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Kahawato Se Kamyabi Ki Aur (कहावतों से कामयाबी की ओर)
Kahawato Se Kamyabi Ki Aur (कहावतों से कामयाबी की ओर)
Kahawato Se Kamyabi Ki Aur (कहावतों से कामयाबी की ओर)
Ebook272 pages2 hours

Kahawato Se Kamyabi Ki Aur (कहावतों से कामयाबी की ओर)

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About this ebook

हमारी पुरानी कहावतें, मुहावरे, हमारा इतिहास और हमारे शास्त्र हमारी वह अनमोल धरोहर है, जिनको यदि नजदीक से समझा जाए तो हमारा जीवन पूरी तरह से बदल सकता है। एक ही पल में हम सफलता के डगर पर अपने कदम बढ़ा सकते हैं। यह पुस्तक “कहावतों से कामयाबी की ओर" में इन सबका भरपूर वर्णन किया है ताकि हमारा युवा भी हमारी अनमोल धरोहर से अपने जीवन में मनचाही तरक्की पा सके।
बेहद सरल और आधुनिक भाषा में लिखी गई यह किताब हमारे युवाओं का उचित मार्गदर्शन करेगी।
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateDec 21, 2023
ISBN9789359200415
Kahawato Se Kamyabi Ki Aur (कहावतों से कामयाबी की ओर)

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    Kahawato Se Kamyabi Ki Aur (कहावतों से कामयाबी की ओर) - Ajay Singhal

    1

    आत्मवान बने, आनंदित रहें

    चल गई दुकानदारी तो क्या करेगी थानेदारी

    किसी के कामयाब होने का पैमाना क्या है? कलेक्टर बन जाना यानि आई.ए.एस का इम्तिहान पास कर लेना या आई.पी.एस. बन जाना या आई.आई.टी., आई.आई.एम. जैसे संस्थान से पढ़ाई करना। या फिर आप जो भी काम कर रहे हैं, उसमें झंडा गाड़ देना, अपना नाम जमा देना, अपना परचम लहरा देना।

    पुराने ज़माने में यह कहावत थी कि यदि आपकी दुकानदारी चल गई है तो वह थानेदारी से भी बड़ी है। थानेदारी जो उस समय आई.ए.एस. अफ़सर (IAS officer) के समकक्ष (equivalent) ओहदा था। अर्थात् अगर आपकी दुकानदारी चल रही है तो आप आई.ए.एस. अफ़सर (IAS officer) से ज़्यादा कामयाब माने जा रहे हैं। दुकानदारी को आप एक दुकान से मत जोड़िए। दुकानदारी से मतलब है, आप जो काम कर रहे हैं और वह चल जाए तो आप किसी थानेदार से ज़्यादा कामयाब माने जाते हैं।

    आत्मवान सुनने में यह शब्द भले छोटा लगता हो लेकिन इसके मायने बहुत ही गहरे और असाधारण हैं। आत्मवान बनने से सिर्फ़ यह तात्पर्य नहीं है कि आपको आत्मविश्वासी और स्वतंत्र बनना है बल्कि आत्मवान बनने का मतलब आपको ख़ुद से और ख़ुद के गुणों से प्यार करना है और उन गुणों को निखारना है।

    आज की युवा पीढ़ी को, नौजवानों को देखा है आपने? उनके मन को समझने की कोशिश की है? वे परेशान-से दिखते हैं; बहुत परेशान; शायद सबसे ज़्यादा परेशान! क्या आपने समझने की कोशिश की है कि हमारी नौजवान पीढ़ी की यह मनोदशा क्यों है? क्यों हमारे युवा को ख़ुद पर भरोसा नहीं हो रहा? क्यों वह अपनी काबिलियत को पहचान नहीं पा रहा? आख़िर क्यों वह दूसरे कामयाब इंसानों को देखता है और एक निराशा उसके मन में घर कर जाती है? क्यों वह अपने आप को कमतर आंकने लगता है? दिन की ख़ुशी और रातों का चैन क्यों उससे छिन गया है? आख़िर उसे क्या हो गया है, जो वह अपनी खुशियों पर ग्रहण लगाता जा रहा है और आत्मसंतोष को भूलता जा रहा है। आज आख़िर उसे यह अहसास क्यों नहीं हो रहा कि वह हुनरमंद है, काबिल है, दूसरों के लिए मिसाल है, अपने आप में संपूर्ण है। आखिर वह यह क्यों नहीं समझ पा रहा कि उसके पास जो हुनर है, जो काबिलियत है, वह अनोखी है। यही उसे किसी दूसरे सफल इंसान की तरह कामयाबी के शिखर की तरफ़ ले जा सकती है। तो इन सारे सवालों का जवाब बस एक शब्द में है।

    वह शब्द है आत्मवान। आत्मवान यानि कामयाबी की ओर पहला क़दम उठाना। आप अगर आत्मवान हैं तो दुनिया आपके कदमों में हैं। आत्मवान का मतलब अगर आप समझ गए तो समझिए कामयाबी के मूल मंत्र को आपने आत्मसात कर

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