विलम्बित सत्य
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छगन एक बाहुबली नेता था । जैसे जैसे उम्र बढ़ रही थी। उसको एक सहारे की जरूरत महसूस हो रही थी। छोटा भाई मगन पहले शराबी था अब बैरागी है। न पहले उसके काम का था न अब। बेटा मयंक अब बड़ा हो गया था और हरीनगर के डिग्री कालेज में बी ए की पढ़ाई कर रहा था। किन्तु उसने पत्नी सरिता और मयंक को अपने काम धंधों से अलग रखा था। मयंक जब पांच साल का था उसे कुछ सवास्थ संबंधी समस्या हुई थी। तब डाक्टर ने जो सच बताया था वो कील की तरह उसके सीने में गड़ा था ।सरिता को भी आभास था किन्तु उन्होंने घर या बाहर कभी उस बात की च
वह सच देर सबेर उजागर होगा ही।
Ravi Ranjan Goswami
The author is a science graduate,a revenue officer(IRS) by profession,writes poetry in Hindi and fiction in Hindi and English,lives in Cochin,Kerala,India.
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Book preview
विलम्बित सत्य - Ravi Ranjan Goswami
समर्पण
हरीकृष्णन मेनन
दिविता हरी
केश कुमारी गोस्वामी
मौसम दीवोलीया
यह एक काल्पनिक कृति है। वास्तविक लोगों, स्थानों, या घटनाओं से समानताएं पूरी तरह से संयोग हैं। मानव कॉपीराइट © 2020 रवि रंजन गोस्वामी।
आमुख
छगन एक बाहुबली नेता था । जैसे जैसे उम्र बढ़ रही थी। उसको एक सहारे की जरूरत महसूस हो रही थी। छोटा भाई मगन पहले शराबी था अब बैरागी है। न पहले उसके काम का था न अब। बेटा मयंक अब बड़ा हो गया था और हरीनगर के डिग्री कालेज में बी ए की पढ़ाई कर रहा था। किन्तु उसने पत्नी सरिता और मयंक को अपने काम धंधों से अलग रखा था। मयंक जब पांच साल का था उसे कुछ सवास्थ संबंधी समस्या हुई थी। तब डाक्टर ने जो सच बताया था वो कील की तरह उसके सीने में गड़ा था ।सरिता को भी आभास था किन्तु उन्होंने घर या बाहर कभी उस बात की चर्चा नहीं की थी। किन्तु
वह सच देर सबेर उजागर होगा ही।
1
2011
सदानंद शास्त्री,एस्ट्रोलोजर ने बहुत मान्यताओं और के बाद पुत्री मन्दाकिनी को पाया था । वह और उनकी पत्नी मन्दाकिनी पर जान छिड़कते थे। वे उसकी हर ख़्वाहिश पूरी करते थे।
मन्दाकिनी बहुत सुंदर और बुद्धिमान थी मगर माता पिता के अत्यधिक लाढ प्यार ने उसे थोड़ा जिद्दी और घमण्डी बना दिया था। सखियों को बात बेबात खिजाती रहती।
कैशोर्य युवावस्था में करवट ले रहा था । यह समय माँ बाप के लिए कभी पहेली बन जाता है। एक छण लगता बेटी बड़ी हो गयी है अगले ही छण वह ऐसे बात करती की लगता अभी बच्ची है ।
पिता को खिजाने से न चूकती।
पिछले दिन सुबह उसने अपने पिता से कह। पापा आप इतने बड़े ज्योतिषी है आप को तो सब पता होगा ?
ज्योतिषी कोई सर्वज्ञ या त्रिकालदर्शी नहीं होता है।
शास्त्री ने कहा।