Aanshoo
By Rajvansh
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कोमल प्यार की भावनाओं से लबररेज राजवंश का नया उपन्यास ‘आंसू’ आपकी हाथों में है।
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Book preview
Aanshoo - Rajvansh
राजवंश
आंसू
द्रौपदी ने दरवाजे पर दस्तक सुनी तो कुछ झुंझलाई हुई आवाज में बोली‒ ‘क्या बात है, कौन है?’
‘ओह मम्मी डार्लिंग।’ बाहर से पद्मा की आवाज आई, ‘नाश्ते को देर हो रही है और आज मेरा पहला पीरियड भी जरा जल्दी शुरू होगा।’
‘कैरी ऑन यूअर जॉब बेबी।’ द्रौपदी ने कहा, ‘मुझे थोड़ी देर और लगेगी।’
‘मम्मी, दीपू को भी जल्दी जाना है।’
‘तो लो जाओ, दर्शन को बोलो, ब्रेक-फास्ट लगा दे टेबल पर।’
‘ओ. के. मम्मी।’
‘और तुम दोनों ने दूध ले लिया था मॉर्निंग में?’
‘यस ममा, बोर्नविटा के साथ।’
‘ओ. के. नाऊ यूमे गो।’
बाहर पद्मा ने शायद फ्लाइगं किस किया था। द्रौपदी अपने आप हंसकर बड़बड़ाई‒
‘नॉटी बेबी।’ फिर उसने जूली से कहा, ‘ठहरो।’
जूली के हाथ रुक गए। द्रौपदी उल्टी लेट गई। और जूली फिर उसके बदन पर मालिश करने लगी। द्रौपदी का कुन्दन जैसा बदन चन्दन मिले दूध की तरह दमक रहा था। पूरे शरीर की मालिश कराने के बाद द्रौपदी ने खड़ी होकर आदमकद आईने के सामने अपने शरीर का जायजा लिया। और जूली की तरफ देखकर मुस्कराकर बोली‒
‘कैसा लगता है मेरा बदन ?’
‘एकदम फेन्टास्टिक मैडम।’ जूली दाद देनेवाले लहजे में बोली, ‘अभी भी आपको कोई अट्ठारह-बीस से ज्यादा की उम्र की नहीं समझ सकता।’
द्रौपदी हंसने लगी। उसने फर्श पर फैले गद्दे पर लेटकर एक भारी यन्त्र अपनी टांगों पर रखवाया। फिर निश्चित समय तक उसे साईकिल की तरह चलाती रही। फिर खड़ी हुई और बुलवरकर से व्यायाम किया। फिर अपना चेहरा गौर से देखकर उसने जूली से पूछा-
‘मेरे चेहरे पर अभी ब्लीचिंग की जरूरत तो नहीं?’
‘ओह नो मैडम। अभी तो रूई की तरह मुलायम और साफ है।’
‘तो ठीक है, फिर सिर्फ मसाज कर दो।’
द्रौपदी एक ईजीचेयर पर पसर गई और जूूली ने ऑटोमैटिक मसाज मशीन निकालकर उसका प्लग बोर्ड में लगाया। काफी देर की मसाज के बाद द्रौपदी ने जूली से कहा‒
‘अब तुम बाहर जाओ, अपना काम देखो।’
जूली बाहर जाओ। द्रौपदी ने एक नजर अपने चेहरे पर डाली। फिर बालों की जड़ों को अच्छी तरह चैक किया, उनमें कहीं सफेदी तो नहीं झलक रही। फिर बालों की बनावट देखी और गुनगुनाती हुई, बाथरूम में चली गई।
लगभग आधे घंटे बाद जब वह बाहर निकली तो उसके बदन पर कहीं-गहरे नीले और कहीं-कहीं बादलों के रंग जैसी साड़ी और उससे मैच करता ब्लाउज उसे अप्सरा बनाए हुए थे। गले में उसी रंग के मोतियों का हार और कानों की बालियों में नीचे-नीले रंग के आंसू की बूंदों जैसी मोती लटक रहे थे। कलाई में बढ़िया चेनवाली घड़ी। पैरों में ट्रांसपैरेंट रबर के हाई हीलवाले सेन्डल, जिनमें उसके सुन्दर पैरों की बनावट और चमकीले नाखून गजब ढा रहे थे। होंठों पर ऐसी लिपस्टिक, जिसके शेड में सितारों की-सी चमक थी और होठों के उभार इतने दिलकश कि देखनेवालों के दिल धड़क उठें। आंखों की पुतलियों पर नीली कॉन्टेक्ट लैंस थी, जिनसे चेहरे पर खूबसूरती और भी बढ़ गई थी।
बाहर आकर उसने जूली को पुकारा, जूली जल्दी से कई तरह के फलों का मिक्स रस-भरा गिलास और एक प्लेट में सूखे मेवे ले आई। द्रौपदी ने सूखे मेवे खा कर जूस पिया और एक बार अच्छी तरह उसने अपने शरीर पर खुशबू का छिड़काव किया और फिर बोली‒
‘अच्छा जूली, मैं चलती हूं।’
‘यस मैडम, मगर मिक्सर-ग्राइण्डर का ख्याल रखिएगा।’
‘मुझे याद है, उसमें कोई खराबी हो गई है।’
‘आप कहें तो मरम्मत के लिए दे आऊं?’
