Bhayanak mahal: भयानक महल
By Vicky Anand
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Bhayanak mahal - Vicky Anand
आनन्द
भयानक महल
कितना अजीब इत्तफाक है सूरज ! कल तक हम एक-दूसरे से नितांत अपरिचित थे और आज कितने करीब हैं। कल अगर तुम ठीक वक्त पर वहां न पहुंच गए होते तो वो बदमाश न जाने मेरा क्या हाल करते। कैसी दुर्गति बनाते। मैं तो कहीं डूबकर अपनी जान दे देती। आज इस समय इतने बड़े होटल में, इतनी बड़ी पार्टी में तुम्हारे सामने बैठी शैम्पेन न पी रही होती, बल्कि मेरी लाश का पोस्टमार्टम किया जा रहा होता। ये बड़े-बड़े अधिकारी‒पुलिस कमिश्नर, पुलिस सुपरिन्टेंडेंट और मजिस्ट्रेट मेरी खूबसूरती को आंखें गड़ाए ईर्ष्यालु भावों के साथ न देख रहे होते, बल्कि डॉक्टर द्वारा मेरी लाश की चीर-फाड़ चल रही होती। उफ् पोस्टमार्टम...!
बेहद खूबसूरत नवयुवती मीना श्रेष्ठ पोस्टमार्टम की कल्पना से सहमती हुई बोली।
बीती बातों को भूल जाओ मीना, इस बात को भी भूल जाओ कि तुम्हें ईर्ष्यालु भावों के साथ देखा जा रहा है। यूं समझो कि इस तरह तो तुम्हें हमेशा देखा ही जाएगा। दरअसल तुम अपनी खूबसूरती से नावाकिफ हो।
सूरज ने उसे आसक्त भावों से निहारते हुए कहा।
डिटेक्टिव इंस्पेक्टर सूरज सोलंकी सहज ही किसी साधारण सुंदरी से प्रभावित होने वाली शख्सियतों में से नहीं था। मीना श्रेष्ठ वास्तव में बेहद सुंदर थी। उसके व्यक्तित्व में फिल्मी तारिकाओं जैसा आकर्षण था। उसे देख बरबस ही किसी अप्सरा की अनुभूति होती थी।
क्या मैं वाकई खूबसूरत हूं सूरज ?
उसने पैग खाली करते हुए सूरज से पूछा। सूरज को देखने का, उसकी आंखों में उतर जाने का उसका अलग अंदाज था।
हां मीना! खूबसूरती क्या होती है, इस एहसास को तुमसे मिलने के बाद, तुम्हें देखने के बाद ही समझ सका।
लेकिन मुझे तो ऐसा नहीं लगता। अपने आपको आईने में देखती हूं तो हर दिन जैसी ही दिखाई देती हूं।
फूल को अपनी खूबसूरती का एहसास नहीं होता।
फिर भी...।
और मत पियो मीना। तुम पहले ही बहुत पी चुकी हो।
सूरज ने उसे रोकने की कोशिश करते हुए कहा।
मत रोको मुझे सूरज ! आज मैं गले तक नशे में डूब जाना चाहती हूं।
तुम बहक जाओगी।
बहकने का तो सवाल ही नहीं उठता हनी। अभी वह शराब नहीं बनी जो मीना श्रेष्ठ के कदम बहका सके।
लेकिन इतनी ज्यादा पीने की जरूरत क्या है ? मैं नहीं चाहता कि तुम इतनी ज्यादा शराब पियो। बल्कि चाहता यह हूं कि तुम्हारी यह पीने की आदत बिल्कुल छूट जाए।
आज न रोको डियर ! फिर तुम जो कहोगे मानूंगी।
सूरज ने उसका कोमल हाथ मुक्त करके अपने लिए सिगरेट सुलगा ली। उसने मीना को पीने से रोकने का अपना इरादा मुल्तवी कर दिया। मीना पीती रही और वह सिगरेट का धुंआ उड़ाता हुआ उसे चुपचाप देखता रहा। उसके चेहरे पर नशे की तपन धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी। अंत में वह टेबल पर सिर रख कर बैठ गयी।
उस पार्टी में कई अधिकारी उसकी ओर देख रहे थे। मीना का इस प्रकार टेबल के टॉप पर सिर रखकर नेत्र बंद कर लेना उसे विचित्र-सा लगा। वह अपने आपको उलझन में घिरा हुआ अनुभव करने लगा था।
ऐ...मीना ! उठो...प्लीज उठो। देखो सब लोग हमारी तरफ देख रहे हैं।
वह मीना को उठाने की कोशिश करता हुआ परेशान स्वर में बोला।
हाथ मत लगा साले हलकट...!
