Discover millions of ebooks, audiobooks, and so much more with a free trial

Only $11.99/month after trial. Cancel anytime.

Akela Angrez (अकेला अंग्रेज)
Akela Angrez (अकेला अंग्रेज)
Akela Angrez (अकेला अंग्रेज)
Ebook399 pages3 hours

Akela Angrez (अकेला अंग्रेज)

Rating: 0 out of 5 stars

()

Read preview

About this ebook

एक ब्रिटिश प्रोफेसर के बेटे को पता चलता है कि उसकी जड़ें भारत मे हैं। वो उन्हें खोजता हुआ भारत आता है। और फिर शुरू होती है हालात के हाथों दूर हुए अपनों और अपने पुरखों की बीती जिन्दगी की तमाम खट्टी, मीठी, कड़वी, हैरतअंगेज और चौंकाने वाली घटनाओं की श्रृंखला। यहाँ के लोगों से अपना करीबी लेकिन विदेशी होने का अजीब सा अहसास। कहीं अपनापन तो कहीं खतरा। हिन्दुस्तान की तमाम गैरमुनासिब दिक्कतों के लिए सिर्फ अंग्रेजों की ओर उंगली उठाने के बजाय अपने इतिहास को एक विश्लेषणात्मक नजरिया देने की कोशिश।.
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateApr 15, 2021
ISBN9789390504183
Akela Angrez (अकेला अंग्रेज)

Related to Akela Angrez (अकेला अंग्रेज)

Related ebooks

Related categories

Reviews for Akela Angrez (अकेला अंग्रेज)

Rating: 0 out of 5 stars
0 ratings

0 ratings0 reviews

What did you think?

Tap to rate

Review must be at least 10 words

    Book preview

    Akela Angrez (अकेला अंग्रेज) - Sanjay Agnihotri 

    -

    एक

    लंदन की दोपहर, यही कोई साढ़े बारह का वक़्त होगा। केविन ने नेनसी मेनशन के पोर्टिको में गाड़ी पार्क की और हड़बड़ाता हुआ तेजी से घर के अंदर घुसा, ‘माँ! माँ!’

    माँ के कमरे से उनकी आवाज आयी, ‘मैं यहाँ हूँ अपने कमरे में, घबरा मत, अभी जीवित हूँ मरी नहीं।’

    बुरी तरह बौखलाया केविन लगभग दौड़ते हुए अपनी माँ के कमरे में घुसा तो पाया कि उसकी माँ डेलसी इतमीनान से अपने बिस्तर पर अधलेटी संतरे के जूस की चुस्की ले रहीं है। जीवन का शतक लगा चुकी डेलसी के चेहरे पर थकान परन्तु इत्मीनान था। केविन का घबराया चेहरा और सूखे होठ देख डेलसी बोली, घबराने की कोई बात नहीं अपने फैमिली डॉक्टर गेविन आये थे वो अभी अभी इंजेक्शन और दवा दे के गए हैं अब मैं ठीक हूँ।’

    केविन के चेहरे का तनाव थोड़ा कम हुआ, ‘वो जैसे ही आपने मेरे दफ्तर में अपनी तबीयत बिगड़ने की खबर की मैंने डॉ. गेविन को सूचित कर आपको अटेण्ड करने को बोल दिया था।’

    ‘जानती हूँ, डॉ. गेवीन ने बताया था। वैसे, मैंने भी तुझे फ़ोन करने से पहले उन्हें ही सूचित किया था वो तुरन्त ही आ गए थे क्योंकि सौभाग्य से इस समय उनके क्लीनिक में भीड़ भी नहीं थी। बगल की इमारत में डॉक्टर होने का यही तो फायदा है। बैठ जाओ मुझे तुमसे बात करनी है।’

    केविन को अजीब सा लगा पर वो पास पड़ी कुर्सी खींच के बैठ गया। डेलसी ने नर्स को आवाज देकर केविन के लिए संतरे का जूस मंगवाया। केविन का गला बुरी तरह सूख रहा था अतः जूस का गिलास सामने आते ही उसने उठा लिया और एक बड़ा सा घूंट भरकर बोला, ‘ऐसी क्या एमेर्जेंसी है जो अचानक मुझे युनिवर्सिटी से बुला के आप ये सब बातें कर रहीं हैं?’

