Discover millions of ebooks, audiobooks, and so much more with a free trial

Only $11.99/month after trial. Cancel anytime.

चांडाल चौकड़ी
चांडाल चौकड़ी
चांडाल चौकड़ी
Ebook425 pages3 hours

चांडाल चौकड़ी

Rating: 0 out of 5 stars

()

Read preview

About this ebook

पेशेवर बक्सर गनपत में वे तमाम खूबियां थीं जो एक बाक्सिंग चैंपियन में होनी चाहिए। वह चैंपियन बनने का बेहद ख़्वाहिशमंद भी था। लेकिन वह जानता था- बाक्सिंग, रेसलिंग और हार्स रेसेज का गेम्बलिंग रैकेट चलाने वाले हरगिज उसे चैम्पियन नहीं बनने देंगे। उनकी निगाहों में वह वफादार और भरोसेमंद नहीं रहा था।
फिर भी उसने रिस्क लेने का फैसला कर लिया।
वह थंडर के रिपोर्टर अजय कुमार से मिला। खुलकर सब कुछ बताने के बाद एक सीलबंद लिफाफा उसे सौंप दिया। जिसमें उसके हल्फिया बयान के साथ गेम्बलिंग रैकेट और उसे चलाने वालों का पूरा कच्चा चिट्ठा मौजूद था। साथ ही वादा लिया उसे कुछ भी जो जाने की सूरत में उस मसाले को थंडर में छपवा देगा।
अजय को उम्मीद नहीं थी की गनपत के साथ कोई हादसा होगा। उसने लिफाफा उसी के सामने अपनी कपबोर्ड के लॉकर में लॉक कर दिया।
गनपत ने अपने मैनेजर जयकिशन को भी खत के बारे में तो बता दिया लेकिन वो कहां था या किसके पास था यह नहीं बताया।
बात बॉसेज तक पहुँची। स्पेशल मीटिंग बुलायी गई। चारों बॉसेज ने हिस्सा लिया- श्रीकांत वर्मा- विराट नगर ब्रांच से, घनश्याम दास दिल्ली ब्रांच से, विक्रम राव भोसले- मुम्बई से और नरेन मुखर्जी कलकत्ता से।
हालत पर विचार विमर्श के बाद फैसला लिया- लिफाफा हासिल करके गनपत को सफाई से ठिकाने लगा दिया जाए।
चैम्पियन शिप के खिताब के मुकाबले के लिए ठीक दो महीने बाद की तारीख की घोषणा कर दी गई- गनपत का मुकाबला मौजूद चैम्पियन सुखवंत से होगा।
गनपत को अपनी जीत का पूरा भरोसा था ट्रेनिंग के लिए जाने से पहली रात उसने भरपूर मौज की- शराब के दौर और फुलमून बार की डांसर लीना का शबाबा मस्ती के मूड में फोन करके अजय को भी बुलाया और लिफाफे के बारे में हिदायद दोहरा दी....।
दो महीने बाद... भारी भीड़ और रिकार्डतोड़ बैटिंग के बीच गनपत और सुखवंत फाइट के लिए रिंग में उतरे... पहले ही राउंड में गनपत धराशायी हो गया... भीड़ बेकाबू... शोर शराबा... अफरा-तफरी... गनपटत मर चुका था!
अजय घर पहुंचा.... कपबोर्ड से लिफाफा गायब था। वह समझ गया गनपत की हत्या की गई थी। कैसे? हत्यारा कौन था?
गनपत का मैनेजर जयकिशन भी मारा गया। लीना लापता थी।
क्या अजय गनपत के हत्यारे का पता लगाकर चांडाल चौकड़ी तक पहुँच सका???

Languageहिन्दी
PublisherAslan eReads
Release dateJun 12, 2021
ISBN9789385898907
चांडाल चौकड़ी

Read more from प्रकाश भारती

Related to चांडाल चौकड़ी

Related ebooks

Related categories

Reviews for चांडाल चौकड़ी

Rating: 0 out of 5 stars
0 ratings

0 ratings0 reviews

What did you think?

