रहस्य और रोमांच
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रहस्य और रोमांच की इस श्रंखला में हम ऐसी कहानियां प्रस्तुत कर रहे हैं जो आपके दिल की धड़कन को बढ़ा देंगी और भरपूर मनोरंजन भी प्रदान करेंगी. कुछ कहानियां शायद आपको बहुत विचलित भी कर सकती हैं पर ये आपके अपने विवेक पर निर्भर होगा के क्या आप वो कहानियां अपने बच्चों को सुनाना चाहते हैं या नहीं?
इस श्रंखला की अगली पुस्तक भी शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है. अगर आपको हमारी ये कहानियां पसंद आती हैं तो कृपया अपने मिस्त्रों को भी हमारी इस पुस्तक के बारे में बताइये. हम आपके आभारी रहेंगे!
बहुत शुभकामनाए
टी. सिंह
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रहस्य और रोमांच - Student World
रहस्य और रोमांच
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रहस्य और रोमांच
Student World
Copyright@2019 Student World
Smashwords Edition
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रहस्य और रोमांच
Copyright
दो शब्द
भाग एक
भाग दो
भाग तीन
भाग चार
भाग पांच
दो शब्द
रहस्य और रोमांच की इस श्रंखला में हम ऐसी कहानियां प्रस्तुत कर रहे हैं जो आपके दिल की धड़कन को बढ़ा देंगी और भरपूर मनोरंजन भी प्रदान करेंगी. कुछ कहानियां शायद आपको बहुत विचलित भी कर सकती हैं पर ये आपके अपने विवेक पर निर्भर होगा के क्या आप वो कहानियां अपने बच्चों को सुनाना चाहते हैं या नहीं?
इस श्रंखला की अगली पुस्तक भी शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है. अगर आपको हमारी ये कहानियां पसंद आती हैं तो कृपया अपने मिस्त्रों को भी हमारी इस पुस्तक के बारे में बताइये. हम आपके आभारी रहेंगे!
बहुत शुभकामनाए
Student World
भाग एक
कौवे क्यों चीखे?
उन दिनों मैं एक संघर्षरत लेखक था. कुछ कहानियों के सिवाय और कुछ लेखों के सिवाय मेरी कुछ ख़ास उपलब्धी नहीं थी. मेरी बहुत सी लम्बी रचनायें और उपन्यास अस्वीकार हो चुकी थी.
कंप्यूटर का युग शुरू हो गया था लेकिन मैं तो अपने कलम से ही लिखता था. नए लोगों को कंप्यूटर के कारण मुझसे अधिक सुविधा थी.
मैंने भी एक लैपटॉप ले लिया था परन्तु मैं उसका प्रयोग सिर्फ कुछ ख़ास कामो के लिए ही करता था. पत्र पत्रिकाओं में लिखकर मुझे कुछ ख़ास कमाई नहीं होती थी, पर किसी तरह से गुज़ारा हो जाता था.
मेरे दो बड़े भाई थे. दोनों ही शादीशुदा थे. वो मेरी कठिनाइयों को जानते थे और मुझे समय समय पर पैसे भेजते रहते थे.
मुझे हर महीने उनसे पैसे लेते हुए ग्लानि महसूस होती थी परन्तु मेरे पास और कोई रास्ता ही नहीं था. मैं यूं तो उनको कहता रहता था के मुझे पैसे ना भेजें परन्तु वो चेक भेज ही दिया करते थे. मेरा काम चल रहा था.
मैं एक छोटे से शहर रूपनगर में जाकर रहने लगा था. मैंने दो कमरे किराये पर ले लिए थे वहाँ. मेरे कमरे एक राशन की बड़ी सी दुकान के ऊपर थे.
दुकान के साथ ही एक रेस्टोरेंट और एक हार्डवेयर की दुकान भी थे. मैं ही अकेला उस ईमारत में ऐसा व्यक्ति था जो व्यापार नहीं करता था.