    ‘देखो बेटा, वैसे तो डॉ. गेविन के हिसाब से मैं अभी खतरे से बाहर हूँ पर आज जिस तरह से मेरी तबीयत खराब हुई थी व डॉ. गेविन से परामर्श करने के बाद मुझे लगता है कि अब देर करना उचित नहीं।’

    ‘मैं समझा नहीं।’

    ‘तुम्हें मेरे लिए या यों कहूँ की हमारे परिवार के लिए कुछ काम करने हैं और उन्हें करने में काफी समय लग सकता है वैसे तुम्हारी उम्र भी तो 75 का अंक छू रही है। वैसे मुझे प्रसन्नता है प्रोफेसर डॉ. केविन जोन्स कि अपनी शिक्षा व अनुभव के आधार पर देर से सही पर अब तुम इस कार्य को करने के लिए पूर्ण सक्षम हो। अतः जितनी जल्दी तुम्हें बता दिया जाय उतना अच्छा है।’

    ‘किस बारे में और क्यों?’ केविन ने अकुलाकर पहलू बदला।

    ‘कुछ जरूरी बातें जो अबतक तुम्हें ज्ञात नहीं हैं उन्हें तुम्हें बता दूँ ताकि जल्द से जल्द तुम उनपर कार्यवाही प्रारम्भ कर दो।’

    ‘ये आप कैसी बातें कर रही है आखिर डॉक्टर ने ऐसा क्या कह दिया कि आप इतना...।’

    ‘बीच में मत बोलो और सुनो।’ डेलसी का स्वर गम्भीर के साथ सख्त हो उठा, ‘अबतक तुम जो कुछ अपने पिता के बारे में जानते हो वो सब गलत तो नहीं परन्तु सही भी नहीं है।’

    ‘मैं समझा नहीं।’

    ‘इसे समझाने के लिए मुझे तुम्हें थोड़ा विस्तार से बताना होगा दरअसल मेरे पति यानि स्वर्गीय रोबर्ट जोन्स तुम्हारे पिता नहीं मौसा थे हमने तुम्हें अपनी बहन यानि तुम्हारी माँ एलिस जोन्स से गोद ले लिया था इसलिए वास्तव मैं तुम्हारी माँ नहीं मौसी हूँ।’

    इतना कहकर डेलसी ने शायद केविन की प्रतिक्रिया जानने के उद्देश्य से उसकी तरफ देखा।

    केविन को कुछ समझ नहीं आ रहा था और यही भाव उसके चेहरे पर भी थे।

    डेलसी ने आगे बोलना शुरू किया, ‘तुम्हारे वास्तविक पिता यानि एलिस के पति एक भारतीय थे और उनका नाम राजा राघवेंद्र सिंह जादौन था और तुम्हारा वास्तविक नाम केविन जोन्स नहीं कुँवर केवल सिंह जादौन है तुम अपने पिता की रियासत चन्दनगढ़ के राजकुमार हो।’

    ‘जहाँ तक मुझे पता है भारत में अब कोई रियासत नहीं रही और 1971 से सरकार ने प्रीवी पर्स (Privy Purse) भी खत्म कर दिया है और सभी तथाकथित राजकुमार कौड़ी के तीन हो गए हैं।’ केविन ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा।

    ‘मैं जानती हूँ और मैं तुम्हें ये सब इसलिए नहीं बता रहीं हूँ कि तुम वहाँ जा कर अपनी रियासत, खजाना या प्रीवी पर्स के दावेदार बनो। बात दरअसल ये है कि वहाँ तुम्हारी एक बहन यानि राजा राघवेंद्र और एलिस की पुत्री रहती है और मैं चाहती हूँ कि तुम उसे जा के खोजो।’ इसबार डेलसी एक ही सांस में बोल गयी।

    ‘अभी अभी आपने बताया की आपने मुझे अपनी बहन यानि मेरी माँ एलिस जोन्स से गोद लिया था पर मेरी बहन को तो नहीं लिया था फिर आप उसे क्या सिर्फ़ जिज्ञासावश ढूँढना चाहती हैं या कोई और कारण है?

    ‘बेटे ये नेनसी मेनशन और ये सब इतनी बड़ी जायदाद तेरे मौसा रोबर्ट जोन्स की नहीं तेरी नानी नेनसी की है इसमें तेरी माँ एलिस का आधा हिस्सा है, किसी का हक मार लेने का बोझ मैं अपने सीने पर ले कर मरना नहीं चाहती।’ डेलसी ने समझाया।

    ‘आपने खुद ही कहा कि मैं एलिस का बेटा हूँ तो उस नाते मैं उनका भी वारिस हुआ या नहीं?’

