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एक करोड़ का दाव
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एक करोड़ का दाव

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विशालगढ़...बरसों तक जुर्म की दुनिया का सरगना रहे और शराफत का चोला पहनकर इज्जतदार बिजनेसमैन बन चुके निरंजन प्रसाद की पत्नी कंचन का अपहरण कर लिया गया...उसका पता लगाकर वापस लाने के लिए प्रशांत की सेवायें ली गयी...लीड के तौर पर कंचन की फोटो और उसकी बहन और तीन सहेलियों के नाम पते दिए गए..जवान ख़ूबसूरत और सैक्सी कंचन इतनी तेज दिमाग थी अपनी सूझबूझ से निरंजन के जायज धंधों से उसे करोड़ों कमाकर दे रही थी...।


कंचन की सहेली अनीता सक्सेना के घर में दाखिल होते ही प्रशांत पर हमला किया गया...होश गंवाने से पहले वह इतना ही देख सका - हमलावर के दाएं गाल पर जख्म का निशान था...होश में आने पर अनीता की लाश वार्डरोब में लोहे की रॉड पर लटकी पायी...घर की तलाशी लेने पर इतना ही पता चल सका...हेरोइन एडिक्ट थी अनीता...। प्रशांत ने गुमनाम फोन करके हत्या की सूचना दे दी...।


रेनबो क्लब के मालिक जगदीश मित्तल और उसकी चहेती रीना राय से पता चला अनीता वहां से काम छोड़ कर कलकत्ता के किसी पैसेवाले के साथ भाग गई थी...कंचन की बाकि दो सहेलियों सविता मलिक और सरोज वोहरा से मुलाक़ात नहीं हो सकी...।


कंचन की बहन माला वर्मा अपने शानदार गारमेंट्स शो रूम में मिली...उसने साफ़ बताया निरंजन से बेहद नफरत करती है...वह कमीना पूरा शैतान है...कंचन को उससे पति वाला 'सुख' कभी नहीं मिला इसलिए वह दूसरे मर्दों से अपना पहलू आबाद करती रही है...माला के मुताबिक अनीता घटिया किस्म की बाजारू औरत हेरोइन एडिक्ट है इसलिए उसने कंचन को भी उससे दूर रहने को कहा था...। पेशेवर बदमाश जॉनी विक्टर अनीता का खास यार है...जॉनी विक्टर स्थानीय अंडरवर्ल्ड की बड़ी हस्ती कमल किशोर के लिए काम करता है...।


उसी रात अपने फ्लैट से निकलते प्रशांत पर गाल पर जख्म वाले हमलावर द्वारा गोलियां चलाई गयी...जवाब में प्रशांत ने भी फायर किये...प्रशांत बच गया लेकिन उसकी गोली से जख्मी हुआ हमलावर भाग गया...। उसी रात निरंजन ने बताया कंचन के किडनैपर ने एक करोड़ रूपये की फिरौती मांगी है...प्रशांत ने उसे अनीता की लाश, जगदीश मित्तल और रीना राय से हुई मुलाक़ात और खुद पर हुए हमले के बारे में बताया तो निरंजन के प्यादे शेट्टी ने जानकारी दी हमलावर विश्वासनगर का पेशेवर गनमैन सतपाल है...। उसी रात साढ़े तीन बजे शेट्टी से फोन पर सूचना पाकर प्रशांत ताज होटल पहुंचा...वहां आपसी गोली बारी में सतपाल, शेट्टी और उसका एक साथी मारे गए...।


अगले रोज रेनबो क्लब में जगदीश मित्तल को डरा धमकाकर उसकी बातों से प्रशांत समझ गया अनीता की हत्या के मामले में वह पूरी तरह इन्वॉल्व था...रीना राय का पता मालूम करके उसके घर पहुंचा तो पाया वह सामान समेटकर वहां से जा चुकी थी...इमारत के केयर टेकर ने कंचन की फोटो देखकर बताया वह अनीता के फ्लैट में आया करती थी और चोरी छिपे किसी आदमी से मिलती थी...अनीता की पड़ौसन पम्मी नारंग से पता चला - उस रात करीब साढ़े बारह बजे चीखने और नहीं...नहीं की आवाजें सुनी थी...।


