Pralay Ke Beech
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About this ebook
यह पुस्तक उनके द्वारा एक विशेष प्रकार की शैली और खास विधा में लिखी गई है, जो डायरी, संस्मरण और रिपोर्ताज विधा का अद्भुत संगम है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस पुस्तक को पढ़ने के पश्चात पाठकों को केदारनाथ आपदा की सही और प्रमाणिक जानकारी मिल पाएगी, निश्चित रूप से पाठकों की आंखें सम्पूर्ण घटनाक्रम को पढ़ते हुये छलछला आएगी।
इस भयंकर आपदा में हताहत हुए सभी श्रद्धालुओं एवं स्थानीय लोगों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं यह पुस्तक आप सबके हाथों में सौंप रहा हूं।
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Pralay Ke Beech - Dr. Ramesh Pokhriyal 'Nishank'
मन्दिर
बारिश ने किया जन जीवन अस्त-व्यस्त
भारी अनिष्ट की आशंका
हर हाल में पहुँचना था केदारनाथ
बारिश ने किया जन जीवन अस्त-व्यस्त
लगातार जारी भारी बारिश से ऐसा लग रहा था मानों आसमान आज प्रलय बरसा रहा हो। लोग दो दिनों से घरों के अन्दर कैद जैसे हो गए थे। 15 जून, 2013 को सुबह शुरू हुई हल्की बारिश ने गर्मी से तपते जनमानस को काफी राहत पहुँचाई। जून माह के उच्चतम तापमान से उकताये स्त्री-पुरुष, बाल और वृद्धों के चेहरे बारिश की इन फुहारों से खिल उठे। 16 जून को भारी वर्षा हुई। रात बारिश पड़ती रही और अगले दिन 17 जून तक बारिश का कहर जारी रहा।
सुबह से ही मुझे अपने विधान सभा क्षेत्र डोईवाला, हर्रावाला आदि कई स्थानों से लोगों के फोन आने शुरू हो गए थे। अतिवृष्टि के कारण जगह-जगह जलभराव, घरों में पानी एवं मलवा घुसने, सड़कें अवरुद्ध होने की सूचनाएं आ रही थीं। मैं सुबह ही घर से डोईवाला क्षेत्र के लिए निकल गया। अत्यधिक वर्षा के कारण लोग घरों में कैद होकर रह गए थे। जनजीवन जैसे पूरी तरह ठप्प हो गया था।
उत्तराखण्ड की अपनी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियाँ हैं। ऊँची-नीची पहाड़ियों वाले इस पहाड़ी प्रदेश में समय-असमय आपदायें आती ही रहती हैं। कभी भू-स्खलन, तो कभी अतिवृष्टि से यहाँ पर जनजीवन प्रभावित होता रहा है।
प्राकृतिक आपदा पर तो किसी का नियन्त्रण नहीं होता, किन्तु उसका न्यूनीकरण और प्रबन्धन तो हमारे बस में होता ही है। यद्यपि ऐसी स्थिति में मैं भी अकेला कुछ कर पाने में असमर्थ था, फिर भी इस विश्वास के साथ कि प्रभावितों के पास पहुँचकर सरकारी मशीनरी को सूचित भी कर पाऊँगा और उनके पास पहुँचकर उनका दुःख-दर्द बांटकर मनोबल भी बढ़ाऊंगा, इसीलिये घर से निकल पड़ा।
देहरादून और आसपास के क्षेत्रों के सूखी नदियां और नाले, गधेरे उफना गए थे, निचले क्षेत्रों में बसी बस्तियों में एक ओर जहां पानी का भराव हो गया था, वहीं दूसरी ओर नदी-नालों के किनारे बसी बस्तियां खतरे की जद में आ गई थीं।
राज्य बनने के पश्चात पिछले 14 वर्षों में देहरादून शहर का तेजी से विकास हुआ है। विकास के साथ ही यहाँ पर सड़कों और आवासीय कॉलोनियों पर भारी दबाव बन गया। एक अनुमान के तहत पिछले 14 वर्षों में शहर की जनसंख्या दुगुने के करीब आ पहुँची है। इसी गति से यहाँ पर गली-गाँव में बहुमंजिली भवनों का निर्माण भी हुआ है दूसरी ओर चौड़े विस्तार वाले नदी, नालों को पाटकर बस्तियाँ बस गई हैं। इस कारण उफनाये नदी, नालों का पानी बस्तियों तक पहुँच रहा है। जलभराव की यह एक बहुत बड़ी समस्या बन गई है। जिस पर नियन्त्रण करने के लिये पूरी मशीनरी को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता।