मीना ने उसका हाथ झटकते हुए नशे में डूबे स्वर में कहा।
मीना !
यू बास्टर्ड! मुझसे दूर हट जा।
एकदम से खड़ी होती हुई मीना ने अपने सामने रखा शैम्पेन का पैग सूरज के मुंह पर उलट दिया।
मीना...क्या हो गया है तुम्हें, सारे लोग देख रहे हैं।
लोगों को देखने का मौका तू दे रहा है गलीज चूहे। तूने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी। मुझे कहीं का नहीं रखा। मैं तेरा मुंह नोंच लूंगी हरामजादे !
वहशी दरिन्दे की भांति गुर्राती हुई वह सूरज के ऊपर टूट पड़ी।
सूरज ने कल्पना भी नहीं की थी कि उसकी प्रेयसी उसके ऊपर वार कर बैठेगी। उसने अपने आपको बचाने का प्रयास भी नहीं किया, क्योंकि उसे ऐसी आशा ही नहीं थी। मीना के नुकीले नाखूनों की खरोंच उसके चेहरे पर बन गयी।
वह पीछे हटा।
मीना...मीना...रुक जाओ।
लेकिन मीना के ऊपर पागलपन छाया हुआ था। वह वार पर वार करती चली जा रही थी।
एकाएक ही सूरज को क्रोध आ गया। उसने एक झन्नाटेदार थप्पड़ मीना के गाल पर जमा दिया।
पार्टी तमाशे में परिवर्तित हो गई।
मीना गालियां बकती हुई सूरज के ऊपर झपट रही थी। जोश में भरे सूरज का हाथ पुनः उठ गया। दूसरा हाथ कुछ अधिक ही शक्तिशाली पड़ा था। इस प्रहार ने मीना के चेहरे का आकार बदल डाला।
पूरी पार्टी सन्नाटे में आ गयी।
इससे पहले कि कोई कुछ कहता, सूरज लम्बे-लम्बे डग भरता वहां से निकलता चला गया।
उसके बाद हॉल में उपस्थित व्यक्तियों के मध्य कानाफूसी आरम्भ हो गयी।
कौन था वह ?
डिटेक्टिव इंस्पेक्टर सूरज सोलंकी।
और यह लड़की ?
मीना श्रेष्ठ। सूरज सोलंकी की प्रेमिका या रखैल। कुछ भी कहा जा सकता है।
मगर हुआ क्या ?
