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@ Second Heaven.Com (@ सैकेंड हैवन.कॉम)
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Ebook393 pages3 hours

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About this ebook

इस उपन्यास की कहानी का बीज एक हवाई यात्रा के दौरान पड़ा। इकोनॉमी सेक्शन में सीटों की तंगी के कारण मुझे अपने सह-यात्री युवा दंपति की बातचीत को मजबूरन सुनना पड़ा, पत्नी के पहनावे से ऐसा लग रहा था कि हाल ही में उनकी शादी हुई है। बातचीत से पता लगा कि वे भारत से पलायन कर अमेरिका बसने जा रहे थे, पति-पत्नी से कह रहा था कि वह अपनी माँ को पीछे छोड़ आने का दोषी महसूस कर रहा है। आधे घंटे के भीतर ही पत्नी ने पति को आश्वस्त करते हुए इस बात के लिए राजी कर लिया कि उन्हें मां के लिए एक साथी ढूँढना चाहिए यानी माँ की शादी कर देनी चाहिए। पति ने भी न सिर्फ हामी भरी बल्कि मैरिज पोर्टल पर एक प्रोफाइल भी तैयार करने की बात करने लगे, हालांकि पति को शंका थी की माँ इस बात के लिए तैयार होगी या नहीं, हम अपने गंतव्य पर पहुँच गए थे अत नहीं पता उनका क्या हुआ?
कहानी पहली नजर में कई भावनात्मक रंगों और विचित्र दिखने वाली स्थितियों से भरे पेंडोरा बॉक्स की तरह सामने आती है। इस कहानी के पात्र मुझे अपने आसपास भी मिले जिन पर पहले कभी ध्यान नहीं गया था।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateSep 15, 2022
ISBN9789355992840
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    @ Second Heaven.Com (@ सैकेंड हैवन.कॉम) - Dr. Shyam Sakha Shyam

    अध्याय 1

    एक बार फिर धोखा

    टीना ने उसे फिर से छोड़ दिया था, यह टीना कि पुरानी आदत या लत थी और वह हमेशा उसके लौटने का इंतजार करता रहा था। वह अक्सर एक-आध महीने में वापस आ जाती थी, लेकिन इस बार पांच साल बीत चुके हैं। उसने हल खोजने की कोशिश की, लेकिन न तो टीना और न ही उसके दो बेटों ने कोई जवाब दिया। छोटे बेटे ने तो स्पष्ट रूप से कह दिया था कि परिवार के पुनर्मिलन का कोई मौका नहीं है और अब उसे उन्हें परेशान करना बंद कर देना चाहिए। उनकी शादी का यह 27 वां साल था, सुबोध इस स्थिति से काफी तंग आ चुका था, इसलिए उसने तलाक के लिए मुकदमा दायर कर दिया।

    एक साल बीत गया उसे अकेलापनपन काटने लगा था और अकेलापन दूर करने हेतु उसे मैरिज पोर्टल आसान तरीका लगा।

    सुबोध ने 2nd heaven.com पर एक प्रोफाइल बनाया तुरन्त मेल मिला।

    इस सप्ताह के लिए पार्टनर मैच।

    कुछ समय सोच कर उसने दो प्रोफाइल्स का चयन किया।

    उसने बेटे-बेटियों द्वारा अपनी-अपनी माताओं के लिए बनाए गए दो प्रोफाइल का चयन किया।

    प्रोफाइल नंबर 1

    कमल- 56 वर्ष, अलग, 5.2

    …मेरी माँ बहुत मजबूत इरादों वाली, मेहनती स्वावलंबी हैं। वह अपनी पसंद और नापसंद के प्रति काफी सजग है, आधुनिक दृष्टिकोण वाली पारंपरिक बहुत ही सुंदर महिला हैं, उनके पिता एक पंजाबी खत्री और मां एक कश्मीरी ब्राह्मण थीं। वह लगभग 8 साल से अपने पति से अलग हैं। उसका चरित्र बहुत मजबूत है और वह कोई बकवास बर्दाश्त नहीं करती है, लेकिन साथ ही वह स्नेहिल व मिलनसार है और एड्जस्टिंग है …

