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Aap Bhi Leader Ban Sakte Hain - आप भी लीडर बन सकते हैं (Hindi Translation of The Leader In You) by Dale Carnegie
Aap Bhi Leader Ban Sakte Hain - आप भी लीडर बन सकते हैं (Hindi Translation of The Leader In You) by Dale Carnegie
Aap Bhi Leader Ban Sakte Hain - आप भी लीडर बन सकते हैं (Hindi Translation of The Leader In You) by Dale Carnegie
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Aap Bhi Leader Ban Sakte Hain - आप भी लीडर बन सकते हैं (Hindi Translation of The Leader In You) by Dale Carnegie

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डेल कारनेगी एक विश्व प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक और व्याख्याता थे। उनकी एक से एक बढ़कर पुस्तकों ने पाठकों के स्व-सुधार, बिक्री कौशल, कॉर्पोरेट प्रशिक्षण, सार्वजनिक बोलने और पारस्परिक कौशल विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। उनकी सर्वाधिक चर्चित पुस्तकों में 'हाउ टु विन फ्रेंड्स एंड इन्फ्लुएंस पीपल' 'हाउ टु स्टॉप वरीइंग एंड स्टार्ट लिविंग', 'लिंकन द अननोन' इत्यादि ने दुनिया भर के पाठकों को अपनी तरफ आकर्षित किया था। उन्होंने दुनिया में प्रेरणादायक विचारों के महत्त्व को समझाया। यही कारण है कि आज भी लाखों पाठक उनकी पुस्तकों को पढ़कर सफलता के नये द्वार खोल रहे हैं।

आज दुनिया के उथल-पुथल भरे इस माहौल में डेल कारनेगी के सिद्धान्तों को दोबारा पढ़ने की जरूरत है। इस जटिल दुनिया की चुनौती से निपटने के लिए, डेल कारनेगी के लोक व्यवहार सिद्धांत, कारगर तरीके से काम आ सकते हैं। इस पुस्तक के माध्यम से हम अभ्यास और सीखने की सच्ची इच्छा को पहचान पाएंगे।
यह पुस्तक लंबे समय से स्थापित कुछ दृष्टिकोणों को चुनौती देती है। जैसे:- क्या आप ज्यादा आसानी और सफलता के साथ अपने संबंधों को चलाना चाहते हैं? क्या आप अपनी सबसे कीमती धरोहर, आपके निजी और व्यापार जीवन का मूल्य बढ़ाना चाहेंगे? क्या आप अपने भीतर छिपे लीडर को खोजना और उसे बाहर निकालना पसंद करेंगे? क्या आप अपने अन्दर छिपे नेतृत्व को दुनिया के सामने लाना चाहते हैं? क्या आप लीडर बनकर समाज का नेतृत्व करना चाहते हैं?
अगर ऐसा है, तो इस पुस्तक को पढ़कर आपकी जिंदगी ही बदल जाएगी।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateSep 1, 2020
ISBN9789390287147
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    Aap Bhi Leader Ban Sakte Hain - आप भी लीडर बन सकते हैं (Hindi Translation of The Leader In You) by Dale Carnegie - Dale Carnegie

    कारनेगी

    प्रस्तावना

    लोक व्यवहार क्रांति

    भविष्य में अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए सफल संगठनों को, चाहे वे व्यवसायिक हों, सरकारी या गैर-लाभकारी हों, उन्हें भी बहुत अधिक परिवर्तन से गुजरना होगा।

    इक्कीसवीं सदी में संसार में बहुत अधिक परिवर्तन हो रहे हैं। उथल-पुथल और अभूतपूर्व विकास की प्रक्रिया में कुछ ही सालों में हमने पोस्ट-इंडस्ट्रियल समाज का उदय, सूचना युग का प्रारंभ, कंप्यूटराइजेशन की दीवानगी, बायोतकनीकी का जन्म और इतना ही बड़ा परिवर्तन - लोक व्यवहार क्रांति में देखा है।

    शीत युद्ध के बाद, व्यापार जगत में बहुत प्रतियोगिता हुई। प्रतियोगिता ज्यादा वैश्विक और पैनी बन चुकी है। आज तकनीकी कई गुना गति से विकास कर रही है। अब कोई भी कंपनी अपने ग्राहकों की जरूरतों को नजरअंदाज नहीं कर सकती। आज कोई मैनेजर आदेश देकर, यह उम्मीद नहीं कर सकता कि कर्मचारी बिना सोचे-विचारे उसका अनुसरण करेंगे। व्यक्तिगत संबंधों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। कंपनियाँ सुधार में थोड़ी सी भी ढील नहीं दे सकतीं। जैसा पहले मानवीय सृजनात्मकता का शोषण होता था अब बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

