Bandhan
By Rajvansh
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Bandhan - Rajvansh
बन्धन
एक जोरदार बिजली का कड़ाका हुआ और खिड़की से बाहर एक रूपहली लकीर दूर तक खिंचती चली गई।
शीला के हाथों से सलाइयां छूटकर गिर गईं। उसने दोनों हाथों से अपना कलेजा थाम लिया और भयभीत नजरों से खिड़की से बाहर देखने लगी। लेकिन बाहर गहरा अंधेरा छाया हुआ था। तूफान तथा वर्षा का शोर कानों के पर्दे फाड़े डाल रहा था। तेज हवा के झोंकों से खिड़कियां दरवाजे बुरी तरह कांप रहे थे।
कुछ देर तक शीला आंखें फाड़ें खिड़की की ओर देखती रही। फिर एक ठंडी सांस ले कर बड़बड़ाई, हे भगवान, आज उन्हें इतनी देर क्यों हो गई?
फिर उसकी नजरें कार्निस पर रखे गोविन्द राम के फोटो की ओर चल गई। उसकी मुस्कराती हुई आंखें जैसे शीला से कुछ कर रहीं थीं। एक शरारत भी मुस्कराहट, जैसे कोई शरारत भरा वाक्य उन होंठों से फिसलने वाला हो। अचानक शीला को लगा जैसे उसकी गोद में पड़ी हुई सलाइयों और नन्हें-नन्हें मोजों को देखकर वे आंखें कुछ कह रही हों।
शीला ने घबराकर मोजोें की ओर देखा और फिर फोटो की ओर देखने लगी। फिर शर्माते हुए बड़बड़ाई, हटो...शैतान कहीं के!
अचानक उसे लगा जैसे गोविन्द राम के फोटो के होंठ शरारत से मुस्कराने लगे हों। शीला ने मुँह दोनों हाथों में छिपा लिया।
ठीक उसी समय टेलीफोन की घण्टी बज उठी। शीला चौंक पड़ी। उसने नजरें उठा कर टेलीफोन की ओर देखा। उसकी आंखें खुशी से चमक उठीं।
वहीं होंगे
वह धीरे से बड़बड़ाई।
फिर उसने धीरे से झुक कर रिसीवर उठा लिया और कान से लगाकर बोली, आपको मेरी याद आ ही गई।
‘शीला, तुमने कैसे जान लिया कि मैं ही फोन कर रहा हूँ? "दूसरी ओर से गोविन्द राम ने आश्चर्य से पूछा।
तुम अकेली कब हो रानी...तुम्हारे पास मेरा नन्हा-मुन्हा रखवाला नहीं है ?
शीला की आंखें लाज से झुक गईं। उसने धीरे से बड़ी ममता से अपनी उभरी हुई साड़ी पर हाथ फेरा और मुस्कराकर बोली, आपका नन्हा-मुन्ना रखवाला तो पूरे दो महीने बाद मेरा अकेलापन दूर करेगा।
तभी फिर जो से बिजली कड़की और शीला के मुंह से निकला-‘उई मां !"
क्या हुआ?
गोविन्द राम ने घबरा कर पूछा।
बड़े जोर से बिजली कड़क रहीं है। बहुत डर लग रहा है। भगवान के लिए जल्दी आ जाइए।
रानी, मैंने यही बताने के लिए फोन किया है कि सुबह आठ बजे से पहले न आ सकूंगा।
हे राम...वह क्यों ?
आज गोदाम का सारा माल चैक करना है। खाता बनाने में मुनीम जी से जरा-सी चूक हो गई थी। इसलिए इन्कमटैक्स वाले आ धमकें हैं।
ऐसी बात है, तो आप इत्मीनान से काम कराइए।
तुम रधिया को बैडरूम में सुला लो।
आपको शायद याद नहीं रहा, रधिया तो शाम को ही चली गई, दो-तीन दिन में लौटेगी। किसी शादी में अपनी मां के साथ रानीपुर जा रही है।
ओह तब तो तुम बिल्कुल अकेली होगी।
आप मेरी चिन्ता न कीजिए, अपना काम पूरा करके ही आइएगा।
नहीं, मैं आ रहा हूँ। मुनीम जी से कहे देता हूँ, वह चैकिंग करा लेंगे।
नहीं, आप मेी वजह से अपना काम अधूरा न छोड़िए। मुनीम जी एक बार गलती कर के दोबारा भी कर सकते हैं।
लेकिन तुम?