मैं अपने पैसे बहुत ही संभाल कर खर्च करता था और बहुत सस्ते में ही गुजारा कर लेता था.
क्योंकि मैं जल्दी जल्दी शहर और घर बदला करता था मेरे खर्चे कुछ ज्यादा ही हो जाते थे. मुझे एक स्थान पर ज्यादा दिनों तक रहना नीरस लगने लगता था.
मेरे माता पिता और बड़े भाई हमेशा ही कहते रहते थे के मुझे किसी एक स्थान पर स्थाई होकर रहना चाहिए परन्तु मैं मनमौजी था और मैं लिखना चाहता था.
मैं उनको कहता था के जब मेरा उपन्यास सफल हो जाएगा मैं भी स्थायी हो जाऊंगा.
एक दिन कोची के जिला अस्पताल में मेरी मुलाकात अनिता से हुई. मेरे शहर से वो अस्पताल लगभग एक सौ मील दूर था.
वहां पहुँचने में बस से लगभग दो घंटे लगते थे.. मैं वहां अपने एक पुराने दोस्त से मिलने गया था. वो मद्रास से कोची रहने आया था.
वहां से वापिस अपने घर आते हुए, मैंने एक छोटा रास्ता चुना. रास्ते में बिजली विभाग के बहुत से खम्बे, तारें, और अन्य सामान पड़े थे. मैं लगभग गिरते गिरते बचा. मेरे दाए पाँव में एक घाव हो गया.
मुझे एक व्यक्ति ने जिला अस्पताल भेज दिया. मैं एक ऑटोरिक्षा लेकर अस्पताल चला गया. मुझे भय था के घाव में कहीं टिटनेस ना हो जाए. इंजेक्शन लेना जरूरी था.
जब मैं अस्पताल से बाहर आया, मैंने देखा अनीता अपने बूढ़े नाना नानी को एक टैक्सी से उतारने का प्रयास कर रही थी.
मुझे ज्ञात हुआ के उसकी नानी उस अस्पताल में उपचार करवा रही थी क्योंकि डिस्ट्रिक्ट अस्पताल निजी अस्पताल की तुलना में बहुत सस्ता था.
मैंने आगे बढ़कर अनीता की मदद कर दी और उसके नाना नानी को सुरक्षित अस्पताल के अंदर पहुंचा दिया.
मैं अनीता को देखकर बहुत से अनुमान लगाने लगा. उसके जीवन, उसके दोस्तों, उसके संबंधों के बारे में अपनी कल्पना करने लगा.
बाद में उसने मुझे बताया के वो एक निजी कंपनी में काम करती थी. उसको वहाँ सिर्फ तनख्वाह मिलती थी पर अन्य सुविधाएं नहीं थी.
वो बोली, आपका धन्यवाद!
इस बार मैंने उसको ध्यान से देखा. वो कुछ ज्यादा खूबसूरत तो नहीं थी. दुबली पतली थी.. ऐसा लगता था के वो कुपोषण का शिकार थी.
मैंने उसको कहा, मुझे धन्यवाद मत कहो! मेरी वर्तमान स्तिथि में मैं तुम्हारे लिए इतना तो कर ही सकता हूँ. देखो, मैं एक लेखक हूँ और मेरी अपनी ही बहुत सी परेशानियां हैं.
वो उत्सुकतावश मुझसे बोली, "'ओह', क्या नाम है आपका? आप कहाँ रहते हैं?
जी मेरा नाम रोशन है और मैं यहां से लगभग सौ मील दूर एक छोटे से शहर रूपनगर में रहता हूँ,
मैंने जवाब दिया.
वो मुझे हैरानी से देखते हुए बोली, सच में? मैं भी तो रूपनगर में ही रहती हूँ. क्योंकि यहां कोची में डॉक्टर अच्छे हैं इसी लिए मैं अपने नाना नानी को यहां लाई हूँ.