ऐसे केसिज में एक ही बात होती है। सूरज ने उसके साथ खूब ऐश किया होगा। मजे लूटेे होंगे और अब हड्डी गले पड़ते देख उससे छुटकारा पाने की कोशिश में यह तमाशा खड़ा कर दिया।
सूरज को ऐसा नहीं करना चाहिए था। औरत पर हाथ उठाकर उसने अपनी नीचता प्रकट की है।
पहले हाथ नहीं उठाया था उसने। हाथ उठाने से पहले कुछ जरूर हुआ था।
कुछ भी हुआ हो, लेकिन औरत के ऊपर हाथ नहीं उठाना चाहिए था उसे।
इसी प्रकार की अनगिनत बातें उस पार्टी में बहुत देर तक चलती रहीं। मीना श्रेष्ठ को लोगों ने वहां से रोते हुए जाते देखा। वहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति को उससे सहानुभूति थी।
* * *
नदी किनारे संध्या के धुंधलके में, जबकि आकाश में घनघोर घटाएं छायी हुई थीं, किशन अपनी प्रेयसी अन्नो की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा था। उसकी आंखें कभी इधर देखतीं, कभी उधर। अंततः प्रतीक्षा की घड़ियां समाप्त हुईं।
रावजी गढ़ी के महल वाली दिशा से घागरा-चोली में अन्नो प्रकट हुई।
देखो गुस्सा न करना। मैं जानती हूं मुझे आने में देर हो गई है, लेकिन क्या करूं, किसी ने बापू से हमारे प्यार के बारे में बता दिया है। हम छिप-छिपकर मिलते हैं, यह सब बता दिया है। पता नहीं कौन है हमारे प्यार का दुश्मन ?
वह किशन की बांहों में समाती हुई बोली।
होगा कोई जो हमें मिलते देखकर जलता होगा। यूं भी तुम्हारे दीवानों की कमी नहीं। तुम्हारे रूप के चर्चे दूर-दूर तक हैं। तुम हो ही इतनी सुंदर। फूल-सा खिला तुम्हारा यह मुखड़ा। हीरों जैसी चमकती बड़ी-बड़ी आंखें। यौवन की ज्वाला से तपते अधर और गदराया हुआ बदन। जो देखे...बस पागल होकर रह जाए। जैसे मैं तुम्हारा दीवाना हो गया था पहली ही नजर में।
किशन ने उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में समेटते हुए कहा।
तुम मेरी इतनी तारीफ करते हो, कहीं मैं अपने ऊपर घमंड न करने लग जाऊं।
घमण्ड करने योग्य हो, कर सकती हो। लेकिन मुझे भुला न देना। अन्नो...सच कहता हूं, अगर कभी तुमने मुझे भुलाया या मुझे छोड़कर जाने की बात की तो मर जाऊंगा।
ना...ऐसा नहीं बोलते।
अन्नो ने तड़पकर किशन के होंठों पर हथेली रख दी और किशन ने उसकी हथेली पर चुम्बन अंकित कर दिया।
सच कह रहा हूं अन्नो ! मैं तुम्हारा दीवाना हूं।
बापू ने ढेर सारी पाबन्दियां लगा दी हैं मेरे ऊपर। जल्दी ही मुझे वापस लौटना होगा। देखो, कैसी घनघोर घटाएं घिरी हुई हैं।
अन्नो उसकी बांहों से निकलकर पीछे हटती हुई बोली।
अन्नो...!
हां ?
लगता है हमारे बिछड़ने का समय आ पहुंचा है।
नहीं।
हां अन्नो। मुझे पूरा विश्वास है अब महल की मेरी नौकरी शीघ्र ही समाप्त हो जाएगी। डाबर साहब को मैं सज्जन पुरुष समझता था‒मगर हकीकत कुछ और भी है। मैंने थाने में पुलिस को खबर देनी चाही तो वहां भी मुझे डाबर साहब का सिक्का ही चलता दिखाई दिया। मुझे अपना मुंह लेकर लौट आना पड़ा। जिस नौकरी के दम पर मैं तुम्हारे बापू से तुम्हारा हाथ मांगने जा रहा था, वही नौकरी मेरे हाथ से चली जाने वाली है। यूं भी मैं ईमानदारी की रोटी खाकर जीवित रहना पसंद करता हूं और इस सिद्धांत के अनुसार मुझे स्वयं ही डाबर साहब की नौकरी छोड़ देनी थी।
डाबर साहब ने ऐसा क्या कर दिया जिसकी खबर करने तुम थाने तक चले गए ?