Tap to rate

Review must be at least 10 words

    Book preview

    चांडाल चौकड़ी - प्रकाश भारती

    चांडाल चौकड़ी

    प्रकाश भारती

    Aslan-Reads.png

    असलान रीड्स

    के द्वारा प्रकाशन

    असलान बिजनेस सॉल्यूशंस की एक इकाई

    बोरिवली, मुंबई, महाराष्ट्र, इंडिया

    ईमैल: hello@aslanbiz.com; वेबसाइट: www.aslanreads.com

    कॉपीराइट © 1999 प्रकाश भारती द्वारा

    ISBN 978-93-85898-90-7

    इस पुस्तक की कहानियाँ काल्पनिक है। इनका किसी के जीवन या किसी पात्र से कोई

    संबंध नहीं है। यह केवल मनोरंजन मात्र के लिए लिखी गई है।

    अत: लेखक एवं प्रकाशक इनके लिए जिम्मेदार नहीं है।

    यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि प्रकाशक की

    लिखित पूर्वानुमती के बिना इसे या इसके किसी भी हिस्से को न तो पुन: प्रकाशित

    किया जा सकता है और न ही किसी भी अन्य तरीके से, किसी भी रूप में

    इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।

    यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

    अंतर्वस्तु

    सारांश

    चांडाल चौकड़ी

    *****

    ‘‘इस बात का क्या सबूत है कि सुलेमान सच बोल रहा है? इंस्पेक्टर रवि शंकर ने पूछा।’’

    ‘‘क्या बात करते हो, रवि? सुलेमान चश्मदीद गवाह है।’’ अजय बोला।

    ‘‘लेकिन खुद सुलेमान एक सजायाफ्ता पेशेवर बदमाश है। बतौर गवाह उसकी बात पर तब तक यकीन नहीं किया जा सकता, जब तक उसकी बात की पुष्टि करने वाला कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल जाए।’’

    ‘‘क्या हो गया है तुम्हें रवि?’’ अजय झुंझलाकर बोला- ‘‘क्या तुम्हारे विचार से हत्यारा उसी आदमी को करार दिया जा सकता है, जिसके पैरों में गर्म लाश पड़ी हो, जो रिवाल्वर हाथ में थामे खड़ा हो, उस रिवाल्वर से धुआं उठ रहा हो और आस-पास शरीफ कहे जाने वाले दस-पंद्रह आदमी खड़े चीख-चीखकर उसे हत्यारा कह रहे हों।’’

    (अजय सीरीज का एक रोचक, रोमांचक एवं तेज रफ्तार जासूसी उपन्यास)

    चांडाल चौकड़ी

    कमरे में कुल तीन आदमी थे।

    डेस्क के पीछे पड़ी कुर्सी पर बैठे अधेड़ का नाम जयकिशन था। वह गेहुँए रंग का औसत कद वाला स्थूलकाय आदमी था। उसके जिस्म पर चढ़ी चर्बी ठोस ना होकर थुलथुलालापन लिए हुए थी। बाल खिचड़ी थे और सर के बीचों बीच वाला भाग गोलाई में एकदम गंजा। गर्दन और हाथों की नसें इस ढंग से फूली हुई थी, जैसे उतनी उम्र में पहुँचते-पहुँचते बहुत ज्यादा शराब पीने वालों की नसें आमतौर से फूल जाती हैं। घनी भौंहों से ढकी छोटी छोटी आंखें गोल थीं, जिनके नीचे गहरी स्याह झाइयां उभरी हुई थीं।

    जयकिशन के चेहरे पर खीज मिश्रित व्याकुलतापूर्ण भाव थे। वह सामने खड़े दोनों आदमियों को यूं घूर रहा था, मानो उन्होंने बड़ा भारी गुनाह कर दिया था।

    उन दोनों की निगाहें डेस्क पर जमी थीं। जहां ‘थंडर’ के प्रातःकालीन संस्करण की प्रति स्पोर्ट्स सेक्शन वाले पेज पर खुली पड़ी थीं।