‘ओह नो, मैं आजकल में नया ले आऊंगी। उसे डिस्पोज ऑफ करेंगे।’
‘ओ. के. मैडम।’
द्रौपदी अपने छोटे-से फ्लैट के दरवाजे से बाहर निकली। फ्लैट के आगे एक छोटा-सा बगीचा भी था और इतनी जगह भी थी कि वहां दो तीन गाड़ियां आसानी से पार्क की जा सकती थीं। बरामदे में लाल रंग की सेंडोज कार खड़ी थी। द्रौपदी ने उसमें सवार होते हुए पूछा‒
‘बेबी की गाड़ी रात को साफ कर दी थीं?’
‘यम मैडम।’
‘और दीपू का स्कूटर?’
‘वह भी साफ कर दिया था, मैडम।’
‘कल इतवार है। शायद मैं भूल जाऊं। आज गैराज टेलीफोन कर देना, कल मैकेनिक दोनों गाड़ियां ले जाकर एक्सल वगैरह से चमका दें।’
‘ओ. के. मैडम।’
द्रौपदी ने कुछ और निर्देश जूली को दिए और गाड़ी स्टार्ट कर दी। बड़ी सावधानी से गेट सरका और कार कंपाउण्ड से निकल आई। थोड़ी देर बाद उसकी गाड़ी बड़ी शान से सड़क पर दौड़ रही थी। उसकी आंखों पर नीला गॉगल चढ़ा हुआ था। वह जिधर से भी गुजरती लोगों की नजरें उसकी ओर ही उठ जातीं। मगर वह ऐसे लापरवाही से सामने देखती रहती, जैसे उसे किसी को भी परवाह न हो। थोड़ी देर बाद उसकी स्टैन्डर्ड एक फर्म के कंपाउंड में दाखिल हुई, जिसके ऊपर बड़ा-सा बोर्ड लगा था, ‘सावित्री एडवरटाइजिंग एजेंसी।’
दरबान ने द्रौपदी को देखते ही सैल्यूट किया। उसने बड़ी अदा से चलते हुए, सिर के हल्के-से झटकेे से उसे जवाब दिया। गाड़ी पार्किंग में खड़ी कर दी। फिर जब वह बड़ी सम्भल-सम्भल कर चलती हुई इमारत के दरवाजे तक पहुंची तो वहां खड़े चौकीदार ने सलाम करते हुए बड़ी जल्दी-से दरवाजा खोला ओर द्रौपदी बिना किसी की तरफ देखे, बड़ी शान से खट-खट करती हुई हॉल से गुजरने लगी। वह जिधर से गुजरती उधर ही देखनेवालों की नजरें उठ जाती। फिर वह एक केबिन के सामने पहुंची ही थी कि किसी ने जल्दी से दरवाजा खोला और वह केबिन के अन्दर चली गई। हॉल में बैठे हुए स्टाफ के लोगों ने एक-दूसरे की तरफ अर्थ पूर्ण नजरों से देखा और एक नौजवान ने टाई की गिरह दुरुस्त करते हुए, बराबर वाले क्लर्क से सरगोशी की‒
‘हाय, क्या जालिम चीज है, कमबख्त!’
