अष्ट योगी
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गुरु विष्णुदेव एक सिद्ध योगी है जिनका हिमालय में एक स्थान पर आश्रम है। वह विद्यार्थियो को योग की शिक्षा देते हैं। वह आठ नवजवान सिद्ध योगियों का एक विशेष दल बनाने की योजना बनाते है जिनकी यौगिक शक्तियों का उपयोग वे देश पर आने वाली विपत्ति के समय जन रक्षा और जनसेवा के कार्य में कर सकें।
Ravi Ranjan Goswami
Ravi Ranjan Goswami is a native of Jhansi, Uttar Pradesh, India. He is a retired Indian Revenue Service officer,and former Assistant Commissioner of Customs at Cochin. He writes poetry in Hindi and fiction in Hindi and English. He especially enjoys telling stories.
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अष्ट योगी - Ravi Ranjan Goswami
रवि रंजन गोस्वामी
समर्पण
मेरी पत्नी श्रीमती केश कुमारी गोस्वामी, पुत्री श्रीमती दिविता गोस्वामी मेनन, दामाद श्री हरीकृष्णन मेनन
यह उपन्यास पूर्णतया काल्पनिक है । इसके सभी पात्र,संस्थाएं और घटनाएँ लेखक की कल्पना से गढ़ी गईं हैं । इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति ,संस्था या संप्रदाय को ठेस पहुंचाना नहीं अपितु पाठकों का मनोरंजन है।
- रवि रंजन गोस्वामी
प्रस्तावना
कभी कभी गंभीर विपत्तियों के सामने, हम कुछ चमत्कार होने की कामना करते हैं, जो हमारी सभी समस्याओं को हल कर दें। वास्तव में, वे होते हैं, लेकिन वैसे नहीं जैसे कि हम चाहते हैं। किसी प्राकृतिक-आपदा, जैसे भूकंप या बाढ़ के समय, हम मृत्यु को देखते हैं और उसी समय कोई शिशु बिना किसी खरोंच के मलबे के नीचे से बच के निकल आता है या अत्यंत मुश्किल और विचित्र परिस्थिति में एक माँ अपने बच्चे को जन्म देती है। ये घटनाएँ चमत्कार ही लगती हैं।
इस कहानी में मैंने जून २०१३ की केदारनाथ की बाढ़ और अगस्त २०१८ में केरल में आयी बाढ़ का उल्लेख और अल्प विवरण शामिल किया है। ये दोनों ही बड़ी आपदायेँ थीं। केरल की बाढ़ के विषय में मुझे ज्ञात हुआ था कि ऐसी घटना सौ साल बाद हुई थी। ये कहानी लिखते समय मुझे लगा कि मैं एक बड़ी प्राकृतिक आपदा के इतिहास को लिपिबद्ध रहा था जो सौ वर्षों के बाद हुयी थी और कम से कम अगले सौ वर्षों में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी। लेकिन विडंबना यह हुई कि केरल में अगस्त २०१९ में फिर से उसी प्रकार की बाढ़ आयी ।
मेरी सुहानुभूति उन सभी के साथ है, जो इन आपदाओं में पीड़ित हुए थे। उन लोगों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना है, जिन्होंने इनमें किन्हीं अपनों को खो दिया था ।
मैंने यह कहानी हल्के फुल्के अंदाज में लिखी है। यह एक पूर्णतः काल्पनिक कहानी है। आशा है कि यह आप सभी को पसंद आएगी।
आमुख
गुरु विष्णुदेव एक सिद्ध योगी है जिनका हिमालय में एक स्थान पर आश्रम है। वह विद्यार्थियो को योग की शिक्षा देते हैं। वह आठ नवजवान सिद्ध योगियों का एक विशेष दल बनाने की योजना बनाते है जिनकी यौगिक शक्तियों का उपयोग वे देश पर आने वाली विपत्ति के समय जन रक्षा और जनसेवा के कार्य में कर सकें।
१
मई २०१३
हिमालय की एक बर्फीली गुफा में दो किशोर साधक शंकर और पारस ध्यान में लीन थे। दोनों समान वयस के थे। दोनों की आयु करीब पंद्रह वर्ष की थी। शंकर लम्बा,सांवला हल्की मुस्कराहट लिये चहरे वाला नवयुवक था। जबकि पारस औसत लंबाई का गोरा नव युवक था। शंकर की नाक थोड़ी चौड़ी थी आँखें बड़ी और काली जबकि पारस की नाक पतली और आगे तोते की तरह मुड़ी थी एवं आंखे बड़ी और नीली थीं। दोनों के शरीर हृष्ट पुष्ट थे। उन्होंने सूती कुर्ता और धोती पहनी थी।
पहले शंकर ध्यान से बाहर आया। उसके थोड़ी समय बाद पारस ने आँखें खोल दीं।
ध्यान करते वक्त उनके चेहरों पर जो शांति थी वह गायब हो चुकी थी।
दोनों के चेहरों पर चिंता की लकीरें उभर आयीं थीं।
शंकर ने पारस से पूछा, ध्यान में जो मैंने देखा क्या वही तुमने भी देखा?
पारस ने कहा, तुमने क्या देखा?
शंकर ने कहा, " मैंने देखा कि कहीं पहाड़ टूट कर गिरा। अनेक मनुष्यों और पशुओं की मृत्यु हुई।
पारस ने कहा, आश्चर्य की बात है। यही मैंने भी देखा।
शकर ने पूछा, अब हम क्या करें?
पारस ने परामर्श दिया, गुरुजी से चल कर पूछते है।
दोनों गुफा से निकल कर बर्फीले रास्ते पर तेज किन्तु सावधान कदमों से गुरु विष्णुदेव के आश्रम की ओर चल दिये। शाम होने को थी किन्तु सूर्यास्त में अभी अल्प समय शेष था। पर्वत की चोटियाँ नारंगी आभा में स्नात और आसमान बहुरंगी था। दोनों साधकों के आश्रम पहुँचते पहुंचते सारा वातावरण गुलाबी और फिर नीलाभ हो गया।
गुरु विष्णु देव आश्रम के प्रांगण में अपने शिष्यों एवं शिष्याओं से घिरे बैठे थे।
गुरु विष्णु देव की आयु लगभग ५१ वर्ष थी। किन्तु वे ३५ वर्ष से अधिक के नहीं लगते थे। वे गौरवर्ण के लंबे, छरहरे व्यक्ति थे। उनके काले बाल कंधों पर ठहरते थे। दाढ़ी मूछ बढ़ी हुई थी। उनकी बड़ी-बड़ी आंखे, लंबी और सधी हुई नासिका उन्हें आकर्षक बनाती थी। उनके चेहरे पर सदैव शांति का भाव रहता पर एक विशेष कान्ति रहती थी। किन्हीं विशेष दिनों में वे अपनी दाढ़ी मूंछ कटवा भी देते थे और तब कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता था कि वह एक उच्चतम कोटी के योगी थे जो पिछले बीस सालों से हिमालय में रह कर साधना कर रहे थे। उनके गुरु ने समाधिस्थ होने से पूर्व उन्हें