल्प लेता है तो उसे उसके प्रति पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध होना चाहिए। संकल्प का आधार स्तम्भ यही है कि लिया गया संकल्प हर हाल में बरकरार रहना चाहिए। जब व्यक्ति अपनी मदद खुद करता है तो परमात्मा भी उसकी मदद करते हैं।

    जो व्यक्ति दृढ़ इच्छा शक्ति से कोई प्रतिज्ञा लेता है और उसके प्रति प्रतिबद्ध रहता है तो वह जो चाहता है उसे प्राप्त कर लेता है। संकल्प इंसान के अन्दर अपार उत्साह और अदम्य साहस भर देता है, जिससे वह अपने लक्ष्य को पूर्ण मनोयोग से प्राप्त करता है। महात्मा गाँधी ने अहिंसा, सद्भावना, प्रेम, शांति और सामंजस्य बनाए रखने का संकल्प लिया और जीवन पर्यन्त इनका पालन किया। कहने का तात्पर्य यही है कि मनुष्य को ऐसा संकल्प नहीं लेना चाहिए, जिसे वह निभा न सके। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है- रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाये, पर वचन न जाई।। अर्थात् चाहे प्राण चले जाएं, लेकिन वचन खाली नहीं जाना चाहिए।

    जब भी हम दृढ़ शक्ति के साथ संकल्प लेते हैं तो हम अपने भीतर दिव्यता का अनुभव करते हैं, इसलिए कई बार हम विपरीत परिस्थितियों में भी सुरक्षित और बेदाग होकर निकलते हैं, क्योंकि तब स्वनिदेशन का प्रबल संकल्प एक बल के रूप में कार्य करता है। दृढ़ होकर लिए गए संकल्प में हमारा एक छोटा सा प्रयास भी क्रांति ला सकता है। मदन मोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण के प्रति दृढ़ संकल्पित थे। इसलिए लोगों की छोटी-छोटी मदद से ही उन्होंने विश्वविद्यालय का निर्माण कर दिया।

    संकल्प या इच्छा शक्ति का होना आदर्श मानव जीवन की एक बुनियादी विशेषता है। संकल्प के बिना हम अपनी जिम्मेदारियों के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं और न ही सामाजिक स्तर पर ही देश और समाज की उन्नति में एक सक्रिय नागरिक की भूमिका ही निभा पाते हैं। ‘‘अच्छे काम को करने में धन की आवश्यकता कम पड़ती है, पर अच्छे हृदय और संकल्प की अधिक आवश्यकता होती है।’’ महात्मा गाँधी ने कहा है कि- ‘‘दृढ़ संकल्प एक गढ़ के समान है जो कि भयंकर प्रलोभनों से हमको बचाता है, दुर्बल और डाँवाडोल होने से यह हमारी रक्षा करता है।"

    नए साल के अवसर पर संकल्प लेने की परम्परा वर्षों पुरानी है। लिहाजा पूरे वर्ष के लिए रोड मेप तैयार करने का यह सुनहरा अवसर होता है, वैसे तो हर व्यक्ति नए साल का आगाज नए संकल्प के साथ करता है। यह बात दीगर है कि कोई उस पर पूरी तरह खड़ा उतर पाता है तो कोई परिस्थितियों से समझौता भी कर लेता है। कई बार संकल्पित व्यक्ति नए साल के शुरुआती कुछ महीनों में अपने संकल्प के प्रति निष्ठावान तो रहता है लेकिन एक समय पश्चात संकल्प के विचार स्मृति से शनैः-शनैः ओझल होने लगते हैं। ऐसा संकल्प अधूरा और निरर्थक होता है।

    संकल्पित जीवन, सुखी, समृद्ध और सार्थक होता है। संकल्प के बिना जीवन में कुछ भी हासिल करना सम्भव नहीं है। बुराइयों और बाधाओं से लड़ने और परिश्रम करने का संकल्प ही व्यक्ति को सफलता दिलाता है। एक असफल व्यक्तित्व के पीछे संकल्पविहीन जीवन यात्रा होती है। संकल्प व्यक्ति को उत्साही बनाता है और उसमें सकारात्मक सोच का विकास करता है। हालाँकि संकल्प लेना बड़ी बात नहीं है। जरूरी है कि हम अपने संकल्पों पर अडिग रहें और अपने लक्ष्य को हासिल करें तथा इसकी सार्थकता सिद्ध करें।