‘सर से पांव तक कयामत है, कयामत।’
‘मगर घमण्ड भी तो किल्योपेट्रा जैसा है।’
‘हां यार, नजरें तक उठाकर नहीं देखती। दो साल से इस आशा को दिल में छिपाए हुए बैठा हूं।’
तभी उन दोनों के पीछे बैठे हुए हेडक्लर्क विश्वनाथ खांसे और दोनों ने चौंककर देखा। विश्वनाथ ने ठंडी सांस लेकर कहा, ‘यहां पंद्रह वर्ष से दिल में हसरत लिए बैठे हैं।’
‘पन्द्रह वर्ष!’ नए क्लर्क ने हैरत से कहा।
‘पूरे पन्द्रह वर्ष।’
‘पिछले पन्द्रह वर्ष से तो बाईस और चौबीस के दरम्यान ही चल रही है।’
‘तुम लोग खुद ही हिसाब लगा लो।’
‘नामुमकिन, चालीस वर्ष की औरत और इतनी कम उम्र नजर आए।’
‘मैंने यह कब कहा है कि मेरी बात पर विश्वास करो।’ विश्वनाथ ने ठंडी सांस लेकर कहा, ‘अभी तो तुमने भी अगले पन्द्रह वर्ष यहीं गुजारने हैं।’
फिर वह अपने रजिस्टर पर झुक गए। दूसरी तरफ द्रौपदी ने अपनी रिवाल्विंग चेयर पर बैठकर, गॉगल उतारकर मेज पर रखा ही था कि इन्टरकाम पर आवाज आई‒
‘मिस द्रौपदी वर्मा।’
‘यस बॉस।’
‘थोड़ी तकलीफ कीजिए’
‘यस सर।’
द्रौपदी ने पर्स से छोटा-सा आईना निकालकर अपना मेकअप दुरुस्त किया। फिर उठी और अपने केबिन से निकलकर बॉस के केबिन की तरफ बढ़ी। फिर उसने जल्दी-से दरवाजा खोला ओर द्रौपदी मुस्कराती हुई बोली।
‘मैं अन्दर आ सकती हूं, सर?’
‘यस, कम इन प्लीज।’
द्रौपदी अन्दर दाखिल हुई। दरवाजा बन्द हो गया।
एक बहुत खूबसूरत सजे हुए ऑफिस में ऊंचे तकिए की रिवाल्विंग चेयर पर एक अधेड़ उम्र का आदमी बैठा था। उसने बदन पर बेहद बढ़िया कपड़े का सूट था और उसकी दायीं तरफ एक बूढ़ा आदमी बैठा था। वह भी सूटेड-बूटेड था। सिगार पी रहा था। सिगार वाले ने द्रौपदी की तरफ देखा और अजनबी की तरफ इशारा करके बोला, ‘मीट मिस्टर काम्बले, मैनेजर ऑफ रूपमति गारमेंट्स।’ फिर उसने काम्बले की तरफ इशारा करके कहा, ‘मिस द्रौपदी वर्मा। मेरी पर्सनल सेक्रेटरी भी है और हमारी कंपनी की सबसे खूबसूरत मॉडल थी।’
‘प्लीज्ड टू सी यू।’ द्रौपदी अपने दिलकश अंदाज में मुस्कराई।
‘मी टू।’ काम्बले ने द्रौपदी की और भरपूर नजरों से देखते हुए कहा। द्रौपदी सिगार वाले के कहने पर सामने खाली कुर्सी पर एक खास स्टाइल बनाती हुई बैठ गई। काम्बले ने सिगारवाले से कहा‒‘बिल्कुल ठीक कहा था आपने, यह हमारे एडवरटाइजमेंट के लिए बिल्कुल फिट रहेंगी।’
‘फिट रहना ही चाहिए मिस्टर काम्बले। मिस द्रौपदी की उम्र अभी बाईस से कुछ ही महीने आगे है। उन्होंने शादी भी नहीं की और अपने आपको मेंटेन करके भी रखा हुआ है।
‘नाइस।’ काम्बले ने कहा।
‘मिस द्रौपदी।’ सिगार वाले ने द्रौपदी से कहा, ‘मिस्टर काम्बले रूपमति गारमेंट्स के मैनेजर हैं। यह लोग एक नए डिजाइन की ब्रेजियर और पेंटी निकाल रहे हैं। उसी की एडवरटाइजिंग फिल्म बनाने के लिए इन्होंने हमें निकाल दिया है। उसके लिए मैंने आपके नाम का प्रस्ताव रखा था।’
‘थैंक्स।’ द्रौपदी ने कहा, ‘यह मेरी खुशनसीबी है कि मिस्टर काम्बले ने भी मुझे ओ. के. कर दिया।’
‘ओह, नो मिस द्रौपदी, यह तो हमारी फर्म की खुशनसीबी है कि आपके जैसी फिगर मिल गई। इस फिगर के साथ तो हमारे दोनों आइटम एकदम चल निकलेंगे।’
थोड़ी-सी औपचारिक बातचीत के बाद सिगारवाले ने कहा‒
‘ठीक है, मिसेज द्रौपदी वर्मा। प्लीज वेट फॉर माई कन्फॉर्मेशन। शायद हम लोग यह फिल्म आज रात को ही होटल होराइजन के स्विमिंग पूल पर शूट करेंगे।
‘ओ. के. सर।’ द्रौपदी एक खास अंदाज से उठी ओर जब काम्बले से हाथ मिलाले लगी तो काम्बले जैसे उत्तेजना से हड़बड़ाकर खड़ा हो गयां द्रौपदी के होंठों पर एक कातिलाना मुस्कराहट फैल गई और बड़े इत्मीनान से केबिन से बाहर निकल आई।
✦ ✦ ✦
सावित्री एडवरटाइजिंग के मालिक घनश्याम की कार सड़क पर दौड़ रही थी एक एयरकन्डीशन्ड कार थीं जिसे एक वर्दीवाला ड्राइवर ड्राइव कर रहा था। पिछली सीट पर घनश्याम और द्रौपदी बैठे थे और घनश्याम कह रहा था, ‘एक्चुअली इट इज वन्डर, आपने अपनी फिगर को क्या मेन्टेन करके रखा है!’