    …मैं उसकी 29 वर्ष की अविवाहित बेटी हूं, मानव संसाधन प्रबंधक के रूप में कार्यरत हूं और मैं खुद शादी करने से पहले माँ के लिए एक साथी ढूंढना चाहती हूं।…

    पार्टनर की पसंद

    समझ-बूझ वाला, यात्रा करने का इच्छुक, होना चाहिए। पार्टनर मौज-मस्ती पसंद करने वाला जीवन का आनंद लेने में सक्षम होना चाहिए, आर्थिक रूप से अच्छी तरह से व्यवस्थित होना चाहिए और रोग से मुक्त होना चाहिए। कृपया धूम्रपान करने वाले आवेदन न करें।

    2

    निर्मला- उम्र 52 साल, विधवा, 5.2

    "गोरी शांतिप्रिय राजपूत महिला है और जीवन के प्रति एक सहज शांत दृष्टिकोण रखती है। 15 साल पहले हमारे पिता के दुखद निधन के बाद से उन्होंने अकेले ही हमारी परवरिश की है। अब हम दोनों भाई बहुत अच्छी तरह से सेटल हो चुके हैं, हम चाहते हैं कि वह अपने जीवन में एक नया अध्याय, एक नए साथी के साथ शुरू करे। …

    वह पतली, सुंदर, उदार और समझदार है। वह नौकरी कर रही है और उसे हमारे पिता की पेंशन भी मिलती है। हम दोनों भाई इंजीनियर हैं और शादीशुदा हैं। हमने बड़ी मुश्किल से माँ को जीवन साथी की तलाश के लिए राजी किया है।

    सुबोध ने दोनों को एक-जैसा मेल भेजा।

    नमस्ते

    मैं चिकित्सक हूं, तलाक का इंतजार कर रहा हूं, मुझे आपका प्रोफाइल पसन्द आया, 2nd हेवन डॉट कॉम पर मेरी आईडी सुबोध 1973 है। यदि आप इसे अपनी आवश्यकता के अनुकूल पाते हैं तो कृपया ss1973@gmail.com या मेरे सेल नंबर पर संपर्क करें।……

    सस्नेह

    सुबोध

    सुबोध को आश्चर्य हुआ जब आधे घंटे में ही उन्हें अनुराग नामक एक व्यक्ति का फोन आया।

    हैलो अंकल! मैं अनुराग हूं और प्रोफाइल मेरी मां के बारे में है; उसने हमारे लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी और अब हम दोनों चाहते हैं कि उसे वह मिले जो उसका हक है। मैं दुबई स्थित मर्चेंट-नेवी में हूं वहीं मेरी पत्नी भी नौकरी करती है, और मेरा बड़ा भाई यू.एस.ए. में है, हम दोनों शादीशुदा हैं। हमने बहुत कोशिश की कि वह अपनी नौकरी छोड़ कर हम भाइयों में से किसी एक के साथ रहे लेकिन वह भारत नहीं छोड़ना चाहती। हम उसके अकेलेपन से चिंतित हैं और बड़ी मुश्किल से उसे जीवन साथी खोजने के लिए राजी किया है।

    चूंकि वह अपनी विधवा पेंशन को छोड़ना पसंद नहीं करेगी, इसलिए कोई औपचारिक विवाह संभव नहीं होगा। अगर लिव-इन रिलेशनशिप आपको मंजूर है तो हम आगे बढ़ सकते हैं।

    इस बातचीत ने सुबोध को खुश और हैरान कर दिया। जाहिर तौर पर उन्होंने कहा कि मुझे ऐसी कोई समस्या नहीं है। क्या तुमने अपनी माँ से मेरे बारे में बात की है?