उसी रात दो कारों में निरंजन के आदमियों के साथ दो बोरों में एक करोड़ रूपये लेकर प्रशांत फिरौती की रकम डिलीवर करने गया...हाईवे पर निरंजन के प्यादों और अपहरणकर्ता के आदमियों के बीच गोलीबारी हुई...और देर तक चली...प्रशांत ने जॉनी विक्टर को नीली शेवरलेट में भागते देखा...अपहरणकर्ता के दो और निरंजन के तीन आदमी मारे जा चुके थे...नोटों के बोरे गायब थे...।


एक करोड़ का दांव लगाने वाला कौन था...?


क्या प्रशांत उस तक पहुँच सका...?


कंचन वापस कैसे लौटी...?


 

Languageहिन्दी
PublisherAslan eReads
Release dateJun 15, 2021
ISBN9789385898303
एक करोड़ का दाव

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    एक करोड़ का दाव - प्रकाश भारती

    एक करोड़ का दांव

    प्रकाश भारती

    * * * * * *

    Aslan-Reads.png

    असलान रीड्स

    के द्वारा प्रकाशन

    असलान बिजनेस सॉल्यूशंस की एक इकाई

    बोरिवली, मुंबई, महाराष्ट्र, इंडिया

    ईमैल: hello@aslanbiz.com; वेबसाइट: www.aslanreads.com

    कॉपीराइट © 1992 प्रकाश भारती द्वारा

    ISBN 978-93-85898-30-3

    इस पुस्तक की कहानियाँ काल्पनिक है। इनका किसी के जीवन या किसी पात्र से कोई

    संबंध नहीं है। यह केवल मनोरंजन मात्र के लिए लिखी गई है।

    अत: लेखक एवं प्रकाशक इनके लिए जिम्मेदार नहीं है।

    यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि प्रकाशक की

    लिखित पूर्वानुमती के बिना इसे या इसके किसी भी हिस्से को न तो पुन: प्रकाशित

    किया जा सकता है और न ही किसी भी अन्य तरीके से, किसी भी रूप में

    इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।

    यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

    * * * * * *

    अंतर्वस्तु

    प्रकाश भारती - एक करोड़ का दांव

    एक करोड़ का दांव

    * * * * * *

    प्रकाश भारती - एक करोड़ का दांव

    लोकप्रिय जासूसी उपन्यासकार

    प्रकाश भारती

    का एक अत्यन्त रोचक रोमांचक एवं तेज रफ्तार उपन्यास

    एक करोड़ का दांव

    एक करोड़ का जो दाँव तुमने लगाया था । वो पिट चुका है । इसलिए मैं तुमसे एक सौदा करना चाहता हूं ।

    कैसा सौदा ? क्या बक रहे हो ।"

    बताता हूं, कंचन के अपहरण की फिरौती की शक्ल में एक करोड़ का जो दाँव तुमने लगाया था, वो पिट चुका है । तुम्हें खोटा सिक्का भी नहीं मिलेगा । अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो अपनी चहेती कान्ता सजनानी को तो जिंदा पाओगे ही नहीं साथ ही तुम्हारे घर, दफ्तरों, गोदामों वगैरा पर एक साथ बमबारी कराके तुम्हें पूरी तरह तबाह कर दिया जाएगा । फिर भी अगर तुम जिंदा रहे तो तुम्हारी हालत किसी भिखारी से भी बदतर होगी । अब तो तुम्हारे भेजे में आ गया मैं क्या कह रहा हूँ ।

    –"इसी उपन्यास से

    * * * * * *

    एक करोड़ का दांव

    अपने पहलू में मौजूद कड़क जवान और खूबसूरत लड़की को प्रशांत ताश की गड्डी की तरह फेंट रहा था ।

    लड़की की धड़कनें बढ़ गई थीं, सांसें तेज थीं और अधखुली आंखों में अजीब–सी चमक थी । समूचे शरीर में मस्ती भरा तनाव व्याप्त गया था । जिससे छुटकारा पाने के लिए वह छट–पटा रही थी ।