    ‘एक तरह से हुए जरूर पर अपनी माँ के हिस्से में से सिर्फ़ आधे के बाकी आधा तेरी बहन का है आखिर जो तेरी बहन का हक है वो उसे मिलना चाहिए या नहीं?’

    ‘ओह! हाँ! ये बात तो है।’ केविन को अपनी गलती का अहसास हुआ, अतः क्षमा मांगते हुए बोला, ‘क्षमा करें मुझे इसका ख्याल नहीं आया। परन्तु आपने अभी खुद कहा कि मेरी उम्र 75 वर्ष हो रही है इस काम को इतना विलंब से करने का औचित्य अभी भी मेरी समझ में नहीं आ रहा।’

    ‘इसे समझाने के लिए मुझे संक्षेप में तुम्हें तुम्हारे माँ बाप की प्रेमकहानी सुनानी होगी।’

    ‘ठीक है सुनाइये।’

    दो

    डेलसी ने बताना शुरू किया, ‘राजस्थान में एक बहुत बड़ा जिला था बाघमेर। मेरे पति यानि तुम्हारे मौसा जिन्हें तुम अभीतक अपना पिता समझते थे उस जिले के कलेक्टर थे। बाघमेर में कई रियासतें थीं। उन्हीं में से एक रियासत चन्दनगढ़ की हद हमारे कलेक्टर बंगले से लगी हुई थी। वहाँ का राजा एक नवयुवक था, राजा राघवेंद्र सिंह जादौन। बेहद खूबसूरत, करीब सवा छः फिट ऊंचा, सुगठित शरीर वाला गोराचिट्टा हंसमुख युवक राघवेंद्र। आंखों में ऐसा सम्मोहन कि जो देखे बस देखता ही रह जाये। राजकाज में भी अत्यंत निपुण था। उसकी रियासत में प्रजा खुशहाल थी, उद्योग धंधे फलफूल रहे थे। टैक्स समय से जमा होता था। जाहिर है कलेक्टर को टैक्स समय से मिल जाय तो वो खुश रहेगा ही। वैसे तुम्हारे मौसा के, खुश रहने का एक कारण और भी था, वो ये कि राघवेंद्र भी उनकी तरह बैडमिंटन का शौकीन था और बढ़िया खेलता था। जब भी मौका मिलता तो कभी कलेक्टर के बंगले पर तो कभी राजा साहब के जादौन महल में दोनों जम के बैडमिंटन खेलते। धीरे धीरे दोनों परिवारों में आना जाना इतना बढ़ा कि ये पता ही न चला कि कब मेरी बहन एलिस यानि तुम्हारी माँ उसे दिल दे बैठी और हमें उसकी शादी राघवेंद्र से करनी पड़ी। वो एलिस से राजराजेश्वरी महारानी यामिनी सिंह जादौन बन गयी। साल भर में तुम पैदा हुए। बड़ी धूमधाम से तुम्हारा नामकरण हुआ कुँवर केवल सिंह जादौन। मुझे इतने लंबे चौड़े भारतीय नाम बोलने में दिक्कत होती थी सो मैंने तुम्हें केविन बुलाना शुरू कर दिया। समय बीतता गया और 7 वर्ष बाद तुम्हारी बहन पैदा हुई। उसका भी बड़ी धूम धाम से नामकरण किया गया राजकुमारी माधवी सिंह जादौन। मेरा बड़ा मन था कि उसका नाम मार्गरिटा रखने का सो मैं उसे मार्गरेट कहती थी। मैंने ये महसूस किया कि मार्गरेट के पैदा होने के बाद स्वाभाविक रूप से वो लोगों के आकर्षण का केंद्र हो गयी और तुम्हारी गिनती बड़ों में होने लगी थी। तुम अपने आपको उपेक्षित न अनुभव करो इसलिए मैंने अपना ध्यान तुम पर केन्द्रित किया तभी से तुम मुझे बहुत हिल मिल गए थे। वैसे भी हमारा अपना कोई बच्चा नहीं था अतः मेरा और तुम्हारे मौसा का सारा प्यार तुम्हारे लिए ही था। करीब दो वर्ष बाद की बात है, तुम्हारे मौसा और मैंने यहाँ लंदन में छुट्टियाँ मनाने आने का निश्चय किया तो तुमने भी साथ आने की जिद की। दोनों परिवारों में इतना सौहार्द था कि तुम्हारी जिद न मानने का कोई कारण ही नहीं था और तुम्हारी जिद मान ली गयी। मेरे पति ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर आनन फानन में तुम्हारा पासपोर्ट वीसा