वह अच्छा आदमी नहीं है‒बुरा और गंदा आदमी है।
अन्नो कुछ कहना चाहती थी, किन्तु इसी बीच जोर से बिजली कड़की। ऐसा धमाका हुआ मानो आकाश टुकड़े-टुकड़े होकर नीचे ढह पड़ा हो‒उनके सिरों पर टूट पड़ा हो।
भयभीत अन्नो दौड़कर किशन की बांहों में इस प्रकार सिमट गई जैसे कबूतर बिल्ली के झपट्टे से बचने के लिए किसी कोने में दुबक गया हो।
डर गयीं ?
किशन उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरता हुआ बोला।
हां...डर गयी थी। किशन...आज तुम मुझे अपनी बांहों से अलग मत करो। मैं अलग होना चाहूं तब भी तुम मुझे अपनी बांहों में भींचे ही रहो। दबाए ही रहो। न जाने क्यों मुझे बहुत अधिक भय लगने लगा है। किसी भी क्षण मूसलाधार वर्षा आरम्भ होने वाली है और यहां नदी के किनारे हमें सिर छिपाने की जगह भी नहीं है।
किशन ने उसे भींच लिया। अधर समीप आकर टकराए। गर्म सांसें घुलने लगीं।
धीरे-धीरे भय का स्थान प्रेम-क्रीड़ाओं ने ले लिया। हल्की फुहार उनके अंतर में वासना की चिनगारियों को भड़काने लगी।
नदी किनारे उस क्षेत्र में समय से पूर्व ही रात्रि का क्रम आरम्भ हो गया।
किशन ने अन्नो के गदराए जिस्म को निर्वसन कर दिया था। उसके हाथ अन्नो के नग्न जिस्म को सहला रहे थे। उसके मुख से उभरने वाले कामुक सीत्कार किशन की उत्तेजना में निरंतर वृद्धि करते जा रहे थे।
किशन को उसके शरीर का आकार आंदोलित किए हुए था।
कभी उसके हाथ अन्नो की चिकनी पीठ पर घूमते तो कभी वह उसे अपने अंकपाश में भींच लेता।
इस बीच वर्षा की फुहारों में तेजी आयी, साथ ही दौड़ती हुई पगचापों के साथ टार्च का शक्तिशाली प्रकाश उन दोनों के ऊपर फैलता चला गया।
वह रहा नमक हराम मैनेजर। उसे पकड़ लो और उस छोकरी को अपना इनाम समझो। डाबर साहब के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट लिखाने गया था। ईमानदार...हरिशचन्द्र की औलाद !
एक कर्कश स्वर वहां उभरा।
किशन ने अन्नो का हाथ पकड़कर दौड़ना आरम्भ कर दिया। उसके पास पीछे मुड़कर देखने का अवसर नहीं था। वह दौड़ता जा रहा था। किन्तु अन्नो के कारण उसकी गति में वृद्धि नहीं हो पा रही थी। पीछे से उभरने वाली पगचापें निरंतर निकट होती जा रही थीं।
झाड़ियों का सिलसिला आरम्भ होते ही किशन ने अन्नो को एक झाड़ी में छिपा दिया और स्वयं दौड़ना जारी रखा। अन्नो से अलग होते ही उसकी गति बढ़ गयी। वह समूची शक्ति एकत्र करके दौड़ने लगा। उसे होश नहीं था कि वह किस दिशा में दौड़ रहा है। वह तो बस दौड़ता चला जा रहा था। दौड़ता चला जा रहा था।
अंत में भयानक महल उसके सम्मुख था।
अंधकार में डूबे महल की खिड़कियों से छनता प्रकाश। मूसलाधार वर्षा की बौछारों में स्नान करता और यदा-कदा चमकती लपलपाती बिजली मानो बार-बार उस भयानक महल को अपने आगोश में लेने का प्रयास कर रही थी। मानो बादलों में चमकती कड़कती बिजली उसके ऊपर गिर जाना चाहती थी, किन्तु अदृश्य शक्ति के कारण वह गिर नहीं पा रही थी।