    मोटी-मोटी सुर्खियों में छपा था।

    गनपत ने अकरम को नॉक आउट किया। अगला चैंपियन : गनपत।

    उन दोनों में एक आदमी का नाम गनपत था, खुला गेहुँआ रंग, ऊंचा कद, खूबसूरत चेहरा और उम्र करीब अट्ठाईस वर्ष। कसरती, पुष्ट बदन की मजबूत मांसपेशियां, चपटी नाक और हाथों की मोटी मजबूत उंगलियां उसके बॉक्सर होने की परिचायक थीं।

    वह अनिश्चयात्मक भाव से मुस्काया।

    ‘‘मेरे चैंपियन बन जाने में आखिर बुराई क्या है?’’ उसने पूछा।

    ‘‘चैंपियन और बुराई।’’ जयकिशन गुर्राया और अपनी मोटी उंगली भाले की तरह उसकी ओर तान दी.......। ‘‘कल रात फाइट से पहले तुम्हें हिदायतें दी गई थी, लेकिन तुमने उन पर अमल नहीं किया। नतीजा यह हुआ तुम्हारी वजह से कुछ खास आदमियों को खासी मोटी रकम गंवा देनी पड़ी। जबकि उन्हें इस किस्म की बातें कतई पसंद नहीं हैं।’’

    गनपत ने कंधे झटकाए।

    ‘‘ठीक है।’’ वह बोला- ‘‘पिछली रात हुए बाउट में मुझसे हारने के लिए कहा गया था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। क्योंकि अकरम, जिससे मेरा मुकाबला था मुझसे बढ़िया बॉक्सर होना तो दर, किनार रहा सही मायनों में मेरा जोड़ीदार भी नहीं था। मेरे पहले ही मुक्के ने उसके कस बल निकाल दिए थे। गोश्त के उस ढेर से हारकर मैंने खामाखाह अपनी तौहीन कराना मुनासिब नहीं समझा।’’

    ‘‘बेकार की बातें मत करो, गनपत। तुम भूल रहे हो मैं भी वहीं था। पहले राउंड की घंटी बजते ही तुमने उसकी इतनी बुरी तरह धुनाई शुरू कर दी थी कि उसे संभलने का मौका तक नहीं दिया।’’ जयकिशन ने कड़वे स्वर में कहा और फिर दूसरे आदमी की ओर पलटा, ‘‘तुम्हें यही रोकने के लिए इसके कॉर्नर में छोड़ा गया था। तुमने इसे ठंडा क्यों नहीं किया गुरदयाल?’’

    कमरे में मौजूद तीसरा आदमी गुरदयाल ठिगने कद का था। अपने सिकुड़नों भरे कपड़ों के कारण वह और ठिगना नजर आ रहा था। उसने बड़े ही नर्वस भाव से अपने बालों में हाथ फिराया।

    ‘‘मैंने इसे रोकने में अपनी ओर से कोई कमी नहीं छोड़ी थी, जयकिशन।’’ वह मरी सी आवाज में सफाई देता हुआ बोला - ‘‘तुमने ठीक कहा है, यह घंटी बजते ही अकरम पर हावी होता चला गया था। मैंने बाद में इसे रोका, लेकिन इसके कान पर जूं तक नहीं रेंगी। उस हालत में मैं और क्या करता? तमाम दर्शकों की मौजूदगी में क्या इसके ऊपर ठंडे पानी की भरी बाल्टी फेंक कर इसे ठंडा करता या फिर डंडा लेकर इस पर पिल पड़ता?’’

    ‘‘तुम ऐसा ही कुछ कर गुजरते, तो हम सबके लिए बेहतर होता।’’

    ‘‘तुम्हें शर्म आनी चाहिए, जयकिशन।’’ गनपत बोला- ‘‘मेरे मैनेजर होने के बावजूद मेरी मौजूदगी में ही मेरे ट्रेनर को किस तरह डांट रहे हो।’’ वह मुस्काया- ‘‘मैं पूछता हूं, आखिर कौन सी कयामत टूट पड़ी है? तुम क्यों मरे जा रहे हो? जरा अखबार भी तो पढ़ो मुझे भावी चैंपियन कहा गया है।’’ उसने ‘थंडर’ में छपी सुर्खियों पर उंगली फिराई- ‘‘और इस प्रतिष्ठित अखबार का स्पोर्ट्स कॉलम लिखने वाला कभी गलती नहीं करता। तुम्हें और गुरदयाल को तो फख्र करना चाहिए भावी चैंपियन के रूप में मेरा नाम अखबार में छपा है। अगर मैं पिछली रात हार जाता, तो मेरा नाम अखबार में नहीं छपना था।’’