‘थैंक्स सर।’ द्रौपदी ने मुस्कराकर कहा, ‘अगर मैं शादी कर लेती तो शायद इस तरह अपने आपको मेन्टेन न कर पाती।’
‘यू. आर. एब्सल्यूटली राइट।’
थोड़ी देर बाद गाड़ी होराइजन के गेट पर खड़ी थी। दरबान ने जल्दी-से उतरकर दरवाजा खोला। तब द्रौपदी उतरी और दूसरे क्षण पार्किंग में खड़ी हुई लाल स्पोर्टिंग कार को खड़े देखकर उसे लगा जैसे उसके पैरों के नीचे से जमीन निकल गई हो। पद्मा भी वहां मौजूद थी। कहीं उसने मुझे देख लिया और मम्मी कह कर सम्बोधित कर लिया तो सारा किया धरा मिट्टी में मिल जाएगा। पलक झपकते ही मेरा रूप एक ऐसी मां का-सा हो जाएगा जिसकी लड़की सोलह-सत्रह वर्ष की जवान हो। लेकिन द्रौपदी ने चेहरे पर जरा सी भी घबराहट नहीं झलकने दी। वे दोनों आगे बढ़े। घनश्याम ने दरवाजा खोला और दोनों अन्दर दाखिल हो गए।’
‘क्या हमारा स्टाफ यहां पहुंच चुका है?’ द्रौपदी ने पूछा।
‘कभी का। अब तक तो वे लोग कैमरा और लाइटिंग भी सैट कर चुके होंगे।’ तभी हॉल में बैठे मिस्टर काम्बले ने उठकर उन दोनों का स्वागत किया।
‘हाय मिस वर्मा, हाय मिस्टर घनश्याम।’
‘हाय!’ द्रोपदी ने मुस्कुराकर कहा, ‘आप यहां क्यों बैठे हैं? क्या अन्दर टेबल बुक नहीं थी?’
‘टेबल बुक है।’ काम्बले ने कहा, ‘मैं तो आप लोगों के स्वागत के लिए यहां बैठा था।’
‘ओह थैंक्स।’ द्रौपदी ने कहा, फिर घनश्याम से बोली, ‘क्यों न कास्ट्यूम बदलने से पहले एक पैग ले लिया जाए।’
‘ओह! श्योर‒श्योर‒आपको पानी में उतरना है।’
फिर वे लोग बॉररूम की तरफ बढ़े ही थे कि अचानक एक लिफ्ट नीचे आकर रुकी। उसका दरवाजा खुला तो पद्मा लाल जींस और लाल जैकेट में एक मॉडर्न और नीले लिबास वाले लड़के के साथ बाहर निकली। ऐन उसी वक्त उसकी निगाहें द्रौपदी पर पड़ीं, लेकिन द्रौपदी फुर्ती से झुककर अपनी एक आंख मसलने लगी। काम्बले ने जल्दी से पूछा‒
‘क्या हुआ मिस द्रौपदी?’
‘ओह, मेरी आंख में कोई कीड़ा घुस गया।’
द्रौपदी वहीं सोफे पर बैठकर धीरे-धीरे आंख मलने लगी। और उसने देखा कि पद्मा चुपके-चुपके उस लड़के के साथ बाहर के दरवाजे की तरफ खिसक रही थी। शायद उसने द्रौपदी को देख लिया था। द्रौपदी ने दिल में थैंक्स गॉड कहा और आंख खोलकर उठती हुई बोली‒
‘अब ठीक है।’
फिर वे तीनों बॉर में घुस गये। काम्बले बड़े शाही अंदाज में आगे-आगे चल रहा था, और द्रौपदी घनश्याम के साथ धीरे-धीरे चल रही थी। बार-काउंटर के गिर्द स्टूलों पर बैठकर तीनों ने तीन लाल पैग मंगवाए और धीरे-धीरे चुस्कियां लेने लगे। द्रौपदी बड़े तरीके से, बड़े अंदाज में एक हल्का-सा कहकहा लगाती काम्बले उससे ज्यादा बेतकल्लुफ न होने पाए। और न आत्म सम्मान में कमी हो। वह घनश्याम से ज्यादा सम्बोधित होती और काम्बले के दांत खुले रहते थे। द्रौपदी की कल्पना में बार-बार पद्मा के साथ वाले छोकरे की छवि घूम जाती थी। वह क्यों था, कौन था? दोनों, उस होटल में क्या कर रहे थे और ऊपर क्यों गए थे?