वगैरह बनवा लिया और तुम हमारे साथ यहाँ लंदन छुट्टियाँ मनाने चले आए। हम लंदन में ही थे कि खबर आई कि ब्रिटिश राज ने भारत को आज़ाद घोषित कर दिया है। सभी ब्रिटिश अधिकारियों को अपना अगर कुछ या जो कुछ भारत में है उसे समेट कर वापस इंग्लैंड जाने के निर्देश मिले। हमने भारत में न तो कोई जमीन जायदाद बनाई थी न ही वहाँ हमारा कोई माल असबाब था क्योंकि भारत से हमें कोई खास लगाव नहीं था सिवाय इसके कि मेरी बहन की वहाँ एक हिंदुस्तानी राजा से शादी हुई थी। मैंने उसे खबर की कि मेरे लिए अब भारत वापस आने का कोई कारण नहीं है इसलिए मैं वापस नहीं आ रही और मैं अपने पति के असर का इस्तेमाल कर तुम और तुम्हारे पति के इंग्लैंड में बसने का बंदोबस्त कर सकती हूँ। उसका जवाब आया कि उसके पति एक राजा हैं और वो भारत नहीं छोड़ेंगे और न ही वो अपने पति को छोड़ के इंग्लैंड वापस आएगी। साथ ही उसने हिदायत दी कि जल्द से जल्द उनके बेटे को भारत भेज दिया जाय। तुम्हें भेजने के नाम पर मेरा दिल बैठने लगा क्योंकि इतने दिनों में मेरा लगाव तुम से और बढ़ गया था। मैंने इस बारे में अपने पति से बात की। उन्होंने एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा और कहा कि घबराआ नहीं मैं जाऊँगा तो राघवेंद्र को समझाने का प्रयत्न करूँगा। मेरे पति को तो नए कलेक्टर को चार्ज देने भारत जाना ही था। वो हिंदुस्तान गये पर कभी वापस नहीं आये। उनकी लाश आयी। किसी ने उनकी वहाँ हत्या कर दी। ब्रिटिश गवर्नमेंट ने उन्हें शहीद घोषित कर अपने पदक से सम्मानित किया और मुझे पता नहीं किस तिकड़म से वारविडो लेडी डेलसी जोन्स बना दिया। पति कि मौत कि खबर सुन दुखी होने के साथ साथ मैं बहुत घबरायी क्योंकि मैंने सोचा कि पति कि मौत के बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट में जो उनका प्रभाव था वो जाता रहेगा और मुझे तुम्हें वापस भेजना ही पड़ेगा। हालाँकि बाद में ये मेरा भ्रम साबित हुआ। हुआ यों कि कुछ ही दिनों में राजराजेश्वर राजा राघवेंद्र सिंह जादौन के वकील का नोटिस आया कि उनके पुत्र को शीघ्र वापस भेज दिया जाय। बुझे मन से मैं तुम्हें वापस भेजने की तैयारी करने लगी। इसी उद्देश्य से जब मैं अपने पति की अलमारी में तुम्हारा पासपोर्ट खोज रही थी तो तुम्हारे पासपोर्ट के साथ, मेरे पति द्वारा तुम्हें राजा राघवेंद्र सिंह से गोद लेकर अपना दत्तक पुत्र बनाने का दस्तावेज मिला। मेरी खुशी और आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। जब मैंने तुम्हारे पासपोर्ट को गौर से देखा तो उसमें भी पिता के नाम की जगह मेरे पति का नाम लिखा था। भारत जाते समय मेरे पति की उस रहस्यमयी मुस्कान का मतलब अब मुझे समझ में आया। उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर राजा राघवेंद्र सिंह से उनका पुत्र छीन कर मुझे मेरे बुढ़ापे का सहारा दे दिया था। फिर क्या था हमारे वकील ने, राजा राघवेंद्र सिंह के वकील के नोटिस के जवाब में, ये सारी बातें लिख, उन्हें उनके पुत्र पर अपने पिता होने के अधिकार से वंचित हो जाने के कारण, वापस न भेजे जाने की बात लिख कर भेज दी। राजा राघवेंद्र सिंह ने भारत सरकार व कोर्ट की मदद से बहुत कोशिश की पर कुछ न कर सके।’