    -नहीं! लेकिन मैं उससे बात करूंगा, मुझे लगता है कि वह पहले ही यह मुझ पर छोड़ चुकी है। फिर भी, मैं उससे बात करूंगा और कल आपको सूचित करूंगा। -अनुराग

    सुबोध ने जवाब दिया- ओके

    ओके गुडनाइट अंकल अनुराग बोला।

    सुबोध वास्तव में बदले हुए परिदृश्य पर चकित था। भारतीय विवाह का दृश्य अभी सब जगह नहीं बदला है, पर यह सब क्या हो रहा है? अब तक माता-पिता दूल्हे का चयन करते आए थे, आजकल बेटे बेटी इस कर्तव्य को निभा रहे हैं। यानी न तो लड़कियों के पास तब इसके अलावा कोई विकल्प था और न ही अब महिलाओं के पास कोई विकल्प है कि वे पुरुष की छत्रछाया मे न रहें।

    अनुराग ने अगले दिन फोन किया-

    हेलो अंकल! मैं अनुराग, मैंने मॉम से बात की, वह आपसे मिलने को तैयार हैं। इस समय वह हमारे साथ मुंबई में हैं। मैं 3 महीने की छुट्टी पर आया था, पहले ही दो महीने बिता चुका हूँ।

    क्या आपके लिए यहां मुंबई आना और हमसे मिलना संभव होगा?

    सुबोध ने कुछ क्षणों के लिए सोचा, वह खाली था क्योंकि उसने पुराने परिचितों से बचने के लिए अस्पताल से इस्तीफा दे दिया था और अभी कहीं नई नौकरी ज्वाइन नहीं की।

    पर उसने कहा ठीक है! मैं बुधवार को आऊंगा,।

    ठीक है अंकल चलते वक्त मुझे सूचित करें, बाय।

    यह सब क्या है? सुबोध के मन में सवाल उठा, फिर जैसे खुद को तसल्ली दी तुम नियति को तो नियंत्रित नहीं कर सकते? तो जैसा हो रहा है वैसा ही होने दो।

    बुधवार को सुबोध ने फ्लाइट पकड़ी और शाम 5 बजे मुंबई पहुंच गया। अनुराग और उसकी पत्नी सोनिया उसे लेने आए थे उसे अच्छा लगा उनका आना। वे उसे अपने जूहू बीच वाले फ्लैट में ले गए। यहां उनकी मुलाकात निर्मला से हुई, जो वाकई एक सुन्दर सभ्रांत, लेकिन कुछ अंतर्मुखी महिला थी। उसने सुबोध के अभिवादन का उत्तर सिर हिला कर दिया।

    उन्होंने एक साथ चाय ली फिर सुबोध सोनिया के मार्गदर्शन में अतिथि कक्ष में चले गए।

    रात डिनर से पहले अनुराग और सोनिया उसके कमरे में आए और आधे घंटे तक बात की, सोनिया अधिक मुखर थी और उसने उसके परिवार के बारे में खुल कर पूछा। अनुराग जो फोन पर काफी मुखर था, थोड़ा असहज लग रहा था, शायद माँ के लिए पति ढूँढने के नाम पर उसकी मेल ईगो आड़े आ रही थी, फोन पर बात करना अलग बात थी साक्षात में अलग। सुबोध ने संक्षेप में टीना की बीमारी के बारे में बताया, उसे ऐसा लग रहा था कि सोनिया बस पूछने भर के लिए पूछ रही हैं अन्यथा न तो उसे और न ही अनुराग को उसके अतीत में ज्यादा दिलचस्पी लग रही थी। अनुराग ने माफी मांगते हुए कहा, दरअसल, मेरी मां शर्मीले स्वभाव की हैं। उसे खुलने में कुछ समय लगेगा। आप को उसके साथ थोड़ा धैर्य रखना होगा।

    उन्होंने एक साथ डिनर लिया, सुबोध ने निर्मला को बगल से निहारते हुए पाया, वह, बातचीत में बहुत कम शामिल हो रही थी। अगली सुबह अपनी आदत के अनुसार, सुबोध सुबह 5.30 बजे उठ गया, कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर तो उसने निर्मला को लॉबी में चाय पीते हुए पाया।