जब मैंने उसको अपने घर का पता बताया उसने मुझे कहा के उसका घर मेरे घर से सिर्फ तीन सौ मीटर की दूरी पर ही था. वो बोली, आप कब से रूपनगर में रह रहे हैं?
मैंने कहा, सिर्फ दो महीने ही हुए हैं अभी तो. मैं प्रायः शहर बदलता रहता हूँ. नयी जगहों पर नए विचार दिमाग में आते हैं. लेखक जो हूँ ना!
जब डॉक्टर और नर्सें आ गए, मैंने अनीता को गुडबाय कहा और चल दिया. उसके बाद अनीता से मेरी कुछ और मुलाकातें हुई हमारे शहर रूपनगर में ही.
लेकिन हम दोनों के बीच में एक दूरी ही रही. हम लोग कभी भी निजी बातें एक दूसरे से नहीं पूछते थे. हम लोग ज्यादातर सड़क पर ही मिला करते थे.
एक दिन हम दोनों शहर के बीचों बीच मिले. उस दिन हमारी कुछ लम्बी बातचीत हुई.
अनीता को जब मालूम चला के मैं शहर में खाली कागज़ खरीदने आया था वो बोली, "ओह आपको तो लिखने के लिए बहुत से पेपर चाहिए होते होंगे.
मैं आपसे अपने दफ्तर से एक बंडल ही ला दूंगी. वैसे भी हमारे दफ्तर में कागज़ ज्यादातर कचरे में ही चले जाते हैं."
कुछ दिनों के बाद उसने मुझे तीन मोटे मोटे बंडल सफ़ेद पेपर्स के ला दिए.
मैंने उसको धन्यवाद कहा और बताया के मैं अपना नया उपन्यास लिखने की तैयारी में था. उस दिन हम दोनों के बीच कुछ पंद्रह मिनट तक बातचीत हुई.
जुलाई का महीना था और बहुत जोर से बारिश हो रही थी. उस दिन अनीता मेरे लिए कुछ और सफ़ेद कागज़ लाने वाली थी.
वो अपने दफ्तर से अक्सर शाम को छे बजे वापिस आ जाती थी. मैं उसको राशन की दुकान के सामने मिलने वाला था.
वो भी कुछ सब्जियां इत्यादि खरीदना चाहती थी उस शाम को. उस समय उसके नाना नानी के घर पर वो अकेली ही रह रही थी क्योंकि उसके नाना नानी तो अस्पताल में थे..
मैंने महसूस किया के शायद उसको पैसे का कुछ अभाव था क्योंकि वो बहुत ही संभल संभल कर सब्जियां खरीद रही थी.
मैं उसको कुछ पैसे से मदद करना चाहता था परन्तु तब तक मेरे भाइयों ने चेक नहीं भेजे थे. मैंने अपने खर्च बहुत कम कर दिए थे. मैं अपने भाइयों से पैसे माँगना नहीं चाहता था. मैं उनके चेक की प्रतीक्षा ही करने लगा.
उस दिन मैं अनीता की प्रतीक्षा करता रहा परन्तु वो सात बजे तक भी नहीं आयी थी. मैं राशन की दुकान में ही बैठा था.
मैं उस राशन की दुकान के ऊपर ही तो रहता था. मैं दुकान वाले को बहुत अच्छे से जानता था.
बरसात रुकी नहीं थी.
आठ बज गए परन्तु अनीता नहीं आयी थी. मैंने अपने कमरे में जाकर आराम करने का विचार किया. मैंने अनीता से अगले दिन मिलने का निर्णय लिया. मैं अपने कमरे में आ गया. तभी बत्ती चली गयी.
बहुत ही अँधेरा हो गया था. मैंने जल्दी से अँधेरे में ही खोजकर एक माचिस की तीली जला ली और एक मोमबत्ती जला कर मेज पर लगा दी.