मैंने कई जगह निरीक्षण किया और अधिकारियों को निर्देश भी दिए। अनेक क्षेत्रों में सड़कें पानी में डूब गयी थीं, जबकि कुछ बस्तियों में पानी घरों के अन्दर तक घुस गया था लोग किसी तरह अपना सामान बचाने का यत्न कर रहे थे। यह सिर्फ एक जगह का हाल नहीं था, अपितु हर जगह ऐसी स्थिति बन गई थी। अब लोगों के मन में खौफ भी भर गया था, क्योंकि बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी, लोगों का कहना था कि इतने लम्बे समय तक ऐसी तेज बारिश उन्होंने पहले कभी नहीं देखी। लोग शासन प्रशासन को खूब कोस रहे थे। इसके अलावा आम जनता कर भी क्या सकती थी।
एक जगह नहीं अपितु दिनभर मैं अनेक स्थानों पर गया। समाधान के लिये सड़क विभाग और नगर निगम सहित अनेकों अधिकारियों को प्रभावित स्थलों पर राहत पहुंचाने हेतु मैंने खटखटाया, तथा ग्रामीण क्षेत्र में बस्तियों के बीच जो-जो मदद हो सकती है पूरी कोशिश में जुटा रहा।
भारी अनिष्ट की आशंका
दिनांक 17 जून 2013 सोमवार।
मुझे बताया गया कि केदारनाथ धाम में वर्षा और भूस्खलन के चलते भारी तबाही हो गई है। सुनकर मैं स्तब्ध रह गया। अनुमान नहीं लगा पा रहा था कि यह किस प्रकार की घटना घटी होगी। फिर एक नहीं अनेक जगहों से मुझे फोन आने लगे, जितने लोगों से बात होती उतनी ही तरह की अलग-अलग जानकारियां मिल रही थीं। कोई कहता कि पचास आदमी बह गए, कोई कहता कि बाढ़ आई तो कोई कहता कि बादल फटा। बहरहाल कुछ भी स्पष्ट समाचार नहीं मिल रहा था, क्योंकि फोन करने वाले भी घटनास्थल से कहीं दूर थे। गौरीकुण्ड, रामबाड़ा और केदारनाथ से कोई भी फोन नहीं आया था, जिससे कि घटना के बारे में कुछ स्पष्ट जानकारी मिल पाती। जिन भी लोगों से मेरी बात हुई उनसे भी आधी-अधूरी और सुनी-सुनाई बात ही पता चली। पिछले दो दिनों से चल रही बारिश की तीव्रता को देखते हुए मैं भी आशंकित था कि कुछ अनहोनी जरूर हुई होगी।
मन्दिर प्रांगण में स्थित नन्दी जी का फूलों से किया गया श्रृंगार
मेरे मन में अनेक प्रश्न उठने लगे। क्या अतिवृष्टि के कारण वहाँ पर गाड-गधेरों और नदियों का प्रवाह बढ़ गया होगा या फिर कोई बादल ही फटा होगा। घटना कहां हुई, इसका भी कुछ स्पष्ट अंदाज लगा पाना मेरे लिए असंभव था। जिन लोगों से बात हुई भी तो सिग्नल कम होने के कारण स्पष्ट बातचीत नहीं हो पायी।
हालांकि मैंने मुख्यमंत्री से दो-तीन बार टेलीफोन पर वार्ता की, लेकिन उनके पास किसी भी प्रकार की पुख्ता जानकारी नहीं थी। डोईवाला ग्रामीण भ्रमण से शाम ढले मैं भी वापस देहरादून आ पहुंचा, केदारनाथ की सूचना से मन में उथल-पुथल मची हुई थी। लिहाजा मैंने विचार किया कि अपने स्तर से खुद ही टेलीफोन करके जानकारियाँ जुटाऊं। मैंने केदारनाथ, गौरीकुण्ड, सीतापुर और गुप्तकाशी सहित अनेकों स्थानों पर लोगों से बात करने की कोशिश की, लेकिन कहीं भी फोन नहीं मिला। एक नहीं अनेक लोगों से मैंने बातचीत का प्रयास किया, लेकिन किसी से भी स्पष्ट जानकारी नहीं मिली।
