VYAVHAR KUSHALTA
By P.K ARYA
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About this ebook
The book contains practical tips to become courteous, polite and soft-spoken. It gives the basic teachings for positive thinking, healthy competition, coexistance and stable relationships. Not only in Home, with family or at the workplace, the skills and lessons which you’ll learn from this book will help you in all walks of life and if properly implemented, you would surely learn and grow in all respects.
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VYAVHAR KUSHALTA - P.K ARYA
ई-मेल-pkarya@indiatimes.com
अध्याय 1
व्यवहार कुशलता एक वरदान
(GOOD BEHAVIOUR IS A BLISSING)
व्यक्तित्व निर्माण का प्रश्न हर एक आदमी के वास्ते व्यक्तिगत सवाल है। इसका किसी दूसरे आदमी से कोई संबंध नहीं है। दूसरा कोई भी अभी आदमी मन तथा व्यक्तित्व को बलवान एवं द ढ़ नहीं बना सकता। कोई भी व्यक्ति आपको दुर्बल से शक्ति सम्पन्न, असफल से सफल और 'कुछ नहीं' से अब कुछ' नहीं बना सकता। आप स्वयं ही सब कुछ' बन सकते हैं और आप में यह सब करने की शक्ति, सामर्थ्य मौजूद है।
-लिली एलन
आज के भौतिकवादी युग में जहां चारो ओर एक भाग-दौड़ है, मारामारी है, जल्दबाजी और तेज रफ़्तार है, वहीं हम सब अपनी ही तरह की अजीबो-गरीब उधेड़बुन में उलझे हुए है । हमारे अंतस् में एक अत प्त लालसा गहरे पैठी है । हम दूसरों से ज्यादा धन, सुख-सुविधाएं और एशो-आराम की वस्तुएं जुटाना चाहते है । यह लालसा इस कदर जनून में बदल गई है कि आए-दिन रिश्तो़ं का कत्लेआम हो रहा है । हम सब स्वयं को सफल व समर्थ होने के लिए कुछ भी करने को बेताब हैं। नकारात्मक दष्टिकोण से किए गए कार्य जहां हमारे पतन का द्वार बनते हैं, वहीं व्यवहार कुशलता व सकारात्मक मन-मस्तिष्क के परिणम हमारे लिए एक वरदान से कम नहीं होते।
व्यक्तिगत कुशलता का विकास
(Development of indvidual Skilfulness)
आज किसी भी व्यक्ति की सफलता का मूल्यांकन उराकी भौतिक उपलब्धियों के आधार पर किया जाता है । परिणामत: मनुष्य भौतिक संसाधनों की पूर्ति हेतु सभी संभव-असंभव उपाय अमल में लाता है। भौतिक सफलता प्राप्त करना महत्वपूर्ण हो सकता है, परतुं यही एक मात्र वह वस्तु नहीं है, जिससे
मानव सुखी एवं सफल बनता है । हम अपने इर्द-गिर्द नजरें दौड़ाए, तो हमें ऐसे अनेक धनवानों के किस्से देखने को मिल जाएंगे, जिनकी जिदंगी का सूर्यास्त बर्बादी की काली छाया तले हुआ । जो धन-पशु तो बन गए, परतुं परिपक्व, संतुलित,व्यवहार कुशल तथा सुखी मनुष्य बनने में असफल रहे।
गौर से देखा जाए, तो इस तरह के व्यक्ति अपनी पूरी जिंदगी में अपने एक पक्ष को ही विकसित करने में जुटे रहते है। परिणामत: उनका संपूर्ण व्यक्तिव असंतुलन का शिकार हो जाता है । ऐसे व्यक्तियों में संतुलन, समग्रता, दूरदर्शिता व सहनशीलता का प्राय: अभाव रहता है, जिसकी प्राप्ति के लिए मानव को अपने जीवनकाल के प्रतिपल का सदुपयोग करना चाहिए । किसी भी व्यक्ति को, जो अपने क्षेत्र में शीर्षतम बुलंदियों को छूने का जज्बा रखता है, अपने व्यक्तित्व का कुशलतापूर्वक निर्माण अनैर विकास करना चाहिए।
सक्षम व्यक्तियों का सर्वत्र स्वागत
(Capable persons are respected Everywhere)
तेजी से बदलती दुनिया और हर रोज़ निर्मित होती नई मान्यताओं के चलते, आज उधोग एवं प्रबंध जगत में भी प्रगति एवं परिचय के मूल्य बदले है। आज मानवीय गुणों से परिपूर्ण, विशिष्ट क्षमताओं से युक्त तथा नित नई संभावनाओं से ओत-प्रोत लोगों के लिए स्वागत के द्वार खुले है। इसके मूल में धारणा यह है कि यदि किसी उद्योग या संस्थान में कार्य करने वाले व्यक्ति अधिकतम योग्य, कुशल तथा परिश्रमी होंगे, तो उनसे प्राप्त होने वाले परिणाम निश्चित ही बेहतर व उत्साहवर्धक रहेंगे। लगभग उसी तरह, जैसे अच्छे व उच्च किस्म के कच्चे माल से अतिंम उत्पाद के भी 'सर्वोतत्तम' होने की संभावना बनी रहती है।