इतने में घनश्याम के मैनेजर ने आकर बड़े सम्मान से कहा‒
‘सर, सारा इन्तजाम हो गया।’
‘आप चलिए, हम आते हैं।’
‘मैनेजर चला गया। काम्बले ने बड़ी बेचैनी से कलाई घड़ी देखी और दांत निकालकर बोला‒
‘मिस्टर घनश्याम, दरअसल शूटिंग की बुकिंग दस बजे तक है।’
‘ओह डोंट माइंड, मिस्टर काम्बले। मैं मैनेजर कपूर से कह दूंगी’
‘थैंक्स सर।’
द्रौपदी ने बातों की रफ्तार कुछ और कम कर दी थी। वह जानती थी कि किस अवसर पर अपना महत्व कैसे बढ़ाया जा सकता है। एक पैग लेने के बाद द्रौपदी अच्छे खासे मूड में आ गई थीं। वह एक अंदाज के साथ ड्रेसिंग रूम में गई। कास्ट्यूम पहनकर उसने आईने में अपने शरीर का जायजा लिया तो स्वयं उसका जी चाहा कि घण्टों अपना सुन्दर शरीर देखती रहे। फिर उसे इस बात का गर्व होने लगा कि जब उसे अपना शरीर खुद अच्छा लगता है तो दूसरों की क्या हालत होती होगी देखकर।
फिर थोड़ी देर बाद कंधों पर गाउन डाले हुए बाहर निकली। घनश्याम और काम्बले उसके साथ-साथ चल रहे थे। काम्बले का अंदाज बिल्कुल गुलामों जैसा था। जब वे लोग लोकेशन पर पहुंचे तो वहां सैकड़ों लोग मौजूद थे, जिन्होंने द्रौपदी को देखकर जोर-जोर से तालियां बजाई। फिर द्रौपदी पर एक स्पॉट लाइट पड़ी। वह मदहोश अंदाज में मुस्कराकर लोगों को विश करती हुई आगे बढ़ रही थी। लोग प्रशंसा के वाक्य एक-दूसरे की तरफ फेंकते रहे।
सीढ़ियां चढ़कर द्रौपदी ऊपर पहुंची। उसने एक खास अंदाज में चारों तरफ देखा, मगर किसी को देख न सकी क्योंकि स्पॉट लाइट उस पर पड़ रही थी। अब चारों तरफ से ताकतवर रोशनी रिफ्लेक्स द्वारा उस पर पड़ रही थी। ऐसा लगता था कि जैसे सचमुच उसका बदन चन्दन और सोने का बनाकर उस पर दूध और मलाई की मालिश कर दी गई हो। बारीक लबादे में उसका बदन उसी तरह झिलमिला रहा था। दर्शक बेचैन थे कि कब उसके जिस्म से यह गॉउन हटे।
कम्पनी का डायरेक्टर माइक पर द्रौपदी को निर्देशन दे रहा था कि ऊपर बने हुए निशानों के अनुसार द्रौपदी को कहां से चलकर कहां पहुंचना है और फिर किस अंदाज में दोनों हाथों को हवा में उठाकर ड्राइव लगानी है। कई बार निर्देश मिलने के बाद द्रौपदी ने अचानक अपने शरीर से गाउन उतारकर हवा में उछाल दिया। तालियों और प्रशंसा के वाक्यों का एक जोरदार तूफान उठा।
फिर द्रौपदी ऊपर बने हुए निशानों के हिसाब से चलती हुई किनारे तक आई और फिर डायरेक्टर के निर्देश के अनुसार उसने हवा में हाथ ऊपर उठाए और पानी में डाइव लगाई और दूर तक पानी में चली गई। फिर थोड़ी देर बाद वह पानी से उभरी और सीढ़ियां चढ़ती हुई ऊपर आई। अब कैमरा उसे बिल्कुल निकट से देख रहा था। उसके सिर के ऊपर आई। अब कैमरा उसे बिल्कुल निकट से देख रहा था। उसके सिर के ऊपर माइक टंगा हुआ था जो कैमरे की आंख से दूर था। उसके सुनहरे बदन पर पानी की बूंदें ऐसे लग रही थीं जैसे किसी ने सुनहरी चादर पर मोती बिछा दिए हों। उसने बड़े ही कातिल अंदाज से गर्दन को एक झटका दिया और फिर उसके चेहरे पर एक बहुत की दिलकश और दिलफरेब मुस्कराहट फैल गई।
