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S2 Ep1: जल के देवता - वरुण
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Length:
8 minutes
Released:
Aug 2, 2022
Format:
Podcast episode
Description
हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हमारे धर्म में विभिन्न देवी-देवताओं को अलग-अलग सार्वभौमिक जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। प्रकृति के विभिन्न तत्व जैसे वायु, अग्नि, पृथ्वी, जल, आकाश आदि विभिन्न देवताओं द्वारा ही संचालित किये जाते है। वैदिक युग के दौरान इन देवताओं के पास सर्वोच्च अधिकार था। वरुण ऐसे वैदिक देवताओं में से एक है। वह ऋषि कश्यप और अदिति के पुत्र है और उनसे पैदा हुए 12 आदित्यों में से एक है । उन्हें ब्रह्मांड के सर्वोच्च देवता के रूप में माना जाता है, जिन्होंने ब्रह्मांड के विभिन्न पहलुओं जैसे आकाश, जल, महासागरों, वर्षा आदि को नियंत्रित किया है एवं उन्हें लोगों को उनके पापों के लिए दंडित करने के लिए भी जाना जाता है। मान्यता के अनुसार उनके पास एक सर्वव्यापी आंख थी जो ब्रह्मांड की प्रत्येक गतिविधि पर नजर रखती है। वरुण देव को प्राचीन चित्रों में 1000 आँखों वाले भगवान के रूप में भी चित्रित किया गया है और उनकी सवारी मगरमच्छ है। हालांकि इन सबके साथ-साथ उन्हें एक परोपकारी पक्ष के लिए भी जाना जाता है जहाँ उन्हें लोगों को उनके पापों के लिए क्षमा दान देते हुए भी दिखाया गया है।
जिन लोगों ने पश्चाताप किया, उन्हें वरुण देव ने क्षमा दान भी दिया। प्रारम्भ में वरुण देव को देवताओं के राजा के रूप में भी जाने जाते थे और वह स्वर्ग में रह कर राज्य करते और पृथ्वी वासियों पर नज़र रखते थे।
हालांकि बाद के हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार कहा जाता है कि वरुण देव ने भगवान इंद्र के लिए अपना राज्य और स्वर्ग का सिंहासन खो दिया और जिसके बाद भगवान इंद्र ने मुख्य देवता की भूमिका निभाई। वैदिक युग के समय से ही देवी-देवताओ के साथ-साथ ब्रह्मा विष्णु और महेश मुख्य देवता के रूप में पूजे जाते है। वरुण देव का महासागरों एवं जल स्रोतों पर पूर्ण अधिकार था और उन्हें अभी भी सत्य और धार्मिकता का रक्षक माना जाता था। वरुण देव के वैदिक देवताओ में एक देवता परम सखा थे जिनका नाम था - "मित्र"। मित्र देव ब्रह्माण्ड में शपथ और संधियों की व्यवस्था स्थापित करने के लिए जाने जाते थे । इसलिए इन दोनों देवताओ का आह्वान किसी भी यज्ञ,पूजा-पाठ या वैदिक कार्यों में साथ ही किया जाता है।
इसके साथ साथ ही रामायण के महाकाव्य कथा में भी वरुण देव का उल्लेख मिलता है। बात उस समय कि है जब भगवान श्री राम, लक्ष्मण और वानर सेना सहित माता सीता को लंका से छुड़ाने के लिए दक्षिण में समुद्र के किनारे आ कर रुक गए थे। उन्हें हिंद महासागर को पार करके लंका द्वीप तक पहुंचना था। हालाँकि समुद्र बहुत गहरा और विशाल था उसकी दूरी बहुत अधिक थी। उस समय समुद्र को पार करने के लिए भगवान राम ने वरुण देव का ध्यान करके उनसे उनकी सहायता लेने का फैसला किया। वह तीन दिनों तक लगातार ध्यान करते हुए वरुण देव से सहायता करने का आग्रह करते रहे। जिसके बाद भी वरुण देव सहायता के लिए प्रकट नहीं हुए। वरुण देव के इस कार्य ने भगवान श्रीराम को क्रोधित कर दिया जिससे भगवान राम ने वरुण देव को सहायता ने करने के लिए को चेतावनी दे दी। उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि देवताओं ने हमारी प्रार्थना स्वीकार नहीं की उन्होंने हमारे शांति प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। इसलिए मैंने अपने धनुष-बाण से समुद्र पर आक्रमण करने का निश्चय किया। जिससे पूरा समुद्र सूख जायेगा और हम बिना किसी परेशानी के लंका तक पहुंच जायेगे । प्रभु श्री राम का क्रोध देख कर वरुण देव उनके सामने क्षमा मांगते हुए प्रकट हुए। उन्होंने कहा कि वह उनकी इस समस्या का समाधान ढूंढने में असमर्थ थे इसलिए वह आपके सामने प्रकट नहीं हो पाए। किन्तु उन्होंने प्रभु श्रीराम को एक सुझाव दिया और उनसे आग्रह किया की वह इस सागर पर पत्थरों से पुल बनाये जिसे वह डूबने नहीं देंगे और भगवान राम की सेना आसानी से लंका तक पहुंच सकेगी।