    बस ! वह हांफती हुई–सी बोली–अब बाजी शुरू करो, प्लीज ।

    पेशे से प्राइवेट डिटेक्टिव और जवान खूबसूरत औरतों का रसिया प्रशांत भी यही चाहता था । उसका सब्र भी अब जवाब देने लगा था ।

    उसने फेंटना बन्द कर दिया ।

    वह पत्ता फेंकने ही वाला था कि तेज चीख सुनाई दी । वह हड़बड़ाकर उठ बैठा ।

    नाइट बल्ब की धीमी रोशनी में उसने देखा–बिस्तर पर उसके अलावा कोई नहीं था ।

    सत्यानाश ! माथे पर हाथ मारकर बड़बड़ाया–मैं सपना देख रहा था ।

    तभी पुनः, चीख सुनाई दी ।

    वो डोरबैल की आवाज थी ।

    मन ही मन कुढ़ता वह बिस्तर से उतरा । पैरों में स्लीपर फंसाए और ड्रेसिंग गाउन पहनता हुआ बैडरूम से निकलकर प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गया । रात में बेवक्त जगाया जाने का अफसोस उसे नहीं था । अलबत्ता इस बात पर खीज जरूर आ रही थी कि मनपसंद लड़की के साथ हंगामाखेज सहवास का उसका हसीन ख्वाब चौपट हो गया ।

    दरवाजा खोलकर आगंतुक पर बरसने वाला ही था कि । बाहर मौजूद विशालकाय आदमी को पहचानते ही चकरा गया ।

    वह एक पेशेवर सजायाफ्ता बदमाश था–हरदयाल लेकिन सफेद तरबूज जैसे उसके घुटे सिर और बड़ी–बड़ी सुर्ख डरावनी आंखों की वजह से सभी उसे शेट्टी कहा करते थे । खुद उसे भी अपने असली नाम की बजाय हिन्दी फिल्मों के फाइटर के नाम से पुकारा जाना ज्यादा पसंद था ।

    शेट्टी ! प्रशांत ने पूछा–तुम इस वक्त यहां क्या करने आए हो ।

    शेट्टी के चेहरे पर सर्द मुस्कुराहट उभरी ।

    तुम्हें बॉस ने बुलाया है ।

    मेरा कोई बॉस नहीं है ।

    मैं अपने बॉस की बात कर रहा हूं । वह तुमसे मिलना चाहता है ।

    प्रशांत ने हैरानी से उसे देखा ।

    निरंजनप्रसाद ? मुझसे मिलना चाहता है ।"

    हाँ ।

    क्यों ?

    यह मुझे नहीं मालूम ।

    तो फिर जाओ मालूम करके आओ । अगर मैं ठीक समझूंगा तो मिल लूंगा ।

    –"प्रशांत ने दरवाजा बन्द करना चाहा तो शेट्टी ने अपना भारी बूट अड़ा दिया ।

    तुम्हें अभी मेरे साथ चलना होगा । यह बॉस का हुक्म है ।

    वह तुम्हारा बॉस है, मेरा नहीं । मेरे लिए उसका हुक्म मानना जरूरी नहीं है ।

    –"लेकिन मेरे लिए जरूरी है । इसलिए मैं तुम्हें साथ ले जाऊंगा । कपड़े बदलो । जल्दी करो । मैं ज्यादा देर इन्तजार नहीं कर सकता ।

    प्रशांत असमंजस में पड़ गया । वह समझ नहीं पा रहा था निरंजनप्रसाद ने उसे क्यों बुलाया था । जवानी के शुरूआती दौर में गिरोहबन्द बदमाश रह चुके निरंजन ने स्मगलिंग और ब्लैकमेलिंग से मोटा पैसा कमाया था । दूरदर्शी और अच्छी सूझबूझ का मालिक होने की वजह से वह उस पैसे को साथ साथ सही और तगड़े मुनाफे वाले धंधों में भी लगाता रहा । धंधे चल निकले । मुनाफा बढ़ता गया । और नए धंधे शुरू होते गए । कई रेस्टोरेन्ट, क्लब, होटलों वगैरा का मालिक बनकर वह निरंजन से निरंजनप्रसाद बना और सफल बिजनेसमैन समझा जाने लगा । लेकिन जाहिरा तौर पर शराफत, शान और इज्जत की जिंदगी जीने वाला निरंजनप्रसाद जुर्म की दुनिया से खुद को अलग नहीं कर सका । बहुत से गैरकानूनी धंधे अभी भी उसकी सरपरस्ती में चलते थे । जिन्हें चलाने के लिए शेट्टी जैसे दर्जनों आदमी उसके लिए काम करते थे ।