‘वाह, रूपमति गारमैंट्स की ब्रेजियर और पेंटी कितनी कम्फर्टेबल होती है। मैं तो हमेशा रूपमति गारमैंट्स की ब्रेजियर और पेंटी इस्तेमाल करती हूं।’
‘कट एण्ड ओ. के.।’ डायरेक्टर की आवाज आई।
फिर अचानक ही तालियां का एक जोरदार शोर उभरा। किसी कर्मचारी ने जल्दी से गाउन लाकर दिया। द्रौपदी शरीर को गाउन से ढक कर घनश्याम और काम्बले के बीच बड़े ही प्रभावशाली अंदाज से चलती हुई ड्रेसिंगरूम की तरफ बढ़ गई।
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बारॅरूम में अब द्रौपदी, काम्बले और घनश्याम दूसरा पैग ले रहे थे। काम्बले द्रौपदी के जिस्म को ऐसे घूर रहा था जैसे कोई बच्चा अपनी पसन्द की चीज पर लार टपका रहा हो। घनश्याम की निगाहें भी द्रौपदी के शरीर का बार-बार जायजा लेती थी। द्रौपदी सिर्फ धीरे से मुस्करा देती थी, मगर उसकी भवें इस तरह तनी हुई थीं कि घनश्याम या काम्बले की यह हिम्मत न हुई कि कुछ कह सकें।
द्रौपदी ने दूसरे पैग से ज्यादा नहीं लिया। काम्बले तीसरा पैग लेने के बाद अपने आपको कंट्रोल से बाहर महसूस करते हुए उठ खड़ा हुआ। लेकिन घनश्याम चौथे पैग पर भी जमा हुआ था। चौथे पैग के बाद दोनों बाहर आ गए। और भी कई नौजवानों की निगाहें द्रौपदी को ललचाई नजरों से देख रही थी। लेकिन उसकी तनी हुई भवें और माथे के तेवर देखकर किसी की भी हिम्मत नहीं थीं कि उसकी तरफ बढ़ आए।
डांसफ्लोर पर जोड़े नृत्य कर रह थे। घनश्याम दास ने अपने दोनों हाथ फैला दिए और द्रौपदी बड़ी ही दिलकश मुस्कराहट के साथ उसकी बांहों में आकर डांस-फ्लोर पर चली गई। दर्जनों नौजवान दिल हसरत से धड़कते रह गए। डांसफ्लोर पर कदम-से-कदम मिलाते हुए, चार पैग पी जानेवाले घनश्याम में शायद कुछ ज्यादा ही हिम्मत पैदा हो गई थी। उसने द्रौपदी की कमर और हाथ को बड़ी मजबूती से पकड़ रखा था। उसने बड़े ललचाए हुए अंदाज में कहा‒
‘मिस वर्मा, आज तो आप बहुत सुन्दर लग रही हैं।’
‘मिस्टर घनश्याम, मेरी कमर और हाथ नर्म खाल रखते हैं। हड्डियों की चुभन बर्दाश्त नहीं कर सकते।’
‘आई एम सॉरी, मिस वर्मा।’ घनश्याम ने जल्दी से पकड़ ढीली की और बोला‒‘मैं दरअसल रिक्वेस्ट करना चाहता था।’
‘यह याद रखते हुए कि मैं डिनर सिर्फ अपने घर में लेती हूं।’
‘मिस वर्मा, आप जानती हैं, मेरी एडवरटाइजिंग फर्म भारत की सबसे बड़ी और मशहूर फर्म है। और हम सबसे ज्यादा पेमेंट आपको ही देते हैं। बतौर प्राइवेट सेक्रेटरी पांच हजार रुपया महीना और मॉडल गर्ल की हैसियत से प्रत्येक का दस हजार रुपये।’
‘मिस्टर घनश्यामदास, इस शहर में आपकी कम्पनी से छोटी भी एक कम्पनी हैं और उसके मैनेजिंग डायरेक्टर का कहना है कि अगर मैं उसकी फर्म में चली आऊं तो आपकी फर्म चन्द महीनों से ही कई साल पीछे रह जाएगी। आप जो कुछ मुझे देते हैं उससे दुगनी उनकी ऑफर है। बगैर किसी डिनर की ऑफर के।’
‘आप यह मत भूलिए कि सावित्री एडवरटाइजिंग ने ही आपको इतनी जबर्दस्त शोहरत दी है और सफलता दी हैं।
‘इसीलिए तो दुगनी कीमत को भी ठुकरा चुकी हूं। मगर सावित्री एडवरटाइजर्स क्यों है? घनश्यामदास एडवरटाइजर्स क्यों नहीं?