स्प्ष्ट है कि एक ही आकार-प्रकार, क्षमता और साधनों की भिन्न इकाइयों में प्राप्त होने वाले परिणाम सदैव एक समान नहीं होते । इसकी वजह है कि भिन्न इकाइयों में कार्यरत व्यक्तियों की क्षमता, उत्साह एवं उत्पादकता है अंतर होता है । एक समय पूर्व तक यह अवधारणा सुनिश्चित थी कि पूंजी, कच्चा माल और तकनीकी सामर्थ्य ही किसी उद्योग की सफलता के आधारभूत तत्व है, पंरतु अब यह स्पष्ट हो गया है कि मशीनीकरण के मौजूदा दौर में हम भले ही कितनी भी तरक्की क्यो न कर ले, किसी भी संगठन के संचालन में मानवीय तत्व के महत्व को नकारा नहीं जा सकता । किसी भी कपंनी अथवा संस्थान से प्रस्तुत होने वाले परिणाम, अन्य बातों के साथ-साथ उसमें कार्यरत व्यक्तियों की कार्यक्षमता, कार्यकुशलता, व्यवहारगत योग्यता, उत्साह, निष्ठा एवं समर्पण पर भी निर्भर करते है ।
आज जीवन की जटिलताओं में निरंतर व द्धि हो रही है । अधिक लोगों के मध्य काम करते हुए भी व्यक्ति स्वयं को नितांत अकेला अनुभव कर रहा है । आज का इन्सान काफी महत्वाकांक्षी है और आसानी से संतुष्ट नहीं होता । इन तमाम परिवर्तित होती परिस्थितियों में व्यक्तिगत कुशलता की भूमिका अति महत्वपूर्ण है ।
कुशलता का अर्थ (Meaning of skilfulness)
कुशलता से तात्पर्य यह है कि - व्यक्ति में न केवल भौतिक उपलब्धियों के लिए, अपितु अपने जीवन के अन्य लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भी कार्य को सर्वोंत्तम, सुलभ तथा शीघ्रता के साथ करने के तरीकों का ज्ञान व अभ्यास हो । कुशलता का अभिप्राय है, अपने समस्त कार्यो, रुचियों, इरादो, आदतों, अनुभवों, वासनाओं पर नियन्त्रण रखना, न कि उनके अधीन होना। आप समय तथा बुद्धि का प्रयोग इस प्रकार करें कि अपने जीवन के प्रत्येक महत्वपूर्ण क्षेत्र में अपनी परिपूर्णता व अद्वितीय गुणों के नाते प्रतिष्ठित रहे।
दूसरे शब्दों में, व्यक्तिगत कुशलता का तात्पर्य चारित्रिक विकास से भी है । चरित्र को सैमुएल इस्माइल्स ने अपनी पुस्तक 'सेल्फ हेल्प' में जीवन का मुकुट और गौरव कहा है । उनका मंतव्य है कि मनुष्य की चारित्रिक विशेषताएं उसकी सर्वोंत्तम निधि है, जो उसे श्रेष्ठ पद पर प्रतिष्ठित कराती है । अस्थि के बलबूते व्यक्ति समाज में सद्इच्छाएं अर्जित करता है, सम्मान
व आदर प्राप्त करता है । यह धन से अधिक शक्तिशाली तत्व है । जॉन गिलिन के अनुसार, कुशलता एक आदर्श गुण है । इन्ही गुणों के कारण समाज व्यक्ति की कद्र करता है । वस्तुत: हमारी कार्य कुशलता ही हमारे लिए विजय व सौभाग्य के द्भार खोलती है ।
व्यक्तित्व की दौलत (Wealth of personality)
अपने व्यक्तित्व की दौलत की समद्ध कीजिए । आपके अपने भीतर व्यक्तित्व विकास की सभांवना के अपार खजाने मौजूद है । उनको पहचानिए ।
हमारी अपनी किस्मत व सुख की कुंजी हमारे भीतर अपने पास ही है। महत्वपूर्ण वह धन-दौलत नहीं, जो आपने कमाई है, अपितु उसको अर्जित करने के तौर-तरीके है । आपका व्यकितत्व, आपकी क्षमताएं, आपके विचार तथा आपके आदर्श इस मामले में खासी अहमियत रखते है ।
एक मूर्तिकार एक पत्थर को तोड़ रहा था । कोई देखने गया था कि मूर्ति कैसे बनाई जाती है । उसने जब देखा कि मूर्ति तो एकदम से नहीं बनाई जा रही है, सिर्फ छेनी और हथौड़े से पत्थर तोड़ा जा रहा है, तब उस आदमी ने पूछा कि यह आप क्या कर रहे है? मूर्ति नहीं बनाएगें ! मैं तो मूर्ति का बनना देखने आया हूं । आप तो सिर्फ पत्थर तोड़ रहे हैं?