    प्रशांत भी उससे परिचित था । लेकिन उनका वो परिचय दो–तीन पार्टियों में हुई औपचारिक मुलाकातों तक ही सीमित था । इसलिए वह भी यह जानने को उत्सुक था निरंजन ने क्यों उसे बुलाया था । लेकिन इस मामले में शेट्टी को खुद पर हावी होने देना वह नहीं चाहता था ।

    क्या सोच रहे हो । शेट्टी ने टोका ।

    इस वक्त चार बजने वाले हैं । प्रशांत बोला–मैं अपनी नींद पूरी करना चाहता हूं । तुम जाकर अपने बॉस से कह देना वह कल मुझे मेरे ऑफिस में आकर मिल ले ।"

    शेट्टी ने अपनी जेब से पिस्तौल निकालकर उस पर तान दी ।

    तुम्हें अभी मेरे साथ चलना होगा !

    अगर मैं अभी भी इन्कार कर दूं । प्रशांत ने पिस्तौल को घूरते हुए पूछा ।

    तो मैं तुम्हें जबरदस्ती ले जाऊंगा ।

    प्रशांत समझता था, शेट्टी जो कह रहा था उसे पूरा करने में भी समर्थ था ।

    यानी चलना ही पड़ेगा । वह गहरी सांस लेकर बोला ।

    हाँ ।

    ठीक है ।

    प्रशांत पीछे हट गया ।

    शेट्टी भी पिस्तौल ताने अंदर आ गया ।

    खबरदार ! उसने चेतावनी दी–कोई गलत हरकत करने की कोशिश मत करना । वरना बॉस के पास मुझे तुम्हारी लाश पहुंचानी पड़ेगी ।

    बको मत ! प्रशांत सर्द लहजे में बोला–पिस्तौल को वापस जेब में रख लो । तुमसे डरने या तुम्हारे रौब में आने वाला मैं नहीं हूं । तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार होने की इकलौती वजह है–मैं भी जानना चाहता हूं निरंजनप्रसाद ने इस तरह और बेवक्त मुझे क्यों बुलाया है ।"

    वह बैडरूम में जाकर कपड़े बदलने लगा ।

    शेट्टी दरवाजे में खड़ा उसे देखता रहा । उसकी पिस्तौल पूर्ववत् प्रशांत पर तनी हुई थी ।

    * * * * * *

    सुनसान प्रायः सड़कों पर दौड़ती कार की पिछली सीट पर प्रशांत, शेट्टी के साथ बैठा था ।

    चेहरे–मोहरे से ही बदमाश नजर आने वाला ड्राइवर चुपचाप ड्राइव कर रहा था । उसने एक बार भी न तो पीछे मुड़कर देखा और न ही कुछ बोला ।

    प्रशांत ने भी उससे या शेट्टी से बात करने की कोई कोशिश नहीं की ।

    तीनों खामोश थे ।

    विभिन्न सड़कों से गुजरने के बाद कार अन्त में एक विशाल चार मंजिला कोठी के पोटिको में जा रुकी ।

    शेट्टी के संकेत पर प्रशांत नीचे उतरा ।

    चलो । शेट्टी कार से उतरकर बोला ।

    चार लम्बी सीढ़ियां चढ़कर दोनों प्रवेश द्वार के सम्मुख पहुंचे ।

    दस्तक के जवाब में खूंखार नजर आने वाले एक पहलवान ने दरवाजा खोला ।

    प्रशांत सहित शेट्टी भीतर दाखिल हुआ ।

    पहलवान ने प्रशांत की जेबें थपथपाकर तलाशी ली । उसके पास कोई हथियार न पाकर सिर हिलाकर जाने का संकेत कर दिया ।