‘सावित्री मेरी स्वर्गीय पत्नी का नाम है, जिसकी याद में फर्म का नाम रखा है।’
‘और उसकी याद में ही दूसरी औरतों को डिनर पर बुलाते रहते हैं?’ द्रौपदी ने व्यंग्य भरी मुस्कराहट के साथ कहा।
‘देखिए, यह मेरा निजी मामला है।’
‘मिस्टर घनश्यामदास, जहां मामला सिर्फ औरत और मर्द के बीच आ जाता है, वहां बात निजी नहीं रहती।’
‘क्या तुमने जिन्दगी भर शादी न करने का फैसला कर लिया है?’
‘मेरी आपसे इतनी बेतकल्लुफी तो नहीं।’
‘सॉरी, तुम की जगह आप समझो।’
‘यह मामला औरत और मर्द के बीच का नहीं, इसलिए यह सवाल नितान्त निजी है और मैं यह नापसन्द करती हूं कि कोई गैर-आदमी मेरे निजी मामलों में दखल दे।’
‘मैं इस दखल की माफी चाहते हुए एक ऑफर कर सकता हूं?’
‘मैं जानती हूं, आप क्या ऑफर करेंगे। द्रौपदी तल्ख मुस्कराहट के साथ बोली, ‘आप अपनी एडवरटाइजिंग कम्पनी का नाम सावित्री एडवरटाइजिंग रखना चाहते हैं।’
‘यह एक नैतिक, कानूनी और इन्सानी समझौता है।’
‘अगर मैं यह समझौता न कर सकूं तो?’
‘किसी भी फैसले पर पहुंचने के लिए इतनी जल्दी नहीं करनी चाहिए।’
‘जो फैसला बरसों पहले ही चुका हो, उसे जल्दबाजी का नतीजा नहीं कहा जा सकता।’
‘लगता है किसी ने तुम्हारा दिल तोड़ दिया है।’
‘अभी आपसे निवेदन कर चुका हूं कि हम लोगों में बेतकल्लुफी नहीं है।’
‘आई एम सॉरी।’
‘कल सुबह मैं अपना इस्तीफा भेज दूं, मेरा दस हजार का चेक तैयार मिलेगा?’
‘मर्द किसी फैसले में इतने जल्दबाज नहीं होते।’ घनश्यामदास मुस्कराया।
‘थैंक्स।’ द्रौपदी ने कहा, ‘मैं अब घर जाना चाहती हूं।’
इतने में डांस का राउण्ड खत्म हुआ तो वे लोग बाहर निकले। एक सूटेड-बूटेड आदमी ने द्रौपदी के पास जाकर कहा, ‘मिस वर्मा, आपसे आयरन किंग श्री पाण्डुरंग चन्द मिनट का समय चाहते हैं।’
‘आई एम सॉरी, मैं काफी एग्जास्ट हो चुकी हूं। द्रौपदी बिना रुके आगे बढ़ती हुई बोली।
‘मिस वर्मा!’ एक दूसरे आदमी ने उसका रास्ता रोका, ‘मैं आपका इन्टरव्यू लेना चाहता हूं। देश के सबसे बड़े मैगजीन ग्रुप के लिए।’
‘सॉरी मिस्टर, भारत की सारी जनता अब तक मुझे अच्छी तरह पहचान चुकी है।’
द्रौपदी और घनश्याम बाहर आये। द्रौपदी ने पूछा, ‘आपने मेरी गाड़ी मंगवा ली थी?’
‘मंगवा ली थी, लेकिन आप एग्जॉस्ट फील कर रही हैं तो मैं आपको अपनी गाड़ी में छोड़ आऊं?’
‘मैं अपने घर किसी को भी ले जाना पसन्द नहीं करती।’
घनश्याम के एक नौकर से चाबी लेकर द्रौपदी अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गई। फिर वह कार का दरवाजा खोल रही थी कि अचानक एक बेहद अपटूडेट सूटेड-बूटेड शख्स पाइप हाथ में लिए सामने आ गया और बड़ी सभ्यता से बोला।
‘दखलंदाजी की माफी चाहता हूं।’
‘हुक्म फरमाइए!’
‘मेरा नाम रजनीकांत नागेश है।’
‘फिर?’
‘क्या आपने यह नाम कभी सुना है?’