    ‘‘इस दफा तुम जितनी बार चाहो इस कॉलम में अपना नाम और अपनी चर्चा पढ़ सकते हो। अगली बार तुम्हारा नाम इस कॉलम में नहीं छपेगा।’’ जयकिशन क्षुब्ध स्वर में बोला।

    गनपत हँसा।

    ‘‘फिर कहां छपेगा?’’ उसने पूछा, फ्रंट पेज पर?

    ‘‘नहीं, आबिच्युअरी कॉलम में।’’

    ‘‘मुझे डराने की कोशिश मत करो जयकिशन।’’ गनपत बोला- ‘‘तुम समझते हो कि वे लोग मेरी जान लेने का पागलपन करेंगे? बॉक्सिंग, कुश्ती, रेस वगैरह में गैरकानूनी ढंग से जुए के तगड़े दांव लगाने के अपने धंधे की वजह से वे पहले ही अधिकारियों की निगाहों में आ चुके हैं।’’ वह गुरदयाल की ओर मुस्कुराया- ‘‘वे ज्यादा से ज्यादा इतना करेंगे, गुरदयाल कि हाथ पैर तुड़वाकर इसे सबक सिखा दें, क्योंकि यह मुझे जीतने से नहीं रोक सका।’’ अपने ट्रेनर के चेहरे पर भय के लक्षण नोट करके उसकी मुस्कराहट गहरी हो गई- ‘‘लेकिन इस मामले में मुझे इससे कोई हमदर्दी नहीं है। जब मैं रिंग में जाता हूं, तो अपने विपक्षी के वार मुझे सहने पड़ते हैं इसे नहीं, अब अगर धंधे की वजह से इस पर कोई मुसीबत आती है, तो मैं क्यों इसकी फिक्र करूं। दूसरे जिन लोगों का खौफ तुम मुझे दिखा रहे हो, वे तुम्हारी तरह बेवकूफ नहीं हैं, जयकिशन। वे अच्छी तरह जानते हैं जब मैं चैंपियन बन जाऊंगा, वे अपने तमाम नुकसान की भरपाई एक ही बार में कर सकते हैं, जो उन्हें पिछली रात हुआ है।’’

    जयकिशन ने कुर्सी की पुश्त से पीठ सटाकर कर उसे घूरा।

    ‘‘तुम सचमुच खुद को बहुत बढ़िया बॉक्सर समझते हो?’’

    ‘‘क्या तुम मुझे बढ़िया बॉक्सर नहीं समझते?’’ गनपत ने उपहासपूर्वक पूछा- ‘‘क्या तुम्हें मेरे रिकॉर्ड की जानकारी नहीं है? मैंने पैतीस फ़ाइटों में हिस्सा लिया है। इनमें से सिर्फ़ पाँच में मैं बराबर रहा हूं, और तीस मैंने जीती हैं। उन तीस में भी छब्बीस फ़ाइटों में मैंने अपने विपक्षी को नॉक आउट किया है। मैं अपने पूरे करियर में कभी किसी से नहीं हारा। क्या मेरा यह रिकॉर्ड मुझे बढ़िया बॉक्सर साबित नहीं करता?’’