मैंने पुलिस अधीक्षक रूद्रप्रयाग से टेलीफोन पर वार्ता कर स्थिति के बारे में जानकारी चाही। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि उन्हें भी रामबाड़ा में भारी तबाही की सूचना मिली है। पुलिस अधीक्षक के अनुसार रामबाड़ा में तैनात एक पुलिस कर्मी ने वायरलैस सैट पर सूचना दी -‘ऊपर बादल फट गया है भयंकर आवाज के साथ सैलाब तेजी से नीचे आ रहा है लोग अपनी जान बचा........,’ उसके इतना कहते ही वायरलैस का सम्पर्क भी कट गया, लेकिन सूचना देने वाले पुलिसकर्मी और चौकी पर तैनात अन्य पुलिसकर्मियों से फिर सम्पर्क नहीं हो पाया।
मुझे यह सुनकर अंदाजा लगाने में जरा भी देर नहीं लगी कि यह कोई छोटी घटना नहीं है। आखिर सूचना देने वाले पुलिसकर्मी ने फिर कोई और अन्य सूचना क्यों नहीं दी तथा वायरलैस सैट पर बात होनी बंद क्यों हो गयी।
मैंने तुरंत मुख्यमंत्री जी से वार्ता की। उन्हें अपनी आशंका से अवगत कराया। जिला प्रशासन द्वारा शासन को जो सूचनाएं प्रेषित की गयी थीं, उसके अनुसार अतिवृष्टि के कारण नदी में आये उफान में दो दर्जन से अधिक लोगों की बहकर लापता हो जाने की खबरें थीं। इसके पश्चात मुख्य सचिव सहित अनेक अधिकारियों और जो भी सम्पर्क में आ सकते थे, उन सभी लोगों से वार्ता की। किसी बड़ी अनहोनी की आशंका से मैं ठीक से सो भी नहीं पाया।
हर हाल में पहुँचना था केदारनाथ
18 जून, 2013 की सुबह मुख्यमंत्री द्वारा सचिवालय एनेक्सी में एक आपात बैठक बुलाई गई जिसमें पूरी कैबिनेट के साथ प्रमुख अधिकारीगण और विपक्षी दलों को भी बुलाया गया। विलम्ब से सूचना मिलने के कारण पहले मेरा मन बैठक में जाने का नहीं था, किन्तु फिर स्थिति की गम्भीरता और महत्त्वपूर्ण मुद्दे के मद्देनजर मैंने बैठक में जाने का निर्णय लिया।
बैठक के पश्चात मैंने मुख्यमंत्री जी से अलग से उनके कक्ष में मुख्य सचिव और अपर मुख्य सचिव की उपस्थिति में वार्ता की।
कुछ अधिकारी बार-बार कह रहे थे कि यह कोई बड़ा हादसा नहीं है। उनके अनुसार गौरीकुण्ड में कुछ जानमाल की हानि जरूर हुई है, जबकि मैंने जोर देकर कहा कि निश्चित रूप से यह बड़ा हादसा है। मैंने मुख्य सचिव सुभाष कुमार से वर्ष 2010 में आई आपदा के बारे में भी बात कर तत्कालीन परिस्थितियों का स्मरण करवाया। जब मैं मुख्यमंत्री था और प्रदेश में भारी वर्षा के कारण अनेक स्थानों पर भू-स्खलन से व्यापक जन-धन की क्षति हुई थी। उस समय जिस तरह आपदा से निपटने की रणनीति बनाई गई थी आज पुनः उसकी आवश्यकता है, ताकि परिस्थितियों का मुकाबला पूरी ताकत के साथ किया जाय। मुख्यमंत्री जी ने ध्यानपूर्वक मेरी बातों को सुना और कहा कि वे घटना को गम्भीरता से लेंगे।
मुझे आश्चर्य हुआ कि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को प्रशासन द्वारा पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं करायी गयी थीं। शासन के पास कोई भी वास्तविक सूचनाएं नहीं थीं। रूद्रप्रयाग जिला प्रशासन द्वारा जो प्रारम्भिक सूचनाएं शासन को भेजी गई थीं उसके अनुसार अब तक चालीस से भी अधिक लोगों के बहने की आशंका व्यक्त की गई थी और कुछ लोगों के लापता होने की बात भी कही गई थी, जिला प्रशासन भी घटनास्थल तक नहीं पहुँच पाया था। जैसा कि मुझे अनेक लोगों द्वारा टेलीफोन से तबाही की स्थिति के बारे में बतलाया गया तो उस पर स्वयं मुझे भी विश्वास नहीं हो पा रहा था कि वास्तव में यह इतनी बड़ी त्रासदी हो सकती है।