सुबह का कुछ खाना बचा हुआ था. मैं उसको ही गरम कर के खाने लगा. साथ में मैंने दो अंडे उबाल लिए और कॉफ़ी भी बना ली.
रात को अक्सर बत्ती गुल हो जाया करती थी. अब आदत हो चुकी थी. मैं रात को कभी भी नहीं लिखता था.
नौ बजे के बाद मैंने सोने का प्रयास किया परन्तु नींद नहीं आ रही थी. मैं अनीता के बारे में सोचने लगा. क्या उसके नाना नानी की तबियत ज्यादा खराब हो गयी थी. मैंने उठकर जल्दी से फिर से कपडे पहन लिए.
बाहर थोड़ी सर्दी थी इसीलिए मैंने कोट भी पहन लिया. मैंने एक टोर्च एक छाता लिया और अनीता के घर की तरफ चल दिया.
मैं सिर्फ ये देखना चाहता था के वो घर पर थी के नहीं. उसके घर के अंदर एक लालटेन जल रही थी और इसका मतलब था के वो घर में ही थी.
मुझे बहुत राहत महसूस हुई. मैंने सोचा के शायद वो मेरे लिए अपने दफ्तर से पेपर लाना भूल गयी थी.
अनीता के घर के सामने सड़क थी और तीन तरफ खाली जमीन थी. दूर दूर तक और कोई घर नहीं था. करीब दो सो मीटर की दूरी पर एक दो मंजिल का घर. वो घर एक दुबई से वापिस आये व्यक्ति ने बनाया था.
अँधेरे में वो स्थान बहुत ही भयावह लग रहा था. बारिश कुछ ज्यादा ही तेज़ हो गयी थी.
जब मैं उसके घर से वापिस आ रहा था मैंने बहुत से कुत्तों के गुर्राने की आवाजें सुनी. कुछ देर के बाद वो जोर जोर से भौंकने लगे. मुझे वो कुत्ते अँधेरे में नहीं दिखे.
कुत्तों के भौंकने के साथ ही मुझे कुछ कौवों के चीखने की और पंख फड़फड़ाने की आवाजें भी आयी. वो कौवे अनीता के घर के ऊपर ही मंडरा रहे थे.
अचानक मैंने देखा के अनीता के घर का मुख्य गेट बंद हो रहा था. मैंने देखा के एक पुरुष वहाँ खड़ा था और शायद कुछ हिचकिचा रहा था. अचानक वो पुरुष गायब हो गया. मुझे कुछ अजीब सा लगा.
मैं जल्दी से अनीता के घर में प्रवेश करने लगा. मैंने देखा के वो पुरुष अनीता के मुख्य दरवाजे पर लगे लॉक को खोलने का प्रयास कर रहा था.
मैंने अपनी टोर्च तो बंद कर दी थी, परन्तु मेरा छाता अभी भी खुला हुआ था. मेरे पास उस अजनबी पुरुष से सामना करने की हिम्मत नहीं थी. मैं एक स्थान पर छुपकर उसको देखने लगा.
वो व्यक्ति सर से पाँव तक पूरी तरह भीगा हुआ था. वो ताला खोलने में असफल हो गया था. उसने अचानक दरवाजे पर जोर जोर से दस्तक देनी शुरू कर दी.
अंदर से अनीता की आवाज आयी. वो पूछ रही थी के दरवाजे पर कौन था. अनीता ने खिड़की खोलकर उस पुरुष को देखा. अचानक ही वो अजनबी पुरुष गायब हो गया. मैं हैरान हो गया. मैंने राहत की सांस ली.
अगर वो चोर या लुटेरा भी होता तो शायद मैं अनीता की कुछ मदद नहीं कर सकता था. मैं बुरी तरफ काँप रहा था.. अनीता ने भी दरवाजा नहीं खोला था.