    ‘‘तुम जानना चाहते हो, उनमें से सही मायनों में कितनी फ़ाइट तुमने जीती हैं?’’ जयकिशन ने उसी के स्वर में पूछा- ‘‘मुश्किल से आठ और शायद आठ भी नहीं। तुम अपने जिस रिकॉर्ड का बखान कर रहे हो, वो उन्हीं लोगों की मर्जी से बन पाया है, जिनकी मोटी रकम पिछली रात तुम्हारी वजह से डूबी है।’’

    गनपत के चेहरे से मुस्कराहट गायब हो गई।

    ‘‘यह झूठ है!’’ वह तीव्र स्वर में बोला।

    ‘‘यह बिल्कुल सच हैl’’ जयकिशन उसी के स्वर में बोला- ‘‘वे लोग पब्लिसिटी और फ़ाइटों में मिलीभगत द्वारा तुम्हें बड़ा और मशहूर बॉक्सर बनाना चाहते थे। अपने जिन विपक्षियों को तुमने नॉक आउट किया था, उन्हें मुनासिब रकम देकर उन लोगों ने जबरन हारने पर मजबूर किया था। तुम्हें मौजूदा हालात में लाकर वे पिछली रात तुमसे मोटी रकम कमाना चाहते थे। लेकिन तुमने उनके साथ धोखा कर दिया।’’ गनपत के चेहरे पर अविश्वासपूर्ण भाव देखने हुए उसने कहना जारी रखा- ‘‘किसी बहम में मत रहना, अगर वे लोग तुम्हारी पीठ पर नहीं होते, तो भावी चैंपियन तो क्या तुमने आज थर्ड ग्रेड बॉक्सर भी नहीं होना था।’’

    गनपत ने अपने होठों पर जुबान फिराई।

    ‘‘अगर तुम सच कह रहे हो, तब भी मैं तुम्हारी इस बकवास पर यकीन नहीं करूंगा।’’ वह क्रोधित स्वर में बोला - ‘‘मौजूदा हालात में चैंपियन का खिताब पाने के लिए मैं अकेला दावेदार हूं और इस वक्त जो चैंपियन है, उससे ललकारने के बाद रिंग में नॉक आउट करके मैं इस खिताब को उससे छीन भी लूंगा। इस तरह अब तुम्हारे उन लोगों को मजबूरन मेरे साथ चिपका रहना पड़ेगा।’’ उसने अपने दोनों हाथ डेस्क पर टिकाए और जयकिशन की ओर झुक गया- ‘‘यह मत समझना मैं तुम्हारी या उन लोगों की असलियत से वाकिफ नहीं हूं। मैंने सुना था वह लोग तुम्हारे बॉस हैं और तुम्हारी अहमियत महज़ एक मैसेंजर जैसी है। अब इस बात को मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूं। इसलिए मेरा भी एक मैसेज अपने उन बॉसेज तक पहुंचा देना। कान खोलकर सुन लो, मैं कच्ची गोलियां नहीं खेला हूं। उनके बॉक्सिंग, रेसलिंग और रेसेज रैकेटों और गैरकानूनी जुए की जितनी जानकारी मुझे है, वह सब मैंने लिख रखी है। उसमें इन रैकेटों से संबंधित प्रत्येक व्यक्ति, स्थान आदि का मय सबूतों के जिक्र है। अगर मुझे कुछ हो जाता है, तो मेरे दोस्त मेरे हल्फिया बयान सहित उस जानकारी को अखबार वालों को सौंप देंगे।’’ वह सीधा खड़ा हो गया- ‘‘उसमें मैं यह भी जोड़ दूंगा कि पिछली रात ईमानदारी से हुई फाइट की वजह से किस तरह तुमने मुझे जान से मरवा देने की धमकी दी। बेहतर होगा कि तुम अभी से कोई सफाई सोचनी शुरू कर दो।’’ उसने अपनी बगल में खड़े गुरदयाल को घूरा, जयकिशन की ओर सर हिलाया। फिर अपनी एड़ियों पर घूमा और दरवाजे की ओर बढ़ गया।

    गनपत के जाने के बाद दरवाजा बंद होने तक जयकिशन चुपचाप बैठा रहा। फिर उसने गहरी सांस लेते हुए गुरदयाल की ओर देखा।

    ‘‘हम वाकई बड़े भारी बखेड़े में फंस गए हैं गुरदयाल।’’ वह बोला- ‘‘वे लोग गुस्से से पागल हो रहे हैं। पिछली रात उन्हें बहुत मोटा नुकसान उठाना पड़ा है।’’