    इतना कहकर डेलसी ने लंबी साँस ली और आगे बोलना शुरू किया, ‘अब आते हैं असली मुद्दे पर तुम्हें भारत जाकर अपनी बहन को खोजने के साथ साथ अपने मौसा की हत्या का भी सुराग लगाना होगा।’

    ‘क्या आपको नहीं लगता की इस उम्र में इतनी दौड़ भाग करना मेरे लिए मुश्किल होगा? अगर यही बातें आपने मुझे आज से 20 साल पहले बताई होतीं तो क्या ये मेरे लिए आसान नहीं होता?’

    ‘मैं जानती हूँ परन्तु किसी भी कार्य को करने के लिए शक्ति और प्रभाव की आवश्यकता होती है। आज ब्रिटेन ही नहीं सारी दुनिया में फिसिक्स में प्रो डॉ. केविन जोन्स का नाम और प्रभाव है जोकि 20 साल पहले नहीं था। अब न तो कोई जल्दी तुम्हारे ऊपर शक करेगा न हाथ डाल सकेगा। मुझे इस बात का इल्म है और था कि उम्र और शारीरिक क्षमता भी चाहिए इस तरह के कामों के लिए और इसीलिए मैंने तुम्हारे बेटे डेविड को पढ़ाई के साथ साथ न सिर्फ़ स्पोर्ट्स, शारीरिक प्रशिक्षण और मार्शल आर्ट्स वगैरह की ट्रेनिंग भी दिलवाई है बल्कि उसके दिमाग में भारत के विरुद्ध जहर भी भरा है। अब वो यानि डॉ. डेविड जोन्स पूरी तरह से ये कार्य करने के योग्य हो चुका है। कहने का मतलब इस मिशन में तुम अकेले नहीं होगे, डेविड भी तुम्हारे साथ जाएगा। सारा काम वो करेगा तुम्हें सिर्फ़ अपने अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव की मदद से उसकी सुरक्षा का ध्यान रखते हुए उसका मार्ग सुगम करना होगा बस।’

    ‘ओह शायद इसीलिए मुझे और डेविड को बचपन से ही हिन्दी उर्दू भी सिखाई गयी थी?’

    ‘हाँ। पर इतना काफी नहीं, तुम्हारी हिन्दी उर्दू बोलने का लहजा, स्वर का उतार चढ़ाव यानि उच्चारण भारतियों, पाकिस्तानियों जैसा होना चाहिए।’

    ‘हूँ, क्या भारत में भी कोई सम्पर्क व्यक्ति है आपका?’

    ‘बिलकुल है चूंकि तुम्हारे मौसा सम्मानित शहीद थे अतः उनके विभाग वाले अभी भी हमारी मदद करते हैं उन्हीं का एक सम्पर्क व्यक्ति भारत में है और सबसे बढ़िया बात है कि वो पाकिस्तानी है या यों कहें कि पाकिस्तानी एजेंट है। उसने कुछ जानकारी भी एकत्र की है। इस बात का संकेत उसने अपने रावलपिंडी के दफ्तर में भेजा है। पकड़े जाने के डर से वो अपने दफ्तर को भी मात्र संकेत ही भेजता है। बाकी कोई भी जानकारी आमने सामने बातचीत होने पर ही देता है।’

    ‘उसका नाम पता तो दिया होगा मौसा जी के दफ्तर वालों ने। आखिर मैं उससे मिलूँगा कैसे पहचानूँगा कैसे?’

    ‘नहीं नाम पता उनके पास भी नहीं है, इसके लिए रावलपिंडी जाना होगा जहाँ उनका कोई एजेंट संपर्क कर उसकी जानकारी देगा।’

    ‘क्या आप मौसा जी के दफ्तर की मदद से मेरे तीन काम करवा सकती हैं?’ केविन ने कुछ सोचते हुए पूछा।

    ‘क्या?’