कुत्तों के भौंकने को आवाजें मेरे पास आती जा रही थी परन्तु वो दिख नहीं रहे थे. ऊपर आकाश में कौवे अभी भी जोर जोर से चीख रहे थे.
मैं बहुत ही भयभीत था. मैंने कौवों को कभी भी इस तरह से चीखते हुए नहीं सुना था. मैं असमंजस में था.
मैं मुड़कर अनीता के घर से दूर जाने लगा, परन्तु तभी किसी के चिल्लाने की आवाज़ आयी. आवाज़ अनीता की तरफ से आयी थी.
मैं दौड़कर फिर से उसके घर के पास चला गया. मैंने देखा के अब मुख्य गेट पर कोई भी नहीं था.
मैंने खिड़की के एक दरार में से अंदर देखा. वो अजनबी पुरुष किसी तरह अंदर घुस गया था. मैं तो दंग रह गया. उस अजनबी पुरुष के हाथ में एक लम्बा चाकू था और वो अनीता को धमका रहा था.
अनीता सहमी सी कोने में एक कुर्सी पर बैठी थी. मैंने सोचा के वो व्यक्ति पीछे के दरवाजे से अंदर घुस आया होगा या फिर किसी टूटी खिड़की से अंदर आया होगा.
उसके कंधे से एक थैला लटक रहा था जिसमे शायद उसके चोरी करने में काम आने वाले औजार थे.
वो चिल्लाया, जो कुछ भी तुम्हारे पास है, मुझे दे दो जल्दी! मैंने बहुत से लोगों को जान से मारा है और अगर तुमने कुछ चालाकी दिखाई तो मैं ये चाक़ू तुम्हरे पेट में घुसा दूंगा.
अनीता ने डरते डरते कहा, मुझे आज ही मेरी तनख्वाह मिली है. तुम वो पैसे ले सकते हो. मेरे पास और कुछ भी नहीं है.
अनीता ने मेज पर रखे अपने बैग की तरफ संकेत कर दिया.
अजनबी ने झपट कर उसके बैग को उठा लिया और उसमे से सब रूपए निकाल लिया और फिर अनीता की तरफ देखकर गुर्राया, इतने ही हैं क्या? और कुछ नहीं है?
बस इतने ही हैं मेरे पास. बाकि मैंने अस्पताल में जमा करवा दिए थे. तुम चाहो तो पूरे घर की तलाशी ले सकते हो,
अनीता ने घबराते हुए कहा.
मुझे तुमपर विश्वास है, लेकिन तुम एक महीने तक गुज़ारा कैसे करोगी? तुम लोगों से उधार लोगी, हैं ना? और ये घर किसका है?
ये घर और सब सामान मेरे नाना नानी का है. मेरी आंटी भी हमारे साथ ही रहती हैं. वो लोग अस्पताल में हैं. मेरी नानी की तबियत ठीक नहीं है.
उसने इधर उधर देखते हुए रूपए अपने जेब में ठूँस लिए. तभी कुत्ते और जोर से भौंकने लगे और आकाश में उड़ रहे कौवे और जोर जोर से चीखने लगे.
वो अजनबी भी गुर्राया, ये साले कौवे! ये कौवे भी कभी रात को इस तरह चीखते हैं? मुझे तो समझ नहीं आता? क्या तुम जानती हो के कौवे क्यों चीख रहे हैं?
तभी अचानक बहुत से कौवे उस खिड़की के पास आकर चीखने लगे जिस खिड़की के पास लालटेन लटकी हुई थी. उस अपराधी ने कहा, तो तुम्हारे पास और कुछ भी नहीं है?
अनीता ने कहा, हाँ कुछ और भी है.
उसने एक तरफ संकेत किया. वहां बहुत से समाचारपत्रों का एक ढेर लगा था. उन समाचारपत्रों के ढेर के ऊपर मेरा सोने का लॉकेट रखा है. तुम वो भी ले लो.