    गुरदयाल ने नर्वस भाव से अपने बालों में हाथ फिराया।

    ‘‘मैं इसमें और कुछ नहीं कर सकता था, जयकिशन।’’ वह बोला- ‘‘मैंने रिंग में बार-बार गनपत से कहा था वह हल्के हाथ चलाए, लेकिन वह भांप चुका था अकरम पर हावी हो सकता था इसलिए उसने मेरी एक नहीं सुनी।’’

    जयकिशन ने कुर्सी में पहलू बदला।

    ‘‘न सुनने वाला वह अकेला ही नहीं है।’’ उसने कहा और जेब से सिगरेट निकालकर सुलगाने के बाद बोला- ‘‘बॉसेज भी यह नहीं जाना चाहते हैं उनका नुकसान क्यों हुआ। उनके लिए बस इतना ही जानना काफी है उन्हें डबल क्रॉस किया गया है और उनका नुकसान हो चुका है।’’ वह तनिक रुका, फिर सोचपूर्ण स्वर में बोला- ‘‘गनपत समझता है इस किस्म की धमकी से वह उन्हें डरा सकता है, लेकिन यह उसकी बेवकूफी है।’’

    ‘‘वह बेवकूफ अपनी जान से हाथ धो बैठेगा।’’ गुरदयाल व्यथित स्वर में बोला।

    जयकिशन कुछ देर खामोश बैठा रहा फिर विचारपूर्वक बोला- ‘‘अपनी जान से हाथ तो उसे धोने ही पड़ेंगे।’’

    *****

    बोर्ड की मीटिंग आमतौर से महीने में दो बार होती थी पहली तारीख और पंद्रह तारीख को। लेकिन विशेष परिस्थितियों में स्पेशल मीटिंग भी बुलाई जाती थी।

    (गनपत की फाइटिंग के दो दिन बाद भी ऐसी ही मीटिंग बुलाई गई थी।)

    बोर्ड के सदस्यों की संख्या सिर्फ चार थी। वे चारों ही मीटिंग में मौजूद थे। उन सबके लिबास कीमती थे। उंगलियों में हीरों की अंगूठियां चमक रही थी। प्रत्येक के चेहरे से संपन्नता के अलावा कुटिलता भी स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी।

    उनमें से एक आदमी नीला सूट पहने था। चौड़े कंधों वाले उस ह्रष्ट-पुष्ट और करीब पैतालीस वर्षीय आदमी का नाम श्रीकांत वर्मा था।

    उसने मेज के इर्द-गिर्द बैठे शेष तीनों आदमियों पर बारी-बारी से निगाह डाली।

    ‘‘मुझे अफसोस है तुम्हें दिल्ली से बुलाना पड़ा, घनश्याम दास।’’ वह अपनी बाईं ओर कीमती खादी के नेता टाइप लिबास पहने बैठे आदमी से बोला। जवाब में उसे मुस्कराता पाकर उसकी निगाहे सामने बैठे आदमी पर जा ठहरीं– ‘‘और तुम्हारी वजह से हमें मीटिंग एक दिन लेट रखनी पड़ी। क्योंकि कल शाम तक तुम मुंबई में उपलब्ध नहीं थे, भोंसले।’’

    विक्रमराव भोंसले मोटा मुनाफा देने वाले हर किस्म के नाजायज धंधे करने वाली ऑर्गेनाइजेशन का मुंबई ब्रांच का इंचार्ज था। उसकी गिनती फिल्मी दुनिया के प्रमुख फाइनेंसरों में होती थी। वह इतना मक्कार था बड़े-बड़े पुलिस अफसरों से गहरी दोस्ती बनाकर रखता था लेकिन कभी किसी को खुद पर मामूली सा भी शक करने का मौका उसने नहीं दिया।

    ‘‘मुझे खुशी है तुम लोगों ने मेरा इंतजार किया।’’ वह मुस्कुराता हुआ बोला।

    श्रीकांत ने अपनी दाईं ओर बैठे चौथे आदमी नरेन मुखर्जी की ओर देखा। वह कलकत्ता ब्रांच का इंचार्ज था और बड़ा ही घाघ किस्म का आदमी था। उसका चेहरा हमेशा भावहीन रहता था। वह वक्त का पाबंद था। एक मिनट भी कहीं फालतू रुकना उसके उसूल के खिलाफ था।