    भविष्य में अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए सफल संगठनों को, चाहे वे व्यवसायिक हों, सरकारी या गैर-लाभकारी हों, उन्हें भी बहुत अधिक परिवर्तन से गुजरना होगा। उनमें काम करने वालों को ज्यादा तेजी से सोचना होगा, ज्यादा नये तरीके से काम करना होगा, ज्यादा बड़े सपने देखने होंगे और एक-दूसरे के साथ बहुत अलग और बेहतर तरीकों से एक साथ जुड़ना होगा।

    सबसे जरूरी है कि इस सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए एक बिलकुल ही नए किस्म की नेतृत्व क्षमता की जरूरत पड़ेगी, जो सबसे अलग होगा, जैसे हममें से बहुत लोग कुछ बन गए हैं। अब किसी कंपनी को सिर्फ चाबुक और कुर्सी के सहारे नहीं चलाया जा सकता था।

    अपने संगठनों को वास्तविक भविष्य-दृष्टि और जीवनमूल्यों की बुनियाद भविष्य के लीडर्स को देनी होगी। इन लीडर्स को अतीत के लीडर्स के मुकाबले ज्यादा असरदार ढंग से संवाद और प्रेरित करना होगा। परिवर्तनशील स्थिति में, उन्हें अपना मस्तिष्क संतुलित रखना होगा। और इन नए लीडर्स को अपने संगठन में सेल्समैन से लेकर एक्जीक्यूटिव केबिन तक-मौजूद योग्यता और सृजनात्मकता का प्रयोग करना होगा।

    जैसा कि आप जानते हैं, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ऐसी उथल-पुथल ज्यादा देखने को मिलती है। युद्ध के बाद अमेरिकी कंपनियाँ लगातार समृद्ध हुई। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उनका प्रबंधन कैसा था।

    युद्ध से यूरोप और एशिया की अर्थव्यवस्थाएँ तबाह और कमजोर हुई थीं और दुनिया के विकासशील देश तब आर्थिक दृष्टि से कोई खास महत्त्वपूर्ण नहीं बने थे। अमेरिकी कंपनियों ने बड़े मजदूर संगठनों और बड़ी सरकार की मदद से प्रत्येक किसी के लिए पैमाने तय कर दिए। इन कंपनियों का प्रबंधन बेहतरीन नहीं कहा जा सकता। लेकिन उन्हें इसकी जरूरत भी नहीं थी। उनकी प्रत्येक श्रेणीबद्धताएं उनके निश्चित कार्य विवरणों के कारण समृद्ध, खुश और ज्यादा से ज्यादा मुनाफे से भरी थीं।

    बड़ी कंपनियों ने कर्मचारियों को अपने साथ रखने के लिए सुरक्षा के सपने दिखाए! अच्छे कॉरपोरेशन में नौकरी करने का मतलब था आजीवन नौकरी, जो सरकारी नौकरी से ज्यादा अलग नहीं थी। अलबत्ता उसमें तनख्वाह बेहतर और अतिरिक्त लाभ भी ज्यादा था।

    छँटनी? उन लोगों की छँटनी के बारे में किसने सुना था, जो सूट जैकेट या सजीली पोशाक पहनकर नौकरी करने आये थे? फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की छँटनी तो हो सकती थी, लेकिन मैनेजरों की कैसे हो सकती थी? लोग अक्सर सफलता की सीढ़ी के बारे में बात करते थे और यह भी कि वे किस तरह अपने कैरियर में एक-एक पायदान चढ़कर विकास करेंगे। उनकी विकास की रफ्तार तय थी और यह उनके ऊपर-नीचे के लोगों से न ज्यादा तेजी से हो सकती थी, न ही ज्यादा धीमी गति से। पलटकर देखने पर हम पाते हैं कि वे आसान दौलत के दिन थे, जिन्हें कभी न कभी तो खत्म होना ही था।

    अमेरिका जब युद्ध के बाद युद्ध के परिणामों का आनंद ले रहा था, तब जापानी लोग भविष्य के लिए चिन्तित थे। उनकी अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुकी थी। उनका ज्यादातर इंफ्रास्ट्रक्चर तबाह हो चुका था। जापानियों को सबसे पहले इसी से उबरना था। इसके अलावा, जापान को अपनी उस छवि से भी उबरना था जिसके कारण उसे घटिया वस्तुओं के उत्पादन और खराब ग्राहक सेवा के लिए दुनिया भर में जाना जाता था।

    जापानी लोग इतने कष्ट उठा चुके थे कि वे हर हाल में अपनी गलतियों से सीखने को पूरी तरह तैयार थे। इसलिए उन्होंने सबसे अच्छे सलाहकार खोजे। उनमें से डॉ. डब्ल्यू. एडवर्ड्स डेमिंग, युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना के गुणवत्ता नियंत्रण कार्यालय में स्टेस्टिशियन थे।