अचानक।
एक विशालकाय काले साये ने किशन के सम्मुख प्रकट होकर उसे दहशत से भर दिया। उसके मुख से घुटी-घुटी चीख निकली। आठ फुट लम्बे उस दैत्याकार साये ने उसकी गर्दन दबोच ली। फिर उसके पैरों ने जमीन छोड़ दी। वह हवा में हाथ-पांव चलाता रह गया।
काले साए की शक्ति के सम्मुख वह उस चूहे के समान प्रतीत हो रहा था जिसे बिल्ली ने अपने दांतों से दबोच रखा हो।
काला साया उसे उठाए भयानक महल के अंदर दाखिल हो गया।
* * *
डिटेक्टिव इंस्पेक्टर सूरज सोलंकी ने जैसे ही दालामल हाउस के अपने फ्लैट में कदम रखा, फोन की घंटी बज उठी। उसने आगे बढ़कर रिसीवर उठा लिया।
क्या चाहिए ?
वह शुष्क स्वर में बोला।
चाहिए कुछ नहीं। एक बहादुर और ईमानदार पुलिस ऑफिसर के लिए सूचना है मेरे पास।
दूसरी ओर से भर्राया हुआ स्वर उभरा।
कौन हो तुम ?
यह फिजूल ही वक्त की बरबादी से भरा सवाल है। इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए।
सूचना क्या है ?
तुम डिटेक्टिव इंस्पेक्टर सूरज सोलंकी ही हो न, जिसने पिछले सप्ताहान्त में मिस्टर डाबर का कई करोड़ का नशीली दवाओं का ट्रक पकड़ा था ?
हां-हां...लेकिन तुम अपनी सूचना बताओ।
आज रात पक्का बाग चौक नाके से एक और ट्रक राजनगर में दाखिल होने वाला है। ड्रग्स की यह खेप राजनगर में अगर दाखिल हो गयी तो फिर उसे डिस्ट्रीव्यूट होने से रोका नहीं जा सकेगा।
टाइम क्या है ?
ठीक समय नहीं मालूम। आज वह किसी भी समय निकल सकता है।
लेकिन रात भर में न जाने कितने ट्रक निकलेंगे।
ट्रक का नम्बर आर॰टी॰सी॰ नाइन वन नाइन टू है। मैं समझता हूं इतनी जानकारी उस ट्रक को पकड़ने के लिए काफी होगी। इस केस में मैं सिर्फ आपको देखना चाहता हूं क्योंकि डाबर जैसे ऊंची पहुंच वाले आदमी का मुकाबला कोई दूसरा ऑफिसर नहीं कर सकता।
तुम कौन हो, यह तुमने नहीं बताया ?
सवाल के जवाब में दूसरी ओर से रिसीवर रखकर सम्पर्क काट दिया गया।
लगभग एक घंटे बाद वह इंस्पेक्टर शर्मा को लेकर चौक नाके पर जा पहुंचा।
सूरज...प्लीज ! बताओ न आखिर यहां किस जरूरी काम से लाए हो तुम ?
चौक नाके पर पहुंच कर इंस्पेक्टर शर्मा ने उससे पूछा।
बहुत जरूरी काम है। तुम्हें सिर्फ मेरा सहयोग करना है।
इतना कहकर सूरज ने अपने लिए सिगरेट सुलगा ली।
मतलब यह कि बताओगे नहीं।
बता दूंगा। तुम आदतन जल्दबाज हो इसलिए मैं जरा आराम से बताऊंगा।
ठीक है। फिर कल आराम से बता देना। चलता हूं।
ठहरो तो सही, अच्छा सुनो‒हमें यहां से गुजरने वाले एक ट्रक आर॰टी॰सी॰ नाइन वन नाइन टू को रोककर चौक करना है।
बस इतने छोटे से काम के लिए तुम इंस्पेक्टर शर्मा को बेगार समझकर उठा लाए हो। है न ?