मैंने मुख्यमंत्री जी से वहां पर तत्काल अलग-अलग सेक्टर बनाने और हर सेक्टर में एक मंत्री और एक सचिव को तैनात करने तथा जिला प्रशासन को राहत हेतु त्वरित कार्यवाही किए जाने हेतु निर्देशित करने का सुझाव दिया।
मेरे मन में अनेक शंकाएं जन्म ले रही थीं। क्या सचमुच वहां पर इतनी बड़ी तबाही हुई होगी? यदि ऐसा हुआ होगा तो बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण होगा। वहां पर पहुंचे हुए हजारों श्रद्धालुओं और व्यावसायियों की स्थिति न जाने क्या होगी। वास्तविकता जानने के लिए मैंने निश्चय कर लिया कि मुझे आज ही वहां पहुंचना होगा।
अपने आवास पर पहुँचते ही मैंने एक हैली कम्पनी से टेलीफोन पर केदारनाथ त्रासदी के बारे में वार्ता की और उनसे तत्काल हेलिकॉप्टर उपलब्ध कराने का आग्रह किया। लगातार पड़ रही बारिश के कारण सड़कें जगह-जगह पर टूट गई थी। इस पहाड़ी प्रदेश में हल्की बारिश के कारण भी सड़कों पर मलबा आ जाना आम बात है। फिर यह तो लगातार तीन दिन से बारिश हो रही थी। देहरादून से गौरीकुण्ड के बीच एक नहीं बल्कि अनेक स्थानों पर सड़कें टूटी थी। केदारनाथ जाने के लिये हवाई मार्ग के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं था। मैंने तत्काल केदारनाथ की पूर्व विधायक आशा नौटियाल, भाजपा के प्रवक्ता एवं पूर्व सांसद बलराज पासी तथा पूर्व प्रदेश महामंत्री एवं प्रवक्ता सुरेश जोशी से हैलीपैड पहुँचने का आग्रह किया। वे लोग जैसी स्थिति में थे वैसे ही हैलीपैड पहुँच गए।
हैलीपैड पहुँचने के पश्चात सम्बन्धित हैली कम्पनी के अधिकारी ने बताया कि भारी वर्षा के कारण जगह-जगह हैलीपैड भी ध्वस्त हो चुके हैं, हेलिकाप्टर लैण्ड करने में भारी कठिनाई होगी। मौसम खराब होने एवं कोहरे के कारण आपका हवाई मार्ग से जाना अत्यंत जोखिम भरा होगा।
यह सब जानने के पश्चात भी मेरा मन वास्तविकता जानने के लिए उद्वेलित था। मैंने पुनः कहा कि मुझे हर हाल में आज ही केदारनाथ जाना है। हमें जानकारी दी गयी कि केदारनाथ की परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि हेलिकाप्टर में चार लोग नहीं जा सकते थे। इसलिए मैंने श्रीमती आशा नौटियाल जी को फाटा जाने और स्थानीय लोगों के सहयोग से वहाँ फंसे यात्रियों की मदद करने को कहा। तत्पश्चात हम लोगों ने केदारनाथ के लिए उड़ान भर दी। इधर देहरादून में मौसम काफी हद तक खुल गया था। वहाँ के मौसम के बारे में हम फिलहाल अनभिज्ञ ही थे। बहरहाल, हमने उड़ान भर ही दी।
प्रलय का मंजर देख दिल दहल उठा दिल
जान बचाने की जद्दोजहद
भारी आक्रोशित थे लोग
खौफ के साये में हजारों यात्री
प्रधानमंत्री जी, मैं निशंक बोल रहा हूँ
मुख्यमंत्री जी, यहाँ हजारों लोग हताहत हो गए
प्रलय का मंजर देख दहल उठा दिल
देहरादून से आगे बढ़ते हुए हमको मौसम लगभग साफ ही मिला। श्रीनगर पहुँचने पर जो दृश्य मेरे सामने था उसकी तो मैंने कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी। अलकनंदा नदी ने अपने प्रचण्ड वेग और रौद्र रूप से श्रीनगर के एस.एस.बी. परिसर की ओर भारी तबाही मचायी थी तथा नदी ने अपना रास्ता ही बदल दिया था। नदी किनारे से लगी बस्तियाँ जलमग्न हो चुकी थीं। चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल दिखाई दे रहा था।
आपदा के तत्काल बाद दफन हो चुके केदारनाथ बाजार का भयावह