    दृढ़ निश्चय कठिन से कठिन कार्य को भी सरलतम बना देता है। जीवन के किसी भी क्षेत्र और अवस्था में यदि असफलता हाथ लगती है तो उसका कारण केवल मेहनत की कमी नहीं होती। मेहनत को प्रेरित करने वाला तत्व संकल्प शक्ति है। इतिहास साक्षी है कि कठिनाइयों का सामना अपने अदम्य साहस और अटूट विश्वास के बल पर किया जा सकता है। मन में निश्चय कर लिया कि हमें जीतना है तो जीत के लिए जी जान से तैयारी शुरू हो जाती है। यूँ तो जीवन को महान बनाने के लिए मनुष्य निरन्तर प्रयत्नशील रहता है परन्तु वे लोग सफल हो जाते हैं, जिनके पास श्रम को पूर्ण व्यवस्थित व संचालित करने की संकल्पशक्ति होती है। संकल्प जीवन की सजीवता का बोध कराता है। यह वह शक्ति है, जो मनुष्य की जीवन शैली को सुनिश्चित करती है। कर्म-क्षेत्र पर मनुष्य अपने बुद्धि-विवेक से कर्तव्यनिष्ठ होकर कार्य व्यवहार करता है, परन्तु सफलता या असफलता उसके द्वारा किए गए कर्म के प्रति संकल्प का परिणाम होती है।

    जीवन में प्रत्येक व्यक्ति सफलता प्राप्त करना चाहता है। किसी कार्य में प्राण, मन और समग्र शक्ति के साथ जुट जाना ही संकल्प शक्ति है। आपका कोई भी उद्देश्य क्यों न हो, अपनी संकल्प-शक्ति द्वारा पूर्ण हो सकता है। मनुष्य की समस्त शक्ति एक लक्ष्य की और लगती है तो फिर सफलता प्राप्ति में सन्देह नहीं रह जाता। दृढ़ निश्चय के लिए आवश्यक है- लगन, कर्मण्यता और आत्मविश्वास। जो व्यक्ति किसी की प्रतीक्षा न कर स्वयं पुरुषार्थ में संलग्न होते हैं वे अपनी संकल्प शक्ति से लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करते हैं। खुद को असमर्थ, अशक्त और असहाय नहीं समझना चाहिए। शक्ति का स्रोत साधनों में नहीं है संकल्प में है।

    दृढ़ निश्चय वाला व्यक्ति अल्प साधनों में भी अधिकतम विकास कर सकता है। सतत परिश्रम और लक्ष्य से ही भाग्य बनता है। इच्छा एक प्रबल शक्ति है। संकल्प की मजबूती, धैर्य और साहस से मनुष्य जीतता है। मनुष्य की वास्तविक शक्ति उसकी इच्छा शक्ति है। अगर इच्छा नहीं है तो कर्म नहीं है और इच्छा है तो कर्मों का होना अनिवार्य है। सभी इच्छाएँ संकल्प की सीमा का स्पर्श नहीं कर पातीं, क्योंकि उनमें पूर्ति का बल नहीं होता, किन्तु इच्छाएं बुरे विचार और दृढ़ भावना द्वारा जब परिष्कृत हो जाती हैं तो संकल्प बन जाती हैं। अनेक संकल्प-विकल्प इस संसार में विद्यमान हैं, किन्तु उनका लाभ तब मिल पाता है जब वह विशेष मनोयोग पूर्वक किसी एक इच्छा की ओर प्रवृत्त होता है। संकल्प के अभाव में शक्ति का कोई महत्त्व नहीं है, किन्तु शक्ति के अभाव में संकल्प भी पूरे नहीं होते हैं। स्वामी रामतीर्थ ने कहा है- जैसा आपका संकल्प होगा, उसको आपके भीतर का सच्चा बल पूरा कर देगा।"

    संकल्प रखने वाले बुद्धिमान होते हैं। विकल्प ढूँढ़ने वाले चालाक होते हैं। मदमाते भ्रमित लोग अपनी भाँति दूसरे को भी मंद बनाते हैं, जिन्हें प्रयास किये बगैर विकल्प पर विकल्प मिलते जाते हैं। महापुरुष कभी विकल्प पर आशा नहीं करते। स्वार्थ सिद्धि में विकल्प सहायता करता है। संकल्प के बजाय विकल्प के लिए प्रेरणा देने वाले त्रिशंकु बनकर अभिशप्त होते हैं जो लोग संकल्प का महत्त्व समझते हैं वे विकल्पों के प्रभाव से कभी भी विचलित नहीं होते। संकल्प में ऐसी शक्ति है जो मुश्किल से मुश्किल चुनौती का सामना करने में मदद देती है। संकल्प को सही रूप में अपनाने वाला व्यक्ति कठिनाइयों के भवँर से निकल ही जाता है। इमर्सन ने संकल्प के बारे में कहा है- इतिहास पुराण साक्षी हैं कि मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव, दानव, सभी पराजित होते हैं।