नहीं भई। तुम्हें भला कौन बेगार समझ सकता है।
तुम समझते हो क्योंकि तुम्हें इसकी आदत है।
देर तक उन दोनों में नोंक-झोंक चलती रही। अंततः सूरज ने उसे अज्ञात फोन की पूरी कहानी सुना दी। तमाम हकीकत जान लेने के बाद इंस्पेक्टर शर्मा ने उससे लड़ना बंद कर दिया।
कहीं ड्रग्स की यह दूसरी कंसाइन्मेंट डाबर द्वारा ही तो आयात नहीं की जा रही है ?
उसने गंभीरता धारण करते हुए सूरज से कहा।
यकीनन ऐसा ही होगा। क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर ड्रग्स का व्यापार सिर्फ डाबर की सिण्डीकेट ही कर सकती है।
लेकिन अगर वह डाबर का ही माल है तो इस बार वह अवश्य पूरी तरह सचेत होगा। वह एक बार तुम्हारे हाथों अपना माल पकड़वा चुका है, पुनः उस दुर्घटना को होने नहीं देगा।
होनी होकर रहेगी। अगर डाबर को मेरे हाथों नेस्तनाबूद होना लिखा है तो होगा, यकीनी तौर पर होगा।
वह ऊंची पहुंच वाला, एक बेहद खतरनाक आर्गेनाइजेशन का बिग बॉस है। उसे बहुत कम लोगों ने देखा है। उससे पंगा लेने की कोशिश मत करो। नुकसान उठा जाओगे। हमारे विभाग के बड़े-बड़े अधिकारी मिस्टर डाबर के आगे झुकते हैं। वह उनकी जरूरतें पूरी करता रहता है। उससे दूर ही रहो तो बेहतर है।
तुम्हारा मतलब है ड्रग्स की उस बड़ी कंसाइन्मेंट को मैं जान-बूझकर निकल जाने दूं। देश के लाखों युवकों की जवानी में आग लगा देने वाले उस बारूद को रोकने की कोशिश न करूं। अपने जमीर का गला घोंटकर, अपने फर्ज से गद्दारी कर जाऊं। कानून का रक्षक कहलाते हुए भी भक्षक बना रहूं।
कभी-कभी अपने कैरियर, अपने फ्यूचर की खातिर ऐसा भी करना पड़ता है।
देखो...मैंने अपनी आज तक की नौकरी में इन बातों की कभी परवाह नहीं की। अपने फर्ज को सर्वोच्च माना है। ईमानदारी और सच्चाई के मार्ग को सदैव अपनाया है। इसे मरते दम तक छोड़ नहीं सकता। अगर तुम्हें डाबर से इतना ज्यादा डर लग रहा है तो बेशक तुम मुझे छोड़कर जा सकते हो।
जाने वाली बात नहीं कहो। मैं तुम्हारे साथ हूं और मेरी राय महज एक दोस्त की हैसियत से थी। इशारतन तुम्हें आने वाले खतरे से आगाह करना चाहता था।
सूरज सोलंकी मौत की दहशत से भी परे है। इसलिए इंस्पेक्टर शर्मा फिर कभी मुझे इस प्रकार के खतरे से आगाह करने की कोशिश मत करना।
ओ॰के॰!
कुछ देर बाद...।
अचानक ही वे चौंक उठे। सामने की दिशा से आने वाली हैड लाइट्स इतनी तेजी से आगे की ओर झपटी चली आ रही थीं मानो रोशनी का तूफान आ रहा हो। उस हैडलाइट्स वाले वाहन की रफ्तार बहुत तेज थी।
"लगता है यह