    ‘‘अब असली बात शुरू करो।’’ वह बोला।

    ‘‘आप सब लोग जानते हैं यह मीटिंग क्यों बुलाई गई है?’’ श्रीकांत बोला- ‘‘गनपत ने अकरम के साथ हुई फाइट में दो दिन पहले जो किया उसकी जानकारी आप तीनो को पहले ही दी जा चुकी है।’’ वह तनिक रुका फिर बोला- ‘‘अब गनपत ने धमकी दी है उसने एक चिट्ठी लिखी है जिसमें हमारे धंधों का मयसबूत जिक्र किया गया है। अगर उसे कुछ हो जाता है तो उसकी वो चिट्ठी उसके हल्फिया बयान के साथ अखबारों में छाप दी जाएगी।’’

    ‘‘क्या वह सचमुच हमारे बारे में ऐसा कुछ जानता है।’’ नरेन मुखर्जी ने पूछा।

    ‘‘हां।’’ श्रीकांत ने सहमति सूचक सर हिलाया- ‘‘वह इतना ज्यादा जानता है हमें खासी सरदर्दी दे सकता है।’’

    नेता टाइप लिबास वाले घनश्याम दास ने बेचैनी से पहलू बदला।

    ‘‘पिछले दिनों दिल्ली में हुई फ्रीस्टाइल कुश्ती के मुकाबले के बाद से उच्च स्तर पर जो इन्क्वायरी चल रही है उसे देखते हुए गनपत की यह हरकत हमारा पुलंदा बांधने के लिए काफी होगी।’’ वह बोला।

    विक्रम राव भोसले आगे झुक गया।

    ‘‘गनपत की वजह से हमें कितना नुकसान उठाना पड़ा है?’’ उसने पूछा।

    श्रीकांत ने सिगरेट सुलगाने के बाद पूछा- ‘‘तुम्हारा मतलब हमारी इन्वेस्टमेंट से है या फिर उस मुनाफे से जो हमने कमाना था?’’

    ‘‘दोनों से।’’ भोसले ने जवाब दिया।

    श्रीकांत ने अपने सामने रखे एक राइटिंग पैड पर निगाहें दौड़ाई।

    ‘‘पब्लिसिटी, बाउट अरेंजमेंट वगैरह को मिलाकर सात लाख साठ हजार रुपया खर्च हुआ था।’’ वह बोला- ‘‘एक के पांच की मार्केट क्रिएट करने में दो लाख लगा और हमारे स्रोतों से आठ लाख के दांव अकरम पर लगाए गए थे। इस तरह हमारी कुल इन्वेस्टमें सत्रह लाख साठ हज़ार रूपए थी। अगर गनपत हार जाता तो हमें चालीस लाख रुपए मिलने थे। इन्वेस्टमेंट और अपने आदमियों का पाँच परसैंट कमीशन निकालने के बाद हमें बाईस लाख चालीस हजार का नेट प्रॉफिट होना था।’’

    ‘‘बेहतर होता रिंग में जाने देने से पहले तुमने उससे बातें कर ली होती।’’ नरेन मुखर्जी बोला।

    ‘‘कोई फायदा नहीं होना था, नरेन।’’ श्रीकांत बोला - ‘‘जयकिशन का कहना है गनपत चैंपियन बनने के लिए मरा जा रहा है। उसने जानबूझकर रिस्क लिया है। उसे पूरी उम्मीद है वह खिताब पाने में कामयाब हो जाएगा।’’

    ‘‘क्या उसकी यह उम्मीद सही है?’’ नरेन मुख़र्जी ने पूछा।

    ‘‘इसमें कोई शक नहीं है वह बहुत बढ़िया मुक्केबाज है।’’ श्रीकांत ने कहा- ‘‘वह खुद भी इस बात को जानता है। इसलिए खिताब हासिल करना चाहता है।’’