वो अजनबी धीरे धीरे उधर गया और उसने वो लॉकेट उठा लिया. उसने लालची निगाहों से उसको देखा. उसने फिर अनीता को देखा.
मैं सब कुछ छुप कर देख रहा था. मैं तो बहुत ही अजीब हालत में फंसा हुआ था. उस अजनबी ने उस लॉकेट को अपने जेब में नहीं रखा.
कुत्तों के भौंकने की आवाजें अभी भी जारी थी. कौवे अब भयंकर तरीके से चीखने लगे थे.
अचानक एक कौवा खिड़की के शीशे से टकराया और शीशा टुकड़े टुकड़े हो गया. वो कौवा खून से लथपथ नीचे गिर गया.
उस अजनबी ने अनीता से कहा, तुमने मुझे ये लॉकेट क्यों दिखाया? तुम चाहती तो इसको छुपा ही रहने दे सकती थी. मैं तो उन समाचारपत्रों को शायद देखता भी नहीं? तुम चुप भी तो रह सकती थी.
उस अजनबी का अनीता को शारीरिक क्षति पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था अन्यथा मैं उसपर झपट ही गया होता फिर चाहे जो कुछ भी होता. मैं अनीता के अजीब व्यवहार से थोड़ा चकित था.
अनीता ने उस अजनबी से कहा, तुम ले लो ये लॉकेट. मेरे लिए ये किसी काम का नहीं है. वैसे भी आज मेरी जिंदगी का आखरी दिन है.:
वो अजनबी भी मेरी तरह हैरान हो गया, जिंदगी का आखरी दिन? खैर मुझे उससे कोई मतलब नहीं है. वो तुम्हारे पास क्या रखा है?
उसने मेज पर रखे बर्तनो की तरफ संकेत किया. उनमें खाना था.
अनीता ने कहा, वो मेरा रात का खाना है.
अजनबी मेज की तरफ बढ़ते हुए बोला, मैं भी थोड़ा सा खा लेता हूँ. भूख लगी है.
अचानक अनीता बहुत जोर से चिल्लाई, छूना भी मत उस खाने को! तुम मर जाओगे! उस खाने में जहर है!
वो अपराधी अचानक रुक गया और आंखें फाड़ फाड़ कर अनीता को देखने लगा, इस खाने में तुमने जहर क्यों मिलाया है?
अनीता ने कहा, मैंने तुमको कहा था ना के आज मेरी जिंदगी का आखरी दिन है.
मैं तो अब कांपने ही लगा था. मेरी टोर्च मेरे हाथ से छूटकर मेरे पैरों के पास ही गिर गयी. वो अजनबी अनीता को घूर कर देखने लगा. वो भी थोड़ा सा घबराया सा दिख रहा था.
अचानक उसने अपने जेब से सभी रूपए निकाल कर फर्श पर फेंक दिए उसने वो लॉकेट भी नीचे फेंक दिया. वो जल्दी से दरवाजे से बाहर भाग गया.
मैंने देखा के उसका मुंह लाल हो गया था और वो बहुत ही भयभीत दिख रहा था. मैं अँधेरे में नीचे झुक कर बैठा था. वो अजनबी गायब हो चुका था.
मेरे पास अब अनीता का सामना करने की हिम्मत नहीं थी. मुझे ग्लानि सी होने लगी क्योंकि मैं अनीता के लिए कुछ भी नहीं कर सका था.
मैंने जल्दी से अपनी टोर्च उठायी और बाहर भाग गया. जब मैं घर पहुंचा मैं पूरी तरह भीग चुका था और मेरी टोर्च की बैटरियां भी ख़त्म हो गयी थी.
मेरा छाता भी खराब हो गया था. मैं कल्पना करने लगा के शायद अनीता अपना खाना खा रही होगी.
अगले तीन दिन तक मैं बिस्तर पर ही पड़ा रहा. मुझे बहुत तेज़ बुखार था.. मैं सिर्फ नीचे की दुकान से दूध मंगवाकर पीता रहा.