    डेमिग ने जापानियों की लगातार मेहनत से प्रभावित होकर जापानियों से एक बार कहा, बड़े अमेरिकी कॉरपोरेशन्स के जटिल तंत्रों की नकल मत करो। जापानी एक नई किस्म की कंपनी बनाएँ। ऐसी कंपनी, जो कर्मचारियों से जुड़ाव, गुणवत्ता सुधार और ग्राहक संतुष्टि के प्रति पूरी तरह समर्पित हो और सभी कर्मचारियों को इन लक्ष्यों के प्रति एकजुट होकर काम करने के लिए प्रेरित करे।

    धीरे-धीरे जापानी अर्थव्यवस्था का पुनर्जन्म हो गया। जापान तकनीकी नवाचार में अग्रणी बन गया और जापानी वस्तुओं तथा सेवाओं की गुणवत्ता आसमान पर पहुँच गई। अपने नए उत्साह की बदौलत जापानी कंपनियाँ, विदेशी कंपनियों की बराबरी तक ही नहीं पहुँचीं, कई महत्त्वपूर्ण उद्योगों में तो वे आगे भी निकल गईं। जापानियों की नई नीति को लोकप्रिय होने में ज्यादा समय नहीं लगा। यह जर्मनी, स्कैंडिनेविया, सुदूर पूर्व और पैसिफिक औरम के किनारे फैल गईं। दुर्भाग्य से, इसे अमेरिका तक पहुँचने में काफी समय लग गया और यह देर बड़ी महँगी साबित हुई।

    जब दौलत की गाड़ी का पेट्रोल खत्म हुआ तो इसका किसी को एहसास तक नहीं था। 1960 और 1970 के दशकों में युद्ध के बाद की अर्थव्यवस्था का हल्ला इतना तेज था कि कभी-कभार के धमाके सुनाई ही नहीं देते थे। लेकिन परेशानियों के संकेत दिखाई देने लगे थे, जिन्हें नजरअंदाज करना दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा था।

    मुद्रास्फीति और ब्याज दरें आसमान छूने लगीं। जिससे तेल महँगा हो गया। प्रतियोगिता सिर्फ प्रगतिशील जापानी या जर्मन कंपनियों से ही नहीं मिल रही थी। जल्द ही वे जनरल मोटर्स, जेनिथ, आईबीएम, कोडक और कई अन्य दिग्गज कंपनियों का मार्केट शेयर लूटने लगे। अर्थव्यवस्था के परिदृश्य में तिनके के बराबर दर्जनों देश अपनी नई प्रतियोगिता, योग्यताओं के दम पर अचानक तकनीकी की सरहदों पर पहुँच गए।

    रियल एस्टेट सेक्टर की स्थिति बहुत खराब थी। 1980 के दशक के मध्य में इस लगातार बढ़ती हुई समस्या को रोकना मुश्किल लगने लगा। कंपनियों का कर्ज और राष्ट्रीय घाटा गुब्बारे की तरह फूल रहे थे। 1990 के दशक की शुरुआत में मंदी छा गई क्योंकि शेयर बाजार अजीब हरकतें कर रहा था। जिससे सबको साफ पता चल गया कि दुनिया कितनी बदल चुकी है।

    यह परिवर्तन मिसाइल जितनी तेजी से बीच में फँसे हुए लोगों के लिए आया। अगर कंपनियाँ विलय या अधिग्रहण में नहीं जुटी थीं, तो वे रिस्ट्रक्चरिंग कर रही थीं या दिवालिएपन की अदालत में ठिठुर रही थीं। छँटनी हो रही थी। कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा रहा था। परिवर्तन बेरहम था। प्रोफेशनल्स और एक्लीक्यूटिब्ल को भी अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा था और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें। यह बहुत तेज रफ्तार से हो रहा था। और अब यह सिर्फ मजदूरों या निचले कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं था।

    इतने बड़े और तीव्र परिवर्तन ने लोगों को अपने और अपने भविष्य के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया। इसकी वजह से पूरी अर्थव्यवस्था में असंतोष और डर की अभूतपूर्व लहर पैदा हुई।

    कुछ लोगों का यह विश्वास था कि दुनिया इस समस्या से उबरने का कोई तकनीकी हल जरूर खोज लेगी। और इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि बाजार की बेहतरी में तकनीकी सचमुच बहुत बड़ा योगदान दे रही है।