    शेट्टी के साथ चलते प्रशांत ने एक लम्बा गलियारा पार किया । जिसके अंतिम सिरे पर बने बन्द दरवाजे के पास दो आदमी खड़े थे । प्रशांत भी पहचान गया । वे दोनों निरंजन के सिपहसालार थे–करन और नारायन ।

    शेट्टी ने दो बार दस्तक दी ।

    कम इन । अंदर से कहा गया ।

    शेट्टी ने दरवाजा खोलकर प्रशांत को इशारा किया । फिर उसके पीछे स्वयं भी अंदर प्रवेश कर गया ।

    प्रशांत ने चारों ओर निगाहें दौड़ाई । उसकी आशा के विपरीत लम्बा–चौड़ा वो कमरा विभिन्न विषयों की मूल्यवान पुस्तकों और कीमती आरामदेह फर्नीचर से सजा हुआ था । उसकी जानकारी के मुताबिक कोई ज्यादा पढ़ा–लिखा आदमी निरंजन नहीं था । स्पष्ट था इस शानदार लाइब्ररी को बनाने का असल मकसद पुस्तकों के प्रति उसका मोह या सम्मान न होकर दौलतमन्द होने की अपनी शान और अपने बड़प्पन का दिखावा करना था ।

    महोगनी के विशाल डैस्क की बगल में खड़े निरंजन ने प्रशांत पर उचटती–सी निगाह डाली, फिर शेट्टी को सम्बोधित करके बोला, तुम जाओ । मुझे मिस्टर गौतम से कुछ बातें करनी हैं ।

    शेट्टी पलटकर बाहर निकला । दरवाजा पुनः बन्द कर दिया ।

    बैठो, प्रशांत ।

    प्रशांत डैस्क के सम्मुख पड़ी चमड़ी मंढ़ी कुर्सियों में से एक पर बैठ गया ।

    ड्रिंक लोगे । निरंजन ने पूछा ।

    शुक्रिया, इस वक्त नहीं ।

    निरंजन डैस्क के पीछे पड़ी कुर्सी पर बैठ गया ।

    उसकी उम्र करीब पचास साल थी । ऊंचा कद, गोरा रंग, इकहरा मजबूत जिस्म और शानदार लिबास । ऊंचा माथा और बड़ी–बड़ी आंखें । कनपटियों पर झांकती सफेदी भी उसके आकर्षक व्यक्तित्व का एक हिस्सा ही बनकर रह गई थी । कुल मिलाकर वह एक अत्यन्त साधन–सम्पन्न और सफल बिजनेसमैन ही नजर आ रहा था । उससे अपरिचित किसी भी व्यक्ति ने आसानी से एतबार नहीं करना था कि अपनी जवानी के दौर में कई खून तक भी वह कर चुका था ।

    सिगरेट पियोगे ? डैस्क पर रखे बॉक्स से हवाना का एक सिगरेट निकालते हुए उसने पूछा ।

    नहीं, शुक्रिया ।

    तुम शायद सोच रहे हो बेवक्त तुम्हें यहां क्यों बुलाया गया है ।

    मैं सिर्फ सोच नहीं रहा हूं । प्रशांत बोला–मुझे गुस्सा भी आ रहा है ।

    क्यों ?

    –"तुम्हारे उस बन्दर ने मुझ पर पिस्तौल तानने की हिमाकत की थी ।

    वह मेरी हिदायतों पर अमल कर रहा था । निरंजन शांत स्वर में बोला–उसकी इस हरकत के लिए मैं माफी चाहता हूँ । और सिगरेट सुलगाने लगा ।

    गौर से उसे देखते प्रशांत ने पहली बार नोट किया उसकी आंखों में चिंता के गहन भाव थे । वह बहुत ज्यादा परेशान प्रतीत होता था ।

    मैं तुम्हें एक काम सौंपना चाहता हूं, प्रशांत । सिगरेट का कश लेकर धुआं उगलता हुआ निरंजन बोला ।

    कैसा काम ?