    गुड मॉर्निंग! सुबोध ने कहा,

    गुड मॉर्निंग निर्मला ने हौले से जवाब दिया, फिर बुदबुदाती सी बोली मैं आपके लिए चाय लाती हूं।

    सुबोध ने कहा- पहले आप अपनी चाय पी लें।

    लेकिन वह रसोई में गई, एक कप चाय और एक बाउल में चीनी ले आई।

    सुबोध ने कप लिया और चाय की चुस्की लेने लगा।

    निर्मला ने झिझकते हुए पूछा कि क्या आप डायबिटिक हैं?

    सुबोध जवाब दिया नहीं।

    चाय खत्म करने के बाद सुबोध ने कहा मैं टहलने जा रहा हूँ।

    निर्मला ने कहा, मैं भी साथ चल रही हूँ।

    वे समुद्र के किनारे आए और आधे घंटे तक सैर करते रहे, इस बीच सुबोध ने बातचीत शुरू करने की कोशिश की लेकिन निर्मला ने मोनोसिलेबल्स में जवाब दिया।

    घर लौटकर सुबोध अखबार लेकर अपने कमरे में चला आया, खबर थी कि स्वामी रामदेव को रामलीला मैदान से गिरफ्तार कर लिया गया था जब वह महिला पोशाक में भागने की कोशिश कर रहे थे।

    नहाने के बाद सुबोध फिर से लिविंग रूम में आया टीवी चालू था, निर्मला बैठी टी.वी. देख रही थी टीवी पर रामदेव महिला के सलवार कमीज में दिख रहे थे, यह दृश्य देखकर निर्मला जोर-जोर से हंसने लगी। सोनिया अंदर आई बोली- अंकल, चाय लेंगे?

    सुबोध- हाँ जरूर।

    निर्मला उठने लगी तो सोनिया बोली, ‘मम्मी आप बैठिए मैं चाय ला रही हूं।

    सोनिया चाय ले आई अनुराग भी आ गया।

    सोनिया अंकल चीनी?

    सुबोध ने सवाल से बचने के लिए कहा एक चम्मच।

    वे सब चाय पर रामदेव के बारे में बात कर रहे थे, नाश्ते के बाद अनुराग ने कहा अंकल ! मुझे किसी काम से अपनी कंपनी के ऑफिस जाना है और सोनिया को बैंक जाना है। आप सोनिया के साथ जा सकते हैं या..

    सुबोध ने बताया कि वह पास के किसी मॉल में जाना चाहेंगे।

    ओके मॉम आपको कंपनी देगी मॉल बहुत करीब है, और वह रास्ता जानती है। निर्मला ने स्वीकृति में सिर हिलाया।

    वे मॉल आ गए थे, अब निर्मला थोड़ा खुलने लगी थी। सुबोध ने एक जोड़ी जींस खरीदी। उसने निर्मला से अपनी पसंद की कोई भी चीज खरीदने को कहा। निर्मला ने पहले तो इंकार कर दिया।

    लेकिन बाद में सुबोध के दोबारा कहने पर स्नीकर्स की एक जोड़ी खरीदने के लिए तैयार हो गई। पे काउंटर पर निर्मला ने अपना पर्स खोलने की कोशिश की लेकिन सुबोध ने भुगतान कर दिया।

    दोपहर के 1 बज गया था, उन्होंने फूड कोर्ट में लंच करने का फैसला किया। लंच के दौरान सुबोध ने निर्मला से पूछा कि क्या वह रिलेशनशिप के लिए तैयार हैं।

    निर्मला बोली- हाँ जब मेरे बेटों को इसमें कोई समस्या नहीं है तो वह भी तैयार है। सुबोध खुद भी मित्त-भाषी था अत: बहुत अधिक बात नहीं हुई।