‘शायद सुना हो। कभी-कभी स्मरण शक्ति भी तो साथ नहीं देती।’ मुझे स्टार मेकर कहते हैं। इस वर्ष पहले मैंने एक फ्लाप हीरों महेंदर को अपनी फिल्म ‘गर्ज’ में लिया था और वह शेर भी गर्जता हुआ सारी फिल्मी दुनिया में छा गया। तब मैंने महेश को दोबारा लेना चाहा तो उसने इसलिए इन्कार कर दिया कि मैं फ्लाप डायरेक्टर था, क्योंकि गर्ज के बाद मेरी कुछ फिल्में फ्लाप हो गई थीं। तब मैंने उसकी जगह फिर एक फ्लाप न्यू कमर रतन छत्रपति को लिया और फिल्म ‘रक्षा’ बनाई। आज मेरी फिल्म ‘रक्षा’ गोल्डन जुबली की तरफ बढ़ रही है। और रतन छत्रपति आज टॉप का हीरो बन चुका है।’
‘शायद आप इस फिल्म का जिक्र कर रहे हैं, जिसके बड़े पोस्टरों पर एक बड़े फिल्मी राइटर सतीश नीलकण्ठ का नाम आता है।’
‘जी हां, वही-वही।’
‘हालांकि उसका असली राइटर वसराज है। आपकी फिल्म ‘गर्ज’ एक मशहूर इन्टरनेशनल फिल्म की नकल पर हिट हुई थी। आपकी फिल्म रक्षा भी कहानी पर हिट हुई है, इसलिए रतन छत्रपति को आपने नहीं, कहानी और उसकी प्रतिभा ने स्टार बनाया और आपने कहानी का क्रेडिट इसलिए सतीश नीलकण्ठ को दे दिया कि वह फिल्मी दुनिया में बड़ा नाम रखता है। आप फिल्में बनाते हैं या इसकी टोपी उसके सिर पर रखते हैं?’
‘ओह!’ रजनीकान्त मुस्कराकर नर्म लहजे में बोला, ‘आप तो नाराज हो गई मैडम, मैं तो‒।’
‘मैं सीमा का इन्टरव्यू पढ़ चुकी हूं। आप उसे अपनी फिल्म में लेना चाहते थे। उसने कहा कि वह आपके टाइप की फिल्मों को पसन्द नहीं करती। लोग कहते हैं कि चेहरे पर सीमा के चेहरे की झलक है। शायद आप इसलिए मेरे द्वारा सीमा को डाउन करना चाहते हैं।’
‘करेक्ट! मैं आपको एक ही फिल्म में एक करोड़ की हीरोइन बना दूंगा।’
‘मिस्टर रजनीकान्त कोई किसी को कुछ नहीं बनाता। वरना आज पन्द्रह लाख रुपये पानेवाला हीरो प्रताप लखन भी तो आपके साथ काम कर चुका है। आपने उसकी किस्मत क्यों नहीं चमकाई? क्योंकि उस फिल्म में न कहानी थी न प्रताप लखन के लिए कहानी का स्कोप।’
फिर वह गाड़ी में बैठने लगी तो रजनीकान्त ने कहा, ‘अरे, सुनिए तो मैडम।’
‘माफ कीजिए, मुझे हीरोइन बनने का शोक नहीं।’
फिर उसकी गाड़ी तेजी से बढ़ती चली गई और रजनीकान्त भौंचक्का-सा आंखें फाड़े गाड़ी का पिछला रोशनियां देखता रह गया।
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द्रौपदी को गाड़ी फ्लैट के कम्पाउंड में दाखिल हुई। उसने देखा, पूरे साढ़े दस बज चुके थे। द्रौपदी ने गाड़ी रोकी। आगे पद्मा की स्पोर्ट्स कार भी खड़ी हुई थी और दीपू का स्कूटर थी। अन्दर बत्ती जल रही थी। द्रौपदी गाड़ी खड़ी करके, बरामदे में बढ़ी तो फौरन दरवाजा खुल गया। दरवाजा खोलने वाली जूली थी। जो उसे देखकर बड़ी ही चिंतापूर्ण अंदाज में मुस्कराई।
‘बच्चे कहां हैं?’ द्रौपदी ने पूछा।
‘डायनिंग रूम में। सब आपकी राह देख रहे हैं।’
‘तुम खाना गर्म करो, मैं अभी हाथ धोकर आती हूं।’
थोड़ी देर बाद जब द्रौपदी डाइनिंग रूम में दाखिल हुई तो ग्यारह बारह साल का दीपू डाइनिंग टेबल पर सिर टिकाए सो रहा था और पद्मा कुर्सी से पीठ लगाए ऊंघ रही थी। द्रौपदी के दिल में ममता की एक गहरी भावना उभरीं और उसने बढ़कर दीपू के सिर पर हाथ फेरा। दीपू हड़बड़ाकर जागा और सीधा बैठता हुआ बोला‒
‘हाय मम्मी!’
दीपू की आवाज से पद्मा भी जाग गई थी। वह भी जल्दी से हड़बड़ाकर उठते हुई बोली‒
‘हाय, मम्मी डार्लिंग!’
‘हाय।’ द्रौपदी बोली, ‘आई एम सॉरी...आज में काफी लेट हो