    तुम्हारे धंधे से ताल्लुक रखता ।

    ऐसे काम मैं अपनी मर्जी और पसंद के हिसाब से करता हूँ ।

    यह काम तुम्हें करना ही होगा ।

    यह तुम्हारा हुक्म है ।

    गुजारिश समझ लो ।

    निरंजन की यह नम्रता प्रशांत के लिए सरासर अनपेक्षित थी । उसका शक यकीन में बदल गया निरंजन के सामने वाकई कोई बड़ी ही टेढ़ी और गम्भीर समस्या उत्पन्न हो गई थी ।

    काम क्या है ।

    मैं अपनी पत्नी का पता लगवाना चाहता हूं ।

    प्रशांत ने असमंजसपूर्वक उसे देखा ।

    वह गायब हो गई है ।

    हाँ ।

    कबसे । निरंजन का दायां हाथ मुट्ठी की शक्ल में भिंच गया ।

    कल शाम अपनी कार लेकर नाटक देखने गई थी । लेकिन अभी तक नहीं लौटी । वह शुष्क स्वर में बोला–पहले कभी उसने ऐसा नहीं किया ।

    प्रशांत को जाती तौर पर उस जैसे आदमी पसन्द नहीं थे । इससे भी बड़ी और समझ में न आने वाली बात थी–"निरंजन साधन–सम्पन्न था । उसके पास अपने ही आदमियों की फौज थी । फिर भी वह एक प्राइवेट डिटेक्टिव की सेवाएं इस काम के लिए प्राप्त करना चाहता था ।

    मैं पूछ सकता हूं, इस काम के लिए मुझे ही क्यों चुना गया है ?

    सीधी–सी बात है, तुम एक प्राइवेट डिटेक्टिव हो । अपने धंधे में तुम्हारी अच्छी साख और शौहरत है ।

    लेकिन इस शहर में पुलिस भी है, मिसिंग पर्सन–ब्यूरो भी है और फिर तुम्हारे पास अपने भी दर्जनों आदमी हैं जो आसानी से उसका पता लगा सकते हैं ।

    –"तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है ये तमाम बातें मैं भी जानता हूं । जहां तक पुलिस का सवाल है, उन लोगों से मेरी पटरी नहीं खाती । हमारे रास्ते अलग–अलग हैं । इससे भी अहम बात है अगर मैं पुलिस के पास गया तो यह बात छुपी नहीं रह सकेगी । प्रेस वाले इसे ले उड़ेंगे और अपने अखबारों के जरिए खामख्वाह तिल का ताड़ बना देंगे ।

    –"यह तो पहले ही ताड़ बना हुआ है वरना मुझे बेवक्त तुमने यहां नहीं बुलाना था ।

    बारह साल के विवाहित जीवन में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ है । निरंजन उसकी बात पर ध्यान न देकर कुर्सी में पहलू बदलता हुआ बोला–"इसलिए मैं फिक्रमन्द हूं मुझे यह मामला बड़ा ही टेढ़ा नजर आ रहा है । हो सकता है तुम मेरी पत्नी का पता लगाने में कामयाब हो जाओ । अगर पता न भी लगा सके तो भी मुझे तसल्ली रहेगी कि तुम्हारी मदद हासिल करके मैंने इस मामले में सही फैसला किया था । तुम्हें इस तरह के कामों का तजुर्बा है और मुझे तुम पर पूरा भरोसा है ।

    प्रशांत को अभी भी यह बात कुछ जंच नहीं रही थी । अपने किसी भी मामले में किसी बाहरी आदमी की मदद लेना उसकी फितरत से कतई मेल नहीं खाता था और खासतौर पर उस सूरत में जबकि मामला उसकी पत्नी का था और मदद के लिए बुलाया जाने वाला आदमी एक प्राइवेट डिटेक्टिव ।

    मेरी सेवाएं प्राप्त करने की तुम्हारी बात अभी भी मेरी समझ में नहीं आ रही है । वह बोला–यहां आते वक्त मैंने करन और नारायन को बाहर ही देखा था । वे तुम्हारी पत्नी को ढूंढ़ने क्यों नहीं गए ?

    निरंजन ने अपने बुझ चुके सिगरेट को पुनः सुलगाया ।

    वे इस बारे में कुछ नहीं जानते और उन्हें बताने का मेरा कोई इरादा भी नहीं है ।

    तो फिर वे इस वक्त यहां तुम्हारे निवास स्थान पर क्या कर रहे हैं ?