उस मूर्तिकार ने कहा कि मूर्ति तो पत्थर के भीतर छिपी है, उसे बनाने की जरूरत नहीं है, सिर्फ उसके ऊपर जो व्यर्थ पत्थर जुड़ा है, उसे अलग कर देने की जरूरत है और तब मूर्ति प्रकट हो जाएगी । मूर्ति बनाई नहीं जाती, मूर्ति सिर्फ आविष्कृत होती है, डिस्कवर होती है, अनाव त होती है, उघाड़ी जाती है।
प्रत्येक मनुष्य के भीतर श्रेष्ठ व्यक्तित्व के अकुंर विद्यमान है, उनके बनाने की जरुरत नहीं है, सिर्फ उघाड़ने का सवाल है । कुछ है, जो हमने ऊपर से ओढ़ा हुआ है, जो उसे प्रकट नहीं होने देता । अतएव, अपने अंदर निहित व्यकितत्व विकास की अमूल्य संपदा को नजरअंदाज मत कीजिए । जीने का मजा इसी में है जि आपके पास जो वास्तव में है, उसकी सही कद्र कीजिए । भौर्तिक चीजो की नब्ज टटोलने से सुख का अंगीकार नहीं होगा। सुख तो हमारे उन प्रयासो़ं का प्रतिफल है, जो हम अपने पास की अमानत का सदुपयोग करने के लिए करते है । जीवन का वास्तविक आनन्द लेने में नहीं, देने में है । दोनों हाथों से देने है । तभी तो रहीम को भी कहना पड़ा-
जो जल बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़ै दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए, यह सज्जन कौ काम ।।
अपने व्यक्तित्व की खोज (Search for your personality)
कहावत है कि 'नीयत में ही बरकत होती है। उदारता में ही अभिब द्धि का सूत्र छिपा है । जितना देंगे, उससे कई गुना ज्यादा पाएंगे । जितना पाइए, उससे और कई गुना ज्यादा दीजिए । देते ही रहिए । यही आनंद का, का, सम द्धि का रहस्य है । इसी में सफलता है। कामयाबी उसी व्यक्ति के चरण चूमती है, जो अपने दिल के भीतर स्वाधीनता का आत्म-सम्मान का, नेक नीयत का, सत्यनिष्ठा का खज़ाना सजो़ंए रखता है ।
इमरसन कहा करते थे कि सुविधाओं की गद्दी पर बैठने वाला सोता ही रहता है । विज्ञान की बड़ी से बड़ी खोज से ज्यादा उंची खोज अपने व्यकितत्व की खोज़ है । अपने पास पहले से मौजूद विरारात को इस्तेमाल करने की शिक्षा, जिदगी की सबसे बड़ी करामात है । इससे हमें यह अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है कि हमारे अंदर क्या और कितना है?
संत फ्रांसिस कहा करते थे कि देने से ही तो हम पाते हैं। आत्मकेंद्रित व्यक्ति सबसे कम आत्मनिर्भर और सर्वाधिक दुखी होता है। अपने स्वार्थी हितों के लिए वह दूसरों का मुंह ताकता है और इसी वजह से उसे सुख कमी नसीब नहीं होता।
_______________यह भी ध्यान रखें_____________
(keep this in mind)
• हमारी व्यवस्थाएं स्वतंत्र होनी चाहिए, अन्यथा हमारी कार्यक्षमता घट जाएगी।
• पूर्णतावादी का कोई काम कमी पूर्ण नहीं होता, क्योंकि संपन्न हुआ कोई काम उसकी निगाह में पूरा-पूरा नहीं जांचता। जोखिम उठाने के बजाय वह उसे टालता रहता है।
अध्याय 2
दूसरों का ख्याल रखिए
(BE CONSIDERATE TOWARDS OTHERS)
व्यक्तित्व है ही क्या? तुम्हारे अपने विचारों,धारणाओं तथा भावनाओं का फल। स्वयं अपने विषय में जैसै तुम्हारे संकेत रहते हैं, वे ही तुम्हारे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। संभव है तुम्हे प्रकृति ने एक आकर्षक व्यक्तित्व न प्रदान किया हो,किंतु इसमें संदेह नहीं कि तुम संकेत द्वारा आने व्यक्तित्व को ऊंचा उठा सकते हो।
डॉ. रामचरण महेंद्र
चाहे घर हो, दफ्तर हो या फिर व्यापार का क्षेत्र। प्रत्येक स्थान पर हम परस्पर निर्भर है। हम चारों ओर उन्हीं गुणों की तलाश में रहते है, जिनको प्राप्त किए बिना हमें पूर्णता