    निजी व्यापार बैंक सॉन्डर्स कार्प एंड कंपनी के जनरल पार्टनर थॉमस ए. सॉन्डर्स तृतीय ने कहा था, टेक्नोलॉजी की मदद से मैं अपने न्यूयॉर्क ऑफिस में बैठकर उसी डाटा का इस्तेमाल कर सकता हूँ, जिसका इस्तेमाल जापान में कोई दूसरा कर रहा है- ठीक उसी पल। हम चौबीसों घंटे एक ही डाटा सिस्टम से जुड़े हुए हैं। दुनिया में प्रत्येक जगह लोग ऐसे संचार नेटवर्क से जुड़े हुए हैं, जो किसी की भी कल्पना से ज्यादा आधुनिक है। पूँजी बाजार और मुद्रा बाजार सरकारी नियंत्रण से परे हैं। और मुझे उन बाजारों के बारे में कुछ जानने या बताने के लिए अखबार की जरूरत नहीं है।

    लोग अक्सर सफलता की सीढ़ी के बारे में बात करते थे और यह भी कि वे किस तरह अपने कैरियर में एक-एक पायदान चढ़कर विकास करेंगे। उनकी विकास की रफ्तार तय थी और यह उनके ऊपर-नीचे के लोगों से न ज्यादा तेजी से हो सकती थी, न ही ज्यादा धीमी गति से। पलटकर देखने पर हम पाते हैं कि वे आसान दौलत के दिन थे, जिन्हें कभी न कभी तो खत्म होना ही था।

    महान चिकित्सा शोधकर्ता डॉ. जोनस साक का कहना है, आप काम में विकास करने के फायदे देख रहे हैं। क्षमता को इतना बढ़ा लें कि कम समय में ज्यादा से ज्यादा काम किया जा सके। आज हम ज्यादा दूर के ज्यादा लोगों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं, इसीलिए सौ साल पहले की तुलना में आज कम समय में ज्यादा काम करना संभव है। आपके पास जितने ज्यादा संसाधन होंगे, आप उतना ही ज्यादा विकास कर सकते हैं।

    फोर्ब्स पत्रिका के प्रमुख संपादक मैल्कम एस. फोर्ब्स ने कहा है, "आपको याद है, जब पहली बार कंप्यूटर सामने आए थे। वे निरंकुश शक्ति के ऐसे औजार थे, जिनसे डर लगता था। वहीं टी.वी. से यह डर लगता था कि इसे गलत प्रचार का साधन न बना लिया जाए। लेकिन आधुनिक तकनीकी की बदौलत असर बिलकुल उल्टा हुआ। कंप्यूटर लगातार ज्यादा छोटे होते चले गए और मेनफ्रेम से पर्सनल कंप्यूटर तक का आविष्कार हो गया। शक्ति अविश्वसनीय गति से बढ़ी है, इसलिए अब आप बँधे हुए नहीं हैं।

    माइक्रोचिप अब इंसानी मस्तिष्क की पहुँच को ठीक उसी तरह बढ़ा रही है, जिस तरह पिछली सदी में मशीनों ने इंसानी मांसपेशी की पहुँच बढ़ाई थी। आज सॉफ्टवेयर स्टील के स्तंभ बन रहे हैं। फाइबर ऑप्टिक्स और डिजिटल स्कीन यातायात के रेलवे लाइन और राजमार्ग बन रहे हैं, जहाँ सूचना कच्चा माल है।

    फोर्ब्स का कहना है, अब आप अपनी गोद में रखे दो पौंड के छोटे से लैपटॉप से दुनिया में कहीं भी मैसेज भेज सकते हैं, आप कंप्यूटर का सारा काम कर सकते हैं - और आप ये सब कहीं भी कर सकते हैं, जहाँ कहीं भी आपको एक प्लग या उपग्रह का सिग्नल मिल जाए। परिणाम? ज्यादा लोगों तक ज्यादा जानकारी पहुँच रही है। लोग आसानी से जान सकते हैं कि बाकी दुनिया में क्या हो रहा है। यह बहुत ही प्रजातांत्रिक प्रभाव है।

    बर्लिन की दीवार का ढहना, सोवियत संघ का विघटन, चीन में आंदोलन, लेटिन अमेरिका और कैरिबियन में प्रजातंत्र के लिए संघर्ष, विकासशील जगत में बढ़ता औद्योगीकरण - ये सभी परिवर्तन एक नई औद्योगिक स्वतंत्रता और एक नई पहचान का संकेत देते हैं। ये बताते हैं कि अब पूरी दुनिया एक समुदाय बन चुकी है। इन परिवर्तनों को व्यापक संचार तकनीकी से शक्ति हासिल हुई है।

    आज दुनिया भर में इस परिवर्तन की उल्लेखनीय तस्वीरें दिखाई जाती हैं। चीनी विद्यार्थी कैमरे के सामने अँग्रेजी भाषा के बैनर लहराते हैं। सद्दाम हुसैन और अमेरिकी जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ - दोनों ने खाड़ी युद्ध की प्रगति का जायजा सीएनएन पर लिया।

    कठिन समय से उबारने के लिए सिर्फ तकनीकी ही काफी नहीं है। संचार के साधन आज सहज सुलभ हैं, तो इसका यह मतलब बिलकुल नहीं है कि लोगों ने अच्छी तरह संवाद या संप्रेषण करना सीख लिया है। ज्यादातर मामलों में ऐसा नहीं हुआ है। आधुनिक समय की विडंबना है संवाद करने की महान क्षमता, लेकिन ऐसा कर पाने में भारी असफलता मिली है। इतनी सारी जानकारी का क्या फायदा, अगर लोगों को यही नहीं पता कि इसे दूसरों तक पहुँचाया कैसे जाए?