    संकल्प का बीज कर्म का बीज है, जो आत्मा के अन्दर पूरे जीवनक्रम को समेटे हुए सुषुप्त अवस्था में पड़ा रहता है। यह समयानुसार मनुष्य के जीवन को दिशा प्रदान करता है। प्रयास करने के बाद भी बार-बार हार जाना कोई दुःख की बात नहीं है, पर संकल्प से हार जाना दुःख के साथ समस्याओं को आमंत्रित करता है। सृजन से संवृद्धि तक पहुँचने के लिए किसी भी कार्य में संकल्प के साथ उत्साह, विश्वास और पुरुषार्थ का आन्तरिक वर्चस्व होना चाहिए, तब इसका परिणाम भी स्थायित्व लिए होगा। मनुष्य अपने भाग्य या दुर्भाग्य का निर्माता खुद है। यदि परिश्रम फल फूल रहा है, तो यह मनुष्य की विवेकशीलता और कर्मठता के कारण है। बुद्धि-विवेक उसी अदम्य साहस के कारण फलित होती है जहाँ संकल्प सक्रिय है किसी ने कहा है कि- ‘‘मनुष्य में शक्ति की नहीं संकल्प की कमी होती है।’’ कालिदास जी ने संकल्प के विषय में कहा है- ‘‘सज्जनों के संकल्प कल्पवृक्षों के फलों की भाँति शीघ्र ही परिपक्व हो जाते हैं।’’ सूर ने कहा है- ‘‘अच्छे काम को करने में धन की आवश्यकता कम पड़ती है, पर अच्छे हृदय और संकल्प की अधिक।"

    मानकर चलें कि बाधायें तो आयेंगी........निश्चय कीजिए........राह की हर बाधा को पार करते चलिए ........साधनों को जुटाने में कसर न रहने पाये........एक ही बात मन में रहे कि करना है तो करना है........ये काम तो करना है........आगे बढ़ना है, फिसल गये तो सँभलना है........लड़ना पड़े तो लड़ना है........भिड़ना पड़े तो भिड़ना है........इस काम को हमें करना है।........बस सफलता अगले कदम पर है........एक कदम और........एक कदम और........बस एक कदम और।

    जिस तरह से एक बहादुर व्यक्ति अपने दुश्मन पर टूट पड़ता है उसी प्रकार से आप भी उन अड़चनों पर टूट पड़ें और आगे बढ़ने वाले रास्ते को साफ कर लें। आप दृढ़ निश्चय से, पूरी लगन से अपना काम चालू रखें आपको सफलता अवश्य प्राप्त होगी।

    विल्सन नामक एक जमींदार एक अत्यन्त आलीशान बँगले में रहता था। उसके बँगले की सफाई का कार्य पैट्सी नामक महिला के जिम्मे था। पैट्सी की एक छोटी सी बेटी भी थी, जिसका नाम मेरीजीन था। पैट्सी जब बँगले की सफाई करने जाती तो अपनी बेटी को बाहर छोड़ जाती, ताकि उसे देखकर विल्सन नाराज न हो। एक दिन पैट्सी अन्दर सफाई करने गयी तो मेरीजीन खिड़की पर खड़ी होकर अन्दर झाँकने लगी। विल्सन की पुत्रियों ने उसे यों झाँकते देखा तो उसे अन्दर बुला लिया। मेरीजीन की तो मानो मुराद पूरी हो गयी।

    वह बँगले के अन्दर की भव्यता को निहार रही थी कि उसकी दृष्टि एक पुस्तक पर जाकर अटक गयी। विल्सन की पुत्रियों ने उसे पुस्तक को छूने की कोशिश करते देखा तो वे उसे व्यंग्य करते हुए बोली- ‘‘क्या तुम्हारा किताब चुराने का इरादा है? पर चुराकर करोगी भी क्या? तुम्हें तो पढ़ना भी नहीं आता।’’ उनके कटाक्ष को सुनकर मेरीजीन का अंतर्मन अत्यंत आहत हुआ। उसने

    Enjoying the preview?
    Page 1 of 1