आप मेरी चिन्ता न कीजए। आपको मेरी कसम, इत्मीनान से काम कीजिए।
अच्छा जरा पास तो आओ।
जी...।
जरा झुको तो सही...।
रिसीवर पर चुम्बन की आवाज गूँजी और शीला का चेहरा गुलाबी हो उठा। उसने शर्म से कांपते स्वर में कहा, हटिए भी।
फिर उसने जल्दी से रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया और दोनों हाथों से कलेजा थाम लिया। उसका दिल जोर से धड़क रहा था।
अचानक हवा के तेज झोंके से झरोखे केपट खुल गए। शीला भयभीत हो उठी। लेकिन फिर मुस्करा उठी।
अब मैं नहीं डरूंगी...क्योंकि...मैं सचमुच अकेली नहीं हूं।
अचानक उसके कानों में घंटी की आवाज गूंज उठी। उसने चौंक कर टेलीफोन की ओर देखा। घंटी फिर बजी। इस बार उसने महसूस किया कि टेलीफोन की घंटी नहीं बल्कि कॉल-बैल है। घंटी इस तरह बज रही थी, जैसे कोई बहुत ही अधीरता से घंटी बजा रहा हो या कोई बच्चा बजा रहा हो।
इस समय भला कौन हो सकता है?
शीला अपने आप में बड़बडाई।
फिर वह धीरे से उठी और दरवाजे पर पहुंच गई। कमरे से निकलकर वह हाल में पहुंची और फिर सदर दरवाजे पर पहुंचकर जोर से बोली,
कौन है?
मालकिन, दरवाजा खोलिए, मेहमान आए हैं।
बाहर से दरबान ने कहा।
मेहमान?
शीली ने आश्चर्य से कहा।
उसने हाथ बढ़ा कर दरवाजा खोला। और उसके साथ ही एक जोरदार आवाज सुनाई दी...म्याऊं...।
शीला चीखकर कई कदम पीछे हट गई। आगन्तुक ने जोर से कहकहा लगाया। शीला भौचक्की-सी देखती रह गई। दरबान मेहमान को इतना बेतकल्लुफ देखकर लौट गया।
आगन्तुक ने कहकहा लगाकर कहा-भाभी, इस तरह क्या देख रही हो? क्या मुझे पहचाना नहीं?
मदन,
शीला संभल कर बोली, तुम मदन ही तो हो ना।
क्यों शक है?
तुमने मुझे इतनी बुरी तरह डरा दिया कि मुझे कुछ ध्यान ही न रहा।
शीला दरवाजे में से हटती हुई बोली।
मदन हंसता हुआ अंदर आ गया। उसने ओवरकोट उतार कर सोफे पर फेंक दिया। हैट उतारकर शीला के सिर पर रख दिया।
शीला ने हैट उताकर हंसते हुए कहा-"तुम तो रत्ती भर भी नहीं बदले। छह साल अमेेरिका में रह कर भी वैसे-के-वैसे ही हो।
बहुत बदल गया हूँ भाभी, एकदम बदल गया हूँ।
सोफे पर बैठकर टांगे फैलाते हुए मदन ने कहा।
तुम मेरा शरीर नहीं देख रहीं। छह साल में मेरा वजन साठ पौंड बढ़ गया है।
लेकिन तुम अमेरिका से लौटे कब, न तार न चिट्ठी?
सस्पैंस...आज का जमाना सस्पैंस का है। मैंने सोचा था कि घर पहुंचते ही सब को अचंभे में डाल दूंगा। शाम को घर पहुंचा। पहले तो घरवालों ने पहचानने से ही इनकार कर दिया। बड़ी कठिनाई से उन्हें विश्वास दिलाया कि मैं मदन ही हूं।...घर में तीन-चार घंटे बिताने भी कठिन हो गए। नहा-धोकर घर से निकल पड़ा...अरे हां, गोविन्द कहां है? इतनी गहरी नींद सोता है, मरदूद।
फिर मदन खड़े होकर पुकारा-गोविन्द...ओ--गोविन्द...के बच्चे।
शीला हंसकर बोली-
वह घर में नहीं हैं।
फिर कहा हैं?