    जो कंपनियाँ अपने उद्देश्य को आगे बढ़ाने वाले लोगों का समूह बना सकती हैं वे दूसरी कंपनियों से आगे निकल जाएँगी। ये वे कंपनियाँ हैं जो समझती हैं कि सेवा और मानवीय संबंध सफलता तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।

    हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस ने अपने विद्यार्थियों पुराने विद्यार्थियों और रिक्रूटर्स के बीच एक सर्वे किया। आज संचार की बहुत अधिक जरूरत को देखते हुए इसके नतीजों से कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर जॉन ए. क्वेल्च के अनुसार हमें यह पता चल रहा है कि पढ़ने वाले विद्यार्थी तकनीकी क्षमता से काफी हद तक संतुष्ट हैं।

    संख्याओं के ग्राफ से बाजारों का विश्लेषण और बिजनेस प्लान्स प्रतिभाशाली युवक-युवतियाँ तैयार कर सकते हैं, लेकिन जहाँ तक लोक व्यवहार संबंधी योग्यताएँ सिखाने का सवाल आता है तो स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। इस क्षेत्र में हार्वर्ड अपनी कोशिशें बढ़ाने में जुटा है। क्वेल्च कहते हैं, इस क्षेत्र में सुधार की जरूरत महसूस होती है कि मौखिक और लिखित संवाद, टीमवर्क और ऐसे ही अन्य मानवीय कौशल। यही योग्यताएँ इन युवा बिजनेस लीडर्स की सफलता को तय करने में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण साबित होंगी!

    बिजनेस की दुनिया में आगे बढ़ने के लिए तकनीकी दक्षता बहुत जरूरी है। लेकिन लोकव्यवहार सफलता के लिए जरूरी है। अंत में विजेताओं और पराजितों का अंतर उनके बाइट्स या रैम से तय नहीं होगा। चतुर और रचनात्मक लीडर्स वाले संगठन विजेता होंगे जो लोगों से असरदार ढंग से संवाद करने और उन्हें प्रेरित करने का तरीका जानते हों - संगठन के भीतर भी और बाहर भी।

    अच्छे लोक व्यवहार कौशल में लोगों के प्रबंधन से नेतृत्व करने तक बढ़ने की योग्यता होती है।

    अग्रणी टेक्साइल निर्माता मिलिकेन एंड कंपनी में प्रबंधन विकास के डायरेक्टर जॉन रैम्पी के अनुसार, लोग निर्देशन से मार्गदर्शन करने प्रतियोगिता से सहयोग करने, गोपनीयता के तंत्र में काम करने से आवश्यकतानुसार जानकारी का आदान-प्रदान करने, निष्क्रियता से जोखिम लेने की नीति अपनाने कर्मचारियों को खर्च मानने के बजाय उन्हें संपत्ति मानने तक बढ़ना सीख रहे हैं। वे अब यह सीख रहे हैं कि वे द्वेष से संतुष्टि तक, उदासीनता से संलग्नता तक, असफलता से सफलता तक कैसे पहुँचें।

    किसी ने कहा कि ये कौशल नैसर्गिक रूप से अपने आप आ जाएँगे और अक्सर वे इस तरह आते भी नहीं हैं। विश्वव्यापी विज्ञापन फर्म जे. वाल्टर थॉमसन कंपनी के चेयरमैन बर्ट मैनिंग के अनुसार, "यह जानना आसान नहीं है कि श्रेष्ठ लोक व्यवहार कैसे उपलब्ध कराया जाए। कुछ लोग इसे सहज ढंग से कर लेते हैं। लेकिन ज्यादातर लोगों को यह सिखाना पड़ता है। उन्हें इसका प्रशिक्षण देना पड़ता है। इसमें उतने ही प्रशिक्षण - और उतनी ही एकाग्रता - की जरूरत होती है, जितनी कि कार कंपनी का इंजीनियर बनने और बेहतर पिस्टन डिजाइन करने के लिए होती है।

    जो कंपनियाँ अपने उद्देश्य को आगे बढ़ाने वाले लोगों का समूह बना सकती हैं वे दूसरी कंपनियों से आगे निकल जाएँगी। ये वे कंपनियाँ हैं जो समझती हैं कि सेवा और मानवीय संबंध सफलता तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।