    ‘‘लेकिन हम तो उसे ऐसा नहीं करने दे सकते।’’ घनश्याम दास बोला।

    ‘‘मैं घनश्याम की बात से सहमत हूं।’’ भोंसले ने मत व्यक्त किया- ‘‘सवाल सिर्फ पैसे का ही नहीं है जो नुकसान हुआ है वह तो हमारे लिए कुछ मायने नहीं रखता लेकिन किसी को इस हद तक अपने कब्ज़े से बाहर जाने देना हमारे लिए खतरनाक है।’’

    श्रीकांत मुस्कराया।

    ‘‘जो कुछ हुआ है उसमें हम खुश नहीं है यह जाहिर करने के लिए हमें कोई कदम उठाना ही पड़ेगा। इस स्थिति से निपटने के लिए हमें सब्र से काम लेना होगा।’’ वह बोला- ‘‘अगर आप लोग इस मामले को मेरे ऊपर छोड़ने के लिए रजामंद हो जाए तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं गनपत को सबक सिखा दिया जाएगा। काम इतनी सफाई से होगा पुलिस का कहीं कोई दखल नहीं होगा।

    तीनों ने सहमतिसूचक सर हिला दिया।

    ‘‘लेकिन जयकिशन का क्या होगा?’’ नरेन मुखर्जी ने पूछा।

    श्रीकांत मुस्कराया।

    ‘‘जयकिशन तुम्हें शुरू से ही नापसंद है।’’

    ‘‘सवाल पसंद या नापसंद का नहीं है।’’ मुखर्जी ने कहा। उसका पूरा चेहरा पूरी तरह भावहीन था लेकिन स्वर में कटुता थी। ‘‘गनपत को सही ढंग से संभाले रखने की जिम्मेदारी जयकिशन की थी। मौजूदा हालात के लिए भी इतना ही जिम्मेदार है जितना गनपत है।’’

    उसने अपनी बात की सपोर्ट के लिए शेष तीनों की ओर देखा।

    श्रीकांत ने भोंसले को संबोधित किया।

    ‘‘जयकिशन तुम्हारा आदमी है, विक्रमराव। बोलो इस बारे में क्या कहते हो?’’

    विक्रमराव भोसले एक पल खामोश बैठा रहा फिर विचारपूर्वक बोला - ‘‘नरेन ठीक कहता है जयकिशन भी उतना ही जिम्मेदार है जितना गनपत है। उसे भी इसकी सजा जरूर मिलनी चाहिए। लेकिन उसे ठिकाने लगाना खतरनाक होगा। इससे गनपत सतर्क हो जाएगा और बहुत मुमकिन है वह घबराहट में सीधा अखबार वालों के पास जा पहुंचे।’’

    ‘‘यह काम आज ही नहीं होना है।’’ मुखर्जी ने तर्क दिया।

    विक्रमराव मुस्कराया।

    ‘‘तुम उससे अभी तक खफा हो, नरेन।’’ वह बोला- ‘‘क्योंकि कुछ दिन उसे कलकत्ता में रहना पड़ा था और उस दौरान वह तुम पर ही हावी होने लगा था।’’

    ‘‘मुझ पर हावी होने के लिए उसे दोबारा जन्म लेना पड़ेगा।’’ नरेन मुखर्जी सर्द स्वर में बोला- ‘‘उसने बस अपनी औकात को भूलने की कोशिश की थी। उसकी किस्मत अच्छी थी उस दफा मैंने उसे बच जाने दिया। लेकिन इस दफा वह नहीं बच पाएगा।’’ वह घनश्याम दास से मुखातिब हुआ- ‘‘तुम क्या कहते हो, घनश्याम? अगर वह तुम्हारा आदमी होता तो क्या तुमने उसे बच जाने देना था?’’

    घनश्याम ने सर हिलाया।

    ‘‘नहीं, उसे सबक मिलना चाहिए।’’ वह बोला- ‘‘ताकि हमारे लिए काम करने वाले दूसरे लोगों की आंखें भी खुल जाए।’’

    विक्रमराव ने श्रीकांत

    Enjoying the preview?
    Page 1 of 1