    वे दोपहर 3 बजे वापस आए और लिविंग रूम में टीवी देखने लगे। निर्मला ने उसे उन धारावाहिकों के बारे में बताया जो उसे पसंद हैं, धारावाहिकों के बारे में बात करते हुए उसने अपने शर्मीलेपन को छोड़ दिया और सुबोध ने उसे आकर्षक पाया।

    क्या वह सचमुच आकर्षक है या वह सिर्फ एक महिला की कंपनी चाहता है यानी वह उसे आकर्षक क्यों लगती है सुबोध ने खुद से पूछा।

    4.30 बजे वे दोनों अपने-अपने कमरे में चले गए।

    उनके मॉल से लौटने के बाद से ही तेज बारिश हो रही थी।

    शाम 7 बजे अनुराग ने फोन आया

    नमस्ते अंकल!

    नमस्कार अनुराग!

    अंकल, यहाँ सभी सड़कों पर पानी भर गया है और हम यहां फंस गए हैं, हो सकता है कि आज रात न आ पाएं। सच में मुझे बहुत अफसोस है।

    ओह! परेशान मत होइये क्या मैं कुछ कर सकता हूँ? सुबोध बोला

    धन्यवाद अंकल! हम रात को पास के एक होटल में रुकेंगे। मैं आपकी देखभाल के लिए माँ को फोन करता हूँ।

    ओह, चिंता न करें हम प्रबंध कर लेंगे।

    कुछ देर बाद निर्मला ने उसका दरवाजा खटखटाया और अनुराग के बारे में बताया। वे लिविंग रूम में आए सुबोध ने टीवी चालू कर दिया। बाबा रामदेव रो-रो कर अपनी कहानी बता रहे थे।

    निर्मला चाय ले आई।

    सुबोध चुस्की लेते हुए बोला चाय बहुत अच्छी है

    मैं इसे सामान्य चाय की पत्तियों के साथ हरी पत्ती और स्वाद के लिए दालचीनी मिलाकर तैयार करती हूं। दालचीनी एक जड़ी-बूटी है और वे कहते हैं कि यह दिल के लिए अच्छी होती है।

    आप रात के खाने में क्या खाना पसंद करेंगे?

    कुछ भी?

    रात के खाने के बाद, वे फिर से लिविंग रूम में टीवी देखने बैठ गये।

    निर्मला ने पूछा, ‘मेरे बारे में आपकी क्या राय है?’

    सुबोध अचानक हुए इस हमले के लिए तैयार नहीं था।

    उस ने कुछ देर सोचकर जवाब दिया- मुझे लगता है कि जब तक हम दोनों कोई फैसला नहीं कर लेते तब तक हमें कई बार मिलना होगा।

    हाँ! आप ठीक कह रहे हैं। दरअसल, मुझे थोड़ा डर लगता है।

    डर, कैसा डर?

    निर्मला सुबोध के पास आकर सोफे पर बैठ गई और बोली- ठगे जाने का डर धोखा खाने का डर।

    धोखा?

    हाँ किस्मत ने मुझे पहले भी धोखा दिया था, जब अनुराग के पापा गये तब मैं सिर्फ 37 साल की थी और इतना कहकर वह सुबोध के कंधे पर झुक गई।

    सुबोध को थोड़ा अजीब लगा, लेकिन उसने कुछ नहीं किया फिर बोला भविष्य के बारे में कोई नहीं बता सकता और इस उम्र में तो हम पहले से ही बोनस पर जी रहे हैं। कहते हैं 60 साल बाद जीवन का हर साल वक्त का दिया बोनस होता है। सत्तर के बाद हर महीना एक बोनस है और अस्सी के बाद हर सांस एक बोनस ही है।

    सुबोध को तब राहत मिली जब निर्मला ने अपना सिर उनके कंधे से हटा लिया और कहा- अनुराग ने कहा था कि आप बहुत बुद्धिमान हैं, अब मुझे भी विश्वास हो गया है।

    क्या इस बात को वह चापलूसी समझे? सुबोध ने मन ही मन सोचा।

    उन्होंने 1.30 बजे तक बात की।

    उसने उसे बस अपने पति, बेटों और अपनी दो बहुओं और अपने मायके के परिवार के बारे में विस्तार से बताया।