गोदाम में हैं। कुछ जरूरी काम है...सुबह आठ बजे तक आयेंगे।
उफ्फोह, इस मरदूद को रुपये कमाने का अब इतना चस्का लग गया है कि इन नशीली रातों में भी तुम्हें अकेली छोड़कर रुपए कमाने चला जाता है।
लजाकर शीला हँस पड़ी।
यह बात नहीं, कुछ जरूरी काम था।
अच्छा,
मदन शीला की आंखों में देखकर मुस्कराते हुए बोला,
इसका मतलब है कॉलेज के रोमियो-जूलियट के रंग-ढंग अभी तक वैसे ही हैं।
हटो भी,
शीला लजाकर बोली, तुम्हारी शरारत अभी तक कम नहीं हुई...चलो उठो, अपना हुलिया ठीक करो।
हुलिया तो बाद में ठीक होगा भाभी,
मदन उछल कर खड़ा हो गया, यहां तो भूख के मारे दम निकला जा रहा है। पहले जल्दी से खाने का प्रबन्ध करो।
ठीक है, तुम बाथरूम से लौटो, मैं खाने का इंतजाम करती हूं।
तुम क्यों?...क्या, इस कंजूस ने नौकर नहीं रखे?
नौकरानी है, लेकिन आज छुट्टी लेकर चली गई है। दूसरा नौकर शाम को ही चला जाता है।
ओह,
मदन चटखारे लेकर बोला, इसका मतलब है, आज तुम्हारे हाथ का खाना मिलेगा। मजा आ गया भाभी, जल्दी करो।
शीला हँस पड़ी। बोली, बाथरूम उधर है और इधर गेस्ट-रूम है... और हां, तुम यों ही हाथ हिलाते चले आ रहे हो।?"
नहीं भाभी, मेरी अटैची कार में है।
मदन तेजी से बाहर चला गया और शीला हँसती हुई चिकन में। गेस्ट रूम में आकर मदन ने अटैची खोली और कपड़े निकालने लगा। तौलिए के साथ ब्रांडी की बोतल भी निकल आई। मदन ने बोतल को चूम कर कहा, कहा, वाह, मेरी जान, मैं तो समझ रहा था कि तुम्हें कहीं भूल आया हूं।
उसने डाट खोलकर बोतल मुंह से लगा ली और गटागट करके कई घूंट पी गया। फिर बाथरूम में चला गया।
पन्द्रह मिनट बाद बाद बाथरूम में सीटी बजाता हुआ निकला और कमरे में आ गया। उसने जल्दी-जल्दी कुछ घूंट पिए और बोतल बंद करके आईने के सामने जा खड़ा हुआ। बाल संवारते वह फिर बिस्तर के पास आया और कुछ घूंट पीकर स्लीपिंग गाउन पहनता हुआ एक अंग्रेजी गीत गाना लगा।
अचानक दरवाजे के पास से आवाज आई-
क्या बहरे हो गए हैं, मदन बाबू ?
क्षमा करना भाभी, मैं जरा गा रहा था।
गा रहे थे या हलक फाड़ रहे थे। यह धुन कौन-सी थी?
इस धुन का नाम है काकटेल...हिन्दुस्तानी और अंग्रेजी गानों की काकटेल।
अच्छा चलो, खाना तैयार है।
बस एक मिनट भाभी।
मदन ने जल्दी से बोतल उठाई और कई घूंट हलक से उतार लिए। शीला चौंक पड़ी। मदन ने बोतल खाली करके बिस्तर पर फेंक दी और शीला की ओर मुड़ा।
क्या देख रही हो भाभी?
तुम शराब पीने लगे हो मदन?
क्या ब्रांडी शराब नहीं होती?
मैं छह साल अमेरिका में रहकर लौट रहा हूँ भाभी। वहाँ तो अगर चार घंटे न पियो, तो निमोनिया हो जाए। जिस तरह यहाँ तुम चाय-कॉफी से अपने मेहमान की खातिर करती हो, वहाँ ब्रांडी से की जाती है।
यहां और वहां में धरती-आकाश का अंतर है। तुम्हें यह याद रखना चाहिए कि तुम अमेरिकन नहीं भारतीय हो।
क्या पिछड़ेपन की बातें ले बैंठी। मेरा भूख के मारे दम निकला जा रहा है।
शीला ड्राइनिंग रूम की ओर चल दी। मदन भी उसके पीछे-पीछे चल दिया।
डाइनिंग टेबिल पर भोजन परसा हुआ था।
अरे वाह भाभी, मजा आ गया।
मदन जल्दी-जल्दी खाने लगा।
सच कहता हूं भाभी, भारतीय ढंग का खाना तो एक सपना बन गया था।
इसीलिए जंगलियों की तरह खा रहे हो। तुम्हें इस तरह खाते देख कर कोई विश्वास ही नहीं करेगा कि तुम अमेरिका से आए