    ‘एक तो मुझे ब्रिटिश हाइकमीशन नई दिल्ली में किसी बड़े प्रभावशाली पद पर नियुक्त करवा दें। दूसरा डेविड को रावलपिंडी के किसी विश्वविद्यालय में ‘भारत में ब्रिटिश राज’ विषय पर भाषण देने के बहाने से भेजने कि व्यवस्था कर दें। तीसरा डेविड को इसी विषय यानि ‘भारत में ब्रिटिश राज’ पर शोध करने के उद्देश्य से शोध छात्र का वीसा भी दिलवा दें ताकि रावलपिंडी से जब वो भारत आए तो किसी को शक न हो।’

    ‘नाऊ यू आर टॉकिंग। समझो तुम्हारा काम हो गया?’

    तीन

    अगले कुछ महीनों तक डेलसी, केविन और डेविड तैयारी में बेहद व्यस्त थे। एक तो केविन और डेविड की हिन्दी उर्दू सवांरने के लिए उन तीनों ने ये नियम बना लिया कि आपस में हिन्दी उर्दू में ही बात करेंगे। डेलसी बढ़िया हिन्दी उर्दू बोलती थी सो वो भी केविन और डेविड को उच्चारण सीखने में मदद करती। तीनों ने खूब हिन्दी फिल्में देखीं। डेलसी सीन रिपीट कर कर के उन्हें चेहरे के हाव भाव और बोलने के अंदाज पर ध्यान देने को कहती और उनसे उसकी नकल कर अभ्यास करने को कहती। खूब गाने, शायरी सुनी और गायी जाती।

    उम्र के तकाजे से डेलसी और केविन स्वयं दौड़ भाग नहीं कर पाते थे। अतः डेविड को ही दौड़ना पड़ता था। डेलसी को किसी सरकारी आफिसर से बात कहलवानी हो तो डेविड को जाना पड़ता क्योंकि गोपनीता बरतने के उद्देश्य से वो फ़ोन नहीं इस्तेमाल करते। केविन को कोई सामान मंगाना हो तो डेविड दौड़ता। ऊपर से तैयारी को यथा संभव गुप्त रखने के ख्याल से डेविड अपनी विश्वविद्यालय से मिली कार का उपयोग करने के बजाय, इस संपन्न, शक्तिशाली लंदन की बुरी तरह चरमराई भूमिगत मेट्रो रेल का इस्तेमाल करता। मेट्रो के डिब्बे भारतीय हिन्दी फिल्मों में देखी पुरानी बसों से अधिक खचाखच भरे हुए होते। स्टेशनों पर गंदगी, टूटी बोतलों और डिब्बों के बीच दूसरे बदहवास दौड़ते-भागते लोगों के साथ डेविड भी भागता दौड़ता और कुढ़ता रहता। ऊपर से सरकारी कार्यवाही पूरी होते होते छः महीने लग गए। लेकिन इससे एक फायदा हुआ वो ये कि केविन और डेविड को अपनी हिन्दी उर्दू संवारने का पूरा मौका मिल गया और वो बढ़िया हिन्दी उर्दू बोलने लगे। अब दोनों को हिन्दी उर्दू बोलने में मजा आने लगा था। दोनों बड़े मजे से हिन्दी फिल्में देखते और उनके संवाद एक दूसरे से बोलते। खूब गाने, शायरी सुनते और गाते थे।

    छः महीने बाद सबसे पहले केविन को डेपुटी हाइ कॉमिश्नर नई दिल्ली का नियुक्त पत्र मय हवाई जहाज के टिकिट के मिला। आज जब केविन अपने पूरे साजोसामान के साथ सजधज के लंदन के सबसे बड़े हीथ्रो हवाई अड्डे के टर्मिनल-3 पर पहुँचा तो ऐसे चौंका जैसे आसमान से गिरा हो। दरअसल वो आज तमाम वर्षों के बाद हवाई अड्डे पर आया था। उसे ऐसा लगा कि जैसे वो भारतीय फिल्मों में देखे भारत के किसी पुराने बस स्टैंड या स्टेशन पर पहुँच गया हो। वैसे ही छत से लटकते तार, पुरानी गाइड रस्सियाँ और पुराने टेबल-कुर्सियों पर अँगरेज एयर पोर्ट अधिकारियों की बजाय अधिकांश भारतीय या दक्षिण एशियाई चेहरे थे। सामान ढोने के लिए निहायत घिसी-पिटी ट्रॉलियाँ और पिटे-पिटाए फटिचर से दिख रहे अँगरेज स्त्री-पुरुष।