वरुण देव का विवाह देवी वरुणी से हुआ था। हालांकि भगवान वरुण को समर्पित कई मंदिर नहीं हैं, लेकिन पाकिस्तान में 1000 साल पुराना वरुण देव का मंदिर स्थित है। जहाँ आज भी कई नाविक और मछुआरे समुद्र में यात्रा शुरू करने से पहले उनकी पूजा करने जाते है। | ReplyForward | |
जिन लोगों ने पश्चाताप किया, उन्हें वरुण देव ने क्षमा दान भी दिया। प्रारम्भ में वरुण देव को देवताओं के राजा के रूप में भी जाने जाते थे और वह स्वर्ग में रह कर राज्य करते और पृथ्वी वासियों पर नज़र रखते थे।
हालांकि बाद के हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार कहा जाता है कि वरुण देव ने भगवान इंद्र के लिए अपना राज्य और स्वर्ग का सिंहासन खो दिया और जिसके बाद भगवान इंद्र ने मुख्य देवता की भूमिका निभाई। वैदिक युग के समय से ही देवी-देवताओ के साथ-साथ ब्रह्मा विष्णु और महेश मुख्य देवता के रूप में पूजे जाते है। वरुण देव का महासागरों एवं जल स्रोतों पर पूर्ण अधिकार था और उन्हें अभी भी सत्य और धार्मिकता का रक्षक माना जाता था। वरुण देव के वैदिक देवताओ में एक देवता परम सखा थे जिनका नाम था - "मित्र"। मित्र देव ब्रह्माण्ड में शपथ और संधियों की व्यवस्था स्थापित करने के लिए जाने जाते थे । इसलिए इन दोनों देवताओ का आह्वान किसी भी यज्ञ,पूजा-पाठ या वैदिक कार्यों में साथ ही किया जाता है।
इसके साथ साथ ही रामायण के महाकाव्य कथा में भी वरुण देव का उल्लेख मिलता है। बात उस समय कि है जब भगवान श्री राम, लक्ष्मण और वानर सेना सहित माता सीता को लंका से छुड़ाने के लिए दक्षिण में समुद्र के किनारे आ कर रुक गए थे। उन्हें हिंद महासागर को पार करके लंका द्वीप तक पहुंचना था। हालाँकि समुद्र बहुत गहरा और विशाल था उसकी दूरी बहुत अधिक थी। उस समय समुद्र को पार करने के लिए भगवान राम ने वरुण देव का ध्यान करके उनसे उनकी सहायता लेने का फैसला किया। वह तीन दिनों तक लगातार ध्यान करते हुए वरुण देव से सहायता करने का आग्रह करते रहे। जिसके बाद भी वरुण देव सहायता के लिए प्रकट नहीं हुए। वरुण देव के इस कार्य ने भगवान श्रीराम को क्रोधित कर दिया जिससे भगवान राम ने वरुण देव को सहायता ने करने के लिए को चेतावनी दे दी। उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि देवताओं ने हमारी प्रार्थना स्वीकार नहीं की उन्होंने हमारे शांति प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। इसलिए मैंने अपने धनुष-बाण से समुद्र पर आक्रमण करने का निश्चय किया। जिससे पूरा समुद्र सूख जायेगा और हम बिना किसी परेशानी के लंका तक पहुंच जायेगे । प्रभु श्री राम का क्रोध देख कर वरुण देव उनके सामने क्षमा मांगते हुए प्रकट हुए। उन्होंने कहा कि वह उनकी इस समस्या का समाधान ढूंढने में असमर्थ थे इसलिए वह आपके सामने प्रकट नहीं हो पाए। किन्तु उन्होंने प्रभु श्रीराम को एक सुझाव दिया और उनसे आग्रह किया की वह इस सागर पर पत्थरों से पुल बनाये जिसे वह डूबने नहीं देंगे और भगवान राम की सेना आसानी से लंका तक पहुंच सकेगी।
वरुण देव का विवाह देवी वरुणी से हुआ था। हालांकि भगवान वरुण को समर्पित कई मंदिर नहीं हैं, लेकिन पाकिस्तान में 1000 साल पुराना वरुण देव का मंदिर स्थित है। जहाँ आज भी कई नाविक और मछुआरे समुद्र में यात्रा शुरू करने से पहले उनकी पूजा करने जाते है। | ReplyForward | |
Released:
Aug 2, 2022
Format:
Podcast episode
Titles in the series (48)
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