    जब कंचन रात तीन बजे तक भी नहीं लौटी तो मुझ पर चिंता सवार होने लगी । उन सभी रेस्टोरेन्ट, क्लब वगैरा में फोन किया जहां वह आमतौर पर जाया करती है । जब कहीं से भी उसका पता नहीं चला तो मैंने अपने आदमियों को बुलवा भेजा । मैं उनसे कंचन को तलाश कराना चाहता था । निरंजन सिगरेट का कश लेने के बाद बोला–इस मामले में सबसे अहम बात यह है कि पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था । अगर उसे कहीं देर हो जाती तो वह हमेशा फोन करके मुझे सूचित कर दिया करती थी । मेरे आदमियों को यहां पहुंचने में करीब चालीस मिनट लग गए । इस बीच मैंने दोबारा इस बारे में सोचा और अपना इरादा बदल दिया । अपने आदमियों को इस बारे में कुछ न बताना ही मुझे ठीक लगा । मेरी पत्नी का इस तरह गायब हो जाना मेरे लिए फिक्र की बात है । लेकिन इस बात का मेरे आदमियों को पता चलना मेरे जैसे आदमी के लिए कहीं ज्यादा नुकसानदेह है । उसके स्वर में हिचकिचाहट थी–उन्हें बे–सिर–पैर की बातें करने का मौका मिल जाता है । तरह–तरह के नतीजे वे निकालने लगते हैं । और एक नई परेशानी खड़ी हो जाती है ।

    उसकी हिचकिचाहट से जाहिर था बात परेशानी की नहीं थी । असल बात थी–हुकूमत की । निरंजन अपनी पूरी ऑर्गनाइजेशन का सरगना था । अपने आदमियों पर उसका रौब था । वे उससे डरते और उसका हुक्म बजाते थे । जबकि पत्नी के गायब होने की बात ने उसकी इमेज खराब कर देनी थी । क्योंकि यह अपने आपमें उसके कमजोर होने का सबूत था कि अपनी पत्नी को भी नहीं सम्भाल सकता । और कमजोरी जाहिर करने का सीधा–सा मतलब था–चुनौती और बगावत । कोई भी महत्वाकांक्षी आदमी इस मौके का फायदा उठाकर ऑर्गनाइजेशन पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश कर सकता था ।

    इस बारे में तुम्हारा अपना क्या विचार है ? प्रशांत ने पूछा ।

    उसकी कार में कुछ नुक्स था । वो गैराज में ही खड़ी है । जाहिर है, कंचन ने जाने के लिए टैक्सी ही ली होगी । और यह मैं पहले बता चुका हूं कि देर हो जाने पर वह हमेशा मुझे फोन कर दिया करती थी । लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ । इसलिए मुझे लगता है, किसी ने उसका अपहरण कर लिया है ।

    प्रशांत चौका ।

    अपहरण ?

    हाँ ।

    क्या तुमसे फिरौती की मांग की गई है ।

    नहीं ।

    तुमसे जाती दुश्मनी का नतीजा भी तो यह रहा हो सकता है । मसलन किसी आदमी को तुमसे तगड़ी खुन्नस हो या हाल ही में किसी से झगड़ा हुआ हो...।

    जहां तक मेरे दुश्मनों का सवाल है । निरंजन उसकी बात काटता हुआ बोला–उनकी तादाद इतनी ज्यादा है याद करके लिस्ट बनाने में ही कई रोज लग जाएंगे । यह सही है वे सभी काले धंधे करते हैं । लेकिन मुझसे बदला लेने या मुझ पर दबाव डालने के लिए इतनी घटिया हरकत करने वाला उनमें कोई नहीं हो सकता ।

    जब तुम्हारी पत्नी थिएटर जा रही थी उस वक्त या उससे पहले तुम दोनों में कोई कहा–सुनी हुई थी ?

    नहीं ।

    तुम दोनों के आपसी ताल्लुकात कैसे हैं ।

    तुम्हारा मतलब है, हम दोनों में झगड़ा होता है या नहीं । निरंजन ने कुछ इस ढंग से

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