    डेल कारनेगी इतना लंबा नहीं जिए कि आसान अमीरी के युग के बाद विस्फोटक परिवर्तन का युग आते देख सकें। वे इस नई लोक व्यवहार क्रांति का आगमन भी नहीं देख पाए। लेकिन जब लोगों ने कंपनी की भविष्य-दृष्टि, कर्मचारी सशक्तिकरण या गुणवत्ता सुधार प्रक्रिया के बारे में सुना तक नहीं था, तब कारनेगी लोक व्यवहार की बुनियादी अवधारणाओं का सूत्रपात कर रहे थे, जो इन महत्त्वपूर्ण विचारों के केंद्र में निहित हैं।

    1912 में नॉर्थवेस्ट मिसूरी से युवा कारनेगी न्यूयॉर्क सिटी में यह पता लगाने आए थे कि उन्हें जिंदगी में क्या करना है। उन्हें अंततः 125वीं सड़क स्थित वायएमसीए में काम मिल गया और वे रात में वयस्कों को भाषण देने की कला सिखाने लगे।

    कारनेगी ने लिखा, "पहले तो मैंने सिर्फ सार्वजनिक भाषण कला के ही पाठ्यक्रम आयोजित किए। इनका उद्देश्य यह था कि वयस्क पल भर में सोचकर ज्यादा स्पष्टता, ज्यादा असरदार अंदाज और ज्यादा आत्मविश्वास के साथ अपने विचार व्यक्त कर सकें - बिजनेस इंटरव्यूज में भी और लोगों के समूहों के सामने भी।

    लेकिन कुछ ही सालों में धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि इन वयस्कों को असरदार भाषण की कला में निपुण होने की जितनी जरूरत थी, उतनी ही ज्यादा जरूरत रोजमर्रा के व्यापार और सामाजिक संपर्कों में लोक व्यवहार की सूक्ष्म कला में माहिर बनने की थी।"

    कारनेगी ने इसके बाद अपने पाठ्यक्रम का विस्तार और उसमें लोक व्यवहार की बुनियादी योग्यताओं को शामिल किया। उनके पास कोई पाठ्यपुस्तक नहीं थी, कोई आधिकारिक सिलेबस नहीं था, कोई प्रकाशित कोर्स गाइड भी नहीं थी। लेकिन उन्होंने लोक व्यवहार की व्यावहारिक तकनीकों की लंबी सूची तैयार कर ली और प्रत्येक दिन उसे जाँच-परखकर बेहतर बनाया।

    उन्होंने अपने विद्यार्थियों को लोक व्यवहार के इन बुनियादी सिद्धांतों को अपनी जिंदगी में उतारना सिखाया। उन्होंने अपने विद्यार्थियों को सिखाया, स्थिति को सामने वाले के दृष्टिकोण से देखो। ईमानदार और सच्ची प्रशंसा करो। दूसरों में सच्ची दिलचस्पी लो। शुरुआत में कारनेगी अपने नियम तीन बाई पाँच के कार्ड पर लिख लेते थे। जल्द ही उनकी जगह एक लीफ़लेट ने ले ली।

    कारनेगी ने पन्द्रह साल के कठिन प्रयोगों और संशोधनों के बाद लोक व्यवहार सम्बन्धी अपने सिद्धान्तों को 1936 में प्रकाशित पुस्तक ‘हाऊ टु विन फ्रेडस एंड इंफ्लुएंस पीपुल’ में समेट दिया। यह लोगों के साथ सफल व्यवहार करने की डेल कारनेगी की मार्गदर्शिका थी।

    यह पुस्तक बेहद सफल हुई। तीस लाख प्रतियाँ बिकने के बाद ‘हाउ टु विन फ्रेंड्स’ दुनिया के इतिहास में सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तकों में से एक बनी। कई दर्जनों भाषाओं में अनुवाद हुआ जो आज तक बिक रही है।

    कारनेगी ने लोक व्यवहार का संदेश फैलाने के लिए ‘डेल कारनेगी एंड एसोसिएट्स. इंक.’ की स्थापना की। उन्हें पूरी दुनिया में ऐसे लोग मिले, जो यह सीखने को उत्सुक थे। कारनेगी रेडियो और टी.वी. पर नियमित रूप से सिखाते थे। उन्होंने दूसरों को भी अपना पाठ्यक्रम सिखाने का तरीका सिखाया और मानवीय संबंधों पर दो अन्य पुस्तकें लिखीं : ‘द क्लिक एंड ईजी वे टु इफेक्टिव स्पीकिंग’ और ‘हाउ टु स्टॉप वरीइंग एंड स्टार्ट लिविंग’। ये दोनों पुस्तकें भी बेस्टसेलर साबित हुईं। 1955 में कारनेगी की मृत्यु के बाद भी उनके विचारों के प्रचार-प्रसार का सिलसिला जारी रहा।

    क्या आप लंबे समय से स्थापित कुछ दृष्टिकोणों को चुनौती देने के लिए तैयार हैं? क्या आप ज्यादा आसानी और सफलता के साथ अपने संबंधों को चलाना चाहते हैं? क्या आप अपनी सबसे कीमती धरोहर, आपके निजी और व्यापार जीवन का मूल्य बढ़ाना चाहेंगे? क्या आप अपने भीतर छिपे लीडर को खोजना और उसे बाहर निकालना पसंद करेंगे?