तीन दिनों के बाद मैंने समाचारपत्र में अनीता की मौत की खबर पढ़ी. उसकी लाश बुरी हालत में उसके घर में ही पायी गयी थी. पुलिस ने उसकी मृत्यु को आत्महत्या मान लिया था. अनीता ने एक चिट्ठी लिख छोड़ी थी.
मुझे तो किसी ने भी उसके घर जाते हुए देखा नहीं था इसलिए मुझसे पुलिस ने कुछ भी पूछताछ नहीं की. मैं तो बस यही सोच सोच कर परेशान था के अनीता ने आत्महत्या क्यों की थी?
मुझे और भी हैरानी हुई ये सुनकर के उसके नाना नानी और आंटी भी उसी रात को मर गए थे.
समाचार पत्र में लिखा था के अनीता की आंटी ने अस्पताल की तीसरी मंजिल से कूदकर जान दे दी थी. उसके नाना और नानी के किसी ने रात को सोते में ही गले काट दिए थे.
पुलिस और अन्य लोगों के लिए वो चार मौतें पहेली ही बनकर रह गयी थी. एक हफ्ते के बाद मैं रूपनगर छोड़कर चल दिया. मैं कभी भी वहां वापिस नहीं आने वाला था. सबसे बड़ी चीज़ जो मुझे परेशान कर रही थी वो थी कौवों की चीखें.
दूसरे शहर में पहुँचते ही मैंने अपने उपन्यास को लिखना शुरू कर दिया. अनीता मेरे उपन्यास की मुख्य पात्र बन गयी थी.
अब अगले कुछ महीनो में मुझे अपनी कल्पना से उसकी और उसके रिश्तेदारों की मौत के रहस्य को अपने उपन्यास में सुलझाना था.
अगर आप लोग भी कुछ सोच सकते हैं और ये बताना चाहते हैं के अनीता ने और उसकी आंटी ने आत्महत्या क्यों की, और उसके नाना नानी के गले क्यों काटे गए थे तो आप नीचे लिख सकते है.
ये भी बताइयेगा के वो अजनबी कौन था? उस लॉकेट का क्या महत्त्व था? वो कौवे उस रात को क्यों चीख रहे थे? हम आपके विचारों की प्रतीक्षा करेंगे. धन्यवाद.
वकील की बीवी
उस मंगलवार को जब ग्रेसी अपने घर से निकली आकाश बिलकुल साफ़ था और सूरज चमक रहा था. इतनी गर्मी भी नहीं थी.
उसने दरवाजे का लॉक एक बार फिर से चेक किया और चलते हुए उस तरफ चल दी जहां उसकी चमचमाती ऑडी कार खड़ी थी.
वो चांदी के रंग की ऑडी कार उसके पति ने उसको उसके पचासवें जन्मदिन पर उपहार में दी थी. कार में बैठने से पहले ग्रेसी ने एक बार फिर से अपने घर की तरफ देखा.
नीले आकाश की पृष्ठभूमि में उनका दो मंजिला लाल ईंटों से बना विला शानदार दिख रहा था. ग्रेसी को अपने घर पर गर्व था. पिछले पंद्रह वर्षों से वो और उसके पति उस घर में ही रह रहे थे.
वो घर उन्होंने तब खरीदा था जब ग्रेसी के पति मनोज एक बड़ी कानूनी कंपनी के पार्टनर बने थे. वो विला एक बड़ी एस्टेट में था. उस एस्टेट में बहुत से डॉक्टर, वकील, और व्यापारी रहते थे.
उसके घर के पश्चिमी भाग में एक मनी प्लांट की लता उसके घेर की दीवार पर चढ़ रही थी. ग्रेसी ने उसको देखकर मुंह बनाया. उसने सोचा के वो शाम को माली से कहेगी के उस मनी प्लांट की लता को ठीक से