    फिर सुबोध द्वारा दीवार घड़ी की ओर इशारा करने के बाद वे अपने कमरे में चले गए।

    अगले दिन अनुराग और सोनिया सुबह 10 बजे आए और असुविधा के लिए फिर से माफी मांगी।

    सुबोध ने रुखसत ली और अपनी योजना के अनुसार वापस आ गया।

    रात को अनुराग का फोन आया- हेलो अंकल! आशा है आपकी यात्रा आरामदायक रही।

    जी! सुबोध ने जवाब दिया।

    अंकल मुझे लगता है कि आप दोनों एक दूसरे को जानने हेतु कुछ दिन साथ-साथ यात्रा करें, सोनिया कह रही है अगर संभव हो तो आप और माँ यूरोप की यात्रा का प्रोग्राम बना लें।

    सुबोध प्रस्ताव पर थोड़ा खुश हुआ लेकिन जाहिर तौर पर कहा- ठीक है मैं सोचकर आपको सूचित करूंगा।

    ओके अंकल सोनिया और माँ आपका अभिवादन कर रहे हैं।

    धन्यवाद, कृपया उन्हें मेरा नमन कहें।

    बाय अंकल! मैं आपके जवाब का इंतजार करूंगा।

    बाय

    अगले दिन सुबोध ने मेल में लिखा

    हेलो अनुराग,

    आप लोगों के साथ रहकर मुझे अच्छा लगा, मैंने आपके प्रस्ताव पर विचार किया और इसे काफी व्यावहारिक पाया। जिस रात बारिश की वजह से आप घर नहीं आ सके, मैंने और निर्मला जी ने खूब बातें कीं। वह अभी भी रिश्ते से थोड़ा डरती है और इस उम्र में ऐसा सोचना गलत नहीं है। वह बात करती हुए कह रही थीं कि रिश्तेदार क्या कहेंगे और क्या सोचेंगे आदि …मैं उनकी दुविधा को समझता हूं।

    तो मैं आपके इस प्रस्ताव के बारे में सहमत हूं बाकी परिस्थितियाँ भविष्य को तय करने दें, तब तक दोस्त बन यात्रा करें।

    हम अपने अगले दौरे पर कहां जाएंगे, इस हेतु निर्मला जी से चर्चा करेंगे, यात्रा अक्टूबर के अंत या नवंबर में हो सकती है।

    हाँ एक बात कहनी थी हालांकि मुझे बात करने में बहुत अजीब लगता है लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि मुझे बात कर लेनी चाहिए। जब दो अंजान वयस्क साथ यात्रा करते हैं तो ऐसी स्थितियों में, उनमें शारीरिक अंतरंगता पनप सकती हैं। हालांकि मैं बचने की कोशिश करूंगा, लेकिन आप ऐसी स्थिति में क्या हो जाये हम कभी नहीं जान सकते, मुझे आपको यह बताना होगा कि अगर ऐसा होता है तो इसे किसी प्रतिबद्धता के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। यदि इस विषय पर मेरे विचार से आपकी भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। लेकिन मैं एक सीधा-सादा स्पष्ट व्यक्ति हूँ और मेरे पास इस विषय में आपसे बात करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था, क्योंकि इस विषय पर निर्मला जी से बात करना बहुत कठिन है।

    सुबोध

    पांच दिन बीत गए लेकिन अनुराग की ओर से कोई जवाब नहीं आया। सुबोध ने सोचा शायद मेरी स्पष्टवादिता उन्हे अपमानजनक लगी।

    उसे आगे से सावधान रहना होगा, क्या उसने एक संभ्रांत महिला एक संभावित जीवन साथी के साथ, अपरिचित देशों की यात्रा का मौका गंवा दिया?