    आज डेल कारनेगी कोर्स अमेरिका के साथ-साथ सत्तर देशों के एक हजार से ज्यादा शहरों में चल रहा है। प्रत्येक सप्ताह तीन हजार नए लोग इस कोर्स में दाखिला लेते हैं। कारनेगी संगठन इस हद तक बढ़ चुका है कि यह 400 से ज्यादा फॉरचून 500 कंपनियों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम्स तैयार करता है।

    कारनेगी ने अपने संदेश में प्रत्येक नई पीढ़ी को दुनिया की बदलती जरूरतों के हिसाब से खुद को ढालने की अद्भुत योग्यता सिखाई। डेल कारनेगी के ज्ञान का केंद्र था, दूसरों के साथ असरदार संवाद, उन्हें सफल होने के लिए प्रेरित करना, प्रत्येक व्यक्ति के भीतर लीडर की खोज करना।

    आज दुनिया के उथल-पुथल भरे माहौल में कारनेगी के सिद्धान्तों की दोबारा जरूरत है। आगे आने वाले पन्नों में आप देखेंगे कि आज लोगों के सामने जो अनूठी चुनौतियाँ हैं, कारनेगी के लोक व्यवहार सिद्धांत उनसे कारगर तरीके से कैसे निबटते हैं। ये सिद्धांत बुनियादी हैं और समझने में आसान भी। इन्हें समझने और अपनाने के लिए किसी खास शिक्षा या तकनीकी योग्यता की जरूरत नहीं है। इनके लिए तो बस अभ्यास और सीखने की सच्ची इच्छा की जरूरत है।

    क्या आप लंबे समय से स्थापित कुछ दृष्टिकोणों को चुनौती देने के लिए तैयार हैं? क्या आप ज्यादा आसानी और सफलता के साथ अपने संबंधों को चलाना चाहते हैं? क्या आप अपनी सबसे कीमती धरोहर, आपके निजी और व्यापार जीवन का मूल्य बढ़ाना चाहेंगे? क्या आप अपने भीतर छिपे लीडर को खोजना और उसे बाहर निकालना पसंद करेंगे?

    अगर ऐसा है, तो आगे पढ़ते रहें। आगे जो जानकारी दी गई है, हो सकता है उसे पढ़कर आपकी जिंदगी ही बदल जाए।

    एक मिलियन डॉलर की सालाना तनख्वाह चार्ल्स श्वाब को स्टील व्यवसाय में मिलती थी। उन्होंने मुझे एक बार बताया कि इतनी मोटी तनख्वाह मिलने की सबसे बड़ी वजह लोगों के साथ व्यवहार करने की उनकी योग्यता थी। जरा कल्पना करें? एक मिलियन डॉलर सालाना सिर्फ इसलिए, क्योंकि वे लोक व्यवहार में निपुण थे! एक दिन दोपहर को श्वाब अपनी एक स्टील मिल में घूम रहे थे। उन्होंने कुछ मजदूरों को वहाँ सिगरेट पीते देखा, जहाँ बोर्ड लगा था : ‘धूम्रपान वर्जित है’।

    क्या आपको लगता है कि चार्ल्स श्वाब ने उस साइनबोर्ड की तरफ इशारा करके यह कहा होगा, क्या तुम्हें पढ़ना नहीं आता?

    बिलकुल नहीं, लोक व्यवहार में माहिर व्यक्ति भला ऐसा कैसे कर सकता है?

    श्वाब ने दोस्ताना अंदाज में उन लोगों से बातचीत की। उन्होंने इसके बारे में एक शब्द भी नहीं बोला कि वे धूम्रपान वर्जित इलाके में सिगरेट पी रहे थे।

    श्वाब ने उन लोगों को चलते-चलते कुछ सिगार दिए और आँख मारते हुए कहा, अगर आप इन्हें बाहर पिएंगे, तो मुझे अच्छा लगेगा।

    श्वाब ने बस इतना ही कहा। वैसे मजदूर अच्छी तरह ये जानते थे श्वाब को उनके नियम तोड़ने के बारे में मालूम था, लेकिन वे मन ही मन श्वाब के कृतज्ञ भी थे, क्योंकि उन्होंने उन्हें नीचा नहीं दिखाया। वे उनके साथ इतनी भलमनसाहत से पेश आए कि बदले में वे मजदूर भी श्वाब के साथ उतनी ही भलमनसाहत से पेश आना चाहते थे।