    पहले अधिकतर सफाई कर्मचारी भारतीय दिखते थे। आज एक भी नहीं दिखा रहा था। बल्कि ड्यूटी फ्री शॉपस का नियंत्रण और दूसरे महत्वपूर्ण स्थानों और अधिकांश अधिकारी भारतीय या गैर अंग्रेज दिख रहे थे। केविन जानता था कि पूरे लंदन की बैंकिंग व्यवस्था, सॉफ्टवेयर कंपनियाँ, चिकित्सा व्यवस्था, परिवहन व्यवस्था को संभालने की 30-40 प्रतिशत जिम्मेदारी भारतीय संभाले हुए हैं। वित्तीय कंपनियों में शीर्ष पदों पर भारतीय युवा बैठे हुए हैं। ये सब सोच सोच के उसका मन कसेला हो रहा था।

    हवाई जहाज में बैठा केविन सोच रहा था कि पहले कभी साउथ हॉल क्षेत्र को प्रवासी भारतीयों की बस्ती माना जाता था लेकिन अब लंदन की अधिकांश बस्तियों में भारतीय-पाकिस्तानी, ईरानी, अफगानी, अफ्रीकी छाए हुए दिखते हैं। भारत को स्वतन्त्रता मिलने के 63 साल बाद ये कह सकते हैं कि यदि भारतीय मूल के लोग लंदन छोड़ दें तो एक हफ्ते में ही यहाँ सब कुछ ठप हो जाएगा। यही सब सोचते सोचते वो दिल्ली पहुँच गया।

    उसके एक महीने बाद डेविड को भारत में ब्रिटिश राज पर शोध करने का छात्र वीसा मिला। अभी उसने दिल्ली जाने के लिए हवाई जहाज का अगले महीने की 12 तारीख का टिकिट खरीदा ही था कि रावलपिंडी के कई विश्वविद्यालयों से भारत के ब्रिटिश राज पर बोलने का निमंत्रण आ गया। जवाब में डेविड ने उन्हें एक पत्र लिखा जिसमें उन सभी विश्वविद्यालयों का हवाला देते हुए समझाया कि आप सब एक ही टॉपिक पर मेरा लेक्चर कराना चाहते हैं। अलग अलग इतने लेक्चर देना न तो संभव है न ही उचित। अतः यदि आप सब संस्थाएं संयुक्त रूप से अगले महीने की 15 तारीख के आस पास की कोई तारीख को एक बड़ा हॉल बुक कर लें तो वहाँ एक ही लेक्चर में सभी विश्वविद्यालय लाभान्वित हो जाएँगे। ये सुझाव सभी विश्वविद्यालयों को पसंद आया और सर्वसम्मति से 16 तारीख को न्यूगॉर्डन कॉलेज के ऑडिटोरियम में डॉ. डेविड जोन्स का लेक्चर होना तय हुआ। इस कारण से डेविड ने अपना हवाई जहाज का टिकिट वाया रावलपिंडी में परिवर्तित करवा लिया।

    कहने का मतलब सबकुछ अत्यन्त सावधानी से इतने स्वाभाविक ढंग से किया गया कि सारी दुनियाँ को ये सब किसी प्लान का हिस्सा न लगे।

    चार

    डॉ. डेविड जोन्स रावलपिंडी पहुंचे और न्यूगॉर्डन कॉलेज के ऑडिटोरियम में ‘ब्रिटिश राज में भारत’ विषय पर अत्यंत प्रभाव शाली धुआंधार लेक्चर दिया। जिसके कुछ अंश ऐसे भी थे जिनसे न सिर्फ़ विद्यार्थियों में बल्कि मीडिया में भी माहौल काफी गरम हो गया था और अगले दिन के अखबारों में कुछ इस तरह छपाः

    ‘कल इंग्लैंड से आये डॉ. डेविड जोन्स ने न्यूगॉर्डन कॉलेज ऑडिटोरियम में ‘भारत में ब्रिटिश राज’ विषय पर बोलते हुए अपनी साफ उर्दू से पूरे पाकिस्तान को चौका दिया। उन्होंने उस समय की अर्थव्यवस्था पर बोलते हुए कहा कि

    Enjoying the preview?
    Page 1 of 1