    लेकिन उसका सोचना गलत था। छठे दिन उसे अनुराग का मेल मिला।

    प्रिय अंकल

    देर से प्रतिक्रिया के लिए खेद है.. दरअसल, ऑनलाइन नहीं आ पाया था। बारिश के कारण नेट नहीं था अंकल मुझे और सोनिया को लगने लगा है कि आप परिवार का हिस्सा हैं …हम आपके बारे में अक्सर बातें करते रहते हैं।

    मुझे खुशी है कि आप और माँ का एक-दूसरे के साथ अच्छा समय कटा।

    खैर जहां तक शारीरिक अंतरंगता की बात है, मैं इतना ही कह सकता हूं कि इसकी योजना नहीं बनाई जा सकती और अगर ऐसा होता भी है तो यह आप दोनों का चुनाव होगा और निर्णय आप दोनों को ही करना चाहिए। लेकिन मुझे नहीं लगता कि मम्मी इसके लिए कम से कम अभी के लिए तैयार होंगी।

    हम दोनों आपकी अगली यात्रा की प्रतीक्षा करेंगे। कृपया मुझे अपनी यात्रा की सुविधाजनक तिथियां बताएं ताकि मैं व्यवस्था कर सकूं।

    सादर

    सोनिया और अनुराग

    - -

    सुबोध ने एक ही साथ राहत और प्रसन्नता महसूस की। उसने मन ही मन अनुराग और सोनिया की परिपक्वता की भी सराहना की। उसने भविष्य के बारे में सोचना शुरू कर दिया कि क्या वह शीघ्र ही सुंदर सुशील पत्नी एक, बुद्धिमान बेटे और पुत्रवधू के साथ एक खुशहाल परिवार का हिस्सा होगा?

    लेकिन उसकी कल्पना में निर्मला के स्थान पर टीना को अपनी पत्नी के रूप में पाकर हैरान था।

    टीना! टीना, तुम कहाँ हो? तुमने ऐसा क्यों किया है? तुमने, हमारे पुत्रों को मुझ से क्यों छीन लिया?

    बैक टू प्रेजेंट उन्होंने अनुराग को लिखा कि वर्तमान में यात्रा करने के लिए अक्टूबर सही महीना है।

    क्योंकि इसके बाद संभवत उसे जॉब जॉइन करनी पड़े।

    अगर संभव हो तो 3 अक्टूबर से 14 तक यात्रा की योजना बनाई जा सकती है, यात्रा के कई पैकेज फ्रांस, इटली, स्विट्जरलैंड और यूके आदि के उपलब्द्ध हैं देख लें।

    सुबोध अब कुछ कुछ आश्वस्त होने लगा था कि शायद उसकी तनहाई का अंत हो ही जाएगा, फिर भी उसने मेरिज पोर्टल पर दूसरों के साथ बातचीत के विकल्प को खुला रखा हुआ था…..

    अचानक एक सुबह अनुराग का फोन आया, ‘अंकल, कल रात माँ को ब्रेन स्ट्रोक हुआ और उन्हें जसलोक अस्पताल में भर्ती कराया गया है, वह बात नहीं कर पा रहीं हैं और दाहिने हाथ और पैर प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं।

    ओह! खेद है। वह लेफ्टी ना।

    हां लेकिन इसका क्या मतलब है, अनुराग ने पूछा।

    खब्बू यानी बाएँ हाथ से काम करने वाले के मस्तिष्क में वाक केंद्र दाईं ओर स्थित होता है और दायें हाथ वाले में इसके विपरीत।

    मैं समझ रहा हूँ, क्या यह अधिक गंभीर स्थिति है?

    नहीं, दोनों में समान रिस्क है।

    मैं उनसे मिलना पसंद करूंगा।

    जैसा आप चाहें, अंकल!

    सुबोध ने अगले दिन विमान पकड़ा। वहाँ जाकर उसने निर्मला को बिस्तर पर लेटे हुए पाया, वह बिस्तर के पास एक स्टूल पर बैठ गया। निर्मला ने उसका हाथ पकड़ कर धीरे से उसका हाथ दबाया और कुछ कहने की कोशिश की, सुबोध उसके चेहरे के पास झुक

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