    -डेल कारनेगी

    1 अपने अंदर छिपे नेतृत्व की खोज

    लोग लीडरशिप के सच्चे अर्थ के बारे में, अतीत में व्यवसाय जगत में ज्यादा नहीं सोचते थे। बोस ही उनका भगवान था और वही दुनिया चलाता था। बात खत्म।

    फ्रेड विल्पॉन न्यूयॉर्क मेट्स बेसबॉल टीम के प्रेसिडेंट हैं। विल्पॉन स्कूली बच्चों के एक समूह को, एक दोपहर को शिया स्टेडियम की सैर करा रहे थे। उन्होंने उन बच्चों को होम प्लेट के पीछे खड़े होने का मौका दिया। वे उन्हें टीमों के डगआउट्स में ले गए। वे उन्हें क्लब हाउस तक जाने वाले निजी मार्ग से लेकर गए। विल्पॉन विद्यार्थियों को स्टेडियम के बुल पेन में अंतिम पड़ाव के तौर पर ले जाना चाहते थे, जहाँ पिचर्स वार्म अप करते हैं।

    लेकिन यूनिफॉर्म वाले एक सुरक्षा प्रहरी ने बुल पेन के गेट पर समूह को रोक दिया।

    वह विल्पॉन को नहीं पहचानता था, इसलिए वह बोला, बुल पेन में आम जनता को जाने की इजाजत नहीं है। मुझे अफसोस है, लेकिन आप अंदर नहीं जा सकते।

    देखिए, फ्रेड विल्पॉन में बेशक वहीं पर अपनी मनचाही चीज पाने की शक्ति थी। वे उस सुरक्षा प्रहरी को जमकर फटकार सकते थे कि वह उन जैसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति को कैसे नहीं पहचान पाया। वे झटके से सिक्यूरिटी के पास अपना टॉप लेवल निकाल सकते थे और आँखें फाड़कर देखने वाले बच्चों को दिखा सकते थे कि शिया स्टेडियम में उनकी कितनी चलती है!

    मगर विल्पॉन ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। वे विद्यार्थियों को स्टेडियम के बाजू में ले गए और उन्हें दूसरे गेट से बुल पेन में लेकर गए।

    उन्होंने ऐसा करने की जहमत क्यों उठाई? कारण स्पष्ट था : विल्पॉन सुरक्षा प्रहरी को सभी के सामने शर्मिंदा नहीं करना चाहते थे। आखिर, वह आदमी अपना काम कर रहा था और अच्छी तरह कर रहा था। विल्पॉन ने तो सुरक्षा प्रहरी को उसी दोपहर बाद, हाथ से लिखी एक चिट्ठी भी भेजी, जिसमें उन्होंने उसे सुरक्षा का काम अच्छी तरह करने के लिए धन्यवाद दिया था।

    विल्पॉन अगर इसके बजाय, चिल्लाने या बवाल मचाने का विकल्प चुनते, तो क्या होता? तब सुरक्षा प्रहरी द्वेष पाल लेता और बेशक उसके काम पर भी इसका बुरा असर पड़ता। विल्पॉन की शिष्ट नीति वाकई ज्यादा समझदारी भरी थी। सुरक्षा प्रहरी को अपनी प्रशंसा बहुत अच्छी लगी। अवश्य वह विल्पॉन को पल भर में ही पहचान लेगा, जब वे अगली बार उनके सामने आएंगे।

    फेड विल्पॉन लीडर हैं। पद के कारण नहीं। ऊँची तनख्वाह के कारण भी नहीं। लोक व्यवहार में महारत हासिल करने वाली खासियत उन्हें लीडर बनाती है।

    लोग लीडरशिप के सच्चे अर्थ के बारे में, अतीत में व्यवसाय जगत में ज्यादा नहीं सोचते थे। बोस ही उनका भगवान था और वही दुनिया चलाता था। बात खत्म।

    अच्छी तरह चलने वाली कंपनियाँ - कोई भी अच्छे नेतृत्व वाली कंपनियों के बारे में बात नहीं करता था - वे थीं, जहाँ अमूमन सेना के अंदाज में काम होता था। ऊपर से आदेश दिए जाते थे और श्रेणियों से गुजरते हुए नीचे पहुँचते थे।

    आपको ब्लॉन्डी कॉमिक स्ट्रिप के मि. डिदर्स याद हैं? वे चीखते थे, बम-स्टेड! और युवा डैगवुड घबराए हुए पिल्ले की तरह बोस के ऑफिस की तरफ दौड़ लगा देता था। बहुत-सी कंपनियाँ असल जिंदगी में भी बरसों तक इसी अंदाज में चलती रहीं। जो कंपनियाँ सेना

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